नई दिल्ली, 1 जुलाई (आईएएनएस)। सुप्रीम कोर्ट ने शनिवार को सामाजिक कार्यकर्ता तीस्ता सीतलवाड़ को गुजरात उच्च न्यायालय के उस आदेश पर रोक लगाते हुए गिरफ्तारी से एक सप्ताह की राहत दे दी, जिसमें उन्हें तुरंत आत्मसमर्पण करने का निर्देश दिया गया था।
2002 के गुजरात दंगों से जुड़े एक मामले में गुजरात उच्च न्यायालय ने तीस्ता को शनिवार को उनकी जमानत याचिका खारिज करने के बाद ‘तुरंत आत्मसमर्पण’ करने के लिए कहा था।
शनिवार को रात 10 बजे आए फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने उन्हें अंतरिम राहत दे दी ।
न्यायमूर्ति अभय एस. ओका और न्यायमूर्ति प्रशांत कुमार मिश्रा, जिन्होंने पहली बार विशेष सुनवाई में मामले की सुनवाई की, ने प्रधान न्यायाधीश, डी.वाई. चंद्रचूड़ से अपील की कि मामले को बड़ी पीठ को सौंपा जाए, क्योंकि दोनों न्यायाधीश किसी निर्णय पर सहमत नहीं हो सके।
तीस्ता पिछले साल सितंबर से अंतरिम जमानत पर हैं, लेकिन अगर सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट के आदेश को ‘खारिज’ नहीं किया तो उन्हें गिरफ्तारी का सामना करना पड़ सकता है।
मुंबई में रहने वाली तीस्ता पर 2002 के गुजरात दंगों के सिलसिले में सबूत गढ़ने का आरोप लगाया गया है।
अदालत का यह फैसला सितंबर 2022 में तीस्ता को सुप्रीम कोर्ट द्वारा अंतरिम जमानत दिए जाने के बाद आया है, जिसने उन्हें अब तक गिरफ्तारी से बचाया था।
गुजरात उच्च न्यायालय के न्यायाधीश निर्जर देसाई के फैसले के बाद वरिष्ठ वकील मिहिर ठाकोर ने अदालत से फैसले के क्रियान्वयन पर 30 दिनों के लिए रोक लगाने का अनुरोध किया। हालांकि, अनुरोध को न्यायमूर्ति देसाई ने खारिज कर दिया।
तीस्ता को अहमदाबाद डिटेक्शन ऑफ क्राइम ब्रांच (डीसीबी) द्वारा दायर एक एफआईआर के आधार पर गुजरात पुलिस ने 25 जून, 2022 को गिरफ्तार किया था।
उनके खिलाफ आरोपों में 2002 के गुजरात दंगों के सिलसिले में निर्दोष व्यक्तियों को झूठा फंसाने की साजिश रचना शामिल है। सात दिनों की पुलिस रिमांड के बाद उसे 2 जुलाई को न्यायिक हिरासत में भेज दिया गया।
सह-आरोपी पूर्व आईपीएस आर.बी. श्रीकुमार के साथ तीस्ता की गिरफ्तारी सुप्रीम कोर्ट द्वारा मारे गए कांग्रेस सांसद अहसान जाफरी की पत्नी जकिया जाफरी की याचिका को खारिज करने के बाद हुई।
याचिका में दंगों में साजिश के आरोपों के संबंध में गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी और अन्य को विशेष जांच दल द्वारा क्लीन चिट दिए जाने को चुनौती दी गई थी।
सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि कार्यवाही “स्पष्ट रूप से गुप्त इरादे के लिए” की गई थी और प्रक्रिया के ऐसे दुरुपयोग में शामिल सभी लोगों को कानूनी परिणामों का सामना करने की जरूरत पर जोर दिया गया।
–आईएएनएस
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