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Home ताज़ा समाचार

सुप्रीम कोर्ट ने किशोरों के बीच रोमांटिक मामलों संबंधी अधिसूचना के खिलाफ याचिका पर तमिलनाडु सरकार को नोटिस जारी किया (लीड-1)

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August 26, 2023
in ताज़ा समाचार
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नई दिल्ली, 26 अगस्त (आईएएनएस)। सुप्रीम कोर्ट ने बच्चों के अधिकार संगठन द्वारा दायर उस याचिका पर तमिलनाडु सरकार को नोटिस जारी कर जवाब मांगा है, जिसमें पुलिस महानिदेशक द्वारा जारी अधिसूचना को चुनौती दी गई है। अधिसूचना में किशोरों के बीच आपसी रोमांटिक मामलों में पॉक्सो मामलों के जांच अधिकारियों को जल्दबाजी न दिखाने का निर्देश दिया गया है। 

सीजेआई डी.वाई. चंद्रचूड़, न्यायमूर्ति जे.बी. पारदीवाला और न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा की पीठ ने एनजीओ बचपन बचाओ आंदोलन (बीबीए) द्वारा दायर जनहित याचिका पर केंद्रीय महिला एवं बाल विकास मंत्रालय, राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग (एनसीपीसीआर) और तमिलनाडु राज्य को नोटिस जारी किए।

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याचिका में कहा गया है कि इस तरह की अधिसूचनाएं या परिपत्र जारी करने से 16 से 18 वर्ष की आयु के पीड़ितों के यौन शोषण के ऐसे मामलों से निपटने में अस्पष्टता और सतही छूट पैदा होती है।

याचिका में दावा किया गया है कि विभिन्न गैर सरकारी संगठनों, सरकारों और कानून प्रवर्तन अधिकारियों ने त्रुटिपूर्ण कार्यप्रणाली पर भरोसा किया है कि पॉक्सो (यौन अपराधों से बच्चों का संरक्षण अधिनियम) के तहत दर्ज 60-70 प्रतिशत मामले किशोरों के बीच “सहमति से बने रोमांटिक संबंध” की श्रेणी में आते हैं।

इसके विपरीत, याचिकाकर्ता ने आरोप लगाया कि 60-70 प्रतिशत का यह आंकड़ा गलत है, क्योंकि 16 से 18 वर्ष के बीच के मामलों की कुल संख्या देश में पॉक्सो के कुल मामलों का लगभग 30 प्रतिशत है।

बाल अधिकार कार्यकर्ता और बीबीए के पूर्व राष्ट्रीय सचिव, भुवन रिभु ने कहा कि उम्मीद है कि शीर्ष अदालत उन मामलों से निपटने के लिए दिशानिर्देश बनाएगी।

–आईएएनएस

एसजीके

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नई दिल्ली, 26 अगस्त (आईएएनएस)। सुप्रीम कोर्ट ने बच्चों के अधिकार संगठन द्वारा दायर उस याचिका पर तमिलनाडु सरकार को नोटिस जारी कर जवाब मांगा है, जिसमें पुलिस महानिदेशक द्वारा जारी अधिसूचना को चुनौती दी गई है। अधिसूचना में किशोरों के बीच आपसी रोमांटिक मामलों में पॉक्सो मामलों के जांच अधिकारियों को जल्दबाजी न दिखाने का निर्देश दिया गया है। 

सीजेआई डी.वाई. चंद्रचूड़, न्यायमूर्ति जे.बी. पारदीवाला और न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा की पीठ ने एनजीओ बचपन बचाओ आंदोलन (बीबीए) द्वारा दायर जनहित याचिका पर केंद्रीय महिला एवं बाल विकास मंत्रालय, राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग (एनसीपीसीआर) और तमिलनाडु राज्य को नोटिस जारी किए।

याचिका में कहा गया है कि इस तरह की अधिसूचनाएं या परिपत्र जारी करने से 16 से 18 वर्ष की आयु के पीड़ितों के यौन शोषण के ऐसे मामलों से निपटने में अस्पष्टता और सतही छूट पैदा होती है।

