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Home ताज़ा समाचार

सिर्फ कॉलेजियम ही नहीं, एससी ने अरुण गोयल की चुनाव आयोग में पदोन्नति पर भी पूछे कड़े सवाल

by
December 4, 2022
in ताज़ा समाचार
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सिर्फ कॉलेजियम ही नहीं, एससी ने अरुण गोयल की चुनाव आयोग में पदोन्नति पर भी पूछे कड़े सवाल
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नई दिल्ली, 4 दिसंबर (आईएएनएस)। सुप्रीम कोर्ट के केंद्र से सवाल करने या सरकार की खिंचाई करने में कोई आश्चर्य की बात नहीं है, लेकिन हाल ही में जिस तरह से शीर्ष अदालत ने पंजाब कैडर के सेवानिवृत्त आईएएस अधिकारी अरुण गोयल की चुनाव आयुक्त के रूप में नियुक्ति के मामले में सरकार से कड़े सवाल पूछे, इसने कई विवादों को जन्म दे दिया है।

गोयल की नियुक्ति से पहले के घटनाक्रम ने इसे साफ कर दिया है। यह पता चला है कि चुनाव आयुक्त के रूप में नियुक्त होने से एक दिन पहले तक यानि 18 नवंबर को स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति लेने तक, गोयल केंद्रीय भारी उद्योग मंत्रालय में सचिव थे। यह कहा गया है कि भारी उद्योग मंत्रालय के वरिष्ठ अधिकारियों को भी इस बात की जानकारी नहीं थी कि वो चुनाव आयुक्त बनने जा रहे हैं।

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इसके बाद अगले दिन 19 नवंबर को अरुण गोयल को चुनाव आयुक्त के रूप में नियुक्त किया गया और उन्होंने दो दिन बाद, 21 नवंबर को ज्वाइन भी कर लिया।

जिस तेजी से उनकी नियुक्ति हुई, उस पर 23 नवंबर को सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र से उनके चयन से संबंधित मूल फाइलें पेश करने को कहा। शीर्ष अदालत ने केंद्र से कहा कि वह अरुण गोयल की चुनाव आयुक्त के रूप में नियुक्ति से संबंधित फाइलों को देखना चाहती है और इस बात पर जोर दिया कि वह यह देखना चाहती है कि किस तरह उन्हें इतनी जल्दबाजी में नियुक्त किया गया।

एक याचिकाकर्ता का प्रतिनिधित्व कर रहे अधिवक्ता प्रशांत भूषण ने गोयल की नियुक्ति का मुद्दा उठाया। भूषण ने कहा कि वह एक सिटिंग सेक्रेटरी हैं; उन्हें शुक्रवार को स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति दी गई और शनिवार को नियुक्ति की गई और सोमवार को उन्होंने चुनाव आयोग के रूप में काम करना भी शुरू कर दिया।

भूषण ने कहा कि उन्होंने नियुक्ति के संबंध में अर्जी दी थी और अदालत इस मामले की सुनवाई कर रही थी, फिर भी सरकार ने नियुक्ति कर दी। उन्होंने पूछा कि केंद्र सिर्फ एक दिन में किसी को कैसे नियुक्त कर सकता है, किन प्रक्रियाओं का पालन किया गया है।

शीर्ष अदालत ने मौखिक रूप से कहा कि नियुक्ति का आदेश, मामले की सुनवाई शुरू होने के बाद दिया गया और भूषण ने इस मामले में आवेदन दिया था। शीर्ष अदालत सीईसी और ईसी की नियुक्ति के लिए कॉलेजियम जैसी प्रणाली की मांग करने वाली याचिकाओं पर सुनवाई कर रही थी।

इसके बाद अगले ही दिन 24 नवंबर को शीर्ष अदालत ने कहा कि इतनी जल्दबाजी क्या थी और इतनी तेजी से नियुक्ति क्यों की गई।

न्यायमूर्ति के एम जोसेफ ने दोहराया कि अदालत यस मैन नियुक्त किए जाने के बारे में चिंतित है और पूछा कि कानून मंत्री द्वारा आयु मानदंड के आधार पर सैकड़ों लोगों के डेटा से चार नामों को शॉर्टलिस्ट करने का क्या आधार है।

सुपर फास्ट तरीके से गोयल की नियुक्ति पर सवाल उठाते हुए पीठ ने टिप्पणी की कि 24 घंटे से भी कम समय में प्रक्रिया पूरी कर ली गई।

एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (एडीआर) के सह-संस्थापक प्रोफेसर जगदीप छोकर ने आईएएनएस से बात करते हुए कहा, मामला अदालत में पहुंचने पर अधिकारी को रातोंरात नियुक्त किया गया। कैसे 22 घंटे या 26 घंटे में उनका चयन किया गया और पूरी प्रक्रिया कैसे पूरी की गई, कोई नहीं जानता। दाल में कुछ काला है।

अरुण गोयल की सेवानिवृत्ति 31 दिसंबर, 2022 को होनी थी। हालांकि, चुनाव आयुक्त के रूप में उनकी नियुक्ति के साथ, वह दिसंबर 2027 तक पद पर बने रहेंगे। वह मुख्य चुनाव आयुक्त पद के लिए सबसे संभावित उम्मीदवार भी हैं।

–आईएएनएस

एसकेपी

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नई दिल्ली, 4 दिसंबर (आईएएनएस)। सुप्रीम कोर्ट के केंद्र से सवाल करने या सरकार की खिंचाई करने में कोई आश्चर्य की बात नहीं है, लेकिन हाल ही में जिस तरह से शीर्ष अदालत ने पंजाब कैडर के सेवानिवृत्त आईएएस अधिकारी अरुण गोयल की चुनाव आयुक्त के रूप में नियुक्ति के मामले में सरकार से कड़े सवाल पूछे, इसने कई विवादों को जन्म दे दिया है।

गोयल की नियुक्ति से पहले के घटनाक्रम ने इसे साफ कर दिया है। यह पता चला है कि चुनाव आयुक्त के रूप में नियुक्त होने से एक दिन पहले तक यानि 18 नवंबर को स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति लेने तक, गोयल केंद्रीय भारी उद्योग मंत्रालय में सचिव थे। यह कहा गया है कि भारी उद्योग मंत्रालय के वरिष्ठ अधिकारियों को भी इस बात की जानकारी नहीं थी कि वो चुनाव आयुक्त बनने जा रहे हैं।

इसके बाद अगले दिन 19 नवंबर को अरुण गोयल को चुनाव आयुक्त के रूप में नियुक्त किया गया और उन्होंने दो दिन बाद, 21 नवंबर को ज्वाइन भी कर लिया।

जिस तेजी से उनकी नियुक्ति हुई, उस पर 23 नवंबर को सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र से उनके चयन से संबंधित मूल फाइलें पेश करने को कहा। शीर्ष अदालत ने केंद्र से कहा कि वह अरुण गोयल की चुनाव आयुक्त के रूप में नियुक्ति से संबंधित फाइलों को देखना चाहती है और इस बात पर जोर दिया कि वह यह देखना चाहती है कि किस तरह उन्हें इतनी जल्दबाजी में नियुक्त किया गया।

एक याचिकाकर्ता का प्रतिनिधित्व कर रहे अधिवक्ता प्रशांत भूषण ने गोयल की नियुक्ति का मुद्दा उठाया। भूषण ने कहा कि वह एक सिटिंग सेक्रेटरी हैं; उन्हें शुक्रवार को स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति दी गई और शनिवार को नियुक्ति की गई और सोमवार को उन्होंने चुनाव आयोग के रूप में काम करना भी शुरू कर दिया।

भूषण ने कहा कि उन्होंने नियुक्ति के संबंध में अर्जी दी थी और अदालत इस मामले की सुनवाई कर रही थी, फिर भी सरकार ने नियुक्ति कर दी। उन्होंने पूछा कि केंद्र सिर्फ एक दिन में किसी को कैसे नियुक्त कर सकता है, किन प्रक्रियाओं का पालन किया गया है।

शीर्ष अदालत ने मौखिक रूप से कहा कि नियुक्ति का आदेश, मामले की सुनवाई शुरू होने के बाद दिया गया और भूषण ने इस मामले में आवेदन दिया था। शीर्ष अदालत सीईसी और ईसी की नियुक्ति के लिए कॉलेजियम जैसी प्रणाली की मांग करने वाली याचिकाओं पर सुनवाई कर रही थी।

इसके बाद अगले ही दिन 24 नवंबर को शीर्ष अदालत ने कहा कि इतनी जल्दबाजी क्या थी और इतनी तेजी से नियुक्ति क्यों की गई।

न्यायमूर्ति के एम जोसेफ ने दोहराया कि अदालत यस मैन नियुक्त किए जाने के बारे में चिंतित है और पूछा कि कानून मंत्री द्वारा आयु मानदंड के आधार पर सैकड़ों लोगों के डेटा से चार नामों को शॉर्टलिस्ट करने का क्या आधार है।

सुपर फास्ट तरीके से गोयल की नियुक्ति पर सवाल उठाते हुए पीठ ने टिप्पणी की कि 24 घंटे से भी कम समय में प्रक्रिया पूरी कर ली गई।

एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (एडीआर) के सह-संस्थापक प्रोफेसर जगदीप छोकर ने आईएएनएस से बात करते हुए कहा, मामला अदालत में पहुंचने पर अधिकारी को रातोंरात नियुक्त किया गया। कैसे 22 घंटे या 26 घंटे में उनका चयन किया गया और पूरी प्रक्रिया कैसे पूरी की गई, कोई नहीं जानता। दाल में कुछ काला है।

अरुण गोयल की सेवानिवृत्ति 31 दिसंबर, 2022 को होनी थी। हालांकि, चुनाव आयुक्त के रूप में उनकी नियुक्ति के साथ, वह दिसंबर 2027 तक पद पर बने रहेंगे। वह मुख्य चुनाव आयुक्त पद के लिए सबसे संभावित उम्मीदवार भी हैं।

–आईएएनएस

एसकेपी

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नई दिल्ली, 4 दिसंबर (आईएएनएस)। सुप्रीम कोर्ट के केंद्र से सवाल करने या सरकार की खिंचाई करने में कोई आश्चर्य की बात नहीं है, लेकिन हाल ही में जिस तरह से शीर्ष अदालत ने पंजाब कैडर के सेवानिवृत्त आईएएस अधिकारी अरुण गोयल की चुनाव आयुक्त के रूप में नियुक्ति के मामले में सरकार से कड़े सवाल पूछे, इसने कई विवादों को जन्म दे दिया है।

गोयल की नियुक्ति से पहले के घटनाक्रम ने इसे साफ कर दिया है। यह पता चला है कि चुनाव आयुक्त के रूप में नियुक्त होने से एक दिन पहले तक यानि 18 नवंबर को स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति लेने तक, गोयल केंद्रीय भारी उद्योग मंत्रालय में सचिव थे। यह कहा गया है कि भारी उद्योग मंत्रालय के वरिष्ठ अधिकारियों को भी इस बात की जानकारी नहीं थी कि वो चुनाव आयुक्त बनने जा रहे हैं।

इसके बाद अगले दिन 19 नवंबर को अरुण गोयल को चुनाव आयुक्त के रूप में नियुक्त किया गया और उन्होंने दो दिन बाद, 21 नवंबर को ज्वाइन भी कर लिया।

जिस तेजी से उनकी नियुक्ति हुई, उस पर 23 नवंबर को सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र से उनके चयन से संबंधित मूल फाइलें पेश करने को कहा। शीर्ष अदालत ने केंद्र से कहा कि वह अरुण गोयल की चुनाव आयुक्त के रूप में नियुक्ति से संबंधित फाइलों को देखना चाहती है और इस बात पर जोर दिया कि वह यह देखना चाहती है कि किस तरह उन्हें इतनी जल्दबाजी में नियुक्त किया गया।

एक याचिकाकर्ता का प्रतिनिधित्व कर रहे अधिवक्ता प्रशांत भूषण ने गोयल की नियुक्ति का मुद्दा उठाया। भूषण ने कहा कि वह एक सिटिंग सेक्रेटरी हैं; उन्हें शुक्रवार को स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति दी गई और शनिवार को नियुक्ति की गई और सोमवार को उन्होंने चुनाव आयोग के रूप में काम करना भी शुरू कर दिया।

भूषण ने कहा कि उन्होंने नियुक्ति के संबंध में अर्जी दी थी और अदालत इस मामले की सुनवाई कर रही थी, फिर भी सरकार ने नियुक्ति कर दी। उन्होंने पूछा कि केंद्र सिर्फ एक दिन में किसी को कैसे नियुक्त कर सकता है, किन प्रक्रियाओं का पालन किया गया है।

शीर्ष अदालत ने मौखिक रूप से कहा कि नियुक्ति का आदेश, मामले की सुनवाई शुरू होने के बाद दिया गया और भूषण ने इस मामले में आवेदन दिया था। शीर्ष अदालत सीईसी और ईसी की नियुक्ति के लिए कॉलेजियम जैसी प्रणाली की मांग करने वाली याचिकाओं पर सुनवाई कर रही थी।

इसके बाद अगले ही दिन 24 नवंबर को शीर्ष अदालत ने कहा कि इतनी जल्दबाजी क्या थी और इतनी तेजी से नियुक्ति क्यों की गई।

न्यायमूर्ति के एम जोसेफ ने दोहराया कि अदालत यस मैन नियुक्त किए जाने के बारे में चिंतित है और पूछा कि कानून मंत्री द्वारा आयु मानदंड के आधार पर सैकड़ों लोगों के डेटा से चार नामों को शॉर्टलिस्ट करने का क्या आधार है।

सुपर फास्ट तरीके से गोयल की नियुक्ति पर सवाल उठाते हुए पीठ ने टिप्पणी की कि 24 घंटे से भी कम समय में प्रक्रिया पूरी कर ली गई।

एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (एडीआर) के सह-संस्थापक प्रोफेसर जगदीप छोकर ने आईएएनएस से बात करते हुए कहा, मामला अदालत में पहुंचने पर अधिकारी को रातोंरात नियुक्त किया गया। कैसे 22 घंटे या 26 घंटे में उनका चयन किया गया और पूरी प्रक्रिया कैसे पूरी की गई, कोई नहीं जानता। दाल में कुछ काला है।

अरुण गोयल की सेवानिवृत्ति 31 दिसंबर, 2022 को होनी थी। हालांकि, चुनाव आयुक्त के रूप में उनकी नियुक्ति के साथ, वह दिसंबर 2027 तक पद पर बने रहेंगे। वह मुख्य चुनाव आयुक्त पद के लिए सबसे संभावित उम्मीदवार भी हैं।

–आईएएनएस

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गोयल की नियुक्ति से पहले के घटनाक्रम ने इसे साफ कर दिया है। यह पता चला है कि चुनाव आयुक्त के रूप में नियुक्त होने से एक दिन पहले तक यानि 18 नवंबर को स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति लेने तक, गोयल केंद्रीय भारी उद्योग मंत्रालय में सचिव थे। यह कहा गया है कि भारी उद्योग मंत्रालय के वरिष्ठ अधिकारियों को भी इस बात की जानकारी नहीं थी कि वो चुनाव आयुक्त बनने जा रहे हैं।

इसके बाद अगले दिन 19 नवंबर को अरुण गोयल को चुनाव आयुक्त के रूप में नियुक्त किया गया और उन्होंने दो दिन बाद, 21 नवंबर को ज्वाइन भी कर लिया।

जिस तेजी से उनकी नियुक्ति हुई, उस पर 23 नवंबर को सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र से उनके चयन से संबंधित मूल फाइलें पेश करने को कहा। शीर्ष अदालत ने केंद्र से कहा कि वह अरुण गोयल की चुनाव आयुक्त के रूप में नियुक्ति से संबंधित फाइलों को देखना चाहती है और इस बात पर जोर दिया कि वह यह देखना चाहती है कि किस तरह उन्हें इतनी जल्दबाजी में नियुक्त किया गया।

एक याचिकाकर्ता का प्रतिनिधित्व कर रहे अधिवक्ता प्रशांत भूषण ने गोयल की नियुक्ति का मुद्दा उठाया। भूषण ने कहा कि वह एक सिटिंग सेक्रेटरी हैं; उन्हें शुक्रवार को स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति दी गई और शनिवार को नियुक्ति की गई और सोमवार को उन्होंने चुनाव आयोग के रूप में काम करना भी शुरू कर दिया।

भूषण ने कहा कि उन्होंने नियुक्ति के संबंध में अर्जी दी थी और अदालत इस मामले की सुनवाई कर रही थी, फिर भी सरकार ने नियुक्ति कर दी। उन्होंने पूछा कि केंद्र सिर्फ एक दिन में किसी को कैसे नियुक्त कर सकता है, किन प्रक्रियाओं का पालन किया गया है।

शीर्ष अदालत ने मौखिक रूप से कहा कि नियुक्ति का आदेश, मामले की सुनवाई शुरू होने के बाद दिया गया और भूषण ने इस मामले में आवेदन दिया था। शीर्ष अदालत सीईसी और ईसी की नियुक्ति के लिए कॉलेजियम जैसी प्रणाली की मांग करने वाली याचिकाओं पर सुनवाई कर रही थी।

इसके बाद अगले ही दिन 24 नवंबर को शीर्ष अदालत ने कहा कि इतनी जल्दबाजी क्या थी और इतनी तेजी से नियुक्ति क्यों की गई।

न्यायमूर्ति के एम जोसेफ ने दोहराया कि अदालत यस मैन नियुक्त किए जाने के बारे में चिंतित है और पूछा कि कानून मंत्री द्वारा आयु मानदंड के आधार पर सैकड़ों लोगों के डेटा से चार नामों को शॉर्टलिस्ट करने का क्या आधार है।

सुपर फास्ट तरीके से गोयल की नियुक्ति पर सवाल उठाते हुए पीठ ने टिप्पणी की कि 24 घंटे से भी कम समय में प्रक्रिया पूरी कर ली गई।

एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (एडीआर) के सह-संस्थापक प्रोफेसर जगदीप छोकर ने आईएएनएस से बात करते हुए कहा, मामला अदालत में पहुंचने पर अधिकारी को रातोंरात नियुक्त किया गया। कैसे 22 घंटे या 26 घंटे में उनका चयन किया गया और पूरी प्रक्रिया कैसे पूरी की गई, कोई नहीं जानता। दाल में कुछ काला है।

अरुण गोयल की सेवानिवृत्ति 31 दिसंबर, 2022 को होनी थी। हालांकि, चुनाव आयुक्त के रूप में उनकी नियुक्ति के साथ, वह दिसंबर 2027 तक पद पर बने रहेंगे। वह मुख्य चुनाव आयुक्त पद के लिए सबसे संभावित उम्मीदवार भी हैं।

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गोयल की नियुक्ति से पहले के घटनाक्रम ने इसे साफ कर दिया है। यह पता चला है कि चुनाव आयुक्त के रूप में नियुक्त होने से एक दिन पहले तक यानि 18 नवंबर को स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति लेने तक, गोयल केंद्रीय भारी उद्योग मंत्रालय में सचिव थे। यह कहा गया है कि भारी उद्योग मंत्रालय के वरिष्ठ अधिकारियों को भी इस बात की जानकारी नहीं थी कि वो चुनाव आयुक्त बनने जा रहे हैं।

इसके बाद अगले दिन 19 नवंबर को अरुण गोयल को चुनाव आयुक्त के रूप में नियुक्त किया गया और उन्होंने दो दिन बाद, 21 नवंबर को ज्वाइन भी कर लिया।

जिस तेजी से उनकी नियुक्ति हुई, उस पर 23 नवंबर को सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र से उनके चयन से संबंधित मूल फाइलें पेश करने को कहा। शीर्ष अदालत ने केंद्र से कहा कि वह अरुण गोयल की चुनाव आयुक्त के रूप में नियुक्ति से संबंधित फाइलों को देखना चाहती है और इस बात पर जोर दिया कि वह यह देखना चाहती है कि किस तरह उन्हें इतनी जल्दबाजी में नियुक्त किया गया।

एक याचिकाकर्ता का प्रतिनिधित्व कर रहे अधिवक्ता प्रशांत भूषण ने गोयल की नियुक्ति का मुद्दा उठाया। भूषण ने कहा कि वह एक सिटिंग सेक्रेटरी हैं; उन्हें शुक्रवार को स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति दी गई और शनिवार को नियुक्ति की गई और सोमवार को उन्होंने चुनाव आयोग के रूप में काम करना भी शुरू कर दिया।

भूषण ने कहा कि उन्होंने नियुक्ति के संबंध में अर्जी दी थी और अदालत इस मामले की सुनवाई कर रही थी, फिर भी सरकार ने नियुक्ति कर दी। उन्होंने पूछा कि केंद्र सिर्फ एक दिन में किसी को कैसे नियुक्त कर सकता है, किन प्रक्रियाओं का पालन किया गया है।

शीर्ष अदालत ने मौखिक रूप से कहा कि नियुक्ति का आदेश, मामले की सुनवाई शुरू होने के बाद दिया गया और भूषण ने इस मामले में आवेदन दिया था। शीर्ष अदालत सीईसी और ईसी की नियुक्ति के लिए कॉलेजियम जैसी प्रणाली की मांग करने वाली याचिकाओं पर सुनवाई कर रही थी।

इसके बाद अगले ही दिन 24 नवंबर को शीर्ष अदालत ने कहा कि इतनी जल्दबाजी क्या थी और इतनी तेजी से नियुक्ति क्यों की गई।

न्यायमूर्ति के एम जोसेफ ने दोहराया कि अदालत यस मैन नियुक्त किए जाने के बारे में चिंतित है और पूछा कि कानून मंत्री द्वारा आयु मानदंड के आधार पर सैकड़ों लोगों के डेटा से चार नामों को शॉर्टलिस्ट करने का क्या आधार है।

सुपर फास्ट तरीके से गोयल की नियुक्ति पर सवाल उठाते हुए पीठ ने टिप्पणी की कि 24 घंटे से भी कम समय में प्रक्रिया पूरी कर ली गई।

एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (एडीआर) के सह-संस्थापक प्रोफेसर जगदीप छोकर ने आईएएनएस से बात करते हुए कहा, मामला अदालत में पहुंचने पर अधिकारी को रातोंरात नियुक्त किया गया। कैसे 22 घंटे या 26 घंटे में उनका चयन किया गया और पूरी प्रक्रिया कैसे पूरी की गई, कोई नहीं जानता। दाल में कुछ काला है।

अरुण गोयल की सेवानिवृत्ति 31 दिसंबर, 2022 को होनी थी। हालांकि, चुनाव आयुक्त के रूप में उनकी नियुक्ति के साथ, वह दिसंबर 2027 तक पद पर बने रहेंगे। वह मुख्य चुनाव आयुक्त पद के लिए सबसे संभावित उम्मीदवार भी हैं।

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गोयल की नियुक्ति से पहले के घटनाक्रम ने इसे साफ कर दिया है। यह पता चला है कि चुनाव आयुक्त के रूप में नियुक्त होने से एक दिन पहले तक यानि 18 नवंबर को स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति लेने तक, गोयल केंद्रीय भारी उद्योग मंत्रालय में सचिव थे। यह कहा गया है कि भारी उद्योग मंत्रालय के वरिष्ठ अधिकारियों को भी इस बात की जानकारी नहीं थी कि वो चुनाव आयुक्त बनने जा रहे हैं।

इसके बाद अगले दिन 19 नवंबर को अरुण गोयल को चुनाव आयुक्त के रूप में नियुक्त किया गया और उन्होंने दो दिन बाद, 21 नवंबर को ज्वाइन भी कर लिया।

जिस तेजी से उनकी नियुक्ति हुई, उस पर 23 नवंबर को सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र से उनके चयन से संबंधित मूल फाइलें पेश करने को कहा। शीर्ष अदालत ने केंद्र से कहा कि वह अरुण गोयल की चुनाव आयुक्त के रूप में नियुक्ति से संबंधित फाइलों को देखना चाहती है और इस बात पर जोर दिया कि वह यह देखना चाहती है कि किस तरह उन्हें इतनी जल्दबाजी में नियुक्त किया गया।

एक याचिकाकर्ता का प्रतिनिधित्व कर रहे अधिवक्ता प्रशांत भूषण ने गोयल की नियुक्ति का मुद्दा उठाया। भूषण ने कहा कि वह एक सिटिंग सेक्रेटरी हैं; उन्हें शुक्रवार को स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति दी गई और शनिवार को नियुक्ति की गई और सोमवार को उन्होंने चुनाव आयोग के रूप में काम करना भी शुरू कर दिया।

भूषण ने कहा कि उन्होंने नियुक्ति के संबंध में अर्जी दी थी और अदालत इस मामले की सुनवाई कर रही थी, फिर भी सरकार ने नियुक्ति कर दी। उन्होंने पूछा कि केंद्र सिर्फ एक दिन में किसी को कैसे नियुक्त कर सकता है, किन प्रक्रियाओं का पालन किया गया है।

शीर्ष अदालत ने मौखिक रूप से कहा कि नियुक्ति का आदेश, मामले की सुनवाई शुरू होने के बाद दिया गया और भूषण ने इस मामले में आवेदन दिया था। शीर्ष अदालत सीईसी और ईसी की नियुक्ति के लिए कॉलेजियम जैसी प्रणाली की मांग करने वाली याचिकाओं पर सुनवाई कर रही थी।

इसके बाद अगले ही दिन 24 नवंबर को शीर्ष अदालत ने कहा कि इतनी जल्दबाजी क्या थी और इतनी तेजी से नियुक्ति क्यों की गई।

न्यायमूर्ति के एम जोसेफ ने दोहराया कि अदालत यस मैन नियुक्त किए जाने के बारे में चिंतित है और पूछा कि कानून मंत्री द्वारा आयु मानदंड के आधार पर सैकड़ों लोगों के डेटा से चार नामों को शॉर्टलिस्ट करने का क्या आधार है।

सुपर फास्ट तरीके से गोयल की नियुक्ति पर सवाल उठाते हुए पीठ ने टिप्पणी की कि 24 घंटे से भी कम समय में प्रक्रिया पूरी कर ली गई।

एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (एडीआर) के सह-संस्थापक प्रोफेसर जगदीप छोकर ने आईएएनएस से बात करते हुए कहा, मामला अदालत में पहुंचने पर अधिकारी को रातोंरात नियुक्त किया गया। कैसे 22 घंटे या 26 घंटे में उनका चयन किया गया और पूरी प्रक्रिया कैसे पूरी की गई, कोई नहीं जानता। दाल में कुछ काला है।

अरुण गोयल की सेवानिवृत्ति 31 दिसंबर, 2022 को होनी थी। हालांकि, चुनाव आयुक्त के रूप में उनकी नियुक्ति के साथ, वह दिसंबर 2027 तक पद पर बने रहेंगे। वह मुख्य चुनाव आयुक्त पद के लिए सबसे संभावित उम्मीदवार भी हैं।

