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सत्य-अहिंसा ही नहीं, अब मसालों की सुगंध से भी पहचानी जाएगी बुद्ध की धरती कुशीनगर

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July 25, 2024
in अर्थजगत
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सत्य-अहिंसा ही नहीं, अब मसालों की सुगंध से भी पहचानी जाएगी बुद्ध की धरती कुशीनगर
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लखनऊ, 25 जुलाई (आईएएनएस)। सत्य और अहिंसा का संदेश देने वाले भगवान बुद्ध की परिनिर्वाण स्थली कुशीनगर को एक और पहचान मिलने वाली है। दुनिया को आलोकित करने वाली यह धरती, अब भविष्य में यहां उपजने वाली मसालों की खुशबू से भी पहचानी जाएगी। यहां के मसालों से भी भारतीय किचन तो सुगंधित होंगे ही, दुनिया के रसोईघर भी महकेंगे।

इतना ही नहीं, कुशीनगर की धरती पर वर्षों से उपजने वाली हल्दी को भी दुनियाभर में पहचान मिलेगी। अब कुशीनगर की उर्वर भूमि पर न सिर्फ हल्दी की फसल अच्छी होगी बल्कि जीरा, सौंफ, मंगरैल और अजवाइन की खेती को भी नई पहचान मिलने वाली है। इस बाबत डबल इंजन की सरकार पहले ही संकेत दे चुकी है।

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अब राष्ट्रीय बीजीय मसाला अनुसंधान केंद्र (अजमेर) ने मसालों की खेती के लिए सहयोग करने की हामी भर दी है। इस साल रबी की फसली सीजन में सीमित संख्या में किसानों से मसाले की कई प्रजातियों की खेती शुरू कराने की योजना है।

कृषि विज्ञान केंद्र कुशीनगर के प्रभारी अशोक राय के अनुसार कुशीनगर में हल्दी की खेती की परंपरा पुरानी है। कुशीनगर और आसपास की जलवायु बीजीय मसालों के लिए भी अनुकूल है। इसलिए यहां इसकी संभावना है। किसान भी जागरूक हैं। अधिक लाभ वाले मसालों की खेती की संभावना बेहतर है।

टाटा ट्रस्ट और अजीम प्रेमजी फाउंडेशन की मदद से पिछले कई वर्षों से किसानों के बीच हल्दी की खेती पर फोकस रख काम करने वाले सस्टेनेबल ह्यूमन डेवलपमेंट के बीएम त्रिपाठी बताते हैं कि मसालों की खेती के लिए अब राष्ट्रीय बीजीय मसाला अनुसंधान केंद्र से को-ऑर्डिनेट किया जा रहा है। मेथी, सौंफ, जीरा और अजवाइन के फ्लेवर व औषधीय गुणों के मसालों के प्रसंस्करण पर भी खासा जोर रहेगा। मसाले की खेती करने के लिए किसानों को मोटिवेट करना पड़ेगा।

कृषि विशेषज्ञ डॉ. आमोदकांत मिश्र कहते हैं कि मसालों को मिलेट्स के साथ मिलाकर अत्यधिक पौष्टिक बनाया जा सकता है। इसे साकार करने में किसान एफपीओज की बहुत बड़ी भूमिका होगी। किसानों को मसाले की खेती से जोड़ना किसी चुनौती से कम नहीं है। इस कार्य में यदि किसान एफपीओ जुड़ जाएं तो बात बन सकती है। एफपीओज को खेती से लेकर प्रसंस्करण इकाई लगाने तक अपनी ताकत झोंकनी होगी। इनकी मार्केटिंग की अगुआई भी इन्हें ही करनी होगी।

भारत को मसालों की धरती भी कहा जाता है। पुर्तगाली जब पहली बार भारत आए तो उनका मूल उद्देश्य भारतीय मसालों के कारोबार से कमाई करना ही था। भारत में करीब 18 लाख हेक्टेयर जमीन पर मसालों की खेती होती है। जीरा गुजरात और राजस्थान की मुख्य फसल है तो बाकी तमाम मसाले अधिकांशतः दक्षिण भारत में होते हैं।