याचिका में दावा किया गया है कि विभिन्न गैर सरकारी संगठनों, सरकारों और कानून प्रवर्तन अधिकारियों ने त्रुटिपूर्ण कार्यप्रणाली पर भरोसा किया है कि पॉक्सो (यौन अपराधों से बच्चों का संरक्षण अधिनियम) के तहत दर्ज 60-70 प्रतिशत मामले किशोरों के बीच “सहमति से बने रोमांटिक संबंध” की श्रेणी में आते हैं।

इसके विपरीत, याचिकाकर्ता ने आरोप लगाया कि 60-70 प्रतिशत का यह आंकड़ा गलत है, क्योंकि 16 से 18 वर्ष के बीच के मामलों की कुल संख्या देश में पॉक्सो के कुल मामलों का लगभग 30 प्रतिशत है।

बाल अधिकार कार्यकर्ता और बीबीए के पूर्व राष्ट्रीय सचिव, भुवन रिभु ने कहा कि उम्मीद है कि शीर्ष अदालत उन मामलों से निपटने के लिए दिशानिर्देश बनाएगी।

–आईएएनएस

एसजीके

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नई दिल्ली, 26 अगस्त (आईएएनएस)। सुप्रीम कोर्ट ने बच्चों के अधिकार संगठन द्वारा दायर उस याचिका पर तमिलनाडु सरकार को नोटिस जारी कर जवाब मांगा है, जिसमें पुलिस महानिदेशक द्वारा जारी अधिसूचना को चुनौती दी गई है। अधिसूचना में किशोरों के बीच आपसी रोमांटिक मामलों में पॉक्सो मामलों के जांच अधिकारियों को जल्दबाजी न दिखाने का निर्देश दिया गया है। 

सीजेआई डी.वाई. चंद्रचूड़, न्यायमूर्ति जे.बी. पारदीवाला और न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा की पीठ ने एनजीओ बचपन बचाओ आंदोलन (बीबीए) द्वारा दायर जनहित याचिका पर केंद्रीय महिला एवं बाल विकास मंत्रालय, राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग (एनसीपीसीआर) और तमिलनाडु राज्य को नोटिस जारी किए।

याचिका में कहा गया है कि इस तरह की अधिसूचनाएं या परिपत्र जारी करने से 16 से 18 वर्ष की आयु के पीड़ितों के यौन शोषण के ऐसे मामलों से निपटने में अस्पष्टता और सतही छूट पैदा होती है।

याचिका में दावा किया गया है कि विभिन्न गैर सरकारी संगठनों, सरकारों और कानून प्रवर्तन अधिकारियों ने त्रुटिपूर्ण कार्यप्रणाली पर भरोसा किया है कि पॉक्सो (यौन अपराधों से बच्चों का संरक्षण अधिनियम) के तहत दर्ज 60-70 प्रतिशत मामले किशोरों के बीच “सहमति से बने रोमांटिक संबंध” की श्रेणी में आते हैं।

इसके विपरीत, याचिकाकर्ता ने आरोप लगाया कि 60-70 प्रतिशत का यह आंकड़ा गलत है, क्योंकि 16 से 18 वर्ष के बीच के मामलों की कुल संख्या देश में पॉक्सो के कुल मामलों का लगभग 30 प्रतिशत है।

बाल अधिकार कार्यकर्ता और बीबीए के पूर्व राष्ट्रीय सचिव, भुवन रिभु ने कहा कि उम्मीद है कि शीर्ष अदालत उन मामलों से निपटने के लिए दिशानिर्देश बनाएगी।

–आईएएनएस

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नई दिल्ली, 26 अगस्त (आईएएनएस)। सुप्रीम कोर्ट ने बच्चों के अधिकार संगठन द्वारा दायर उस याचिका पर तमिलनाडु सरकार को नोटिस जारी कर जवाब मांगा है, जिसमें पुलिस महानिदेशक द्वारा जारी अधिसूचना को चुनौती दी गई है। अधिसूचना में किशोरों के बीच आपसी रोमांटिक मामलों में पॉक्सो मामलों के जांच अधिकारियों को जल्दबाजी न दिखाने का निर्देश दिया गया है। 

