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Home राष्ट्रीय

संसद के नए भवन में पवित्र सेंगोल स्थापित करेंगे पीएम मोदी, जानिए इसका इतिहास

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May 24, 2023
in राष्ट्रीय
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संसद के नए भवन में पवित्र सेंगोल स्थापित करेंगे पीएम मोदी, जानिए इसका इतिहास
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नई दिल्ली, 24 मई (आईएएनएस)। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी संसद के नवनिर्मित भवन का उद्घघाटन 28 मई को करने जा रहे हैं। इस महत्वपूर्ण दिन पर पीएम मोदी संसद के नए भवन में पवित्र सेंगोल को भी स्थापित करने जा रहे हैं। यह सेंगोल भारत के आजादी के वर्ष यानी 1947 में तमिलनाडु से लाया गया था जिसे 14 अगस्त 1947 को रात के 10:45 बजे के लगभग अंग्रेजों ने सत्ता हस्तांतरण के प्रतीक के तौर पर देश के तत्कालीन और आजाद भारत के पहले प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू को सौंपा था।

केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने प्रधानमंत्री मोदी द्वारा संसद के नए भवन में सेंगोल स्थापित करने की जानकारी देते हुए बताया कि आजादी का अमृत महोत्सव के अवसर पर देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 28 मई को संसद के नवनिर्मित भवन राष्ट्र को समर्पित करेंगे। उन्होंने कहा कि यह नया संसद भवन प्रधानमंत्री मोदी की दूरदर्शिता का प्रमाण है। यह नए भारत के निर्माण में हमारी सांस्कृतिक विरासत, परंपरा और सभ्यता को आधुनिकता से जोड़ने का एक सुंदर प्रयास है।

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सेंगोल की पुरानी ऐतिहासिक परंपरा का जिक्र करते हुए शाह ने आगे बताया कि संसद के नए भवन के उद्घाटन के ऐतिहासिक अवसर पर युगों से जुड़ी हुई एक ऐतिहासिक परंपरा को भी पुनर्जीवित और पुनस्र्थापित किया जाएगा।

शाह ने देश को मिली आजादी और अंग्रेजों से भारत को सत्ता हस्तांतरण के समय निभाई गई परंपरा का जिक्र करते हुए बताया कि 14 अगस्त 1947 को एक अनोखी घटना हुई थी। उस समय सत्ता हस्तांतरण के प्रतीक के तौर पर जवाहर लाल नेहरू को तमिलनाडु से लाया गया सेंगोल सौंपा गया था। उन्होंने इस परंपरा के चोल साम्राज्य से जुड़े होने की जिक्र करते हुए कहा कि जब 1947 की इस परंपरा के बारे में प्रधानमंत्री मोदी को जानकारी मिली तो उन्होंने इसकी खोजबीन करने का आदेश दिया कि अब यह सेंगोल कहां है।

आजादी के 75 साल बाद आज देश के अधिकांश नागरिकों को इसकी जानकारी नहीं है जबकि सेंगोल ने भारत के इतिहास में एक अहम भूमिका निभाई थी। यह सेंगोल 1947 में सत्ता के हस्तांतरण का प्रतीक बना था। काफी खोजबीन करने पर यह मालूम हुआ कि यह सेंगोल इलाहाबाद के संग्रहालय में रखा हुआ है।

शाह ने आगे बताया कि यह तय किया गया कि इस पवित्र सेंगोल को किसी संग्रहालय में रखना अनुचित है। इसलिए 1947 के इस सेंगोल के मिलने के बाद यह फैसला किया गया कि जिस दिन नए संसद भवन को देश को समर्पित किया जाएगा उसी दिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी तमिलनाडु के अधीनम से आए हुए इस सेंगोल को विनम्रता के साथ स्वीकार करेंगे और संसद के नए भवन में लोक सभा अध्यक्ष के आसन के पास इसे स्थापित करेंगे।

देश को आजादी मिलने के समय की पूरी प्रक्रिया के बारे में जानकारी देते हुए शाह ने बताया कि 1947 में जब लॉर्ड माउंटबेटन ने जवाहर लाल नेहरू से पूछा कि सत्ता का हस्तांतरण कैसे किया जाए तो उस समय नेहरू ने इसके बारे में सी राजगोपालाचारी से सुझाव मांगा। उन्होंने जवाहर लाल नेहरू को चोल साम्राज्य की सेंगोल प्रक्रिया के बारे में बताया। इसके बाद तमिलनाडु से इस पवित्र सेंगोल को मंगाया गया और 14 अगस्त 1947 को रात के 10:45 बजे के लगभग अंग्रेजों ने सत्ता हस्तांतरण के प्रतीक के तौर पर इसी पवित्र सेंगोल को जवाहर लाल नेहरू को सौंपा था।

शाह ने 28 मई के कार्यक्रम के बारे में जानकारी देते हुए यह भी बताया कि 1947 में जो तमिल विद्वान नेहरू को सेंगोल सौंपते समय मौजूद थे, आज उनकी उम्र 96 साल हो गई है और 96 वर्षीय यही तमिल विद्वान 28 मई को भी संसद के नए भवन में सेंगोल की स्थापना के समय मौजूद रहेंगे। इस मौके पर शाह ने केंद्रीय मंत्री अनुराग ठाकुर और जी किशन रेड्डी की मौजूदगी में सेंगोल की परंपरा और इसके इतिहास से जुड़ी जानकारी को लोगों तक पहुंचाने के लिए एक वेबसाइट को भी लांच किया।

भारत की आजादी के उपलक्ष्य में हुए पूरे कार्यक्रम को याद करते हुए अमित शाह ने कहा, आज आजादी के 75 साल बाद भी, अधिकांश भारत को इस घटना के बारे में जानकारी नहीं है। 14 अगस्त, 1947 की रात को वह एक विशेष अवसर था, जब जवाहर लाल नेहरू ने तमिलनाडु के थिरुवदुथुराई आधीनम (मठ) से विशेष रूप से पधारे आधीनमों (पुरोहितों) से सेंगोल ग्रहण किया था। पंडित नेहरू के साथ सेंगोल का निहित होना ठीक वही क्षण था, जब अंग्रेजों द्वारा भारतीयों के हाथों में सत्ता का हस्तांतरण किया गया था। हम जिसे स्वतंत्रता के रूप में मना रहे हैं, वह वास्तव में यही क्षण है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अमृत काल के राष्ट्रीय प्रतीक के रूप में सेंगोल को अपनाने का निर्णय लिया है। संसद का नया भवन उसी घटना का साक्षी बनेगा, जिसमें आधीनम उस समारोह की पुनरावृत्ति करेंगे और प्रधानमंत्री मोदी को सेंगोल प्रदान करेंगे।

केंद्रीय गृह मंत्री ने सेंगोल के बारे में विस्तार से बताते हुए आगे कहा कि, सेंगोल का गहरा अर्थ होता है। सेंगोल शब्द तमिल शब्द सेम्मई से लिया गया है, जिसका अर्थ है नीतिपरायणता। इसे तमिलनाडु के एक प्रमुख धार्मिक मठ के मुख्य आधीनम (पुरोहितों) का आशीर्वाद प्राप्त है। न्याय के प्रेक्षक के रूप में, अपनी अटल ²ष्टि के साथ देखते हुए, हाथ से उत्कीर्ण नंदी इसके शीर्ष पर विराजमान हैं।

सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि सेंगोल को ग्रहण करने वाले व्यक्ति को न्यायपूर्ण और निष्पक्ष रूप से शासन करने का आदेश (तमिल में आणई) होता है और यह बात सबसे अधिक ध्यान खींचने वाली है- लोगों की सेवा करने के लिए चुने गए लोगों को इसे कभी नहीं भूलना चाहिए। 1947 के उसी सेंगोल को प्रधानमंत्री मोदी द्वारा लोक सभा में अध्यक्ष के आसन के पास प्रमुखता से स्थापित किया जाएगा। इसे राष्ट्र के देखने के लिए प्रदर्शित किया जाएगा और विशेष अवसरों पर बाहर ले जाया जाएगा।

उन्होंने कहा कि सेंगोल की स्थापना 15 अगस्त, 1947 की भावना को अविस्मरणीय बनाती है। यह असीम आशा, अनंत संभावनाओं और एक सशक्त और समृद्ध राष्ट्र के निर्माण का संकल्प है। यह अमृतकाल का प्रतिबिंब होगा, जो नए भारत को विश्व में अपने यथोचित स्थान को ग्रहण करने के गौरवशाली क्षण का साक्षी बनेगा।

विपक्षी दलों द्वारा संसद के नए भवन के उद्घाटन कार्यक्रम के बहिष्कार के बारे में पूछे गए सवालों का जवाब देते हुए शाह ने यह भी कहा कि राजनीति अपनी जगह है, राजनीति चलती रहती है लेकिन सेंगोल को राजनीति के साथ मत जोड़िए। यह पुरानी परंपराओं से नए भारत को जोड़ने की एक बड़ी भावनात्मक प्रक्रिया है इसको इतने ही सीमित अर्थ में देखना चाहिए। भारत सरकार ने सबको उपस्थित रहने की विनती की है, हमने सबको बुलाया है, सब अपनी-अपनी भावना के अनुसार करेंगे (फैसला)।

