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स्कूली पाठ्यक्रम में शामिल किया जाएगा थर्ड जेंडर मॉड्यूल 

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December 24, 2024
in राष्ट्रीय
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स्कूली पाठ्यक्रम में शामिल किया जाएगा थर्ड जेंडर मॉड्यूल 
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नई दिल्ली, 24 दिसंबर (आईएएनएस)। शिक्षा के क्षेत्र में थर्ड जेंडर पर मॉड्यूल विकसित किया जा रहा है। विशेषज्ञों का मानना है कि स्कूलों के पाठ्यक्रम में थर्ड जेंडर की उपस्थिति को शामिल करना महत्वपूर्ण है। इससे भविष्य की पीढ़ियां उनके संघर्षों और योगदानों से परिचित हो सकेंगी। प्रशिक्षुओं के लिए विकसित किया जा रहा यह मॉड्यूल थर्ड जेंडर के विकास में शिक्षकों की भूमिका को प्रभावी बनाएगा। इसके लिए मंगलवार को दिल्ली में एक विशेष कार्यशाला का आयोजन किया गया।

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कार्यशाला में राजधानी दिल्ली के सभी सरकारी डिस्ट्रिक्ट इंस्टीट्यूट ऑफ एजुकेशन एंड ट्रेनिंग के प्रतिनिधि शामिल रहे। इनके अलावा दिल्ली विश्वविद्यालय समेत शिक्षा जगत के विशेषज्ञों एवं शिक्षकों ने भी इसमें भाग लिया। सरकार के डिस्ट्रिक्ट इंस्टीट्यूट ऑफ एजुकेशन एंड ट्रेनिंग (डाइट) के परियोजना समन्वयक डॉ. पवन कुमार के मुताबिक थर्ड जेंडर के प्रति संवेदनशीलता विकसित करना, समाज को अधिक समावेशी बनाने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है।

दिल्ली विश्वविद्यालय के प्रो. हंसराज सुमन ने थर्ड जेंडर पर कहा कि हिंदी साहित्य में विभिन्न कहानियों और कविताओं के माध्यम से हमेशा से मानवीय संवेदनाओं को उकेरा गया है। उन्होंने सुझाव दिया कि शिक्षकों को कक्षाओं में ऐसे उदाहरण प्रस्तुत करने चाहिए, जो थर्ड जेंडर के योगदान को रेखांकित करते हों। थर्ड जेंडर को पाठ्यक्रम में शामिल करना चाहिए ताकि समाज उनके विषय में जाने। यह पहल न केवल विद्यार्थियों को जागरूक बनाएगी, बल्कि, समाज में सकारात्मक बदलाव लाने में भी सहायक होगी।

प्रो. सुमन ने कहा कि समाज में सामाजिक परिवर्तन के लिए पाकिस्तानी फिल्म ‘बोल’ ने थर्ड जेंडर के लिए एक सही दिशा देने का कार्य किया है। इस फिल्म में सामाजिक व पारिवारिक परिवेश में थर्ड जेंडर की स्थिति को भावनात्मक ढंग से दर्शाया गया है।

इंद्रप्रस्थ कॉलेज के सहायक प्रोफेसर डॉ. जेपी. सिंह ने शिक्षा में थर्ड जेंडर की अनुपस्थिति को समाज में व्याप्त पूर्वाग्रहों का परिणाम बताया। उन्होंने कहा कि थर्ड जेंडर समुदाय की समस्याएं समाज के दकियानूसी विचारों और भेदभाव से जुड़ी हैं। शिक्षा के माध्यम से इन पूर्वाग्रहों को समाप्त किया जा सकता है।

कार्यशाला मुख्य रूप से थर्ड जेंडर के प्रति प्रशिक्षुओं को संवेदनशील बनाने में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाने के लिए थी। यहां थर्ड जेंडर बच्चों की शिक्षा को लेकर चुनौतियों का उल्लेख किया गया और सुझाव दिया गया कि उन्हें शिक्षा में समान अवसर प्रदान करने के लिए स्कूलों और शिक्षण संस्थानों में विशेष प्रयास किए जाने चाहिए।

–आईएएनएस

जीसीबी/सीबीटी

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नई दिल्ली, 24 दिसंबर (आईएएनएस)। शिक्षा के क्षेत्र में थर्ड जेंडर पर मॉड्यूल विकसित किया जा रहा है। विशेषज्ञों का मानना है कि स्कूलों के पाठ्यक्रम में थर्ड जेंडर की उपस्थिति को शामिल करना महत्वपूर्ण है। इससे भविष्य की पीढ़ियां उनके संघर्षों और योगदानों से परिचित हो सकेंगी। प्रशिक्षुओं के लिए विकसित किया जा रहा यह मॉड्यूल थर्ड जेंडर के विकास में शिक्षकों की भूमिका को प्रभावी बनाएगा। इसके लिए मंगलवार को दिल्ली में एक विशेष कार्यशाला का आयोजन किया गया।

कार्यशाला में राजधानी दिल्ली के सभी सरकारी डिस्ट्रिक्ट इंस्टीट्यूट ऑफ एजुकेशन एंड ट्रेनिंग के प्रतिनिधि शामिल रहे। इनके अलावा दिल्ली विश्वविद्यालय समेत शिक्षा जगत के विशेषज्ञों एवं शिक्षकों ने भी इसमें भाग लिया। सरकार के डिस्ट्रिक्ट इंस्टीट्यूट ऑफ एजुकेशन एंड ट्रेनिंग (डाइट) के परियोजना समन्वयक डॉ. पवन कुमार के मुताबिक थर्ड जेंडर के प्रति संवेदनशीलता विकसित करना, समाज को अधिक समावेशी बनाने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है।

दिल्ली विश्वविद्यालय के प्रो. हंसराज सुमन ने थर्ड जेंडर पर कहा कि हिंदी साहित्य में विभिन्न कहानियों और कविताओं के माध्यम से हमेशा से मानवीय संवेदनाओं को उकेरा गया है। उन्होंने सुझाव दिया कि शिक्षकों को कक्षाओं में ऐसे उदाहरण प्रस्तुत करने चाहिए, जो थर्ड जेंडर के योगदान को रेखांकित करते हों। थर्ड जेंडर को पाठ्यक्रम में शामिल करना चाहिए ताकि समाज उनके विषय में जाने। यह पहल न केवल विद्यार्थियों को जागरूक बनाएगी, बल्कि, समाज में सकारात्मक बदलाव लाने में भी सहायक होगी।

