नई दिल्ली, 8 सितंबर (आईएएनएस)। सुप्रीम कोर्ट ने हत्या के मामले में 12 साल से अधिक समय से जेल में बंद एक व्यक्ति को रिहा करने का आदेश दिया है, क्योंकि अदालत को पता चला कि अपराध के समय वह किशोर था।
न्यायमूर्ति बी.आर. गवई, पी.एस. नरसिम्हा और संजय कुमार की पीठ ने आजीवन कारावास की सजा काट रहे एक दोषी द्वारा दायर एक रिट याचिका पर विचार के बाद यह फैसला दिया, जिसमें पोक्सो अधिनियम, 2000 के प्रावधानों के अनुसार किशोर होने के अपने दावे के सत्यापन की मांग की गई थी।
शीर्ष अदालत के निर्देश के अनुसार अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश द्वारा तैयार की गई एक रिपोर्ट में यह सामने आया कि याचिकाकर्ता की जन्मतिथि 2 मई 1989 है।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा, “यदि याचिकाकर्ता की जन्म तिथि 2 मई 1989 है, तो वह अपराध की तारीख, यानी 21 दिसंबर 2005 को 16 साल 7 महीने का था।”
इसमें कहा गया कि कानून के मुताबिक, याचिकाकर्ता तीन साल से अधिक हिरासत में नहीं रह सकता।
“चूँकि हमारे समक्ष वर्तमान रिट याचिका में पहली बार किशोरवयता की दलील उठाई गई है, 2005 में शुरू हुई आपराधिक कानून की प्रक्रिया के कारण याचिकाकर्ता को दोषी ठहराया गया और ट्रायल कोर्ट, उच्च न्यायालय और उच्चतम न्यायालय ने भी उसे आजीवन कारावास की सजा सुनाई।“
किशोर न्याय अधिनियम, 2000 की धारा 7ए(1) के तहत किशोर होने का दावा किसी भी अदालत के समक्ष और किसी भी स्तर पर उठाया जा सकता है।
आंध्र प्रदेश उच्च न्यायालय ने 2014 में एक फास्ट ट्रैक कोर्ट के 2009 के फैसले को बरकरार रखा था, जिसमें याचिकाकर्ता और अन्य सह-आरोपियों को हत्या के आरोप में आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई थी।
सजा के खिलाफ दायर विशेष अनुमति याचिका को 2022 में सुप्रीम कोर्ट ने खारिज कर दिया था।
सुप्रीम कोर्ट ने आदेश दिया, “द्वितीय अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश, खम्मम की रिपोर्ट को स्वीकार करने के बाद याचिकाकर्ता को अब कैद में नहीं रखा जा सकता है… हम रिट याचिका को स्वीकार करते हैं और निर्देश देते हैं कि याचिकाकर्ता को तुरंत रिहा किया जाए।”
–आईएएनएस
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