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शोभा करंदलाजे, विजयेंद्र कर्नाटक भाजपा अध्यक्ष पद की दौड़ में सबसे आगे

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October 25, 2023
in राष्ट्रीय
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शोभा करंदलाजे, विजयेंद्र कर्नाटक भाजपा अध्यक्ष पद की दौड़ में सबसे आगे
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बेंगलुरु, 25 अक्टूबर (आईएएनएस)। कर्नाटक भाजपा में अंदरूनी कलह की खबरों के बीच केंद्रीय कृषि एवं किसान कल्याण राज्य मंत्री शोभा करंदलाजे और पूर्व मुख्यमंत्री बी.एस. येदियुरप्पा के बेटे तथा विधायक बी.वाई. विजयेंद्र पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष पद की दौड़ में सबसे आगे माने जा रहे हैं।

सूत्रों के मुताबिक, आलाकमान ने पूर्व उप मुख्‍यमंत्री डॉ. सी.एन. अश्वथ नारायण, विधायक बसनगौड़ा पाटिल, पूर्व राष्ट्रीय महासचिव सी.टी. रवि तथा पूर्व मंत्री और कट्टर हिंदुत्ववादी नेता वी. सुनील कुमार के नामों पर भी विचार किया है।

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फिलहाल सांसद नलिन कुमार कतील प्रदेश अध्यक्ष हैं। उनका कार्यकाल खत्म हो चुका है।

नए प्रमुख की चर्चा कर्नाटक में पांच महीने पहले हुए विधानसभा चुनाव के बाद से ही चल रही है, जिसमें पार्टी को करारी हार का सामना करना पड़ा था। विपक्षी कांग्रेस राज्य अध्यक्ष और राज्य विधानमंडल में विपक्ष के नेता के पदों के लिए उम्मीदवारों की नियुक्ति करने में विफल रहने के लिए भगवा पार्टी पर निशाना साध रही है।

राज्य में दिसंबर में शीतकालीन सत्र होगा और पार्टी नेताओं को उम्मीद है कि आलाकमान इस पर फैसला लेगा और उन्हें कांग्रेस नेताओं की आलोचना से बचाएगा। हालांकि, पार्टी के शीर्ष नेतृत्व का ध्यान अभी भी देश के पांच राज्यों में नवंबर में होने वाले चुनावों पर है।

सूत्रों ने बताया कि विधानसभा चुनाव में रणनीति पूरी तरह विफल होने के कारण आलाकमान फूंक-फूंक कर कदम रख रहा है। पूर्व मुख्‍यमंत्री येदियुरप्पा और राष्ट्रीय महासचिव बी.एल. संतोष के बीच के बीच अंदरूनी कलह के कारण भी पार्टी इस संबंध में निर्णय नहीं ले पा रही है। चूंकि दोनों नेता एक-दूसरे के हितों को कुचलना चाहते हैं, इसलिए आलाकमान के लिए यह मुश्किल हो गया है क्योंकि वह राज्य में अपनी पकड़ खोना नहीं चाहता था।

सूत्रों ने कहा कि शीर्ष नेतृत्व ने येदियुरप्पा को नजरअंदाज कर दिया और संतोष को प्रमुखता दी। विधानसभा चुनाव लड़ने के लिए कुल 72 नए चेहरों को टिकट दिया गया और वरिष्ठ नेता जगदीश शेट्टार, लक्ष्मण सावदी, के.एस. ईश्वरप्पा और कई अन्य लोगों को टिकट देने से इनकार कर दिया गया। पीएम मोदी और केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने राज्य की अधिकतम यात्राएं कीं और राज्य भर में बड़े पैमाने पर रैलियां और रोड शो किए।

प्रचंड जीत दर्ज करने के बाद कांग्रेस के मुख्यमंत्री सिद्दारमैया ने उपहास करते हुए कहा कि पीएम मोदी और अमित शाह जहां भी गए वहां कांग्रेस के उम्मीदवार भारी अंतर से जीते। यहां तक कि आसपास के इलाकों में भी भाजपा के उम्मीदवार हार गए। हार को पचा नहीं पाने के कारण भाजपा आलाकमान ने राज्य नेतृत्व को किनारे कर दिया था।

सूत्रों ने कहा कि आलाकमान फिर से अपने हाथ नहीं जलाना चाहता और संतोष या येदियुरप्पा के प्रस्तावों पर बिल्‍कुल विचार नहीं कर रहा है।

सूत्र बताते हैं कि कभी येदियुरप्पा की खास मानी जाने वाली शोभा करंदलाजे अब बदली हुई परिस्थितियों में संतोष की भी करीबी हैं। येदियुरप्पा के अधीन मंत्री के रूप में उनके काम की सराहना की गई। वह वोक्कालिगा समुदाय से आती हैं। शोभा करंदलाजे उग्र हिंदुत्ववादी टिप्पणियों के लिए जानी जाती हैं।

दूसरी ओर विजयेंद्र पहले ही राज्य की राजनीति में अपनी पहचान बना चुके हैं। उन्हें लिंगायत समुदाय के नेता के तौर पर पेश किया जाता है। विजयेंद्र की संगठनात्मक क्षमताओं की सराहना की जाती है। उन्होंने दक्षिण कर्नाटक के जिलों में भाजपा उम्मीदवारों की जीत सुनिश्चित की थी, जहां भगवा पार्टी पहले कभी नहीं जीती थी।

–आईएएनएस

एकेजे

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बेंगलुरु, 25 अक्टूबर (आईएएनएस)। कर्नाटक भाजपा में अंदरूनी कलह की खबरों के बीच केंद्रीय कृषि एवं किसान कल्याण राज्य मंत्री शोभा करंदलाजे और पूर्व मुख्यमंत्री बी.एस. येदियुरप्पा के बेटे तथा विधायक बी.वाई. विजयेंद्र पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष पद की दौड़ में सबसे आगे माने जा रहे हैं।

सूत्रों के मुताबिक, आलाकमान ने पूर्व उप मुख्‍यमंत्री डॉ. सी.एन. अश्वथ नारायण, विधायक बसनगौड़ा पाटिल, पूर्व राष्ट्रीय महासचिव सी.टी. रवि तथा पूर्व मंत्री और कट्टर हिंदुत्ववादी नेता वी. सुनील कुमार के नामों पर भी विचार किया है।

फिलहाल सांसद नलिन कुमार कतील प्रदेश अध्यक्ष हैं। उनका कार्यकाल खत्म हो चुका है।

नए प्रमुख की चर्चा कर्नाटक में पांच महीने पहले हुए विधानसभा चुनाव के बाद से ही चल रही है, जिसमें पार्टी को करारी हार का सामना करना पड़ा था। विपक्षी कांग्रेस राज्य अध्यक्ष और राज्य विधानमंडल में विपक्ष के नेता के पदों के लिए उम्मीदवारों की नियुक्ति करने में विफल रहने के लिए भगवा पार्टी पर निशाना साध रही है।

राज्य में दिसंबर में शीतकालीन सत्र होगा और पार्टी नेताओं को उम्मीद है कि आलाकमान इस पर फैसला लेगा और उन्हें कांग्रेस नेताओं की आलोचना से बचाएगा। हालांकि, पार्टी के शीर्ष नेतृत्व का ध्यान अभी भी देश के पांच राज्यों में नवंबर में होने वाले चुनावों पर है।

सूत्रों ने बताया कि विधानसभा चुनाव में रणनीति पूरी तरह विफल होने के कारण आलाकमान फूंक-फूंक कर कदम रख रहा है। पूर्व मुख्‍यमंत्री येदियुरप्पा और राष्ट्रीय महासचिव बी.एल. संतोष के बीच के बीच अंदरूनी कलह के कारण भी पार्टी इस संबंध में निर्णय नहीं ले पा रही है। चूंकि दोनों नेता एक-दूसरे के हितों को कुचलना चाहते हैं, इसलिए आलाकमान के लिए यह मुश्किल हो गया है क्योंकि वह राज्य में अपनी पकड़ खोना नहीं चाहता था।

सूत्रों ने कहा कि शीर्ष नेतृत्व ने येदियुरप्पा को नजरअंदाज कर दिया और संतोष को प्रमुखता दी। विधानसभा चुनाव लड़ने के लिए कुल 72 नए चेहरों को टिकट दिया गया और वरिष्ठ नेता जगदीश शेट्टार, लक्ष्मण सावदी, के.एस. ईश्वरप्पा और कई अन्य लोगों को टिकट देने से इनकार कर दिया गया। पीएम मोदी और केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने राज्य की अधिकतम यात्राएं कीं और राज्य भर में बड़े पैमाने पर रैलियां और रोड शो किए।

प्रचंड जीत दर्ज करने के बाद कांग्रेस के मुख्यमंत्री सिद्दारमैया ने उपहास करते हुए कहा कि पीएम मोदी और अमित शाह जहां भी गए वहां कांग्रेस के उम्मीदवार भारी अंतर से जीते। यहां तक कि आसपास के इलाकों में भी भाजपा के उम्मीदवार हार गए। हार को पचा नहीं पाने के कारण भाजपा आलाकमान ने राज्य नेतृत्व को किनारे कर दिया था।