उन्होंने विपक्षी दलों पर तीखा निशाना साधते हुए आगे यह भी कहा कि सब अपनी सोचने की क्षमता के अनुसार रिएक्शन भी देते हैं और काम भी करते हैं।

–आईएएनएस

एसटीपी/एसकेपी

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नई दिल्ली, 24 मई (आईएएनएस)। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी संसद के नवनिर्मित भवन का उद्घघाटन 28 मई को करने जा रहे हैं। इस महत्वपूर्ण दिन पर पीएम मोदी संसद के नए भवन में पवित्र सेंगोल को भी स्थापित करने जा रहे हैं। यह सेंगोल भारत के आजादी के वर्ष यानी 1947 में तमिलनाडु से लाया गया था जिसे 14 अगस्त 1947 को रात के 10:45 बजे के लगभग अंग्रेजों ने सत्ता हस्तांतरण के प्रतीक के तौर पर देश के तत्कालीन और आजाद भारत के पहले प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू को सौंपा था।

केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने प्रधानमंत्री मोदी द्वारा संसद के नए भवन में सेंगोल स्थापित करने की जानकारी देते हुए बताया कि आजादी का अमृत महोत्सव के अवसर पर देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 28 मई को संसद के नवनिर्मित भवन राष्ट्र को समर्पित करेंगे। उन्होंने कहा कि यह नया संसद भवन प्रधानमंत्री मोदी की दूरदर्शिता का प्रमाण है। यह नए भारत के निर्माण में हमारी सांस्कृतिक विरासत, परंपरा और सभ्यता को आधुनिकता से जोड़ने का एक सुंदर प्रयास है।

सेंगोल की पुरानी ऐतिहासिक परंपरा का जिक्र करते हुए शाह ने आगे बताया कि संसद के नए भवन के उद्घाटन के ऐतिहासिक अवसर पर युगों से जुड़ी हुई एक ऐतिहासिक परंपरा को भी पुनर्जीवित और पुनस्र्थापित किया जाएगा।

शाह ने देश को मिली आजादी और अंग्रेजों से भारत को सत्ता हस्तांतरण के समय निभाई गई परंपरा का जिक्र करते हुए बताया कि 14 अगस्त 1947 को एक अनोखी घटना हुई थी। उस समय सत्ता हस्तांतरण के प्रतीक के तौर पर जवाहर लाल नेहरू को तमिलनाडु से लाया गया सेंगोल सौंपा गया था। उन्होंने इस परंपरा के चोल साम्राज्य से जुड़े होने की जिक्र करते हुए कहा कि जब 1947 की इस परंपरा के बारे में प्रधानमंत्री मोदी को जानकारी मिली तो उन्होंने इसकी खोजबीन करने का आदेश दिया कि अब यह सेंगोल कहां है।

आजादी के 75 साल बाद आज देश के अधिकांश नागरिकों को इसकी जानकारी नहीं है जबकि सेंगोल ने भारत के इतिहास में एक अहम भूमिका निभाई थी। यह सेंगोल 1947 में सत्ता के हस्तांतरण का प्रतीक बना था। काफी खोजबीन करने पर यह मालूम हुआ कि यह सेंगोल इलाहाबाद के संग्रहालय में रखा हुआ है।

शाह ने आगे बताया कि यह तय किया गया कि इस पवित्र सेंगोल को किसी संग्रहालय में रखना अनुचित है। इसलिए 1947 के इस सेंगोल के मिलने के बाद यह फैसला किया गया कि जिस दिन नए संसद भवन को देश को समर्पित किया जाएगा उसी दिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी तमिलनाडु के अधीनम से आए हुए इस सेंगोल को विनम्रता के साथ स्वीकार करेंगे और संसद के नए भवन में लोक सभा अध्यक्ष के आसन के पास इसे स्थापित करेंगे।

देश को आजादी मिलने के समय की पूरी प्रक्रिया के बारे में जानकारी देते हुए शाह ने बताया कि 1947 में जब लॉर्ड माउंटबेटन ने जवाहर लाल नेहरू से पूछा कि सत्ता का हस्तांतरण कैसे किया जाए तो उस समय नेहरू ने इसके बारे में सी राजगोपालाचारी से सुझाव मांगा। उन्होंने जवाहर लाल नेहरू को चोल साम्राज्य की सेंगोल प्रक्रिया के बारे में बताया। इसके बाद तमिलनाडु से इस पवित्र सेंगोल को मंगाया गया और 14 अगस्त 1947 को रात के 10:45 बजे के लगभग अंग्रेजों ने सत्ता हस्तांतरण के प्रतीक के तौर पर इसी पवित्र सेंगोल को जवाहर लाल नेहरू को सौंपा था।

शाह ने 28 मई के कार्यक्रम के बारे में जानकारी देते हुए यह भी बताया कि 1947 में जो तमिल विद्वान नेहरू को सेंगोल सौंपते समय मौजूद थे, आज उनकी उम्र 96 साल हो गई है और 96 वर्षीय यही तमिल विद्वान 28 मई को भी संसद के नए भवन में सेंगोल की स्थापना के समय मौजूद रहेंगे। इस मौके पर शाह ने केंद्रीय मंत्री अनुराग ठाकुर और जी किशन रेड्डी की मौजूदगी में सेंगोल की परंपरा और इसके इतिहास से जुड़ी जानकारी को लोगों तक पहुंचाने के लिए एक वेबसाइट को भी लांच किया।

भारत की आजादी के उपलक्ष्य में हुए पूरे कार्यक्रम को याद करते हुए अमित शाह ने कहा, आज आजादी के 75 साल बाद भी, अधिकांश भारत को इस घटना के बारे में जानकारी नहीं है। 14 अगस्त, 1947 की रात को वह एक विशेष अवसर था, जब जवाहर लाल नेहरू ने तमिलनाडु के थिरुवदुथुराई आधीनम (मठ) से विशेष रूप से पधारे आधीनमों (पुरोहितों) से सेंगोल ग्रहण किया था। पंडित नेहरू के साथ सेंगोल का निहित होना ठीक वही क्षण था, जब अंग्रेजों द्वारा भारतीयों के हाथों में सत्ता का हस्तांतरण किया गया था। हम जिसे स्वतंत्रता के रूप में मना रहे हैं, वह वास्तव में यही क्षण है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अमृत काल के राष्ट्रीय प्रतीक के रूप में सेंगोल को अपनाने का निर्णय लिया है। संसद का नया भवन उसी घटना का साक्षी बनेगा, जिसमें आधीनम उस समारोह की पुनरावृत्ति करेंगे और प्रधानमंत्री मोदी को सेंगोल प्रदान करेंगे।

केंद्रीय गृह मंत्री ने सेंगोल के बारे में विस्तार से बताते हुए आगे कहा कि, सेंगोल का गहरा अर्थ होता है। सेंगोल शब्द तमिल शब्द सेम्मई से लिया गया है, जिसका अर्थ है नीतिपरायणता। इसे तमिलनाडु के एक प्रमुख धार्मिक मठ के मुख्य आधीनम (पुरोहितों) का आशीर्वाद प्राप्त है। न्याय के प्रेक्षक के रूप में, अपनी अटल ²ष्टि के साथ देखते हुए, हाथ से उत्कीर्ण नंदी इसके शीर्ष पर विराजमान हैं।

सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि सेंगोल को ग्रहण करने वाले व्यक्ति को न्यायपूर्ण और निष्पक्ष रूप से शासन करने का आदेश (तमिल में आणई) होता है और यह बात सबसे अधिक ध्यान खींचने वाली है- लोगों की सेवा करने के लिए चुने गए लोगों को इसे कभी नहीं भूलना चाहिए। 1947 के उसी सेंगोल को प्रधानमंत्री मोदी द्वारा लोक सभा में अध्यक्ष के आसन के पास प्रमुखता से स्थापित किया जाएगा। इसे राष्ट्र के देखने के लिए प्रदर्शित किया जाएगा और विशेष अवसरों पर बाहर ले जाया जाएगा।

उन्होंने कहा कि सेंगोल की स्थापना 15 अगस्त, 1947 की भावना को अविस्मरणीय बनाती है। यह असीम आशा, अनंत संभावनाओं और एक सशक्त और समृद्ध राष्ट्र के निर्माण का संकल्प है। यह अमृतकाल का प्रतिबिंब होगा, जो नए भारत को विश्व में अपने यथोचित स्थान को ग्रहण करने के गौरवशाली क्षण का साक्षी बनेगा।

विपक्षी दलों द्वारा संसद के नए भवन के उद्घाटन कार्यक्रम के बहिष्कार के बारे में पूछे गए सवालों का जवाब देते हुए शाह ने यह भी कहा कि राजनीति अपनी जगह है, राजनीति चलती रहती है लेकिन सेंगोल को राजनीति के साथ मत जोड़िए। यह पुरानी परंपराओं से नए भारत को जोड़ने की एक बड़ी भावनात्मक प्रक्रिया है इसको इतने ही सीमित अर्थ में देखना चाहिए। भारत सरकार ने सबको उपस्थित रहने की विनती की है, हमने सबको बुलाया है, सब अपनी-अपनी भावना के अनुसार करेंगे (फैसला)।

