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Home ताज़ा समाचार

हजारों गायों की एक मां! लाखों की कमाई छोड़ दी इनकी खातिर

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December 4, 2022
in ताज़ा समाचार
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हजारों गायों की एक मां! लाखों की कमाई छोड़ दी इनकी खातिर
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रांची, 4 दिसंबर (आईएएनएस)। सनातन संस्कृति में गायों को मां कहते हैं, लेकिन आप झारखंड में चाकुलिया नामक जगह पर चल रही गोशाला में पहुंच जाएं तो वहां हजारों गायों और गोवंशीय पशुओं की मां के रूप में जिस महिला से आपकी मुलाकात होगी, उनका नाम है डॉ शालिनी मिश्रा।

वह मुंबई में डॉक्टर थीं। एक बेहतरीन करियर-प्रोफेशन, हर महीने लाखों की कमाई, पत्नी-पुत्र-पुत्री, घर-परिवार, सुख-सुविधाएं। लेकिन यह सब कुछ एक झटके में छोड़कर उन्होंने अपना जीवन गौ-सेवा को समर्पित करने का फैसला कर लिया।

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जुलाई 2019 में वह झारखंड के पूर्वी सिंहभूम (जमशेदपुर) जिले के चाकुलिया में गौशाला चलाने पहुंची थीं। तकरीबन साढ़े तीन साल बाद आज का दिन, उनका परिवार अब इतना विशाल हो गया है जिसमें तकरीबन साढ़े चौदह हजार गोवंशीय पशु और उनकी देखरेख में लगे लगभग तीन सौ ग्रामीण भी शामिल हैं।

हर सुबह पौ फटने से लेकर देर शाम तक इस गौशाला में एक-एक पशु की सेवा में जुटी डॉ शालिनी मिश्रा जब कुछ क्षण को विश्राम करने बैठती हैं, तो उनके चेहरे पर संतुष्टि का एक अद्भुत भाव होता है। खुद के लिए न किसी रोज अवकाश और न कोई साप्ताहिक छुट्टी, डॉ शालिनी के इस समर्पण और त्याग में उनका परिवार भी साझीदार है।

उनके पति वेदप्रकाश साइंटिस्ट हैं। वह अपनी पगार में से साढ़े सात लाख रुपए हर महीने गौशाला के खर्च के लिए भेज देते हैं। बेटी ऋचा ऑस्ट्रेलिया में रहकर न्यूरो साइंस में रिसर्च कर रही है। उसे सरकार से दो लाख रुपए की स्कॉलरशिप मिलती है। इसमें से कुछ राशि बचाकर वह भी गौशाला को भेजती है। बेटा हर्ष मुंबई में एमबीबीएस सेकंड ईयर का स्टूडेंट है।

डॉ शालिनी मिश्र बताती हैं, वर्ष 2014 में मुंबई में इंडियन मेडिकल एसोसिएशन के एक कार्यक्रम में ध्यान फाउंडेशन के योगी अश्विनी जी शिरकत करने आए थे। उनके विचारों ने गहरे तौर पर प्रभावित किया। वह ध्यान फाउंडेशन से जुड़ गईं और फिर पहुंच गईं चाकुलिया, जहां द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान बने एरोड्रम वाले इलाके में कोलकाता की पिंजरापोल सोसाइटी की खाली पड़ी करीब 10 एकड़ जमीन पर फाउंडेशन की ओर से गौशाला की शुरूआत की जा रही थी।

दरअसल, भारत-बांग्लादेश की सीमा पर गोवंश तस्करों का एक बड़ा नेटवर्क सक्रिय है। बीएसएफ (बॉर्डर सिक्योरिटी फोर्स) इन तस्करों के कब्जे से हर महीने बड़ी तादाद में गोवंशीय पशुओं को मुक्त कराती है। बीएसएफ के सामने समस्या यह थी कि जब्त किए गए पशुओं की देखभाल कैसे हो? इसपर ध्यान फाउंडेशन संस्था के संस्थापक योगी अश्विनी ने पहल की।

उन्होंने बीएसएफ से संपर्क कर उन्हें भरोसा दिया कि उनकी संस्था पकड़े गए सभी गोवंश की समुचित देखभाल करेगी। फिलहाल ध्यान फाउंडेशन देशभर में कुल 40 गौशालाओं का संचालन करती हैं। इनमें 80 हजार से ज्यादा गोवंशीय पशुओं की देखभाल होती है। आज की तारीख में चाकुलिया की गौशाला पूर्वी भारत में गोवंशीय पशुओं का सबसे बड़ा आश्रय स्थल है।

बीएसएफ की टीम अक्सर इस गौशाला में आती है। तीन महीने पहले बीएसएफ के 112 बटालियन के कमांडेंट एनएम राय के नेतृत्व में एक टीम यहां तीन रोज तक रही और गौशाला की सुंदर व्यवस्था से प्रभावित होकर लौटी। इतना ही नहीं, इस टीम के सभी सदस्यों ने गौशाला के लिए व्यक्तिगत तौर पर अर्थ दान भी किया।

गोवंश सेवा कुंज नामक इस गौशाला में बीमार, लाचार, बूढ़े बैलों की भी बड़ी तादाद है। बड़ी संख्या में लावारिस और मरणासन्न गोवंशीय पशु भी यहां लाए जाते हैं। यहां इनके इलाज के लिए पशु चिकित्सकों की टीम भी है। डॉ शालिनी मिश्रा खुद भी इनके इलाज, मरहम-पट्टी में जुटी रहती हैं। तीन सौ से ज्यादा ग्रामीणों को इस गौशाला में रोजगार मिला हुआ है।

गौशाला का लगातार विस्तार हो रहा है। पूरी व्यवस्था के संचालन में कई दाताओं का सहयोग हासिल हो रहा है। इस वर्ष गोपाष्टमी के त्योहार के दिन यहां मवेशियों की गिनती हुई थी। इनकी कुल संख्या 14 हजार 200 पाई गई। गौशाला में चारा, खाद्य सामग्री, दवा आदि की आपूर्ति करने वालों को भी यहां से रोजगार मिला है।

गौशाला में सुरक्षित रखे गए बैलों को कृषि कार्य के लिए स्थानीय किसानों को निशुल्क दिया जा रहा है। भारत की राष्ट्रपति बनने के कुछ महीने पहले द्रौपदी मुर्मू ने भी इस गौशाला का भ्रमण किया था और यहां की व्यवस्था से बेहद प्रभावित हुई थीं।

–आईएएनएस

एसएनसी/एसकेपी

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रांची, 4 दिसंबर (आईएएनएस)। सनातन संस्कृति में गायों को मां कहते हैं, लेकिन आप झारखंड में चाकुलिया नामक जगह पर चल रही गोशाला में पहुंच जाएं तो वहां हजारों गायों और गोवंशीय पशुओं की मां के रूप में जिस महिला से आपकी मुलाकात होगी, उनका नाम है डॉ शालिनी मिश्रा।

वह मुंबई में डॉक्टर थीं। एक बेहतरीन करियर-प्रोफेशन, हर महीने लाखों की कमाई, पत्नी-पुत्र-पुत्री, घर-परिवार, सुख-सुविधाएं। लेकिन यह सब कुछ एक झटके में छोड़कर उन्होंने अपना जीवन गौ-सेवा को समर्पित करने का फैसला कर लिया।

जुलाई 2019 में वह झारखंड के पूर्वी सिंहभूम (जमशेदपुर) जिले के चाकुलिया में गौशाला चलाने पहुंची थीं। तकरीबन साढ़े तीन साल बाद आज का दिन, उनका परिवार अब इतना विशाल हो गया है जिसमें तकरीबन साढ़े चौदह हजार गोवंशीय पशु और उनकी देखरेख में लगे लगभग तीन सौ ग्रामीण भी शामिल हैं।

हर सुबह पौ फटने से लेकर देर शाम तक इस गौशाला में एक-एक पशु की सेवा में जुटी डॉ शालिनी मिश्रा जब कुछ क्षण को विश्राम करने बैठती हैं, तो उनके चेहरे पर संतुष्टि का एक अद्भुत भाव होता है। खुद के लिए न किसी रोज अवकाश और न कोई साप्ताहिक छुट्टी, डॉ शालिनी के इस समर्पण और त्याग में उनका परिवार भी साझीदार है।

उनके पति वेदप्रकाश साइंटिस्ट हैं। वह अपनी पगार में से साढ़े सात लाख रुपए हर महीने गौशाला के खर्च के लिए भेज देते हैं। बेटी ऋचा ऑस्ट्रेलिया में रहकर न्यूरो साइंस में रिसर्च कर रही है। उसे सरकार से दो लाख रुपए की स्कॉलरशिप मिलती है। इसमें से कुछ राशि बचाकर वह भी गौशाला को भेजती है। बेटा हर्ष मुंबई में एमबीबीएस सेकंड ईयर का स्टूडेंट है।

डॉ शालिनी मिश्र बताती हैं, वर्ष 2014 में मुंबई में इंडियन मेडिकल एसोसिएशन के एक कार्यक्रम में ध्यान फाउंडेशन के योगी अश्विनी जी शिरकत करने आए थे। उनके विचारों ने गहरे तौर पर प्रभावित किया। वह ध्यान फाउंडेशन से जुड़ गईं और फिर पहुंच गईं चाकुलिया, जहां द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान बने एरोड्रम वाले इलाके में कोलकाता की पिंजरापोल सोसाइटी की खाली पड़ी करीब 10 एकड़ जमीन पर फाउंडेशन की ओर से गौशाला की शुरूआत की जा रही थी।