प्रो. सुमन ने कहा कि समाज में सामाजिक परिवर्तन के लिए पाकिस्तानी फिल्म ‘बोल’ ने थर्ड जेंडर के लिए एक सही दिशा देने का कार्य किया है। इस फिल्म में सामाजिक व पारिवारिक परिवेश में थर्ड जेंडर की स्थिति को भावनात्मक ढंग से दर्शाया गया है।

इंद्रप्रस्थ कॉलेज के सहायक प्रोफेसर डॉ. जेपी. सिंह ने शिक्षा में थर्ड जेंडर की अनुपस्थिति को समाज में व्याप्त पूर्वाग्रहों का परिणाम बताया। उन्होंने कहा कि थर्ड जेंडर समुदाय की समस्याएं समाज के दकियानूसी विचारों और भेदभाव से जुड़ी हैं। शिक्षा के माध्यम से इन पूर्वाग्रहों को समाप्त किया जा सकता है।

कार्यशाला मुख्य रूप से थर्ड जेंडर के प्रति प्रशिक्षुओं को संवेदनशील बनाने में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाने के लिए थी। यहां थर्ड जेंडर बच्चों की शिक्षा को लेकर चुनौतियों का उल्लेख किया गया और सुझाव दिया गया कि उन्हें शिक्षा में समान अवसर प्रदान करने के लिए स्कूलों और शिक्षण संस्थानों में विशेष प्रयास किए जाने चाहिए।

–आईएएनएस

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नई दिल्ली, 24 दिसंबर (आईएएनएस)। शिक्षा के क्षेत्र में थर्ड जेंडर पर मॉड्यूल विकसित किया जा रहा है। विशेषज्ञों का मानना है कि स्कूलों के पाठ्यक्रम में थर्ड जेंडर की उपस्थिति को शामिल करना महत्वपूर्ण है। इससे भविष्य की पीढ़ियां उनके संघर्षों और योगदानों से परिचित हो सकेंगी। प्रशिक्षुओं के लिए विकसित किया जा रहा यह मॉड्यूल थर्ड जेंडर के विकास में शिक्षकों की भूमिका को प्रभावी बनाएगा। इसके लिए मंगलवार को दिल्ली में एक विशेष कार्यशाला का आयोजन किया गया।

कार्यशाला में राजधानी दिल्ली के सभी सरकारी डिस्ट्रिक्ट इंस्टीट्यूट ऑफ एजुकेशन एंड ट्रेनिंग के प्रतिनिधि शामिल रहे। इनके अलावा दिल्ली विश्वविद्यालय समेत शिक्षा जगत के विशेषज्ञों एवं शिक्षकों ने भी इसमें भाग लिया। सरकार के डिस्ट्रिक्ट इंस्टीट्यूट ऑफ एजुकेशन एंड ट्रेनिंग (डाइट) के परियोजना समन्वयक डॉ. पवन कुमार के मुताबिक थर्ड जेंडर के प्रति संवेदनशीलता विकसित करना, समाज को अधिक समावेशी बनाने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है।

दिल्ली विश्वविद्यालय के प्रो. हंसराज सुमन ने थर्ड जेंडर पर कहा कि हिंदी साहित्य में विभिन्न कहानियों और कविताओं के माध्यम से हमेशा से मानवीय संवेदनाओं को उकेरा गया है। उन्होंने सुझाव दिया कि शिक्षकों को कक्षाओं में ऐसे उदाहरण प्रस्तुत करने चाहिए, जो थर्ड जेंडर के योगदान को रेखांकित करते हों। थर्ड जेंडर को पाठ्यक्रम में शामिल करना चाहिए ताकि समाज उनके विषय में जाने। यह पहल न केवल विद्यार्थियों को जागरूक बनाएगी, बल्कि, समाज में सकारात्मक बदलाव लाने में भी सहायक होगी।

प्रो. सुमन ने कहा कि समाज में सामाजिक परिवर्तन के लिए पाकिस्तानी फिल्म ‘बोल’ ने थर्ड जेंडर के लिए एक सही दिशा देने का कार्य किया है। इस फिल्म में सामाजिक व पारिवारिक परिवेश में थर्ड जेंडर की स्थिति को भावनात्मक ढंग से दर्शाया गया है।

इंद्रप्रस्थ कॉलेज के सहायक प्रोफेसर डॉ. जेपी. सिंह ने शिक्षा में थर्ड जेंडर की अनुपस्थिति को समाज में व्याप्त पूर्वाग्रहों का परिणाम बताया। उन्होंने कहा कि थर्ड जेंडर समुदाय की समस्याएं समाज के दकियानूसी विचारों और भेदभाव से जुड़ी हैं। शिक्षा के माध्यम से इन पूर्वाग्रहों को समाप्त किया जा सकता है।

कार्यशाला मुख्य रूप से थर्ड जेंडर के प्रति प्रशिक्षुओं को संवेदनशील बनाने में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाने के लिए थी। यहां थर्ड जेंडर बच्चों की शिक्षा को लेकर चुनौतियों का उल्लेख किया गया और सुझाव दिया गया कि उन्हें शिक्षा में समान अवसर प्रदान करने के लिए स्कूलों और शिक्षण संस्थानों में विशेष प्रयास किए जाने चाहिए।

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नई दिल्ली, 24 दिसंबर (आईएएनएस)। शिक्षा के क्षेत्र में थर्ड जेंडर पर मॉड्यूल विकसित किया जा रहा है। विशेषज्ञों का मानना है कि स्कूलों के पाठ्यक्रम में थर्ड जेंडर की उपस्थिति को शामिल करना महत्वपूर्ण है। इससे भविष्य की पीढ़ियां उनके संघर्षों और योगदानों से परिचित हो सकेंगी। प्रशिक्षुओं के लिए विकसित किया जा रहा यह मॉड्यूल थर्ड जेंडर के विकास में शिक्षकों की भूमिका को प्रभावी बनाएगा। इसके लिए मंगलवार को दिल्ली में एक विशेष कार्यशाला का आयोजन किया गया।

कार्यशाला में राजधानी दिल्ली के सभी सरकारी डिस्ट्रिक्ट इंस्टीट्यूट ऑफ एजुकेशन एंड ट्रेनिंग के प्रतिनिधि शामिल रहे। इनके अलावा दिल्ली विश्वविद्यालय समेत शिक्षा जगत के विशेषज्ञों एवं शिक्षकों ने भी इसमें भाग लिया। सरकार के डिस्ट्रिक्ट इंस्टीट्यूट ऑफ एजुकेशन एंड ट्रेनिंग (डाइट) के परियोजना समन्वयक डॉ. पवन कुमार के मुताबिक थर्ड जेंडर के प्रति संवेदनशीलता विकसित करना, समाज को अधिक समावेशी बनाने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है।