मसाले भारतीय भोजन की जान होते हैं। देश-दुनिया में जहां भी भारतीय हैं, वहां बिना मसाले के उनके खाने की कल्पना नहीं की जा सकती। बढ़ती बीमारियों और औषधीय गुण के कारण मसालों का क्रेज और बढ़ा है। खासकर कोविड के बाद तो और भी। इसलिए इसकी खेती की संभावनाए भी बढ़ी हैं। कुशीनगर का इंटरनेशनल एयरपोर्ट इन संभावनाओं को आने वाले समय में चार चांद लगाएगा।

–आईएएनएस

विकेटी/एबीएम

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लखनऊ, 25 जुलाई (आईएएनएस)। सत्य और अहिंसा का संदेश देने वाले भगवान बुद्ध की परिनिर्वाण स्थली कुशीनगर को एक और पहचान मिलने वाली है। दुनिया को आलोकित करने वाली यह धरती, अब भविष्य में यहां उपजने वाली मसालों की खुशबू से भी पहचानी जाएगी। यहां के मसालों से भी भारतीय किचन तो सुगंधित होंगे ही, दुनिया के रसोईघर भी महकेंगे।

इतना ही नहीं, कुशीनगर की धरती पर वर्षों से उपजने वाली हल्दी को भी दुनियाभर में पहचान मिलेगी। अब कुशीनगर की उर्वर भूमि पर न सिर्फ हल्दी की फसल अच्छी होगी बल्कि जीरा, सौंफ, मंगरैल और अजवाइन की खेती को भी नई पहचान मिलने वाली है। इस बाबत डबल इंजन की सरकार पहले ही संकेत दे चुकी है।

अब राष्ट्रीय बीजीय मसाला अनुसंधान केंद्र (अजमेर) ने मसालों की खेती के लिए सहयोग करने की हामी भर दी है। इस साल रबी की फसली सीजन में सीमित संख्या में किसानों से मसाले की कई प्रजातियों की खेती शुरू कराने की योजना है।

कृषि विज्ञान केंद्र कुशीनगर के प्रभारी अशोक राय के अनुसार कुशीनगर में हल्दी की खेती की परंपरा पुरानी है। कुशीनगर और आसपास की जलवायु बीजीय मसालों के लिए भी अनुकूल है। इसलिए यहां इसकी संभावना है। किसान भी जागरूक हैं। अधिक लाभ वाले मसालों की खेती की संभावना बेहतर है।

टाटा ट्रस्ट और अजीम प्रेमजी फाउंडेशन की मदद से पिछले कई वर्षों से किसानों के बीच हल्दी की खेती पर फोकस रख काम करने वाले सस्टेनेबल ह्यूमन डेवलपमेंट के बीएम त्रिपाठी बताते हैं कि मसालों की खेती के लिए अब राष्ट्रीय बीजीय मसाला अनुसंधान केंद्र से को-ऑर्डिनेट किया जा रहा है। मेथी, सौंफ, जीरा और अजवाइन के फ्लेवर व औषधीय गुणों के मसालों के प्रसंस्करण पर भी खासा जोर रहेगा। मसाले की खेती करने के लिए किसानों को मोटिवेट करना पड़ेगा।

कृषि विशेषज्ञ डॉ. आमोदकांत मिश्र कहते हैं कि मसालों को मिलेट्स के साथ मिलाकर अत्यधिक पौष्टिक बनाया जा सकता है। इसे साकार करने में किसान एफपीओज की बहुत बड़ी भूमिका होगी। किसानों को मसाले की खेती से जोड़ना किसी चुनौती से कम नहीं है। इस कार्य में यदि किसान एफपीओ जुड़ जाएं तो बात बन सकती है। एफपीओज को खेती से लेकर प्रसंस्करण इकाई लगाने तक अपनी ताकत झोंकनी होगी। इनकी मार्केटिंग की अगुआई भी इन्हें ही करनी होगी।

