नई दिल्ली, 4 दिसम्बर (आईएएनएस)। वरिष्ठ अधिवक्ता और सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन (एससीबीए) के अध्यक्ष विकास सिंह ने आईएएनएस के साथ एक साक्षात्कार में न्यायाधीशों की नियुक्ति में खामियों की ओर इशारा किया। उन्होंने कहा कि मुख्य समस्या यह है कि न्यायाधीशों की नियुक्ति के लिए वर्तमान में कोई प्रणाली या मानदंड नहीं है। कॉलेजियम के सदस्य यह जानने के बजाय कौन अच्छा न्ययाधीश हो सकता है, वे जिसको जानते हैं, उसके पक्ष में फैसला करते हैं।
पेश है इंटरव्यू का अंश:
प्रश्न: संवैधानिक लोकतंत्र में कोई भी संस्था पूर्ण नहीं है, क्या इसका मतलब यह है कि बगैर किसी जवबादेही के कॉलेजियम को सर्वोच्च न्यायालय और उच्च न्यायालयों में न्यायाधीशों की नियुक्ति में पूर्ण शक्ति प्राप्त है?
उत्तर: यह व्यवस्था न्यायिक निर्धारण के एक अधिनियम द्वारा तय की गई है। एनजेएसी (राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग अधिनियम) लाया गया था, तो इसे चुनौती दी गई थी कि यह असंवैधानिक है। इस पर कोर्ट ने इसे असंवैधानिक ठहराते हुए कहा कि हम वकीलों को जानते हैं और तदनुसार हम यह तय करने की बेहतर स्थिति में हैं कि किसे न्यायाधीश बनाया जाना चाहिए। क्योंकि हम रोजाना वकीलों के साथ बातचीत कर रहे हैं। अब उस आधार पर उन्होंने फैसला किया है कि हम न्यायाधीशों की नियुक्ति करेंगे, यही औचित्य है।
जब तक सुप्रीम कोर्ट द्वारा निर्धारित कानून कहता है कि नियुक्ति कॉलेजियम द्वारा की जाएगी, तब तक उसे मानना ही पड़ेगा। हालांकि, मेरे व्यक्तिगत विचार में उन्होंने इस अधिकार को ग्रहण करने के लिए जो आधार लिया है, वह स्पष्ट रूप से त्रुटिपूर्ण है। क्योंकि ऐसी कोई प्रणाली या तरीका नहीं है, जिससे आप सभी बेहतर वकीलों को जान सकें।
मूल रूप से कॉलेजिय के सदस्य उन्हें ही चुनते हैं, जिन्हें वे व्यक्तिगत रूप से जानते हैं। उन्होंने कोई डेटाबेस नहीं बनाया है। उन्होंने कभी भी यह पता लगाने की कवायद नहीं की कि वे लोग कौन हैं जो न्यायपालिका के लिए उम्मीदवार होंगे। उन्होंने यह नहीं पाया है कि उम्र क्या है और बेहतरी के लिए कौन से मापदंड होने चाहिए, तो, पूरा आधार त्रुटिपूर्ण है।
प्रश्न: जब आप कहते हैं कि न्यायाधीश उन्हें नियुक्त करते हैं जिन्हें न्यायाधीश जानते हैं, तो क्या आपको लगता है कि इस प्रक्रिया में भाई-भतीजावाद का मुद्दा है?
उत्तर : तो, जब आप लोगों को नियुक्त करने के लिए जानने वाले कॉलेजियम की इस प्रक्रिया से गुजरते हैं, तो इस पर एक बहुत महत्वपूर्ण बिंदु यह है कि सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश नियुक्त नहीं कर रहे हैं, क्योंकि वे वहां (सुप्रीम कोर्ट के वकील) अभ्यास नहीं करते हैं। अब मेरे अनुसार सुप्रीम कोर्ट के वकील नियुक्त होने के सबसे योग्य हैं। लेकिन चूंकि वे सुप्रीम कोर्ट के वकीलों को नहीं जानते हैं, इसलिए वे उन पर विचार करने के लिए तैयार नहीं हैं।
अपने जान-पहचान के वकीलों की नियुक्ति का मतलग है कि इसमें भाई-भतीजावाद और पक्षपात का कुछ तत्व अवश्य है। जब आपके रिश्तेदार पर विचार किया जा रहा है, तो आपको कॉलेजियम से दूर रहना चाहिए, जो कि प्राकृतिक न्याय का एक बुनियादी मुद्दा है। अंतत: आप केवल उन्हीं लोगों को नियुक्त कर रहे हैं जिन्हें आप जानते हैं, जो त्रुटिपूर्ण है।
प्रश्न: अगर नियुक्ति प्रक्रिया में भाई-भतीजावाद मजबूत होता है, तो क्या यह सिस्टम को खराब नहीं करेगा?