दिल्ली विश्वविद्यालय के प्रो. हंसराज सुमन ने थर्ड जेंडर पर कहा कि हिंदी साहित्य में विभिन्न कहानियों और कविताओं के माध्यम से हमेशा से मानवीय संवेदनाओं को उकेरा गया है। उन्होंने सुझाव दिया कि शिक्षकों को कक्षाओं में ऐसे उदाहरण प्रस्तुत करने चाहिए, जो थर्ड जेंडर के योगदान को रेखांकित करते हों। थर्ड जेंडर को पाठ्यक्रम में शामिल करना चाहिए ताकि समाज उनके विषय में जाने। यह पहल न केवल विद्यार्थियों को जागरूक बनाएगी, बल्कि, समाज में सकारात्मक बदलाव लाने में भी सहायक होगी।

प्रो. सुमन ने कहा कि समाज में सामाजिक परिवर्तन के लिए पाकिस्तानी फिल्म ‘बोल’ ने थर्ड जेंडर के लिए एक सही दिशा देने का कार्य किया है। इस फिल्म में सामाजिक व पारिवारिक परिवेश में थर्ड जेंडर की स्थिति को भावनात्मक ढंग से दर्शाया गया है।

इंद्रप्रस्थ कॉलेज के सहायक प्रोफेसर डॉ. जेपी. सिंह ने शिक्षा में थर्ड जेंडर की अनुपस्थिति को समाज में व्याप्त पूर्वाग्रहों का परिणाम बताया। उन्होंने कहा कि थर्ड जेंडर समुदाय की समस्याएं समाज के दकियानूसी विचारों और भेदभाव से जुड़ी हैं। शिक्षा के माध्यम से इन पूर्वाग्रहों को समाप्त किया जा सकता है।

कार्यशाला मुख्य रूप से थर्ड जेंडर के प्रति प्रशिक्षुओं को संवेदनशील बनाने में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाने के लिए थी। यहां थर्ड जेंडर बच्चों की शिक्षा को लेकर चुनौतियों का उल्लेख किया गया और सुझाव दिया गया कि उन्हें शिक्षा में समान अवसर प्रदान करने के लिए स्कूलों और शिक्षण संस्थानों में विशेष प्रयास किए जाने चाहिए।

–आईएएनएस

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नई दिल्ली, 24 दिसंबर (आईएएनएस)। शिक्षा के क्षेत्र में थर्ड जेंडर पर मॉड्यूल विकसित किया जा रहा है। विशेषज्ञों का मानना है कि स्कूलों के पाठ्यक्रम में थर्ड जेंडर की उपस्थिति को शामिल करना महत्वपूर्ण है। इससे भविष्य की पीढ़ियां उनके संघर्षों और योगदानों से परिचित हो सकेंगी। प्रशिक्षुओं के लिए विकसित किया जा रहा यह मॉड्यूल थर्ड जेंडर के विकास में शिक्षकों की भूमिका को प्रभावी बनाएगा। इसके लिए मंगलवार को दिल्ली में एक विशेष कार्यशाला का आयोजन किया गया।

कार्यशाला में राजधानी दिल्ली के सभी सरकारी डिस्ट्रिक्ट इंस्टीट्यूट ऑफ एजुकेशन एंड ट्रेनिंग के प्रतिनिधि शामिल रहे। इनके अलावा दिल्ली विश्वविद्यालय समेत शिक्षा जगत के विशेषज्ञों एवं शिक्षकों ने भी इसमें भाग लिया। सरकार के डिस्ट्रिक्ट इंस्टीट्यूट ऑफ एजुकेशन एंड ट्रेनिंग (डाइट) के परियोजना समन्वयक डॉ. पवन कुमार के मुताबिक थर्ड जेंडर के प्रति संवेदनशीलता विकसित करना, समाज को अधिक समावेशी बनाने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है।

दिल्ली विश्वविद्यालय के प्रो. हंसराज सुमन ने थर्ड जेंडर पर कहा कि हिंदी साहित्य में विभिन्न कहानियों और कविताओं के माध्यम से हमेशा से मानवीय संवेदनाओं को उकेरा गया है। उन्होंने सुझाव दिया कि शिक्षकों को कक्षाओं में ऐसे उदाहरण प्रस्तुत करने चाहिए, जो थर्ड जेंडर के योगदान को रेखांकित करते हों। थर्ड जेंडर को पाठ्यक्रम में शामिल करना चाहिए ताकि समाज उनके विषय में जाने। यह पहल न केवल विद्यार्थियों को जागरूक बनाएगी, बल्कि, समाज में सकारात्मक बदलाव लाने में भी सहायक होगी।

प्रो. सुमन ने कहा कि समाज में सामाजिक परिवर्तन के लिए पाकिस्तानी फिल्म ‘बोल’ ने थर्ड जेंडर के लिए एक सही दिशा देने का कार्य किया है। इस फिल्म में सामाजिक व पारिवारिक परिवेश में थर्ड जेंडर की स्थिति को भावनात्मक ढंग से दर्शाया गया है।

इंद्रप्रस्थ कॉलेज के सहायक प्रोफेसर डॉ. जेपी. सिंह ने शिक्षा में थर्ड जेंडर की अनुपस्थिति को समाज में व्याप्त पूर्वाग्रहों का परिणाम बताया। उन्होंने कहा कि थर्ड जेंडर समुदाय की समस्याएं समाज के दकियानूसी विचारों और भेदभाव से जुड़ी हैं। शिक्षा के माध्यम से इन पूर्वाग्रहों को समाप्त किया जा सकता है।

कार्यशाला मुख्य रूप से थर्ड जेंडर के प्रति प्रशिक्षुओं को संवेदनशील बनाने में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाने के लिए थी। यहां थर्ड जेंडर बच्चों की शिक्षा को लेकर चुनौतियों का उल्लेख किया गया और सुझाव दिया गया कि उन्हें शिक्षा में समान अवसर प्रदान करने के लिए स्कूलों और शिक्षण संस्थानों में विशेष प्रयास किए जाने चाहिए।