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गोयल की नियुक्ति से पहले के घटनाक्रम ने इसे साफ कर दिया है। यह पता चला है कि चुनाव आयुक्त के रूप में नियुक्त होने से एक दिन पहले तक यानि 18 नवंबर को स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति लेने तक, गोयल केंद्रीय भारी उद्योग मंत्रालय में सचिव थे। यह कहा गया है कि भारी उद्योग मंत्रालय के वरिष्ठ अधिकारियों को भी इस बात की जानकारी नहीं थी कि वो चुनाव आयुक्त बनने जा रहे हैं।

इसके बाद अगले दिन 19 नवंबर को अरुण गोयल को चुनाव आयुक्त के रूप में नियुक्त किया गया और उन्होंने दो दिन बाद, 21 नवंबर को ज्वाइन भी कर लिया।

जिस तेजी से उनकी नियुक्ति हुई, उस पर 23 नवंबर को सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र से उनके चयन से संबंधित मूल फाइलें पेश करने को कहा। शीर्ष अदालत ने केंद्र से कहा कि वह अरुण गोयल की चुनाव आयुक्त के रूप में नियुक्ति से संबंधित फाइलों को देखना चाहती है और इस बात पर जोर दिया कि वह यह देखना चाहती है कि किस तरह उन्हें इतनी जल्दबाजी में नियुक्त किया गया।

एक याचिकाकर्ता का प्रतिनिधित्व कर रहे अधिवक्ता प्रशांत भूषण ने गोयल की नियुक्ति का मुद्दा उठाया। भूषण ने कहा कि वह एक सिटिंग सेक्रेटरी हैं; उन्हें शुक्रवार को स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति दी गई और शनिवार को नियुक्ति की गई और सोमवार को उन्होंने चुनाव आयोग के रूप में काम करना भी शुरू कर दिया।

भूषण ने कहा कि उन्होंने नियुक्ति के संबंध में अर्जी दी थी और अदालत इस मामले की सुनवाई कर रही थी, फिर भी सरकार ने नियुक्ति कर दी। उन्होंने पूछा कि केंद्र सिर्फ एक दिन में किसी को कैसे नियुक्त कर सकता है, किन प्रक्रियाओं का पालन किया गया है।

शीर्ष अदालत ने मौखिक रूप से कहा कि नियुक्ति का आदेश, मामले की सुनवाई शुरू होने के बाद दिया गया और भूषण ने इस मामले में आवेदन दिया था। शीर्ष अदालत सीईसी और ईसी की नियुक्ति के लिए कॉलेजियम जैसी प्रणाली की मांग करने वाली याचिकाओं पर सुनवाई कर रही थी।

इसके बाद अगले ही दिन 24 नवंबर को शीर्ष अदालत ने कहा कि इतनी जल्दबाजी क्या थी और इतनी तेजी से नियुक्ति क्यों की गई।

न्यायमूर्ति के एम जोसेफ ने दोहराया कि अदालत यस मैन नियुक्त किए जाने के बारे में चिंतित है और पूछा कि कानून मंत्री द्वारा आयु मानदंड के आधार पर सैकड़ों लोगों के डेटा से चार नामों को शॉर्टलिस्ट करने का क्या आधार है।

सुपर फास्ट तरीके से गोयल की नियुक्ति पर सवाल उठाते हुए पीठ ने टिप्पणी की कि 24 घंटे से भी कम समय में प्रक्रिया पूरी कर ली गई।

एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (एडीआर) के सह-संस्थापक प्रोफेसर जगदीप छोकर ने आईएएनएस से बात करते हुए कहा, मामला अदालत में पहुंचने पर अधिकारी को रातोंरात नियुक्त किया गया। कैसे 22 घंटे या 26 घंटे में उनका चयन किया गया और पूरी प्रक्रिया कैसे पूरी की गई, कोई नहीं जानता। दाल में कुछ काला है।

अरुण गोयल की सेवानिवृत्ति 31 दिसंबर, 2022 को होनी थी। हालांकि, चुनाव आयुक्त के रूप में उनकी नियुक्ति के साथ, वह दिसंबर 2027 तक पद पर बने रहेंगे। वह मुख्य चुनाव आयुक्त पद के लिए सबसे संभावित उम्मीदवार भी हैं।

–आईएएनएस

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नई दिल्ली, 4 दिसंबर (आईएएनएस)। सुप्रीम कोर्ट के केंद्र से सवाल करने या सरकार की खिंचाई करने में कोई आश्चर्य की बात नहीं है, लेकिन हाल ही में जिस तरह से शीर्ष अदालत ने पंजाब कैडर के सेवानिवृत्त आईएएस अधिकारी अरुण गोयल की चुनाव आयुक्त के रूप में नियुक्ति के मामले में सरकार से कड़े सवाल पूछे, इसने कई विवादों को जन्म दे दिया है।

गोयल की नियुक्ति से पहले के घटनाक्रम ने इसे साफ कर दिया है। यह पता चला है कि चुनाव आयुक्त के रूप में नियुक्त होने से एक दिन पहले तक यानि 18 नवंबर को स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति लेने तक, गोयल केंद्रीय भारी उद्योग मंत्रालय में सचिव थे। यह कहा गया है कि भारी उद्योग मंत्रालय के वरिष्ठ अधिकारियों को भी इस बात की जानकारी नहीं थी कि वो चुनाव आयुक्त बनने जा रहे हैं।

इसके बाद अगले दिन 19 नवंबर को अरुण गोयल को चुनाव आयुक्त के रूप में नियुक्त किया गया और उन्होंने दो दिन बाद, 21 नवंबर को ज्वाइन भी कर लिया।

जिस तेजी से उनकी नियुक्ति हुई, उस पर 23 नवंबर को सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र से उनके चयन से संबंधित मूल फाइलें पेश करने को कहा। शीर्ष अदालत ने केंद्र से कहा कि वह अरुण गोयल की चुनाव आयुक्त के रूप में नियुक्ति से संबंधित फाइलों को देखना चाहती है और इस बात पर जोर दिया कि वह यह देखना चाहती है कि किस तरह उन्हें इतनी जल्दबाजी में नियुक्त किया गया।

एक याचिकाकर्ता का प्रतिनिधित्व कर रहे अधिवक्ता प्रशांत भूषण ने गोयल की नियुक्ति का मुद्दा उठाया। भूषण ने कहा कि वह एक सिटिंग सेक्रेटरी हैं; उन्हें शुक्रवार को स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति दी गई और शनिवार को नियुक्ति की गई और सोमवार को उन्होंने चुनाव आयोग के रूप में काम करना भी शुरू कर दिया।

भूषण ने कहा कि उन्होंने नियुक्ति के संबंध में अर्जी दी थी और अदालत इस मामले की सुनवाई कर रही थी, फिर भी सरकार ने नियुक्ति कर दी। उन्होंने पूछा कि केंद्र सिर्फ एक दिन में किसी को कैसे नियुक्त कर सकता है, किन प्रक्रियाओं का पालन किया गया है।

शीर्ष अदालत ने मौखिक रूप से कहा कि नियुक्ति का आदेश, मामले की सुनवाई शुरू होने के बाद दिया गया और भूषण ने इस मामले में आवेदन दिया था। शीर्ष अदालत सीईसी और ईसी की नियुक्ति के लिए कॉलेजियम जैसी प्रणाली की मांग करने वाली याचिकाओं पर सुनवाई कर रही थी।

इसके बाद अगले ही दिन 24 नवंबर को शीर्ष अदालत ने कहा कि इतनी जल्दबाजी क्या थी और इतनी तेजी से नियुक्ति क्यों की गई।

न्यायमूर्ति के एम जोसेफ ने दोहराया कि अदालत यस मैन नियुक्त किए जाने के बारे में चिंतित है और पूछा कि कानून मंत्री द्वारा आयु मानदंड के आधार पर सैकड़ों लोगों के डेटा से चार नामों को शॉर्टलिस्ट करने का क्या आधार है।

सुपर फास्ट तरीके से गोयल की नियुक्ति पर सवाल उठाते हुए पीठ ने टिप्पणी की कि 24 घंटे से भी कम समय में प्रक्रिया पूरी कर ली गई।

एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (एडीआर) के सह-संस्थापक प्रोफेसर जगदीप छोकर ने आईएएनएस से बात करते हुए कहा, मामला अदालत में पहुंचने पर अधिकारी को रातोंरात नियुक्त किया गया। कैसे 22 घंटे या 26 घंटे में उनका चयन किया गया और पूरी प्रक्रिया कैसे पूरी की गई, कोई नहीं जानता। दाल में कुछ काला है।

अरुण गोयल की सेवानिवृत्ति 31 दिसंबर, 2022 को होनी थी। हालांकि, चुनाव आयुक्त के रूप में उनकी नियुक्ति के साथ, वह दिसंबर 2027 तक पद पर बने रहेंगे। वह मुख्य चुनाव आयुक्त पद के लिए सबसे संभावित उम्मीदवार भी हैं।

–आईएएनएस

एसकेपी

नई दिल्ली, 4 दिसंबर (आईएएनएस)। सुप्रीम कोर्ट के केंद्र से सवाल करने या सरकार की खिंचाई करने में कोई आश्चर्य की बात नहीं है, लेकिन हाल ही में जिस तरह से शीर्ष अदालत ने पंजाब कैडर के सेवानिवृत्त आईएएस अधिकारी अरुण गोयल की चुनाव आयुक्त के रूप में नियुक्ति के मामले में सरकार से कड़े सवाल पूछे, इसने कई विवादों को जन्म दे दिया है।

