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Home Today's Special News

सुप्रीम कोर्ट ने 2021 के घृणा अपराध मामले में प्राथमिकी में देरी पर यूपी पुलिस को फटकारा

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February 6, 2023
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सुप्रीम कोर्ट ने 2021 के घृणा अपराध मामले में प्राथमिकी में देरी पर यूपी पुलिस को फटकारा
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नई दिल्ली, 6 फरवरी (आईएएनएस)। सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को घृणा अपराध में प्राथमिकी दर्ज करने में देरी को लेकर उत्तर प्रदेश पुलिस को फटकार लगाते हुए कहा कि एक धर्मनिरपेक्ष देश में धर्म के आधार पर ऐसे अपराधों के लिए कोई जगह नहीं है।

न्यायमूर्ति के.एम. जोसेफ और बी.वी. नागरत्ना की पीठ ने कहा कि एक धर्मनिरपेक्ष देश में धर्म के आधार पर घृणा अपराध के लिए कोई जगह नहीं है और नागरिकों की रक्षा करना राज्य का प्राथमिक कर्तव्य है।

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पीठ ने कहा, कहा जाता है कि उसने टोपी पहनी हुई थी.. जब इस तरह के अपराधों के खिलाफ कार्रवाई नहीं की जाती है तो माहौल बिगड़ जाता है, जो एक खतरनाक मुद्दा है और इसे हमारे जीवन से जड़ से खत्म करना होगा। इसे अनदेखा करने पर यह एक दिन आपके लिए खतरनाक बन जाएगा।

शीर्ष अदालत ने ये टिप्पणियां 62 वर्षीय काजीम अहमद शेरवानी की याचिका पर सुनवाई के दौरान कीं, जिसने जुलाई 2021 में नोएडा में एक कथित घृणा अपराध का शिकार होने का दावा किया है।

पीठ ने उत्तर प्रदेश सरकार का प्रतिनिधित्व कर रहे अतिरिक्त महाधिवक्ता गरिमा प्रसाद से कहा कि इस घटना को छुपाया नहीं जा सकता और चिंता जताई कि घटना जुलाई 2021 में हुई और प्राथमिकी घटना की तारीख के लगभग डेढ़ साल बाद जनवरी 2023 में दर्ज की गई।

पीठ ने पाया कि जनवरी में सुनवाई की आखिरी तारीख के बाद ही प्राथमिकी दर्ज की गई थी, जब अदालत ने यूपी पुलिस को निर्देश दिया था। पीठ ने केस डायरी पेश करने को कहा। पिछली सुनवाई में पीठ ने हेट क्राइम के आरोपियों के खिलाफ मामले दर्ज करने में राज्य की विफलता पर असंतोष प्रकट किया था।

पीठ ने यूपी सरकार के वकील से कहा : क्या आप स्वीकार नहीं करेंगे कि घृणा अपराध है और आप इसे कालीन के नीचे मिटा देंगे? हम केवल अपनी पीड़ा व्यक्त कर रहे हैं।

पीठ ने इस बात पर जोर दिया कि अल्पसंख्यक हो या बहुसंख्यक, कुछ अधिकार हैं जो हर मनुष्य में निहित हैं। शीर्ष अदालत ने कहा, आप एक परिवार में पैदा हुए हैं और पले-बढ़े हैं, लेकिन हम एक राष्ट्र के रूप में खड़े हैं। आपको इसे गंभीरता से लेना होगा।

याचिकाकर्ता का प्रतिनिधित्व कर रहे वरिष्ठ अधिवक्ता हुजेफा अहमदी ने कहा कि राज्य सरकार ने इस मामले को घृणा अपराध के रूप में स्वीकार करने और तुरंत कार्रवाई करने से इनकार कर दिया था।

दिल्ली पुलिस का प्रतिनिधित्व कर रहे अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल के.एम. नटराज ने तर्क दिया कि प्रतिरोध के कारण याचिकाकर्ता को चोटें आईं। पीठ ने कहा कि इस बात से इनकार नहीं किया जाना चाहिए कि देश में कुछ ऐसे लोग हैं, जिनका सांप्रदायिक रवैया है और वे आमतौर पर ऐसा करते हैं।

पीठ ने आगे कहा : यदि आप इसे अनदेखा करते हैं, तो एक दिन यह आपके ऊपर आएगा .. और कहा कि समाधान तभी खोजा जा सकता है, जब समस्या को पहचाना जाए।