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कार्यशाला में राजधानी दिल्ली के सभी सरकारी डिस्ट्रिक्ट इंस्टीट्यूट ऑफ एजुकेशन एंड ट्रेनिंग के प्रतिनिधि शामिल रहे। इनके अलावा दिल्ली विश्वविद्यालय समेत शिक्षा जगत के विशेषज्ञों एवं शिक्षकों ने भी इसमें भाग लिया। सरकार के डिस्ट्रिक्ट इंस्टीट्यूट ऑफ एजुकेशन एंड ट्रेनिंग (डाइट) के परियोजना समन्वयक डॉ. पवन कुमार के मुताबिक थर्ड जेंडर के प्रति संवेदनशीलता विकसित करना, समाज को अधिक समावेशी बनाने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है।

दिल्ली विश्वविद्यालय के प्रो. हंसराज सुमन ने थर्ड जेंडर पर कहा कि हिंदी साहित्य में विभिन्न कहानियों और कविताओं के माध्यम से हमेशा से मानवीय संवेदनाओं को उकेरा गया है। उन्होंने सुझाव दिया कि शिक्षकों को कक्षाओं में ऐसे उदाहरण प्रस्तुत करने चाहिए, जो थर्ड जेंडर के योगदान को रेखांकित करते हों। थर्ड जेंडर को पाठ्यक्रम में शामिल करना चाहिए ताकि समाज उनके विषय में जाने। यह पहल न केवल विद्यार्थियों को जागरूक बनाएगी, बल्कि, समाज में सकारात्मक बदलाव लाने में भी सहायक होगी।

प्रो. सुमन ने कहा कि समाज में सामाजिक परिवर्तन के लिए पाकिस्तानी फिल्म ‘बोल’ ने थर्ड जेंडर के लिए एक सही दिशा देने का कार्य किया है। इस फिल्म में सामाजिक व पारिवारिक परिवेश में थर्ड जेंडर की स्थिति को भावनात्मक ढंग से दर्शाया गया है।

इंद्रप्रस्थ कॉलेज के सहायक प्रोफेसर डॉ. जेपी. सिंह ने शिक्षा में थर्ड जेंडर की अनुपस्थिति को समाज में व्याप्त पूर्वाग्रहों का परिणाम बताया। उन्होंने कहा कि थर्ड जेंडर समुदाय की समस्याएं समाज के दकियानूसी विचारों और भेदभाव से जुड़ी हैं। शिक्षा के माध्यम से इन पूर्वाग्रहों को समाप्त किया जा सकता है।

कार्यशाला मुख्य रूप से थर्ड जेंडर के प्रति प्रशिक्षुओं को संवेदनशील बनाने में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाने के लिए थी। यहां थर्ड जेंडर बच्चों की शिक्षा को लेकर चुनौतियों का उल्लेख किया गया और सुझाव दिया गया कि उन्हें शिक्षा में समान अवसर प्रदान करने के लिए स्कूलों और शिक्षण संस्थानों में विशेष प्रयास किए जाने चाहिए।

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कार्यशाला में राजधानी दिल्ली के सभी सरकारी डिस्ट्रिक्ट इंस्टीट्यूट ऑफ एजुकेशन एंड ट्रेनिंग के प्रतिनिधि शामिल रहे। इनके अलावा दिल्ली विश्वविद्यालय समेत शिक्षा जगत के विशेषज्ञों एवं शिक्षकों ने भी इसमें भाग लिया। सरकार के डिस्ट्रिक्ट इंस्टीट्यूट ऑफ एजुकेशन एंड ट्रेनिंग (डाइट) के परियोजना समन्वयक डॉ. पवन कुमार के मुताबिक थर्ड जेंडर के प्रति संवेदनशीलता विकसित करना, समाज को अधिक समावेशी बनाने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है।

दिल्ली विश्वविद्यालय के प्रो. हंसराज सुमन ने थर्ड जेंडर पर कहा कि हिंदी साहित्य में विभिन्न कहानियों और कविताओं के माध्यम से हमेशा से मानवीय संवेदनाओं को उकेरा गया है। उन्होंने सुझाव दिया कि शिक्षकों को कक्षाओं में ऐसे उदाहरण प्रस्तुत करने चाहिए, जो थर्ड जेंडर के योगदान को रेखांकित करते हों। थर्ड जेंडर को पाठ्यक्रम में शामिल करना चाहिए ताकि समाज उनके विषय में जाने। यह पहल न केवल विद्यार्थियों को जागरूक बनाएगी, बल्कि, समाज में सकारात्मक बदलाव लाने में भी सहायक होगी।

प्रो. सुमन ने कहा कि समाज में सामाजिक परिवर्तन के लिए पाकिस्तानी फिल्म ‘बोल’ ने थर्ड जेंडर के लिए एक सही दिशा देने का कार्य किया है। इस फिल्म में सामाजिक व पारिवारिक परिवेश में थर्ड जेंडर की स्थिति को भावनात्मक ढंग से दर्शाया गया है।

इंद्रप्रस्थ कॉलेज के सहायक प्रोफेसर डॉ. जेपी. सिंह ने शिक्षा में थर्ड जेंडर की अनुपस्थिति को समाज में व्याप्त पूर्वाग्रहों का परिणाम बताया। उन्होंने कहा कि थर्ड जेंडर समुदाय की समस्याएं समाज के दकियानूसी विचारों और भेदभाव से जुड़ी हैं। शिक्षा के माध्यम से इन पूर्वाग्रहों को समाप्त किया जा सकता है।

कार्यशाला मुख्य रूप से थर्ड जेंडर के प्रति प्रशिक्षुओं को संवेदनशील बनाने में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाने के लिए थी। यहां थर्ड जेंडर बच्चों की शिक्षा को लेकर चुनौतियों का उल्लेख किया गया और सुझाव दिया गया कि उन्हें शिक्षा में समान अवसर प्रदान करने के लिए स्कूलों और शिक्षण संस्थानों में विशेष प्रयास किए जाने चाहिए।

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नई दिल्ली, 24 दिसंबर (आईएएनएस)। शिक्षा के क्षेत्र में थर्ड जेंडर पर मॉड्यूल विकसित किया जा रहा है। विशेषज्ञों का मानना है कि स्कूलों के पाठ्यक्रम में थर्ड जेंडर की उपस्थिति को शामिल करना महत्वपूर्ण है। इससे भविष्य की पीढ़ियां उनके संघर्षों और योगदानों से परिचित हो सकेंगी। प्रशिक्षुओं के लिए विकसित किया जा रहा यह मॉड्यूल थर्ड जेंडर के विकास में शिक्षकों की भूमिका को प्रभावी बनाएगा। इसके लिए मंगलवार को दिल्ली में एक विशेष कार्यशाला का आयोजन किया गया।