भारत को मसालों की धरती भी कहा जाता है। पुर्तगाली जब पहली बार भारत आए तो उनका मूल उद्देश्य भारतीय मसालों के कारोबार से कमाई करना ही था। भारत में करीब 18 लाख हेक्टेयर जमीन पर मसालों की खेती होती है। जीरा गुजरात और राजस्थान की मुख्य फसल है तो बाकी तमाम मसाले अधिकांशतः दक्षिण भारत में होते हैं।

मसाले भारतीय भोजन की जान होते हैं। देश-दुनिया में जहां भी भारतीय हैं, वहां बिना मसाले के उनके खाने की कल्पना नहीं की जा सकती। बढ़ती बीमारियों और औषधीय गुण के कारण मसालों का क्रेज और बढ़ा है। खासकर कोविड के बाद तो और भी। इसलिए इसकी खेती की संभावनाए भी बढ़ी हैं। कुशीनगर का इंटरनेशनल एयरपोर्ट इन संभावनाओं को आने वाले समय में चार चांद लगाएगा।

–आईएएनएस

विकेटी/एबीएम

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लखनऊ, 25 जुलाई (आईएएनएस)। सत्य और अहिंसा का संदेश देने वाले भगवान बुद्ध की परिनिर्वाण स्थली कुशीनगर को एक और पहचान मिलने वाली है। दुनिया को आलोकित करने वाली यह धरती, अब भविष्य में यहां उपजने वाली मसालों की खुशबू से भी पहचानी जाएगी। यहां के मसालों से भी भारतीय किचन तो सुगंधित होंगे ही, दुनिया के रसोईघर भी महकेंगे।

इतना ही नहीं, कुशीनगर की धरती पर वर्षों से उपजने वाली हल्दी को भी दुनियाभर में पहचान मिलेगी। अब कुशीनगर की उर्वर भूमि पर न सिर्फ हल्दी की फसल अच्छी होगी बल्कि जीरा, सौंफ, मंगरैल और अजवाइन की खेती को भी नई पहचान मिलने वाली है। इस बाबत डबल इंजन की सरकार पहले ही संकेत दे चुकी है।

अब राष्ट्रीय बीजीय मसाला अनुसंधान केंद्र (अजमेर) ने मसालों की खेती के लिए सहयोग करने की हामी भर दी है। इस साल रबी की फसली सीजन में सीमित संख्या में किसानों से मसाले की कई प्रजातियों की खेती शुरू कराने की योजना है।

कृषि विज्ञान केंद्र कुशीनगर के प्रभारी अशोक राय के अनुसार कुशीनगर में हल्दी की खेती की परंपरा पुरानी है। कुशीनगर और आसपास की जलवायु बीजीय मसालों के लिए भी अनुकूल है। इसलिए यहां इसकी संभावना है। किसान भी जागरूक हैं। अधिक लाभ वाले मसालों की खेती की संभावना बेहतर है।

टाटा ट्रस्ट और अजीम प्रेमजी फाउंडेशन की मदद से पिछले कई वर्षों से किसानों के बीच हल्दी की खेती पर फोकस रख काम करने वाले सस्टेनेबल ह्यूमन डेवलपमेंट के बीएम त्रिपाठी बताते हैं कि मसालों की खेती के लिए अब राष्ट्रीय बीजीय मसाला अनुसंधान केंद्र से को-ऑर्डिनेट किया जा रहा है। मेथी, सौंफ, जीरा और अजवाइन के फ्लेवर व औषधीय गुणों के मसालों के प्रसंस्करण पर भी खासा जोर रहेगा। मसाले की खेती करने के लिए किसानों को मोटिवेट करना पड़ेगा।

कृषि विशेषज्ञ डॉ. आमोदकांत मिश्र कहते हैं कि मसालों को मिलेट्स के साथ मिलाकर अत्यधिक पौष्टिक बनाया जा सकता है। इसे साकार करने में किसान एफपीओज की बहुत बड़ी भूमिका होगी। किसानों को मसाले की खेती से जोड़ना किसी चुनौती से कम नहीं है। इस कार्य में यदि किसान एफपीओ जुड़ जाएं तो बात बन सकती है। एफपीओज को खेती से लेकर प्रसंस्करण इकाई लगाने तक अपनी ताकत झोंकनी होगी। इनकी मार्केटिंग की अगुआई भी इन्हें ही करनी होगी।