गोयल की नियुक्ति से पहले के घटनाक्रम ने इसे साफ कर दिया है। यह पता चला है कि चुनाव आयुक्त के रूप में नियुक्त होने से एक दिन पहले तक यानि 18 नवंबर को स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति लेने तक, गोयल केंद्रीय भारी उद्योग मंत्रालय में सचिव थे। यह कहा गया है कि भारी उद्योग मंत्रालय के वरिष्ठ अधिकारियों को भी इस बात की जानकारी नहीं थी कि वो चुनाव आयुक्त बनने जा रहे हैं।

इसके बाद अगले दिन 19 नवंबर को अरुण गोयल को चुनाव आयुक्त के रूप में नियुक्त किया गया और उन्होंने दो दिन बाद, 21 नवंबर को ज्वाइन भी कर लिया।

जिस तेजी से उनकी नियुक्ति हुई, उस पर 23 नवंबर को सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र से उनके चयन से संबंधित मूल फाइलें पेश करने को कहा। शीर्ष अदालत ने केंद्र से कहा कि वह अरुण गोयल की चुनाव आयुक्त के रूप में नियुक्ति से संबंधित फाइलों को देखना चाहती है और इस बात पर जोर दिया कि वह यह देखना चाहती है कि किस तरह उन्हें इतनी जल्दबाजी में नियुक्त किया गया।

एक याचिकाकर्ता का प्रतिनिधित्व कर रहे अधिवक्ता प्रशांत भूषण ने गोयल की नियुक्ति का मुद्दा उठाया। भूषण ने कहा कि वह एक सिटिंग सेक्रेटरी हैं; उन्हें शुक्रवार को स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति दी गई और शनिवार को नियुक्ति की गई और सोमवार को उन्होंने चुनाव आयोग के रूप में काम करना भी शुरू कर दिया।

भूषण ने कहा कि उन्होंने नियुक्ति के संबंध में अर्जी दी थी और अदालत इस मामले की सुनवाई कर रही थी, फिर भी सरकार ने नियुक्ति कर दी। उन्होंने पूछा कि केंद्र सिर्फ एक दिन में किसी को कैसे नियुक्त कर सकता है, किन प्रक्रियाओं का पालन किया गया है।

शीर्ष अदालत ने मौखिक रूप से कहा कि नियुक्ति का आदेश, मामले की सुनवाई शुरू होने के बाद दिया गया और भूषण ने इस मामले में आवेदन दिया था। शीर्ष अदालत सीईसी और ईसी की नियुक्ति के लिए कॉलेजियम जैसी प्रणाली की मांग करने वाली याचिकाओं पर सुनवाई कर रही थी।

इसके बाद अगले ही दिन 24 नवंबर को शीर्ष अदालत ने कहा कि इतनी जल्दबाजी क्या थी और इतनी तेजी से नियुक्ति क्यों की गई।

न्यायमूर्ति के एम जोसेफ ने दोहराया कि अदालत यस मैन नियुक्त किए जाने के बारे में चिंतित है और पूछा कि कानून मंत्री द्वारा आयु मानदंड के आधार पर सैकड़ों लोगों के डेटा से चार नामों को शॉर्टलिस्ट करने का क्या आधार है।

सुपर फास्ट तरीके से गोयल की नियुक्ति पर सवाल उठाते हुए पीठ ने टिप्पणी की कि 24 घंटे से भी कम समय में प्रक्रिया पूरी कर ली गई।

एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (एडीआर) के सह-संस्थापक प्रोफेसर जगदीप छोकर ने आईएएनएस से बात करते हुए कहा, मामला अदालत में पहुंचने पर अधिकारी को रातोंरात नियुक्त किया गया। कैसे 22 घंटे या 26 घंटे में उनका चयन किया गया और पूरी प्रक्रिया कैसे पूरी की गई, कोई नहीं जानता। दाल में कुछ काला है।

अरुण गोयल की सेवानिवृत्ति 31 दिसंबर, 2022 को होनी थी। हालांकि, चुनाव आयुक्त के रूप में उनकी नियुक्ति के साथ, वह दिसंबर 2027 तक पद पर बने रहेंगे। वह मुख्य चुनाव आयुक्त पद के लिए सबसे संभावित उम्मीदवार भी हैं।

–आईएएनएस

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नई दिल्ली, 4 दिसंबर (आईएएनएस)। सुप्रीम कोर्ट के केंद्र से सवाल करने या सरकार की खिंचाई करने में कोई आश्चर्य की बात नहीं है, लेकिन हाल ही में जिस तरह से शीर्ष अदालत ने पंजाब कैडर के सेवानिवृत्त आईएएस अधिकारी अरुण गोयल की चुनाव आयुक्त के रूप में नियुक्ति के मामले में सरकार से कड़े सवाल पूछे, इसने कई विवादों को जन्म दे दिया है।

गोयल की नियुक्ति से पहले के घटनाक्रम ने इसे साफ कर दिया है। यह पता चला है कि चुनाव आयुक्त के रूप में नियुक्त होने से एक दिन पहले तक यानि 18 नवंबर को स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति लेने तक, गोयल केंद्रीय भारी उद्योग मंत्रालय में सचिव थे। यह कहा गया है कि भारी उद्योग मंत्रालय के वरिष्ठ अधिकारियों को भी इस बात की जानकारी नहीं थी कि वो चुनाव आयुक्त बनने जा रहे हैं।

इसके बाद अगले दिन 19 नवंबर को अरुण गोयल को चुनाव आयुक्त के रूप में नियुक्त किया गया और उन्होंने दो दिन बाद, 21 नवंबर को ज्वाइन भी कर लिया।

जिस तेजी से उनकी नियुक्ति हुई, उस पर 23 नवंबर को सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र से उनके चयन से संबंधित मूल फाइलें पेश करने को कहा। शीर्ष अदालत ने केंद्र से कहा कि वह अरुण गोयल की चुनाव आयुक्त के रूप में नियुक्ति से संबंधित फाइलों को देखना चाहती है और इस बात पर जोर दिया कि वह यह देखना चाहती है कि किस तरह उन्हें इतनी जल्दबाजी में नियुक्त किया गया।

एक याचिकाकर्ता का प्रतिनिधित्व कर रहे अधिवक्ता प्रशांत भूषण ने गोयल की नियुक्ति का मुद्दा उठाया। भूषण ने कहा कि वह एक सिटिंग सेक्रेटरी हैं; उन्हें शुक्रवार को स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति दी गई और शनिवार को नियुक्ति की गई और सोमवार को उन्होंने चुनाव आयोग के रूप में काम करना भी शुरू कर दिया।

भूषण ने कहा कि उन्होंने नियुक्ति के संबंध में अर्जी दी थी और अदालत इस मामले की सुनवाई कर रही थी, फिर भी सरकार ने नियुक्ति कर दी। उन्होंने पूछा कि केंद्र सिर्फ एक दिन में किसी को कैसे नियुक्त कर सकता है, किन प्रक्रियाओं का पालन किया गया है।

शीर्ष अदालत ने मौखिक रूप से कहा कि नियुक्ति का आदेश, मामले की सुनवाई शुरू होने के बाद दिया गया और भूषण ने इस मामले में आवेदन दिया था। शीर्ष अदालत सीईसी और ईसी की नियुक्ति के लिए कॉलेजियम जैसी प्रणाली की मांग करने वाली याचिकाओं पर सुनवाई कर रही थी।

इसके बाद अगले ही दिन 24 नवंबर को शीर्ष अदालत ने कहा कि इतनी जल्दबाजी क्या थी और इतनी तेजी से नियुक्ति क्यों की गई।

न्यायमूर्ति के एम जोसेफ ने दोहराया कि अदालत यस मैन नियुक्त किए जाने के बारे में चिंतित है और पूछा कि कानून मंत्री द्वारा आयु मानदंड के आधार पर सैकड़ों लोगों के डेटा से चार नामों को शॉर्टलिस्ट करने का क्या आधार है।

सुपर फास्ट तरीके से गोयल की नियुक्ति पर सवाल उठाते हुए पीठ ने टिप्पणी की कि 24 घंटे से भी कम समय में प्रक्रिया पूरी कर ली गई।

एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (एडीआर) के सह-संस्थापक प्रोफेसर जगदीप छोकर ने आईएएनएस से बात करते हुए कहा, मामला अदालत में पहुंचने पर अधिकारी को रातोंरात नियुक्त किया गया। कैसे 22 घंटे या 26 घंटे में उनका चयन किया गया और पूरी प्रक्रिया कैसे पूरी की गई, कोई नहीं जानता। दाल में कुछ काला है।

अरुण गोयल की सेवानिवृत्ति 31 दिसंबर, 2022 को होनी थी। हालांकि, चुनाव आयुक्त के रूप में उनकी नियुक्ति के साथ, वह दिसंबर 2027 तक पद पर बने रहेंगे। वह मुख्य चुनाव आयुक्त पद के लिए सबसे संभावित उम्मीदवार भी हैं।