सीजेआई डी.वाई. चंद्रचूड़, न्यायमूर्ति जे.बी. पारदीवाला और न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा की पीठ ने एनजीओ बचपन बचाओ आंदोलन (बीबीए) द्वारा दायर जनहित याचिका पर केंद्रीय महिला एवं बाल विकास मंत्रालय, राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग (एनसीपीसीआर) और तमिलनाडु राज्य को नोटिस जारी किए।

याचिका में कहा गया है कि इस तरह की अधिसूचनाएं या परिपत्र जारी करने से 16 से 18 वर्ष की आयु के पीड़ितों के यौन शोषण के ऐसे मामलों से निपटने में अस्पष्टता और सतही छूट पैदा होती है।

याचिका में दावा किया गया है कि विभिन्न गैर सरकारी संगठनों, सरकारों और कानून प्रवर्तन अधिकारियों ने त्रुटिपूर्ण कार्यप्रणाली पर भरोसा किया है कि पॉक्सो (यौन अपराधों से बच्चों का संरक्षण अधिनियम) के तहत दर्ज 60-70 प्रतिशत मामले किशोरों के बीच “सहमति से बने रोमांटिक संबंध” की श्रेणी में आते हैं।

इसके विपरीत, याचिकाकर्ता ने आरोप लगाया कि 60-70 प्रतिशत का यह आंकड़ा गलत है, क्योंकि 16 से 18 वर्ष के बीच के मामलों की कुल संख्या देश में पॉक्सो के कुल मामलों का लगभग 30 प्रतिशत है।

बाल अधिकार कार्यकर्ता और बीबीए के पूर्व राष्ट्रीय सचिव, भुवन रिभु ने कहा कि उम्मीद है कि शीर्ष अदालत उन मामलों से निपटने के लिए दिशानिर्देश बनाएगी।

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सीजेआई डी.वाई. चंद्रचूड़, न्यायमूर्ति जे.बी. पारदीवाला और न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा की पीठ ने एनजीओ बचपन बचाओ आंदोलन (बीबीए) द्वारा दायर जनहित याचिका पर केंद्रीय महिला एवं बाल विकास मंत्रालय, राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग (एनसीपीसीआर) और तमिलनाडु राज्य को नोटिस जारी किए।

याचिका में कहा गया है कि इस तरह की अधिसूचनाएं या परिपत्र जारी करने से 16 से 18 वर्ष की आयु के पीड़ितों के यौन शोषण के ऐसे मामलों से निपटने में अस्पष्टता और सतही छूट पैदा होती है।

याचिका में दावा किया गया है कि विभिन्न गैर सरकारी संगठनों, सरकारों और कानून प्रवर्तन अधिकारियों ने त्रुटिपूर्ण कार्यप्रणाली पर भरोसा किया है कि पॉक्सो (यौन अपराधों से बच्चों का संरक्षण अधिनियम) के तहत दर्ज 60-70 प्रतिशत मामले किशोरों के बीच “सहमति से बने रोमांटिक संबंध” की श्रेणी में आते हैं।

इसके विपरीत, याचिकाकर्ता ने आरोप लगाया कि 60-70 प्रतिशत का यह आंकड़ा गलत है, क्योंकि 16 से 18 वर्ष के बीच के मामलों की कुल संख्या देश में पॉक्सो के कुल मामलों का लगभग 30 प्रतिशत है।

बाल अधिकार कार्यकर्ता और बीबीए के पूर्व राष्ट्रीय सचिव, भुवन रिभु ने कहा कि उम्मीद है कि शीर्ष अदालत उन मामलों से निपटने के लिए दिशानिर्देश बनाएगी।

