नई दिल्ली 22 अक्टूबर (आईएएनएस)। समलैंगिक विवाह को लेकर हाल ही में सुप्रीम कोर्ट ने अपना ऐतिहासिक फैसला देते हुए ऐसे विवाह को मान्यता देने से इनकार कर दिया है। सुप्रीम कोर्ट ने इस मसले पर फैसला देते हुए यह भी साफ कर दिया कि वह सिर्फ कानून की व्याख्या कर सकता है और कानून में बदलाव का काम देश की संसद को करना है। इसी के साथ देश में एक नया सवाल खड़ा हो गया कि क्या समलैंगिक विवाह के समर्थक लोगों की बात मानते हुए सरकार संसद के जरिए कानून बनाकर इस तरह के विवाह को मान्यता दे सकती है या नहीं?
सरकार इस मसले पर क्या करेगी इसका अंदाजा सुप्रीम कोर्ट में दिए गए केंद्र सरकार के हलफनामे, समलैंगिक विवाह पर भाजपा का रुख और सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर आए राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के बयान से लगाया जा सकता है।
केंद्र सरकार ने समलैंगिक विवाह के मसले पर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई शुरू होने से पहले ही हलफनामा दायर कर इस विवाह को मान्यता देने से जुड़ी याचिकाओं को खारिज करने की मांग की थी।
केंद्र सरकार ने अपने हलफनामे में कई कानूनी उलझनों एवं समस्याओं को गिनाते हुए सुप्रीम कोर्ट को यह बताया था कि भारत सरकार समलैंगिक विवाह को मान्यता देने के खिलाफ क्यों हैं।
भाजपा के स्टैंड की बात करें तो, पार्टी इसे कानूनी से ज्यादा सामाजिक और संस्कृति से जुड़ा मुद्दा मानती है।
पार्टी के वरिष्ठ नेता सुशील कुमार मोदी ने दिसंबर 2022 में राज्य सभा में समलैंगिक विवाह को कानूनी मान्यता देने का विरोध करते हुए कहा था कि भारतीय समाज समलैंगिक विवाह को स्वीकार करने को तैयार नहीं है और यह भारत की संस्कृति और परंपरा के लिए अनुचित है।
देश के केंद्रीय कानून मंत्री अर्जुन राम मेघवाल तो समलैंगिक विवाह ही नहीं बल्कि समलैंगिक संबंधों के भी कट्टर विरोधी हैं। मेघवाल ने तो मनमोहन सिंह सरकार के कार्यकाल में बतौर सांसद वर्ष 2012 में लोक सभा में प्राइवेट मेंबर बिल के तौर पर समलैंगिकता विरोधी विधेयक पेश तक कर दिया था।
सुप्रीम कोर्ट द्वारा समलैंगिक विवाह को मान्यता देने से इनकार करने के फैसले का राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने भी स्वागत किया। संघ के अखिल भारतीय प्रचार प्रमुख सुनील आंबेकर ने सर्वोच्च न्यायालय के फैसले का स्वागत करते हुए कहा कि उच्चतम न्यायालय का समलैंगिक विवाह संबंधी निर्णय स्वागत योग्य है। हमारी लोकतांत्रिक संसदीय व्यवस्था इससे जुड़े सभी मद्दों पर गंभीर रूप से चर्चा करते हुए उचित निर्णय ले सकती है।
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरकार्यवाह दत्तात्रेय होसबाले ने इसी वर्ष मार्च में हरियाणा के पानीपत में आयोजित संघ की अखिल भारतीय प्रतिनिधि सभा की बैठक के अंतिम दिन मीडिया से बात करते हुए समलैंगिक विवाह पर आरएसएस के स्टैंड को एक बार फिर से स्पष्ट कर दिया था।
होसबाले ने समलैंगिक विवाह को कानूनी मान्यता देने का विरोध करते हुए कहा था कि समलैंगिक विवाह पर आरएसएस केंद्र सरकार के नजरिए से सहमत है। उन्होंने कहा कि शादी दो अलग-अलग जेंडर के लोगों के बीच ही हो सकती है, इसको कॉन्ट्रैक्ट नहीं कह सकते। यह शारीरिक इच्छापूर्ति के लिए नहीं होती। शादी से गृहस्थ जीवन के आदर्श मिलते हैं। हिंदू जीवन में विवाह ‘संस्कार’ है, यह आनंद के लिए नहीं है। दो व्यक्ति विवाह करते हैं और समाज के लाभ के लिए एक परिवार बनाते हैं। विवाह न तो यौन आनंद के लिए है और न ही अनुबंध के लिए है।
–आईएएनएस
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