नई दिल्ली, 15 फरवरी (आईएएनएस)। सर्वोच्च न्यायालय ने बुधवार को 2007 में उत्तर प्रदेश में एक ही परिवार के चार सदस्यों की हत्या के मामले में तीन आरोपियों को दी गई आजीवन कारावास की सजा को बरकरार रखा और कहा कि, गवाहों की संख्या नहीं बल्कि गवाहों की गुणवत्ता मायने रखती है।
जस्टिस बी.आर गवई और विक्रम नाथ की खंडपीठ ने कहा: यह अभियोजन पक्ष का विवेक है कि वह आरोप साबित करने के लिए जितना आवश्यक हो उतना सबूत पेश करे। गवाहों की मात्रा नहीं बल्कि गवाहों की गुणवत्ता है जो मायने रखती है।
पीठ ने कहा कि मृतक विजय पाल सिंह की बेटियों में से एक ने हमलावरों को परिवार के सदस्यों की हत्या करते हुए देखा था और बुद्धिमानी से उस समय कुछ भी नहीं बोला और उन्हें अंधेरे में रहने दिया, उसने वास्तव में उन्हें अपराध करते देखा था। पीठ ने आगे कहा कि मृतक में से एक की बेटी, जिसे मामले में गवाह के रूप में पेश किया गया था, घटना के दौरान घायल हो गई थी, पूरी तरह से विश्वसनीय गवाह थी और उसने नेचुरल तरीके से बातें कही हैं।
शीर्ष अदालत का फैसला फरवरी 2012 के इलाहाबाद उच्च न्यायालय के फैसले को चुनौती देने वाली दोषियों द्वारा दायर अपील सहित कई अपीलों पर आया, जिसने मामले में उनकी सजा की पुष्टि की। अदालत ने कहा कि, दोषियों में से एक अजय की मृत्यु हो चुकी है। ट्रायल कोर्ट ने अभियुक्तों को मौत की सजा सुनाई थी, लेकिन उच्च न्यायालय ने उनकी सजा की पुष्टि करते हुए इसे आजीवन कारावास में बदल दिया।
शीर्ष अदालत में, दोषियों में से एक ने तर्क दिया था कि सबूतों में कई विसंगतियां थीं। हालांकि, पीठ ने कहा: हमें विवरण में जाने की आवश्यकता नहीं है क्योंकि ये मामूली हैं और निचली अदालतों द्वारा दर्ज किए गए निष्कर्षों पर इसका कोई प्रभाव नहीं पड़ता है।
उत्तर प्रदेश सरकार ने सजा बढ़ाने की मांग की थी। शीर्ष अदालत ने कहा कि मौत की सजा को आजीवन कारावास में बदलने के लिए उच्च न्यायालय ने ठोस और पुख्ता कारण दिये थे। यह घटना अगस्त 2007 में गाजियाबाद जिले में हुई थी, जहां एक व्यक्ति, उसकी पत्नी, उसके बेटे और दामाद को उनके घर पर धारदार हथियार से गर्दन काटकर हत्या कर दी गई थी।
–आईएएनएस
केसी/एएनएम
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नई दिल्ली, 15 फरवरी (आईएएनएस)। सर्वोच्च न्यायालय ने बुधवार को 2007 में उत्तर प्रदेश में एक ही परिवार के चार सदस्यों की हत्या के मामले में तीन आरोपियों को दी गई आजीवन कारावास की सजा को बरकरार रखा और कहा कि, गवाहों की संख्या नहीं बल्कि गवाहों की गुणवत्ता मायने रखती है।
जस्टिस बी.आर गवई और विक्रम नाथ की खंडपीठ ने कहा: यह अभियोजन पक्ष का विवेक है कि वह आरोप साबित करने के लिए जितना आवश्यक हो उतना सबूत पेश करे। गवाहों की मात्रा नहीं बल्कि गवाहों की गुणवत्ता है जो मायने रखती है।
पीठ ने कहा कि मृतक विजय पाल सिंह की बेटियों में से एक ने हमलावरों को परिवार के सदस्यों की हत्या करते हुए देखा था और बुद्धिमानी से उस समय कुछ भी नहीं बोला और उन्हें अंधेरे में रहने दिया, उसने वास्तव में उन्हें अपराध करते देखा था। पीठ ने आगे कहा कि मृतक में से एक की बेटी, जिसे मामले में गवाह के रूप में पेश किया गया था, घटना के दौरान घायल हो गई थी, पूरी तरह से विश्वसनीय गवाह थी और उसने नेचुरल तरीके से बातें कही हैं।
शीर्ष अदालत का फैसला फरवरी 2012 के इलाहाबाद उच्च न्यायालय के फैसले को चुनौती देने वाली दोषियों द्वारा दायर अपील सहित कई अपीलों पर आया, जिसने मामले में उनकी सजा की पुष्टि की। अदालत ने कहा कि, दोषियों में से एक अजय की मृत्यु हो चुकी है। ट्रायल कोर्ट ने अभियुक्तों को मौत की सजा सुनाई थी, लेकिन उच्च न्यायालय ने उनकी सजा की पुष्टि करते हुए इसे आजीवन कारावास में बदल दिया।
शीर्ष अदालत में, दोषियों में से एक ने तर्क दिया था कि सबूतों में कई विसंगतियां थीं। हालांकि, पीठ ने कहा: हमें विवरण में जाने की आवश्यकता नहीं है क्योंकि ये मामूली हैं और निचली अदालतों द्वारा दर्ज किए गए निष्कर्षों पर इसका कोई प्रभाव नहीं पड़ता है।