शीर्ष अदालत ने उत्तर प्रदेश पुलिस को दो सप्ताह के भीतर रिकॉर्ड पर यह जानकारी लाने को कहा कि इस घटना के आरोपी कब गिरफ्तार हुए और कब जमानत पर छूटे।

याचिकाकर्ता ने उसे प्रताड़ित करने वाले आरोपी और उसकी शिकायत पर कार्रवाई करने से इनकार करने वाले पुलिस अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई की मांग करते हुए शीर्ष अदालत का रुख किया है।

–आईएएनएस

एसजीके/एएनएम

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नई दिल्ली, 6 फरवरी (आईएएनएस)। सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को घृणा अपराध में प्राथमिकी दर्ज करने में देरी को लेकर उत्तर प्रदेश पुलिस को फटकार लगाते हुए कहा कि एक धर्मनिरपेक्ष देश में धर्म के आधार पर ऐसे अपराधों के लिए कोई जगह नहीं है।

न्यायमूर्ति के.एम. जोसेफ और बी.वी. नागरत्ना की पीठ ने कहा कि एक धर्मनिरपेक्ष देश में धर्म के आधार पर घृणा अपराध के लिए कोई जगह नहीं है और नागरिकों की रक्षा करना राज्य का प्राथमिक कर्तव्य है।

पीठ ने कहा, कहा जाता है कि उसने टोपी पहनी हुई थी.. जब इस तरह के अपराधों के खिलाफ कार्रवाई नहीं की जाती है तो माहौल बिगड़ जाता है, जो एक खतरनाक मुद्दा है और इसे हमारे जीवन से जड़ से खत्म करना होगा। इसे अनदेखा करने पर यह एक दिन आपके लिए खतरनाक बन जाएगा।

शीर्ष अदालत ने ये टिप्पणियां 62 वर्षीय काजीम अहमद शेरवानी की याचिका पर सुनवाई के दौरान कीं, जिसने जुलाई 2021 में नोएडा में एक कथित घृणा अपराध का शिकार होने का दावा किया है।

पीठ ने उत्तर प्रदेश सरकार का प्रतिनिधित्व कर रहे अतिरिक्त महाधिवक्ता गरिमा प्रसाद से कहा कि इस घटना को छुपाया नहीं जा सकता और चिंता जताई कि घटना जुलाई 2021 में हुई और प्राथमिकी घटना की तारीख के लगभग डेढ़ साल बाद जनवरी 2023 में दर्ज की गई।

पीठ ने पाया कि जनवरी में सुनवाई की आखिरी तारीख के बाद ही प्राथमिकी दर्ज की गई थी, जब अदालत ने यूपी पुलिस को निर्देश दिया था। पीठ ने केस डायरी पेश करने को कहा। पिछली सुनवाई में पीठ ने हेट क्राइम के आरोपियों के खिलाफ मामले दर्ज करने में राज्य की विफलता पर असंतोष प्रकट किया था।

पीठ ने यूपी सरकार के वकील से कहा : क्या आप स्वीकार नहीं करेंगे कि घृणा अपराध है और आप इसे कालीन के नीचे मिटा देंगे? हम केवल अपनी पीड़ा व्यक्त कर रहे हैं।

पीठ ने इस बात पर जोर दिया कि अल्पसंख्यक हो या बहुसंख्यक, कुछ अधिकार हैं जो हर मनुष्य में निहित हैं। शीर्ष अदालत ने कहा, आप एक परिवार में पैदा हुए हैं और पले-बढ़े हैं, लेकिन हम एक राष्ट्र के रूप में खड़े हैं। आपको इसे गंभीरता से लेना होगा।

याचिकाकर्ता का प्रतिनिधित्व कर रहे वरिष्ठ अधिवक्ता हुजेफा अहमदी ने कहा कि राज्य सरकार ने इस मामले को घृणा अपराध के रूप में स्वीकार करने और तुरंत कार्रवाई करने से इनकार कर दिया था।

दिल्ली पुलिस का प्रतिनिधित्व कर रहे अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल के.एम. नटराज ने तर्क दिया कि प्रतिरोध के कारण याचिकाकर्ता को चोटें आईं। पीठ ने कहा कि इस बात से इनकार नहीं किया जाना चाहिए कि देश में कुछ ऐसे लोग हैं, जिनका सांप्रदायिक रवैया है और वे आमतौर पर ऐसा करते हैं।