सूत्रों ने कहा कि आलाकमान फिर से अपने हाथ नहीं जलाना चाहता और संतोष या येदियुरप्पा के प्रस्तावों पर बिल्‍कुल विचार नहीं कर रहा है।

सूत्र बताते हैं कि कभी येदियुरप्पा की खास मानी जाने वाली शोभा करंदलाजे अब बदली हुई परिस्थितियों में संतोष की भी करीबी हैं। येदियुरप्पा के अधीन मंत्री के रूप में उनके काम की सराहना की गई। वह वोक्कालिगा समुदाय से आती हैं। शोभा करंदलाजे उग्र हिंदुत्ववादी टिप्पणियों के लिए जानी जाती हैं।

दूसरी ओर विजयेंद्र पहले ही राज्य की राजनीति में अपनी पहचान बना चुके हैं। उन्हें लिंगायत समुदाय के नेता के तौर पर पेश किया जाता है। विजयेंद्र की संगठनात्मक क्षमताओं की सराहना की जाती है। उन्होंने दक्षिण कर्नाटक के जिलों में भाजपा उम्मीदवारों की जीत सुनिश्चित की थी, जहां भगवा पार्टी पहले कभी नहीं जीती थी।

–आईएएनएस

एकेजे

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बेंगलुरु, 25 अक्टूबर (आईएएनएस)। कर्नाटक भाजपा में अंदरूनी कलह की खबरों के बीच केंद्रीय कृषि एवं किसान कल्याण राज्य मंत्री शोभा करंदलाजे और पूर्व मुख्यमंत्री बी.एस. येदियुरप्पा के बेटे तथा विधायक बी.वाई. विजयेंद्र पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष पद की दौड़ में सबसे आगे माने जा रहे हैं।

सूत्रों के मुताबिक, आलाकमान ने पूर्व उप मुख्‍यमंत्री डॉ. सी.एन. अश्वथ नारायण, विधायक बसनगौड़ा पाटिल, पूर्व राष्ट्रीय महासचिव सी.टी. रवि तथा पूर्व मंत्री और कट्टर हिंदुत्ववादी नेता वी. सुनील कुमार के नामों पर भी विचार किया है।

फिलहाल सांसद नलिन कुमार कतील प्रदेश अध्यक्ष हैं। उनका कार्यकाल खत्म हो चुका है।

नए प्रमुख की चर्चा कर्नाटक में पांच महीने पहले हुए विधानसभा चुनाव के बाद से ही चल रही है, जिसमें पार्टी को करारी हार का सामना करना पड़ा था। विपक्षी कांग्रेस राज्य अध्यक्ष और राज्य विधानमंडल में विपक्ष के नेता के पदों के लिए उम्मीदवारों की नियुक्ति करने में विफल रहने के लिए भगवा पार्टी पर निशाना साध रही है।

राज्य में दिसंबर में शीतकालीन सत्र होगा और पार्टी नेताओं को उम्मीद है कि आलाकमान इस पर फैसला लेगा और उन्हें कांग्रेस नेताओं की आलोचना से बचाएगा। हालांकि, पार्टी के शीर्ष नेतृत्व का ध्यान अभी भी देश के पांच राज्यों में नवंबर में होने वाले चुनावों पर है।

सूत्रों ने बताया कि विधानसभा चुनाव में रणनीति पूरी तरह विफल होने के कारण आलाकमान फूंक-फूंक कर कदम रख रहा है। पूर्व मुख्‍यमंत्री येदियुरप्पा और राष्ट्रीय महासचिव बी.एल. संतोष के बीच के बीच अंदरूनी कलह के कारण भी पार्टी इस संबंध में निर्णय नहीं ले पा रही है। चूंकि दोनों नेता एक-दूसरे के हितों को कुचलना चाहते हैं, इसलिए आलाकमान के लिए यह मुश्किल हो गया है क्योंकि वह राज्य में अपनी पकड़ खोना नहीं चाहता था।

सूत्रों ने कहा कि शीर्ष नेतृत्व ने येदियुरप्पा को नजरअंदाज कर दिया और संतोष को प्रमुखता दी। विधानसभा चुनाव लड़ने के लिए कुल 72 नए चेहरों को टिकट दिया गया और वरिष्ठ नेता जगदीश शेट्टार, लक्ष्मण सावदी, के.एस. ईश्वरप्पा और कई अन्य लोगों को टिकट देने से इनकार कर दिया गया। पीएम मोदी और केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने राज्य की अधिकतम यात्राएं कीं और राज्य भर में बड़े पैमाने पर रैलियां और रोड शो किए।

प्रचंड जीत दर्ज करने के बाद कांग्रेस के मुख्यमंत्री सिद्दारमैया ने उपहास करते हुए कहा कि पीएम मोदी और अमित शाह जहां भी गए वहां कांग्रेस के उम्मीदवार भारी अंतर से जीते। यहां तक कि आसपास के इलाकों में भी भाजपा के उम्मीदवार हार गए। हार को पचा नहीं पाने के कारण भाजपा आलाकमान ने राज्य नेतृत्व को किनारे कर दिया था।

सूत्रों ने कहा कि आलाकमान फिर से अपने हाथ नहीं जलाना चाहता और संतोष या येदियुरप्पा के प्रस्तावों पर बिल्‍कुल विचार नहीं कर रहा है।

सूत्र बताते हैं कि कभी येदियुरप्पा की खास मानी जाने वाली शोभा करंदलाजे अब बदली हुई परिस्थितियों में संतोष की भी करीबी हैं। येदियुरप्पा के अधीन मंत्री के रूप में उनके काम की सराहना की गई। वह वोक्कालिगा समुदाय से आती हैं। शोभा करंदलाजे उग्र हिंदुत्ववादी टिप्पणियों के लिए जानी जाती हैं।

दूसरी ओर विजयेंद्र पहले ही राज्य की राजनीति में अपनी पहचान बना चुके हैं। उन्हें लिंगायत समुदाय के नेता के तौर पर पेश किया जाता है। विजयेंद्र की संगठनात्मक क्षमताओं की सराहना की जाती है। उन्होंने दक्षिण कर्नाटक के जिलों में भाजपा उम्मीदवारों की जीत सुनिश्चित की थी, जहां भगवा पार्टी पहले कभी नहीं जीती थी।

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बेंगलुरु, 25 अक्टूबर (आईएएनएस)। कर्नाटक भाजपा में अंदरूनी कलह की खबरों के बीच केंद्रीय कृषि एवं किसान कल्याण राज्य मंत्री शोभा करंदलाजे और पूर्व मुख्यमंत्री बी.एस. येदियुरप्पा के बेटे तथा विधायक बी.वाई. विजयेंद्र पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष पद की दौड़ में सबसे आगे माने जा रहे हैं।

सूत्रों के मुताबिक, आलाकमान ने पूर्व उप मुख्‍यमंत्री डॉ. सी.एन. अश्वथ नारायण, विधायक बसनगौड़ा पाटिल, पूर्व राष्ट्रीय महासचिव सी.टी. रवि तथा पूर्व मंत्री और कट्टर हिंदुत्ववादी नेता वी. सुनील कुमार के नामों पर भी विचार किया है।

फिलहाल सांसद नलिन कुमार कतील प्रदेश अध्यक्ष हैं। उनका कार्यकाल खत्म हो चुका है।

नए प्रमुख की चर्चा कर्नाटक में पांच महीने पहले हुए विधानसभा चुनाव के बाद से ही चल रही है, जिसमें पार्टी को करारी हार का सामना करना पड़ा था। विपक्षी कांग्रेस राज्य अध्यक्ष और राज्य विधानमंडल में विपक्ष के नेता के पदों के लिए उम्मीदवारों की नियुक्ति करने में विफल रहने के लिए भगवा पार्टी पर निशाना साध रही है।

राज्य में दिसंबर में शीतकालीन सत्र होगा और पार्टी नेताओं को उम्मीद है कि आलाकमान इस पर फैसला लेगा और उन्हें कांग्रेस नेताओं की आलोचना से बचाएगा। हालांकि, पार्टी के शीर्ष नेतृत्व का ध्यान अभी भी देश के पांच राज्यों में नवंबर में होने वाले चुनावों पर है।

सूत्रों ने बताया कि विधानसभा चुनाव में रणनीति पूरी तरह विफल होने के कारण आलाकमान फूंक-फूंक कर कदम रख रहा है। पूर्व मुख्‍यमंत्री येदियुरप्पा और राष्ट्रीय महासचिव बी.एल. संतोष के बीच के बीच अंदरूनी कलह के कारण भी पार्टी इस संबंध में निर्णय नहीं ले पा रही है। चूंकि दोनों नेता एक-दूसरे के हितों को कुचलना चाहते हैं, इसलिए आलाकमान के लिए यह मुश्किल हो गया है क्योंकि वह राज्य में अपनी पकड़ खोना नहीं चाहता था।