उत्तर प्रदेश सरकार ने सजा बढ़ाने की मांग की थी। शीर्ष अदालत ने कहा कि मौत की सजा को आजीवन कारावास में बदलने के लिए उच्च न्यायालय ने ठोस और पुख्ता कारण दिये थे। यह घटना अगस्त 2007 में गाजियाबाद जिले में हुई थी, जहां एक व्यक्ति, उसकी पत्नी, उसके बेटे और दामाद को उनके घर पर धारदार हथियार से गर्दन काटकर हत्या कर दी गई थी।
–आईएएनएस
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नई दिल्ली, 15 फरवरी (आईएएनएस)। सर्वोच्च न्यायालय ने बुधवार को 2007 में उत्तर प्रदेश में एक ही परिवार के चार सदस्यों की हत्या के मामले में तीन आरोपियों को दी गई आजीवन कारावास की सजा को बरकरार रखा और कहा कि, गवाहों की संख्या नहीं बल्कि गवाहों की गुणवत्ता मायने रखती है।
जस्टिस बी.आर गवई और विक्रम नाथ की खंडपीठ ने कहा: यह अभियोजन पक्ष का विवेक है कि वह आरोप साबित करने के लिए जितना आवश्यक हो उतना सबूत पेश करे। गवाहों की मात्रा नहीं बल्कि गवाहों की गुणवत्ता है जो मायने रखती है।
पीठ ने कहा कि मृतक विजय पाल सिंह की बेटियों में से एक ने हमलावरों को परिवार के सदस्यों की हत्या करते हुए देखा था और बुद्धिमानी से उस समय कुछ भी नहीं बोला और उन्हें अंधेरे में रहने दिया, उसने वास्तव में उन्हें अपराध करते देखा था। पीठ ने आगे कहा कि मृतक में से एक की बेटी, जिसे मामले में गवाह के रूप में पेश किया गया था, घटना के दौरान घायल हो गई थी, पूरी तरह से विश्वसनीय गवाह थी और उसने नेचुरल तरीके से बातें कही हैं।
शीर्ष अदालत का फैसला फरवरी 2012 के इलाहाबाद उच्च न्यायालय के फैसले को चुनौती देने वाली दोषियों द्वारा दायर अपील सहित कई अपीलों पर आया, जिसने मामले में उनकी सजा की पुष्टि की। अदालत ने कहा कि, दोषियों में से एक अजय की मृत्यु हो चुकी है। ट्रायल कोर्ट ने अभियुक्तों को मौत की सजा सुनाई थी, लेकिन उच्च न्यायालय ने उनकी सजा की पुष्टि करते हुए इसे आजीवन कारावास में बदल दिया।
शीर्ष अदालत में, दोषियों में से एक ने तर्क दिया था कि सबूतों में कई विसंगतियां थीं। हालांकि, पीठ ने कहा: हमें विवरण में जाने की आवश्यकता नहीं है क्योंकि ये मामूली हैं और निचली अदालतों द्वारा दर्ज किए गए निष्कर्षों पर इसका कोई प्रभाव नहीं पड़ता है।
उत्तर प्रदेश सरकार ने सजा बढ़ाने की मांग की थी। शीर्ष अदालत ने कहा कि मौत की सजा को आजीवन कारावास में बदलने के लिए उच्च न्यायालय ने ठोस और पुख्ता कारण दिये थे। यह घटना अगस्त 2007 में गाजियाबाद जिले में हुई थी, जहां एक व्यक्ति, उसकी पत्नी, उसके बेटे और दामाद को उनके घर पर धारदार हथियार से गर्दन काटकर हत्या कर दी गई थी।
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जस्टिस बी.आर गवई और विक्रम नाथ की खंडपीठ ने कहा: यह अभियोजन पक्ष का विवेक है कि वह आरोप साबित करने के लिए जितना आवश्यक हो उतना सबूत पेश करे। गवाहों की मात्रा नहीं बल्कि गवाहों की गुणवत्ता है जो मायने रखती है।
पीठ ने कहा कि मृतक विजय पाल सिंह की बेटियों में से एक ने हमलावरों को परिवार के सदस्यों की हत्या करते हुए देखा था और बुद्धिमानी से उस समय कुछ भी नहीं बोला और उन्हें अंधेरे में रहने दिया, उसने वास्तव में उन्हें अपराध करते देखा था। पीठ ने आगे कहा कि मृतक में से एक की बेटी, जिसे मामले में गवाह के रूप में पेश किया गया था, घटना के दौरान घायल हो गई थी, पूरी तरह से विश्वसनीय गवाह थी और उसने नेचुरल तरीके से बातें कही हैं।
शीर्ष अदालत का फैसला फरवरी 2012 के इलाहाबाद उच्च न्यायालय के फैसले को चुनौती देने वाली दोषियों द्वारा दायर अपील सहित कई अपीलों पर आया, जिसने मामले में उनकी सजा की पुष्टि की। अदालत ने कहा कि, दोषियों में से एक अजय की मृत्यु हो चुकी है। ट्रायल कोर्ट ने अभियुक्तों को मौत की सजा सुनाई थी, लेकिन उच्च न्यायालय ने उनकी सजा की पुष्टि करते हुए इसे आजीवन कारावास में बदल दिया।