कार्यशाला में राजधानी दिल्ली के सभी सरकारी डिस्ट्रिक्ट इंस्टीट्यूट ऑफ एजुकेशन एंड ट्रेनिंग के प्रतिनिधि शामिल रहे। इनके अलावा दिल्ली विश्वविद्यालय समेत शिक्षा जगत के विशेषज्ञों एवं शिक्षकों ने भी इसमें भाग लिया। सरकार के डिस्ट्रिक्ट इंस्टीट्यूट ऑफ एजुकेशन एंड ट्रेनिंग (डाइट) के परियोजना समन्वयक डॉ. पवन कुमार के मुताबिक थर्ड जेंडर के प्रति संवेदनशीलता विकसित करना, समाज को अधिक समावेशी बनाने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है।

दिल्ली विश्वविद्यालय के प्रो. हंसराज सुमन ने थर्ड जेंडर पर कहा कि हिंदी साहित्य में विभिन्न कहानियों और कविताओं के माध्यम से हमेशा से मानवीय संवेदनाओं को उकेरा गया है। उन्होंने सुझाव दिया कि शिक्षकों को कक्षाओं में ऐसे उदाहरण प्रस्तुत करने चाहिए, जो थर्ड जेंडर के योगदान को रेखांकित करते हों। थर्ड जेंडर को पाठ्यक्रम में शामिल करना चाहिए ताकि समाज उनके विषय में जाने। यह पहल न केवल विद्यार्थियों को जागरूक बनाएगी, बल्कि, समाज में सकारात्मक बदलाव लाने में भी सहायक होगी।

प्रो. सुमन ने कहा कि समाज में सामाजिक परिवर्तन के लिए पाकिस्तानी फिल्म ‘बोल’ ने थर्ड जेंडर के लिए एक सही दिशा देने का कार्य किया है। इस फिल्म में सामाजिक व पारिवारिक परिवेश में थर्ड जेंडर की स्थिति को भावनात्मक ढंग से दर्शाया गया है।

इंद्रप्रस्थ कॉलेज के सहायक प्रोफेसर डॉ. जेपी. सिंह ने शिक्षा में थर्ड जेंडर की अनुपस्थिति को समाज में व्याप्त पूर्वाग्रहों का परिणाम बताया। उन्होंने कहा कि थर्ड जेंडर समुदाय की समस्याएं समाज के दकियानूसी विचारों और भेदभाव से जुड़ी हैं। शिक्षा के माध्यम से इन पूर्वाग्रहों को समाप्त किया जा सकता है।

कार्यशाला मुख्य रूप से थर्ड जेंडर के प्रति प्रशिक्षुओं को संवेदनशील बनाने में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाने के लिए थी। यहां थर्ड जेंडर बच्चों की शिक्षा को लेकर चुनौतियों का उल्लेख किया गया और सुझाव दिया गया कि उन्हें शिक्षा में समान अवसर प्रदान करने के लिए स्कूलों और शिक्षण संस्थानों में विशेष प्रयास किए जाने चाहिए।

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कार्यशाला में राजधानी दिल्ली के सभी सरकारी डिस्ट्रिक्ट इंस्टीट्यूट ऑफ एजुकेशन एंड ट्रेनिंग के प्रतिनिधि शामिल रहे। इनके अलावा दिल्ली विश्वविद्यालय समेत शिक्षा जगत के विशेषज्ञों एवं शिक्षकों ने भी इसमें भाग लिया। सरकार के डिस्ट्रिक्ट इंस्टीट्यूट ऑफ एजुकेशन एंड ट्रेनिंग (डाइट) के परियोजना समन्वयक डॉ. पवन कुमार के मुताबिक थर्ड जेंडर के प्रति संवेदनशीलता विकसित करना, समाज को अधिक समावेशी बनाने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है।

दिल्ली विश्वविद्यालय के प्रो. हंसराज सुमन ने थर्ड जेंडर पर कहा कि हिंदी साहित्य में विभिन्न कहानियों और कविताओं के माध्यम से हमेशा से मानवीय संवेदनाओं को उकेरा गया है। उन्होंने सुझाव दिया कि शिक्षकों को कक्षाओं में ऐसे उदाहरण प्रस्तुत करने चाहिए, जो थर्ड जेंडर के योगदान को रेखांकित करते हों। थर्ड जेंडर को पाठ्यक्रम में शामिल करना चाहिए ताकि समाज उनके विषय में जाने। यह पहल न केवल विद्यार्थियों को जागरूक बनाएगी, बल्कि, समाज में सकारात्मक बदलाव लाने में भी सहायक होगी।

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इंद्रप्रस्थ कॉलेज के सहायक प्रोफेसर डॉ. जेपी. सिंह ने शिक्षा में थर्ड जेंडर की अनुपस्थिति को समाज में व्याप्त पूर्वाग्रहों का परिणाम बताया। उन्होंने कहा कि थर्ड जेंडर समुदाय की समस्याएं समाज के दकियानूसी विचारों और भेदभाव से जुड़ी हैं। शिक्षा के माध्यम से इन पूर्वाग्रहों को समाप्त किया जा सकता है।

कार्यशाला मुख्य रूप से थर्ड जेंडर के प्रति प्रशिक्षुओं को संवेदनशील बनाने में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाने के लिए थी। यहां थर्ड जेंडर बच्चों की शिक्षा को लेकर चुनौतियों का उल्लेख किया गया और सुझाव दिया गया कि उन्हें शिक्षा में समान अवसर प्रदान करने के लिए स्कूलों और शिक्षण संस्थानों में विशेष प्रयास किए जाने चाहिए।

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नई दिल्ली, 24 दिसंबर (आईएएनएस)। शिक्षा के क्षेत्र में थर्ड जेंडर पर मॉड्यूल विकसित किया जा रहा है। विशेषज्ञों का मानना है कि स्कूलों के पाठ्यक्रम में थर्ड जेंडर की उपस्थिति को शामिल करना महत्वपूर्ण है। इससे भविष्य की पीढ़ियां उनके संघर्षों और योगदानों से परिचित हो सकेंगी। प्रशिक्षुओं के लिए विकसित किया जा रहा यह मॉड्यूल थर्ड जेंडर के विकास में शिक्षकों की भूमिका को प्रभावी बनाएगा। इसके लिए मंगलवार को दिल्ली में एक विशेष कार्यशाला का आयोजन किया गया।