उत्तर: जब आप न्यायपालिका को लोकतंत्र का सबसे महत्वपूर्ण स्तंभ होने की बात करते हैं तो जाहिर तौर पर आपको यह सुनिश्चित करना होगा कि न्यायपालिका में सबसे अच्छे लोगों की नियुक्ति हो। और आज जो सिस्टम चलन में है, मैं ये नहीं कह रहा हूं कि ये सब भाई-भतीजावाद कर रहे हैं. मैं यह भी नहीं कह रहा कि अच्छे लोगों को नियुक्त नहीं किया जा रहा है, लेकिन सर्वश्रेष्ठ लोगों पर विचार नहीं किया जा रहा हैञ सिस्टम यह पता लगाने की कोशिश नहीं करता कि कौन सबसे अच्छा है।
क्योंकि, न्ययाधीश अदालत में मामलों की सुनवाई कर रहा है, निर्णय दे रहा है और अदालत के समय के बाहर निर्णय लिख रहा है। उन्हें यह पता लगाने के लिए समय कहां मिलता है कि उच्च न्यायालय में कौन से वकील पात्र हो सकते हैं और उनकी पदोन्नति पर विचार किया जाना चाहिए।
वह कवायद कहां है, भाई-भतीजावाद के कुछ तत्वों को अपने आप आने पर विचार करने के लिए उनके पास कोई सचिवालय नहीं है। मैं यह नहीं कह रहा हूं कि भाई-भतीजावाद संस्थागत रूप से है, लेकिन निश्चित रूप से यह तब होता है जब आप उन लोगों के पास जाते हैं जिन्हें आप व्यक्तिगत रूप से जानते हैं।
प्रश्न: सुप्रीम कोर्ट में दायर एक याचिका में कहा गया है कि इस साल जून में नेशनल लॉयर्स कैंपेन फॉर ज्यूडिशियल ट्रांसपेरेंसी एंड रिफॉर्म्स द्वारा सुप्रीम कोर्ट के 33 जजों की पृष्ठभूमि की जांच से पता चला है कि सिर्फ पांच जज पहली पीढ़ी के वकील थे, बाकी सभी न्यायाधीशों, वरिष्ठ अधिवक्ताओं आदि के परिवार से थे। यदि इसे जारी रखा गया तो न्यायपालिका में नियुक्तियों की सूची में मेरिट के वकील कैसे शामिल होंगे।
उत्तर : कोई वकील यदि किसी न्यायाधीश का पुत्र है, तो यह तथ्य उसे न्यायाधीश होने का अधिकार नहीं देता है। जैसा कि आप सभी जानते हैं हमारे समय में अच्छे छात्र कानून की पढ़ाई तभी करते थे, जब उनकी कानून की वंशावली होती थी और पहली पीढ़ी के बहुत कम वकील आते थे।
लेकिन यहां दोष यह है कि जो वकील अच्छें हैं, उन्हें ऊपर उठाया जाना चाहिए, लेकिन वे ऊपर उठने के लिए लक्षित समूह नहीं हैं। वे वही हैं जो वरिष्ठों के रूप में नामित होना चाहते हैं। जो चेम्बर्स में दाखिल हो रहे हैं और उनमें से कुछ बड़े सत्यनिष्ठावान और ज्ञानी हैं, वही असली हैं जो जज बनना चाहते हैं।
लेकिन उन्हें कोई नहीं देखता। इसीलिए पूरी प्रक्रिया त्रुटिपूर्ण हो जाती है। इसलिए मुझे लगता है कि इस प्रणाली को कसौटी पर खरा उतरने के लिए इसे कुछ बेहतर करना होगा।
प्रश्न: आपने अक्सर कहा है कि देश भर के योग्यत् वकीलों को मौका दिया जाना चाहिए और उन्हें न्यायाधीशों की नियुक्ति के पूल में शामिल किया जाना चाहिए. यह कैसे होगा?
उत्तर: वास्तव में मैंने कॉलेजियम प्रणाली को विनियमित करने के लिए एक विधेयक का मसौदा तैयार किया है। मेरे पास एक बहुत ही आसान तरीका है। उदाहरण के लिए मैं आपको बता सकता हूं कि यह कैसे किया जाएगा। कॉलेजियम तय कर सकता है कि यह मानदंड है। उदाहरण के लिए एक विशेष उच्च न्यायालय के लिए वे कह सकते हैं कि ऐसे वकीलों नाम बताएं, जिनकी न्यूनतम आय 20 लाख हो, आयु 45-50 वर्ष हो और उनके पक्ष में कम से कम 10 निर्णय आए हों।
एक बार जब आपके पास उन्नयन के उद्देश्य के लिए ये तीन या चार बुनियादी मानदंड हों, तो उस श्रेणी में आने वाले सभी नामों को सूचीबद्ध करें। आप इस डेटाबेस को बहुत आसानी से प्राप्त कर सकते हैं। इसके लिए एक सर्च कमेटी होनी चाहिए।
कमेटी की सूची को आप इसे किसी वरिष्ठ अधिवक्ता को भेजते हैं क्योंकि वरिष्ठ अधिवक्ता एक विशेष अदालत में सभी को जानते हैं। उसका विचार जानें आप इन लोगों में से सर्वश्रेष्ठ को चुनें। स्वचालित रूप से अच्छे लोगों की नियुक्ति होगी।
प्रश्न: वर्तमान में न्यायाधीशों की नियुक्ति के लिए कोई व्यवस्था या मानदंड मौजूद नहीं है?
उत्तर: यही तो समस्या है। वर्तमान व्यवस्था से मेरी यही शिकायत है। कोई पैमाना ही नहीं है। कॉलेजियम के तीन न्यायाधीश सर्वश्रेष्ठ को जानने के बजाय अपने जान-पहचान वाले के नाम पर विचार करते हैं।
प्रश्न: क्या यह कहना उचित होगा कि कार्यपालिका को नियुक्ति प्रक्रिया से बाहर करना संविधान के विपरीत था?
उत्तर: लिखित संविधान ने ऐसा नहीं कहा। कार्यपालिका को बाहर करने का इरादा निश्चित रूप से नेक था। क्योंकि आपने देखा है कि हमारे राजनीतिक नेता बहुत गंभीर, आपराधिक मामलों या अन्य मामलों में शामिल होते हैं और उनसे निष्पक्ष और निर्भीक न्यायाधीशों को नियुक्त करने की अपेक्षा करना गलत है।
इसलिए कहीं न कहीं एक हाइब्रिड सिस्टम होना चाहिए। लेकिन यह तभी संभव होगा, जब कॉलेजियम प्रणाली में पर्याप्त पारदर्शिता हो।
–आईएएनएस
सीबीटी