दरअसल, भारत-बांग्लादेश की सीमा पर गोवंश तस्करों का एक बड़ा नेटवर्क सक्रिय है। बीएसएफ (बॉर्डर सिक्योरिटी फोर्स) इन तस्करों के कब्जे से हर महीने बड़ी तादाद में गोवंशीय पशुओं को मुक्त कराती है। बीएसएफ के सामने समस्या यह थी कि जब्त किए गए पशुओं की देखभाल कैसे हो? इसपर ध्यान फाउंडेशन संस्था के संस्थापक योगी अश्विनी ने पहल की।

उन्होंने बीएसएफ से संपर्क कर उन्हें भरोसा दिया कि उनकी संस्था पकड़े गए सभी गोवंश की समुचित देखभाल करेगी। फिलहाल ध्यान फाउंडेशन देशभर में कुल 40 गौशालाओं का संचालन करती हैं। इनमें 80 हजार से ज्यादा गोवंशीय पशुओं की देखभाल होती है। आज की तारीख में चाकुलिया की गौशाला पूर्वी भारत में गोवंशीय पशुओं का सबसे बड़ा आश्रय स्थल है।

बीएसएफ की टीम अक्सर इस गौशाला में आती है। तीन महीने पहले बीएसएफ के 112 बटालियन के कमांडेंट एनएम राय के नेतृत्व में एक टीम यहां तीन रोज तक रही और गौशाला की सुंदर व्यवस्था से प्रभावित होकर लौटी। इतना ही नहीं, इस टीम के सभी सदस्यों ने गौशाला के लिए व्यक्तिगत तौर पर अर्थ दान भी किया।

गोवंश सेवा कुंज नामक इस गौशाला में बीमार, लाचार, बूढ़े बैलों की भी बड़ी तादाद है। बड़ी संख्या में लावारिस और मरणासन्न गोवंशीय पशु भी यहां लाए जाते हैं। यहां इनके इलाज के लिए पशु चिकित्सकों की टीम भी है। डॉ शालिनी मिश्रा खुद भी इनके इलाज, मरहम-पट्टी में जुटी रहती हैं। तीन सौ से ज्यादा ग्रामीणों को इस गौशाला में रोजगार मिला हुआ है।

गौशाला का लगातार विस्तार हो रहा है। पूरी व्यवस्था के संचालन में कई दाताओं का सहयोग हासिल हो रहा है। इस वर्ष गोपाष्टमी के त्योहार के दिन यहां मवेशियों की गिनती हुई थी। इनकी कुल संख्या 14 हजार 200 पाई गई। गौशाला में चारा, खाद्य सामग्री, दवा आदि की आपूर्ति करने वालों को भी यहां से रोजगार मिला है।

गौशाला में सुरक्षित रखे गए बैलों को कृषि कार्य के लिए स्थानीय किसानों को निशुल्क दिया जा रहा है। भारत की राष्ट्रपति बनने के कुछ महीने पहले द्रौपदी मुर्मू ने भी इस गौशाला का भ्रमण किया था और यहां की व्यवस्था से बेहद प्रभावित हुई थीं।

–आईएएनएस

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रांची, 4 दिसंबर (आईएएनएस)। सनातन संस्कृति में गायों को मां कहते हैं, लेकिन आप झारखंड में चाकुलिया नामक जगह पर चल रही गोशाला में पहुंच जाएं तो वहां हजारों गायों और गोवंशीय पशुओं की मां के रूप में जिस महिला से आपकी मुलाकात होगी, उनका नाम है डॉ शालिनी मिश्रा।

वह मुंबई में डॉक्टर थीं। एक बेहतरीन करियर-प्रोफेशन, हर महीने लाखों की कमाई, पत्नी-पुत्र-पुत्री, घर-परिवार, सुख-सुविधाएं। लेकिन यह सब कुछ एक झटके में छोड़कर उन्होंने अपना जीवन गौ-सेवा को समर्पित करने का फैसला कर लिया।

जुलाई 2019 में वह झारखंड के पूर्वी सिंहभूम (जमशेदपुर) जिले के चाकुलिया में गौशाला चलाने पहुंची थीं। तकरीबन साढ़े तीन साल बाद आज का दिन, उनका परिवार अब इतना विशाल हो गया है जिसमें तकरीबन साढ़े चौदह हजार गोवंशीय पशु और उनकी देखरेख में लगे लगभग तीन सौ ग्रामीण भी शामिल हैं।

हर सुबह पौ फटने से लेकर देर शाम तक इस गौशाला में एक-एक पशु की सेवा में जुटी डॉ शालिनी मिश्रा जब कुछ क्षण को विश्राम करने बैठती हैं, तो उनके चेहरे पर संतुष्टि का एक अद्भुत भाव होता है। खुद के लिए न किसी रोज अवकाश और न कोई साप्ताहिक छुट्टी, डॉ शालिनी के इस समर्पण और त्याग में उनका परिवार भी साझीदार है।

उनके पति वेदप्रकाश साइंटिस्ट हैं। वह अपनी पगार में से साढ़े सात लाख रुपए हर महीने गौशाला के खर्च के लिए भेज देते हैं। बेटी ऋचा ऑस्ट्रेलिया में रहकर न्यूरो साइंस में रिसर्च कर रही है। उसे सरकार से दो लाख रुपए की स्कॉलरशिप मिलती है। इसमें से कुछ राशि बचाकर वह भी गौशाला को भेजती है। बेटा हर्ष मुंबई में एमबीबीएस सेकंड ईयर का स्टूडेंट है।

डॉ शालिनी मिश्र बताती हैं, वर्ष 2014 में मुंबई में इंडियन मेडिकल एसोसिएशन के एक कार्यक्रम में ध्यान फाउंडेशन के योगी अश्विनी जी शिरकत करने आए थे। उनके विचारों ने गहरे तौर पर प्रभावित किया। वह ध्यान फाउंडेशन से जुड़ गईं और फिर पहुंच गईं चाकुलिया, जहां द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान बने एरोड्रम वाले इलाके में कोलकाता की पिंजरापोल सोसाइटी की खाली पड़ी करीब 10 एकड़ जमीन पर फाउंडेशन की ओर से गौशाला की शुरूआत की जा रही थी।

दरअसल, भारत-बांग्लादेश की सीमा पर गोवंश तस्करों का एक बड़ा नेटवर्क सक्रिय है। बीएसएफ (बॉर्डर सिक्योरिटी फोर्स) इन तस्करों के कब्जे से हर महीने बड़ी तादाद में गोवंशीय पशुओं को मुक्त कराती है। बीएसएफ के सामने समस्या यह थी कि जब्त किए गए पशुओं की देखभाल कैसे हो? इसपर ध्यान फाउंडेशन संस्था के संस्थापक योगी अश्विनी ने पहल की।

उन्होंने बीएसएफ से संपर्क कर उन्हें भरोसा दिया कि उनकी संस्था पकड़े गए सभी गोवंश की समुचित देखभाल करेगी। फिलहाल ध्यान फाउंडेशन देशभर में कुल 40 गौशालाओं का संचालन करती हैं। इनमें 80 हजार से ज्यादा गोवंशीय पशुओं की देखभाल होती है। आज की तारीख में चाकुलिया की गौशाला पूर्वी भारत में गोवंशीय पशुओं का सबसे बड़ा आश्रय स्थल है।

बीएसएफ की टीम अक्सर इस गौशाला में आती है। तीन महीने पहले बीएसएफ के 112 बटालियन के कमांडेंट एनएम राय के नेतृत्व में एक टीम यहां तीन रोज तक रही और गौशाला की सुंदर व्यवस्था से प्रभावित होकर लौटी। इतना ही नहीं, इस टीम के सभी सदस्यों ने गौशाला के लिए व्यक्तिगत तौर पर अर्थ दान भी किया।

गोवंश सेवा कुंज नामक इस गौशाला में बीमार, लाचार, बूढ़े बैलों की भी बड़ी तादाद है। बड़ी संख्या में लावारिस और मरणासन्न गोवंशीय पशु भी यहां लाए जाते हैं। यहां इनके इलाज के लिए पशु चिकित्सकों की टीम भी है। डॉ शालिनी मिश्रा खुद भी इनके इलाज, मरहम-पट्टी में जुटी रहती हैं। तीन सौ से ज्यादा ग्रामीणों को इस गौशाला में रोजगार मिला हुआ है।

गौशाला का लगातार विस्तार हो रहा है। पूरी व्यवस्था के संचालन में कई दाताओं का सहयोग हासिल हो रहा है। इस वर्ष गोपाष्टमी के त्योहार के दिन यहां मवेशियों की गिनती हुई थी। इनकी कुल संख्या 14 हजार 200 पाई गई। गौशाला में चारा, खाद्य सामग्री, दवा आदि की आपूर्ति करने वालों को भी यहां से रोजगार मिला है।

गौशाला में सुरक्षित रखे गए बैलों को कृषि कार्य के लिए स्थानीय किसानों को निशुल्क दिया जा रहा है। भारत की राष्ट्रपति बनने के कुछ महीने पहले द्रौपदी मुर्मू ने भी इस गौशाला का भ्रमण किया था और यहां की व्यवस्था से बेहद प्रभावित हुई थीं।

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रांची, 4 दिसंबर (आईएएनएस)। सनातन संस्कृति में गायों को मां कहते हैं, लेकिन आप झारखंड में चाकुलिया नामक जगह पर चल रही गोशाला में पहुंच जाएं तो वहां हजारों गायों और गोवंशीय पशुओं की मां के रूप में जिस महिला से आपकी मुलाकात होगी, उनका नाम है डॉ शालिनी मिश्रा।