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सीजेआई डी.वाई. चंद्रचूड़, न्यायमूर्ति जे.बी. पारदीवाला और न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा की पीठ ने एनजीओ बचपन बचाओ आंदोलन (बीबीए) द्वारा दायर जनहित याचिका पर केंद्रीय महिला एवं बाल विकास मंत्रालय, राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग (एनसीपीसीआर) और तमिलनाडु राज्य को नोटिस जारी किए।

याचिका में कहा गया है कि इस तरह की अधिसूचनाएं या परिपत्र जारी करने से 16 से 18 वर्ष की आयु के पीड़ितों के यौन शोषण के ऐसे मामलों से निपटने में अस्पष्टता और सतही छूट पैदा होती है।

याचिका में दावा किया गया है कि विभिन्न गैर सरकारी संगठनों, सरकारों और कानून प्रवर्तन अधिकारियों ने त्रुटिपूर्ण कार्यप्रणाली पर भरोसा किया है कि पॉक्सो (यौन अपराधों से बच्चों का संरक्षण अधिनियम) के तहत दर्ज 60-70 प्रतिशत मामले किशोरों के बीच “सहमति से बने रोमांटिक संबंध” की श्रेणी में आते हैं।

इसके विपरीत, याचिकाकर्ता ने आरोप लगाया कि 60-70 प्रतिशत का यह आंकड़ा गलत है, क्योंकि 16 से 18 वर्ष के बीच के मामलों की कुल संख्या देश में पॉक्सो के कुल मामलों का लगभग 30 प्रतिशत है।

बाल अधिकार कार्यकर्ता और बीबीए के पूर्व राष्ट्रीय सचिव, भुवन रिभु ने कहा कि उम्मीद है कि शीर्ष अदालत उन मामलों से निपटने के लिए दिशानिर्देश बनाएगी।

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याचिका में कहा गया है कि इस तरह की अधिसूचनाएं या परिपत्र जारी करने से 16 से 18 वर्ष की आयु के पीड़ितों के यौन शोषण के ऐसे मामलों से निपटने में अस्पष्टता और सतही छूट पैदा होती है।

याचिका में दावा किया गया है कि विभिन्न गैर सरकारी संगठनों, सरकारों और कानून प्रवर्तन अधिकारियों ने त्रुटिपूर्ण कार्यप्रणाली पर भरोसा किया है कि पॉक्सो (यौन अपराधों से बच्चों का संरक्षण अधिनियम) के तहत दर्ज 60-70 प्रतिशत मामले किशोरों के बीच “सहमति से बने रोमांटिक संबंध” की श्रेणी में आते हैं।

इसके विपरीत, याचिकाकर्ता ने आरोप लगाया कि 60-70 प्रतिशत का यह आंकड़ा गलत है, क्योंकि 16 से 18 वर्ष के बीच के मामलों की कुल संख्या देश में पॉक्सो के कुल मामलों का लगभग 30 प्रतिशत है।

बाल अधिकार कार्यकर्ता और बीबीए के पूर्व राष्ट्रीय सचिव, भुवन रिभु ने कहा कि उम्मीद है कि शीर्ष अदालत उन मामलों से निपटने के लिए दिशानिर्देश बनाएगी।

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याचिका में दावा किया गया है कि विभिन्न गैर सरकारी संगठनों, सरकारों और कानून प्रवर्तन अधिकारियों ने त्रुटिपूर्ण कार्यप्रणाली पर भरोसा किया है कि पॉक्सो (यौन अपराधों से बच्चों का संरक्षण अधिनियम) के तहत दर्ज 60-70 प्रतिशत मामले किशोरों के बीच “सहमति से बने रोमांटिक संबंध” की श्रेणी में आते हैं।

इसके विपरीत, याचिकाकर्ता ने आरोप लगाया कि 60-70 प्रतिशत का यह आंकड़ा गलत है, क्योंकि 16 से 18 वर्ष के बीच के मामलों की कुल संख्या देश में पॉक्सो के कुल मामलों का लगभग 30 प्रतिशत है।

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याचिका में कहा गया है कि इस तरह की अधिसूचनाएं या परिपत्र जारी करने से 16 से 18 वर्ष की आयु के पीड़ितों के यौन शोषण के ऐसे मामलों से निपटने में अस्पष्टता और सतही छूट पैदा होती है।

