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सुप्रीम कोर्ट ने आंध्र प्रदेश सरकार के एक परिवार में एक व्यक्ति को पेंशन के फैसले के खिलाफ याचिका खारिज की

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February 2, 2024
in राष्ट्रीय
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सुप्रीम कोर्ट ने आंध्र प्रदेश सरकार के एक परिवार में एक व्यक्ति को पेंशन के फैसले के खिलाफ याचिका खारिज की
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नई दिल्ली, 2 फरवरी (आईएएनएस)। सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को एक परिवार में केवल एक व्यक्ति को पेंशन देने के आंध्र प्रदेश सरकार के फैसले को चुनौती देने वाली याचिका खारिज कर दी।

मुख्य न्यायाधीश डी.वाई. चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पीठ ने विशेष अनुमति याचिका में उठाए गए मुद्दे को “नीतिगत मामला” करार देते हुए कहा, “आखिरकार, राज्य को अपनी भुगतान क्षमता पर ध्यान देना होगा। ऐसी कई समस्याएं हैं जिन पर राज्य को ध्यान देने की आवश्यकता है जैसे वृद्धावस्था पेंशन, सामाजिक सुरक्षा, न्यूनतम वेतन आदि।”

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याचिकाकर्ताओं की ओर से पेश वकील ने दलील देते हुए कहा, “हम विधवाओं को नज़रअंदाज़ नहीं कर सकते!” उन्होंने कहा कि यह फैसला राज्य भर में 40 लाख से अधिक विधवाओं को प्रभावित करता है।

शीर्ष अदालत के समक्ष दायर विशेष अनुमति याचिका में तर्क दिया गया कि गरीब वरिष्ठ नागरिकों और संकटग्रस्त विधवाओं को पेंशन के उनके उचित अधिकारों से केवल इस आधार पर वंचित किया गया था कि वे किसी अन्य पेंशन धारक के साथ रह रही हैं।

पंचायती राज और ग्रामीण विकास विभाग ने 2019 में एक परिवार में केवल एक व्यक्ति को पेंशन की नीति लागू की थी। अपनी याचिका में, याचिकाकर्ता थंडवा योगेश ने तर्क दिया कि समान निवास के आधार पर लगाया गया प्रतिबंध 2008 के असंगठित श्रमिकों के अधिकारों, सामाजिक सुरक्षा अधिनियम, राष्ट्रीय सामाजिक सहायता कार्यक्रम दिशानिर्देश और मानव अधिकारों की सार्वभौम घोषणा (यूडीएचआर) का अनुच्छेद 25 का उल्लंघन होने के अलावा संविधान के अनुच्छेद 14, 21, 39 (ए) और 39 (ई) और 41 का उल्लंघन है।

इसमें कहा गया है कि सामान्य निवास वाले केवल एक संकटग्रस्त श्रेणी के व्यक्ति को पेंशन का प्रावधान, जबकि अन्य को छोड़ दिया जाए, संविधान में निहित असमानता तथा भेदभाव न होने के प्रावधान के विपरीत है।

इससे पहले अक्टूबर 2023 में आंध्र प्रदेश उच्च न्यायालय ने जनहित याचिका (पीआईएल) को यह कहते हुए खारिज कर दिया था कि वह राज्य सरकार द्वारा लिए गए नीतिगत निर्णय की समीक्षा नहीं कर सकता है और यह निर्धारित नहीं कर सकता है कि विचार का उद्देश्य परिवार होना चाहिए या व्यक्ति।

उच्च न्यायालय के समक्ष राज्य सरकार ने कहा कि उसने परिवार को एक इकाई के रूप में लेने का नीतिगत निर्णय लिया है और आर्थिक एवं नीतिगत निर्णयों में कार्यपालिका को छूट देनी होगी।

–आईएएनएस

एकेजे/

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नई दिल्ली, 2 फरवरी (आईएएनएस)। सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को एक परिवार में केवल एक व्यक्ति को पेंशन देने के आंध्र प्रदेश सरकार के फैसले को चुनौती देने वाली याचिका खारिज कर दी।