वह मुंबई में डॉक्टर थीं। एक बेहतरीन करियर-प्रोफेशन, हर महीने लाखों की कमाई, पत्नी-पुत्र-पुत्री, घर-परिवार, सुख-सुविधाएं। लेकिन यह सब कुछ एक झटके में छोड़कर उन्होंने अपना जीवन गौ-सेवा को समर्पित करने का फैसला कर लिया।

जुलाई 2019 में वह झारखंड के पूर्वी सिंहभूम (जमशेदपुर) जिले के चाकुलिया में गौशाला चलाने पहुंची थीं। तकरीबन साढ़े तीन साल बाद आज का दिन, उनका परिवार अब इतना विशाल हो गया है जिसमें तकरीबन साढ़े चौदह हजार गोवंशीय पशु और उनकी देखरेख में लगे लगभग तीन सौ ग्रामीण भी शामिल हैं।

हर सुबह पौ फटने से लेकर देर शाम तक इस गौशाला में एक-एक पशु की सेवा में जुटी डॉ शालिनी मिश्रा जब कुछ क्षण को विश्राम करने बैठती हैं, तो उनके चेहरे पर संतुष्टि का एक अद्भुत भाव होता है। खुद के लिए न किसी रोज अवकाश और न कोई साप्ताहिक छुट्टी, डॉ शालिनी के इस समर्पण और त्याग में उनका परिवार भी साझीदार है।

उनके पति वेदप्रकाश साइंटिस्ट हैं। वह अपनी पगार में से साढ़े सात लाख रुपए हर महीने गौशाला के खर्च के लिए भेज देते हैं। बेटी ऋचा ऑस्ट्रेलिया में रहकर न्यूरो साइंस में रिसर्च कर रही है। उसे सरकार से दो लाख रुपए की स्कॉलरशिप मिलती है। इसमें से कुछ राशि बचाकर वह भी गौशाला को भेजती है। बेटा हर्ष मुंबई में एमबीबीएस सेकंड ईयर का स्टूडेंट है।

डॉ शालिनी मिश्र बताती हैं, वर्ष 2014 में मुंबई में इंडियन मेडिकल एसोसिएशन के एक कार्यक्रम में ध्यान फाउंडेशन के योगी अश्विनी जी शिरकत करने आए थे। उनके विचारों ने गहरे तौर पर प्रभावित किया। वह ध्यान फाउंडेशन से जुड़ गईं और फिर पहुंच गईं चाकुलिया, जहां द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान बने एरोड्रम वाले इलाके में कोलकाता की पिंजरापोल सोसाइटी की खाली पड़ी करीब 10 एकड़ जमीन पर फाउंडेशन की ओर से गौशाला की शुरूआत की जा रही थी।

दरअसल, भारत-बांग्लादेश की सीमा पर गोवंश तस्करों का एक बड़ा नेटवर्क सक्रिय है। बीएसएफ (बॉर्डर सिक्योरिटी फोर्स) इन तस्करों के कब्जे से हर महीने बड़ी तादाद में गोवंशीय पशुओं को मुक्त कराती है। बीएसएफ के सामने समस्या यह थी कि जब्त किए गए पशुओं की देखभाल कैसे हो? इसपर ध्यान फाउंडेशन संस्था के संस्थापक योगी अश्विनी ने पहल की।

उन्होंने बीएसएफ से संपर्क कर उन्हें भरोसा दिया कि उनकी संस्था पकड़े गए सभी गोवंश की समुचित देखभाल करेगी। फिलहाल ध्यान फाउंडेशन देशभर में कुल 40 गौशालाओं का संचालन करती हैं। इनमें 80 हजार से ज्यादा गोवंशीय पशुओं की देखभाल होती है। आज की तारीख में चाकुलिया की गौशाला पूर्वी भारत में गोवंशीय पशुओं का सबसे बड़ा आश्रय स्थल है।

बीएसएफ की टीम अक्सर इस गौशाला में आती है। तीन महीने पहले बीएसएफ के 112 बटालियन के कमांडेंट एनएम राय के नेतृत्व में एक टीम यहां तीन रोज तक रही और गौशाला की सुंदर व्यवस्था से प्रभावित होकर लौटी। इतना ही नहीं, इस टीम के सभी सदस्यों ने गौशाला के लिए व्यक्तिगत तौर पर अर्थ दान भी किया।

गोवंश सेवा कुंज नामक इस गौशाला में बीमार, लाचार, बूढ़े बैलों की भी बड़ी तादाद है। बड़ी संख्या में लावारिस और मरणासन्न गोवंशीय पशु भी यहां लाए जाते हैं। यहां इनके इलाज के लिए पशु चिकित्सकों की टीम भी है। डॉ शालिनी मिश्रा खुद भी इनके इलाज, मरहम-पट्टी में जुटी रहती हैं। तीन सौ से ज्यादा ग्रामीणों को इस गौशाला में रोजगार मिला हुआ है।

गौशाला का लगातार विस्तार हो रहा है। पूरी व्यवस्था के संचालन में कई दाताओं का सहयोग हासिल हो रहा है। इस वर्ष गोपाष्टमी के त्योहार के दिन यहां मवेशियों की गिनती हुई थी। इनकी कुल संख्या 14 हजार 200 पाई गई। गौशाला में चारा, खाद्य सामग्री, दवा आदि की आपूर्ति करने वालों को भी यहां से रोजगार मिला है।

गौशाला में सुरक्षित रखे गए बैलों को कृषि कार्य के लिए स्थानीय किसानों को निशुल्क दिया जा रहा है। भारत की राष्ट्रपति बनने के कुछ महीने पहले द्रौपदी मुर्मू ने भी इस गौशाला का भ्रमण किया था और यहां की व्यवस्था से बेहद प्रभावित हुई थीं।

–आईएएनएस

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रांची, 4 दिसंबर (आईएएनएस)। सनातन संस्कृति में गायों को मां कहते हैं, लेकिन आप झारखंड में चाकुलिया नामक जगह पर चल रही गोशाला में पहुंच जाएं तो वहां हजारों गायों और गोवंशीय पशुओं की मां के रूप में जिस महिला से आपकी मुलाकात होगी, उनका नाम है डॉ शालिनी मिश्रा।

वह मुंबई में डॉक्टर थीं। एक बेहतरीन करियर-प्रोफेशन, हर महीने लाखों की कमाई, पत्नी-पुत्र-पुत्री, घर-परिवार, सुख-सुविधाएं। लेकिन यह सब कुछ एक झटके में छोड़कर उन्होंने अपना जीवन गौ-सेवा को समर्पित करने का फैसला कर लिया।

जुलाई 2019 में वह झारखंड के पूर्वी सिंहभूम (जमशेदपुर) जिले के चाकुलिया में गौशाला चलाने पहुंची थीं। तकरीबन साढ़े तीन साल बाद आज का दिन, उनका परिवार अब इतना विशाल हो गया है जिसमें तकरीबन साढ़े चौदह हजार गोवंशीय पशु और उनकी देखरेख में लगे लगभग तीन सौ ग्रामीण भी शामिल हैं।

हर सुबह पौ फटने से लेकर देर शाम तक इस गौशाला में एक-एक पशु की सेवा में जुटी डॉ शालिनी मिश्रा जब कुछ क्षण को विश्राम करने बैठती हैं, तो उनके चेहरे पर संतुष्टि का एक अद्भुत भाव होता है। खुद के लिए न किसी रोज अवकाश और न कोई साप्ताहिक छुट्टी, डॉ शालिनी के इस समर्पण और त्याग में उनका परिवार भी साझीदार है।

उनके पति वेदप्रकाश साइंटिस्ट हैं। वह अपनी पगार में से साढ़े सात लाख रुपए हर महीने गौशाला के खर्च के लिए भेज देते हैं। बेटी ऋचा ऑस्ट्रेलिया में रहकर न्यूरो साइंस में रिसर्च कर रही है। उसे सरकार से दो लाख रुपए की स्कॉलरशिप मिलती है। इसमें से कुछ राशि बचाकर वह भी गौशाला को भेजती है। बेटा हर्ष मुंबई में एमबीबीएस सेकंड ईयर का स्टूडेंट है।

डॉ शालिनी मिश्र बताती हैं, वर्ष 2014 में मुंबई में इंडियन मेडिकल एसोसिएशन के एक कार्यक्रम में ध्यान फाउंडेशन के योगी अश्विनी जी शिरकत करने आए थे। उनके विचारों ने गहरे तौर पर प्रभावित किया। वह ध्यान फाउंडेशन से जुड़ गईं और फिर पहुंच गईं चाकुलिया, जहां द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान बने एरोड्रम वाले इलाके में कोलकाता की पिंजरापोल सोसाइटी की खाली पड़ी करीब 10 एकड़ जमीन पर फाउंडेशन की ओर से गौशाला की शुरूआत की जा रही थी।

दरअसल, भारत-बांग्लादेश की सीमा पर गोवंश तस्करों का एक बड़ा नेटवर्क सक्रिय है। बीएसएफ (बॉर्डर सिक्योरिटी फोर्स) इन तस्करों के कब्जे से हर महीने बड़ी तादाद में गोवंशीय पशुओं को मुक्त कराती है। बीएसएफ के सामने समस्या यह थी कि जब्त किए गए पशुओं की देखभाल कैसे हो? इसपर ध्यान फाउंडेशन संस्था के संस्थापक योगी अश्विनी ने पहल की।

उन्होंने बीएसएफ से संपर्क कर उन्हें भरोसा दिया कि उनकी संस्था पकड़े गए सभी गोवंश की समुचित देखभाल करेगी। फिलहाल ध्यान फाउंडेशन देशभर में कुल 40 गौशालाओं का संचालन करती हैं। इनमें 80 हजार से ज्यादा गोवंशीय पशुओं की देखभाल होती है। आज की तारीख में चाकुलिया की गौशाला पूर्वी भारत में गोवंशीय पशुओं का सबसे बड़ा आश्रय स्थल है।