भारत को मसालों की धरती भी कहा जाता है। पुर्तगाली जब पहली बार भारत आए तो उनका मूल उद्देश्य भारतीय मसालों के कारोबार से कमाई करना ही था। भारत में करीब 18 लाख हेक्टेयर जमीन पर मसालों की खेती होती है। जीरा गुजरात और राजस्थान की मुख्य फसल है तो बाकी तमाम मसाले अधिकांशतः दक्षिण भारत में होते हैं।

मसाले भारतीय भोजन की जान होते हैं। देश-दुनिया में जहां भी भारतीय हैं, वहां बिना मसाले के उनके खाने की कल्पना नहीं की जा सकती। बढ़ती बीमारियों और औषधीय गुण के कारण मसालों का क्रेज और बढ़ा है। खासकर कोविड के बाद तो और भी। इसलिए इसकी खेती की संभावनाए भी बढ़ी हैं। कुशीनगर का इंटरनेशनल एयरपोर्ट इन संभावनाओं को आने वाले समय में चार चांद लगाएगा।

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इतना ही नहीं, कुशीनगर की धरती पर वर्षों से उपजने वाली हल्दी को भी दुनियाभर में पहचान मिलेगी। अब कुशीनगर की उर्वर भूमि पर न सिर्फ हल्दी की फसल अच्छी होगी बल्कि जीरा, सौंफ, मंगरैल और अजवाइन की खेती को भी नई पहचान मिलने वाली है। इस बाबत डबल इंजन की सरकार पहले ही संकेत दे चुकी है।

अब राष्ट्रीय बीजीय मसाला अनुसंधान केंद्र (अजमेर) ने मसालों की खेती के लिए सहयोग करने की हामी भर दी है। इस साल रबी की फसली सीजन में सीमित संख्या में किसानों से मसाले की कई प्रजातियों की खेती शुरू कराने की योजना है।

कृषि विज्ञान केंद्र कुशीनगर के प्रभारी अशोक राय के अनुसार कुशीनगर में हल्दी की खेती की परंपरा पुरानी है। कुशीनगर और आसपास की जलवायु बीजीय मसालों के लिए भी अनुकूल है। इसलिए यहां इसकी संभावना है। किसान भी जागरूक हैं। अधिक लाभ वाले मसालों की खेती की संभावना बेहतर है।

टाटा ट्रस्ट और अजीम प्रेमजी फाउंडेशन की मदद से पिछले कई वर्षों से किसानों के बीच हल्दी की खेती पर फोकस रख काम करने वाले सस्टेनेबल ह्यूमन डेवलपमेंट के बीएम त्रिपाठी बताते हैं कि मसालों की खेती के लिए अब राष्ट्रीय बीजीय मसाला अनुसंधान केंद्र से को-ऑर्डिनेट किया जा रहा है। मेथी, सौंफ, जीरा और अजवाइन के फ्लेवर व औषधीय गुणों के मसालों के प्रसंस्करण पर भी खासा जोर रहेगा। मसाले की खेती करने के लिए किसानों को मोटिवेट करना पड़ेगा।

कृषि विशेषज्ञ डॉ. आमोदकांत मिश्र कहते हैं कि मसालों को मिलेट्स के साथ मिलाकर अत्यधिक पौष्टिक बनाया जा सकता है। इसे साकार करने में किसान एफपीओज की बहुत बड़ी भूमिका होगी। किसानों को मसाले की खेती से जोड़ना किसी चुनौती से कम नहीं है। इस कार्य में यदि किसान एफपीओ जुड़ जाएं तो बात बन सकती है। एफपीओज को खेती से लेकर प्रसंस्करण इकाई लगाने तक अपनी ताकत झोंकनी होगी। इनकी मार्केटिंग की अगुआई भी इन्हें ही करनी होगी।

भारत को मसालों की धरती भी कहा जाता है। पुर्तगाली जब पहली बार भारत आए तो उनका मूल उद्देश्य भारतीय मसालों के कारोबार से कमाई करना ही था। भारत में करीब 18 लाख हेक्टेयर जमीन पर मसालों की खेती होती है। जीरा गुजरात और राजस्थान की मुख्य फसल है तो बाकी तमाम मसाले अधिकांशतः दक्षिण भारत में होते हैं।