मुख्य न्यायाधीश डी.वाई. चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पीठ ने विशेष अनुमति याचिका में उठाए गए मुद्दे को “नीतिगत मामला” करार देते हुए कहा, “आखिरकार, राज्य को अपनी भुगतान क्षमता पर ध्यान देना होगा। ऐसी कई समस्याएं हैं जिन पर राज्य को ध्यान देने की आवश्यकता है जैसे वृद्धावस्था पेंशन, सामाजिक सुरक्षा, न्यूनतम वेतन आदि।”

याचिकाकर्ताओं की ओर से पेश वकील ने दलील देते हुए कहा, “हम विधवाओं को नज़रअंदाज़ नहीं कर सकते!” उन्होंने कहा कि यह फैसला राज्य भर में 40 लाख से अधिक विधवाओं को प्रभावित करता है।

शीर्ष अदालत के समक्ष दायर विशेष अनुमति याचिका में तर्क दिया गया कि गरीब वरिष्ठ नागरिकों और संकटग्रस्त विधवाओं को पेंशन के उनके उचित अधिकारों से केवल इस आधार पर वंचित किया गया था कि वे किसी अन्य पेंशन धारक के साथ रह रही हैं।

पंचायती राज और ग्रामीण विकास विभाग ने 2019 में एक परिवार में केवल एक व्यक्ति को पेंशन की नीति लागू की थी। अपनी याचिका में, याचिकाकर्ता थंडवा योगेश ने तर्क दिया कि समान निवास के आधार पर लगाया गया प्रतिबंध 2008 के असंगठित श्रमिकों के अधिकारों, सामाजिक सुरक्षा अधिनियम, राष्ट्रीय सामाजिक सहायता कार्यक्रम दिशानिर्देश और मानव अधिकारों की सार्वभौम घोषणा (यूडीएचआर) का अनुच्छेद 25 का उल्लंघन होने के अलावा संविधान के अनुच्छेद 14, 21, 39 (ए) और 39 (ई) और 41 का उल्लंघन है।

इसमें कहा गया है कि सामान्य निवास वाले केवल एक संकटग्रस्त श्रेणी के व्यक्ति को पेंशन का प्रावधान, जबकि अन्य को छोड़ दिया जाए, संविधान में निहित असमानता तथा भेदभाव न होने के प्रावधान के विपरीत है।

इससे पहले अक्टूबर 2023 में आंध्र प्रदेश उच्च न्यायालय ने जनहित याचिका (पीआईएल) को यह कहते हुए खारिज कर दिया था कि वह राज्य सरकार द्वारा लिए गए नीतिगत निर्णय की समीक्षा नहीं कर सकता है और यह निर्धारित नहीं कर सकता है कि विचार का उद्देश्य परिवार होना चाहिए या व्यक्ति।

उच्च न्यायालय के समक्ष राज्य सरकार ने कहा कि उसने परिवार को एक इकाई के रूप में लेने का नीतिगत निर्णय लिया है और आर्थिक एवं नीतिगत निर्णयों में कार्यपालिका को छूट देनी होगी।

–आईएएनएस

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नई दिल्ली, 2 फरवरी (आईएएनएस)। सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को एक परिवार में केवल एक व्यक्ति को पेंशन देने के आंध्र प्रदेश सरकार के फैसले को चुनौती देने वाली याचिका खारिज कर दी।

मुख्य न्यायाधीश डी.वाई. चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पीठ ने विशेष अनुमति याचिका में उठाए गए मुद्दे को “नीतिगत मामला” करार देते हुए कहा, “आखिरकार, राज्य को अपनी भुगतान क्षमता पर ध्यान देना होगा। ऐसी कई समस्याएं हैं जिन पर राज्य को ध्यान देने की आवश्यकता है जैसे वृद्धावस्था पेंशन, सामाजिक सुरक्षा, न्यूनतम वेतन आदि।”