शीर्ष अदालत में, दोषियों में से एक ने तर्क दिया था कि सबूतों में कई विसंगतियां थीं। हालांकि, पीठ ने कहा: हमें विवरण में जाने की आवश्यकता नहीं है क्योंकि ये मामूली हैं और निचली अदालतों द्वारा दर्ज किए गए निष्कर्षों पर इसका कोई प्रभाव नहीं पड़ता है।
उत्तर प्रदेश सरकार ने सजा बढ़ाने की मांग की थी। शीर्ष अदालत ने कहा कि मौत की सजा को आजीवन कारावास में बदलने के लिए उच्च न्यायालय ने ठोस और पुख्ता कारण दिये थे। यह घटना अगस्त 2007 में गाजियाबाद जिले में हुई थी, जहां एक व्यक्ति, उसकी पत्नी, उसके बेटे और दामाद को उनके घर पर धारदार हथियार से गर्दन काटकर हत्या कर दी गई थी।
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जस्टिस बी.आर गवई और विक्रम नाथ की खंडपीठ ने कहा: यह अभियोजन पक्ष का विवेक है कि वह आरोप साबित करने के लिए जितना आवश्यक हो उतना सबूत पेश करे। गवाहों की मात्रा नहीं बल्कि गवाहों की गुणवत्ता है जो मायने रखती है।
पीठ ने कहा कि मृतक विजय पाल सिंह की बेटियों में से एक ने हमलावरों को परिवार के सदस्यों की हत्या करते हुए देखा था और बुद्धिमानी से उस समय कुछ भी नहीं बोला और उन्हें अंधेरे में रहने दिया, उसने वास्तव में उन्हें अपराध करते देखा था। पीठ ने आगे कहा कि मृतक में से एक की बेटी, जिसे मामले में गवाह के रूप में पेश किया गया था, घटना के दौरान घायल हो गई थी, पूरी तरह से विश्वसनीय गवाह थी और उसने नेचुरल तरीके से बातें कही हैं।
शीर्ष अदालत का फैसला फरवरी 2012 के इलाहाबाद उच्च न्यायालय के फैसले को चुनौती देने वाली दोषियों द्वारा दायर अपील सहित कई अपीलों पर आया, जिसने मामले में उनकी सजा की पुष्टि की। अदालत ने कहा कि, दोषियों में से एक अजय की मृत्यु हो चुकी है। ट्रायल कोर्ट ने अभियुक्तों को मौत की सजा सुनाई थी, लेकिन उच्च न्यायालय ने उनकी सजा की पुष्टि करते हुए इसे आजीवन कारावास में बदल दिया।
शीर्ष अदालत में, दोषियों में से एक ने तर्क दिया था कि सबूतों में कई विसंगतियां थीं। हालांकि, पीठ ने कहा: हमें विवरण में जाने की आवश्यकता नहीं है क्योंकि ये मामूली हैं और निचली अदालतों द्वारा दर्ज किए गए निष्कर्षों पर इसका कोई प्रभाव नहीं पड़ता है।
उत्तर प्रदेश सरकार ने सजा बढ़ाने की मांग की थी। शीर्ष अदालत ने कहा कि मौत की सजा को आजीवन कारावास में बदलने के लिए उच्च न्यायालय ने ठोस और पुख्ता कारण दिये थे। यह घटना अगस्त 2007 में गाजियाबाद जिले में हुई थी, जहां एक व्यक्ति, उसकी पत्नी, उसके बेटे और दामाद को उनके घर पर धारदार हथियार से गर्दन काटकर हत्या कर दी गई थी।
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जस्टिस बी.आर गवई और विक्रम नाथ की खंडपीठ ने कहा: यह अभियोजन पक्ष का विवेक है कि वह आरोप साबित करने के लिए जितना आवश्यक हो उतना सबूत पेश करे। गवाहों की मात्रा नहीं बल्कि गवाहों की गुणवत्ता है जो मायने रखती है।
पीठ ने कहा कि मृतक विजय पाल सिंह की बेटियों में से एक ने हमलावरों को परिवार के सदस्यों की हत्या करते हुए देखा था और बुद्धिमानी से उस समय कुछ भी नहीं बोला और उन्हें अंधेरे में रहने दिया, उसने वास्तव में उन्हें अपराध करते देखा था। पीठ ने आगे कहा कि मृतक में से एक की बेटी, जिसे मामले में गवाह के रूप में पेश किया गया था, घटना के दौरान घायल हो गई थी, पूरी तरह से विश्वसनीय गवाह थी और उसने नेचुरल तरीके से बातें कही हैं।
शीर्ष अदालत का फैसला फरवरी 2012 के इलाहाबाद उच्च न्यायालय के फैसले को चुनौती देने वाली दोषियों द्वारा दायर अपील सहित कई अपीलों पर आया, जिसने मामले में उनकी सजा की पुष्टि की। अदालत ने कहा कि, दोषियों में से एक अजय की मृत्यु हो चुकी है। ट्रायल कोर्ट ने अभियुक्तों को मौत की सजा सुनाई थी, लेकिन उच्च न्यायालय ने उनकी सजा की पुष्टि करते हुए इसे आजीवन कारावास में बदल दिया।
शीर्ष अदालत में, दोषियों में से एक ने तर्क दिया था कि सबूतों में कई विसंगतियां थीं। हालांकि, पीठ ने कहा: हमें विवरण में जाने की आवश्यकता नहीं है क्योंकि ये मामूली हैं और निचली अदालतों द्वारा दर्ज किए गए निष्कर्षों पर इसका कोई प्रभाव नहीं पड़ता है।