याचिका में दावा किया गया है कि विभिन्न गैर सरकारी संगठनों, सरकारों और कानून प्रवर्तन अधिकारियों ने त्रुटिपूर्ण कार्यप्रणाली पर भरोसा किया है कि पॉक्सो (यौन अपराधों से बच्चों का संरक्षण अधिनियम) के तहत दर्ज 60-70 प्रतिशत मामले किशोरों के बीच “सहमति से बने रोमांटिक संबंध” की श्रेणी में आते हैं।

इसके विपरीत, याचिकाकर्ता ने आरोप लगाया कि 60-70 प्रतिशत का यह आंकड़ा गलत है, क्योंकि 16 से 18 वर्ष के बीच के मामलों की कुल संख्या देश में पॉक्सो के कुल मामलों का लगभग 30 प्रतिशत है।

बाल अधिकार कार्यकर्ता और बीबीए के पूर्व राष्ट्रीय सचिव, भुवन रिभु ने कहा कि उम्मीद है कि शीर्ष अदालत उन मामलों से निपटने के लिए दिशानिर्देश बनाएगी।

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सीजेआई डी.वाई. चंद्रचूड़, न्यायमूर्ति जे.बी. पारदीवाला और न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा की पीठ ने एनजीओ बचपन बचाओ आंदोलन (बीबीए) द्वारा दायर जनहित याचिका पर केंद्रीय महिला एवं बाल विकास मंत्रालय, राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग (एनसीपीसीआर) और तमिलनाडु राज्य को नोटिस जारी किए।

याचिका में कहा गया है कि इस तरह की अधिसूचनाएं या परिपत्र जारी करने से 16 से 18 वर्ष की आयु के पीड़ितों के यौन शोषण के ऐसे मामलों से निपटने में अस्पष्टता और सतही छूट पैदा होती है।

याचिका में दावा किया गया है कि विभिन्न गैर सरकारी संगठनों, सरकारों और कानून प्रवर्तन अधिकारियों ने त्रुटिपूर्ण कार्यप्रणाली पर भरोसा किया है कि पॉक्सो (यौन अपराधों से बच्चों का संरक्षण अधिनियम) के तहत दर्ज 60-70 प्रतिशत मामले किशोरों के बीच “सहमति से बने रोमांटिक संबंध” की श्रेणी में आते हैं।

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सीजेआई डी.वाई. चंद्रचूड़, न्यायमूर्ति जे.बी. पारदीवाला और न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा की पीठ ने एनजीओ बचपन बचाओ आंदोलन (बीबीए) द्वारा दायर जनहित याचिका पर केंद्रीय महिला एवं बाल विकास मंत्रालय, राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग (एनसीपीसीआर) और तमिलनाडु राज्य को नोटिस जारी किए।

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याचिका में दावा किया गया है कि विभिन्न गैर सरकारी संगठनों, सरकारों और कानून प्रवर्तन अधिकारियों ने त्रुटिपूर्ण कार्यप्रणाली पर भरोसा किया है कि पॉक्सो (यौन अपराधों से बच्चों का संरक्षण अधिनियम) के तहत दर्ज 60-70 प्रतिशत मामले किशोरों के बीच “सहमति से बने रोमांटिक संबंध” की श्रेणी में आते हैं।

इसके विपरीत, याचिकाकर्ता ने आरोप लगाया कि 60-70 प्रतिशत का यह आंकड़ा गलत है, क्योंकि 16 से 18 वर्ष के बीच के मामलों की कुल संख्या देश में पॉक्सो के कुल मामलों का लगभग 30 प्रतिशत है।

बाल अधिकार कार्यकर्ता और बीबीए के पूर्व राष्ट्रीय सचिव, भुवन रिभु ने कहा कि उम्मीद है कि शीर्ष अदालत उन मामलों से निपटने के लिए दिशानिर्देश बनाएगी।