सूत्रों ने कहा कि शीर्ष नेतृत्व ने येदियुरप्पा को नजरअंदाज कर दिया और संतोष को प्रमुखता दी। विधानसभा चुनाव लड़ने के लिए कुल 72 नए चेहरों को टिकट दिया गया और वरिष्ठ नेता जगदीश शेट्टार, लक्ष्मण सावदी, के.एस. ईश्वरप्पा और कई अन्य लोगों को टिकट देने से इनकार कर दिया गया। पीएम मोदी और केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने राज्य की अधिकतम यात्राएं कीं और राज्य भर में बड़े पैमाने पर रैलियां और रोड शो किए।

प्रचंड जीत दर्ज करने के बाद कांग्रेस के मुख्यमंत्री सिद्दारमैया ने उपहास करते हुए कहा कि पीएम मोदी और अमित शाह जहां भी गए वहां कांग्रेस के उम्मीदवार भारी अंतर से जीते। यहां तक कि आसपास के इलाकों में भी भाजपा के उम्मीदवार हार गए। हार को पचा नहीं पाने के कारण भाजपा आलाकमान ने राज्य नेतृत्व को किनारे कर दिया था।

सूत्रों ने कहा कि आलाकमान फिर से अपने हाथ नहीं जलाना चाहता और संतोष या येदियुरप्पा के प्रस्तावों पर बिल्‍कुल विचार नहीं कर रहा है।

सूत्र बताते हैं कि कभी येदियुरप्पा की खास मानी जाने वाली शोभा करंदलाजे अब बदली हुई परिस्थितियों में संतोष की भी करीबी हैं। येदियुरप्पा के अधीन मंत्री के रूप में उनके काम की सराहना की गई। वह वोक्कालिगा समुदाय से आती हैं। शोभा करंदलाजे उग्र हिंदुत्ववादी टिप्पणियों के लिए जानी जाती हैं।

दूसरी ओर विजयेंद्र पहले ही राज्य की राजनीति में अपनी पहचान बना चुके हैं। उन्हें लिंगायत समुदाय के नेता के तौर पर पेश किया जाता है। विजयेंद्र की संगठनात्मक क्षमताओं की सराहना की जाती है। उन्होंने दक्षिण कर्नाटक के जिलों में भाजपा उम्मीदवारों की जीत सुनिश्चित की थी, जहां भगवा पार्टी पहले कभी नहीं जीती थी।

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सूत्रों के मुताबिक, आलाकमान ने पूर्व उप मुख्‍यमंत्री डॉ. सी.एन. अश्वथ नारायण, विधायक बसनगौड़ा पाटिल, पूर्व राष्ट्रीय महासचिव सी.टी. रवि तथा पूर्व मंत्री और कट्टर हिंदुत्ववादी नेता वी. सुनील कुमार के नामों पर भी विचार किया है।

फिलहाल सांसद नलिन कुमार कतील प्रदेश अध्यक्ष हैं। उनका कार्यकाल खत्म हो चुका है।

नए प्रमुख की चर्चा कर्नाटक में पांच महीने पहले हुए विधानसभा चुनाव के बाद से ही चल रही है, जिसमें पार्टी को करारी हार का सामना करना पड़ा था। विपक्षी कांग्रेस राज्य अध्यक्ष और राज्य विधानमंडल में विपक्ष के नेता के पदों के लिए उम्मीदवारों की नियुक्ति करने में विफल रहने के लिए भगवा पार्टी पर निशाना साध रही है।

राज्य में दिसंबर में शीतकालीन सत्र होगा और पार्टी नेताओं को उम्मीद है कि आलाकमान इस पर फैसला लेगा और उन्हें कांग्रेस नेताओं की आलोचना से बचाएगा। हालांकि, पार्टी के शीर्ष नेतृत्व का ध्यान अभी भी देश के पांच राज्यों में नवंबर में होने वाले चुनावों पर है।

सूत्रों ने बताया कि विधानसभा चुनाव में रणनीति पूरी तरह विफल होने के कारण आलाकमान फूंक-फूंक कर कदम रख रहा है। पूर्व मुख्‍यमंत्री येदियुरप्पा और राष्ट्रीय महासचिव बी.एल. संतोष के बीच के बीच अंदरूनी कलह के कारण भी पार्टी इस संबंध में निर्णय नहीं ले पा रही है। चूंकि दोनों नेता एक-दूसरे के हितों को कुचलना चाहते हैं, इसलिए आलाकमान के लिए यह मुश्किल हो गया है क्योंकि वह राज्य में अपनी पकड़ खोना नहीं चाहता था।

सूत्रों ने कहा कि शीर्ष नेतृत्व ने येदियुरप्पा को नजरअंदाज कर दिया और संतोष को प्रमुखता दी। विधानसभा चुनाव लड़ने के लिए कुल 72 नए चेहरों को टिकट दिया गया और वरिष्ठ नेता जगदीश शेट्टार, लक्ष्मण सावदी, के.एस. ईश्वरप्पा और कई अन्य लोगों को टिकट देने से इनकार कर दिया गया। पीएम मोदी और केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने राज्य की अधिकतम यात्राएं कीं और राज्य भर में बड़े पैमाने पर रैलियां और रोड शो किए।

प्रचंड जीत दर्ज करने के बाद कांग्रेस के मुख्यमंत्री सिद्दारमैया ने उपहास करते हुए कहा कि पीएम मोदी और अमित शाह जहां भी गए वहां कांग्रेस के उम्मीदवार भारी अंतर से जीते। यहां तक कि आसपास के इलाकों में भी भाजपा के उम्मीदवार हार गए। हार को पचा नहीं पाने के कारण भाजपा आलाकमान ने राज्य नेतृत्व को किनारे कर दिया था।

सूत्रों ने कहा कि आलाकमान फिर से अपने हाथ नहीं जलाना चाहता और संतोष या येदियुरप्पा के प्रस्तावों पर बिल्‍कुल विचार नहीं कर रहा है।

सूत्र बताते हैं कि कभी येदियुरप्पा की खास मानी जाने वाली शोभा करंदलाजे अब बदली हुई परिस्थितियों में संतोष की भी करीबी हैं। येदियुरप्पा के अधीन मंत्री के रूप में उनके काम की सराहना की गई। वह वोक्कालिगा समुदाय से आती हैं। शोभा करंदलाजे उग्र हिंदुत्ववादी टिप्पणियों के लिए जानी जाती हैं।

दूसरी ओर विजयेंद्र पहले ही राज्य की राजनीति में अपनी पहचान बना चुके हैं। उन्हें लिंगायत समुदाय के नेता के तौर पर पेश किया जाता है। विजयेंद्र की संगठनात्मक क्षमताओं की सराहना की जाती है। उन्होंने दक्षिण कर्नाटक के जिलों में भाजपा उम्मीदवारों की जीत सुनिश्चित की थी, जहां भगवा पार्टी पहले कभी नहीं जीती थी।

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सूत्रों के मुताबिक, आलाकमान ने पूर्व उप मुख्‍यमंत्री डॉ. सी.एन. अश्वथ नारायण, विधायक बसनगौड़ा पाटिल, पूर्व राष्ट्रीय महासचिव सी.टी. रवि तथा पूर्व मंत्री और कट्टर हिंदुत्ववादी नेता वी. सुनील कुमार के नामों पर भी विचार किया है।

फिलहाल सांसद नलिन कुमार कतील प्रदेश अध्यक्ष हैं। उनका कार्यकाल खत्म हो चुका है।

नए प्रमुख की चर्चा कर्नाटक में पांच महीने पहले हुए विधानसभा चुनाव के बाद से ही चल रही है, जिसमें पार्टी को करारी हार का सामना करना पड़ा था। विपक्षी कांग्रेस राज्य अध्यक्ष और राज्य विधानमंडल में विपक्ष के नेता के पदों के लिए उम्मीदवारों की नियुक्ति करने में विफल रहने के लिए भगवा पार्टी पर निशाना साध रही है।

राज्य में दिसंबर में शीतकालीन सत्र होगा और पार्टी नेताओं को उम्मीद है कि आलाकमान इस पर फैसला लेगा और उन्हें कांग्रेस नेताओं की आलोचना से बचाएगा। हालांकि, पार्टी के शीर्ष नेतृत्व का ध्यान अभी भी देश के पांच राज्यों में नवंबर में होने वाले चुनावों पर है।

सूत्रों ने बताया कि विधानसभा चुनाव में रणनीति पूरी तरह विफल होने के कारण आलाकमान फूंक-फूंक कर कदम रख रहा है। पूर्व मुख्‍यमंत्री येदियुरप्पा और राष्ट्रीय महासचिव बी.एल. संतोष के बीच के बीच अंदरूनी कलह के कारण भी पार्टी इस संबंध में निर्णय नहीं ले पा रही है। चूंकि दोनों नेता एक-दूसरे के हितों को कुचलना चाहते हैं, इसलिए आलाकमान के लिए यह मुश्किल हो गया है क्योंकि वह राज्य में अपनी पकड़ खोना नहीं चाहता था।

