नई दिल्ली, 27 अगस्त (आईएएनएस)। ‘बल्ले का जादूगर’, ‘क्रिकेट की दुनिया का बॉस’, ‘द डॉन’…..सर डोनाल्ड ब्रैडमैन। ब्रैडमैन जो सिर्फ एक बल्लेबाज नहीं, बल्कि क्रिकेट के इतिहास में एक ऐसे लीजेंड हैं, जिनकी महानता को मापने के लिए कोई पैमाना हमारे पास नहीं है। महान बल्लेबाजों की भीड़ में इकलौते ‘सर्वकालिक महानतम’ बल्लेबाज। 99.94 की टेस्ट औसत रखने वाले डॉन ब्रैडमैन। एक ऐसे बल्लेबाज जिनके आउट होने पर लंदन के अखबारों में सनसनी के लिए इतना लिखना काफी था- ‘आखिर…वह आउट हो गए।’
ब्रैडमैन के लिए मानो क्रिकेट की एक छोटी सी बॉल किसी फुटबॉल सरीखी थी। जिसे बल्ले से मारना बच्चों का खेल हो। गेंदबाजी को कुछ ऐसे मजाक बनाकर रख दिया था डॉन ब्रैडमैन ने। तकनीक ऐसी थी कि गेंद को देखते ही उनका शॉट्स तैयार हो जाता था। शॉट्स ऐसे थे कि जो ब्रैडमैन की इच्छा का पालन करते थे। वह जहां चाहते थे, गेंद चुपचाप वहां चली जाती थी। 27 अगस्त, 1908 में न्यू साउथ वेल्स, ऑस्ट्रेलिया में जन्मे ब्रैडमैन ने खेल में असाधारण प्रदर्शन की सभी सीमाओं को पार किया था।
एक ऐसा प्रदर्शन जो असाधारण से अलौकिक बन चुका था जो इंसानी सीमाओं से परे था। जहां महान से महान बल्लेबाजों की औसत 55-60 के बीच सिमट जाती है, वहां ब्रैडमैन का करीब सौ का औसत कल्पनाओं के किसी छोर से परे है। किसी एक इंसान में इतनी असाधारण प्रतिभा कैसे आ सकती है, शायद उनके ऊपर ईश्वर का थोड़ा सा आशीर्वाद और बहुत ज्यादा ध्यान केंद्रित करने की क्षमता थी।
कहा जाता है कि अगर उन्होंने क्रिकेट की जगह स्क्वैश, टेनिस, गोल्फ या बिलियर्ड्स को चुना होता, तो वह उनमें भी चैम्पियन बन सकते थे। जब ब्रैडमैन बच्चे थे, तो उन्होंने अपनी नजर, रिफ्लेक्स और स्पीड को सुधारने के लिए एक गोल्फ की गेंद को क्रिकेट स्टंप से मारने की प्रैक्टिस शुरू की थी। गोल्फ की वह गेंद स्टंप से लगने के बाद रिबाउंड होकर फिर ब्रैडमैन के पास आती थी। इसने छोटी उम्र से ही उनको कमाल की नजर, तेज फुटवर्क और अद्भुत ध्यान केंद्रित करने की क्षमता दी।
ब्रैडमैन को भी यही लगता था कि शायद वह फोकस करने की अपनी क्षमता के मामले में समकालीन बल्लेबाजों से आगे थे। वह इतना आगे निकल गए कि किवदंती बन गए। जब उन्होंने 1927 में न्यू साउथ वेल्स के लिए अपना पदार्पण किया, तब तक ब्रैडमैन पहले ही उस असाधारण प्रतिभा की झलक दिखा चुके थे जो जल्द ही क्रिकेट की दुनिया को मोहित कर देने वाली थी।
मात्र 20 साल की उम्र में उन्होंने 1928 में ब्रिसबेन में इंग्लैंड के खिलाफ टेस्ट में पदार्पण किया था। हालांकि उनकी शुरुआत साधारण थी, 18 और 1 के स्कोर के साथ, यह एक तूफान से पहले की शांति थी। 1930 की एशेज सीरीज में, उन्होंने पांच टेस्ट मैचों में 974 रन बनाकर खुद को विश्व मंच पर स्थापित किया।