मसाले भारतीय भोजन की जान होते हैं। देश-दुनिया में जहां भी भारतीय हैं, वहां बिना मसाले के उनके खाने की कल्पना नहीं की जा सकती। बढ़ती बीमारियों और औषधीय गुण के कारण मसालों का क्रेज और बढ़ा है। खासकर कोविड के बाद तो और भी। इसलिए इसकी खेती की संभावनाए भी बढ़ी हैं। कुशीनगर का इंटरनेशनल एयरपोर्ट इन संभावनाओं को आने वाले समय में चार चांद लगाएगा।

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इतना ही नहीं, कुशीनगर की धरती पर वर्षों से उपजने वाली हल्दी को भी दुनियाभर में पहचान मिलेगी। अब कुशीनगर की उर्वर भूमि पर न सिर्फ हल्दी की फसल अच्छी होगी बल्कि जीरा, सौंफ, मंगरैल और अजवाइन की खेती को भी नई पहचान मिलने वाली है। इस बाबत डबल इंजन की सरकार पहले ही संकेत दे चुकी है।

अब राष्ट्रीय बीजीय मसाला अनुसंधान केंद्र (अजमेर) ने मसालों की खेती के लिए सहयोग करने की हामी भर दी है। इस साल रबी की फसली सीजन में सीमित संख्या में किसानों से मसाले की कई प्रजातियों की खेती शुरू कराने की योजना है।

कृषि विज्ञान केंद्र कुशीनगर के प्रभारी अशोक राय के अनुसार कुशीनगर में हल्दी की खेती की परंपरा पुरानी है। कुशीनगर और आसपास की जलवायु बीजीय मसालों के लिए भी अनुकूल है। इसलिए यहां इसकी संभावना है। किसान भी जागरूक हैं। अधिक लाभ वाले मसालों की खेती की संभावना बेहतर है।

टाटा ट्रस्ट और अजीम प्रेमजी फाउंडेशन की मदद से पिछले कई वर्षों से किसानों के बीच हल्दी की खेती पर फोकस रख काम करने वाले सस्टेनेबल ह्यूमन डेवलपमेंट के बीएम त्रिपाठी बताते हैं कि मसालों की खेती के लिए अब राष्ट्रीय बीजीय मसाला अनुसंधान केंद्र से को-ऑर्डिनेट किया जा रहा है। मेथी, सौंफ, जीरा और अजवाइन के फ्लेवर व औषधीय गुणों के मसालों के प्रसंस्करण पर भी खासा जोर रहेगा। मसाले की खेती करने के लिए किसानों को मोटिवेट करना पड़ेगा।

कृषि विशेषज्ञ डॉ. आमोदकांत मिश्र कहते हैं कि मसालों को मिलेट्स के साथ मिलाकर अत्यधिक पौष्टिक बनाया जा सकता है। इसे साकार करने में किसान एफपीओज की बहुत बड़ी भूमिका होगी। किसानों को मसाले की खेती से जोड़ना किसी चुनौती से कम नहीं है। इस कार्य में यदि किसान एफपीओ जुड़ जाएं तो बात बन सकती है। एफपीओज को खेती से लेकर प्रसंस्करण इकाई लगाने तक अपनी ताकत झोंकनी होगी। इनकी मार्केटिंग की अगुआई भी इन्हें ही करनी होगी।

भारत को मसालों की धरती भी कहा जाता है। पुर्तगाली जब पहली बार भारत आए तो उनका मूल उद्देश्य भारतीय मसालों के कारोबार से कमाई करना ही था। भारत में करीब 18 लाख हेक्टेयर जमीन पर मसालों की खेती होती है। जीरा गुजरात और राजस्थान की मुख्य फसल है तो बाकी तमाम मसाले अधिकांशतः दक्षिण भारत में होते हैं।