–आईएएनएस

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नई दिल्ली, 4 दिसंबर (आईएएनएस)। सुप्रीम कोर्ट के केंद्र से सवाल करने या सरकार की खिंचाई करने में कोई आश्चर्य की बात नहीं है, लेकिन हाल ही में जिस तरह से शीर्ष अदालत ने पंजाब कैडर के सेवानिवृत्त आईएएस अधिकारी अरुण गोयल की चुनाव आयुक्त के रूप में नियुक्ति के मामले में सरकार से कड़े सवाल पूछे, इसने कई विवादों को जन्म दे दिया है।

गोयल की नियुक्ति से पहले के घटनाक्रम ने इसे साफ कर दिया है। यह पता चला है कि चुनाव आयुक्त के रूप में नियुक्त होने से एक दिन पहले तक यानि 18 नवंबर को स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति लेने तक, गोयल केंद्रीय भारी उद्योग मंत्रालय में सचिव थे। यह कहा गया है कि भारी उद्योग मंत्रालय के वरिष्ठ अधिकारियों को भी इस बात की जानकारी नहीं थी कि वो चुनाव आयुक्त बनने जा रहे हैं।

इसके बाद अगले दिन 19 नवंबर को अरुण गोयल को चुनाव आयुक्त के रूप में नियुक्त किया गया और उन्होंने दो दिन बाद, 21 नवंबर को ज्वाइन भी कर लिया।

जिस तेजी से उनकी नियुक्ति हुई, उस पर 23 नवंबर को सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र से उनके चयन से संबंधित मूल फाइलें पेश करने को कहा। शीर्ष अदालत ने केंद्र से कहा कि वह अरुण गोयल की चुनाव आयुक्त के रूप में नियुक्ति से संबंधित फाइलों को देखना चाहती है और इस बात पर जोर दिया कि वह यह देखना चाहती है कि किस तरह उन्हें इतनी जल्दबाजी में नियुक्त किया गया।

एक याचिकाकर्ता का प्रतिनिधित्व कर रहे अधिवक्ता प्रशांत भूषण ने गोयल की नियुक्ति का मुद्दा उठाया। भूषण ने कहा कि वह एक सिटिंग सेक्रेटरी हैं; उन्हें शुक्रवार को स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति दी गई और शनिवार को नियुक्ति की गई और सोमवार को उन्होंने चुनाव आयोग के रूप में काम करना भी शुरू कर दिया।

भूषण ने कहा कि उन्होंने नियुक्ति के संबंध में अर्जी दी थी और अदालत इस मामले की सुनवाई कर रही थी, फिर भी सरकार ने नियुक्ति कर दी। उन्होंने पूछा कि केंद्र सिर्फ एक दिन में किसी को कैसे नियुक्त कर सकता है, किन प्रक्रियाओं का पालन किया गया है।

शीर्ष अदालत ने मौखिक रूप से कहा कि नियुक्ति का आदेश, मामले की सुनवाई शुरू होने के बाद दिया गया और भूषण ने इस मामले में आवेदन दिया था। शीर्ष अदालत सीईसी और ईसी की नियुक्ति के लिए कॉलेजियम जैसी प्रणाली की मांग करने वाली याचिकाओं पर सुनवाई कर रही थी।

इसके बाद अगले ही दिन 24 नवंबर को शीर्ष अदालत ने कहा कि इतनी जल्दबाजी क्या थी और इतनी तेजी से नियुक्ति क्यों की गई।

न्यायमूर्ति के एम जोसेफ ने दोहराया कि अदालत यस मैन नियुक्त किए जाने के बारे में चिंतित है और पूछा कि कानून मंत्री द्वारा आयु मानदंड के आधार पर सैकड़ों लोगों के डेटा से चार नामों को शॉर्टलिस्ट करने का क्या आधार है।

सुपर फास्ट तरीके से गोयल की नियुक्ति पर सवाल उठाते हुए पीठ ने टिप्पणी की कि 24 घंटे से भी कम समय में प्रक्रिया पूरी कर ली गई।

एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (एडीआर) के सह-संस्थापक प्रोफेसर जगदीप छोकर ने आईएएनएस से बात करते हुए कहा, मामला अदालत में पहुंचने पर अधिकारी को रातोंरात नियुक्त किया गया। कैसे 22 घंटे या 26 घंटे में उनका चयन किया गया और पूरी प्रक्रिया कैसे पूरी की गई, कोई नहीं जानता। दाल में कुछ काला है।

अरुण गोयल की सेवानिवृत्ति 31 दिसंबर, 2022 को होनी थी। हालांकि, चुनाव आयुक्त के रूप में उनकी नियुक्ति के साथ, वह दिसंबर 2027 तक पद पर बने रहेंगे। वह मुख्य चुनाव आयुक्त पद के लिए सबसे संभावित उम्मीदवार भी हैं।

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नई दिल्ली, 4 दिसंबर (आईएएनएस)। सुप्रीम कोर्ट के केंद्र से सवाल करने या सरकार की खिंचाई करने में कोई आश्चर्य की बात नहीं है, लेकिन हाल ही में जिस तरह से शीर्ष अदालत ने पंजाब कैडर के सेवानिवृत्त आईएएस अधिकारी अरुण गोयल की चुनाव आयुक्त के रूप में नियुक्ति के मामले में सरकार से कड़े सवाल पूछे, इसने कई विवादों को जन्म दे दिया है।

गोयल की नियुक्ति से पहले के घटनाक्रम ने इसे साफ कर दिया है। यह पता चला है कि चुनाव आयुक्त के रूप में नियुक्त होने से एक दिन पहले तक यानि 18 नवंबर को स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति लेने तक, गोयल केंद्रीय भारी उद्योग मंत्रालय में सचिव थे। यह कहा गया है कि भारी उद्योग मंत्रालय के वरिष्ठ अधिकारियों को भी इस बात की जानकारी नहीं थी कि वो चुनाव आयुक्त बनने जा रहे हैं।

इसके बाद अगले दिन 19 नवंबर को अरुण गोयल को चुनाव आयुक्त के रूप में नियुक्त किया गया और उन्होंने दो दिन बाद, 21 नवंबर को ज्वाइन भी कर लिया।

जिस तेजी से उनकी नियुक्ति हुई, उस पर 23 नवंबर को सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र से उनके चयन से संबंधित मूल फाइलें पेश करने को कहा। शीर्ष अदालत ने केंद्र से कहा कि वह अरुण गोयल की चुनाव आयुक्त के रूप में नियुक्ति से संबंधित फाइलों को देखना चाहती है और इस बात पर जोर दिया कि वह यह देखना चाहती है कि किस तरह उन्हें इतनी जल्दबाजी में नियुक्त किया गया।

एक याचिकाकर्ता का प्रतिनिधित्व कर रहे अधिवक्ता प्रशांत भूषण ने गोयल की नियुक्ति का मुद्दा उठाया। भूषण ने कहा कि वह एक सिटिंग सेक्रेटरी हैं; उन्हें शुक्रवार को स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति दी गई और शनिवार को नियुक्ति की गई और सोमवार को उन्होंने चुनाव आयोग के रूप में काम करना भी शुरू कर दिया।

भूषण ने कहा कि उन्होंने नियुक्ति के संबंध में अर्जी दी थी और अदालत इस मामले की सुनवाई कर रही थी, फिर भी सरकार ने नियुक्ति कर दी। उन्होंने पूछा कि केंद्र सिर्फ एक दिन में किसी को कैसे नियुक्त कर सकता है, किन प्रक्रियाओं का पालन किया गया है।

शीर्ष अदालत ने मौखिक रूप से कहा कि नियुक्ति का आदेश, मामले की सुनवाई शुरू होने के बाद दिया गया और भूषण ने इस मामले में आवेदन दिया था। शीर्ष अदालत सीईसी और ईसी की नियुक्ति के लिए कॉलेजियम जैसी प्रणाली की मांग करने वाली याचिकाओं पर सुनवाई कर रही थी।

इसके बाद अगले ही दिन 24 नवंबर को शीर्ष अदालत ने कहा कि इतनी जल्दबाजी क्या थी और इतनी तेजी से नियुक्ति क्यों की गई।

न्यायमूर्ति के एम जोसेफ ने दोहराया कि अदालत यस मैन नियुक्त किए जाने के बारे में चिंतित है और पूछा कि कानून मंत्री द्वारा आयु मानदंड के आधार पर सैकड़ों लोगों के डेटा से चार नामों को शॉर्टलिस्ट करने का क्या आधार है।

सुपर फास्ट तरीके से गोयल की नियुक्ति पर सवाल उठाते हुए पीठ ने टिप्पणी की कि 24 घंटे से भी कम समय में प्रक्रिया पूरी कर ली गई।

एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (एडीआर) के सह-संस्थापक प्रोफेसर जगदीप छोकर ने आईएएनएस से बात करते हुए कहा, मामला अदालत में पहुंचने पर अधिकारी को रातोंरात नियुक्त किया गया। कैसे 22 घंटे या 26 घंटे में उनका चयन किया गया और पूरी प्रक्रिया कैसे पूरी की गई, कोई नहीं जानता। दाल में कुछ काला है।