पीठ ने आगे कहा : यदि आप इसे अनदेखा करते हैं, तो एक दिन यह आपके ऊपर आएगा .. और कहा कि समाधान तभी खोजा जा सकता है, जब समस्या को पहचाना जाए।

शीर्ष अदालत ने उत्तर प्रदेश पुलिस को दो सप्ताह के भीतर रिकॉर्ड पर यह जानकारी लाने को कहा कि इस घटना के आरोपी कब गिरफ्तार हुए और कब जमानत पर छूटे।

याचिकाकर्ता ने उसे प्रताड़ित करने वाले आरोपी और उसकी शिकायत पर कार्रवाई करने से इनकार करने वाले पुलिस अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई की मांग करते हुए शीर्ष अदालत का रुख किया है।

–आईएएनएस

एसजीके/एएनएम

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नई दिल्ली, 6 फरवरी (आईएएनएस)। सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को घृणा अपराध में प्राथमिकी दर्ज करने में देरी को लेकर उत्तर प्रदेश पुलिस को फटकार लगाते हुए कहा कि एक धर्मनिरपेक्ष देश में धर्म के आधार पर ऐसे अपराधों के लिए कोई जगह नहीं है।

न्यायमूर्ति के.एम. जोसेफ और बी.वी. नागरत्ना की पीठ ने कहा कि एक धर्मनिरपेक्ष देश में धर्म के आधार पर घृणा अपराध के लिए कोई जगह नहीं है और नागरिकों की रक्षा करना राज्य का प्राथमिक कर्तव्य है।

पीठ ने कहा, कहा जाता है कि उसने टोपी पहनी हुई थी.. जब इस तरह के अपराधों के खिलाफ कार्रवाई नहीं की जाती है तो माहौल बिगड़ जाता है, जो एक खतरनाक मुद्दा है और इसे हमारे जीवन से जड़ से खत्म करना होगा। इसे अनदेखा करने पर यह एक दिन आपके लिए खतरनाक बन जाएगा।

शीर्ष अदालत ने ये टिप्पणियां 62 वर्षीय काजीम अहमद शेरवानी की याचिका पर सुनवाई के दौरान कीं, जिसने जुलाई 2021 में नोएडा में एक कथित घृणा अपराध का शिकार होने का दावा किया है।

पीठ ने उत्तर प्रदेश सरकार का प्रतिनिधित्व कर रहे अतिरिक्त महाधिवक्ता गरिमा प्रसाद से कहा कि इस घटना को छुपाया नहीं जा सकता और चिंता जताई कि घटना जुलाई 2021 में हुई और प्राथमिकी घटना की तारीख के लगभग डेढ़ साल बाद जनवरी 2023 में दर्ज की गई।

पीठ ने पाया कि जनवरी में सुनवाई की आखिरी तारीख के बाद ही प्राथमिकी दर्ज की गई थी, जब अदालत ने यूपी पुलिस को निर्देश दिया था। पीठ ने केस डायरी पेश करने को कहा। पिछली सुनवाई में पीठ ने हेट क्राइम के आरोपियों के खिलाफ मामले दर्ज करने में राज्य की विफलता पर असंतोष प्रकट किया था।

पीठ ने यूपी सरकार के वकील से कहा : क्या आप स्वीकार नहीं करेंगे कि घृणा अपराध है और आप इसे कालीन के नीचे मिटा देंगे? हम केवल अपनी पीड़ा व्यक्त कर रहे हैं।

पीठ ने इस बात पर जोर दिया कि अल्पसंख्यक हो या बहुसंख्यक, कुछ अधिकार हैं जो हर मनुष्य में निहित हैं। शीर्ष अदालत ने कहा, आप एक परिवार में पैदा हुए हैं और पले-बढ़े हैं, लेकिन हम एक राष्ट्र के रूप में खड़े हैं। आपको इसे गंभीरता से लेना होगा।

याचिकाकर्ता का प्रतिनिधित्व कर रहे वरिष्ठ अधिवक्ता हुजेफा अहमदी ने कहा कि राज्य सरकार ने इस मामले को घृणा अपराध के रूप में स्वीकार करने और तुरंत कार्रवाई करने से इनकार कर दिया था।

दिल्ली पुलिस का प्रतिनिधित्व कर रहे अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल के.एम. नटराज ने तर्क दिया कि प्रतिरोध के कारण याचिकाकर्ता को चोटें आईं। पीठ ने कहा कि इस बात से इनकार नहीं किया जाना चाहिए कि देश में कुछ ऐसे लोग हैं, जिनका सांप्रदायिक रवैया है और वे आमतौर पर ऐसा करते हैं।