मसाले भारतीय भोजन की जान होते हैं। देश-दुनिया में जहां भी भारतीय हैं, वहां बिना मसाले के उनके खाने की कल्पना नहीं की जा सकती। बढ़ती बीमारियों और औषधीय गुण के कारण मसालों का क्रेज और बढ़ा है। खासकर कोविड के बाद तो और भी। इसलिए इसकी खेती की संभावनाए भी बढ़ी हैं। कुशीनगर का इंटरनेशनल एयरपोर्ट इन संभावनाओं को आने वाले समय में चार चांद लगाएगा।

–आईएएनएस

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लखनऊ, 25 जुलाई (आईएएनएस)। सत्य और अहिंसा का संदेश देने वाले भगवान बुद्ध की परिनिर्वाण स्थली कुशीनगर को एक और पहचान मिलने वाली है। दुनिया को आलोकित करने वाली यह धरती, अब भविष्य में यहां उपजने वाली मसालों की खुशबू से भी पहचानी जाएगी। यहां के मसालों से भी भारतीय किचन तो सुगंधित होंगे ही, दुनिया के रसोईघर भी महकेंगे।

इतना ही नहीं, कुशीनगर की धरती पर वर्षों से उपजने वाली हल्दी को भी दुनियाभर में पहचान मिलेगी। अब कुशीनगर की उर्वर भूमि पर न सिर्फ हल्दी की फसल अच्छी होगी बल्कि जीरा, सौंफ, मंगरैल और अजवाइन की खेती को भी नई पहचान मिलने वाली है। इस बाबत डबल इंजन की सरकार पहले ही संकेत दे चुकी है।

अब राष्ट्रीय बीजीय मसाला अनुसंधान केंद्र (अजमेर) ने मसालों की खेती के लिए सहयोग करने की हामी भर दी है। इस साल रबी की फसली सीजन में सीमित संख्या में किसानों से मसाले की कई प्रजातियों की खेती शुरू कराने की योजना है।

कृषि विज्ञान केंद्र कुशीनगर के प्रभारी अशोक राय के अनुसार कुशीनगर में हल्दी की खेती की परंपरा पुरानी है। कुशीनगर और आसपास की जलवायु बीजीय मसालों के लिए भी अनुकूल है। इसलिए यहां इसकी संभावना है। किसान भी जागरूक हैं। अधिक लाभ वाले मसालों की खेती की संभावना बेहतर है।

टाटा ट्रस्ट और अजीम प्रेमजी फाउंडेशन की मदद से पिछले कई वर्षों से किसानों के बीच हल्दी की खेती पर फोकस रख काम करने वाले सस्टेनेबल ह्यूमन डेवलपमेंट के बीएम त्रिपाठी बताते हैं कि मसालों की खेती के लिए अब राष्ट्रीय बीजीय मसाला अनुसंधान केंद्र से को-ऑर्डिनेट किया जा रहा है। मेथी, सौंफ, जीरा और अजवाइन के फ्लेवर व औषधीय गुणों के मसालों के प्रसंस्करण पर भी खासा जोर रहेगा। मसाले की खेती करने के लिए किसानों को मोटिवेट करना पड़ेगा।

कृषि विशेषज्ञ डॉ. आमोदकांत मिश्र कहते हैं कि मसालों को मिलेट्स के साथ मिलाकर अत्यधिक पौष्टिक बनाया जा सकता है। इसे साकार करने में किसान एफपीओज की बहुत बड़ी भूमिका होगी। किसानों को मसाले की खेती से जोड़ना किसी चुनौती से कम नहीं है। इस कार्य में यदि किसान एफपीओ जुड़ जाएं तो बात बन सकती है। एफपीओज को खेती से लेकर प्रसंस्करण इकाई लगाने तक अपनी ताकत झोंकनी होगी। इनकी मार्केटिंग की अगुआई भी इन्हें ही करनी होगी।

भारत को मसालों की धरती भी कहा जाता है। पुर्तगाली जब पहली बार भारत आए तो उनका मूल उद्देश्य भारतीय मसालों के कारोबार से कमाई करना ही था। भारत में करीब 18 लाख हेक्टेयर जमीन पर मसालों की खेती होती है। जीरा गुजरात और राजस्थान की मुख्य फसल है तो बाकी तमाम मसाले अधिकांशतः दक्षिण भारत में होते हैं।