सूत्रों ने कहा कि शीर्ष नेतृत्व ने येदियुरप्पा को नजरअंदाज कर दिया और संतोष को प्रमुखता दी। विधानसभा चुनाव लड़ने के लिए कुल 72 नए चेहरों को टिकट दिया गया और वरिष्ठ नेता जगदीश शेट्टार, लक्ष्मण सावदी, के.एस. ईश्वरप्पा और कई अन्य लोगों को टिकट देने से इनकार कर दिया गया। पीएम मोदी और केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने राज्य की अधिकतम यात्राएं कीं और राज्य भर में बड़े पैमाने पर रैलियां और रोड शो किए।

प्रचंड जीत दर्ज करने के बाद कांग्रेस के मुख्यमंत्री सिद्दारमैया ने उपहास करते हुए कहा कि पीएम मोदी और अमित शाह जहां भी गए वहां कांग्रेस के उम्मीदवार भारी अंतर से जीते। यहां तक कि आसपास के इलाकों में भी भाजपा के उम्मीदवार हार गए। हार को पचा नहीं पाने के कारण भाजपा आलाकमान ने राज्य नेतृत्व को किनारे कर दिया था।

सूत्रों ने कहा कि आलाकमान फिर से अपने हाथ नहीं जलाना चाहता और संतोष या येदियुरप्पा के प्रस्तावों पर बिल्‍कुल विचार नहीं कर रहा है।

सूत्र बताते हैं कि कभी येदियुरप्पा की खास मानी जाने वाली शोभा करंदलाजे अब बदली हुई परिस्थितियों में संतोष की भी करीबी हैं। येदियुरप्पा के अधीन मंत्री के रूप में उनके काम की सराहना की गई। वह वोक्कालिगा समुदाय से आती हैं। शोभा करंदलाजे उग्र हिंदुत्ववादी टिप्पणियों के लिए जानी जाती हैं।

दूसरी ओर विजयेंद्र पहले ही राज्य की राजनीति में अपनी पहचान बना चुके हैं। उन्हें लिंगायत समुदाय के नेता के तौर पर पेश किया जाता है। विजयेंद्र की संगठनात्मक क्षमताओं की सराहना की जाती है। उन्होंने दक्षिण कर्नाटक के जिलों में भाजपा उम्मीदवारों की जीत सुनिश्चित की थी, जहां भगवा पार्टी पहले कभी नहीं जीती थी।

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बेंगलुरु, 25 अक्टूबर (आईएएनएस)। कर्नाटक भाजपा में अंदरूनी कलह की खबरों के बीच केंद्रीय कृषि एवं किसान कल्याण राज्य मंत्री शोभा करंदलाजे और पूर्व मुख्यमंत्री बी.एस. येदियुरप्पा के बेटे तथा विधायक बी.वाई. विजयेंद्र पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष पद की दौड़ में सबसे आगे माने जा रहे हैं।

सूत्रों के मुताबिक, आलाकमान ने पूर्व उप मुख्‍यमंत्री डॉ. सी.एन. अश्वथ नारायण, विधायक बसनगौड़ा पाटिल, पूर्व राष्ट्रीय महासचिव सी.टी. रवि तथा पूर्व मंत्री और कट्टर हिंदुत्ववादी नेता वी. सुनील कुमार के नामों पर भी विचार किया है।

फिलहाल सांसद नलिन कुमार कतील प्रदेश अध्यक्ष हैं। उनका कार्यकाल खत्म हो चुका है।

नए प्रमुख की चर्चा कर्नाटक में पांच महीने पहले हुए विधानसभा चुनाव के बाद से ही चल रही है, जिसमें पार्टी को करारी हार का सामना करना पड़ा था। विपक्षी कांग्रेस राज्य अध्यक्ष और राज्य विधानमंडल में विपक्ष के नेता के पदों के लिए उम्मीदवारों की नियुक्ति करने में विफल रहने के लिए भगवा पार्टी पर निशाना साध रही है।

राज्य में दिसंबर में शीतकालीन सत्र होगा और पार्टी नेताओं को उम्मीद है कि आलाकमान इस पर फैसला लेगा और उन्हें कांग्रेस नेताओं की आलोचना से बचाएगा। हालांकि, पार्टी के शीर्ष नेतृत्व का ध्यान अभी भी देश के पांच राज्यों में नवंबर में होने वाले चुनावों पर है।

सूत्रों ने बताया कि विधानसभा चुनाव में रणनीति पूरी तरह विफल होने के कारण आलाकमान फूंक-फूंक कर कदम रख रहा है। पूर्व मुख्‍यमंत्री येदियुरप्पा और राष्ट्रीय महासचिव बी.एल. संतोष के बीच के बीच अंदरूनी कलह के कारण भी पार्टी इस संबंध में निर्णय नहीं ले पा रही है। चूंकि दोनों नेता एक-दूसरे के हितों को कुचलना चाहते हैं, इसलिए आलाकमान के लिए यह मुश्किल हो गया है क्योंकि वह राज्य में अपनी पकड़ खोना नहीं चाहता था।

सूत्रों ने कहा कि शीर्ष नेतृत्व ने येदियुरप्पा को नजरअंदाज कर दिया और संतोष को प्रमुखता दी। विधानसभा चुनाव लड़ने के लिए कुल 72 नए चेहरों को टिकट दिया गया और वरिष्ठ नेता जगदीश शेट्टार, लक्ष्मण सावदी, के.एस. ईश्वरप्पा और कई अन्य लोगों को टिकट देने से इनकार कर दिया गया। पीएम मोदी और केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने राज्य की अधिकतम यात्राएं कीं और राज्य भर में बड़े पैमाने पर रैलियां और रोड शो किए।

प्रचंड जीत दर्ज करने के बाद कांग्रेस के मुख्यमंत्री सिद्दारमैया ने उपहास करते हुए कहा कि पीएम मोदी और अमित शाह जहां भी गए वहां कांग्रेस के उम्मीदवार भारी अंतर से जीते। यहां तक कि आसपास के इलाकों में भी भाजपा के उम्मीदवार हार गए। हार को पचा नहीं पाने के कारण भाजपा आलाकमान ने राज्य नेतृत्व को किनारे कर दिया था।

सूत्रों ने कहा कि आलाकमान फिर से अपने हाथ नहीं जलाना चाहता और संतोष या येदियुरप्पा के प्रस्तावों पर बिल्‍कुल विचार नहीं कर रहा है।

सूत्र बताते हैं कि कभी येदियुरप्पा की खास मानी जाने वाली शोभा करंदलाजे अब बदली हुई परिस्थितियों में संतोष की भी करीबी हैं। येदियुरप्पा के अधीन मंत्री के रूप में उनके काम की सराहना की गई। वह वोक्कालिगा समुदाय से आती हैं। शोभा करंदलाजे उग्र हिंदुत्ववादी टिप्पणियों के लिए जानी जाती हैं।

दूसरी ओर विजयेंद्र पहले ही राज्य की राजनीति में अपनी पहचान बना चुके हैं। उन्हें लिंगायत समुदाय के नेता के तौर पर पेश किया जाता है। विजयेंद्र की संगठनात्मक क्षमताओं की सराहना की जाती है। उन्होंने दक्षिण कर्नाटक के जिलों में भाजपा उम्मीदवारों की जीत सुनिश्चित की थी, जहां भगवा पार्टी पहले कभी नहीं जीती थी।

–आईएएनएस

एकेजे

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बेंगलुरु, 25 अक्टूबर (आईएएनएस)। कर्नाटक भाजपा में अंदरूनी कलह की खबरों के बीच केंद्रीय कृषि एवं किसान कल्याण राज्य मंत्री शोभा करंदलाजे और पूर्व मुख्यमंत्री बी.एस. येदियुरप्पा के बेटे तथा विधायक बी.वाई. विजयेंद्र पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष पद की दौड़ में सबसे आगे माने जा रहे हैं।

सूत्रों के मुताबिक, आलाकमान ने पूर्व उप मुख्‍यमंत्री डॉ. सी.एन. अश्वथ नारायण, विधायक बसनगौड़ा पाटिल, पूर्व राष्ट्रीय महासचिव सी.टी. रवि तथा पूर्व मंत्री और कट्टर हिंदुत्ववादी नेता वी. सुनील कुमार के नामों पर भी विचार किया है।

फिलहाल सांसद नलिन कुमार कतील प्रदेश अध्यक्ष हैं। उनका कार्यकाल खत्म हो चुका है।

नए प्रमुख की चर्चा कर्नाटक में पांच महीने पहले हुए विधानसभा चुनाव के बाद से ही चल रही है, जिसमें पार्टी को करारी हार का सामना करना पड़ा था। विपक्षी कांग्रेस राज्य अध्यक्ष और राज्य विधानमंडल में विपक्ष के नेता के पदों के लिए उम्मीदवारों की नियुक्ति करने में विफल रहने के लिए भगवा पार्टी पर निशाना साध रही है।