पीठ ने आगे कहा : यदि आप इसे अनदेखा करते हैं, तो एक दिन यह आपके ऊपर आएगा .. और कहा कि समाधान तभी खोजा जा सकता है, जब समस्या को पहचाना जाए।

शीर्ष अदालत ने उत्तर प्रदेश पुलिस को दो सप्ताह के भीतर रिकॉर्ड पर यह जानकारी लाने को कहा कि इस घटना के आरोपी कब गिरफ्तार हुए और कब जमानत पर छूटे।

याचिकाकर्ता ने उसे प्रताड़ित करने वाले आरोपी और उसकी शिकायत पर कार्रवाई करने से इनकार करने वाले पुलिस अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई की मांग करते हुए शीर्ष अदालत का रुख किया है।

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न्यायमूर्ति के.एम. जोसेफ और बी.वी. नागरत्ना की पीठ ने कहा कि एक धर्मनिरपेक्ष देश में धर्म के आधार पर घृणा अपराध के लिए कोई जगह नहीं है और नागरिकों की रक्षा करना राज्य का प्राथमिक कर्तव्य है।

पीठ ने कहा, कहा जाता है कि उसने टोपी पहनी हुई थी.. जब इस तरह के अपराधों के खिलाफ कार्रवाई नहीं की जाती है तो माहौल बिगड़ जाता है, जो एक खतरनाक मुद्दा है और इसे हमारे जीवन से जड़ से खत्म करना होगा। इसे अनदेखा करने पर यह एक दिन आपके लिए खतरनाक बन जाएगा।

शीर्ष अदालत ने ये टिप्पणियां 62 वर्षीय काजीम अहमद शेरवानी की याचिका पर सुनवाई के दौरान कीं, जिसने जुलाई 2021 में नोएडा में एक कथित घृणा अपराध का शिकार होने का दावा किया है।

पीठ ने उत्तर प्रदेश सरकार का प्रतिनिधित्व कर रहे अतिरिक्त महाधिवक्ता गरिमा प्रसाद से कहा कि इस घटना को छुपाया नहीं जा सकता और चिंता जताई कि घटना जुलाई 2021 में हुई और प्राथमिकी घटना की तारीख के लगभग डेढ़ साल बाद जनवरी 2023 में दर्ज की गई।

पीठ ने पाया कि जनवरी में सुनवाई की आखिरी तारीख के बाद ही प्राथमिकी दर्ज की गई थी, जब अदालत ने यूपी पुलिस को निर्देश दिया था। पीठ ने केस डायरी पेश करने को कहा। पिछली सुनवाई में पीठ ने हेट क्राइम के आरोपियों के खिलाफ मामले दर्ज करने में राज्य की विफलता पर असंतोष प्रकट किया था।

पीठ ने यूपी सरकार के वकील से कहा : क्या आप स्वीकार नहीं करेंगे कि घृणा अपराध है और आप इसे कालीन के नीचे मिटा देंगे? हम केवल अपनी पीड़ा व्यक्त कर रहे हैं।

पीठ ने इस बात पर जोर दिया कि अल्पसंख्यक हो या बहुसंख्यक, कुछ अधिकार हैं जो हर मनुष्य में निहित हैं। शीर्ष अदालत ने कहा, आप एक परिवार में पैदा हुए हैं और पले-बढ़े हैं, लेकिन हम एक राष्ट्र के रूप में खड़े हैं। आपको इसे गंभीरता से लेना होगा।

याचिकाकर्ता का प्रतिनिधित्व कर रहे वरिष्ठ अधिवक्ता हुजेफा अहमदी ने कहा कि राज्य सरकार ने इस मामले को घृणा अपराध के रूप में स्वीकार करने और तुरंत कार्रवाई करने से इनकार कर दिया था।

दिल्ली पुलिस का प्रतिनिधित्व कर रहे अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल के.एम. नटराज ने तर्क दिया कि प्रतिरोध के कारण याचिकाकर्ता को चोटें आईं। पीठ ने कहा कि इस बात से इनकार नहीं किया जाना चाहिए कि देश में कुछ ऐसे लोग हैं, जिनका सांप्रदायिक रवैया है और वे आमतौर पर ऐसा करते हैं।

