कोलकाता, 15 जनवरी (आईएएनएस)। कलकत्ता उच्च न्यायालय ने पश्चिम बंगाल स्कूल सेवा आयोग (डब्ल्यूबीएसएससी) द्वारा अवैध नियुक्तियों से जुड़े एक मामले की सुनवाई करते हुए सोमवार को कहा कि सेवा में कार्यकाल किसी “अवैध” नियुक्ति को वैध नहीं बना सकता।
सुप्रीम कोर्ट के एक निर्देश के बाद पश्चिम बंगाल में स्कूल-नौकरी के लिए करोड़ों रुपये के नकद मामलों से संबंधित मामलों की विशेष रूप से सुनवाई के लिए गठित न्यायमूर्ति देबांगसु बसाक और न्यायमूर्ति शब्बर रशीद की एक विशेष खंडपीठ ने कहा कि वास्तव में ऐसा नहीं होता है। इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि कोई व्यक्ति उस संस्था के साथ कितने समय से काम कर रहा है।
न्यायमूर्ति बसाक ने कहा, “मुख्य सवाल यह है कि उनकी नियुक्ति कानूनी थी या नहीं।”
इस मामले पर खंडपीठ ने उन लोगों को समायोजित करने के लिए अतिरिक्त पदों के सृजन की अपील के औचित्य पर भी सवाल उठाया, जो निरंतर अवधि के लिए राज्य संचालित स्कूल में काम कर रहे थे।
यह आवेदन अवैध रूप से नियुक्त शिक्षकों की सेवाओं को समाप्त करने पर न्यायमूर्ति अभिजीत गंगोपाध्याय की एकल-न्यायाधीश पीठ के फैसले को चुनौती देते हुए दायर किया गया था।
डिवीजन बेंच ने सेवा धारकों के एक वर्ग द्वारा स्कूल-नौकरी मामलों में नियुक्ति के लिए पहले के पैनल में मेरिट सूचियों के नए प्रकाशन के विरोध पर भी कुछ सवाल उठाए।
न्यायमूर्ति बसाक ने कहा, “जब कोई प्रतियोगी परीक्षा आयोजित की जाती है, तो यह सभी को पता होता है कि परीक्षा में उत्तीर्ण होने वालों की योग्यता सूची प्रकाशित की जाएगी। योग्यता सूची के प्रकाशन से प्रतिष्ठा के नुकसान का कोई सवाल ही नहीं है।”
पीठ ने यह भी कहा कि डब्ल्यूबीएसएससी को अवैध रूप से भर्ती किए गए लोगों की पहचान बहुत पहले ही कर लेनी चाहिए थी।
–आईएएनएस
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