नई दिल्ली, 23 फरवरी (आईएएनएस)। सुप्रीम कोर्ट ने तमिलनाडु की एक महिला को अपनी पांच साल की बच्ची की हत्या करने के जुर्म में दी गई उम्रकैद की सजा को बरकरार रखा है, क्योंकि उसे बच्ची की परवरिश और बेहतर शिक्षा के लिए अपनी सास के साथ रहने के लिए मजबूर किया गया था।
जस्टिस दिनेश माहेश्वरी और जस्टिस बेला एम. त्रिवेदी की पीठ ने कहा : रिकॉर्ड पर मौजूद सामग्री और ट्रायल कोर्ट और हाईकोर्ट द्वारा दर्ज किए गए तथ्य के समवर्ती निष्कर्षो में हस्तक्षेप का कोई कारण नहीं है।
पीठ ने कहा कि मामला परिस्थितिजन्य साक्ष्य पर आधारित था और भले ही अभियोजन पक्ष की कहानी कुछ कठिन प्रस्ताव प्रस्तुत करती है, इसे खारिज नहीं किया जा सकता।
पीठ ने 43 पन्नों के अपने फैसले में कहा : इस मामले के तथ्यों में जब अभियोजन पक्ष के साक्ष्य ने स्पष्ट रूप से इस तथ्य को स्थापित किया कि पीड़ित बच्ची को आखिरी बार अपीलकर्ता के साथ ही जीवित देखा गया था, तो उसे उन परिस्थितियों की व्याख्या करने की जरूरत थी, जिसके कारण बच्ची की मौत हुई।
ऐसा करने में उसकी विफलता और उन परिस्थितियों के संबंध में स्पष्टीकरण देने में विफलता साक्ष्य अधिनियम की धारा 106 अपीलकर्ता के खिलाफ है।
महिला को 21 जून, 2007 की सुबह पेराम्बलूर में अपनी सास के घर में अपने पांच वर्षीय बच्ची की हत्या के लिए दोषी ठहराया गया था। अभियोजन पक्ष के मामले के अनुसार, अपीलकर्ता का पति कमाने के लिए विदेश में रह रहा था। अपीलकर्ता ज्यादातर कोलाक्कुडी में अपने पिता के साथ रह रही थी। हालांकि, बच्ची के पालन-पोषण और शिक्षा के उद्देश्य से अपनी सास के साथ रहने के लिए मजबूर किए जाने पर उसने बच्ची को अपने पिता के साथ रहने की उसकी इच्छा में बाधक पाया। जब सास घर से बाहर गई हुई थी, उसी दौरान उसने बच्ची की गला दबाकर हत्या कर दी।
महिला के वकील ने दलील दी कि मामला आईपीसी की धारा 302 के तहत नहीं आता है, लेकिन यह गैर इरादतन हत्या का मामला हो सकता है, क्योंकि घटना की तारीख पर आरोपी और सास के बीच झगड़ा हुआ था, क्योंकि आरोपी अपने पिता के घर जाना चाहती थी।
पीठ ने कहा : भले ही यह मान लिया जाए कि घटना की तारीख की सुबह अपीलकर्ता का अपनी सास के साथ झगड़ा हुआ था, क्योंकि अपीलकर्ता अपने पिता के घर जाना चाहती थी, लेकिन इसके लिए बच्ची की हत्या को उचित नहीं ठहराया जा सकता।
यह नोट किया गया कि रिकॉर्ड पर साबित हुई परिस्थितियां और अपराध करने का तरीका स्पष्ट करता है कि इस मामले को आईपीसी की धारा 300 के किसी भी अपवाद के तहत नहीं लाया जा सकता और आईपीसी की धारा 302 के तहत अपीलकर्ता की दोषसिद्धि और सजा को गलत नहीं ठहराया जा सकता।
वहिता को अपनी पांच साल की बच्ची की हत्या के अपराध का दोषी ठहराया गया।
ट्रायल कोर्ट ने आखिरी बार देखे गए सबूतों पर भरोसा किया था और उसे दोषी ठहराया था, उसकी दलील की अवहेलना करते हुए कि वह कोलाक्कुडी में अपने पिता के घर पर थी।
वहिता ने मद्रास हाईकोर्ट के फैसले को चुनौती देते हुए शीर्ष अदालत का रुख किया, जिसने 15 अक्टूबर, 2009 को पारित सजा के फैसले और सजा के आदेश के खिलाफ उसकी अपील खारिज कर दी।
–आईएएनएस
एसजीके/एएनएम