लेकिन क्या ब्रैडमैन हमेशा रन बनाते रहे और गेंदबाजों ने उनको रोकने के लिए कुछ नहीं किया? तो हां, ब्रैडमैन हमेशा रन बनाते रहे लेकिन गेंदबाजों ने उन्हें रोकने के लिए बहुत कुछ किया। यहां तक कि जब ‘सीधी उंगली से घी नहीं निकला’ तो टेढ़ा तरीका अपनाया गया और यहीं पर ब्रैडमैन के करियर की एक महत्वपूर्ण चुनौती 1932-33 की कुख्यात “बॉडीलाइन” सीरीज के दौरान आई थी।
इस सीरीज में इंग्लैंड ने, ब्रैडमैन की रन बनाने की क्षमता को सीमित करने के प्रयास में, एक विवादास्पद रणनीति का सहारा लिया। जिसमें तेज गेंदबाजों ने बल्लेबाज के शरीर पर निशाना साधा और लेग साइड पर फील्डरों की एक घेराबंदी बनाई ताकि गेंद के बल्ले के किनारे लगने पर कैच किया जा सके। यह रणनीति ब्रैडमैन को डराने और शॉर्ट-पिच गेंदबाजी के खिलाफ उनकी कथित कमजोरी का फायदा उठाने के लिए डिजाइन की गई थी।
अंग्रेज कुछ हद तक सफल भी रहे। गेंदबाजों के इस उग्र हमले में ब्रैडमैन ने 56.57 की औसत से 396 रन बनाए थे। 56.57 की औसत आज भी किसी महान बल्लेबाज की सफलता को बयां करती है लेकिन ब्रैडमैन के मानकों के हिसाब से यह कम थी। हालात यह थी कि उस सीरीज में ब्रैडमैन की टीम के अधिकांश बल्लेबाज 20 की औसत को पार करने के लिए संघर्ष कर रहे थे।
“बॉडीलाइन” सीरीज के बाद की कुछ पारियों में ब्रैडमैन का खेल उतार-चढ़ाव के दौर से गुजरा लेकिन उन्होंने ऑस्ट्रेलिया को अगली एशेज ट्रॉफी जिताकर अपनी जीत की स्क्रिप्ट खुद लिखी थी। उनके बल्ले के आगे गेंदबाजों का नतमस्तक होना जारी रहा और स्थिति यह थी कि 1948 में जब ब्रैडमैन अपना अंतिम टेस्ट मैच खेलने जा रहे थे उनको 100 की औसत बरकरार रखने के लिए मात्र 4 रनों की दरकार थी।
लेकिन ईश्वर की अपनी योजना थी, जिसने ब्रैडमैन को अपनी विशेष कृपा देने के बावजूद 100 की औसत के ‘परफेक्शन’ से दूर रखा। यह विडंबना ही थी उस ओवल टेस्ट में महानतम ब्रैडमैन बगैर खाता खोले आउट हो गए और 99.94 की औसत टेस्ट प्रेमियों के मन-मस्तिष्क पर हमेशा के लिए छप गई।
क्रिकेट उस्ताद सर डोनाल्ड ब्रैडमैन कुल 55 टेस्ट मैच खेले और 6,996 रन बनाए। कुल 29 सेंचुरी के साथ उनका टॉप स्कोर 334 रन रहा। ब्रैडमैन ने भारत के खिलाफ सिर्फ पांच मैच खेले, जिसमें 178 के औसत से 715 रन बनाकर चार शतक लगाए। इनमें एक दोहरा शतक है।
भारत के लिए एक और खास बात है। ब्रैडमैन सचिन तेंदुलकर का खेल काफी पसंद करते थे। सचिन को अपने खेल के बहुत करीब पाते थे। कहते थे सचिन का खेल उनको अपने खेल के दिनों की याद दिलाता है। ऐसी बात उन्होंने किसी और बल्लेबाज के लिए नहीं बोली थी। अक्सर सचिन के खेल के दिनों में उनकी डोनाल्ड ब्रैडमैन से बहुत तुलना भी की गई थी। हालांकि क्रिकेट के हर साल बीतने के साथ ‘डॉन’ किसी भी युग के बल्लेबाज की तुलना में ‘अतुलनीय’ ही साबित हुए। क्रिकेट के इस जादूगर ने 25 फरवरी 2001 को 92 साल की उम्र में दुनिया को अलविदा कह दिया था।
–आईएएनएस
एएस/केआर