मसाले भारतीय भोजन की जान होते हैं। देश-दुनिया में जहां भी भारतीय हैं, वहां बिना मसाले के उनके खाने की कल्पना नहीं की जा सकती। बढ़ती बीमारियों और औषधीय गुण के कारण मसालों का क्रेज और बढ़ा है। खासकर कोविड के बाद तो और भी। इसलिए इसकी खेती की संभावनाए भी बढ़ी हैं। कुशीनगर का इंटरनेशनल एयरपोर्ट इन संभावनाओं को आने वाले समय में चार चांद लगाएगा।

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इतना ही नहीं, कुशीनगर की धरती पर वर्षों से उपजने वाली हल्दी को भी दुनियाभर में पहचान मिलेगी। अब कुशीनगर की उर्वर भूमि पर न सिर्फ हल्दी की फसल अच्छी होगी बल्कि जीरा, सौंफ, मंगरैल और अजवाइन की खेती को भी नई पहचान मिलने वाली है। इस बाबत डबल इंजन की सरकार पहले ही संकेत दे चुकी है।

अब राष्ट्रीय बीजीय मसाला अनुसंधान केंद्र (अजमेर) ने मसालों की खेती के लिए सहयोग करने की हामी भर दी है। इस साल रबी की फसली सीजन में सीमित संख्या में किसानों से मसाले की कई प्रजातियों की खेती शुरू कराने की योजना है।

कृषि विज्ञान केंद्र कुशीनगर के प्रभारी अशोक राय के अनुसार कुशीनगर में हल्दी की खेती की परंपरा पुरानी है। कुशीनगर और आसपास की जलवायु बीजीय मसालों के लिए भी अनुकूल है। इसलिए यहां इसकी संभावना है। किसान भी जागरूक हैं। अधिक लाभ वाले मसालों की खेती की संभावना बेहतर है।

टाटा ट्रस्ट और अजीम प्रेमजी फाउंडेशन की मदद से पिछले कई वर्षों से किसानों के बीच हल्दी की खेती पर फोकस रख काम करने वाले सस्टेनेबल ह्यूमन डेवलपमेंट के बीएम त्रिपाठी बताते हैं कि मसालों की खेती के लिए अब राष्ट्रीय बीजीय मसाला अनुसंधान केंद्र से को-ऑर्डिनेट किया जा रहा है। मेथी, सौंफ, जीरा और अजवाइन के फ्लेवर व औषधीय गुणों के मसालों के प्रसंस्करण पर भी खासा जोर रहेगा। मसाले की खेती करने के लिए किसानों को मोटिवेट करना पड़ेगा।

कृषि विशेषज्ञ डॉ. आमोदकांत मिश्र कहते हैं कि मसालों को मिलेट्स के साथ मिलाकर अत्यधिक पौष्टिक बनाया जा सकता है। इसे साकार करने में किसान एफपीओज की बहुत बड़ी भूमिका होगी। किसानों को मसाले की खेती से जोड़ना किसी चुनौती से कम नहीं है। इस कार्य में यदि किसान एफपीओ जुड़ जाएं तो बात बन सकती है। एफपीओज को खेती से लेकर प्रसंस्करण इकाई लगाने तक अपनी ताकत झोंकनी होगी। इनकी मार्केटिंग की अगुआई भी इन्हें ही करनी होगी।

भारत को मसालों की धरती भी कहा जाता है। पुर्तगाली जब पहली बार भारत आए तो उनका मूल उद्देश्य भारतीय मसालों के कारोबार से कमाई करना ही था। भारत में करीब 18 लाख हेक्टेयर जमीन पर मसालों की खेती होती है। जीरा गुजरात और राजस्थान की मुख्य फसल है तो बाकी तमाम मसाले अधिकांशतः दक्षिण भारत में होते हैं।

मसाले भारतीय भोजन की जान होते हैं। देश-दुनिया में जहां भी भारतीय हैं, वहां बिना मसाले के उनके खाने की कल्पना नहीं की जा सकती। बढ़ती बीमारियों और औषधीय गुण के कारण मसालों का क्रेज और बढ़ा है। खासकर कोविड के बाद तो और भी। इसलिए इसकी खेती की संभावनाए भी बढ़ी हैं। कुशीनगर का इंटरनेशनल एयरपोर्ट इन संभावनाओं को आने वाले समय में चार चांद लगाएगा।