उन्होंने विपक्षी दलों पर तीखा निशाना साधते हुए आगे यह भी कहा कि सब अपनी सोचने की क्षमता के अनुसार रिएक्शन भी देते हैं और काम भी करते हैं।

–आईएएनएस

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नई दिल्ली, 24 मई (आईएएनएस)। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी संसद के नवनिर्मित भवन का उद्घघाटन 28 मई को करने जा रहे हैं। इस महत्वपूर्ण दिन पर पीएम मोदी संसद के नए भवन में पवित्र सेंगोल को भी स्थापित करने जा रहे हैं। यह सेंगोल भारत के आजादी के वर्ष यानी 1947 में तमिलनाडु से लाया गया था जिसे 14 अगस्त 1947 को रात के 10:45 बजे के लगभग अंग्रेजों ने सत्ता हस्तांतरण के प्रतीक के तौर पर देश के तत्कालीन और आजाद भारत के पहले प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू को सौंपा था।

केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने प्रधानमंत्री मोदी द्वारा संसद के नए भवन में सेंगोल स्थापित करने की जानकारी देते हुए बताया कि आजादी का अमृत महोत्सव के अवसर पर देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 28 मई को संसद के नवनिर्मित भवन राष्ट्र को समर्पित करेंगे। उन्होंने कहा कि यह नया संसद भवन प्रधानमंत्री मोदी की दूरदर्शिता का प्रमाण है। यह नए भारत के निर्माण में हमारी सांस्कृतिक विरासत, परंपरा और सभ्यता को आधुनिकता से जोड़ने का एक सुंदर प्रयास है।

सेंगोल की पुरानी ऐतिहासिक परंपरा का जिक्र करते हुए शाह ने आगे बताया कि संसद के नए भवन के उद्घाटन के ऐतिहासिक अवसर पर युगों से जुड़ी हुई एक ऐतिहासिक परंपरा को भी पुनर्जीवित और पुनस्र्थापित किया जाएगा।

शाह ने देश को मिली आजादी और अंग्रेजों से भारत को सत्ता हस्तांतरण के समय निभाई गई परंपरा का जिक्र करते हुए बताया कि 14 अगस्त 1947 को एक अनोखी घटना हुई थी। उस समय सत्ता हस्तांतरण के प्रतीक के तौर पर जवाहर लाल नेहरू को तमिलनाडु से लाया गया सेंगोल सौंपा गया था। उन्होंने इस परंपरा के चोल साम्राज्य से जुड़े होने की जिक्र करते हुए कहा कि जब 1947 की इस परंपरा के बारे में प्रधानमंत्री मोदी को जानकारी मिली तो उन्होंने इसकी खोजबीन करने का आदेश दिया कि अब यह सेंगोल कहां है।

आजादी के 75 साल बाद आज देश के अधिकांश नागरिकों को इसकी जानकारी नहीं है जबकि सेंगोल ने भारत के इतिहास में एक अहम भूमिका निभाई थी। यह सेंगोल 1947 में सत्ता के हस्तांतरण का प्रतीक बना था। काफी खोजबीन करने पर यह मालूम हुआ कि यह सेंगोल इलाहाबाद के संग्रहालय में रखा हुआ है।

शाह ने आगे बताया कि यह तय किया गया कि इस पवित्र सेंगोल को किसी संग्रहालय में रखना अनुचित है। इसलिए 1947 के इस सेंगोल के मिलने के बाद यह फैसला किया गया कि जिस दिन नए संसद भवन को देश को समर्पित किया जाएगा उसी दिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी तमिलनाडु के अधीनम से आए हुए इस सेंगोल को विनम्रता के साथ स्वीकार करेंगे और संसद के नए भवन में लोक सभा अध्यक्ष के आसन के पास इसे स्थापित करेंगे।

देश को आजादी मिलने के समय की पूरी प्रक्रिया के बारे में जानकारी देते हुए शाह ने बताया कि 1947 में जब लॉर्ड माउंटबेटन ने जवाहर लाल नेहरू से पूछा कि सत्ता का हस्तांतरण कैसे किया जाए तो उस समय नेहरू ने इसके बारे में सी राजगोपालाचारी से सुझाव मांगा। उन्होंने जवाहर लाल नेहरू को चोल साम्राज्य की सेंगोल प्रक्रिया के बारे में बताया। इसके बाद तमिलनाडु से इस पवित्र सेंगोल को मंगाया गया और 14 अगस्त 1947 को रात के 10:45 बजे के लगभग अंग्रेजों ने सत्ता हस्तांतरण के प्रतीक के तौर पर इसी पवित्र सेंगोल को जवाहर लाल नेहरू को सौंपा था।

शाह ने 28 मई के कार्यक्रम के बारे में जानकारी देते हुए यह भी बताया कि 1947 में जो तमिल विद्वान नेहरू को सेंगोल सौंपते समय मौजूद थे, आज उनकी उम्र 96 साल हो गई है और 96 वर्षीय यही तमिल विद्वान 28 मई को भी संसद के नए भवन में सेंगोल की स्थापना के समय मौजूद रहेंगे। इस मौके पर शाह ने केंद्रीय मंत्री अनुराग ठाकुर और जी किशन रेड्डी की मौजूदगी में सेंगोल की परंपरा और इसके इतिहास से जुड़ी जानकारी को लोगों तक पहुंचाने के लिए एक वेबसाइट को भी लांच किया।

भारत की आजादी के उपलक्ष्य में हुए पूरे कार्यक्रम को याद करते हुए अमित शाह ने कहा, आज आजादी के 75 साल बाद भी, अधिकांश भारत को इस घटना के बारे में जानकारी नहीं है। 14 अगस्त, 1947 की रात को वह एक विशेष अवसर था, जब जवाहर लाल नेहरू ने तमिलनाडु के थिरुवदुथुराई आधीनम (मठ) से विशेष रूप से पधारे आधीनमों (पुरोहितों) से सेंगोल ग्रहण किया था। पंडित नेहरू के साथ सेंगोल का निहित होना ठीक वही क्षण था, जब अंग्रेजों द्वारा भारतीयों के हाथों में सत्ता का हस्तांतरण किया गया था। हम जिसे स्वतंत्रता के रूप में मना रहे हैं, वह वास्तव में यही क्षण है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अमृत काल के राष्ट्रीय प्रतीक के रूप में सेंगोल को अपनाने का निर्णय लिया है। संसद का नया भवन उसी घटना का साक्षी बनेगा, जिसमें आधीनम उस समारोह की पुनरावृत्ति करेंगे और प्रधानमंत्री मोदी को सेंगोल प्रदान करेंगे।

केंद्रीय गृह मंत्री ने सेंगोल के बारे में विस्तार से बताते हुए आगे कहा कि, सेंगोल का गहरा अर्थ होता है। सेंगोल शब्द तमिल शब्द सेम्मई से लिया गया है, जिसका अर्थ है नीतिपरायणता। इसे तमिलनाडु के एक प्रमुख धार्मिक मठ के मुख्य आधीनम (पुरोहितों) का आशीर्वाद प्राप्त है। न्याय के प्रेक्षक के रूप में, अपनी अटल ²ष्टि के साथ देखते हुए, हाथ से उत्कीर्ण नंदी इसके शीर्ष पर विराजमान हैं।

सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि सेंगोल को ग्रहण करने वाले व्यक्ति को न्यायपूर्ण और निष्पक्ष रूप से शासन करने का आदेश (तमिल में आणई) होता है और यह बात सबसे अधिक ध्यान खींचने वाली है- लोगों की सेवा करने के लिए चुने गए लोगों को इसे कभी नहीं भूलना चाहिए। 1947 के उसी सेंगोल को प्रधानमंत्री मोदी द्वारा लोक सभा में अध्यक्ष के आसन के पास प्रमुखता से स्थापित किया जाएगा। इसे राष्ट्र के देखने के लिए प्रदर्शित किया जाएगा और विशेष अवसरों पर बाहर ले जाया जाएगा।

उन्होंने कहा कि सेंगोल की स्थापना 15 अगस्त, 1947 की भावना को अविस्मरणीय बनाती है। यह असीम आशा, अनंत संभावनाओं और एक सशक्त और समृद्ध राष्ट्र के निर्माण का संकल्प है। यह अमृतकाल का प्रतिबिंब होगा, जो नए भारत को विश्व में अपने यथोचित स्थान को ग्रहण करने के गौरवशाली क्षण का साक्षी बनेगा।

विपक्षी दलों द्वारा संसद के नए भवन के उद्घाटन कार्यक्रम के बहिष्कार के बारे में पूछे गए सवालों का जवाब देते हुए शाह ने यह भी कहा कि राजनीति अपनी जगह है, राजनीति चलती रहती है लेकिन सेंगोल को राजनीति के साथ मत जोड़िए। यह पुरानी परंपराओं से नए भारत को जोड़ने की एक बड़ी भावनात्मक प्रक्रिया है इसको इतने ही सीमित अर्थ में देखना चाहिए। भारत सरकार ने सबको उपस्थित रहने की विनती की है, हमने सबको बुलाया है, सब अपनी-अपनी भावना के अनुसार करेंगे (फैसला)।