पीठ ने आगे कहा : यदि आप इसे अनदेखा करते हैं, तो एक दिन यह आपके ऊपर आएगा .. और कहा कि समाधान तभी खोजा जा सकता है, जब समस्या को पहचाना जाए।

शीर्ष अदालत ने उत्तर प्रदेश पुलिस को दो सप्ताह के भीतर रिकॉर्ड पर यह जानकारी लाने को कहा कि इस घटना के आरोपी कब गिरफ्तार हुए और कब जमानत पर छूटे।

याचिकाकर्ता ने उसे प्रताड़ित करने वाले आरोपी और उसकी शिकायत पर कार्रवाई करने से इनकार करने वाले पुलिस अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई की मांग करते हुए शीर्ष अदालत का रुख किया है।

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न्यायमूर्ति के.एम. जोसेफ और बी.वी. नागरत्ना की पीठ ने कहा कि एक धर्मनिरपेक्ष देश में धर्म के आधार पर घृणा अपराध के लिए कोई जगह नहीं है और नागरिकों की रक्षा करना राज्य का प्राथमिक कर्तव्य है।

पीठ ने कहा, कहा जाता है कि उसने टोपी पहनी हुई थी.. जब इस तरह के अपराधों के खिलाफ कार्रवाई नहीं की जाती है तो माहौल बिगड़ जाता है, जो एक खतरनाक मुद्दा है और इसे हमारे जीवन से जड़ से खत्म करना होगा। इसे अनदेखा करने पर यह एक दिन आपके लिए खतरनाक बन जाएगा।

शीर्ष अदालत ने ये टिप्पणियां 62 वर्षीय काजीम अहमद शेरवानी की याचिका पर सुनवाई के दौरान कीं, जिसने जुलाई 2021 में नोएडा में एक कथित घृणा अपराध का शिकार होने का दावा किया है।

पीठ ने उत्तर प्रदेश सरकार का प्रतिनिधित्व कर रहे अतिरिक्त महाधिवक्ता गरिमा प्रसाद से कहा कि इस घटना को छुपाया नहीं जा सकता और चिंता जताई कि घटना जुलाई 2021 में हुई और प्राथमिकी घटना की तारीख के लगभग डेढ़ साल बाद जनवरी 2023 में दर्ज की गई।

पीठ ने पाया कि जनवरी में सुनवाई की आखिरी तारीख के बाद ही प्राथमिकी दर्ज की गई थी, जब अदालत ने यूपी पुलिस को निर्देश दिया था। पीठ ने केस डायरी पेश करने को कहा। पिछली सुनवाई में पीठ ने हेट क्राइम के आरोपियों के खिलाफ मामले दर्ज करने में राज्य की विफलता पर असंतोष प्रकट किया था।

पीठ ने यूपी सरकार के वकील से कहा : क्या आप स्वीकार नहीं करेंगे कि घृणा अपराध है और आप इसे कालीन के नीचे मिटा देंगे? हम केवल अपनी पीड़ा व्यक्त कर रहे हैं।

पीठ ने इस बात पर जोर दिया कि अल्पसंख्यक हो या बहुसंख्यक, कुछ अधिकार हैं जो हर मनुष्य में निहित हैं। शीर्ष अदालत ने कहा, आप एक परिवार में पैदा हुए हैं और पले-बढ़े हैं, लेकिन हम एक राष्ट्र के रूप में खड़े हैं। आपको इसे गंभीरता से लेना होगा।

याचिकाकर्ता का प्रतिनिधित्व कर रहे वरिष्ठ अधिवक्ता हुजेफा अहमदी ने कहा कि राज्य सरकार ने इस मामले को घृणा अपराध के रूप में स्वीकार करने और तुरंत कार्रवाई करने से इनकार कर दिया था।

दिल्ली पुलिस का प्रतिनिधित्व कर रहे अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल के.एम. नटराज ने तर्क दिया कि प्रतिरोध के कारण याचिकाकर्ता को चोटें आईं। पीठ ने कहा कि इस बात से इनकार नहीं किया जाना चाहिए कि देश में कुछ ऐसे लोग हैं, जिनका सांप्रदायिक रवैया है और वे आमतौर पर ऐसा करते हैं।

पीठ ने आगे कहा : यदि आप इसे अनदेखा करते हैं, तो एक दिन यह आपके ऊपर आएगा .. और कहा कि समाधान तभी खोजा जा सकता है, जब समस्या को पहचाना जाए।