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इतना ही नहीं, कुशीनगर की धरती पर वर्षों से उपजने वाली हल्दी को भी दुनियाभर में पहचान मिलेगी। अब कुशीनगर की उर्वर भूमि पर न सिर्फ हल्दी की फसल अच्छी होगी बल्कि जीरा, सौंफ, मंगरैल और अजवाइन की खेती को भी नई पहचान मिलने वाली है। इस बाबत डबल इंजन की सरकार पहले ही संकेत दे चुकी है।

अब राष्ट्रीय बीजीय मसाला अनुसंधान केंद्र (अजमेर) ने मसालों की खेती के लिए सहयोग करने की हामी भर दी है। इस साल रबी की फसली सीजन में सीमित संख्या में किसानों से मसाले की कई प्रजातियों की खेती शुरू कराने की योजना है।

कृषि विज्ञान केंद्र कुशीनगर के प्रभारी अशोक राय के अनुसार कुशीनगर में हल्दी की खेती की परंपरा पुरानी है। कुशीनगर और आसपास की जलवायु बीजीय मसालों के लिए भी अनुकूल है। इसलिए यहां इसकी संभावना है। किसान भी जागरूक हैं। अधिक लाभ वाले मसालों की खेती की संभावना बेहतर है।

टाटा ट्रस्ट और अजीम प्रेमजी फाउंडेशन की मदद से पिछले कई वर्षों से किसानों के बीच हल्दी की खेती पर फोकस रख काम करने वाले सस्टेनेबल ह्यूमन डेवलपमेंट के बीएम त्रिपाठी बताते हैं कि मसालों की खेती के लिए अब राष्ट्रीय बीजीय मसाला अनुसंधान केंद्र से को-ऑर्डिनेट किया जा रहा है। मेथी, सौंफ, जीरा और अजवाइन के फ्लेवर व औषधीय गुणों के मसालों के प्रसंस्करण पर भी खासा जोर रहेगा। मसाले की खेती करने के लिए किसानों को मोटिवेट करना पड़ेगा।

कृषि विशेषज्ञ डॉ. आमोदकांत मिश्र कहते हैं कि मसालों को मिलेट्स के साथ मिलाकर अत्यधिक पौष्टिक बनाया जा सकता है। इसे साकार करने में किसान एफपीओज की बहुत बड़ी भूमिका होगी। किसानों को मसाले की खेती से जोड़ना किसी चुनौती से कम नहीं है। इस कार्य में यदि किसान एफपीओ जुड़ जाएं तो बात बन सकती है। एफपीओज को खेती से लेकर प्रसंस्करण इकाई लगाने तक अपनी ताकत झोंकनी होगी। इनकी मार्केटिंग की अगुआई भी इन्हें ही करनी होगी।

भारत को मसालों की धरती भी कहा जाता है। पुर्तगाली जब पहली बार भारत आए तो उनका मूल उद्देश्य भारतीय मसालों के कारोबार से कमाई करना ही था। भारत में करीब 18 लाख हेक्टेयर जमीन पर मसालों की खेती होती है। जीरा गुजरात और राजस्थान की मुख्य फसल है तो बाकी तमाम मसाले अधिकांशतः दक्षिण भारत में होते हैं।

मसाले भारतीय भोजन की जान होते हैं। देश-दुनिया में जहां भी भारतीय हैं, वहां बिना मसाले के उनके खाने की कल्पना नहीं की जा सकती। बढ़ती बीमारियों और औषधीय गुण के कारण मसालों का क्रेज और बढ़ा है। खासकर कोविड के बाद तो और भी। इसलिए इसकी खेती की संभावनाए भी बढ़ी हैं। कुशीनगर का इंटरनेशनल एयरपोर्ट इन संभावनाओं को आने वाले समय में चार चांद लगाएगा।

–आईएएनएस

विकेटी/एबीएम

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