बीएसएफ की टीम अक्सर इस गौशाला में आती है। तीन महीने पहले बीएसएफ के 112 बटालियन के कमांडेंट एनएम राय के नेतृत्व में एक टीम यहां तीन रोज तक रही और गौशाला की सुंदर व्यवस्था से प्रभावित होकर लौटी। इतना ही नहीं, इस टीम के सभी सदस्यों ने गौशाला के लिए व्यक्तिगत तौर पर अर्थ दान भी किया।

गोवंश सेवा कुंज नामक इस गौशाला में बीमार, लाचार, बूढ़े बैलों की भी बड़ी तादाद है। बड़ी संख्या में लावारिस और मरणासन्न गोवंशीय पशु भी यहां लाए जाते हैं। यहां इनके इलाज के लिए पशु चिकित्सकों की टीम भी है। डॉ शालिनी मिश्रा खुद भी इनके इलाज, मरहम-पट्टी में जुटी रहती हैं। तीन सौ से ज्यादा ग्रामीणों को इस गौशाला में रोजगार मिला हुआ है।

गौशाला का लगातार विस्तार हो रहा है। पूरी व्यवस्था के संचालन में कई दाताओं का सहयोग हासिल हो रहा है। इस वर्ष गोपाष्टमी के त्योहार के दिन यहां मवेशियों की गिनती हुई थी। इनकी कुल संख्या 14 हजार 200 पाई गई। गौशाला में चारा, खाद्य सामग्री, दवा आदि की आपूर्ति करने वालों को भी यहां से रोजगार मिला है।

गौशाला में सुरक्षित रखे गए बैलों को कृषि कार्य के लिए स्थानीय किसानों को निशुल्क दिया जा रहा है। भारत की राष्ट्रपति बनने के कुछ महीने पहले द्रौपदी मुर्मू ने भी इस गौशाला का भ्रमण किया था और यहां की व्यवस्था से बेहद प्रभावित हुई थीं।

–आईएएनएस

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रांची, 4 दिसंबर (आईएएनएस)। सनातन संस्कृति में गायों को मां कहते हैं, लेकिन आप झारखंड में चाकुलिया नामक जगह पर चल रही गोशाला में पहुंच जाएं तो वहां हजारों गायों और गोवंशीय पशुओं की मां के रूप में जिस महिला से आपकी मुलाकात होगी, उनका नाम है डॉ शालिनी मिश्रा।

वह मुंबई में डॉक्टर थीं। एक बेहतरीन करियर-प्रोफेशन, हर महीने लाखों की कमाई, पत्नी-पुत्र-पुत्री, घर-परिवार, सुख-सुविधाएं। लेकिन यह सब कुछ एक झटके में छोड़कर उन्होंने अपना जीवन गौ-सेवा को समर्पित करने का फैसला कर लिया।

जुलाई 2019 में वह झारखंड के पूर्वी सिंहभूम (जमशेदपुर) जिले के चाकुलिया में गौशाला चलाने पहुंची थीं। तकरीबन साढ़े तीन साल बाद आज का दिन, उनका परिवार अब इतना विशाल हो गया है जिसमें तकरीबन साढ़े चौदह हजार गोवंशीय पशु और उनकी देखरेख में लगे लगभग तीन सौ ग्रामीण भी शामिल हैं।

हर सुबह पौ फटने से लेकर देर शाम तक इस गौशाला में एक-एक पशु की सेवा में जुटी डॉ शालिनी मिश्रा जब कुछ क्षण को विश्राम करने बैठती हैं, तो उनके चेहरे पर संतुष्टि का एक अद्भुत भाव होता है। खुद के लिए न किसी रोज अवकाश और न कोई साप्ताहिक छुट्टी, डॉ शालिनी के इस समर्पण और त्याग में उनका परिवार भी साझीदार है।

उनके पति वेदप्रकाश साइंटिस्ट हैं। वह अपनी पगार में से साढ़े सात लाख रुपए हर महीने गौशाला के खर्च के लिए भेज देते हैं। बेटी ऋचा ऑस्ट्रेलिया में रहकर न्यूरो साइंस में रिसर्च कर रही है। उसे सरकार से दो लाख रुपए की स्कॉलरशिप मिलती है। इसमें से कुछ राशि बचाकर वह भी गौशाला को भेजती है। बेटा हर्ष मुंबई में एमबीबीएस सेकंड ईयर का स्टूडेंट है।

डॉ शालिनी मिश्र बताती हैं, वर्ष 2014 में मुंबई में इंडियन मेडिकल एसोसिएशन के एक कार्यक्रम में ध्यान फाउंडेशन के योगी अश्विनी जी शिरकत करने आए थे। उनके विचारों ने गहरे तौर पर प्रभावित किया। वह ध्यान फाउंडेशन से जुड़ गईं और फिर पहुंच गईं चाकुलिया, जहां द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान बने एरोड्रम वाले इलाके में कोलकाता की पिंजरापोल सोसाइटी की खाली पड़ी करीब 10 एकड़ जमीन पर फाउंडेशन की ओर से गौशाला की शुरूआत की जा रही थी।

दरअसल, भारत-बांग्लादेश की सीमा पर गोवंश तस्करों का एक बड़ा नेटवर्क सक्रिय है। बीएसएफ (बॉर्डर सिक्योरिटी फोर्स) इन तस्करों के कब्जे से हर महीने बड़ी तादाद में गोवंशीय पशुओं को मुक्त कराती है। बीएसएफ के सामने समस्या यह थी कि जब्त किए गए पशुओं की देखभाल कैसे हो? इसपर ध्यान फाउंडेशन संस्था के संस्थापक योगी अश्विनी ने पहल की।

उन्होंने बीएसएफ से संपर्क कर उन्हें भरोसा दिया कि उनकी संस्था पकड़े गए सभी गोवंश की समुचित देखभाल करेगी। फिलहाल ध्यान फाउंडेशन देशभर में कुल 40 गौशालाओं का संचालन करती हैं। इनमें 80 हजार से ज्यादा गोवंशीय पशुओं की देखभाल होती है। आज की तारीख में चाकुलिया की गौशाला पूर्वी भारत में गोवंशीय पशुओं का सबसे बड़ा आश्रय स्थल है।

बीएसएफ की टीम अक्सर इस गौशाला में आती है। तीन महीने पहले बीएसएफ के 112 बटालियन के कमांडेंट एनएम राय के नेतृत्व में एक टीम यहां तीन रोज तक रही और गौशाला की सुंदर व्यवस्था से प्रभावित होकर लौटी। इतना ही नहीं, इस टीम के सभी सदस्यों ने गौशाला के लिए व्यक्तिगत तौर पर अर्थ दान भी किया।

गोवंश सेवा कुंज नामक इस गौशाला में बीमार, लाचार, बूढ़े बैलों की भी बड़ी तादाद है। बड़ी संख्या में लावारिस और मरणासन्न गोवंशीय पशु भी यहां लाए जाते हैं। यहां इनके इलाज के लिए पशु चिकित्सकों की टीम भी है। डॉ शालिनी मिश्रा खुद भी इनके इलाज, मरहम-पट्टी में जुटी रहती हैं। तीन सौ से ज्यादा ग्रामीणों को इस गौशाला में रोजगार मिला हुआ है।

गौशाला का लगातार विस्तार हो रहा है। पूरी व्यवस्था के संचालन में कई दाताओं का सहयोग हासिल हो रहा है। इस वर्ष गोपाष्टमी के त्योहार के दिन यहां मवेशियों की गिनती हुई थी। इनकी कुल संख्या 14 हजार 200 पाई गई। गौशाला में चारा, खाद्य सामग्री, दवा आदि की आपूर्ति करने वालों को भी यहां से रोजगार मिला है।

गौशाला में सुरक्षित रखे गए बैलों को कृषि कार्य के लिए स्थानीय किसानों को निशुल्क दिया जा रहा है। भारत की राष्ट्रपति बनने के कुछ महीने पहले द्रौपदी मुर्मू ने भी इस गौशाला का भ्रमण किया था और यहां की व्यवस्था से बेहद प्रभावित हुई थीं।

–आईएएनएस

एसएनसी/एसकेपी

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रांची, 4 दिसंबर (आईएएनएस)। सनातन संस्कृति में गायों को मां कहते हैं, लेकिन आप झारखंड में चाकुलिया नामक जगह पर चल रही गोशाला में पहुंच जाएं तो वहां हजारों गायों और गोवंशीय पशुओं की मां के रूप में जिस महिला से आपकी मुलाकात होगी, उनका नाम है डॉ शालिनी मिश्रा।

वह मुंबई में डॉक्टर थीं। एक बेहतरीन करियर-प्रोफेशन, हर महीने लाखों की कमाई, पत्नी-पुत्र-पुत्री, घर-परिवार, सुख-सुविधाएं। लेकिन यह सब कुछ एक झटके में छोड़कर उन्होंने अपना जीवन गौ-सेवा को समर्पित करने का फैसला कर लिया।

जुलाई 2019 में वह झारखंड के पूर्वी सिंहभूम (जमशेदपुर) जिले के चाकुलिया में गौशाला चलाने पहुंची थीं। तकरीबन साढ़े तीन साल बाद आज का दिन, उनका परिवार अब इतना विशाल हो गया है जिसमें तकरीबन साढ़े चौदह हजार गोवंशीय पशु और उनकी देखरेख में लगे लगभग तीन सौ ग्रामीण भी शामिल हैं।