राज्य में दिसंबर में शीतकालीन सत्र होगा और पार्टी नेताओं को उम्मीद है कि आलाकमान इस पर फैसला लेगा और उन्हें कांग्रेस नेताओं की आलोचना से बचाएगा। हालांकि, पार्टी के शीर्ष नेतृत्व का ध्यान अभी भी देश के पांच राज्यों में नवंबर में होने वाले चुनावों पर है।

सूत्रों ने बताया कि विधानसभा चुनाव में रणनीति पूरी तरह विफल होने के कारण आलाकमान फूंक-फूंक कर कदम रख रहा है। पूर्व मुख्‍यमंत्री येदियुरप्पा और राष्ट्रीय महासचिव बी.एल. संतोष के बीच के बीच अंदरूनी कलह के कारण भी पार्टी इस संबंध में निर्णय नहीं ले पा रही है। चूंकि दोनों नेता एक-दूसरे के हितों को कुचलना चाहते हैं, इसलिए आलाकमान के लिए यह मुश्किल हो गया है क्योंकि वह राज्य में अपनी पकड़ खोना नहीं चाहता था।

सूत्रों ने कहा कि शीर्ष नेतृत्व ने येदियुरप्पा को नजरअंदाज कर दिया और संतोष को प्रमुखता दी। विधानसभा चुनाव लड़ने के लिए कुल 72 नए चेहरों को टिकट दिया गया और वरिष्ठ नेता जगदीश शेट्टार, लक्ष्मण सावदी, के.एस. ईश्वरप्पा और कई अन्य लोगों को टिकट देने से इनकार कर दिया गया। पीएम मोदी और केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने राज्य की अधिकतम यात्राएं कीं और राज्य भर में बड़े पैमाने पर रैलियां और रोड शो किए।

प्रचंड जीत दर्ज करने के बाद कांग्रेस के मुख्यमंत्री सिद्दारमैया ने उपहास करते हुए कहा कि पीएम मोदी और अमित शाह जहां भी गए वहां कांग्रेस के उम्मीदवार भारी अंतर से जीते। यहां तक कि आसपास के इलाकों में भी भाजपा के उम्मीदवार हार गए। हार को पचा नहीं पाने के कारण भाजपा आलाकमान ने राज्य नेतृत्व को किनारे कर दिया था।

सूत्रों ने कहा कि आलाकमान फिर से अपने हाथ नहीं जलाना चाहता और संतोष या येदियुरप्पा के प्रस्तावों पर बिल्‍कुल विचार नहीं कर रहा है।

सूत्र बताते हैं कि कभी येदियुरप्पा की खास मानी जाने वाली शोभा करंदलाजे अब बदली हुई परिस्थितियों में संतोष की भी करीबी हैं। येदियुरप्पा के अधीन मंत्री के रूप में उनके काम की सराहना की गई। वह वोक्कालिगा समुदाय से आती हैं। शोभा करंदलाजे उग्र हिंदुत्ववादी टिप्पणियों के लिए जानी जाती हैं।

दूसरी ओर विजयेंद्र पहले ही राज्य की राजनीति में अपनी पहचान बना चुके हैं। उन्हें लिंगायत समुदाय के नेता के तौर पर पेश किया जाता है। विजयेंद्र की संगठनात्मक क्षमताओं की सराहना की जाती है। उन्होंने दक्षिण कर्नाटक के जिलों में भाजपा उम्मीदवारों की जीत सुनिश्चित की थी, जहां भगवा पार्टी पहले कभी नहीं जीती थी।

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सूत्रों के मुताबिक, आलाकमान ने पूर्व उप मुख्‍यमंत्री डॉ. सी.एन. अश्वथ नारायण, विधायक बसनगौड़ा पाटिल, पूर्व राष्ट्रीय महासचिव सी.टी. रवि तथा पूर्व मंत्री और कट्टर हिंदुत्ववादी नेता वी. सुनील कुमार के नामों पर भी विचार किया है।

फिलहाल सांसद नलिन कुमार कतील प्रदेश अध्यक्ष हैं। उनका कार्यकाल खत्म हो चुका है।

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राज्य में दिसंबर में शीतकालीन सत्र होगा और पार्टी नेताओं को उम्मीद है कि आलाकमान इस पर फैसला लेगा और उन्हें कांग्रेस नेताओं की आलोचना से बचाएगा। हालांकि, पार्टी के शीर्ष नेतृत्व का ध्यान अभी भी देश के पांच राज्यों में नवंबर में होने वाले चुनावों पर है।

सूत्रों ने बताया कि विधानसभा चुनाव में रणनीति पूरी तरह विफल होने के कारण आलाकमान फूंक-फूंक कर कदम रख रहा है। पूर्व मुख्‍यमंत्री येदियुरप्पा और राष्ट्रीय महासचिव बी.एल. संतोष के बीच के बीच अंदरूनी कलह के कारण भी पार्टी इस संबंध में निर्णय नहीं ले पा रही है। चूंकि दोनों नेता एक-दूसरे के हितों को कुचलना चाहते हैं, इसलिए आलाकमान के लिए यह मुश्किल हो गया है क्योंकि वह राज्य में अपनी पकड़ खोना नहीं चाहता था।

सूत्रों ने कहा कि शीर्ष नेतृत्व ने येदियुरप्पा को नजरअंदाज कर दिया और संतोष को प्रमुखता दी। विधानसभा चुनाव लड़ने के लिए कुल 72 नए चेहरों को टिकट दिया गया और वरिष्ठ नेता जगदीश शेट्टार, लक्ष्मण सावदी, के.एस. ईश्वरप्पा और कई अन्य लोगों को टिकट देने से इनकार कर दिया गया। पीएम मोदी और केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने राज्य की अधिकतम यात्राएं कीं और राज्य भर में बड़े पैमाने पर रैलियां और रोड शो किए।

प्रचंड जीत दर्ज करने के बाद कांग्रेस के मुख्यमंत्री सिद्दारमैया ने उपहास करते हुए कहा कि पीएम मोदी और अमित शाह जहां भी गए वहां कांग्रेस के उम्मीदवार भारी अंतर से जीते। यहां तक कि आसपास के इलाकों में भी भाजपा के उम्मीदवार हार गए। हार को पचा नहीं पाने के कारण भाजपा आलाकमान ने राज्य नेतृत्व को किनारे कर दिया था।

सूत्रों ने कहा कि आलाकमान फिर से अपने हाथ नहीं जलाना चाहता और संतोष या येदियुरप्पा के प्रस्तावों पर बिल्‍कुल विचार नहीं कर रहा है।

सूत्र बताते हैं कि कभी येदियुरप्पा की खास मानी जाने वाली शोभा करंदलाजे अब बदली हुई परिस्थितियों में संतोष की भी करीबी हैं। येदियुरप्पा के अधीन मंत्री के रूप में उनके काम की सराहना की गई। वह वोक्कालिगा समुदाय से आती हैं। शोभा करंदलाजे उग्र हिंदुत्ववादी टिप्पणियों के लिए जानी जाती हैं।

दूसरी ओर विजयेंद्र पहले ही राज्य की राजनीति में अपनी पहचान बना चुके हैं। उन्हें लिंगायत समुदाय के नेता के तौर पर पेश किया जाता है। विजयेंद्र की संगठनात्मक क्षमताओं की सराहना की जाती है। उन्होंने दक्षिण कर्नाटक के जिलों में भाजपा उम्मीदवारों की जीत सुनिश्चित की थी, जहां भगवा पार्टी पहले कभी नहीं जीती थी।

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सूत्रों के मुताबिक, आलाकमान ने पूर्व उप मुख्‍यमंत्री डॉ. सी.एन. अश्वथ नारायण, विधायक बसनगौड़ा पाटिल, पूर्व राष्ट्रीय महासचिव सी.टी. रवि तथा पूर्व मंत्री और कट्टर हिंदुत्ववादी नेता वी. सुनील कुमार के नामों पर भी विचार किया है।

फिलहाल सांसद नलिन कुमार कतील प्रदेश अध्यक्ष हैं। उनका कार्यकाल खत्म हो चुका है।

नए प्रमुख की चर्चा कर्नाटक में पांच महीने पहले हुए विधानसभा चुनाव के बाद से ही चल रही है, जिसमें पार्टी को करारी हार का सामना करना पड़ा था। विपक्षी कांग्रेस राज्य अध्यक्ष और राज्य विधानमंडल में विपक्ष के नेता के पदों के लिए उम्मीदवारों की नियुक्ति करने में विफल रहने के लिए भगवा पार्टी पर निशाना साध रही है।

राज्य में दिसंबर में शीतकालीन सत्र होगा और पार्टी नेताओं को उम्मीद है कि आलाकमान इस पर फैसला लेगा और उन्हें कांग्रेस नेताओं की आलोचना से बचाएगा। हालांकि, पार्टी के शीर्ष नेतृत्व का ध्यान अभी भी देश के पांच राज्यों में नवंबर में होने वाले चुनावों पर है।