अरुण गोयल की सेवानिवृत्ति 31 दिसंबर, 2022 को होनी थी। हालांकि, चुनाव आयुक्त के रूप में उनकी नियुक्ति के साथ, वह दिसंबर 2027 तक पद पर बने रहेंगे। वह मुख्य चुनाव आयुक्त पद के लिए सबसे संभावित उम्मीदवार भी हैं।

–आईएएनएस

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गोयल की नियुक्ति से पहले के घटनाक्रम ने इसे साफ कर दिया है। यह पता चला है कि चुनाव आयुक्त के रूप में नियुक्त होने से एक दिन पहले तक यानि 18 नवंबर को स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति लेने तक, गोयल केंद्रीय भारी उद्योग मंत्रालय में सचिव थे। यह कहा गया है कि भारी उद्योग मंत्रालय के वरिष्ठ अधिकारियों को भी इस बात की जानकारी नहीं थी कि वो चुनाव आयुक्त बनने जा रहे हैं।

इसके बाद अगले दिन 19 नवंबर को अरुण गोयल को चुनाव आयुक्त के रूप में नियुक्त किया गया और उन्होंने दो दिन बाद, 21 नवंबर को ज्वाइन भी कर लिया।

जिस तेजी से उनकी नियुक्ति हुई, उस पर 23 नवंबर को सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र से उनके चयन से संबंधित मूल फाइलें पेश करने को कहा। शीर्ष अदालत ने केंद्र से कहा कि वह अरुण गोयल की चुनाव आयुक्त के रूप में नियुक्ति से संबंधित फाइलों को देखना चाहती है और इस बात पर जोर दिया कि वह यह देखना चाहती है कि किस तरह उन्हें इतनी जल्दबाजी में नियुक्त किया गया।

एक याचिकाकर्ता का प्रतिनिधित्व कर रहे अधिवक्ता प्रशांत भूषण ने गोयल की नियुक्ति का मुद्दा उठाया। भूषण ने कहा कि वह एक सिटिंग सेक्रेटरी हैं; उन्हें शुक्रवार को स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति दी गई और शनिवार को नियुक्ति की गई और सोमवार को उन्होंने चुनाव आयोग के रूप में काम करना भी शुरू कर दिया।

भूषण ने कहा कि उन्होंने नियुक्ति के संबंध में अर्जी दी थी और अदालत इस मामले की सुनवाई कर रही थी, फिर भी सरकार ने नियुक्ति कर दी। उन्होंने पूछा कि केंद्र सिर्फ एक दिन में किसी को कैसे नियुक्त कर सकता है, किन प्रक्रियाओं का पालन किया गया है।

शीर्ष अदालत ने मौखिक रूप से कहा कि नियुक्ति का आदेश, मामले की सुनवाई शुरू होने के बाद दिया गया और भूषण ने इस मामले में आवेदन दिया था। शीर्ष अदालत सीईसी और ईसी की नियुक्ति के लिए कॉलेजियम जैसी प्रणाली की मांग करने वाली याचिकाओं पर सुनवाई कर रही थी।

इसके बाद अगले ही दिन 24 नवंबर को शीर्ष अदालत ने कहा कि इतनी जल्दबाजी क्या थी और इतनी तेजी से नियुक्ति क्यों की गई।

न्यायमूर्ति के एम जोसेफ ने दोहराया कि अदालत यस मैन नियुक्त किए जाने के बारे में चिंतित है और पूछा कि कानून मंत्री द्वारा आयु मानदंड के आधार पर सैकड़ों लोगों के डेटा से चार नामों को शॉर्टलिस्ट करने का क्या आधार है।

सुपर फास्ट तरीके से गोयल की नियुक्ति पर सवाल उठाते हुए पीठ ने टिप्पणी की कि 24 घंटे से भी कम समय में प्रक्रिया पूरी कर ली गई।

एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (एडीआर) के सह-संस्थापक प्रोफेसर जगदीप छोकर ने आईएएनएस से बात करते हुए कहा, मामला अदालत में पहुंचने पर अधिकारी को रातोंरात नियुक्त किया गया। कैसे 22 घंटे या 26 घंटे में उनका चयन किया गया और पूरी प्रक्रिया कैसे पूरी की गई, कोई नहीं जानता। दाल में कुछ काला है।

अरुण गोयल की सेवानिवृत्ति 31 दिसंबर, 2022 को होनी थी। हालांकि, चुनाव आयुक्त के रूप में उनकी नियुक्ति के साथ, वह दिसंबर 2027 तक पद पर बने रहेंगे। वह मुख्य चुनाव आयुक्त पद के लिए सबसे संभावित उम्मीदवार भी हैं।

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गोयल की नियुक्ति से पहले के घटनाक्रम ने इसे साफ कर दिया है। यह पता चला है कि चुनाव आयुक्त के रूप में नियुक्त होने से एक दिन पहले तक यानि 18 नवंबर को स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति लेने तक, गोयल केंद्रीय भारी उद्योग मंत्रालय में सचिव थे। यह कहा गया है कि भारी उद्योग मंत्रालय के वरिष्ठ अधिकारियों को भी इस बात की जानकारी नहीं थी कि वो चुनाव आयुक्त बनने जा रहे हैं।

इसके बाद अगले दिन 19 नवंबर को अरुण गोयल को चुनाव आयुक्त के रूप में नियुक्त किया गया और उन्होंने दो दिन बाद, 21 नवंबर को ज्वाइन भी कर लिया।

जिस तेजी से उनकी नियुक्ति हुई, उस पर 23 नवंबर को सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र से उनके चयन से संबंधित मूल फाइलें पेश करने को कहा। शीर्ष अदालत ने केंद्र से कहा कि वह अरुण गोयल की चुनाव आयुक्त के रूप में नियुक्ति से संबंधित फाइलों को देखना चाहती है और इस बात पर जोर दिया कि वह यह देखना चाहती है कि किस तरह उन्हें इतनी जल्दबाजी में नियुक्त किया गया।

एक याचिकाकर्ता का प्रतिनिधित्व कर रहे अधिवक्ता प्रशांत भूषण ने गोयल की नियुक्ति का मुद्दा उठाया। भूषण ने कहा कि वह एक सिटिंग सेक्रेटरी हैं; उन्हें शुक्रवार को स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति दी गई और शनिवार को नियुक्ति की गई और सोमवार को उन्होंने चुनाव आयोग के रूप में काम करना भी शुरू कर दिया।

भूषण ने कहा कि उन्होंने नियुक्ति के संबंध में अर्जी दी थी और अदालत इस मामले की सुनवाई कर रही थी, फिर भी सरकार ने नियुक्ति कर दी। उन्होंने पूछा कि केंद्र सिर्फ एक दिन में किसी को कैसे नियुक्त कर सकता है, किन प्रक्रियाओं का पालन किया गया है।

शीर्ष अदालत ने मौखिक रूप से कहा कि नियुक्ति का आदेश, मामले की सुनवाई शुरू होने के बाद दिया गया और भूषण ने इस मामले में आवेदन दिया था। शीर्ष अदालत सीईसी और ईसी की नियुक्ति के लिए कॉलेजियम जैसी प्रणाली की मांग करने वाली याचिकाओं पर सुनवाई कर रही थी।

इसके बाद अगले ही दिन 24 नवंबर को शीर्ष अदालत ने कहा कि इतनी जल्दबाजी क्या थी और इतनी तेजी से नियुक्ति क्यों की गई।

न्यायमूर्ति के एम जोसेफ ने दोहराया कि अदालत यस मैन नियुक्त किए जाने के बारे में चिंतित है और पूछा कि कानून मंत्री द्वारा आयु मानदंड के आधार पर सैकड़ों लोगों के डेटा से चार नामों को शॉर्टलिस्ट करने का क्या आधार है।

सुपर फास्ट तरीके से गोयल की नियुक्ति पर सवाल उठाते हुए पीठ ने टिप्पणी की कि 24 घंटे से भी कम समय में प्रक्रिया पूरी कर ली गई।

एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (एडीआर) के सह-संस्थापक प्रोफेसर जगदीप छोकर ने आईएएनएस से बात करते हुए कहा, मामला अदालत में पहुंचने पर अधिकारी को रातोंरात नियुक्त किया गया। कैसे 22 घंटे या 26 घंटे में उनका चयन किया गया और पूरी प्रक्रिया कैसे पूरी की गई, कोई नहीं जानता। दाल में कुछ काला है।

अरुण गोयल की सेवानिवृत्ति 31 दिसंबर, 2022 को होनी थी। हालांकि, चुनाव आयुक्त के रूप में उनकी नियुक्ति के साथ, वह दिसंबर 2027 तक पद पर बने रहेंगे। वह मुख्य चुनाव आयुक्त पद के लिए सबसे संभावित उम्मीदवार भी हैं।

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नई दिल्ली, 4 दिसंबर (आईएएनएस)। सुप्रीम कोर्ट के केंद्र से सवाल करने या सरकार की खिंचाई करने में कोई आश्चर्य की बात नहीं है, लेकिन हाल ही में जिस तरह से शीर्ष अदालत ने पंजाब कैडर के सेवानिवृत्त आईएएस अधिकारी अरुण गोयल की चुनाव आयुक्त के रूप में नियुक्ति के मामले में सरकार से कड़े सवाल पूछे, इसने कई विवादों को जन्म दे दिया है।