शीर्ष अदालत ने उत्तर प्रदेश पुलिस को दो सप्ताह के भीतर रिकॉर्ड पर यह जानकारी लाने को कहा कि इस घटना के आरोपी कब गिरफ्तार हुए और कब जमानत पर छूटे।

याचिकाकर्ता ने उसे प्रताड़ित करने वाले आरोपी और उसकी शिकायत पर कार्रवाई करने से इनकार करने वाले पुलिस अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई की मांग करते हुए शीर्ष अदालत का रुख किया है।

–आईएएनएस

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न्यायमूर्ति के.एम. जोसेफ और बी.वी. नागरत्ना की पीठ ने कहा कि एक धर्मनिरपेक्ष देश में धर्म के आधार पर घृणा अपराध के लिए कोई जगह नहीं है और नागरिकों की रक्षा करना राज्य का प्राथमिक कर्तव्य है।

पीठ ने कहा, कहा जाता है कि उसने टोपी पहनी हुई थी.. जब इस तरह के अपराधों के खिलाफ कार्रवाई नहीं की जाती है तो माहौल बिगड़ जाता है, जो एक खतरनाक मुद्दा है और इसे हमारे जीवन से जड़ से खत्म करना होगा। इसे अनदेखा करने पर यह एक दिन आपके लिए खतरनाक बन जाएगा।

शीर्ष अदालत ने ये टिप्पणियां 62 वर्षीय काजीम अहमद शेरवानी की याचिका पर सुनवाई के दौरान कीं, जिसने जुलाई 2021 में नोएडा में एक कथित घृणा अपराध का शिकार होने का दावा किया है।

पीठ ने उत्तर प्रदेश सरकार का प्रतिनिधित्व कर रहे अतिरिक्त महाधिवक्ता गरिमा प्रसाद से कहा कि इस घटना को छुपाया नहीं जा सकता और चिंता जताई कि घटना जुलाई 2021 में हुई और प्राथमिकी घटना की तारीख के लगभग डेढ़ साल बाद जनवरी 2023 में दर्ज की गई।

पीठ ने पाया कि जनवरी में सुनवाई की आखिरी तारीख के बाद ही प्राथमिकी दर्ज की गई थी, जब अदालत ने यूपी पुलिस को निर्देश दिया था। पीठ ने केस डायरी पेश करने को कहा। पिछली सुनवाई में पीठ ने हेट क्राइम के आरोपियों के खिलाफ मामले दर्ज करने में राज्य की विफलता पर असंतोष प्रकट किया था।

पीठ ने यूपी सरकार के वकील से कहा : क्या आप स्वीकार नहीं करेंगे कि घृणा अपराध है और आप इसे कालीन के नीचे मिटा देंगे? हम केवल अपनी पीड़ा व्यक्त कर रहे हैं।

पीठ ने इस बात पर जोर दिया कि अल्पसंख्यक हो या बहुसंख्यक, कुछ अधिकार हैं जो हर मनुष्य में निहित हैं। शीर्ष अदालत ने कहा, आप एक परिवार में पैदा हुए हैं और पले-बढ़े हैं, लेकिन हम एक राष्ट्र के रूप में खड़े हैं। आपको इसे गंभीरता से लेना होगा।

याचिकाकर्ता का प्रतिनिधित्व कर रहे वरिष्ठ अधिवक्ता हुजेफा अहमदी ने कहा कि राज्य सरकार ने इस मामले को घृणा अपराध के रूप में स्वीकार करने और तुरंत कार्रवाई करने से इनकार कर दिया था।

दिल्ली पुलिस का प्रतिनिधित्व कर रहे अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल के.एम. नटराज ने तर्क दिया कि प्रतिरोध के कारण याचिकाकर्ता को चोटें आईं। पीठ ने कहा कि इस बात से इनकार नहीं किया जाना चाहिए कि देश में कुछ ऐसे लोग हैं, जिनका सांप्रदायिक रवैया है और वे आमतौर पर ऐसा करते हैं।

पीठ ने आगे कहा : यदि आप इसे अनदेखा करते हैं, तो एक दिन यह आपके ऊपर आएगा .. और कहा कि समाधान तभी खोजा जा सकता है, जब समस्या को पहचाना जाए।

शीर्ष अदालत ने उत्तर प्रदेश पुलिस को दो सप्ताह के भीतर रिकॉर्ड पर यह जानकारी लाने को कहा कि इस घटना के आरोपी कब गिरफ्तार हुए और कब जमानत पर छूटे।