हर सुबह पौ फटने से लेकर देर शाम तक इस गौशाला में एक-एक पशु की सेवा में जुटी डॉ शालिनी मिश्रा जब कुछ क्षण को विश्राम करने बैठती हैं, तो उनके चेहरे पर संतुष्टि का एक अद्भुत भाव होता है। खुद के लिए न किसी रोज अवकाश और न कोई साप्ताहिक छुट्टी, डॉ शालिनी के इस समर्पण और त्याग में उनका परिवार भी साझीदार है।

उनके पति वेदप्रकाश साइंटिस्ट हैं। वह अपनी पगार में से साढ़े सात लाख रुपए हर महीने गौशाला के खर्च के लिए भेज देते हैं। बेटी ऋचा ऑस्ट्रेलिया में रहकर न्यूरो साइंस में रिसर्च कर रही है। उसे सरकार से दो लाख रुपए की स्कॉलरशिप मिलती है। इसमें से कुछ राशि बचाकर वह भी गौशाला को भेजती है। बेटा हर्ष मुंबई में एमबीबीएस सेकंड ईयर का स्टूडेंट है।

डॉ शालिनी मिश्र बताती हैं, वर्ष 2014 में मुंबई में इंडियन मेडिकल एसोसिएशन के एक कार्यक्रम में ध्यान फाउंडेशन के योगी अश्विनी जी शिरकत करने आए थे। उनके विचारों ने गहरे तौर पर प्रभावित किया। वह ध्यान फाउंडेशन से जुड़ गईं और फिर पहुंच गईं चाकुलिया, जहां द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान बने एरोड्रम वाले इलाके में कोलकाता की पिंजरापोल सोसाइटी की खाली पड़ी करीब 10 एकड़ जमीन पर फाउंडेशन की ओर से गौशाला की शुरूआत की जा रही थी।

दरअसल, भारत-बांग्लादेश की सीमा पर गोवंश तस्करों का एक बड़ा नेटवर्क सक्रिय है। बीएसएफ (बॉर्डर सिक्योरिटी फोर्स) इन तस्करों के कब्जे से हर महीने बड़ी तादाद में गोवंशीय पशुओं को मुक्त कराती है। बीएसएफ के सामने समस्या यह थी कि जब्त किए गए पशुओं की देखभाल कैसे हो? इसपर ध्यान फाउंडेशन संस्था के संस्थापक योगी अश्विनी ने पहल की।

उन्होंने बीएसएफ से संपर्क कर उन्हें भरोसा दिया कि उनकी संस्था पकड़े गए सभी गोवंश की समुचित देखभाल करेगी। फिलहाल ध्यान फाउंडेशन देशभर में कुल 40 गौशालाओं का संचालन करती हैं। इनमें 80 हजार से ज्यादा गोवंशीय पशुओं की देखभाल होती है। आज की तारीख में चाकुलिया की गौशाला पूर्वी भारत में गोवंशीय पशुओं का सबसे बड़ा आश्रय स्थल है।

बीएसएफ की टीम अक्सर इस गौशाला में आती है। तीन महीने पहले बीएसएफ के 112 बटालियन के कमांडेंट एनएम राय के नेतृत्व में एक टीम यहां तीन रोज तक रही और गौशाला की सुंदर व्यवस्था से प्रभावित होकर लौटी। इतना ही नहीं, इस टीम के सभी सदस्यों ने गौशाला के लिए व्यक्तिगत तौर पर अर्थ दान भी किया।

गोवंश सेवा कुंज नामक इस गौशाला में बीमार, लाचार, बूढ़े बैलों की भी बड़ी तादाद है। बड़ी संख्या में लावारिस और मरणासन्न गोवंशीय पशु भी यहां लाए जाते हैं। यहां इनके इलाज के लिए पशु चिकित्सकों की टीम भी है। डॉ शालिनी मिश्रा खुद भी इनके इलाज, मरहम-पट्टी में जुटी रहती हैं। तीन सौ से ज्यादा ग्रामीणों को इस गौशाला में रोजगार मिला हुआ है।

गौशाला का लगातार विस्तार हो रहा है। पूरी व्यवस्था के संचालन में कई दाताओं का सहयोग हासिल हो रहा है। इस वर्ष गोपाष्टमी के त्योहार के दिन यहां मवेशियों की गिनती हुई थी। इनकी कुल संख्या 14 हजार 200 पाई गई। गौशाला में चारा, खाद्य सामग्री, दवा आदि की आपूर्ति करने वालों को भी यहां से रोजगार मिला है।

गौशाला में सुरक्षित रखे गए बैलों को कृषि कार्य के लिए स्थानीय किसानों को निशुल्क दिया जा रहा है। भारत की राष्ट्रपति बनने के कुछ महीने पहले द्रौपदी मुर्मू ने भी इस गौशाला का भ्रमण किया था और यहां की व्यवस्था से बेहद प्रभावित हुई थीं।

–आईएएनएस

एसएनसी/एसकेपी

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रांची, 4 दिसंबर (आईएएनएस)। सनातन संस्कृति में गायों को मां कहते हैं, लेकिन आप झारखंड में चाकुलिया नामक जगह पर चल रही गोशाला में पहुंच जाएं तो वहां हजारों गायों और गोवंशीय पशुओं की मां के रूप में जिस महिला से आपकी मुलाकात होगी, उनका नाम है डॉ शालिनी मिश्रा।

वह मुंबई में डॉक्टर थीं। एक बेहतरीन करियर-प्रोफेशन, हर महीने लाखों की कमाई, पत्नी-पुत्र-पुत्री, घर-परिवार, सुख-सुविधाएं। लेकिन यह सब कुछ एक झटके में छोड़कर उन्होंने अपना जीवन गौ-सेवा को समर्पित करने का फैसला कर लिया।

जुलाई 2019 में वह झारखंड के पूर्वी सिंहभूम (जमशेदपुर) जिले के चाकुलिया में गौशाला चलाने पहुंची थीं। तकरीबन साढ़े तीन साल बाद आज का दिन, उनका परिवार अब इतना विशाल हो गया है जिसमें तकरीबन साढ़े चौदह हजार गोवंशीय पशु और उनकी देखरेख में लगे लगभग तीन सौ ग्रामीण भी शामिल हैं।

हर सुबह पौ फटने से लेकर देर शाम तक इस गौशाला में एक-एक पशु की सेवा में जुटी डॉ शालिनी मिश्रा जब कुछ क्षण को विश्राम करने बैठती हैं, तो उनके चेहरे पर संतुष्टि का एक अद्भुत भाव होता है। खुद के लिए न किसी रोज अवकाश और न कोई साप्ताहिक छुट्टी, डॉ शालिनी के इस समर्पण और त्याग में उनका परिवार भी साझीदार है।

उनके पति वेदप्रकाश साइंटिस्ट हैं। वह अपनी पगार में से साढ़े सात लाख रुपए हर महीने गौशाला के खर्च के लिए भेज देते हैं। बेटी ऋचा ऑस्ट्रेलिया में रहकर न्यूरो साइंस में रिसर्च कर रही है। उसे सरकार से दो लाख रुपए की स्कॉलरशिप मिलती है। इसमें से कुछ राशि बचाकर वह भी गौशाला को भेजती है। बेटा हर्ष मुंबई में एमबीबीएस सेकंड ईयर का स्टूडेंट है।

डॉ शालिनी मिश्र बताती हैं, वर्ष 2014 में मुंबई में इंडियन मेडिकल एसोसिएशन के एक कार्यक्रम में ध्यान फाउंडेशन के योगी अश्विनी जी शिरकत करने आए थे। उनके विचारों ने गहरे तौर पर प्रभावित किया। वह ध्यान फाउंडेशन से जुड़ गईं और फिर पहुंच गईं चाकुलिया, जहां द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान बने एरोड्रम वाले इलाके में कोलकाता की पिंजरापोल सोसाइटी की खाली पड़ी करीब 10 एकड़ जमीन पर फाउंडेशन की ओर से गौशाला की शुरूआत की जा रही थी।

दरअसल, भारत-बांग्लादेश की सीमा पर गोवंश तस्करों का एक बड़ा नेटवर्क सक्रिय है। बीएसएफ (बॉर्डर सिक्योरिटी फोर्स) इन तस्करों के कब्जे से हर महीने बड़ी तादाद में गोवंशीय पशुओं को मुक्त कराती है। बीएसएफ के सामने समस्या यह थी कि जब्त किए गए पशुओं की देखभाल कैसे हो? इसपर ध्यान फाउंडेशन संस्था के संस्थापक योगी अश्विनी ने पहल की।

उन्होंने बीएसएफ से संपर्क कर उन्हें भरोसा दिया कि उनकी संस्था पकड़े गए सभी गोवंश की समुचित देखभाल करेगी। फिलहाल ध्यान फाउंडेशन देशभर में कुल 40 गौशालाओं का संचालन करती हैं। इनमें 80 हजार से ज्यादा गोवंशीय पशुओं की देखभाल होती है। आज की तारीख में चाकुलिया की गौशाला पूर्वी भारत में गोवंशीय पशुओं का सबसे बड़ा आश्रय स्थल है।

बीएसएफ की टीम अक्सर इस गौशाला में आती है। तीन महीने पहले बीएसएफ के 112 बटालियन के कमांडेंट एनएम राय के नेतृत्व में एक टीम यहां तीन रोज तक रही और गौशाला की सुंदर व्यवस्था से प्रभावित होकर लौटी। इतना ही नहीं, इस टीम के सभी सदस्यों ने गौशाला के लिए व्यक्तिगत तौर पर अर्थ दान भी किया।