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याचिका में दावा किया गया है कि विभिन्न गैर सरकारी संगठनों, सरकारों और कानून प्रवर्तन अधिकारियों ने त्रुटिपूर्ण कार्यप्रणाली पर भरोसा किया है कि पॉक्सो (यौन अपराधों से बच्चों का संरक्षण अधिनियम) के तहत दर्ज 60-70 प्रतिशत मामले किशोरों के बीच “सहमति से बने रोमांटिक संबंध” की श्रेणी में आते हैं।

इसके विपरीत, याचिकाकर्ता ने आरोप लगाया कि 60-70 प्रतिशत का यह आंकड़ा गलत है, क्योंकि 16 से 18 वर्ष के बीच के मामलों की कुल संख्या देश में पॉक्सो के कुल मामलों का लगभग 30 प्रतिशत है।

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नई दिल्ली, 26 अगस्त (आईएएनएस)। सुप्रीम कोर्ट ने बच्चों के अधिकार संगठन द्वारा दायर उस याचिका पर तमिलनाडु सरकार को नोटिस जारी कर जवाब मांगा है, जिसमें पुलिस महानिदेशक द्वारा जारी अधिसूचना को चुनौती दी गई है। अधिसूचना में किशोरों के बीच आपसी रोमांटिक मामलों में पॉक्सो मामलों के जांच अधिकारियों को जल्दबाजी न दिखाने का निर्देश दिया गया है। 

सीजेआई डी.वाई. चंद्रचूड़, न्यायमूर्ति जे.बी. पारदीवाला और न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा की पीठ ने एनजीओ बचपन बचाओ आंदोलन (बीबीए) द्वारा दायर जनहित याचिका पर केंद्रीय महिला एवं बाल विकास मंत्रालय, राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग (एनसीपीसीआर) और तमिलनाडु राज्य को नोटिस जारी किए।

याचिका में कहा गया है कि इस तरह की अधिसूचनाएं या परिपत्र जारी करने से 16 से 18 वर्ष की आयु के पीड़ितों के यौन शोषण के ऐसे मामलों से निपटने में अस्पष्टता और सतही छूट पैदा होती है।

याचिका में दावा किया गया है कि विभिन्न गैर सरकारी संगठनों, सरकारों और कानून प्रवर्तन अधिकारियों ने त्रुटिपूर्ण कार्यप्रणाली पर भरोसा किया है कि पॉक्सो (यौन अपराधों से बच्चों का संरक्षण अधिनियम) के तहत दर्ज 60-70 प्रतिशत मामले किशोरों के बीच “सहमति से बने रोमांटिक संबंध” की श्रेणी में आते हैं।

इसके विपरीत, याचिकाकर्ता ने आरोप लगाया कि 60-70 प्रतिशत का यह आंकड़ा गलत है, क्योंकि 16 से 18 वर्ष के बीच के मामलों की कुल संख्या देश में पॉक्सो के कुल मामलों का लगभग 30 प्रतिशत है।

बाल अधिकार कार्यकर्ता और बीबीए के पूर्व राष्ट्रीय सचिव, भुवन रिभु ने कहा कि उम्मीद है कि शीर्ष अदालत उन मामलों से निपटने के लिए दिशानिर्देश बनाएगी।

–आईएएनएस

एसजीके

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नई दिल्ली, 26 अगस्त (आईएएनएस)। सुप्रीम कोर्ट ने बच्चों के अधिकार संगठन द्वारा दायर उस याचिका पर तमिलनाडु सरकार को नोटिस जारी कर जवाब मांगा है, जिसमें पुलिस महानिदेशक द्वारा जारी अधिसूचना को चुनौती दी गई है। अधिसूचना में किशोरों के बीच आपसी रोमांटिक मामलों में पॉक्सो मामलों के जांच अधिकारियों को जल्दबाजी न दिखाने का निर्देश दिया गया है। 

सीजेआई डी.वाई. चंद्रचूड़, न्यायमूर्ति जे.बी. पारदीवाला और न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा की पीठ ने एनजीओ बचपन बचाओ आंदोलन (बीबीए) द्वारा दायर जनहित याचिका पर केंद्रीय महिला एवं बाल विकास मंत्रालय, राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग (एनसीपीसीआर) और तमिलनाडु राज्य को नोटिस जारी किए।