कार्यशाला में राजधानी दिल्ली के सभी सरकारी डिस्ट्रिक्ट इंस्टीट्यूट ऑफ एजुकेशन एंड ट्रेनिंग के प्रतिनिधि शामिल रहे। इनके अलावा दिल्ली विश्वविद्यालय समेत शिक्षा जगत के विशेषज्ञों एवं शिक्षकों ने भी इसमें भाग लिया। सरकार के डिस्ट्रिक्ट इंस्टीट्यूट ऑफ एजुकेशन एंड ट्रेनिंग (डाइट) के परियोजना समन्वयक डॉ. पवन कुमार के मुताबिक थर्ड जेंडर के प्रति संवेदनशीलता विकसित करना, समाज को अधिक समावेशी बनाने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है।

दिल्ली विश्वविद्यालय के प्रो. हंसराज सुमन ने थर्ड जेंडर पर कहा कि हिंदी साहित्य में विभिन्न कहानियों और कविताओं के माध्यम से हमेशा से मानवीय संवेदनाओं को उकेरा गया है। उन्होंने सुझाव दिया कि शिक्षकों को कक्षाओं में ऐसे उदाहरण प्रस्तुत करने चाहिए, जो थर्ड जेंडर के योगदान को रेखांकित करते हों। थर्ड जेंडर को पाठ्यक्रम में शामिल करना चाहिए ताकि समाज उनके विषय में जाने। यह पहल न केवल विद्यार्थियों को जागरूक बनाएगी, बल्कि, समाज में सकारात्मक बदलाव लाने में भी सहायक होगी।

प्रो. सुमन ने कहा कि समाज में सामाजिक परिवर्तन के लिए पाकिस्तानी फिल्म ‘बोल’ ने थर्ड जेंडर के लिए एक सही दिशा देने का कार्य किया है। इस फिल्म में सामाजिक व पारिवारिक परिवेश में थर्ड जेंडर की स्थिति को भावनात्मक ढंग से दर्शाया गया है।

इंद्रप्रस्थ कॉलेज के सहायक प्रोफेसर डॉ. जेपी. सिंह ने शिक्षा में थर्ड जेंडर की अनुपस्थिति को समाज में व्याप्त पूर्वाग्रहों का परिणाम बताया। उन्होंने कहा कि थर्ड जेंडर समुदाय की समस्याएं समाज के दकियानूसी विचारों और भेदभाव से जुड़ी हैं। शिक्षा के माध्यम से इन पूर्वाग्रहों को समाप्त किया जा सकता है।

कार्यशाला मुख्य रूप से थर्ड जेंडर के प्रति प्रशिक्षुओं को संवेदनशील बनाने में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाने के लिए थी। यहां थर्ड जेंडर बच्चों की शिक्षा को लेकर चुनौतियों का उल्लेख किया गया और सुझाव दिया गया कि उन्हें शिक्षा में समान अवसर प्रदान करने के लिए स्कूलों और शिक्षण संस्थानों में विशेष प्रयास किए जाने चाहिए।

–आईएएनएस

जीसीबी/सीबीटी

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नई दिल्ली, 24 दिसंबर (आईएएनएस)। शिक्षा के क्षेत्र में थर्ड जेंडर पर मॉड्यूल विकसित किया जा रहा है। विशेषज्ञों का मानना है कि स्कूलों के पाठ्यक्रम में थर्ड जेंडर की उपस्थिति को शामिल करना महत्वपूर्ण है। इससे भविष्य की पीढ़ियां उनके संघर्षों और योगदानों से परिचित हो सकेंगी। प्रशिक्षुओं के लिए विकसित किया जा रहा यह मॉड्यूल थर्ड जेंडर के विकास में शिक्षकों की भूमिका को प्रभावी बनाएगा। इसके लिए मंगलवार को दिल्ली में एक विशेष कार्यशाला का आयोजन किया गया।

कार्यशाला में राजधानी दिल्ली के सभी सरकारी डिस्ट्रिक्ट इंस्टीट्यूट ऑफ एजुकेशन एंड ट्रेनिंग के प्रतिनिधि शामिल रहे। इनके अलावा दिल्ली विश्वविद्यालय समेत शिक्षा जगत के विशेषज्ञों एवं शिक्षकों ने भी इसमें भाग लिया। सरकार के डिस्ट्रिक्ट इंस्टीट्यूट ऑफ एजुकेशन एंड ट्रेनिंग (डाइट) के परियोजना समन्वयक डॉ. पवन कुमार के मुताबिक थर्ड जेंडर के प्रति संवेदनशीलता विकसित करना, समाज को अधिक समावेशी बनाने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है।

दिल्ली विश्वविद्यालय के प्रो. हंसराज सुमन ने थर्ड जेंडर पर कहा कि हिंदी साहित्य में विभिन्न कहानियों और कविताओं के माध्यम से हमेशा से मानवीय संवेदनाओं को उकेरा गया है। उन्होंने सुझाव दिया कि शिक्षकों को कक्षाओं में ऐसे उदाहरण प्रस्तुत करने चाहिए, जो थर्ड जेंडर के योगदान को रेखांकित करते हों। थर्ड जेंडर को पाठ्यक्रम में शामिल करना चाहिए ताकि समाज उनके विषय में जाने। यह पहल न केवल विद्यार्थियों को जागरूक बनाएगी, बल्कि, समाज में सकारात्मक बदलाव लाने में भी सहायक होगी।

प्रो. सुमन ने कहा कि समाज में सामाजिक परिवर्तन के लिए पाकिस्तानी फिल्म ‘बोल’ ने थर्ड जेंडर के लिए एक सही दिशा देने का कार्य किया है। इस फिल्म में सामाजिक व पारिवारिक परिवेश में थर्ड जेंडर की स्थिति को भावनात्मक ढंग से दर्शाया गया है।

इंद्रप्रस्थ कॉलेज के सहायक प्रोफेसर डॉ. जेपी. सिंह ने शिक्षा में थर्ड जेंडर की अनुपस्थिति को समाज में व्याप्त पूर्वाग्रहों का परिणाम बताया। उन्होंने कहा कि थर्ड जेंडर समुदाय की समस्याएं समाज के दकियानूसी विचारों और भेदभाव से जुड़ी हैं। शिक्षा के माध्यम से इन पूर्वाग्रहों को समाप्त किया जा सकता है।