उत्तर प्रदेश सरकार ने सजा बढ़ाने की मांग की थी। शीर्ष अदालत ने कहा कि मौत की सजा को आजीवन कारावास में बदलने के लिए उच्च न्यायालय ने ठोस और पुख्ता कारण दिये थे। यह घटना अगस्त 2007 में गाजियाबाद जिले में हुई थी, जहां एक व्यक्ति, उसकी पत्नी, उसके बेटे और दामाद को उनके घर पर धारदार हथियार से गर्दन काटकर हत्या कर दी गई थी।
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जस्टिस बी.आर गवई और विक्रम नाथ की खंडपीठ ने कहा: यह अभियोजन पक्ष का विवेक है कि वह आरोप साबित करने के लिए जितना आवश्यक हो उतना सबूत पेश करे। गवाहों की मात्रा नहीं बल्कि गवाहों की गुणवत्ता है जो मायने रखती है।
पीठ ने कहा कि मृतक विजय पाल सिंह की बेटियों में से एक ने हमलावरों को परिवार के सदस्यों की हत्या करते हुए देखा था और बुद्धिमानी से उस समय कुछ भी नहीं बोला और उन्हें अंधेरे में रहने दिया, उसने वास्तव में उन्हें अपराध करते देखा था। पीठ ने आगे कहा कि मृतक में से एक की बेटी, जिसे मामले में गवाह के रूप में पेश किया गया था, घटना के दौरान घायल हो गई थी, पूरी तरह से विश्वसनीय गवाह थी और उसने नेचुरल तरीके से बातें कही हैं।
शीर्ष अदालत का फैसला फरवरी 2012 के इलाहाबाद उच्च न्यायालय के फैसले को चुनौती देने वाली दोषियों द्वारा दायर अपील सहित कई अपीलों पर आया, जिसने मामले में उनकी सजा की पुष्टि की। अदालत ने कहा कि, दोषियों में से एक अजय की मृत्यु हो चुकी है। ट्रायल कोर्ट ने अभियुक्तों को मौत की सजा सुनाई थी, लेकिन उच्च न्यायालय ने उनकी सजा की पुष्टि करते हुए इसे आजीवन कारावास में बदल दिया।
शीर्ष अदालत में, दोषियों में से एक ने तर्क दिया था कि सबूतों में कई विसंगतियां थीं। हालांकि, पीठ ने कहा: हमें विवरण में जाने की आवश्यकता नहीं है क्योंकि ये मामूली हैं और निचली अदालतों द्वारा दर्ज किए गए निष्कर्षों पर इसका कोई प्रभाव नहीं पड़ता है।
उत्तर प्रदेश सरकार ने सजा बढ़ाने की मांग की थी। शीर्ष अदालत ने कहा कि मौत की सजा को आजीवन कारावास में बदलने के लिए उच्च न्यायालय ने ठोस और पुख्ता कारण दिये थे। यह घटना अगस्त 2007 में गाजियाबाद जिले में हुई थी, जहां एक व्यक्ति, उसकी पत्नी, उसके बेटे और दामाद को उनके घर पर धारदार हथियार से गर्दन काटकर हत्या कर दी गई थी।
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जस्टिस बी.आर गवई और विक्रम नाथ की खंडपीठ ने कहा: यह अभियोजन पक्ष का विवेक है कि वह आरोप साबित करने के लिए जितना आवश्यक हो उतना सबूत पेश करे। गवाहों की मात्रा नहीं बल्कि गवाहों की गुणवत्ता है जो मायने रखती है।
पीठ ने कहा कि मृतक विजय पाल सिंह की बेटियों में से एक ने हमलावरों को परिवार के सदस्यों की हत्या करते हुए देखा था और बुद्धिमानी से उस समय कुछ भी नहीं बोला और उन्हें अंधेरे में रहने दिया, उसने वास्तव में उन्हें अपराध करते देखा था। पीठ ने आगे कहा कि मृतक में से एक की बेटी, जिसे मामले में गवाह के रूप में पेश किया गया था, घटना के दौरान घायल हो गई थी, पूरी तरह से विश्वसनीय गवाह थी और उसने नेचुरल तरीके से बातें कही हैं।
शीर्ष अदालत का फैसला फरवरी 2012 के इलाहाबाद उच्च न्यायालय के फैसले को चुनौती देने वाली दोषियों द्वारा दायर अपील सहित कई अपीलों पर आया, जिसने मामले में उनकी सजा की पुष्टि की। अदालत ने कहा कि, दोषियों में से एक अजय की मृत्यु हो चुकी है। ट्रायल कोर्ट ने अभियुक्तों को मौत की सजा सुनाई थी, लेकिन उच्च न्यायालय ने उनकी सजा की पुष्टि करते हुए इसे आजीवन कारावास में बदल दिया।
शीर्ष अदालत में, दोषियों में से एक ने तर्क दिया था कि सबूतों में कई विसंगतियां थीं। हालांकि, पीठ ने कहा: हमें विवरण में जाने की आवश्यकता नहीं है क्योंकि ये मामूली हैं और निचली अदालतों द्वारा दर्ज किए गए निष्कर्षों पर इसका कोई प्रभाव नहीं पड़ता है।