याचिकाकर्ता ने उसे प्रताड़ित करने वाले आरोपी और उसकी शिकायत पर कार्रवाई करने से इनकार करने वाले पुलिस अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई की मांग करते हुए शीर्ष अदालत का रुख किया है।

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न्यायमूर्ति के.एम. जोसेफ और बी.वी. नागरत्ना की पीठ ने कहा कि एक धर्मनिरपेक्ष देश में धर्म के आधार पर घृणा अपराध के लिए कोई जगह नहीं है और नागरिकों की रक्षा करना राज्य का प्राथमिक कर्तव्य है।

पीठ ने कहा, कहा जाता है कि उसने टोपी पहनी हुई थी.. जब इस तरह के अपराधों के खिलाफ कार्रवाई नहीं की जाती है तो माहौल बिगड़ जाता है, जो एक खतरनाक मुद्दा है और इसे हमारे जीवन से जड़ से खत्म करना होगा। इसे अनदेखा करने पर यह एक दिन आपके लिए खतरनाक बन जाएगा।

शीर्ष अदालत ने ये टिप्पणियां 62 वर्षीय काजीम अहमद शेरवानी की याचिका पर सुनवाई के दौरान कीं, जिसने जुलाई 2021 में नोएडा में एक कथित घृणा अपराध का शिकार होने का दावा किया है।

पीठ ने उत्तर प्रदेश सरकार का प्रतिनिधित्व कर रहे अतिरिक्त महाधिवक्ता गरिमा प्रसाद से कहा कि इस घटना को छुपाया नहीं जा सकता और चिंता जताई कि घटना जुलाई 2021 में हुई और प्राथमिकी घटना की तारीख के लगभग डेढ़ साल बाद जनवरी 2023 में दर्ज की गई।

पीठ ने पाया कि जनवरी में सुनवाई की आखिरी तारीख के बाद ही प्राथमिकी दर्ज की गई थी, जब अदालत ने यूपी पुलिस को निर्देश दिया था। पीठ ने केस डायरी पेश करने को कहा। पिछली सुनवाई में पीठ ने हेट क्राइम के आरोपियों के खिलाफ मामले दर्ज करने में राज्य की विफलता पर असंतोष प्रकट किया था।

पीठ ने यूपी सरकार के वकील से कहा : क्या आप स्वीकार नहीं करेंगे कि घृणा अपराध है और आप इसे कालीन के नीचे मिटा देंगे? हम केवल अपनी पीड़ा व्यक्त कर रहे हैं।

पीठ ने इस बात पर जोर दिया कि अल्पसंख्यक हो या बहुसंख्यक, कुछ अधिकार हैं जो हर मनुष्य में निहित हैं। शीर्ष अदालत ने कहा, आप एक परिवार में पैदा हुए हैं और पले-बढ़े हैं, लेकिन हम एक राष्ट्र के रूप में खड़े हैं। आपको इसे गंभीरता से लेना होगा।

याचिकाकर्ता का प्रतिनिधित्व कर रहे वरिष्ठ अधिवक्ता हुजेफा अहमदी ने कहा कि राज्य सरकार ने इस मामले को घृणा अपराध के रूप में स्वीकार करने और तुरंत कार्रवाई करने से इनकार कर दिया था।

दिल्ली पुलिस का प्रतिनिधित्व कर रहे अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल के.एम. नटराज ने तर्क दिया कि प्रतिरोध के कारण याचिकाकर्ता को चोटें आईं। पीठ ने कहा कि इस बात से इनकार नहीं किया जाना चाहिए कि देश में कुछ ऐसे लोग हैं, जिनका सांप्रदायिक रवैया है और वे आमतौर पर ऐसा करते हैं।

पीठ ने आगे कहा : यदि आप इसे अनदेखा करते हैं, तो एक दिन यह आपके ऊपर आएगा .. और कहा कि समाधान तभी खोजा जा सकता है, जब समस्या को पहचाना जाए।

शीर्ष अदालत ने उत्तर प्रदेश पुलिस को दो सप्ताह के भीतर रिकॉर्ड पर यह जानकारी लाने को कहा कि इस घटना के आरोपी कब गिरफ्तार हुए और कब जमानत पर छूटे।