उन्होंने विपक्षी दलों पर तीखा निशाना साधते हुए आगे यह भी कहा कि सब अपनी सोचने की क्षमता के अनुसार रिएक्शन भी देते हैं और काम भी करते हैं।

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नई दिल्ली, 24 मई (आईएएनएस)। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी संसद के नवनिर्मित भवन का उद्घघाटन 28 मई को करने जा रहे हैं। इस महत्वपूर्ण दिन पर पीएम मोदी संसद के नए भवन में पवित्र सेंगोल को भी स्थापित करने जा रहे हैं। यह सेंगोल भारत के आजादी के वर्ष यानी 1947 में तमिलनाडु से लाया गया था जिसे 14 अगस्त 1947 को रात के 10:45 बजे के लगभग अंग्रेजों ने सत्ता हस्तांतरण के प्रतीक के तौर पर देश के तत्कालीन और आजाद भारत के पहले प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू को सौंपा था।

केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने प्रधानमंत्री मोदी द्वारा संसद के नए भवन में सेंगोल स्थापित करने की जानकारी देते हुए बताया कि आजादी का अमृत महोत्सव के अवसर पर देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 28 मई को संसद के नवनिर्मित भवन राष्ट्र को समर्पित करेंगे। उन्होंने कहा कि यह नया संसद भवन प्रधानमंत्री मोदी की दूरदर्शिता का प्रमाण है। यह नए भारत के निर्माण में हमारी सांस्कृतिक विरासत, परंपरा और सभ्यता को आधुनिकता से जोड़ने का एक सुंदर प्रयास है।

सेंगोल की पुरानी ऐतिहासिक परंपरा का जिक्र करते हुए शाह ने आगे बताया कि संसद के नए भवन के उद्घाटन के ऐतिहासिक अवसर पर युगों से जुड़ी हुई एक ऐतिहासिक परंपरा को भी पुनर्जीवित और पुनस्र्थापित किया जाएगा।

शाह ने देश को मिली आजादी और अंग्रेजों से भारत को सत्ता हस्तांतरण के समय निभाई गई परंपरा का जिक्र करते हुए बताया कि 14 अगस्त 1947 को एक अनोखी घटना हुई थी। उस समय सत्ता हस्तांतरण के प्रतीक के तौर पर जवाहर लाल नेहरू को तमिलनाडु से लाया गया सेंगोल सौंपा गया था। उन्होंने इस परंपरा के चोल साम्राज्य से जुड़े होने की जिक्र करते हुए कहा कि जब 1947 की इस परंपरा के बारे में प्रधानमंत्री मोदी को जानकारी मिली तो उन्होंने इसकी खोजबीन करने का आदेश दिया कि अब यह सेंगोल कहां है।

आजादी के 75 साल बाद आज देश के अधिकांश नागरिकों को इसकी जानकारी नहीं है जबकि सेंगोल ने भारत के इतिहास में एक अहम भूमिका निभाई थी। यह सेंगोल 1947 में सत्ता के हस्तांतरण का प्रतीक बना था। काफी खोजबीन करने पर यह मालूम हुआ कि यह सेंगोल इलाहाबाद के संग्रहालय में रखा हुआ है।

शाह ने आगे बताया कि यह तय किया गया कि इस पवित्र सेंगोल को किसी संग्रहालय में रखना अनुचित है। इसलिए 1947 के इस सेंगोल के मिलने के बाद यह फैसला किया गया कि जिस दिन नए संसद भवन को देश को समर्पित किया जाएगा उसी दिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी तमिलनाडु के अधीनम से आए हुए इस सेंगोल को विनम्रता के साथ स्वीकार करेंगे और संसद के नए भवन में लोक सभा अध्यक्ष के आसन के पास इसे स्थापित करेंगे।

देश को आजादी मिलने के समय की पूरी प्रक्रिया के बारे में जानकारी देते हुए शाह ने बताया कि 1947 में जब लॉर्ड माउंटबेटन ने जवाहर लाल नेहरू से पूछा कि सत्ता का हस्तांतरण कैसे किया जाए तो उस समय नेहरू ने इसके बारे में सी राजगोपालाचारी से सुझाव मांगा। उन्होंने जवाहर लाल नेहरू को चोल साम्राज्य की सेंगोल प्रक्रिया के बारे में बताया। इसके बाद तमिलनाडु से इस पवित्र सेंगोल को मंगाया गया और 14 अगस्त 1947 को रात के 10:45 बजे के लगभग अंग्रेजों ने सत्ता हस्तांतरण के प्रतीक के तौर पर इसी पवित्र सेंगोल को जवाहर लाल नेहरू को सौंपा था।

शाह ने 28 मई के कार्यक्रम के बारे में जानकारी देते हुए यह भी बताया कि 1947 में जो तमिल विद्वान नेहरू को सेंगोल सौंपते समय मौजूद थे, आज उनकी उम्र 96 साल हो गई है और 96 वर्षीय यही तमिल विद्वान 28 मई को भी संसद के नए भवन में सेंगोल की स्थापना के समय मौजूद रहेंगे। इस मौके पर शाह ने केंद्रीय मंत्री अनुराग ठाकुर और जी किशन रेड्डी की मौजूदगी में सेंगोल की परंपरा और इसके इतिहास से जुड़ी जानकारी को लोगों तक पहुंचाने के लिए एक वेबसाइट को भी लांच किया।

भारत की आजादी के उपलक्ष्य में हुए पूरे कार्यक्रम को याद करते हुए अमित शाह ने कहा, आज आजादी के 75 साल बाद भी, अधिकांश भारत को इस घटना के बारे में जानकारी नहीं है। 14 अगस्त, 1947 की रात को वह एक विशेष अवसर था, जब जवाहर लाल नेहरू ने तमिलनाडु के थिरुवदुथुराई आधीनम (मठ) से विशेष रूप से पधारे आधीनमों (पुरोहितों) से सेंगोल ग्रहण किया था। पंडित नेहरू के साथ सेंगोल का निहित होना ठीक वही क्षण था, जब अंग्रेजों द्वारा भारतीयों के हाथों में सत्ता का हस्तांतरण किया गया था। हम जिसे स्वतंत्रता के रूप में मना रहे हैं, वह वास्तव में यही क्षण है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अमृत काल के राष्ट्रीय प्रतीक के रूप में सेंगोल को अपनाने का निर्णय लिया है। संसद का नया भवन उसी घटना का साक्षी बनेगा, जिसमें आधीनम उस समारोह की पुनरावृत्ति करेंगे और प्रधानमंत्री मोदी को सेंगोल प्रदान करेंगे।

केंद्रीय गृह मंत्री ने सेंगोल के बारे में विस्तार से बताते हुए आगे कहा कि, सेंगोल का गहरा अर्थ होता है। सेंगोल शब्द तमिल शब्द सेम्मई से लिया गया है, जिसका अर्थ है नीतिपरायणता। इसे तमिलनाडु के एक प्रमुख धार्मिक मठ के मुख्य आधीनम (पुरोहितों) का आशीर्वाद प्राप्त है। न्याय के प्रेक्षक के रूप में, अपनी अटल ²ष्टि के साथ देखते हुए, हाथ से उत्कीर्ण नंदी इसके शीर्ष पर विराजमान हैं।

सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि सेंगोल को ग्रहण करने वाले व्यक्ति को न्यायपूर्ण और निष्पक्ष रूप से शासन करने का आदेश (तमिल में आणई) होता है और यह बात सबसे अधिक ध्यान खींचने वाली है- लोगों की सेवा करने के लिए चुने गए लोगों को इसे कभी नहीं भूलना चाहिए। 1947 के उसी सेंगोल को प्रधानमंत्री मोदी द्वारा लोक सभा में अध्यक्ष के आसन के पास प्रमुखता से स्थापित किया जाएगा। इसे राष्ट्र के देखने के लिए प्रदर्शित किया जाएगा और विशेष अवसरों पर बाहर ले जाया जाएगा।

उन्होंने कहा कि सेंगोल की स्थापना 15 अगस्त, 1947 की भावना को अविस्मरणीय बनाती है। यह असीम आशा, अनंत संभावनाओं और एक सशक्त और समृद्ध राष्ट्र के निर्माण का संकल्प है। यह अमृतकाल का प्रतिबिंब होगा, जो नए भारत को विश्व में अपने यथोचित स्थान को ग्रहण करने के गौरवशाली क्षण का साक्षी बनेगा।

विपक्षी दलों द्वारा संसद के नए भवन के उद्घाटन कार्यक्रम के बहिष्कार के बारे में पूछे गए सवालों का जवाब देते हुए शाह ने यह भी कहा कि राजनीति अपनी जगह है, राजनीति चलती रहती है लेकिन सेंगोल को राजनीति के साथ मत जोड़िए। यह पुरानी परंपराओं से नए भारत को जोड़ने की एक बड़ी भावनात्मक प्रक्रिया है इसको इतने ही सीमित अर्थ में देखना चाहिए। भारत सरकार ने सबको उपस्थित रहने की विनती की है, हमने सबको बुलाया है, सब अपनी-अपनी भावना के अनुसार करेंगे (फैसला)।

उन्होंने विपक्षी दलों पर तीखा निशाना साधते हुए आगे यह भी कहा कि सब अपनी सोचने की क्षमता के अनुसार रिएक्शन भी देते हैं और काम भी करते हैं।