उत्तर प्रदेश सरकार ने सजा बढ़ाने की मांग की थी। शीर्ष अदालत ने कहा कि मौत की सजा को आजीवन कारावास में बदलने के लिए उच्च न्यायालय ने ठोस और पुख्ता कारण दिये थे। यह घटना अगस्त 2007 में गाजियाबाद जिले में हुई थी, जहां एक व्यक्ति, उसकी पत्नी, उसके बेटे और दामाद को उनके घर पर धारदार हथियार से गर्दन काटकर हत्या कर दी गई थी।
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जस्टिस बी.आर गवई और विक्रम नाथ की खंडपीठ ने कहा: यह अभियोजन पक्ष का विवेक है कि वह आरोप साबित करने के लिए जितना आवश्यक हो उतना सबूत पेश करे। गवाहों की मात्रा नहीं बल्कि गवाहों की गुणवत्ता है जो मायने रखती है।
पीठ ने कहा कि मृतक विजय पाल सिंह की बेटियों में से एक ने हमलावरों को परिवार के सदस्यों की हत्या करते हुए देखा था और बुद्धिमानी से उस समय कुछ भी नहीं बोला और उन्हें अंधेरे में रहने दिया, उसने वास्तव में उन्हें अपराध करते देखा था। पीठ ने आगे कहा कि मृतक में से एक की बेटी, जिसे मामले में गवाह के रूप में पेश किया गया था, घटना के दौरान घायल हो गई थी, पूरी तरह से विश्वसनीय गवाह थी और उसने नेचुरल तरीके से बातें कही हैं।
शीर्ष अदालत का फैसला फरवरी 2012 के इलाहाबाद उच्च न्यायालय के फैसले को चुनौती देने वाली दोषियों द्वारा दायर अपील सहित कई अपीलों पर आया, जिसने मामले में उनकी सजा की पुष्टि की। अदालत ने कहा कि, दोषियों में से एक अजय की मृत्यु हो चुकी है। ट्रायल कोर्ट ने अभियुक्तों को मौत की सजा सुनाई थी, लेकिन उच्च न्यायालय ने उनकी सजा की पुष्टि करते हुए इसे आजीवन कारावास में बदल दिया।
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जस्टिस बी.आर गवई और विक्रम नाथ की खंडपीठ ने कहा: यह अभियोजन पक्ष का विवेक है कि वह आरोप साबित करने के लिए जितना आवश्यक हो उतना सबूत पेश करे। गवाहों की मात्रा नहीं बल्कि गवाहों की गुणवत्ता है जो मायने रखती है।
पीठ ने कहा कि मृतक विजय पाल सिंह की बेटियों में से एक ने हमलावरों को परिवार के सदस्यों की हत्या करते हुए देखा था और बुद्धिमानी से उस समय कुछ भी नहीं बोला और उन्हें अंधेरे में रहने दिया, उसने वास्तव में उन्हें अपराध करते देखा था। पीठ ने आगे कहा कि मृतक में से एक की बेटी, जिसे मामले में गवाह के रूप में पेश किया गया था, घटना के दौरान घायल हो गई थी, पूरी तरह से विश्वसनीय गवाह थी और उसने नेचुरल तरीके से बातें कही हैं।
शीर्ष अदालत का फैसला फरवरी 2012 के इलाहाबाद उच्च न्यायालय के फैसले को चुनौती देने वाली दोषियों द्वारा दायर अपील सहित कई अपीलों पर आया, जिसने मामले में उनकी सजा की पुष्टि की। अदालत ने कहा कि, दोषियों में से एक अजय की मृत्यु हो चुकी है। ट्रायल कोर्ट ने अभियुक्तों को मौत की सजा सुनाई थी, लेकिन उच्च न्यायालय ने उनकी सजा की पुष्टि करते हुए इसे आजीवन कारावास में बदल दिया।
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उत्तर प्रदेश सरकार ने सजा बढ़ाने की मांग की थी। शीर्ष अदालत ने कहा कि मौत की सजा को आजीवन कारावास में बदलने के लिए उच्च न्यायालय ने ठोस और पुख्ता कारण दिये थे। यह घटना अगस्त 2007 में गाजियाबाद जिले में हुई थी, जहां एक व्यक्ति, उसकी पत्नी, उसके बेटे और दामाद को उनके घर पर धारदार हथियार से गर्दन काटकर हत्या कर दी गई थी।
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जस्टिस बी.आर गवई और विक्रम नाथ की खंडपीठ ने कहा: यह अभियोजन पक्ष का विवेक है कि वह आरोप साबित करने के लिए जितना आवश्यक हो उतना सबूत पेश करे। गवाहों की मात्रा नहीं बल्कि गवाहों की गुणवत्ता है जो मायने रखती है।
पीठ ने कहा कि मृतक विजय पाल सिंह की बेटियों में से एक ने हमलावरों को परिवार के सदस्यों की हत्या करते हुए देखा था और बुद्धिमानी से उस समय कुछ भी नहीं बोला और उन्हें अंधेरे में रहने दिया, उसने वास्तव में उन्हें अपराध करते देखा था। पीठ ने आगे कहा कि मृतक में से एक की बेटी, जिसे मामले में गवाह के रूप में पेश किया गया था, घटना के दौरान घायल हो गई थी, पूरी तरह से विश्वसनीय गवाह थी और उसने नेचुरल तरीके से बातें कही हैं।