याचिकाकर्ता ने उसे प्रताड़ित करने वाले आरोपी और उसकी शिकायत पर कार्रवाई करने से इनकार करने वाले पुलिस अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई की मांग करते हुए शीर्ष अदालत का रुख किया है।

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न्यायमूर्ति के.एम. जोसेफ और बी.वी. नागरत्ना की पीठ ने कहा कि एक धर्मनिरपेक्ष देश में धर्म के आधार पर घृणा अपराध के लिए कोई जगह नहीं है और नागरिकों की रक्षा करना राज्य का प्राथमिक कर्तव्य है।

पीठ ने कहा, कहा जाता है कि उसने टोपी पहनी हुई थी.. जब इस तरह के अपराधों के खिलाफ कार्रवाई नहीं की जाती है तो माहौल बिगड़ जाता है, जो एक खतरनाक मुद्दा है और इसे हमारे जीवन से जड़ से खत्म करना होगा। इसे अनदेखा करने पर यह एक दिन आपके लिए खतरनाक बन जाएगा।

शीर्ष अदालत ने ये टिप्पणियां 62 वर्षीय काजीम अहमद शेरवानी की याचिका पर सुनवाई के दौरान कीं, जिसने जुलाई 2021 में नोएडा में एक कथित घृणा अपराध का शिकार होने का दावा किया है।

पीठ ने उत्तर प्रदेश सरकार का प्रतिनिधित्व कर रहे अतिरिक्त महाधिवक्ता गरिमा प्रसाद से कहा कि इस घटना को छुपाया नहीं जा सकता और चिंता जताई कि घटना जुलाई 2021 में हुई और प्राथमिकी घटना की तारीख के लगभग डेढ़ साल बाद जनवरी 2023 में दर्ज की गई।

पीठ ने पाया कि जनवरी में सुनवाई की आखिरी तारीख के बाद ही प्राथमिकी दर्ज की गई थी, जब अदालत ने यूपी पुलिस को निर्देश दिया था। पीठ ने केस डायरी पेश करने को कहा। पिछली सुनवाई में पीठ ने हेट क्राइम के आरोपियों के खिलाफ मामले दर्ज करने में राज्य की विफलता पर असंतोष प्रकट किया था।

पीठ ने यूपी सरकार के वकील से कहा : क्या आप स्वीकार नहीं करेंगे कि घृणा अपराध है और आप इसे कालीन के नीचे मिटा देंगे? हम केवल अपनी पीड़ा व्यक्त कर रहे हैं।

पीठ ने इस बात पर जोर दिया कि अल्पसंख्यक हो या बहुसंख्यक, कुछ अधिकार हैं जो हर मनुष्य में निहित हैं। शीर्ष अदालत ने कहा, आप एक परिवार में पैदा हुए हैं और पले-बढ़े हैं, लेकिन हम एक राष्ट्र के रूप में खड़े हैं। आपको इसे गंभीरता से लेना होगा।

याचिकाकर्ता का प्रतिनिधित्व कर रहे वरिष्ठ अधिवक्ता हुजेफा अहमदी ने कहा कि राज्य सरकार ने इस मामले को घृणा अपराध के रूप में स्वीकार करने और तुरंत कार्रवाई करने से इनकार कर दिया था।

दिल्ली पुलिस का प्रतिनिधित्व कर रहे अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल के.एम. नटराज ने तर्क दिया कि प्रतिरोध के कारण याचिकाकर्ता को चोटें आईं। पीठ ने कहा कि इस बात से इनकार नहीं किया जाना चाहिए कि देश में कुछ ऐसे लोग हैं, जिनका सांप्रदायिक रवैया है और वे आमतौर पर ऐसा करते हैं।

पीठ ने आगे कहा : यदि आप इसे अनदेखा करते हैं, तो एक दिन यह आपके ऊपर आएगा .. और कहा कि समाधान तभी खोजा जा सकता है, जब समस्या को पहचाना जाए।

शीर्ष अदालत ने उत्तर प्रदेश पुलिस को दो सप्ताह के भीतर रिकॉर्ड पर यह जानकारी लाने को कहा कि इस घटना के आरोपी कब गिरफ्तार हुए और कब जमानत पर छूटे।

याचिकाकर्ता ने उसे प्रताड़ित करने वाले आरोपी और उसकी शिकायत पर कार्रवाई करने से इनकार करने वाले पुलिस अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई की मांग करते हुए शीर्ष अदालत का रुख किया है।

–आईएएनएस

एसजीके/एएनएम

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