–आईएएनएस

एसटीपी/एसकेपी

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नई दिल्ली, 24 मई (आईएएनएस)। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी संसद के नवनिर्मित भवन का उद्घघाटन 28 मई को करने जा रहे हैं। इस महत्वपूर्ण दिन पर पीएम मोदी संसद के नए भवन में पवित्र सेंगोल को भी स्थापित करने जा रहे हैं। यह सेंगोल भारत के आजादी के वर्ष यानी 1947 में तमिलनाडु से लाया गया था जिसे 14 अगस्त 1947 को रात के 10:45 बजे के लगभग अंग्रेजों ने सत्ता हस्तांतरण के प्रतीक के तौर पर देश के तत्कालीन और आजाद भारत के पहले प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू को सौंपा था।

केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने प्रधानमंत्री मोदी द्वारा संसद के नए भवन में सेंगोल स्थापित करने की जानकारी देते हुए बताया कि आजादी का अमृत महोत्सव के अवसर पर देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 28 मई को संसद के नवनिर्मित भवन राष्ट्र को समर्पित करेंगे। उन्होंने कहा कि यह नया संसद भवन प्रधानमंत्री मोदी की दूरदर्शिता का प्रमाण है। यह नए भारत के निर्माण में हमारी सांस्कृतिक विरासत, परंपरा और सभ्यता को आधुनिकता से जोड़ने का एक सुंदर प्रयास है।

सेंगोल की पुरानी ऐतिहासिक परंपरा का जिक्र करते हुए शाह ने आगे बताया कि संसद के नए भवन के उद्घाटन के ऐतिहासिक अवसर पर युगों से जुड़ी हुई एक ऐतिहासिक परंपरा को भी पुनर्जीवित और पुनस्र्थापित किया जाएगा।

शाह ने देश को मिली आजादी और अंग्रेजों से भारत को सत्ता हस्तांतरण के समय निभाई गई परंपरा का जिक्र करते हुए बताया कि 14 अगस्त 1947 को एक अनोखी घटना हुई थी। उस समय सत्ता हस्तांतरण के प्रतीक के तौर पर जवाहर लाल नेहरू को तमिलनाडु से लाया गया सेंगोल सौंपा गया था। उन्होंने इस परंपरा के चोल साम्राज्य से जुड़े होने की जिक्र करते हुए कहा कि जब 1947 की इस परंपरा के बारे में प्रधानमंत्री मोदी को जानकारी मिली तो उन्होंने इसकी खोजबीन करने का आदेश दिया कि अब यह सेंगोल कहां है।

आजादी के 75 साल बाद आज देश के अधिकांश नागरिकों को इसकी जानकारी नहीं है जबकि सेंगोल ने भारत के इतिहास में एक अहम भूमिका निभाई थी। यह सेंगोल 1947 में सत्ता के हस्तांतरण का प्रतीक बना था। काफी खोजबीन करने पर यह मालूम हुआ कि यह सेंगोल इलाहाबाद के संग्रहालय में रखा हुआ है।

शाह ने आगे बताया कि यह तय किया गया कि इस पवित्र सेंगोल को किसी संग्रहालय में रखना अनुचित है। इसलिए 1947 के इस सेंगोल के मिलने के बाद यह फैसला किया गया कि जिस दिन नए संसद भवन को देश को समर्पित किया जाएगा उसी दिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी तमिलनाडु के अधीनम से आए हुए इस सेंगोल को विनम्रता के साथ स्वीकार करेंगे और संसद के नए भवन में लोक सभा अध्यक्ष के आसन के पास इसे स्थापित करेंगे।

देश को आजादी मिलने के समय की पूरी प्रक्रिया के बारे में जानकारी देते हुए शाह ने बताया कि 1947 में जब लॉर्ड माउंटबेटन ने जवाहर लाल नेहरू से पूछा कि सत्ता का हस्तांतरण कैसे किया जाए तो उस समय नेहरू ने इसके बारे में सी राजगोपालाचारी से सुझाव मांगा। उन्होंने जवाहर लाल नेहरू को चोल साम्राज्य की सेंगोल प्रक्रिया के बारे में बताया। इसके बाद तमिलनाडु से इस पवित्र सेंगोल को मंगाया गया और 14 अगस्त 1947 को रात के 10:45 बजे के लगभग अंग्रेजों ने सत्ता हस्तांतरण के प्रतीक के तौर पर इसी पवित्र सेंगोल को जवाहर लाल नेहरू को सौंपा था।

शाह ने 28 मई के कार्यक्रम के बारे में जानकारी देते हुए यह भी बताया कि 1947 में जो तमिल विद्वान नेहरू को सेंगोल सौंपते समय मौजूद थे, आज उनकी उम्र 96 साल हो गई है और 96 वर्षीय यही तमिल विद्वान 28 मई को भी संसद के नए भवन में सेंगोल की स्थापना के समय मौजूद रहेंगे। इस मौके पर शाह ने केंद्रीय मंत्री अनुराग ठाकुर और जी किशन रेड्डी की मौजूदगी में सेंगोल की परंपरा और इसके इतिहास से जुड़ी जानकारी को लोगों तक पहुंचाने के लिए एक वेबसाइट को भी लांच किया।

भारत की आजादी के उपलक्ष्य में हुए पूरे कार्यक्रम को याद करते हुए अमित शाह ने कहा, आज आजादी के 75 साल बाद भी, अधिकांश भारत को इस घटना के बारे में जानकारी नहीं है। 14 अगस्त, 1947 की रात को वह एक विशेष अवसर था, जब जवाहर लाल नेहरू ने तमिलनाडु के थिरुवदुथुराई आधीनम (मठ) से विशेष रूप से पधारे आधीनमों (पुरोहितों) से सेंगोल ग्रहण किया था। पंडित नेहरू के साथ सेंगोल का निहित होना ठीक वही क्षण था, जब अंग्रेजों द्वारा भारतीयों के हाथों में सत्ता का हस्तांतरण किया गया था। हम जिसे स्वतंत्रता के रूप में मना रहे हैं, वह वास्तव में यही क्षण है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अमृत काल के राष्ट्रीय प्रतीक के रूप में सेंगोल को अपनाने का निर्णय लिया है। संसद का नया भवन उसी घटना का साक्षी बनेगा, जिसमें आधीनम उस समारोह की पुनरावृत्ति करेंगे और प्रधानमंत्री मोदी को सेंगोल प्रदान करेंगे।

केंद्रीय गृह मंत्री ने सेंगोल के बारे में विस्तार से बताते हुए आगे कहा कि, सेंगोल का गहरा अर्थ होता है। सेंगोल शब्द तमिल शब्द सेम्मई से लिया गया है, जिसका अर्थ है नीतिपरायणता। इसे तमिलनाडु के एक प्रमुख धार्मिक मठ के मुख्य आधीनम (पुरोहितों) का आशीर्वाद प्राप्त है। न्याय के प्रेक्षक के रूप में, अपनी अटल ²ष्टि के साथ देखते हुए, हाथ से उत्कीर्ण नंदी इसके शीर्ष पर विराजमान हैं।

सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि सेंगोल को ग्रहण करने वाले व्यक्ति को न्यायपूर्ण और निष्पक्ष रूप से शासन करने का आदेश (तमिल में आणई) होता है और यह बात सबसे अधिक ध्यान खींचने वाली है- लोगों की सेवा करने के लिए चुने गए लोगों को इसे कभी नहीं भूलना चाहिए। 1947 के उसी सेंगोल को प्रधानमंत्री मोदी द्वारा लोक सभा में अध्यक्ष के आसन के पास प्रमुखता से स्थापित किया जाएगा। इसे राष्ट्र के देखने के लिए प्रदर्शित किया जाएगा और विशेष अवसरों पर बाहर ले जाया जाएगा।

उन्होंने कहा कि सेंगोल की स्थापना 15 अगस्त, 1947 की भावना को अविस्मरणीय बनाती है। यह असीम आशा, अनंत संभावनाओं और एक सशक्त और समृद्ध राष्ट्र के निर्माण का संकल्प है। यह अमृतकाल का प्रतिबिंब होगा, जो नए भारत को विश्व में अपने यथोचित स्थान को ग्रहण करने के गौरवशाली क्षण का साक्षी बनेगा।

विपक्षी दलों द्वारा संसद के नए भवन के उद्घाटन कार्यक्रम के बहिष्कार के बारे में पूछे गए सवालों का जवाब देते हुए शाह ने यह भी कहा कि राजनीति अपनी जगह है, राजनीति चलती रहती है लेकिन सेंगोल को राजनीति के साथ मत जोड़िए। यह पुरानी परंपराओं से नए भारत को जोड़ने की एक बड़ी भावनात्मक प्रक्रिया है इसको इतने ही सीमित अर्थ में देखना चाहिए। भारत सरकार ने सबको उपस्थित रहने की विनती की है, हमने सबको बुलाया है, सब अपनी-अपनी भावना के अनुसार करेंगे (फैसला)।

उन्होंने विपक्षी दलों पर तीखा निशाना साधते हुए आगे यह भी कहा कि सब अपनी सोचने की क्षमता के अनुसार रिएक्शन भी देते हैं और काम भी करते हैं।