गोवंश सेवा कुंज नामक इस गौशाला में बीमार, लाचार, बूढ़े बैलों की भी बड़ी तादाद है। बड़ी संख्या में लावारिस और मरणासन्न गोवंशीय पशु भी यहां लाए जाते हैं। यहां इनके इलाज के लिए पशु चिकित्सकों की टीम भी है। डॉ शालिनी मिश्रा खुद भी इनके इलाज, मरहम-पट्टी में जुटी रहती हैं। तीन सौ से ज्यादा ग्रामीणों को इस गौशाला में रोजगार मिला हुआ है।

गौशाला का लगातार विस्तार हो रहा है। पूरी व्यवस्था के संचालन में कई दाताओं का सहयोग हासिल हो रहा है। इस वर्ष गोपाष्टमी के त्योहार के दिन यहां मवेशियों की गिनती हुई थी। इनकी कुल संख्या 14 हजार 200 पाई गई। गौशाला में चारा, खाद्य सामग्री, दवा आदि की आपूर्ति करने वालों को भी यहां से रोजगार मिला है।

गौशाला में सुरक्षित रखे गए बैलों को कृषि कार्य के लिए स्थानीय किसानों को निशुल्क दिया जा रहा है। भारत की राष्ट्रपति बनने के कुछ महीने पहले द्रौपदी मुर्मू ने भी इस गौशाला का भ्रमण किया था और यहां की व्यवस्था से बेहद प्रभावित हुई थीं।

–आईएएनएस

एसएनसी/एसकेपी

रांची, 4 दिसंबर (आईएएनएस)। सनातन संस्कृति में गायों को मां कहते हैं, लेकिन आप झारखंड में चाकुलिया नामक जगह पर चल रही गोशाला में पहुंच जाएं तो वहां हजारों गायों और गोवंशीय पशुओं की मां के रूप में जिस महिला से आपकी मुलाकात होगी, उनका नाम है डॉ शालिनी मिश्रा।

वह मुंबई में डॉक्टर थीं। एक बेहतरीन करियर-प्रोफेशन, हर महीने लाखों की कमाई, पत्नी-पुत्र-पुत्री, घर-परिवार, सुख-सुविधाएं। लेकिन यह सब कुछ एक झटके में छोड़कर उन्होंने अपना जीवन गौ-सेवा को समर्पित करने का फैसला कर लिया।

जुलाई 2019 में वह झारखंड के पूर्वी सिंहभूम (जमशेदपुर) जिले के चाकुलिया में गौशाला चलाने पहुंची थीं। तकरीबन साढ़े तीन साल बाद आज का दिन, उनका परिवार अब इतना विशाल हो गया है जिसमें तकरीबन साढ़े चौदह हजार गोवंशीय पशु और उनकी देखरेख में लगे लगभग तीन सौ ग्रामीण भी शामिल हैं।

हर सुबह पौ फटने से लेकर देर शाम तक इस गौशाला में एक-एक पशु की सेवा में जुटी डॉ शालिनी मिश्रा जब कुछ क्षण को विश्राम करने बैठती हैं, तो उनके चेहरे पर संतुष्टि का एक अद्भुत भाव होता है। खुद के लिए न किसी रोज अवकाश और न कोई साप्ताहिक छुट्टी, डॉ शालिनी के इस समर्पण और त्याग में उनका परिवार भी साझीदार है।

उनके पति वेदप्रकाश साइंटिस्ट हैं। वह अपनी पगार में से साढ़े सात लाख रुपए हर महीने गौशाला के खर्च के लिए भेज देते हैं। बेटी ऋचा ऑस्ट्रेलिया में रहकर न्यूरो साइंस में रिसर्च कर रही है। उसे सरकार से दो लाख रुपए की स्कॉलरशिप मिलती है। इसमें से कुछ राशि बचाकर वह भी गौशाला को भेजती है। बेटा हर्ष मुंबई में एमबीबीएस सेकंड ईयर का स्टूडेंट है।

डॉ शालिनी मिश्र बताती हैं, वर्ष 2014 में मुंबई में इंडियन मेडिकल एसोसिएशन के एक कार्यक्रम में ध्यान फाउंडेशन के योगी अश्विनी जी शिरकत करने आए थे। उनके विचारों ने गहरे तौर पर प्रभावित किया। वह ध्यान फाउंडेशन से जुड़ गईं और फिर पहुंच गईं चाकुलिया, जहां द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान बने एरोड्रम वाले इलाके में कोलकाता की पिंजरापोल सोसाइटी की खाली पड़ी करीब 10 एकड़ जमीन पर फाउंडेशन की ओर से गौशाला की शुरूआत की जा रही थी।

दरअसल, भारत-बांग्लादेश की सीमा पर गोवंश तस्करों का एक बड़ा नेटवर्क सक्रिय है। बीएसएफ (बॉर्डर सिक्योरिटी फोर्स) इन तस्करों के कब्जे से हर महीने बड़ी तादाद में गोवंशीय पशुओं को मुक्त कराती है। बीएसएफ के सामने समस्या यह थी कि जब्त किए गए पशुओं की देखभाल कैसे हो? इसपर ध्यान फाउंडेशन संस्था के संस्थापक योगी अश्विनी ने पहल की।

उन्होंने बीएसएफ से संपर्क कर उन्हें भरोसा दिया कि उनकी संस्था पकड़े गए सभी गोवंश की समुचित देखभाल करेगी। फिलहाल ध्यान फाउंडेशन देशभर में कुल 40 गौशालाओं का संचालन करती हैं। इनमें 80 हजार से ज्यादा गोवंशीय पशुओं की देखभाल होती है। आज की तारीख में चाकुलिया की गौशाला पूर्वी भारत में गोवंशीय पशुओं का सबसे बड़ा आश्रय स्थल है।

बीएसएफ की टीम अक्सर इस गौशाला में आती है। तीन महीने पहले बीएसएफ के 112 बटालियन के कमांडेंट एनएम राय के नेतृत्व में एक टीम यहां तीन रोज तक रही और गौशाला की सुंदर व्यवस्था से प्रभावित होकर लौटी। इतना ही नहीं, इस टीम के सभी सदस्यों ने गौशाला के लिए व्यक्तिगत तौर पर अर्थ दान भी किया।

गोवंश सेवा कुंज नामक इस गौशाला में बीमार, लाचार, बूढ़े बैलों की भी बड़ी तादाद है। बड़ी संख्या में लावारिस और मरणासन्न गोवंशीय पशु भी यहां लाए जाते हैं। यहां इनके इलाज के लिए पशु चिकित्सकों की टीम भी है। डॉ शालिनी मिश्रा खुद भी इनके इलाज, मरहम-पट्टी में जुटी रहती हैं। तीन सौ से ज्यादा ग्रामीणों को इस गौशाला में रोजगार मिला हुआ है।

गौशाला का लगातार विस्तार हो रहा है। पूरी व्यवस्था के संचालन में कई दाताओं का सहयोग हासिल हो रहा है। इस वर्ष गोपाष्टमी के त्योहार के दिन यहां मवेशियों की गिनती हुई थी। इनकी कुल संख्या 14 हजार 200 पाई गई। गौशाला में चारा, खाद्य सामग्री, दवा आदि की आपूर्ति करने वालों को भी यहां से रोजगार मिला है।

गौशाला में सुरक्षित रखे गए बैलों को कृषि कार्य के लिए स्थानीय किसानों को निशुल्क दिया जा रहा है। भारत की राष्ट्रपति बनने के कुछ महीने पहले द्रौपदी मुर्मू ने भी इस गौशाला का भ्रमण किया था और यहां की व्यवस्था से बेहद प्रभावित हुई थीं।

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रांची, 4 दिसंबर (आईएएनएस)। सनातन संस्कृति में गायों को मां कहते हैं, लेकिन आप झारखंड में चाकुलिया नामक जगह पर चल रही गोशाला में पहुंच जाएं तो वहां हजारों गायों और गोवंशीय पशुओं की मां के रूप में जिस महिला से आपकी मुलाकात होगी, उनका नाम है डॉ शालिनी मिश्रा।

वह मुंबई में डॉक्टर थीं। एक बेहतरीन करियर-प्रोफेशन, हर महीने लाखों की कमाई, पत्नी-पुत्र-पुत्री, घर-परिवार, सुख-सुविधाएं। लेकिन यह सब कुछ एक झटके में छोड़कर उन्होंने अपना जीवन गौ-सेवा को समर्पित करने का फैसला कर लिया।

जुलाई 2019 में वह झारखंड के पूर्वी सिंहभूम (जमशेदपुर) जिले के चाकुलिया में गौशाला चलाने पहुंची थीं। तकरीबन साढ़े तीन साल बाद आज का दिन, उनका परिवार अब इतना विशाल हो गया है जिसमें तकरीबन साढ़े चौदह हजार गोवंशीय पशु और उनकी देखरेख में लगे लगभग तीन सौ ग्रामीण भी शामिल हैं।

हर सुबह पौ फटने से लेकर देर शाम तक इस गौशाला में एक-एक पशु की सेवा में जुटी डॉ शालिनी मिश्रा जब कुछ क्षण को विश्राम करने बैठती हैं, तो उनके चेहरे पर संतुष्टि का एक अद्भुत भाव होता है। खुद के लिए न किसी रोज अवकाश और न कोई साप्ताहिक छुट्टी, डॉ शालिनी के इस समर्पण और त्याग में उनका परिवार भी साझीदार है।

उनके पति वेदप्रकाश साइंटिस्ट हैं। वह अपनी पगार में से साढ़े सात लाख रुपए हर महीने गौशाला के खर्च के लिए भेज देते हैं। बेटी ऋचा ऑस्ट्रेलिया में रहकर न्यूरो साइंस में रिसर्च कर रही है। उसे सरकार से दो लाख रुपए की स्कॉलरशिप मिलती है। इसमें से कुछ राशि बचाकर वह भी गौशाला को भेजती है। बेटा हर्ष मुंबई में एमबीबीएस सेकंड ईयर का स्टूडेंट है।