याचिका में कहा गया है कि इस तरह की अधिसूचनाएं या परिपत्र जारी करने से 16 से 18 वर्ष की आयु के पीड़ितों के यौन शोषण के ऐसे मामलों से निपटने में अस्पष्टता और सतही छूट पैदा होती है।

याचिका में दावा किया गया है कि विभिन्न गैर सरकारी संगठनों, सरकारों और कानून प्रवर्तन अधिकारियों ने त्रुटिपूर्ण कार्यप्रणाली पर भरोसा किया है कि पॉक्सो (यौन अपराधों से बच्चों का संरक्षण अधिनियम) के तहत दर्ज 60-70 प्रतिशत मामले किशोरों के बीच “सहमति से बने रोमांटिक संबंध” की श्रेणी में आते हैं।

इसके विपरीत, याचिकाकर्ता ने आरोप लगाया कि 60-70 प्रतिशत का यह आंकड़ा गलत है, क्योंकि 16 से 18 वर्ष के बीच के मामलों की कुल संख्या देश में पॉक्सो के कुल मामलों का लगभग 30 प्रतिशत है।

बाल अधिकार कार्यकर्ता और बीबीए के पूर्व राष्ट्रीय सचिव, भुवन रिभु ने कहा कि उम्मीद है कि शीर्ष अदालत उन मामलों से निपटने के लिए दिशानिर्देश बनाएगी।

–आईएएनएस

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नई दिल्ली, 26 अगस्त (आईएएनएस)। सुप्रीम कोर्ट ने बच्चों के अधिकार संगठन द्वारा दायर उस याचिका पर तमिलनाडु सरकार को नोटिस जारी कर जवाब मांगा है, जिसमें पुलिस महानिदेशक द्वारा जारी अधिसूचना को चुनौती दी गई है। अधिसूचना में किशोरों के बीच आपसी रोमांटिक मामलों में पॉक्सो मामलों के जांच अधिकारियों को जल्दबाजी न दिखाने का निर्देश दिया गया है। 

सीजेआई डी.वाई. चंद्रचूड़, न्यायमूर्ति जे.बी. पारदीवाला और न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा की पीठ ने एनजीओ बचपन बचाओ आंदोलन (बीबीए) द्वारा दायर जनहित याचिका पर केंद्रीय महिला एवं बाल विकास मंत्रालय, राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग (एनसीपीसीआर) और तमिलनाडु राज्य को नोटिस जारी किए।

याचिका में कहा गया है कि इस तरह की अधिसूचनाएं या परिपत्र जारी करने से 16 से 18 वर्ष की आयु के पीड़ितों के यौन शोषण के ऐसे मामलों से निपटने में अस्पष्टता और सतही छूट पैदा होती है।

याचिका में दावा किया गया है कि विभिन्न गैर सरकारी संगठनों, सरकारों और कानून प्रवर्तन अधिकारियों ने त्रुटिपूर्ण कार्यप्रणाली पर भरोसा किया है कि पॉक्सो (यौन अपराधों से बच्चों का संरक्षण अधिनियम) के तहत दर्ज 60-70 प्रतिशत मामले किशोरों के बीच “सहमति से बने रोमांटिक संबंध” की श्रेणी में आते हैं।

इसके विपरीत, याचिकाकर्ता ने आरोप लगाया कि 60-70 प्रतिशत का यह आंकड़ा गलत है, क्योंकि 16 से 18 वर्ष के बीच के मामलों की कुल संख्या देश में पॉक्सो के कुल मामलों का लगभग 30 प्रतिशत है।

बाल अधिकार कार्यकर्ता और बीबीए के पूर्व राष्ट्रीय सचिव, भुवन रिभु ने कहा कि उम्मीद है कि शीर्ष अदालत उन मामलों से निपटने के लिए दिशानिर्देश बनाएगी।

–आईएएनएस

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