नई दिल्ली, 21 मार्च (आईएएनएस)। सर्वोच्च न्यायालय ने मंगलवार को 1,000 रुपये और 500 रुपये के पुराने नोटों को स्वीकार करने की मांग करने वाले अलग-अलग मामलों पर विचार करने से इनकार कर दिया और याचिकाकर्ताओं से कहा कि वे एक प्रतिनिधित्व के साथ सरकार से संपर्क करें।
जस्टिस बीआर गवई और जस्टिस विक्रम नाथ की पीठ ने संविधान पीठ के फैसले के बाद कहा, अदालत नोटबंदी वाले नोटों को स्वीकार करने के लिए व्यक्तिगत मामलों में संविधान के अनुच्छेद 142 के तहत अपने अधिकार क्षेत्र का प्रयोग करने के बारे में नहीं सोचती है। हालांकि, पीठ ने व्यक्तिगत याचिकाकर्ताओं को एक प्रतिनिधित्व के साथ सरकार से संपर्क करने की अनुमति दी।
पीठ ने कहा कि याचिकाकर्ताओं की वास्तविक शिकायतें हो सकती हैं, लेकिन अधिनियम को बरकरार रखने के मद्देनजर इस अदालत द्वारा कोई राहत नहीं दी जा सकती।
इसने आगे कहा कि अगर याचिकाकर्ता केंद्र सरकार के जवाब से संतुष्ट नहीं हैं, तो वे संबंधित हाईकोर्ट का रुख कर सकते हैं।
एक वकील के सवाल, ऐसे लोगों को पीड़ित क्यों बनाया जाना चाहिए? पर पीठ ने कहा कि वास्तविक कठिनाइयों का कोई कारण हो सकता है, लेकिन यह अदालत के लिए हस्तक्षेप करने का आधार नहीं हो सकता। इस मामले की सरकार द्वारा जांच की जानी चाहिए।
पीठ ने सरकार को 12 सप्ताह की अवधि के भीतर प्रतिनिधित्व तय करने और व्यक्तिगत शिकायतों की जांच करने का निर्देश दिया।
इस साल जनवरी में सुप्रीम कोर्ट ने बहुमत के फैसले में केंद्र के 1,000 रुपये और 500 रुपये के मूल्यवर्ग के नोटों को विमुद्रीकृत करने के फैसले को बरकरार रखा और कहा कि 8 नवंबर, 2016 की अधिसूचना (विमुद्रीकरण) में निर्णय लेने की प्रक्रिया में कोई दोष नहीं है।
शीर्ष अदालत ने कहा कि क्या केवल 500 रुपये के मूल्यवर्ग के नोटों का विमुद्रीकरण किया जाना चाहिए था या केवल 1,000 रुपये के नोटों का मूल्यवर्ग किया जाना चाहिए था, यह विशुद्ध रूप से विशेषज्ञों के क्षेत्र के दायरे में है और न्यायिक समीक्षा के क्षेत्र से परे है।
–आईएएनएस
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