याचिकाकर्ताओं की ओर से पेश वकील ने दलील देते हुए कहा, “हम विधवाओं को नज़रअंदाज़ नहीं कर सकते!” उन्होंने कहा कि यह फैसला राज्य भर में 40 लाख से अधिक विधवाओं को प्रभावित करता है।

शीर्ष अदालत के समक्ष दायर विशेष अनुमति याचिका में तर्क दिया गया कि गरीब वरिष्ठ नागरिकों और संकटग्रस्त विधवाओं को पेंशन के उनके उचित अधिकारों से केवल इस आधार पर वंचित किया गया था कि वे किसी अन्य पेंशन धारक के साथ रह रही हैं।

पंचायती राज और ग्रामीण विकास विभाग ने 2019 में एक परिवार में केवल एक व्यक्ति को पेंशन की नीति लागू की थी। अपनी याचिका में, याचिकाकर्ता थंडवा योगेश ने तर्क दिया कि समान निवास के आधार पर लगाया गया प्रतिबंध 2008 के असंगठित श्रमिकों के अधिकारों, सामाजिक सुरक्षा अधिनियम, राष्ट्रीय सामाजिक सहायता कार्यक्रम दिशानिर्देश और मानव अधिकारों की सार्वभौम घोषणा (यूडीएचआर) का अनुच्छेद 25 का उल्लंघन होने के अलावा संविधान के अनुच्छेद 14, 21, 39 (ए) और 39 (ई) और 41 का उल्लंघन है।

इसमें कहा गया है कि सामान्य निवास वाले केवल एक संकटग्रस्त श्रेणी के व्यक्ति को पेंशन का प्रावधान, जबकि अन्य को छोड़ दिया जाए, संविधान में निहित असमानता तथा भेदभाव न होने के प्रावधान के विपरीत है।

इससे पहले अक्टूबर 2023 में आंध्र प्रदेश उच्च न्यायालय ने जनहित याचिका (पीआईएल) को यह कहते हुए खारिज कर दिया था कि वह राज्य सरकार द्वारा लिए गए नीतिगत निर्णय की समीक्षा नहीं कर सकता है और यह निर्धारित नहीं कर सकता है कि विचार का उद्देश्य परिवार होना चाहिए या व्यक्ति।

उच्च न्यायालय के समक्ष राज्य सरकार ने कहा कि उसने परिवार को एक इकाई के रूप में लेने का नीतिगत निर्णय लिया है और आर्थिक एवं नीतिगत निर्णयों में कार्यपालिका को छूट देनी होगी।

–आईएएनएस

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मुख्य न्यायाधीश डी.वाई. चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पीठ ने विशेष अनुमति याचिका में उठाए गए मुद्दे को “नीतिगत मामला” करार देते हुए कहा, “आखिरकार, राज्य को अपनी भुगतान क्षमता पर ध्यान देना होगा। ऐसी कई समस्याएं हैं जिन पर राज्य को ध्यान देने की आवश्यकता है जैसे वृद्धावस्था पेंशन, सामाजिक सुरक्षा, न्यूनतम वेतन आदि।”

याचिकाकर्ताओं की ओर से पेश वकील ने दलील देते हुए कहा, “हम विधवाओं को नज़रअंदाज़ नहीं कर सकते!” उन्होंने कहा कि यह फैसला राज्य भर में 40 लाख से अधिक विधवाओं को प्रभावित करता है।

शीर्ष अदालत के समक्ष दायर विशेष अनुमति याचिका में तर्क दिया गया कि गरीब वरिष्ठ नागरिकों और संकटग्रस्त विधवाओं को पेंशन के उनके उचित अधिकारों से केवल इस आधार पर वंचित किया गया था कि वे किसी अन्य पेंशन धारक के साथ रह रही हैं।