शीर्ष अदालत का फैसला फरवरी 2012 के इलाहाबाद उच्च न्यायालय के फैसले को चुनौती देने वाली दोषियों द्वारा दायर अपील सहित कई अपीलों पर आया, जिसने मामले में उनकी सजा की पुष्टि की। अदालत ने कहा कि, दोषियों में से एक अजय की मृत्यु हो चुकी है। ट्रायल कोर्ट ने अभियुक्तों को मौत की सजा सुनाई थी, लेकिन उच्च न्यायालय ने उनकी सजा की पुष्टि करते हुए इसे आजीवन कारावास में बदल दिया।
शीर्ष अदालत में, दोषियों में से एक ने तर्क दिया था कि सबूतों में कई विसंगतियां थीं। हालांकि, पीठ ने कहा: हमें विवरण में जाने की आवश्यकता नहीं है क्योंकि ये मामूली हैं और निचली अदालतों द्वारा दर्ज किए गए निष्कर्षों पर इसका कोई प्रभाव नहीं पड़ता है।
उत्तर प्रदेश सरकार ने सजा बढ़ाने की मांग की थी। शीर्ष अदालत ने कहा कि मौत की सजा को आजीवन कारावास में बदलने के लिए उच्च न्यायालय ने ठोस और पुख्ता कारण दिये थे। यह घटना अगस्त 2007 में गाजियाबाद जिले में हुई थी, जहां एक व्यक्ति, उसकी पत्नी, उसके बेटे और दामाद को उनके घर पर धारदार हथियार से गर्दन काटकर हत्या कर दी गई थी।
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जस्टिस बी.आर गवई और विक्रम नाथ की खंडपीठ ने कहा: यह अभियोजन पक्ष का विवेक है कि वह आरोप साबित करने के लिए जितना आवश्यक हो उतना सबूत पेश करे। गवाहों की मात्रा नहीं बल्कि गवाहों की गुणवत्ता है जो मायने रखती है।
पीठ ने कहा कि मृतक विजय पाल सिंह की बेटियों में से एक ने हमलावरों को परिवार के सदस्यों की हत्या करते हुए देखा था और बुद्धिमानी से उस समय कुछ भी नहीं बोला और उन्हें अंधेरे में रहने दिया, उसने वास्तव में उन्हें अपराध करते देखा था। पीठ ने आगे कहा कि मृतक में से एक की बेटी, जिसे मामले में गवाह के रूप में पेश किया गया था, घटना के दौरान घायल हो गई थी, पूरी तरह से विश्वसनीय गवाह थी और उसने नेचुरल तरीके से बातें कही हैं।
शीर्ष अदालत का फैसला फरवरी 2012 के इलाहाबाद उच्च न्यायालय के फैसले को चुनौती देने वाली दोषियों द्वारा दायर अपील सहित कई अपीलों पर आया, जिसने मामले में उनकी सजा की पुष्टि की। अदालत ने कहा कि, दोषियों में से एक अजय की मृत्यु हो चुकी है। ट्रायल कोर्ट ने अभियुक्तों को मौत की सजा सुनाई थी, लेकिन उच्च न्यायालय ने उनकी सजा की पुष्टि करते हुए इसे आजीवन कारावास में बदल दिया।
शीर्ष अदालत में, दोषियों में से एक ने तर्क दिया था कि सबूतों में कई विसंगतियां थीं। हालांकि, पीठ ने कहा: हमें विवरण में जाने की आवश्यकता नहीं है क्योंकि ये मामूली हैं और निचली अदालतों द्वारा दर्ज किए गए निष्कर्षों पर इसका कोई प्रभाव नहीं पड़ता है।
उत्तर प्रदेश सरकार ने सजा बढ़ाने की मांग की थी। शीर्ष अदालत ने कहा कि मौत की सजा को आजीवन कारावास में बदलने के लिए उच्च न्यायालय ने ठोस और पुख्ता कारण दिये थे। यह घटना अगस्त 2007 में गाजियाबाद जिले में हुई थी, जहां एक व्यक्ति, उसकी पत्नी, उसके बेटे और दामाद को उनके घर पर धारदार हथियार से गर्दन काटकर हत्या कर दी गई थी।
–आईएएनएस
केसी/एएनएम
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नई दिल्ली, 15 फरवरी (आईएएनएस)। सर्वोच्च न्यायालय ने बुधवार को 2007 में उत्तर प्रदेश में एक ही परिवार के चार सदस्यों की हत्या के मामले में तीन आरोपियों को दी गई आजीवन कारावास की सजा को बरकरार रखा और कहा कि, गवाहों की संख्या नहीं बल्कि गवाहों की गुणवत्ता मायने रखती है।
जस्टिस बी.आर गवई और विक्रम नाथ की खंडपीठ ने कहा: यह अभियोजन पक्ष का विवेक है कि वह आरोप साबित करने के लिए जितना आवश्यक हो उतना सबूत पेश करे। गवाहों की मात्रा नहीं बल्कि गवाहों की गुणवत्ता है जो मायने रखती है।
पीठ ने कहा कि मृतक विजय पाल सिंह की बेटियों में से एक ने हमलावरों को परिवार के सदस्यों की हत्या करते हुए देखा था और बुद्धिमानी से उस समय कुछ भी नहीं बोला और उन्हें अंधेरे में रहने दिया, उसने वास्तव में उन्हें अपराध करते देखा था। पीठ ने आगे कहा कि मृतक में से एक की बेटी, जिसे मामले में गवाह के रूप में पेश किया गया था, घटना के दौरान घायल हो गई थी, पूरी तरह से विश्वसनीय गवाह थी और उसने नेचुरल तरीके से बातें कही हैं।