डॉ शालिनी मिश्र बताती हैं, वर्ष 2014 में मुंबई में इंडियन मेडिकल एसोसिएशन के एक कार्यक्रम में ध्यान फाउंडेशन के योगी अश्विनी जी शिरकत करने आए थे। उनके विचारों ने गहरे तौर पर प्रभावित किया। वह ध्यान फाउंडेशन से जुड़ गईं और फिर पहुंच गईं चाकुलिया, जहां द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान बने एरोड्रम वाले इलाके में कोलकाता की पिंजरापोल सोसाइटी की खाली पड़ी करीब 10 एकड़ जमीन पर फाउंडेशन की ओर से गौशाला की शुरूआत की जा रही थी।

दरअसल, भारत-बांग्लादेश की सीमा पर गोवंश तस्करों का एक बड़ा नेटवर्क सक्रिय है। बीएसएफ (बॉर्डर सिक्योरिटी फोर्स) इन तस्करों के कब्जे से हर महीने बड़ी तादाद में गोवंशीय पशुओं को मुक्त कराती है। बीएसएफ के सामने समस्या यह थी कि जब्त किए गए पशुओं की देखभाल कैसे हो? इसपर ध्यान फाउंडेशन संस्था के संस्थापक योगी अश्विनी ने पहल की।

उन्होंने बीएसएफ से संपर्क कर उन्हें भरोसा दिया कि उनकी संस्था पकड़े गए सभी गोवंश की समुचित देखभाल करेगी। फिलहाल ध्यान फाउंडेशन देशभर में कुल 40 गौशालाओं का संचालन करती हैं। इनमें 80 हजार से ज्यादा गोवंशीय पशुओं की देखभाल होती है। आज की तारीख में चाकुलिया की गौशाला पूर्वी भारत में गोवंशीय पशुओं का सबसे बड़ा आश्रय स्थल है।

बीएसएफ की टीम अक्सर इस गौशाला में आती है। तीन महीने पहले बीएसएफ के 112 बटालियन के कमांडेंट एनएम राय के नेतृत्व में एक टीम यहां तीन रोज तक रही और गौशाला की सुंदर व्यवस्था से प्रभावित होकर लौटी। इतना ही नहीं, इस टीम के सभी सदस्यों ने गौशाला के लिए व्यक्तिगत तौर पर अर्थ दान भी किया।

गोवंश सेवा कुंज नामक इस गौशाला में बीमार, लाचार, बूढ़े बैलों की भी बड़ी तादाद है। बड़ी संख्या में लावारिस और मरणासन्न गोवंशीय पशु भी यहां लाए जाते हैं। यहां इनके इलाज के लिए पशु चिकित्सकों की टीम भी है। डॉ शालिनी मिश्रा खुद भी इनके इलाज, मरहम-पट्टी में जुटी रहती हैं। तीन सौ से ज्यादा ग्रामीणों को इस गौशाला में रोजगार मिला हुआ है।

गौशाला का लगातार विस्तार हो रहा है। पूरी व्यवस्था के संचालन में कई दाताओं का सहयोग हासिल हो रहा है। इस वर्ष गोपाष्टमी के त्योहार के दिन यहां मवेशियों की गिनती हुई थी। इनकी कुल संख्या 14 हजार 200 पाई गई। गौशाला में चारा, खाद्य सामग्री, दवा आदि की आपूर्ति करने वालों को भी यहां से रोजगार मिला है।

गौशाला में सुरक्षित रखे गए बैलों को कृषि कार्य के लिए स्थानीय किसानों को निशुल्क दिया जा रहा है। भारत की राष्ट्रपति बनने के कुछ महीने पहले द्रौपदी मुर्मू ने भी इस गौशाला का भ्रमण किया था और यहां की व्यवस्था से बेहद प्रभावित हुई थीं।

–आईएएनएस

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रांची, 4 दिसंबर (आईएएनएस)। सनातन संस्कृति में गायों को मां कहते हैं, लेकिन आप झारखंड में चाकुलिया नामक जगह पर चल रही गोशाला में पहुंच जाएं तो वहां हजारों गायों और गोवंशीय पशुओं की मां के रूप में जिस महिला से आपकी मुलाकात होगी, उनका नाम है डॉ शालिनी मिश्रा।

वह मुंबई में डॉक्टर थीं। एक बेहतरीन करियर-प्रोफेशन, हर महीने लाखों की कमाई, पत्नी-पुत्र-पुत्री, घर-परिवार, सुख-सुविधाएं। लेकिन यह सब कुछ एक झटके में छोड़कर उन्होंने अपना जीवन गौ-सेवा को समर्पित करने का फैसला कर लिया।

जुलाई 2019 में वह झारखंड के पूर्वी सिंहभूम (जमशेदपुर) जिले के चाकुलिया में गौशाला चलाने पहुंची थीं। तकरीबन साढ़े तीन साल बाद आज का दिन, उनका परिवार अब इतना विशाल हो गया है जिसमें तकरीबन साढ़े चौदह हजार गोवंशीय पशु और उनकी देखरेख में लगे लगभग तीन सौ ग्रामीण भी शामिल हैं।

हर सुबह पौ फटने से लेकर देर शाम तक इस गौशाला में एक-एक पशु की सेवा में जुटी डॉ शालिनी मिश्रा जब कुछ क्षण को विश्राम करने बैठती हैं, तो उनके चेहरे पर संतुष्टि का एक अद्भुत भाव होता है। खुद के लिए न किसी रोज अवकाश और न कोई साप्ताहिक छुट्टी, डॉ शालिनी के इस समर्पण और त्याग में उनका परिवार भी साझीदार है।

उनके पति वेदप्रकाश साइंटिस्ट हैं। वह अपनी पगार में से साढ़े सात लाख रुपए हर महीने गौशाला के खर्च के लिए भेज देते हैं। बेटी ऋचा ऑस्ट्रेलिया में रहकर न्यूरो साइंस में रिसर्च कर रही है। उसे सरकार से दो लाख रुपए की स्कॉलरशिप मिलती है। इसमें से कुछ राशि बचाकर वह भी गौशाला को भेजती है। बेटा हर्ष मुंबई में एमबीबीएस सेकंड ईयर का स्टूडेंट है।

डॉ शालिनी मिश्र बताती हैं, वर्ष 2014 में मुंबई में इंडियन मेडिकल एसोसिएशन के एक कार्यक्रम में ध्यान फाउंडेशन के योगी अश्विनी जी शिरकत करने आए थे। उनके विचारों ने गहरे तौर पर प्रभावित किया। वह ध्यान फाउंडेशन से जुड़ गईं और फिर पहुंच गईं चाकुलिया, जहां द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान बने एरोड्रम वाले इलाके में कोलकाता की पिंजरापोल सोसाइटी की खाली पड़ी करीब 10 एकड़ जमीन पर फाउंडेशन की ओर से गौशाला की शुरूआत की जा रही थी।

दरअसल, भारत-बांग्लादेश की सीमा पर गोवंश तस्करों का एक बड़ा नेटवर्क सक्रिय है। बीएसएफ (बॉर्डर सिक्योरिटी फोर्स) इन तस्करों के कब्जे से हर महीने बड़ी तादाद में गोवंशीय पशुओं को मुक्त कराती है। बीएसएफ के सामने समस्या यह थी कि जब्त किए गए पशुओं की देखभाल कैसे हो? इसपर ध्यान फाउंडेशन संस्था के संस्थापक योगी अश्विनी ने पहल की।

उन्होंने बीएसएफ से संपर्क कर उन्हें भरोसा दिया कि उनकी संस्था पकड़े गए सभी गोवंश की समुचित देखभाल करेगी। फिलहाल ध्यान फाउंडेशन देशभर में कुल 40 गौशालाओं का संचालन करती हैं। इनमें 80 हजार से ज्यादा गोवंशीय पशुओं की देखभाल होती है। आज की तारीख में चाकुलिया की गौशाला पूर्वी भारत में गोवंशीय पशुओं का सबसे बड़ा आश्रय स्थल है।

बीएसएफ की टीम अक्सर इस गौशाला में आती है। तीन महीने पहले बीएसएफ के 112 बटालियन के कमांडेंट एनएम राय के नेतृत्व में एक टीम यहां तीन रोज तक रही और गौशाला की सुंदर व्यवस्था से प्रभावित होकर लौटी। इतना ही नहीं, इस टीम के सभी सदस्यों ने गौशाला के लिए व्यक्तिगत तौर पर अर्थ दान भी किया।

गोवंश सेवा कुंज नामक इस गौशाला में बीमार, लाचार, बूढ़े बैलों की भी बड़ी तादाद है। बड़ी संख्या में लावारिस और मरणासन्न गोवंशीय पशु भी यहां लाए जाते हैं। यहां इनके इलाज के लिए पशु चिकित्सकों की टीम भी है। डॉ शालिनी मिश्रा खुद भी इनके इलाज, मरहम-पट्टी में जुटी रहती हैं। तीन सौ से ज्यादा ग्रामीणों को इस गौशाला में रोजगार मिला हुआ है।

गौशाला का लगातार विस्तार हो रहा है। पूरी व्यवस्था के संचालन में कई दाताओं का सहयोग हासिल हो रहा है। इस वर्ष गोपाष्टमी के त्योहार के दिन यहां मवेशियों की गिनती हुई थी। इनकी कुल संख्या 14 हजार 200 पाई गई। गौशाला में चारा, खाद्य सामग्री, दवा आदि की आपूर्ति करने वालों को भी यहां से रोजगार मिला है।