पंचायती राज और ग्रामीण विकास विभाग ने 2019 में एक परिवार में केवल एक व्यक्ति को पेंशन की नीति लागू की थी। अपनी याचिका में, याचिकाकर्ता थंडवा योगेश ने तर्क दिया कि समान निवास के आधार पर लगाया गया प्रतिबंध 2008 के असंगठित श्रमिकों के अधिकारों, सामाजिक सुरक्षा अधिनियम, राष्ट्रीय सामाजिक सहायता कार्यक्रम दिशानिर्देश और मानव अधिकारों की सार्वभौम घोषणा (यूडीएचआर) का अनुच्छेद 25 का उल्लंघन होने के अलावा संविधान के अनुच्छेद 14, 21, 39 (ए) और 39 (ई) और 41 का उल्लंघन है।

इसमें कहा गया है कि सामान्य निवास वाले केवल एक संकटग्रस्त श्रेणी के व्यक्ति को पेंशन का प्रावधान, जबकि अन्य को छोड़ दिया जाए, संविधान में निहित असमानता तथा भेदभाव न होने के प्रावधान के विपरीत है।

इससे पहले अक्टूबर 2023 में आंध्र प्रदेश उच्च न्यायालय ने जनहित याचिका (पीआईएल) को यह कहते हुए खारिज कर दिया था कि वह राज्य सरकार द्वारा लिए गए नीतिगत निर्णय की समीक्षा नहीं कर सकता है और यह निर्धारित नहीं कर सकता है कि विचार का उद्देश्य परिवार होना चाहिए या व्यक्ति।

उच्च न्यायालय के समक्ष राज्य सरकार ने कहा कि उसने परिवार को एक इकाई के रूप में लेने का नीतिगत निर्णय लिया है और आर्थिक एवं नीतिगत निर्णयों में कार्यपालिका को छूट देनी होगी।

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शीर्ष अदालत के समक्ष दायर विशेष अनुमति याचिका में तर्क दिया गया कि गरीब वरिष्ठ नागरिकों और संकटग्रस्त विधवाओं को पेंशन के उनके उचित अधिकारों से केवल इस आधार पर वंचित किया गया था कि वे किसी अन्य पेंशन धारक के साथ रह रही हैं।

पंचायती राज और ग्रामीण विकास विभाग ने 2019 में एक परिवार में केवल एक व्यक्ति को पेंशन की नीति लागू की थी। अपनी याचिका में, याचिकाकर्ता थंडवा योगेश ने तर्क दिया कि समान निवास के आधार पर लगाया गया प्रतिबंध 2008 के असंगठित श्रमिकों के अधिकारों, सामाजिक सुरक्षा अधिनियम, राष्ट्रीय सामाजिक सहायता कार्यक्रम दिशानिर्देश और मानव अधिकारों की सार्वभौम घोषणा (यूडीएचआर) का अनुच्छेद 25 का उल्लंघन होने के अलावा संविधान के अनुच्छेद 14, 21, 39 (ए) और 39 (ई) और 41 का उल्लंघन है।

इसमें कहा गया है कि सामान्य निवास वाले केवल एक संकटग्रस्त श्रेणी के व्यक्ति को पेंशन का प्रावधान, जबकि अन्य को छोड़ दिया जाए, संविधान में निहित असमानता तथा भेदभाव न होने के प्रावधान के विपरीत है।

इससे पहले अक्टूबर 2023 में आंध्र प्रदेश उच्च न्यायालय ने जनहित याचिका (पीआईएल) को यह कहते हुए खारिज कर दिया था कि वह राज्य सरकार द्वारा लिए गए नीतिगत निर्णय की समीक्षा नहीं कर सकता है और यह निर्धारित नहीं कर सकता है कि विचार का उद्देश्य परिवार होना चाहिए या व्यक्ति।

उच्च न्यायालय के समक्ष राज्य सरकार ने कहा कि उसने परिवार को एक इकाई के रूप में लेने का नीतिगत निर्णय लिया है और आर्थिक एवं नीतिगत निर्णयों में कार्यपालिका को छूट देनी होगी।

