नई दिल्ली, 20 मार्च (आईएएनएस)। सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को कहा कि केंद्र को वन रैंक वन पेंशन (ओआरओपी) योजना के तहत सेवानिवृत्त रक्षा कर्मियों के पेंशन बकाया को एक बार में चुकाने में कठिनाइयों का सामना करना पड़ रहा है, लेकिन इस बात पर जोर दिया कि यह कर्तव्य है कि बकाया के भुगतान पर अपने 2022 के फैसले का पालन करें और अगले साल 28 फरवरी तक 2019-2022 के लिए लगभग 28,000 करोड़ रुपये की बकाया राशि का भुगतान करें।
अटॉर्नी जनरल आर. वेंकटरमणी ने प्रधान न्यायाधीश डी.वाई. चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पीठ के समक्ष कहा कि बजट परिव्यय खर्चो को पूरा करने के लिए पर्याप्त नहीं था और कुल पेंशनभोगी 20 लाख से अधिक हैं और ओआरओपी बकाया 28,000 करोड़ रुपये की सीमा में होगा। केंद्र ने 30 अप्रैल, 2024 तक बकाया भुगतान करने का प्रस्ताव दिया है।
पीठ में शामिल जस्टिस पी.एस. नरसिम्हा और जे.बी. पारदीवाला ने कहा कि 25 लाख पेंशनभोगियों में से चार लाख ओआरओपी योजना के लिए योग्य नहीं थे, क्योंकि उन्हें बढ़ी हुई पेंशन मिल रही थी। इसने कहा कि 28 फरवरी, 2024 तक बकाया राशि को मंजूरी दे दी जानी चाहिए और ओआरओपी योजना के तहत पेंशनभोगियों के विभिन्न समूहों को बकाया भुगतान के लिए कार्यक्रम तैयार किया।
पीठ ने निर्देश दिया कि छह लाख पारिवारिक पेंशनरों और वीरता पुरस्कार विजेताओं को 30 अप्रैल, 2023 तक उनके ओआरओपी बकाया का भुगतान किया जाना चाहिए और 70 वर्ष और उससे अधिक आयु के सेवानिवृत्त सैनिकों, जो लगभग 4-5 लाख हैं, को 30 जून तक एक या अधिक किस्त में अपना बकाया मिलना चाहिए।
पीठ ने आगे कहा कि 28 फरवरी, 2024 तक तीन समान किस्तों में शेष 10-11 लाख पेंशनरों को बकाया का भुगतान किया जाना चाहिए।
इसने जोर देकर कहा कि केंद्र ओआरओपी योजना के संदर्भ में अपने फैसले का पालन करने के लिए बाध्य है और यह भी स्पष्ट कर दिया है कि बकाया राशि का भुगतान अगले साल किए जाने वाले पूर्व सैनिकों की पेंशन के समतुल्यीकरण को प्रभावित नहीं करेगा।
सुनवाई की शुरुआत में शीर्ष अदालत ने पूर्व-सेवा कर्मियों को ओआरओपी बकाया के भुगतान पर अपने विचारों के बारे में केंद्र सरकार के सीलबंद कवर नोट को स्वीकार करने से इनकार कर दिया।
इसने एजी को पूर्व सैनिकों का प्रतिनिधित्व करने वाले वरिष्ठ अधिवक्ता हुजेफा अहमदी के साथ एक नोट साझा करने के लिए कहा। एजी ने जवाब दिया कि यह एक गोपनीय नोट है। प्रधान न्यायाधीश ने कहा : हमें सर्वोच्च न्यायालय में इस सील बंद कवर प्रथा को समाप्त करने की जरूरत है।
पीठ ने आश्चर्य जताया कि इस मामले में गोपनीयता क्या हो सकती है, जो अदालती आदेशों के क्रियान्वयन से संबंधित है।
प्रधान न्यायाधीश ने कहा, मैं व्यक्तिगत रूप से सीलबंद लिफाफे के खिलाफ हूं। हम उसे दिखाए बिना मामले का फैसला करते हैं। यह मौलिक रूप से न्यायिक प्रक्रिया के विपरीत है। ऐसा नहीं हो सकता। अदालत को पारदर्शी होना चाहिए।
पीठ ने आगे कहा कि यह अदालत के फैसले के निर्देशों के अनुसार पेंशन का भुगतान है। चीफ जस्टिस ने एजी से कहा, इसमें बड़ी गोपनीयता क्या हो सकती है?
शीर्ष अदालत ने ओआरओपी बकाये के भुगतान को लेकर भारतीय पूर्व सैनिक आंदोलन (आईईएसएम) की याचिका पर सुनवाई करते हुए यह टिप्पणी की। पिछले हफ्ते शीर्ष अदालत ने चार किस्तों में ओआरओपी बकाये का भुगतान करने के एकतरफा निर्णय के लिए केंद्र सरकार की खिंचाई की थी।
13 मार्च को सुप्रीम कोर्ट ने रक्षा मंत्रालय को अगले सप्ताह तक ओआरओपी योजना के तहत बकाया भुगतान के लिए एक रोडमैप के साथ आने को कहा और मंत्रालय को यह भी बताया कि वह भुगतान पर संचार जारी करके कानून को अपने हाथ में नहीं ले सकता।
–आईएएनएस
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