गोयल की नियुक्ति से पहले के घटनाक्रम ने इसे साफ कर दिया है। यह पता चला है कि चुनाव आयुक्त के रूप में नियुक्त होने से एक दिन पहले तक यानि 18 नवंबर को स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति लेने तक, गोयल केंद्रीय भारी उद्योग मंत्रालय में सचिव थे। यह कहा गया है कि भारी उद्योग मंत्रालय के वरिष्ठ अधिकारियों को भी इस बात की जानकारी नहीं थी कि वो चुनाव आयुक्त बनने जा रहे हैं।

इसके बाद अगले दिन 19 नवंबर को अरुण गोयल को चुनाव आयुक्त के रूप में नियुक्त किया गया और उन्होंने दो दिन बाद, 21 नवंबर को ज्वाइन भी कर लिया।

जिस तेजी से उनकी नियुक्ति हुई, उस पर 23 नवंबर को सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र से उनके चयन से संबंधित मूल फाइलें पेश करने को कहा। शीर्ष अदालत ने केंद्र से कहा कि वह अरुण गोयल की चुनाव आयुक्त के रूप में नियुक्ति से संबंधित फाइलों को देखना चाहती है और इस बात पर जोर दिया कि वह यह देखना चाहती है कि किस तरह उन्हें इतनी जल्दबाजी में नियुक्त किया गया।

एक याचिकाकर्ता का प्रतिनिधित्व कर रहे अधिवक्ता प्रशांत भूषण ने गोयल की नियुक्ति का मुद्दा उठाया। भूषण ने कहा कि वह एक सिटिंग सेक्रेटरी हैं; उन्हें शुक्रवार को स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति दी गई और शनिवार को नियुक्ति की गई और सोमवार को उन्होंने चुनाव आयोग के रूप में काम करना भी शुरू कर दिया।

भूषण ने कहा कि उन्होंने नियुक्ति के संबंध में अर्जी दी थी और अदालत इस मामले की सुनवाई कर रही थी, फिर भी सरकार ने नियुक्ति कर दी। उन्होंने पूछा कि केंद्र सिर्फ एक दिन में किसी को कैसे नियुक्त कर सकता है, किन प्रक्रियाओं का पालन किया गया है।

शीर्ष अदालत ने मौखिक रूप से कहा कि नियुक्ति का आदेश, मामले की सुनवाई शुरू होने के बाद दिया गया और भूषण ने इस मामले में आवेदन दिया था। शीर्ष अदालत सीईसी और ईसी की नियुक्ति के लिए कॉलेजियम जैसी प्रणाली की मांग करने वाली याचिकाओं पर सुनवाई कर रही थी।

इसके बाद अगले ही दिन 24 नवंबर को शीर्ष अदालत ने कहा कि इतनी जल्दबाजी क्या थी और इतनी तेजी से नियुक्ति क्यों की गई।

न्यायमूर्ति के एम जोसेफ ने दोहराया कि अदालत यस मैन नियुक्त किए जाने के बारे में चिंतित है और पूछा कि कानून मंत्री द्वारा आयु मानदंड के आधार पर सैकड़ों लोगों के डेटा से चार नामों को शॉर्टलिस्ट करने का क्या आधार है।

सुपर फास्ट तरीके से गोयल की नियुक्ति पर सवाल उठाते हुए पीठ ने टिप्पणी की कि 24 घंटे से भी कम समय में प्रक्रिया पूरी कर ली गई।

एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (एडीआर) के सह-संस्थापक प्रोफेसर जगदीप छोकर ने आईएएनएस से बात करते हुए कहा, मामला अदालत में पहुंचने पर अधिकारी को रातोंरात नियुक्त किया गया। कैसे 22 घंटे या 26 घंटे में उनका चयन किया गया और पूरी प्रक्रिया कैसे पूरी की गई, कोई नहीं जानता। दाल में कुछ काला है।

अरुण गोयल की सेवानिवृत्ति 31 दिसंबर, 2022 को होनी थी। हालांकि, चुनाव आयुक्त के रूप में उनकी नियुक्ति के साथ, वह दिसंबर 2027 तक पद पर बने रहेंगे। वह मुख्य चुनाव आयुक्त पद के लिए सबसे संभावित उम्मीदवार भी हैं।

–आईएएनएस

एसकेपी

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नई दिल्ली, 4 दिसंबर (आईएएनएस)। सुप्रीम कोर्ट के केंद्र से सवाल करने या सरकार की खिंचाई करने में कोई आश्चर्य की बात नहीं है, लेकिन हाल ही में जिस तरह से शीर्ष अदालत ने पंजाब कैडर के सेवानिवृत्त आईएएस अधिकारी अरुण गोयल की चुनाव आयुक्त के रूप में नियुक्ति के मामले में सरकार से कड़े सवाल पूछे, इसने कई विवादों को जन्म दे दिया है।

गोयल की नियुक्ति से पहले के घटनाक्रम ने इसे साफ कर दिया है। यह पता चला है कि चुनाव आयुक्त के रूप में नियुक्त होने से एक दिन पहले तक यानि 18 नवंबर को स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति लेने तक, गोयल केंद्रीय भारी उद्योग मंत्रालय में सचिव थे। यह कहा गया है कि भारी उद्योग मंत्रालय के वरिष्ठ अधिकारियों को भी इस बात की जानकारी नहीं थी कि वो चुनाव आयुक्त बनने जा रहे हैं।

इसके बाद अगले दिन 19 नवंबर को अरुण गोयल को चुनाव आयुक्त के रूप में नियुक्त किया गया और उन्होंने दो दिन बाद, 21 नवंबर को ज्वाइन भी कर लिया।

जिस तेजी से उनकी नियुक्ति हुई, उस पर 23 नवंबर को सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र से उनके चयन से संबंधित मूल फाइलें पेश करने को कहा। शीर्ष अदालत ने केंद्र से कहा कि वह अरुण गोयल की चुनाव आयुक्त के रूप में नियुक्ति से संबंधित फाइलों को देखना चाहती है और इस बात पर जोर दिया कि वह यह देखना चाहती है कि किस तरह उन्हें इतनी जल्दबाजी में नियुक्त किया गया।

एक याचिकाकर्ता का प्रतिनिधित्व कर रहे अधिवक्ता प्रशांत भूषण ने गोयल की नियुक्ति का मुद्दा उठाया। भूषण ने कहा कि वह एक सिटिंग सेक्रेटरी हैं; उन्हें शुक्रवार को स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति दी गई और शनिवार को नियुक्ति की गई और सोमवार को उन्होंने चुनाव आयोग के रूप में काम करना भी शुरू कर दिया।

भूषण ने कहा कि उन्होंने नियुक्ति के संबंध में अर्जी दी थी और अदालत इस मामले की सुनवाई कर रही थी, फिर भी सरकार ने नियुक्ति कर दी। उन्होंने पूछा कि केंद्र सिर्फ एक दिन में किसी को कैसे नियुक्त कर सकता है, किन प्रक्रियाओं का पालन किया गया है।

शीर्ष अदालत ने मौखिक रूप से कहा कि नियुक्ति का आदेश, मामले की सुनवाई शुरू होने के बाद दिया गया और भूषण ने इस मामले में आवेदन दिया था। शीर्ष अदालत सीईसी और ईसी की नियुक्ति के लिए कॉलेजियम जैसी प्रणाली की मांग करने वाली याचिकाओं पर सुनवाई कर रही थी।

इसके बाद अगले ही दिन 24 नवंबर को शीर्ष अदालत ने कहा कि इतनी जल्दबाजी क्या थी और इतनी तेजी से नियुक्ति क्यों की गई।

न्यायमूर्ति के एम जोसेफ ने दोहराया कि अदालत यस मैन नियुक्त किए जाने के बारे में चिंतित है और पूछा कि कानून मंत्री द्वारा आयु मानदंड के आधार पर सैकड़ों लोगों के डेटा से चार नामों को शॉर्टलिस्ट करने का क्या आधार है।

सुपर फास्ट तरीके से गोयल की नियुक्ति पर सवाल उठाते हुए पीठ ने टिप्पणी की कि 24 घंटे से भी कम समय में प्रक्रिया पूरी कर ली गई।

एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (एडीआर) के सह-संस्थापक प्रोफेसर जगदीप छोकर ने आईएएनएस से बात करते हुए कहा, मामला अदालत में पहुंचने पर अधिकारी को रातोंरात नियुक्त किया गया। कैसे 22 घंटे या 26 घंटे में उनका चयन किया गया और पूरी प्रक्रिया कैसे पूरी की गई, कोई नहीं जानता। दाल में कुछ काला है।

अरुण गोयल की सेवानिवृत्ति 31 दिसंबर, 2022 को होनी थी। हालांकि, चुनाव आयुक्त के रूप में उनकी नियुक्ति के साथ, वह दिसंबर 2027 तक पद पर बने रहेंगे। वह मुख्य चुनाव आयुक्त पद के लिए सबसे संभावित उम्मीदवार भी हैं।

–आईएएनएस

एसकेपी

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