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मुख्य न्यायाधीश डी.वाई. चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पीठ ने विशेष अनुमति याचिका में उठाए गए मुद्दे को “नीतिगत मामला” करार देते हुए कहा, “आखिरकार, राज्य को अपनी भुगतान क्षमता पर ध्यान देना होगा। ऐसी कई समस्याएं हैं जिन पर राज्य को ध्यान देने की आवश्यकता है जैसे वृद्धावस्था पेंशन, सामाजिक सुरक्षा, न्यूनतम वेतन आदि।”

याचिकाकर्ताओं की ओर से पेश वकील ने दलील देते हुए कहा, “हम विधवाओं को नज़रअंदाज़ नहीं कर सकते!” उन्होंने कहा कि यह फैसला राज्य भर में 40 लाख से अधिक विधवाओं को प्रभावित करता है।

शीर्ष अदालत के समक्ष दायर विशेष अनुमति याचिका में तर्क दिया गया कि गरीब वरिष्ठ नागरिकों और संकटग्रस्त विधवाओं को पेंशन के उनके उचित अधिकारों से केवल इस आधार पर वंचित किया गया था कि वे किसी अन्य पेंशन धारक के साथ रह रही हैं।

पंचायती राज और ग्रामीण विकास विभाग ने 2019 में एक परिवार में केवल एक व्यक्ति को पेंशन की नीति लागू की थी। अपनी याचिका में, याचिकाकर्ता थंडवा योगेश ने तर्क दिया कि समान निवास के आधार पर लगाया गया प्रतिबंध 2008 के असंगठित श्रमिकों के अधिकारों, सामाजिक सुरक्षा अधिनियम, राष्ट्रीय सामाजिक सहायता कार्यक्रम दिशानिर्देश और मानव अधिकारों की सार्वभौम घोषणा (यूडीएचआर) का अनुच्छेद 25 का उल्लंघन होने के अलावा संविधान के अनुच्छेद 14, 21, 39 (ए) और 39 (ई) और 41 का उल्लंघन है।

इसमें कहा गया है कि सामान्य निवास वाले केवल एक संकटग्रस्त श्रेणी के व्यक्ति को पेंशन का प्रावधान, जबकि अन्य को छोड़ दिया जाए, संविधान में निहित असमानता तथा भेदभाव न होने के प्रावधान के विपरीत है।

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उच्च न्यायालय के समक्ष राज्य सरकार ने कहा कि उसने परिवार को एक इकाई के रूप में लेने का नीतिगत निर्णय लिया है और आर्थिक एवं नीतिगत निर्णयों में कार्यपालिका को छूट देनी होगी।

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शीर्ष अदालत के समक्ष दायर विशेष अनुमति याचिका में तर्क दिया गया कि गरीब वरिष्ठ नागरिकों और संकटग्रस्त विधवाओं को पेंशन के उनके उचित अधिकारों से केवल इस आधार पर वंचित किया गया था कि वे किसी अन्य पेंशन धारक के साथ रह रही हैं।

पंचायती राज और ग्रामीण विकास विभाग ने 2019 में एक परिवार में केवल एक व्यक्ति को पेंशन की नीति लागू की थी। अपनी याचिका में, याचिकाकर्ता थंडवा योगेश ने तर्क दिया कि समान निवास के आधार पर लगाया गया प्रतिबंध 2008 के असंगठित श्रमिकों के अधिकारों, सामाजिक सुरक्षा अधिनियम, राष्ट्रीय सामाजिक सहायता कार्यक्रम दिशानिर्देश और मानव अधिकारों की सार्वभौम घोषणा (यूडीएचआर) का अनुच्छेद 25 का उल्लंघन होने के अलावा संविधान के अनुच्छेद 14, 21, 39 (ए) और 39 (ई) और 41 का उल्लंघन है।

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उच्च न्यायालय के समक्ष राज्य सरकार ने कहा कि उसने परिवार को एक इकाई के रूप में लेने का नीतिगत निर्णय लिया है और आर्थिक एवं नीतिगत निर्णयों में कार्यपालिका को छूट देनी होगी।

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