संजीव-नी।
सच दूर से लौटकर आ जाते हम।
सच दूर से लौटकर आ जाते हम, दिल से एक आवाज लगाई तो होती,
बहुत दूर नहीं थोड़े फासले में था मैं,
थोड़ी ही सही वफा दिखाई तो होती,
रफ्ता रफ्ता वक्त गुजर गया हाथों से,
कुछ दिल की सदा हमें सुनाई तो देती।
गुजारिश है लौट आओ तुम्हारे हम कदम हैं हम,
काश जुदाई में दोस्ती की गुंजाइश होती ।
बमुश्किल तुम्हें खुदा से मांगा था
तुमने भी खुदा को सफाई तो दी होती।
तैरने के हुनर से वाकिफ होता गर मैं,
यह दरिया में न जान डुबाई तो होती।
लो हम भी डूब हो जाते हैं उस दरिया में
तेरी मोहब्बत में जरा गहराई तो होती ।
संजीव ठाकुर, रायपुर छत्तीसगढ़