सूत्रों ने बताया कि विधानसभा चुनाव में रणनीति पूरी तरह विफल होने के कारण आलाकमान फूंक-फूंक कर कदम रख रहा है। पूर्व मुख्‍यमंत्री येदियुरप्पा और राष्ट्रीय महासचिव बी.एल. संतोष के बीच के बीच अंदरूनी कलह के कारण भी पार्टी इस संबंध में निर्णय नहीं ले पा रही है। चूंकि दोनों नेता एक-दूसरे के हितों को कुचलना चाहते हैं, इसलिए आलाकमान के लिए यह मुश्किल हो गया है क्योंकि वह राज्य में अपनी पकड़ खोना नहीं चाहता था।

सूत्रों ने कहा कि शीर्ष नेतृत्व ने येदियुरप्पा को नजरअंदाज कर दिया और संतोष को प्रमुखता दी। विधानसभा चुनाव लड़ने के लिए कुल 72 नए चेहरों को टिकट दिया गया और वरिष्ठ नेता जगदीश शेट्टार, लक्ष्मण सावदी, के.एस. ईश्वरप्पा और कई अन्य लोगों को टिकट देने से इनकार कर दिया गया। पीएम मोदी और केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने राज्य की अधिकतम यात्राएं कीं और राज्य भर में बड़े पैमाने पर रैलियां और रोड शो किए।

प्रचंड जीत दर्ज करने के बाद कांग्रेस के मुख्यमंत्री सिद्दारमैया ने उपहास करते हुए कहा कि पीएम मोदी और अमित शाह जहां भी गए वहां कांग्रेस के उम्मीदवार भारी अंतर से जीते। यहां तक कि आसपास के इलाकों में भी भाजपा के उम्मीदवार हार गए। हार को पचा नहीं पाने के कारण भाजपा आलाकमान ने राज्य नेतृत्व को किनारे कर दिया था।

सूत्रों ने कहा कि आलाकमान फिर से अपने हाथ नहीं जलाना चाहता और संतोष या येदियुरप्पा के प्रस्तावों पर बिल्‍कुल विचार नहीं कर रहा है।

सूत्र बताते हैं कि कभी येदियुरप्पा की खास मानी जाने वाली शोभा करंदलाजे अब बदली हुई परिस्थितियों में संतोष की भी करीबी हैं। येदियुरप्पा के अधीन मंत्री के रूप में उनके काम की सराहना की गई। वह वोक्कालिगा समुदाय से आती हैं। शोभा करंदलाजे उग्र हिंदुत्ववादी टिप्पणियों के लिए जानी जाती हैं।

दूसरी ओर विजयेंद्र पहले ही राज्य की राजनीति में अपनी पहचान बना चुके हैं। उन्हें लिंगायत समुदाय के नेता के तौर पर पेश किया जाता है। विजयेंद्र की संगठनात्मक क्षमताओं की सराहना की जाती है। उन्होंने दक्षिण कर्नाटक के जिलों में भाजपा उम्मीदवारों की जीत सुनिश्चित की थी, जहां भगवा पार्टी पहले कभी नहीं जीती थी।

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सूत्रों के मुताबिक, आलाकमान ने पूर्व उप मुख्‍यमंत्री डॉ. सी.एन. अश्वथ नारायण, विधायक बसनगौड़ा पाटिल, पूर्व राष्ट्रीय महासचिव सी.टी. रवि तथा पूर्व मंत्री और कट्टर हिंदुत्ववादी नेता वी. सुनील कुमार के नामों पर भी विचार किया है।

फिलहाल सांसद नलिन कुमार कतील प्रदेश अध्यक्ष हैं। उनका कार्यकाल खत्म हो चुका है।

नए प्रमुख की चर्चा कर्नाटक में पांच महीने पहले हुए विधानसभा चुनाव के बाद से ही चल रही है, जिसमें पार्टी को करारी हार का सामना करना पड़ा था। विपक्षी कांग्रेस राज्य अध्यक्ष और राज्य विधानमंडल में विपक्ष के नेता के पदों के लिए उम्मीदवारों की नियुक्ति करने में विफल रहने के लिए भगवा पार्टी पर निशाना साध रही है।

राज्य में दिसंबर में शीतकालीन सत्र होगा और पार्टी नेताओं को उम्मीद है कि आलाकमान इस पर फैसला लेगा और उन्हें कांग्रेस नेताओं की आलोचना से बचाएगा। हालांकि, पार्टी के शीर्ष नेतृत्व का ध्यान अभी भी देश के पांच राज्यों में नवंबर में होने वाले चुनावों पर है।

सूत्रों ने बताया कि विधानसभा चुनाव में रणनीति पूरी तरह विफल होने के कारण आलाकमान फूंक-फूंक कर कदम रख रहा है। पूर्व मुख्‍यमंत्री येदियुरप्पा और राष्ट्रीय महासचिव बी.एल. संतोष के बीच के बीच अंदरूनी कलह के कारण भी पार्टी इस संबंध में निर्णय नहीं ले पा रही है। चूंकि दोनों नेता एक-दूसरे के हितों को कुचलना चाहते हैं, इसलिए आलाकमान के लिए यह मुश्किल हो गया है क्योंकि वह राज्य में अपनी पकड़ खोना नहीं चाहता था।

सूत्रों ने कहा कि शीर्ष नेतृत्व ने येदियुरप्पा को नजरअंदाज कर दिया और संतोष को प्रमुखता दी। विधानसभा चुनाव लड़ने के लिए कुल 72 नए चेहरों को टिकट दिया गया और वरिष्ठ नेता जगदीश शेट्टार, लक्ष्मण सावदी, के.एस. ईश्वरप्पा और कई अन्य लोगों को टिकट देने से इनकार कर दिया गया। पीएम मोदी और केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने राज्य की अधिकतम यात्राएं कीं और राज्य भर में बड़े पैमाने पर रैलियां और रोड शो किए।

प्रचंड जीत दर्ज करने के बाद कांग्रेस के मुख्यमंत्री सिद्दारमैया ने उपहास करते हुए कहा कि पीएम मोदी और अमित शाह जहां भी गए वहां कांग्रेस के उम्मीदवार भारी अंतर से जीते। यहां तक कि आसपास के इलाकों में भी भाजपा के उम्मीदवार हार गए। हार को पचा नहीं पाने के कारण भाजपा आलाकमान ने राज्य नेतृत्व को किनारे कर दिया था।

सूत्रों ने कहा कि आलाकमान फिर से अपने हाथ नहीं जलाना चाहता और संतोष या येदियुरप्पा के प्रस्तावों पर बिल्‍कुल विचार नहीं कर रहा है।

सूत्र बताते हैं कि कभी येदियुरप्पा की खास मानी जाने वाली शोभा करंदलाजे अब बदली हुई परिस्थितियों में संतोष की भी करीबी हैं। येदियुरप्पा के अधीन मंत्री के रूप में उनके काम की सराहना की गई। वह वोक्कालिगा समुदाय से आती हैं। शोभा करंदलाजे उग्र हिंदुत्ववादी टिप्पणियों के लिए जानी जाती हैं।

दूसरी ओर विजयेंद्र पहले ही राज्य की राजनीति में अपनी पहचान बना चुके हैं। उन्हें लिंगायत समुदाय के नेता के तौर पर पेश किया जाता है। विजयेंद्र की संगठनात्मक क्षमताओं की सराहना की जाती है। उन्होंने दक्षिण कर्नाटक के जिलों में भाजपा उम्मीदवारों की जीत सुनिश्चित की थी, जहां भगवा पार्टी पहले कभी नहीं जीती थी।

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सूत्रों के मुताबिक, आलाकमान ने पूर्व उप मुख्‍यमंत्री डॉ. सी.एन. अश्वथ नारायण, विधायक बसनगौड़ा पाटिल, पूर्व राष्ट्रीय महासचिव सी.टी. रवि तथा पूर्व मंत्री और कट्टर हिंदुत्ववादी नेता वी. सुनील कुमार के नामों पर भी विचार किया है।

फिलहाल सांसद नलिन कुमार कतील प्रदेश अध्यक्ष हैं। उनका कार्यकाल खत्म हो चुका है।

नए प्रमुख की चर्चा कर्नाटक में पांच महीने पहले हुए विधानसभा चुनाव के बाद से ही चल रही है, जिसमें पार्टी को करारी हार का सामना करना पड़ा था। विपक्षी कांग्रेस राज्य अध्यक्ष और राज्य विधानमंडल में विपक्ष के नेता के पदों के लिए उम्मीदवारों की नियुक्ति करने में विफल रहने के लिए भगवा पार्टी पर निशाना साध रही है।

राज्य में दिसंबर में शीतकालीन सत्र होगा और पार्टी नेताओं को उम्मीद है कि आलाकमान इस पर फैसला लेगा और उन्हें कांग्रेस नेताओं की आलोचना से बचाएगा। हालांकि, पार्टी के शीर्ष नेतृत्व का ध्यान अभी भी देश के पांच राज्यों में नवंबर में होने वाले चुनावों पर है।