शीर्ष अदालत का फैसला फरवरी 2012 के इलाहाबाद उच्च न्यायालय के फैसले को चुनौती देने वाली दोषियों द्वारा दायर अपील सहित कई अपीलों पर आया, जिसने मामले में उनकी सजा की पुष्टि की। अदालत ने कहा कि, दोषियों में से एक अजय की मृत्यु हो चुकी है। ट्रायल कोर्ट ने अभियुक्तों को मौत की सजा सुनाई थी, लेकिन उच्च न्यायालय ने उनकी सजा की पुष्टि करते हुए इसे आजीवन कारावास में बदल दिया।
शीर्ष अदालत में, दोषियों में से एक ने तर्क दिया था कि सबूतों में कई विसंगतियां थीं। हालांकि, पीठ ने कहा: हमें विवरण में जाने की आवश्यकता नहीं है क्योंकि ये मामूली हैं और निचली अदालतों द्वारा दर्ज किए गए निष्कर्षों पर इसका कोई प्रभाव नहीं पड़ता है।
उत्तर प्रदेश सरकार ने सजा बढ़ाने की मांग की थी। शीर्ष अदालत ने कहा कि मौत की सजा को आजीवन कारावास में बदलने के लिए उच्च न्यायालय ने ठोस और पुख्ता कारण दिये थे। यह घटना अगस्त 2007 में गाजियाबाद जिले में हुई थी, जहां एक व्यक्ति, उसकी पत्नी, उसके बेटे और दामाद को उनके घर पर धारदार हथियार से गर्दन काटकर हत्या कर दी गई थी।
–आईएएनएस
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नई दिल्ली, 15 फरवरी (आईएएनएस)। सर्वोच्च न्यायालय ने बुधवार को 2007 में उत्तर प्रदेश में एक ही परिवार के चार सदस्यों की हत्या के मामले में तीन आरोपियों को दी गई आजीवन कारावास की सजा को बरकरार रखा और कहा कि, गवाहों की संख्या नहीं बल्कि गवाहों की गुणवत्ता मायने रखती है।
जस्टिस बी.आर गवई और विक्रम नाथ की खंडपीठ ने कहा: यह अभियोजन पक्ष का विवेक है कि वह आरोप साबित करने के लिए जितना आवश्यक हो उतना सबूत पेश करे। गवाहों की मात्रा नहीं बल्कि गवाहों की गुणवत्ता है जो मायने रखती है।
पीठ ने कहा कि मृतक विजय पाल सिंह की बेटियों में से एक ने हमलावरों को परिवार के सदस्यों की हत्या करते हुए देखा था और बुद्धिमानी से उस समय कुछ भी नहीं बोला और उन्हें अंधेरे में रहने दिया, उसने वास्तव में उन्हें अपराध करते देखा था। पीठ ने आगे कहा कि मृतक में से एक की बेटी, जिसे मामले में गवाह के रूप में पेश किया गया था, घटना के दौरान घायल हो गई थी, पूरी तरह से विश्वसनीय गवाह थी और उसने नेचुरल तरीके से बातें कही हैं।
शीर्ष अदालत का फैसला फरवरी 2012 के इलाहाबाद उच्च न्यायालय के फैसले को चुनौती देने वाली दोषियों द्वारा दायर अपील सहित कई अपीलों पर आया, जिसने मामले में उनकी सजा की पुष्टि की। अदालत ने कहा कि, दोषियों में से एक अजय की मृत्यु हो चुकी है। ट्रायल कोर्ट ने अभियुक्तों को मौत की सजा सुनाई थी, लेकिन उच्च न्यायालय ने उनकी सजा की पुष्टि करते हुए इसे आजीवन कारावास में बदल दिया।
शीर्ष अदालत में, दोषियों में से एक ने तर्क दिया था कि सबूतों में कई विसंगतियां थीं। हालांकि, पीठ ने कहा: हमें विवरण में जाने की आवश्यकता नहीं है क्योंकि ये मामूली हैं और निचली अदालतों द्वारा दर्ज किए गए निष्कर्षों पर इसका कोई प्रभाव नहीं पड़ता है।
उत्तर प्रदेश सरकार ने सजा बढ़ाने की मांग की थी। शीर्ष अदालत ने कहा कि मौत की सजा को आजीवन कारावास में बदलने के लिए उच्च न्यायालय ने ठोस और पुख्ता कारण दिये थे। यह घटना अगस्त 2007 में गाजियाबाद जिले में हुई थी, जहां एक व्यक्ति, उसकी पत्नी, उसके बेटे और दामाद को उनके घर पर धारदार हथियार से गर्दन काटकर हत्या कर दी गई थी।
–आईएएनएस
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नई दिल्ली, 15 फरवरी (आईएएनएस)। सर्वोच्च न्यायालय ने बुधवार को 2007 में उत्तर प्रदेश में एक ही परिवार के चार सदस्यों की हत्या के मामले में तीन आरोपियों को दी गई आजीवन कारावास की सजा को बरकरार रखा और कहा कि, गवाहों की संख्या नहीं बल्कि गवाहों की गुणवत्ता मायने रखती है।