कार्यशाला मुख्य रूप से थर्ड जेंडर के प्रति प्रशिक्षुओं को संवेदनशील बनाने में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाने के लिए थी। यहां थर्ड जेंडर बच्चों की शिक्षा को लेकर चुनौतियों का उल्लेख किया गया और सुझाव दिया गया कि उन्हें शिक्षा में समान अवसर प्रदान करने के लिए स्कूलों और शिक्षण संस्थानों में विशेष प्रयास किए जाने चाहिए।

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कार्यशाला में राजधानी दिल्ली के सभी सरकारी डिस्ट्रिक्ट इंस्टीट्यूट ऑफ एजुकेशन एंड ट्रेनिंग के प्रतिनिधि शामिल रहे। इनके अलावा दिल्ली विश्वविद्यालय समेत शिक्षा जगत के विशेषज्ञों एवं शिक्षकों ने भी इसमें भाग लिया। सरकार के डिस्ट्रिक्ट इंस्टीट्यूट ऑफ एजुकेशन एंड ट्रेनिंग (डाइट) के परियोजना समन्वयक डॉ. पवन कुमार के मुताबिक थर्ड जेंडर के प्रति संवेदनशीलता विकसित करना, समाज को अधिक समावेशी बनाने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है।

दिल्ली विश्वविद्यालय के प्रो. हंसराज सुमन ने थर्ड जेंडर पर कहा कि हिंदी साहित्य में विभिन्न कहानियों और कविताओं के माध्यम से हमेशा से मानवीय संवेदनाओं को उकेरा गया है। उन्होंने सुझाव दिया कि शिक्षकों को कक्षाओं में ऐसे उदाहरण प्रस्तुत करने चाहिए, जो थर्ड जेंडर के योगदान को रेखांकित करते हों। थर्ड जेंडर को पाठ्यक्रम में शामिल करना चाहिए ताकि समाज उनके विषय में जाने। यह पहल न केवल विद्यार्थियों को जागरूक बनाएगी, बल्कि, समाज में सकारात्मक बदलाव लाने में भी सहायक होगी।

प्रो. सुमन ने कहा कि समाज में सामाजिक परिवर्तन के लिए पाकिस्तानी फिल्म ‘बोल’ ने थर्ड जेंडर के लिए एक सही दिशा देने का कार्य किया है। इस फिल्म में सामाजिक व पारिवारिक परिवेश में थर्ड जेंडर की स्थिति को भावनात्मक ढंग से दर्शाया गया है।

इंद्रप्रस्थ कॉलेज के सहायक प्रोफेसर डॉ. जेपी. सिंह ने शिक्षा में थर्ड जेंडर की अनुपस्थिति को समाज में व्याप्त पूर्वाग्रहों का परिणाम बताया। उन्होंने कहा कि थर्ड जेंडर समुदाय की समस्याएं समाज के दकियानूसी विचारों और भेदभाव से जुड़ी हैं। शिक्षा के माध्यम से इन पूर्वाग्रहों को समाप्त किया जा सकता है।

कार्यशाला मुख्य रूप से थर्ड जेंडर के प्रति प्रशिक्षुओं को संवेदनशील बनाने में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाने के लिए थी। यहां थर्ड जेंडर बच्चों की शिक्षा को लेकर चुनौतियों का उल्लेख किया गया और सुझाव दिया गया कि उन्हें शिक्षा में समान अवसर प्रदान करने के लिए स्कूलों और शिक्षण संस्थानों में विशेष प्रयास किए जाने चाहिए।

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नई दिल्ली, 24 दिसंबर (आईएएनएस)। शिक्षा के क्षेत्र में थर्ड जेंडर पर मॉड्यूल विकसित किया जा रहा है। विशेषज्ञों का मानना है कि स्कूलों के पाठ्यक्रम में थर्ड जेंडर की उपस्थिति को शामिल करना महत्वपूर्ण है। इससे भविष्य की पीढ़ियां उनके संघर्षों और योगदानों से परिचित हो सकेंगी। प्रशिक्षुओं के लिए विकसित किया जा रहा यह मॉड्यूल थर्ड जेंडर के विकास में शिक्षकों की भूमिका को प्रभावी बनाएगा। इसके लिए मंगलवार को दिल्ली में एक विशेष कार्यशाला का आयोजन किया गया।

कार्यशाला में राजधानी दिल्ली के सभी सरकारी डिस्ट्रिक्ट इंस्टीट्यूट ऑफ एजुकेशन एंड ट्रेनिंग के प्रतिनिधि शामिल रहे। इनके अलावा दिल्ली विश्वविद्यालय समेत शिक्षा जगत के विशेषज्ञों एवं शिक्षकों ने भी इसमें भाग लिया। सरकार के डिस्ट्रिक्ट इंस्टीट्यूट ऑफ एजुकेशन एंड ट्रेनिंग (डाइट) के परियोजना समन्वयक डॉ. पवन कुमार के मुताबिक थर्ड जेंडर के प्रति संवेदनशीलता विकसित करना, समाज को अधिक समावेशी बनाने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है।

दिल्ली विश्वविद्यालय के प्रो. हंसराज सुमन ने थर्ड जेंडर पर कहा कि हिंदी साहित्य में विभिन्न कहानियों और कविताओं के माध्यम से हमेशा से मानवीय संवेदनाओं को उकेरा गया है। उन्होंने सुझाव दिया कि शिक्षकों को कक्षाओं में ऐसे उदाहरण प्रस्तुत करने चाहिए, जो थर्ड जेंडर के योगदान को रेखांकित करते हों। थर्ड जेंडर को पाठ्यक्रम में शामिल करना चाहिए ताकि समाज उनके विषय में जाने। यह पहल न केवल विद्यार्थियों को जागरूक बनाएगी, बल्कि, समाज में सकारात्मक बदलाव लाने में भी सहायक होगी।

प्रो. सुमन ने कहा कि समाज में सामाजिक परिवर्तन के लिए पाकिस्तानी फिल्म ‘बोल’ ने थर्ड जेंडर के लिए एक सही दिशा देने का कार्य किया है। इस फिल्म में सामाजिक व पारिवारिक परिवेश में थर्ड जेंडर की स्थिति को भावनात्मक ढंग से दर्शाया गया है।

इंद्रप्रस्थ कॉलेज के सहायक प्रोफेसर डॉ. जेपी. सिंह ने शिक्षा में थर्ड जेंडर की अनुपस्थिति को समाज में व्याप्त पूर्वाग्रहों का परिणाम बताया। उन्होंने कहा कि थर्ड जेंडर समुदाय की समस्याएं समाज के दकियानूसी विचारों और भेदभाव से जुड़ी हैं। शिक्षा के माध्यम से इन पूर्वाग्रहों को समाप्त किया जा सकता है।