–आईएएनएस

एसटीपी/एसकेपी

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नई दिल्ली, 24 मई (आईएएनएस)। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी संसद के नवनिर्मित भवन का उद्घघाटन 28 मई को करने जा रहे हैं। इस महत्वपूर्ण दिन पर पीएम मोदी संसद के नए भवन में पवित्र सेंगोल को भी स्थापित करने जा रहे हैं। यह सेंगोल भारत के आजादी के वर्ष यानी 1947 में तमिलनाडु से लाया गया था जिसे 14 अगस्त 1947 को रात के 10:45 बजे के लगभग अंग्रेजों ने सत्ता हस्तांतरण के प्रतीक के तौर पर देश के तत्कालीन और आजाद भारत के पहले प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू को सौंपा था।

केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने प्रधानमंत्री मोदी द्वारा संसद के नए भवन में सेंगोल स्थापित करने की जानकारी देते हुए बताया कि आजादी का अमृत महोत्सव के अवसर पर देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 28 मई को संसद के नवनिर्मित भवन राष्ट्र को समर्पित करेंगे। उन्होंने कहा कि यह नया संसद भवन प्रधानमंत्री मोदी की दूरदर्शिता का प्रमाण है। यह नए भारत के निर्माण में हमारी सांस्कृतिक विरासत, परंपरा और सभ्यता को आधुनिकता से जोड़ने का एक सुंदर प्रयास है।

सेंगोल की पुरानी ऐतिहासिक परंपरा का जिक्र करते हुए शाह ने आगे बताया कि संसद के नए भवन के उद्घाटन के ऐतिहासिक अवसर पर युगों से जुड़ी हुई एक ऐतिहासिक परंपरा को भी पुनर्जीवित और पुनस्र्थापित किया जाएगा।

शाह ने देश को मिली आजादी और अंग्रेजों से भारत को सत्ता हस्तांतरण के समय निभाई गई परंपरा का जिक्र करते हुए बताया कि 14 अगस्त 1947 को एक अनोखी घटना हुई थी। उस समय सत्ता हस्तांतरण के प्रतीक के तौर पर जवाहर लाल नेहरू को तमिलनाडु से लाया गया सेंगोल सौंपा गया था। उन्होंने इस परंपरा के चोल साम्राज्य से जुड़े होने की जिक्र करते हुए कहा कि जब 1947 की इस परंपरा के बारे में प्रधानमंत्री मोदी को जानकारी मिली तो उन्होंने इसकी खोजबीन करने का आदेश दिया कि अब यह सेंगोल कहां है।

आजादी के 75 साल बाद आज देश के अधिकांश नागरिकों को इसकी जानकारी नहीं है जबकि सेंगोल ने भारत के इतिहास में एक अहम भूमिका निभाई थी। यह सेंगोल 1947 में सत्ता के हस्तांतरण का प्रतीक बना था। काफी खोजबीन करने पर यह मालूम हुआ कि यह सेंगोल इलाहाबाद के संग्रहालय में रखा हुआ है।

शाह ने आगे बताया कि यह तय किया गया कि इस पवित्र सेंगोल को किसी संग्रहालय में रखना अनुचित है। इसलिए 1947 के इस सेंगोल के मिलने के बाद यह फैसला किया गया कि जिस दिन नए संसद भवन को देश को समर्पित किया जाएगा उसी दिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी तमिलनाडु के अधीनम से आए हुए इस सेंगोल को विनम्रता के साथ स्वीकार करेंगे और संसद के नए भवन में लोक सभा अध्यक्ष के आसन के पास इसे स्थापित करेंगे।

देश को आजादी मिलने के समय की पूरी प्रक्रिया के बारे में जानकारी देते हुए शाह ने बताया कि 1947 में जब लॉर्ड माउंटबेटन ने जवाहर लाल नेहरू से पूछा कि सत्ता का हस्तांतरण कैसे किया जाए तो उस समय नेहरू ने इसके बारे में सी राजगोपालाचारी से सुझाव मांगा। उन्होंने जवाहर लाल नेहरू को चोल साम्राज्य की सेंगोल प्रक्रिया के बारे में बताया। इसके बाद तमिलनाडु से इस पवित्र सेंगोल को मंगाया गया और 14 अगस्त 1947 को रात के 10:45 बजे के लगभग अंग्रेजों ने सत्ता हस्तांतरण के प्रतीक के तौर पर इसी पवित्र सेंगोल को जवाहर लाल नेहरू को सौंपा था।

शाह ने 28 मई के कार्यक्रम के बारे में जानकारी देते हुए यह भी बताया कि 1947 में जो तमिल विद्वान नेहरू को सेंगोल सौंपते समय मौजूद थे, आज उनकी उम्र 96 साल हो गई है और 96 वर्षीय यही तमिल विद्वान 28 मई को भी संसद के नए भवन में सेंगोल की स्थापना के समय मौजूद रहेंगे। इस मौके पर शाह ने केंद्रीय मंत्री अनुराग ठाकुर और जी किशन रेड्डी की मौजूदगी में सेंगोल की परंपरा और इसके इतिहास से जुड़ी जानकारी को लोगों तक पहुंचाने के लिए एक वेबसाइट को भी लांच किया।

भारत की आजादी के उपलक्ष्य में हुए पूरे कार्यक्रम को याद करते हुए अमित शाह ने कहा, आज आजादी के 75 साल बाद भी, अधिकांश भारत को इस घटना के बारे में जानकारी नहीं है। 14 अगस्त, 1947 की रात को वह एक विशेष अवसर था, जब जवाहर लाल नेहरू ने तमिलनाडु के थिरुवदुथुराई आधीनम (मठ) से विशेष रूप से पधारे आधीनमों (पुरोहितों) से सेंगोल ग्रहण किया था। पंडित नेहरू के साथ सेंगोल का निहित होना ठीक वही क्षण था, जब अंग्रेजों द्वारा भारतीयों के हाथों में सत्ता का हस्तांतरण किया गया था। हम जिसे स्वतंत्रता के रूप में मना रहे हैं, वह वास्तव में यही क्षण है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अमृत काल के राष्ट्रीय प्रतीक के रूप में सेंगोल को अपनाने का निर्णय लिया है। संसद का नया भवन उसी घटना का साक्षी बनेगा, जिसमें आधीनम उस समारोह की पुनरावृत्ति करेंगे और प्रधानमंत्री मोदी को सेंगोल प्रदान करेंगे।

केंद्रीय गृह मंत्री ने सेंगोल के बारे में विस्तार से बताते हुए आगे कहा कि, सेंगोल का गहरा अर्थ होता है। सेंगोल शब्द तमिल शब्द सेम्मई से लिया गया है, जिसका अर्थ है नीतिपरायणता। इसे तमिलनाडु के एक प्रमुख धार्मिक मठ के मुख्य आधीनम (पुरोहितों) का आशीर्वाद प्राप्त है। न्याय के प्रेक्षक के रूप में, अपनी अटल ²ष्टि के साथ देखते हुए, हाथ से उत्कीर्ण नंदी इसके शीर्ष पर विराजमान हैं।

सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि सेंगोल को ग्रहण करने वाले व्यक्ति को न्यायपूर्ण और निष्पक्ष रूप से शासन करने का आदेश (तमिल में आणई) होता है और यह बात सबसे अधिक ध्यान खींचने वाली है- लोगों की सेवा करने के लिए चुने गए लोगों को इसे कभी नहीं भूलना चाहिए। 1947 के उसी सेंगोल को प्रधानमंत्री मोदी द्वारा लोक सभा में अध्यक्ष के आसन के पास प्रमुखता से स्थापित किया जाएगा। इसे राष्ट्र के देखने के लिए प्रदर्शित किया जाएगा और विशेष अवसरों पर बाहर ले जाया जाएगा।

उन्होंने कहा कि सेंगोल की स्थापना 15 अगस्त, 1947 की भावना को अविस्मरणीय बनाती है। यह असीम आशा, अनंत संभावनाओं और एक सशक्त और समृद्ध राष्ट्र के निर्माण का संकल्प है। यह अमृतकाल का प्रतिबिंब होगा, जो नए भारत को विश्व में अपने यथोचित स्थान को ग्रहण करने के गौरवशाली क्षण का साक्षी बनेगा।

विपक्षी दलों द्वारा संसद के नए भवन के उद्घाटन कार्यक्रम के बहिष्कार के बारे में पूछे गए सवालों का जवाब देते हुए शाह ने यह भी कहा कि राजनीति अपनी जगह है, राजनीति चलती रहती है लेकिन सेंगोल को राजनीति के साथ मत जोड़िए। यह पुरानी परंपराओं से नए भारत को जोड़ने की एक बड़ी भावनात्मक प्रक्रिया है इसको इतने ही सीमित अर्थ में देखना चाहिए। भारत सरकार ने सबको उपस्थित रहने की विनती की है, हमने सबको बुलाया है, सब अपनी-अपनी भावना के अनुसार करेंगे (फैसला)।

उन्होंने विपक्षी दलों पर तीखा निशाना साधते हुए आगे यह भी कहा कि सब अपनी सोचने की क्षमता के अनुसार रिएक्शन भी देते हैं और काम भी करते हैं।