जस्टिस बी.आर गवई और विक्रम नाथ की खंडपीठ ने कहा: यह अभियोजन पक्ष का विवेक है कि वह आरोप साबित करने के लिए जितना आवश्यक हो उतना सबूत पेश करे। गवाहों की मात्रा नहीं बल्कि गवाहों की गुणवत्ता है जो मायने रखती है।
पीठ ने कहा कि मृतक विजय पाल सिंह की बेटियों में से एक ने हमलावरों को परिवार के सदस्यों की हत्या करते हुए देखा था और बुद्धिमानी से उस समय कुछ भी नहीं बोला और उन्हें अंधेरे में रहने दिया, उसने वास्तव में उन्हें अपराध करते देखा था। पीठ ने आगे कहा कि मृतक में से एक की बेटी, जिसे मामले में गवाह के रूप में पेश किया गया था, घटना के दौरान घायल हो गई थी, पूरी तरह से विश्वसनीय गवाह थी और उसने नेचुरल तरीके से बातें कही हैं।
शीर्ष अदालत का फैसला फरवरी 2012 के इलाहाबाद उच्च न्यायालय के फैसले को चुनौती देने वाली दोषियों द्वारा दायर अपील सहित कई अपीलों पर आया, जिसने मामले में उनकी सजा की पुष्टि की। अदालत ने कहा कि, दोषियों में से एक अजय की मृत्यु हो चुकी है। ट्रायल कोर्ट ने अभियुक्तों को मौत की सजा सुनाई थी, लेकिन उच्च न्यायालय ने उनकी सजा की पुष्टि करते हुए इसे आजीवन कारावास में बदल दिया।
शीर्ष अदालत में, दोषियों में से एक ने तर्क दिया था कि सबूतों में कई विसंगतियां थीं। हालांकि, पीठ ने कहा: हमें विवरण में जाने की आवश्यकता नहीं है क्योंकि ये मामूली हैं और निचली अदालतों द्वारा दर्ज किए गए निष्कर्षों पर इसका कोई प्रभाव नहीं पड़ता है।
उत्तर प्रदेश सरकार ने सजा बढ़ाने की मांग की थी। शीर्ष अदालत ने कहा कि मौत की सजा को आजीवन कारावास में बदलने के लिए उच्च न्यायालय ने ठोस और पुख्ता कारण दिये थे। यह घटना अगस्त 2007 में गाजियाबाद जिले में हुई थी, जहां एक व्यक्ति, उसकी पत्नी, उसके बेटे और दामाद को उनके घर पर धारदार हथियार से गर्दन काटकर हत्या कर दी गई थी।
–आईएएनएस
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नई दिल्ली, 15 फरवरी (आईएएनएस)। सर्वोच्च न्यायालय ने बुधवार को 2007 में उत्तर प्रदेश में एक ही परिवार के चार सदस्यों की हत्या के मामले में तीन आरोपियों को दी गई आजीवन कारावास की सजा को बरकरार रखा और कहा कि, गवाहों की संख्या नहीं बल्कि गवाहों की गुणवत्ता मायने रखती है।
जस्टिस बी.आर गवई और विक्रम नाथ की खंडपीठ ने कहा: यह अभियोजन पक्ष का विवेक है कि वह आरोप साबित करने के लिए जितना आवश्यक हो उतना सबूत पेश करे। गवाहों की मात्रा नहीं बल्कि गवाहों की गुणवत्ता है जो मायने रखती है।
पीठ ने कहा कि मृतक विजय पाल सिंह की बेटियों में से एक ने हमलावरों को परिवार के सदस्यों की हत्या करते हुए देखा था और बुद्धिमानी से उस समय कुछ भी नहीं बोला और उन्हें अंधेरे में रहने दिया, उसने वास्तव में उन्हें अपराध करते देखा था। पीठ ने आगे कहा कि मृतक में से एक की बेटी, जिसे मामले में गवाह के रूप में पेश किया गया था, घटना के दौरान घायल हो गई थी, पूरी तरह से विश्वसनीय गवाह थी और उसने नेचुरल तरीके से बातें कही हैं।
शीर्ष अदालत का फैसला फरवरी 2012 के इलाहाबाद उच्च न्यायालय के फैसले को चुनौती देने वाली दोषियों द्वारा दायर अपील सहित कई अपीलों पर आया, जिसने मामले में उनकी सजा की पुष्टि की। अदालत ने कहा कि, दोषियों में से एक अजय की मृत्यु हो चुकी है। ट्रायल कोर्ट ने अभियुक्तों को मौत की सजा सुनाई थी, लेकिन उच्च न्यायालय ने उनकी सजा की पुष्टि करते हुए इसे आजीवन कारावास में बदल दिया।
शीर्ष अदालत में, दोषियों में से एक ने तर्क दिया था कि सबूतों में कई विसंगतियां थीं। हालांकि, पीठ ने कहा: हमें विवरण में जाने की आवश्यकता नहीं है क्योंकि ये मामूली हैं और निचली अदालतों द्वारा दर्ज किए गए निष्कर्षों पर इसका कोई प्रभाव नहीं पड़ता है।
उत्तर प्रदेश सरकार ने सजा बढ़ाने की मांग की थी। शीर्ष अदालत ने कहा कि मौत की सजा को आजीवन कारावास में बदलने के लिए उच्च न्यायालय ने ठोस और पुख्ता कारण दिये थे। यह घटना अगस्त 2007 में गाजियाबाद जिले में हुई थी, जहां एक व्यक्ति, उसकी पत्नी, उसके बेटे और दामाद को उनके घर पर धारदार हथियार से गर्दन काटकर हत्या कर दी गई थी।