सतना, देशबन्धु। जीएसटी और सेल्स टैक्स विभाग की आंख में धूल झोंकने का एक नया मामला सामने आया है। शहर की किराना एवं पान मसाला दुकानों में पैकेट बंद ऐसी सुपारी का वितरण एवं विक्रय किया जा रहा है, जिसमें न तो मैन्युफैक्चरिंग एवं एक्सपायरी डेट का उल्लेख होता है और न ही वजन और कीमत की सही जानकारी प्रदर्शित की जाती है। शिकायत तो यहां तक सामने आ रही है कि पैकेट पर 200 ग्राम लिखा होता है, लेकिन सुपारी 100 से डेढ़ सौ ग्राम के बीच ही होती है, यानी वजन में भी चोरी हो रही है। ऐसा काला धंधा करने वाले लोग सरकार को राजस्व का नुकसान तो पहुंचा ही रहे हैं, उपभोक्ताओं को भी चूना लगा रहे हैं। सवाल काबिज होता है कि क्या यह सब बिना सरकारी तंत्र की मिली भगत के मुमकिन है?
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सिंधी कैंप से सुपारी का गढ़
सूत्रों का दावा है कि सिंधी कैंप और मुख्य बाजार की किराना दुकानों में अगर आकस्मिक छापामारी की जाए तो सुपारी के काले कारोबार से पर्दा उठ जाएगा। इतना ही नहीं पुलिस तफ्तीश में इस गोरख धंधे के वह चेहरे भी बेनकाब हो जाएंगे जो व्यापारी बनकर समाज में इज्जत बटोर रहे हैं। माना जा रहा है कि यह काला धंधा सिंधी कैंप में ही नहीं बल्कि जिला और जिले के बाहर भी फैला हुआ है। व्यापारी सड़ी गली हर किस्म की सुपारी को बकायदे पैकेट में पैक करके दुकानदारों के माध्यम से उपभोक्ताओं तक पहुंचा कर मन माफिक मुनाफा कमा रहे हैं। सवाल है कि फूड सेफ्टी डिपार्टमेंट आखिर क्या कर रहा है? अब तक यह घोटाला उसकी नजर में क्यों नहीं आया है? कहीं ऐसा तो नहीं है कि जानकारी होते हुए भी इस विभाग के लोग अनजान बने हुए हैं?
सुपारी से सबके मुंह बंद
जांच योग्य बिंदु है कि फुटकर में बिक्री के लिए थोक में सुपारी कहां से आ रही है? जो सुपारी आ रही है, उसका गुणवत्ता स्तर क्या है? इस सुपारी को किस कारखाने में कटवाया जा रहा है और फुटकर बिक्री के लिए किस तरीके की टीम काम कर रही है? सूत्रों की माने तो बाजार में पैकेट बंद जो कटी सुपारी मिल रही है उसमें से अधिकांश ऐसी है, जिसे खाने के बाद उपभोक्ताओं को गले और फेफड़ों की शिकायत हो रही है। हालांकि यह विषय जांच योग्य है। जांच के बाद ही तथ्य सामने आएंगे कि इस कारोबार की असलियत क्या है? इसमें किसका नफा और किसका नुकसान है? सवाल यह होता है कि जांच कब और कैसे शुरू होगी?