–आईएएनएस

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नई दिल्ली, 24 मई (आईएएनएस)। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी संसद के नवनिर्मित भवन का उद्घघाटन 28 मई को करने जा रहे हैं। इस महत्वपूर्ण दिन पर पीएम मोदी संसद के नए भवन में पवित्र सेंगोल को भी स्थापित करने जा रहे हैं। यह सेंगोल भारत के आजादी के वर्ष यानी 1947 में तमिलनाडु से लाया गया था जिसे 14 अगस्त 1947 को रात के 10:45 बजे के लगभग अंग्रेजों ने सत्ता हस्तांतरण के प्रतीक के तौर पर देश के तत्कालीन और आजाद भारत के पहले प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू को सौंपा था।

केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने प्रधानमंत्री मोदी द्वारा संसद के नए भवन में सेंगोल स्थापित करने की जानकारी देते हुए बताया कि आजादी का अमृत महोत्सव के अवसर पर देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 28 मई को संसद के नवनिर्मित भवन राष्ट्र को समर्पित करेंगे। उन्होंने कहा कि यह नया संसद भवन प्रधानमंत्री मोदी की दूरदर्शिता का प्रमाण है। यह नए भारत के निर्माण में हमारी सांस्कृतिक विरासत, परंपरा और सभ्यता को आधुनिकता से जोड़ने का एक सुंदर प्रयास है।

सेंगोल की पुरानी ऐतिहासिक परंपरा का जिक्र करते हुए शाह ने आगे बताया कि संसद के नए भवन के उद्घाटन के ऐतिहासिक अवसर पर युगों से जुड़ी हुई एक ऐतिहासिक परंपरा को भी पुनर्जीवित और पुनस्र्थापित किया जाएगा।

शाह ने देश को मिली आजादी और अंग्रेजों से भारत को सत्ता हस्तांतरण के समय निभाई गई परंपरा का जिक्र करते हुए बताया कि 14 अगस्त 1947 को एक अनोखी घटना हुई थी। उस समय सत्ता हस्तांतरण के प्रतीक के तौर पर जवाहर लाल नेहरू को तमिलनाडु से लाया गया सेंगोल सौंपा गया था। उन्होंने इस परंपरा के चोल साम्राज्य से जुड़े होने की जिक्र करते हुए कहा कि जब 1947 की इस परंपरा के बारे में प्रधानमंत्री मोदी को जानकारी मिली तो उन्होंने इसकी खोजबीन करने का आदेश दिया कि अब यह सेंगोल कहां है।

आजादी के 75 साल बाद आज देश के अधिकांश नागरिकों को इसकी जानकारी नहीं है जबकि सेंगोल ने भारत के इतिहास में एक अहम भूमिका निभाई थी। यह सेंगोल 1947 में सत्ता के हस्तांतरण का प्रतीक बना था। काफी खोजबीन करने पर यह मालूम हुआ कि यह सेंगोल इलाहाबाद के संग्रहालय में रखा हुआ है।

शाह ने आगे बताया कि यह तय किया गया कि इस पवित्र सेंगोल को किसी संग्रहालय में रखना अनुचित है। इसलिए 1947 के इस सेंगोल के मिलने के बाद यह फैसला किया गया कि जिस दिन नए संसद भवन को देश को समर्पित किया जाएगा उसी दिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी तमिलनाडु के अधीनम से आए हुए इस सेंगोल को विनम्रता के साथ स्वीकार करेंगे और संसद के नए भवन में लोक सभा अध्यक्ष के आसन के पास इसे स्थापित करेंगे।

देश को आजादी मिलने के समय की पूरी प्रक्रिया के बारे में जानकारी देते हुए शाह ने बताया कि 1947 में जब लॉर्ड माउंटबेटन ने जवाहर लाल नेहरू से पूछा कि सत्ता का हस्तांतरण कैसे किया जाए तो उस समय नेहरू ने इसके बारे में सी राजगोपालाचारी से सुझाव मांगा। उन्होंने जवाहर लाल नेहरू को चोल साम्राज्य की सेंगोल प्रक्रिया के बारे में बताया। इसके बाद तमिलनाडु से इस पवित्र सेंगोल को मंगाया गया और 14 अगस्त 1947 को रात के 10:45 बजे के लगभग अंग्रेजों ने सत्ता हस्तांतरण के प्रतीक के तौर पर इसी पवित्र सेंगोल को जवाहर लाल नेहरू को सौंपा था।

शाह ने 28 मई के कार्यक्रम के बारे में जानकारी देते हुए यह भी बताया कि 1947 में जो तमिल विद्वान नेहरू को सेंगोल सौंपते समय मौजूद थे, आज उनकी उम्र 96 साल हो गई है और 96 वर्षीय यही तमिल विद्वान 28 मई को भी संसद के नए भवन में सेंगोल की स्थापना के समय मौजूद रहेंगे। इस मौके पर शाह ने केंद्रीय मंत्री अनुराग ठाकुर और जी किशन रेड्डी की मौजूदगी में सेंगोल की परंपरा और इसके इतिहास से जुड़ी जानकारी को लोगों तक पहुंचाने के लिए एक वेबसाइट को भी लांच किया।

भारत की आजादी के उपलक्ष्य में हुए पूरे कार्यक्रम को याद करते हुए अमित शाह ने कहा, आज आजादी के 75 साल बाद भी, अधिकांश भारत को इस घटना के बारे में जानकारी नहीं है। 14 अगस्त, 1947 की रात को वह एक विशेष अवसर था, जब जवाहर लाल नेहरू ने तमिलनाडु के थिरुवदुथुराई आधीनम (मठ) से विशेष रूप से पधारे आधीनमों (पुरोहितों) से सेंगोल ग्रहण किया था। पंडित नेहरू के साथ सेंगोल का निहित होना ठीक वही क्षण था, जब अंग्रेजों द्वारा भारतीयों के हाथों में सत्ता का हस्तांतरण किया गया था। हम जिसे स्वतंत्रता के रूप में मना रहे हैं, वह वास्तव में यही क्षण है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अमृत काल के राष्ट्रीय प्रतीक के रूप में सेंगोल को अपनाने का निर्णय लिया है। संसद का नया भवन उसी घटना का साक्षी बनेगा, जिसमें आधीनम उस समारोह की पुनरावृत्ति करेंगे और प्रधानमंत्री मोदी को सेंगोल प्रदान करेंगे।

केंद्रीय गृह मंत्री ने सेंगोल के बारे में विस्तार से बताते हुए आगे कहा कि, सेंगोल का गहरा अर्थ होता है। सेंगोल शब्द तमिल शब्द सेम्मई से लिया गया है, जिसका अर्थ है नीतिपरायणता। इसे तमिलनाडु के एक प्रमुख धार्मिक मठ के मुख्य आधीनम (पुरोहितों) का आशीर्वाद प्राप्त है। न्याय के प्रेक्षक के रूप में, अपनी अटल ²ष्टि के साथ देखते हुए, हाथ से उत्कीर्ण नंदी इसके शीर्ष पर विराजमान हैं।

सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि सेंगोल को ग्रहण करने वाले व्यक्ति को न्यायपूर्ण और निष्पक्ष रूप से शासन करने का आदेश (तमिल में आणई) होता है और यह बात सबसे अधिक ध्यान खींचने वाली है- लोगों की सेवा करने के लिए चुने गए लोगों को इसे कभी नहीं भूलना चाहिए। 1947 के उसी सेंगोल को प्रधानमंत्री मोदी द्वारा लोक सभा में अध्यक्ष के आसन के पास प्रमुखता से स्थापित किया जाएगा। इसे राष्ट्र के देखने के लिए प्रदर्शित किया जाएगा और विशेष अवसरों पर बाहर ले जाया जाएगा।

उन्होंने कहा कि सेंगोल की स्थापना 15 अगस्त, 1947 की भावना को अविस्मरणीय बनाती है। यह असीम आशा, अनंत संभावनाओं और एक सशक्त और समृद्ध राष्ट्र के निर्माण का संकल्प है। यह अमृतकाल का प्रतिबिंब होगा, जो नए भारत को विश्व में अपने यथोचित स्थान को ग्रहण करने के गौरवशाली क्षण का साक्षी बनेगा।

विपक्षी दलों द्वारा संसद के नए भवन के उद्घाटन कार्यक्रम के बहिष्कार के बारे में पूछे गए सवालों का जवाब देते हुए शाह ने यह भी कहा कि राजनीति अपनी जगह है, राजनीति चलती रहती है लेकिन सेंगोल को राजनीति के साथ मत जोड़िए। यह पुरानी परंपराओं से नए भारत को जोड़ने की एक बड़ी भावनात्मक प्रक्रिया है इसको इतने ही सीमित अर्थ में देखना चाहिए। भारत सरकार ने सबको उपस्थित रहने की विनती की है, हमने सबको बुलाया है, सब अपनी-अपनी भावना के अनुसार करेंगे (फैसला)।

उन्होंने विपक्षी दलों पर तीखा निशाना साधते हुए आगे यह भी कहा कि सब अपनी सोचने की क्षमता के अनुसार रिएक्शन भी देते हैं और काम भी करते हैं।