सूत्रों ने बताया कि विधानसभा चुनाव में रणनीति पूरी तरह विफल होने के कारण आलाकमान फूंक-फूंक कर कदम रख रहा है। पूर्व मुख्‍यमंत्री येदियुरप्पा और राष्ट्रीय महासचिव बी.एल. संतोष के बीच के बीच अंदरूनी कलह के कारण भी पार्टी इस संबंध में निर्णय नहीं ले पा रही है। चूंकि दोनों नेता एक-दूसरे के हितों को कुचलना चाहते हैं, इसलिए आलाकमान के लिए यह मुश्किल हो गया है क्योंकि वह राज्य में अपनी पकड़ खोना नहीं चाहता था।

सूत्रों ने कहा कि शीर्ष नेतृत्व ने येदियुरप्पा को नजरअंदाज कर दिया और संतोष को प्रमुखता दी। विधानसभा चुनाव लड़ने के लिए कुल 72 नए चेहरों को टिकट दिया गया और वरिष्ठ नेता जगदीश शेट्टार, लक्ष्मण सावदी, के.एस. ईश्वरप्पा और कई अन्य लोगों को टिकट देने से इनकार कर दिया गया। पीएम मोदी और केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने राज्य की अधिकतम यात्राएं कीं और राज्य भर में बड़े पैमाने पर रैलियां और रोड शो किए।

प्रचंड जीत दर्ज करने के बाद कांग्रेस के मुख्यमंत्री सिद्दारमैया ने उपहास करते हुए कहा कि पीएम मोदी और अमित शाह जहां भी गए वहां कांग्रेस के उम्मीदवार भारी अंतर से जीते। यहां तक कि आसपास के इलाकों में भी भाजपा के उम्मीदवार हार गए। हार को पचा नहीं पाने के कारण भाजपा आलाकमान ने राज्य नेतृत्व को किनारे कर दिया था।

सूत्रों ने कहा कि आलाकमान फिर से अपने हाथ नहीं जलाना चाहता और संतोष या येदियुरप्पा के प्रस्तावों पर बिल्‍कुल विचार नहीं कर रहा है।

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दूसरी ओर विजयेंद्र पहले ही राज्य की राजनीति में अपनी पहचान बना चुके हैं। उन्हें लिंगायत समुदाय के नेता के तौर पर पेश किया जाता है। विजयेंद्र की संगठनात्मक क्षमताओं की सराहना की जाती है। उन्होंने दक्षिण कर्नाटक के जिलों में भाजपा उम्मीदवारों की जीत सुनिश्चित की थी, जहां भगवा पार्टी पहले कभी नहीं जीती थी।

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सूत्रों के मुताबिक, आलाकमान ने पूर्व उप मुख्‍यमंत्री डॉ. सी.एन. अश्वथ नारायण, विधायक बसनगौड़ा पाटिल, पूर्व राष्ट्रीय महासचिव सी.टी. रवि तथा पूर्व मंत्री और कट्टर हिंदुत्ववादी नेता वी. सुनील कुमार के नामों पर भी विचार किया है।

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दूसरी ओर विजयेंद्र पहले ही राज्य की राजनीति में अपनी पहचान बना चुके हैं। उन्हें लिंगायत समुदाय के नेता के तौर पर पेश किया जाता है। विजयेंद्र की संगठनात्मक क्षमताओं की सराहना की जाती है। उन्होंने दक्षिण कर्नाटक के जिलों में भाजपा उम्मीदवारों की जीत सुनिश्चित की थी, जहां भगवा पार्टी पहले कभी नहीं जीती थी।

–आईएएनएस

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सूत्रों के मुताबिक, आलाकमान ने पूर्व उप मुख्‍यमंत्री डॉ. सी.एन. अश्वथ नारायण, विधायक बसनगौड़ा पाटिल, पूर्व राष्ट्रीय महासचिव सी.टी. रवि तथा पूर्व मंत्री और कट्टर हिंदुत्ववादी नेता वी. सुनील कुमार के नामों पर भी विचार किया है।

फिलहाल सांसद नलिन कुमार कतील प्रदेश अध्यक्ष हैं। उनका कार्यकाल खत्म हो चुका है।

नए प्रमुख की चर्चा कर्नाटक में पांच महीने पहले हुए विधानसभा चुनाव के बाद से ही चल रही है, जिसमें पार्टी को करारी हार का सामना करना पड़ा था। विपक्षी कांग्रेस राज्य अध्यक्ष और राज्य विधानमंडल में विपक्ष के नेता के पदों के लिए उम्मीदवारों की नियुक्ति करने में विफल रहने के लिए भगवा पार्टी पर निशाना साध रही है।

राज्य में दिसंबर में शीतकालीन सत्र होगा और पार्टी नेताओं को उम्मीद है कि आलाकमान इस पर फैसला लेगा और उन्हें कांग्रेस नेताओं की आलोचना से बचाएगा। हालांकि, पार्टी के शीर्ष नेतृत्व का ध्यान अभी भी देश के पांच राज्यों में नवंबर में होने वाले चुनावों पर है।

सूत्रों ने बताया कि विधानसभा चुनाव में रणनीति पूरी तरह विफल होने के कारण आलाकमान फूंक-फूंक कर कदम रख रहा है। पूर्व मुख्‍यमंत्री येदियुरप्पा और राष्ट्रीय महासचिव बी.एल. संतोष के बीच के बीच अंदरूनी कलह के कारण भी पार्टी इस संबंध में निर्णय नहीं ले पा रही है। चूंकि दोनों नेता एक-दूसरे के हितों को कुचलना चाहते हैं, इसलिए आलाकमान के लिए यह मुश्किल हो गया है क्योंकि वह राज्य में अपनी पकड़ खोना नहीं चाहता था।

सूत्रों ने कहा कि शीर्ष नेतृत्व ने येदियुरप्पा को नजरअंदाज कर दिया और संतोष को प्रमुखता दी। विधानसभा चुनाव लड़ने के लिए कुल 72 नए चेहरों को टिकट दिया गया और वरिष्ठ नेता जगदीश शेट्टार, लक्ष्मण सावदी, के.एस. ईश्वरप्पा और कई अन्य लोगों को टिकट देने से इनकार कर दिया गया। पीएम मोदी और केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने राज्य की अधिकतम यात्राएं कीं और राज्य भर में बड़े पैमाने पर रैलियां और रोड शो किए।

प्रचंड जीत दर्ज करने के बाद कांग्रेस के मुख्यमंत्री सिद्दारमैया ने उपहास करते हुए कहा कि पीएम मोदी और अमित शाह जहां भी गए वहां कांग्रेस के उम्मीदवार भारी अंतर से जीते। यहां तक कि आसपास के इलाकों में भी भाजपा के उम्मीदवार हार गए। हार को पचा नहीं पाने के कारण भाजपा आलाकमान ने राज्य नेतृत्व को किनारे कर दिया था।

सूत्रों ने कहा कि आलाकमान फिर से अपने हाथ नहीं जलाना चाहता और संतोष या येदियुरप्पा के प्रस्तावों पर बिल्‍कुल विचार नहीं कर रहा है।

सूत्र बताते हैं कि कभी येदियुरप्पा की खास मानी जाने वाली शोभा करंदलाजे अब बदली हुई परिस्थितियों में संतोष की भी करीबी हैं। येदियुरप्पा के अधीन मंत्री के रूप में उनके काम की सराहना की गई। वह वोक्कालिगा समुदाय से आती हैं। शोभा करंदलाजे उग्र हिंदुत्ववादी टिप्पणियों के लिए जानी जाती हैं।

दूसरी ओर विजयेंद्र पहले ही राज्य की राजनीति में अपनी पहचान बना चुके हैं। उन्हें लिंगायत समुदाय के नेता के तौर पर पेश किया जाता है। विजयेंद्र की संगठनात्मक क्षमताओं की सराहना की जाती है। उन्होंने दक्षिण कर्नाटक के जिलों में भाजपा उम्मीदवारों की जीत सुनिश्चित की थी, जहां भगवा पार्टी पहले कभी नहीं जीती थी।

–आईएएनएस

एकेजे

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बेंगलुरु, 25 अक्टूबर (आईएएनएस)। कर्नाटक भाजपा में अंदरूनी कलह की खबरों के बीच केंद्रीय कृषि एवं किसान कल्याण राज्य मंत्री शोभा करंदलाजे और पूर्व मुख्यमंत्री बी.एस. येदियुरप्पा के बेटे तथा विधायक बी.वाई. विजयेंद्र पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष पद की दौड़ में सबसे आगे माने जा रहे हैं।

सूत्रों के मुताबिक, आलाकमान ने पूर्व उप मुख्‍यमंत्री डॉ. सी.एन. अश्वथ नारायण, विधायक बसनगौड़ा पाटिल, पूर्व राष्ट्रीय महासचिव सी.टी. रवि तथा पूर्व मंत्री और कट्टर हिंदुत्ववादी नेता वी. सुनील कुमार के नामों पर भी विचार किया है।

