नई दिल्ली,19 अक्टूबर (आईएएनएस)। करवा चौथ का व्रत सुहागिन महिलाएं अपने पति की लंबी आयु और उनके अच्छे स्वास्थ्य की कामना के लिए करती हैं। 20 अक्टूबर रविवार को सुहागिन महिलाएं करवा चौथ का व्रत करेंगी। शाम को चंद्रमा को अर्घ्य देकर व्रत का पारण किया जाएगा।
सुहागिन महिलाएं अपने हाथों में पिया के नाम की मेहंदी एक दिन पहले ही रचा लेती हैं। करवा चौथ वाले दिन महिलाएं सुबह के वक्त स्नान कर 16 श्रंगार करती हैं। इसके बाद करवा माता के साथ गणेश भगवान की विधि-पूर्वक पूजा अर्चना की जाती है। इस दौरान कलश की स्थापना भी की जाती है। सुहागिन महिलाएं दो करवा रखती हैं। एक से शाम के दौरान चंद्रमा को देखकर अर्घ्य दिया जाता है, दूसरे करवे को सुहागिन महिलाएं एक दूसरे को आदान-प्रदान करती हैं।
इस व्रत का प्रभाव काफी ज्यादा है। मान्यता के अनुसार, इस व्रत को माता गौरी ने अपने पति भगवान शिव के लिए किया था। करवा चौथ के दिन भगवान गणेश, माता करवा और चंद्रमा की पूजा की जाती है। गणेश भगवान विघ्नहर्ता हैं, तो सुहागिन महिलाएं उनसे अपने पति के कष्टों को हरने की प्रार्थना करती हैं।
खास बात यह है कि इस व्रत को सिर्फ सुहागिन महिलाएं ही नहीं, बल्कि कुंवारी लड़कियां भी करती हैं। जिन लड़कियों के विवाह में परेशानी आ रही होती है, वह यह व्रत करती हैं। इसके अलावा जिन्हें अपनी पसंद का पति चाहिए होता है, वो भी इस व्रत को करती हैं। लेकिन, कुंवारी लड़कियों के लिए कुछ नियम भी होते हैं। जिनका पालन करना बेहद जरूरी है।
जहां करवाचौथ के दिन सुहागिन महिलाएं निर्जला व्रत रखती हैं। वहीं, कुंवारी लड़कियों पर यह नियम लागू नहीं होता है। वह फलाहार भी कर सकती हैं। क्योंकि, निर्जला व्रत सुहागिन महिलाओं के लिए मान्य होती है। सुहागिन महिलाएं व्रत का पारण करने के लिए शाम को चंद्रमा को अर्घ्य देती हैं। लेकिन, कुंवारी लड़कियों के लिए यह नियम भी मान्य नहीं है। कुंवारी लड़कियों को अर्घ्य देने से बचना चाहिए। सुहागिन महिलाएं करवा चौथ की कहानी सुनती हैं। कुंवारी लड़कियां भी उनके साथ बैठकर कहानी सुन सकती हैं। इस दौरान वह अपनी पसंद के अनुसार पति की कामना करवा माता से कर सकती हैं।
–आईएएनएस
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