–आईएएनएस

एसटीपी/एसकेपी

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नई दिल्ली, 24 मई (आईएएनएस)। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी संसद के नवनिर्मित भवन का उद्घघाटन 28 मई को करने जा रहे हैं। इस महत्वपूर्ण दिन पर पीएम मोदी संसद के नए भवन में पवित्र सेंगोल को भी स्थापित करने जा रहे हैं। यह सेंगोल भारत के आजादी के वर्ष यानी 1947 में तमिलनाडु से लाया गया था जिसे 14 अगस्त 1947 को रात के 10:45 बजे के लगभग अंग्रेजों ने सत्ता हस्तांतरण के प्रतीक के तौर पर देश के तत्कालीन और आजाद भारत के पहले प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू को सौंपा था।

केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने प्रधानमंत्री मोदी द्वारा संसद के नए भवन में सेंगोल स्थापित करने की जानकारी देते हुए बताया कि आजादी का अमृत महोत्सव के अवसर पर देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 28 मई को संसद के नवनिर्मित भवन राष्ट्र को समर्पित करेंगे। उन्होंने कहा कि यह नया संसद भवन प्रधानमंत्री मोदी की दूरदर्शिता का प्रमाण है। यह नए भारत के निर्माण में हमारी सांस्कृतिक विरासत, परंपरा और सभ्यता को आधुनिकता से जोड़ने का एक सुंदर प्रयास है।

सेंगोल की पुरानी ऐतिहासिक परंपरा का जिक्र करते हुए शाह ने आगे बताया कि संसद के नए भवन के उद्घाटन के ऐतिहासिक अवसर पर युगों से जुड़ी हुई एक ऐतिहासिक परंपरा को भी पुनर्जीवित और पुनस्र्थापित किया जाएगा।

शाह ने देश को मिली आजादी और अंग्रेजों से भारत को सत्ता हस्तांतरण के समय निभाई गई परंपरा का जिक्र करते हुए बताया कि 14 अगस्त 1947 को एक अनोखी घटना हुई थी। उस समय सत्ता हस्तांतरण के प्रतीक के तौर पर जवाहर लाल नेहरू को तमिलनाडु से लाया गया सेंगोल सौंपा गया था। उन्होंने इस परंपरा के चोल साम्राज्य से जुड़े होने की जिक्र करते हुए कहा कि जब 1947 की इस परंपरा के बारे में प्रधानमंत्री मोदी को जानकारी मिली तो उन्होंने इसकी खोजबीन करने का आदेश दिया कि अब यह सेंगोल कहां है।

आजादी के 75 साल बाद आज देश के अधिकांश नागरिकों को इसकी जानकारी नहीं है जबकि सेंगोल ने भारत के इतिहास में एक अहम भूमिका निभाई थी। यह सेंगोल 1947 में सत्ता के हस्तांतरण का प्रतीक बना था। काफी खोजबीन करने पर यह मालूम हुआ कि यह सेंगोल इलाहाबाद के संग्रहालय में रखा हुआ है।

शाह ने आगे बताया कि यह तय किया गया कि इस पवित्र सेंगोल को किसी संग्रहालय में रखना अनुचित है। इसलिए 1947 के इस सेंगोल के मिलने के बाद यह फैसला किया गया कि जिस दिन नए संसद भवन को देश को समर्पित किया जाएगा उसी दिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी तमिलनाडु के अधीनम से आए हुए इस सेंगोल को विनम्रता के साथ स्वीकार करेंगे और संसद के नए भवन में लोक सभा अध्यक्ष के आसन के पास इसे स्थापित करेंगे।

देश को आजादी मिलने के समय की पूरी प्रक्रिया के बारे में जानकारी देते हुए शाह ने बताया कि 1947 में जब लॉर्ड माउंटबेटन ने जवाहर लाल नेहरू से पूछा कि सत्ता का हस्तांतरण कैसे किया जाए तो उस समय नेहरू ने इसके बारे में सी राजगोपालाचारी से सुझाव मांगा। उन्होंने जवाहर लाल नेहरू को चोल साम्राज्य की सेंगोल प्रक्रिया के बारे में बताया। इसके बाद तमिलनाडु से इस पवित्र सेंगोल को मंगाया गया और 14 अगस्त 1947 को रात के 10:45 बजे के लगभग अंग्रेजों ने सत्ता हस्तांतरण के प्रतीक के तौर पर इसी पवित्र सेंगोल को जवाहर लाल नेहरू को सौंपा था।

शाह ने 28 मई के कार्यक्रम के बारे में जानकारी देते हुए यह भी बताया कि 1947 में जो तमिल विद्वान नेहरू को सेंगोल सौंपते समय मौजूद थे, आज उनकी उम्र 96 साल हो गई है और 96 वर्षीय यही तमिल विद्वान 28 मई को भी संसद के नए भवन में सेंगोल की स्थापना के समय मौजूद रहेंगे। इस मौके पर शाह ने केंद्रीय मंत्री अनुराग ठाकुर और जी किशन रेड्डी की मौजूदगी में सेंगोल की परंपरा और इसके इतिहास से जुड़ी जानकारी को लोगों तक पहुंचाने के लिए एक वेबसाइट को भी लांच किया।

भारत की आजादी के उपलक्ष्य में हुए पूरे कार्यक्रम को याद करते हुए अमित शाह ने कहा, आज आजादी के 75 साल बाद भी, अधिकांश भारत को इस घटना के बारे में जानकारी नहीं है। 14 अगस्त, 1947 की रात को वह एक विशेष अवसर था, जब जवाहर लाल नेहरू ने तमिलनाडु के थिरुवदुथुराई आधीनम (मठ) से विशेष रूप से पधारे आधीनमों (पुरोहितों) से सेंगोल ग्रहण किया था। पंडित नेहरू के साथ सेंगोल का निहित होना ठीक वही क्षण था, जब अंग्रेजों द्वारा भारतीयों के हाथों में सत्ता का हस्तांतरण किया गया था। हम जिसे स्वतंत्रता के रूप में मना रहे हैं, वह वास्तव में यही क्षण है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अमृत काल के राष्ट्रीय प्रतीक के रूप में सेंगोल को अपनाने का निर्णय लिया है। संसद का नया भवन उसी घटना का साक्षी बनेगा, जिसमें आधीनम उस समारोह की पुनरावृत्ति करेंगे और प्रधानमंत्री मोदी को सेंगोल प्रदान करेंगे।

केंद्रीय गृह मंत्री ने सेंगोल के बारे में विस्तार से बताते हुए आगे कहा कि, सेंगोल का गहरा अर्थ होता है। सेंगोल शब्द तमिल शब्द सेम्मई से लिया गया है, जिसका अर्थ है नीतिपरायणता। इसे तमिलनाडु के एक प्रमुख धार्मिक मठ के मुख्य आधीनम (पुरोहितों) का आशीर्वाद प्राप्त है। न्याय के प्रेक्षक के रूप में, अपनी अटल ²ष्टि के साथ देखते हुए, हाथ से उत्कीर्ण नंदी इसके शीर्ष पर विराजमान हैं।

सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि सेंगोल को ग्रहण करने वाले व्यक्ति को न्यायपूर्ण और निष्पक्ष रूप से शासन करने का आदेश (तमिल में आणई) होता है और यह बात सबसे अधिक ध्यान खींचने वाली है- लोगों की सेवा करने के लिए चुने गए लोगों को इसे कभी नहीं भूलना चाहिए। 1947 के उसी सेंगोल को प्रधानमंत्री मोदी द्वारा लोक सभा में अध्यक्ष के आसन के पास प्रमुखता से स्थापित किया जाएगा। इसे राष्ट्र के देखने के लिए प्रदर्शित किया जाएगा और विशेष अवसरों पर बाहर ले जाया जाएगा।

उन्होंने कहा कि सेंगोल की स्थापना 15 अगस्त, 1947 की भावना को अविस्मरणीय बनाती है। यह असीम आशा, अनंत संभावनाओं और एक सशक्त और समृद्ध राष्ट्र के निर्माण का संकल्प है। यह अमृतकाल का प्रतिबिंब होगा, जो नए भारत को विश्व में अपने यथोचित स्थान को ग्रहण करने के गौरवशाली क्षण का साक्षी बनेगा।

विपक्षी दलों द्वारा संसद के नए भवन के उद्घाटन कार्यक्रम के बहिष्कार के बारे में पूछे गए सवालों का जवाब देते हुए शाह ने यह भी कहा कि राजनीति अपनी जगह है, राजनीति चलती रहती है लेकिन सेंगोल को राजनीति के साथ मत जोड़िए। यह पुरानी परंपराओं से नए भारत को जोड़ने की एक बड़ी भावनात्मक प्रक्रिया है इसको इतने ही सीमित अर्थ में देखना चाहिए। भारत सरकार ने सबको उपस्थित रहने की विनती की है, हमने सबको बुलाया है, सब अपनी-अपनी भावना के अनुसार करेंगे (फैसला)।

उन्होंने विपक्षी दलों पर तीखा निशाना साधते हुए आगे यह भी कहा कि सब अपनी सोचने की क्षमता के अनुसार रिएक्शन भी देते हैं और काम भी करते हैं।

–आईएएनएस

एसटीपी/एसकेपी

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