कार्यशाला मुख्य रूप से थर्ड जेंडर के प्रति प्रशिक्षुओं को संवेदनशील बनाने में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाने के लिए थी। यहां थर्ड जेंडर बच्चों की शिक्षा को लेकर चुनौतियों का उल्लेख किया गया और सुझाव दिया गया कि उन्हें शिक्षा में समान अवसर प्रदान करने के लिए स्कूलों और शिक्षण संस्थानों में विशेष प्रयास किए जाने चाहिए।

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कार्यशाला में राजधानी दिल्ली के सभी सरकारी डिस्ट्रिक्ट इंस्टीट्यूट ऑफ एजुकेशन एंड ट्रेनिंग के प्रतिनिधि शामिल रहे। इनके अलावा दिल्ली विश्वविद्यालय समेत शिक्षा जगत के विशेषज्ञों एवं शिक्षकों ने भी इसमें भाग लिया। सरकार के डिस्ट्रिक्ट इंस्टीट्यूट ऑफ एजुकेशन एंड ट्रेनिंग (डाइट) के परियोजना समन्वयक डॉ. पवन कुमार के मुताबिक थर्ड जेंडर के प्रति संवेदनशीलता विकसित करना, समाज को अधिक समावेशी बनाने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है।

दिल्ली विश्वविद्यालय के प्रो. हंसराज सुमन ने थर्ड जेंडर पर कहा कि हिंदी साहित्य में विभिन्न कहानियों और कविताओं के माध्यम से हमेशा से मानवीय संवेदनाओं को उकेरा गया है। उन्होंने सुझाव दिया कि शिक्षकों को कक्षाओं में ऐसे उदाहरण प्रस्तुत करने चाहिए, जो थर्ड जेंडर के योगदान को रेखांकित करते हों। थर्ड जेंडर को पाठ्यक्रम में शामिल करना चाहिए ताकि समाज उनके विषय में जाने। यह पहल न केवल विद्यार्थियों को जागरूक बनाएगी, बल्कि, समाज में सकारात्मक बदलाव लाने में भी सहायक होगी।

प्रो. सुमन ने कहा कि समाज में सामाजिक परिवर्तन के लिए पाकिस्तानी फिल्म ‘बोल’ ने थर्ड जेंडर के लिए एक सही दिशा देने का कार्य किया है। इस फिल्म में सामाजिक व पारिवारिक परिवेश में थर्ड जेंडर की स्थिति को भावनात्मक ढंग से दर्शाया गया है।

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इंद्रप्रस्थ कॉलेज के सहायक प्रोफेसर डॉ. जेपी. सिंह ने शिक्षा में थर्ड जेंडर की अनुपस्थिति को समाज में व्याप्त पूर्वाग्रहों का परिणाम बताया। उन्होंने कहा कि थर्ड जेंडर समुदाय की समस्याएं समाज के दकियानूसी विचारों और भेदभाव से जुड़ी हैं। शिक्षा के माध्यम से इन पूर्वाग्रहों को समाप्त किया जा सकता है।

कार्यशाला मुख्य रूप से थर्ड जेंडर के प्रति प्रशिक्षुओं को संवेदनशील बनाने में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाने के लिए थी। यहां थर्ड जेंडर बच्चों की शिक्षा को लेकर चुनौतियों का उल्लेख किया गया और सुझाव दिया गया कि उन्हें शिक्षा में समान अवसर प्रदान करने के लिए स्कूलों और शिक्षण संस्थानों में विशेष प्रयास किए जाने चाहिए।

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कार्यशाला में राजधानी दिल्ली के सभी सरकारी डिस्ट्रिक्ट इंस्टीट्यूट ऑफ एजुकेशन एंड ट्रेनिंग के प्रतिनिधि शामिल रहे। इनके अलावा दिल्ली विश्वविद्यालय समेत शिक्षा जगत के विशेषज्ञों एवं शिक्षकों ने भी इसमें भाग लिया। सरकार के डिस्ट्रिक्ट इंस्टीट्यूट ऑफ एजुकेशन एंड ट्रेनिंग (डाइट) के परियोजना समन्वयक डॉ. पवन कुमार के मुताबिक थर्ड जेंडर के प्रति संवेदनशीलता विकसित करना, समाज को अधिक समावेशी बनाने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है।

दिल्ली विश्वविद्यालय के प्रो. हंसराज सुमन ने थर्ड जेंडर पर कहा कि हिंदी साहित्य में विभिन्न कहानियों और कविताओं के माध्यम से हमेशा से मानवीय संवेदनाओं को उकेरा गया है। उन्होंने सुझाव दिया कि शिक्षकों को कक्षाओं में ऐसे उदाहरण प्रस्तुत करने चाहिए, जो थर्ड जेंडर के योगदान को रेखांकित करते हों। थर्ड जेंडर को पाठ्यक्रम में शामिल करना चाहिए ताकि समाज उनके विषय में जाने। यह पहल न केवल विद्यार्थियों को जागरूक बनाएगी, बल्कि, समाज में सकारात्मक बदलाव लाने में भी सहायक होगी।

प्रो. सुमन ने कहा कि समाज में सामाजिक परिवर्तन के लिए पाकिस्तानी फिल्म ‘बोल’ ने थर्ड जेंडर के लिए एक सही दिशा देने का कार्य किया है। इस फिल्म में सामाजिक व पारिवारिक परिवेश में थर्ड जेंडर की स्थिति को भावनात्मक ढंग से दर्शाया गया है।

इंद्रप्रस्थ कॉलेज के सहायक प्रोफेसर डॉ. जेपी. सिंह ने शिक्षा में थर्ड जेंडर की अनुपस्थिति को समाज में व्याप्त पूर्वाग्रहों का परिणाम बताया। उन्होंने कहा कि थर्ड जेंडर समुदाय की समस्याएं समाज के दकियानूसी विचारों और भेदभाव से जुड़ी हैं। शिक्षा के माध्यम से इन पूर्वाग्रहों को समाप्त किया जा सकता है।

कार्यशाला मुख्य रूप से थर्ड जेंडर के प्रति प्रशिक्षुओं को संवेदनशील बनाने में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाने के लिए थी। यहां थर्ड जेंडर बच्चों की शिक्षा को लेकर चुनौतियों का उल्लेख किया गया और सुझाव दिया गया कि उन्हें शिक्षा में समान अवसर प्रदान करने के लिए स्कूलों और शिक्षण संस्थानों में विशेष प्रयास किए जाने चाहिए।

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