नई दिल्ली, 30 जनवरी (आईएएनएस)। सुप्रीम कोर्ट सोमवार को 2002 के गुजरात दंगों के सिलसिले में बीबीसी की डॉक्यूमेंट्रीपर केंद्र के प्रतिबंध को चुनौती देने वाली याचिका पर छह फरवरी को विचार करने पर सहमत हो गया।
अधिवक्ता एम.एल. शर्मा ने भारत के प्रधान न्यायाधीश डी.वाई. चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पीठ के समक्ष तत्काल लिस्टिंग के लिए याचिका का जिक्र किया और शीर्ष अदालत 6 फरवरी को इस पर सुनवाई करने के लिए राजी हो गई।
इंडिया : द मोदी क्वेश्चन शीर्षक वाली सीरीज को सरकार ने पक्षपातपूर्ण प्रोपगंडा पीस बताकर खारिज कर दिया गया है।
शर्मा द्वारा दायर याचिका में कहा गया है कि बीबीसी की डॉक्यूमेंट्री को सच्चाई उजागर होने के डर से आईटी अधिनियम 2021 के नियम 16 के तहत भारत में प्रतिबंधित कर दिया गया है।
शर्मा की याचिका में आईटी अधिनियम के तहत 21 जनवरी को जारी आदेश को अवैध, दुर्भावनापूर्ण और मनमाना, असंवैधानिक और संवैधानिक अधिकार से वंचित रखने वाला करार देते हुए इसे रद्द करने का निर्देश देने की मांग की गई है।
सोशल मीडिया और ऑनलाइन चैनलों पर इंडिया : द मोदी क्वेश्चन नामक डॉक्यूमेंट्री पर प्रतिबंध लगा दिया गया है, लेकिन कुछ छात्रों ने देशभर के विभिन्न विश्वविद्यालयों के परिसरों में इसकी स्क्रीनिंग की है।
शर्मा की याचिका में तर्क दिया गया है कि बीबीसी की डॉक्यूमेंट्री में 2002 के दंगों के पीड़ितों के साथ-साथ दंगों के परिदृश्य में शामिल अन्य लोगों की मूल रिकॉर्डिग के साथ वास्तविक तथ्यों को दर्शाया गया है और इसे न्यायिक न्याय के लिए इस्तेमाल किया जा सकता है।
शीर्ष अदालत अगले सप्ताह पत्रकार एन. राम, तृणमूल कांग्रेस सांसद महुआ मोइत्रा और अधिवक्ता प्रशांत भूषण द्वारा डॉक्यूमेंट्री के लिंक के साथ अपने ट्वीट को हटाने के लिए दायर एक अलग याचिका पर भी सुनवाई करेगी।
राम और अन्य द्वारा दायर याचिका में कहा गया है, बीबीसी की डॉक्यूमेंट्री की सामग्री और याचिकाकर्ता नंबर 2 (भूषण) और 3 (मोइत्रा) के ट्वीट भारत के संविधान के अनुच्छेद 19 (1) (ए) के तहत संरक्षित हैं। डॉक्यूमेंट्री सीरीज की सामग्री आईटी अधिनियम, 2000 की धारा 69ए के तहत लगाए गए अनुच्छेद 19 (2) या बी के तहत नहीं आती है।
सरकार ने सोशल मीडिया पर डॉक्यूमेंट्री से किसी भी क्लिप को साझा करने पर भी रोक लगा दी है। छात्र संगठनों और विपक्षी दलों ने प्रतिबंध का विरोध करते हुए डॉक्यूमेंट्री की सार्वजनिक स्क्रीनिंग का आयोजन किया है।
राम और अन्य लोगों की याचिका में तर्क दिया गया कि शीर्ष अदालत ने स्पष्ट रूप से निर्धारित किया है कि सरकार या उसकी नीतियों की आलोचना या यहां तक कि सुप्रीम कोर्ट के फैसले की आलोचना या भारत की संप्रभुता और अखंडता का उल्लंघन करने जैसा नहीं है।
यह दलील भी दी गई कि कार्यपालिका द्वारा अपारदर्शी आदेशों और कार्यवाहियों के माध्यम से याचिकाकर्ताओं के बयान और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर रोक लगाना स्पष्ट रूप से मनमाना है, क्योंकि यह भारत के संविधान के अनुच्छेद 226 और अनुच्छेद 32 के तहत प्रशासनिक कार्यो की प्रभावी ढंग से न्यायिक समीक्षा की मांग करने के याचिकाकर्ताओं के मौलिक अधिकार को विफल करता है। यह भारत के संविधान के बुनियादी ढांचे का उल्लंघन है।
–आईएएनएस
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