फिलहाल सांसद नलिन कुमार कतील प्रदेश अध्यक्ष हैं। उनका कार्यकाल खत्म हो चुका है।

नए प्रमुख की चर्चा कर्नाटक में पांच महीने पहले हुए विधानसभा चुनाव के बाद से ही चल रही है, जिसमें पार्टी को करारी हार का सामना करना पड़ा था। विपक्षी कांग्रेस राज्य अध्यक्ष और राज्य विधानमंडल में विपक्ष के नेता के पदों के लिए उम्मीदवारों की नियुक्ति करने में विफल रहने के लिए भगवा पार्टी पर निशाना साध रही है।

राज्य में दिसंबर में शीतकालीन सत्र होगा और पार्टी नेताओं को उम्मीद है कि आलाकमान इस पर फैसला लेगा और उन्हें कांग्रेस नेताओं की आलोचना से बचाएगा। हालांकि, पार्टी के शीर्ष नेतृत्व का ध्यान अभी भी देश के पांच राज्यों में नवंबर में होने वाले चुनावों पर है।

सूत्रों ने बताया कि विधानसभा चुनाव में रणनीति पूरी तरह विफल होने के कारण आलाकमान फूंक-फूंक कर कदम रख रहा है। पूर्व मुख्‍यमंत्री येदियुरप्पा और राष्ट्रीय महासचिव बी.एल. संतोष के बीच के बीच अंदरूनी कलह के कारण भी पार्टी इस संबंध में निर्णय नहीं ले पा रही है। चूंकि दोनों नेता एक-दूसरे के हितों को कुचलना चाहते हैं, इसलिए आलाकमान के लिए यह मुश्किल हो गया है क्योंकि वह राज्य में अपनी पकड़ खोना नहीं चाहता था।

सूत्रों ने कहा कि शीर्ष नेतृत्व ने येदियुरप्पा को नजरअंदाज कर दिया और संतोष को प्रमुखता दी। विधानसभा चुनाव लड़ने के लिए कुल 72 नए चेहरों को टिकट दिया गया और वरिष्ठ नेता जगदीश शेट्टार, लक्ष्मण सावदी, के.एस. ईश्वरप्पा और कई अन्य लोगों को टिकट देने से इनकार कर दिया गया। पीएम मोदी और केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने राज्य की अधिकतम यात्राएं कीं और राज्य भर में बड़े पैमाने पर रैलियां और रोड शो किए।

प्रचंड जीत दर्ज करने के बाद कांग्रेस के मुख्यमंत्री सिद्दारमैया ने उपहास करते हुए कहा कि पीएम मोदी और अमित शाह जहां भी गए वहां कांग्रेस के उम्मीदवार भारी अंतर से जीते। यहां तक कि आसपास के इलाकों में भी भाजपा के उम्मीदवार हार गए। हार को पचा नहीं पाने के कारण भाजपा आलाकमान ने राज्य नेतृत्व को किनारे कर दिया था।

सूत्रों ने कहा कि आलाकमान फिर से अपने हाथ नहीं जलाना चाहता और संतोष या येदियुरप्पा के प्रस्तावों पर बिल्‍कुल विचार नहीं कर रहा है।

सूत्र बताते हैं कि कभी येदियुरप्पा की खास मानी जाने वाली शोभा करंदलाजे अब बदली हुई परिस्थितियों में संतोष की भी करीबी हैं। येदियुरप्पा के अधीन मंत्री के रूप में उनके काम की सराहना की गई। वह वोक्कालिगा समुदाय से आती हैं। शोभा करंदलाजे उग्र हिंदुत्ववादी टिप्पणियों के लिए जानी जाती हैं।

दूसरी ओर विजयेंद्र पहले ही राज्य की राजनीति में अपनी पहचान बना चुके हैं। उन्हें लिंगायत समुदाय के नेता के तौर पर पेश किया जाता है। विजयेंद्र की संगठनात्मक क्षमताओं की सराहना की जाती है। उन्होंने दक्षिण कर्नाटक के जिलों में भाजपा उम्मीदवारों की जीत सुनिश्चित की थी, जहां भगवा पार्टी पहले कभी नहीं जीती थी।

–आईएएनएस

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बेंगलुरु, 25 अक्टूबर (आईएएनएस)। कर्नाटक भाजपा में अंदरूनी कलह की खबरों के बीच केंद्रीय कृषि एवं किसान कल्याण राज्य मंत्री शोभा करंदलाजे और पूर्व मुख्यमंत्री बी.एस. येदियुरप्पा के बेटे तथा विधायक बी.वाई. विजयेंद्र पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष पद की दौड़ में सबसे आगे माने जा रहे हैं।

सूत्रों के मुताबिक, आलाकमान ने पूर्व उप मुख्‍यमंत्री डॉ. सी.एन. अश्वथ नारायण, विधायक बसनगौड़ा पाटिल, पूर्व राष्ट्रीय महासचिव सी.टी. रवि तथा पूर्व मंत्री और कट्टर हिंदुत्ववादी नेता वी. सुनील कुमार के नामों पर भी विचार किया है।

फिलहाल सांसद नलिन कुमार कतील प्रदेश अध्यक्ष हैं। उनका कार्यकाल खत्म हो चुका है।

नए प्रमुख की चर्चा कर्नाटक में पांच महीने पहले हुए विधानसभा चुनाव के बाद से ही चल रही है, जिसमें पार्टी को करारी हार का सामना करना पड़ा था। विपक्षी कांग्रेस राज्य अध्यक्ष और राज्य विधानमंडल में विपक्ष के नेता के पदों के लिए उम्मीदवारों की नियुक्ति करने में विफल रहने के लिए भगवा पार्टी पर निशाना साध रही है।

राज्य में दिसंबर में शीतकालीन सत्र होगा और पार्टी नेताओं को उम्मीद है कि आलाकमान इस पर फैसला लेगा और उन्हें कांग्रेस नेताओं की आलोचना से बचाएगा। हालांकि, पार्टी के शीर्ष नेतृत्व का ध्यान अभी भी देश के पांच राज्यों में नवंबर में होने वाले चुनावों पर है।

सूत्रों ने बताया कि विधानसभा चुनाव में रणनीति पूरी तरह विफल होने के कारण आलाकमान फूंक-फूंक कर कदम रख रहा है। पूर्व मुख्‍यमंत्री येदियुरप्पा और राष्ट्रीय महासचिव बी.एल. संतोष के बीच के बीच अंदरूनी कलह के कारण भी पार्टी इस संबंध में निर्णय नहीं ले पा रही है। चूंकि दोनों नेता एक-दूसरे के हितों को कुचलना चाहते हैं, इसलिए आलाकमान के लिए यह मुश्किल हो गया है क्योंकि वह राज्य में अपनी पकड़ खोना नहीं चाहता था।

सूत्रों ने कहा कि शीर्ष नेतृत्व ने येदियुरप्पा को नजरअंदाज कर दिया और संतोष को प्रमुखता दी। विधानसभा चुनाव लड़ने के लिए कुल 72 नए चेहरों को टिकट दिया गया और वरिष्ठ नेता जगदीश शेट्टार, लक्ष्मण सावदी, के.एस. ईश्वरप्पा और कई अन्य लोगों को टिकट देने से इनकार कर दिया गया। पीएम मोदी और केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने राज्य की अधिकतम यात्राएं कीं और राज्य भर में बड़े पैमाने पर रैलियां और रोड शो किए।

प्रचंड जीत दर्ज करने के बाद कांग्रेस के मुख्यमंत्री सिद्दारमैया ने उपहास करते हुए कहा कि पीएम मोदी और अमित शाह जहां भी गए वहां कांग्रेस के उम्मीदवार भारी अंतर से जीते। यहां तक कि आसपास के इलाकों में भी भाजपा के उम्मीदवार हार गए। हार को पचा नहीं पाने के कारण भाजपा आलाकमान ने राज्य नेतृत्व को किनारे कर दिया था।

सूत्रों ने कहा कि आलाकमान फिर से अपने हाथ नहीं जलाना चाहता और संतोष या येदियुरप्पा के प्रस्तावों पर बिल्‍कुल विचार नहीं कर रहा है।

सूत्र बताते हैं कि कभी येदियुरप्पा की खास मानी जाने वाली शोभा करंदलाजे अब बदली हुई परिस्थितियों में संतोष की भी करीबी हैं। येदियुरप्पा के अधीन मंत्री के रूप में उनके काम की सराहना की गई। वह वोक्कालिगा समुदाय से आती हैं। शोभा करंदलाजे उग्र हिंदुत्ववादी टिप्पणियों के लिए जानी जाती हैं।

दूसरी ओर विजयेंद्र पहले ही राज्य की राजनीति में अपनी पहचान बना चुके हैं। उन्हें लिंगायत समुदाय के नेता के तौर पर पेश किया जाता है। विजयेंद्र की संगठनात्मक क्षमताओं की सराहना की जाती है। उन्होंने दक्षिण कर्नाटक के जिलों में भाजपा उम्मीदवारों की जीत सुनिश्चित की थी, जहां भगवा पार्टी पहले कभी नहीं जीती थी।

–आईएएनएस

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