नई दिल्ली, 16 जुलाई (आईएएनएस)। अक्टूबर 2006 और मई 2007 के बीच “हेडलेस बॉडीज सीरियल किलर” के नाम से कुख्यात चंद्रकांत झा ने दिल्ली की तिहाड़ जेल के गेट के बाहर तीन नग्न, सिर कटी, क्षत-विक्षत लाशों को फेंक दिया और एक नोट लिखकर छोड़ा, जिसमें पुलिस को उसे पकड़ने की चुनौती थी।
क्षत-विक्षत शवों वाली फलों की टोकरियों के अंदर मिले नोट्स ने अधिकारियों को परेशान कर दिया।
एक नोट में लिखा था, “आज तक मैंने उन अपराधों की सजा भुगती है जो मैंने नहीं किए, लेकिन अब मैंने सच में हत्या कर दी है। मैं आपको मुझे पकड़ने की चुनौती देता हूं। और भी उपहार आ रहे हैं… आपके डैडी।” शवों को बोरियों में पैक करके फलों की टोकरियों के अंदर रखा गया था, जबकि हाथ-पैरों को शहर के विभिन्न इलाकों में बिखेर दिया गया था।
झा को, जिसे पहले भी हत्या के मामलों में गिरफ्तार किया जा चुका था लेकिन सबूतों की कमी के कारण बरी कर दिया गया था, अंततः 20 मई 2007 को पश्चिमी दिल्ली के पश्चिम विहार में मियांवाली नगर के पास से गिरफ्तार कर लिया गया।
पूछताछ के दौरान, उसने कई पीड़ितों के सिर काटने और उनके शरीर के अंगों को तिहाड़ जेल के पास फेंकने की बात स्वीकार की। उसने खुलासा किया कि वह अपने पीड़ितों का गला घोंटने से पहले उनके हाथ और पैर बांध देता था।
झा के कमरे के अंदर, जांचकर्ताओं को उनके पीड़ितों की फोटो वाला एक एलबम मिला, जो उनकी हत्या से कुछ समय पहले लिए गए थे। इन तस्वीरों में नजर आ रही शांति रोंगटे खड़े कर देने वाली थी, जिससे पता चलता है कि झा को अच्छी तरह पता था कि वह क्या कर रहा है।
झा को शुरू में मौत की सजा सुनाई गई थी, लेकिन बाद में सजा को आजीवन कारावास में बदल दिया गया। वह वर्तमान में तिहाड़ जेल में कैद है, वही स्थान जहां उसने अपने पीड़ितों के शवों को बेरहमी से फेंक दिया था।
झा के ज्यादातर शिकार उसके गांव के दोस्त और परिचित थे। वह उन्हें दिल्ली बुलाता, कुछ दिनों में उनका विश्वास हासिल कर लेता और फिर बेरहमी से उनकी जिंदगी खत्म कर देता। उसके अपराधों की कार्यप्रणाली और हत्याओं की परेशान करने वाली प्रकृति ने सार्वजनिक आक्रोश पैदा किया और मीडिया तथा आम जनता का ध्यान आकर्षित किया।
मामले की 2013 में सुनवाई करने वाली तत्कालीन अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश कामिनी लाउ ने झा के प्रति कोई दया नहीं दिखाई।
न्यायाधीश लाउ ने कहा, “अपराध असाधारण दुष्टता और अत्यधिक क्रूरता के साथ किया गया है। पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट पुष्टि करती है कि इस मामले में मौत सिर काटने से हुई थी (ऐसा मामला नहीं मारने के बाद सिर काटा गया हो)। पीड़ित को मृत्यु के समय कितना दर्द हुआ होगा?” झा पर उनके घिनौने कृत्य के लिए 20,000 रुपये का जुर्माना भी लगाया गया था।
इसके अलावा, अदालत ने जांच के प्रति लापरवाह रवैये के लिए दिल्ली पुलिस की आलोचना की, जिसके परिणामस्वरूप पीडि़तों में से एक, जिसे दोषी ने “दलीप” बताया था, की पहचान स्थापित नहीं हो सकी। अदालत ने पीड़ित परिवार का पता लगाने के लिए किए गए प्रयासों की कमी की निंदा की, और अधिक गहन जांच प्रक्रिया की आवश्यकता पर बल दिया।
चंद्रकांत झा की सजा से उनके पीड़ितों के परिवारों को कुछ राहत मिली है, जिन्होंने अकल्पनीय दर्द और नुकसान सहा था। यह एक मजबूत और सतर्क आपराधिक न्याय प्रणाली का महत्व बताता है जो पीड़ितों और उनके प्रियजनों के लिए न्याय की खोज में कोई कसर नहीं छोड़ता है।
–आईएएनएस
एकेजे