गौशाला में सुरक्षित रखे गए बैलों को कृषि कार्य के लिए स्थानीय किसानों को निशुल्क दिया जा रहा है। भारत की राष्ट्रपति बनने के कुछ महीने पहले द्रौपदी मुर्मू ने भी इस गौशाला का भ्रमण किया था और यहां की व्यवस्था से बेहद प्रभावित हुई थीं।

–आईएएनएस

एसएनसी/एसकेपी

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रांची, 4 दिसंबर (आईएएनएस)। सनातन संस्कृति में गायों को मां कहते हैं, लेकिन आप झारखंड में चाकुलिया नामक जगह पर चल रही गोशाला में पहुंच जाएं तो वहां हजारों गायों और गोवंशीय पशुओं की मां के रूप में जिस महिला से आपकी मुलाकात होगी, उनका नाम है डॉ शालिनी मिश्रा।

वह मुंबई में डॉक्टर थीं। एक बेहतरीन करियर-प्रोफेशन, हर महीने लाखों की कमाई, पत्नी-पुत्र-पुत्री, घर-परिवार, सुख-सुविधाएं। लेकिन यह सब कुछ एक झटके में छोड़कर उन्होंने अपना जीवन गौ-सेवा को समर्पित करने का फैसला कर लिया।

जुलाई 2019 में वह झारखंड के पूर्वी सिंहभूम (जमशेदपुर) जिले के चाकुलिया में गौशाला चलाने पहुंची थीं। तकरीबन साढ़े तीन साल बाद आज का दिन, उनका परिवार अब इतना विशाल हो गया है जिसमें तकरीबन साढ़े चौदह हजार गोवंशीय पशु और उनकी देखरेख में लगे लगभग तीन सौ ग्रामीण भी शामिल हैं।

हर सुबह पौ फटने से लेकर देर शाम तक इस गौशाला में एक-एक पशु की सेवा में जुटी डॉ शालिनी मिश्रा जब कुछ क्षण को विश्राम करने बैठती हैं, तो उनके चेहरे पर संतुष्टि का एक अद्भुत भाव होता है। खुद के लिए न किसी रोज अवकाश और न कोई साप्ताहिक छुट्टी, डॉ शालिनी के इस समर्पण और त्याग में उनका परिवार भी साझीदार है।

उनके पति वेदप्रकाश साइंटिस्ट हैं। वह अपनी पगार में से साढ़े सात लाख रुपए हर महीने गौशाला के खर्च के लिए भेज देते हैं। बेटी ऋचा ऑस्ट्रेलिया में रहकर न्यूरो साइंस में रिसर्च कर रही है। उसे सरकार से दो लाख रुपए की स्कॉलरशिप मिलती है। इसमें से कुछ राशि बचाकर वह भी गौशाला को भेजती है। बेटा हर्ष मुंबई में एमबीबीएस सेकंड ईयर का स्टूडेंट है।

डॉ शालिनी मिश्र बताती हैं, वर्ष 2014 में मुंबई में इंडियन मेडिकल एसोसिएशन के एक कार्यक्रम में ध्यान फाउंडेशन के योगी अश्विनी जी शिरकत करने आए थे। उनके विचारों ने गहरे तौर पर प्रभावित किया। वह ध्यान फाउंडेशन से जुड़ गईं और फिर पहुंच गईं चाकुलिया, जहां द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान बने एरोड्रम वाले इलाके में कोलकाता की पिंजरापोल सोसाइटी की खाली पड़ी करीब 10 एकड़ जमीन पर फाउंडेशन की ओर से गौशाला की शुरूआत की जा रही थी।

दरअसल, भारत-बांग्लादेश की सीमा पर गोवंश तस्करों का एक बड़ा नेटवर्क सक्रिय है। बीएसएफ (बॉर्डर सिक्योरिटी फोर्स) इन तस्करों के कब्जे से हर महीने बड़ी तादाद में गोवंशीय पशुओं को मुक्त कराती है। बीएसएफ के सामने समस्या यह थी कि जब्त किए गए पशुओं की देखभाल कैसे हो? इसपर ध्यान फाउंडेशन संस्था के संस्थापक योगी अश्विनी ने पहल की।

उन्होंने बीएसएफ से संपर्क कर उन्हें भरोसा दिया कि उनकी संस्था पकड़े गए सभी गोवंश की समुचित देखभाल करेगी। फिलहाल ध्यान फाउंडेशन देशभर में कुल 40 गौशालाओं का संचालन करती हैं। इनमें 80 हजार से ज्यादा गोवंशीय पशुओं की देखभाल होती है। आज की तारीख में चाकुलिया की गौशाला पूर्वी भारत में गोवंशीय पशुओं का सबसे बड़ा आश्रय स्थल है।

बीएसएफ की टीम अक्सर इस गौशाला में आती है। तीन महीने पहले बीएसएफ के 112 बटालियन के कमांडेंट एनएम राय के नेतृत्व में एक टीम यहां तीन रोज तक रही और गौशाला की सुंदर व्यवस्था से प्रभावित होकर लौटी। इतना ही नहीं, इस टीम के सभी सदस्यों ने गौशाला के लिए व्यक्तिगत तौर पर अर्थ दान भी किया।

गोवंश सेवा कुंज नामक इस गौशाला में बीमार, लाचार, बूढ़े बैलों की भी बड़ी तादाद है। बड़ी संख्या में लावारिस और मरणासन्न गोवंशीय पशु भी यहां लाए जाते हैं। यहां इनके इलाज के लिए पशु चिकित्सकों की टीम भी है। डॉ शालिनी मिश्रा खुद भी इनके इलाज, मरहम-पट्टी में जुटी रहती हैं। तीन सौ से ज्यादा ग्रामीणों को इस गौशाला में रोजगार मिला हुआ है।

गौशाला का लगातार विस्तार हो रहा है। पूरी व्यवस्था के संचालन में कई दाताओं का सहयोग हासिल हो रहा है। इस वर्ष गोपाष्टमी के त्योहार के दिन यहां मवेशियों की गिनती हुई थी। इनकी कुल संख्या 14 हजार 200 पाई गई। गौशाला में चारा, खाद्य सामग्री, दवा आदि की आपूर्ति करने वालों को भी यहां से रोजगार मिला है।

गौशाला में सुरक्षित रखे गए बैलों को कृषि कार्य के लिए स्थानीय किसानों को निशुल्क दिया जा रहा है। भारत की राष्ट्रपति बनने के कुछ महीने पहले द्रौपदी मुर्मू ने भी इस गौशाला का भ्रमण किया था और यहां की व्यवस्था से बेहद प्रभावित हुई थीं।

–आईएएनएस

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रांची, 4 दिसंबर (आईएएनएस)। सनातन संस्कृति में गायों को मां कहते हैं, लेकिन आप झारखंड में चाकुलिया नामक जगह पर चल रही गोशाला में पहुंच जाएं तो वहां हजारों गायों और गोवंशीय पशुओं की मां के रूप में जिस महिला से आपकी मुलाकात होगी, उनका नाम है डॉ शालिनी मिश्रा।

वह मुंबई में डॉक्टर थीं। एक बेहतरीन करियर-प्रोफेशन, हर महीने लाखों की कमाई, पत्नी-पुत्र-पुत्री, घर-परिवार, सुख-सुविधाएं। लेकिन यह सब कुछ एक झटके में छोड़कर उन्होंने अपना जीवन गौ-सेवा को समर्पित करने का फैसला कर लिया।

जुलाई 2019 में वह झारखंड के पूर्वी सिंहभूम (जमशेदपुर) जिले के चाकुलिया में गौशाला चलाने पहुंची थीं। तकरीबन साढ़े तीन साल बाद आज का दिन, उनका परिवार अब इतना विशाल हो गया है जिसमें तकरीबन साढ़े चौदह हजार गोवंशीय पशु और उनकी देखरेख में लगे लगभग तीन सौ ग्रामीण भी शामिल हैं।

हर सुबह पौ फटने से लेकर देर शाम तक इस गौशाला में एक-एक पशु की सेवा में जुटी डॉ शालिनी मिश्रा जब कुछ क्षण को विश्राम करने बैठती हैं, तो उनके चेहरे पर संतुष्टि का एक अद्भुत भाव होता है। खुद के लिए न किसी रोज अवकाश और न कोई साप्ताहिक छुट्टी, डॉ शालिनी के इस समर्पण और त्याग में उनका परिवार भी साझीदार है।

उनके पति वेदप्रकाश साइंटिस्ट हैं। वह अपनी पगार में से साढ़े सात लाख रुपए हर महीने गौशाला के खर्च के लिए भेज देते हैं। बेटी ऋचा ऑस्ट्रेलिया में रहकर न्यूरो साइंस में रिसर्च कर रही है। उसे सरकार से दो लाख रुपए की स्कॉलरशिप मिलती है। इसमें से कुछ राशि बचाकर वह भी गौशाला को भेजती है। बेटा हर्ष मुंबई में एमबीबीएस सेकंड ईयर का स्टूडेंट है।

डॉ शालिनी मिश्र बताती हैं, वर्ष 2014 में मुंबई में इंडियन मेडिकल एसोसिएशन के एक कार्यक्रम में ध्यान फाउंडेशन के योगी अश्विनी जी शिरकत करने आए थे। उनके विचारों ने गहरे तौर पर प्रभावित किया। वह ध्यान फाउंडेशन से जुड़ गईं और फिर पहुंच गईं चाकुलिया, जहां द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान बने एरोड्रम वाले इलाके में कोलकाता की पिंजरापोल सोसाइटी की खाली पड़ी करीब 10 एकड़ जमीन पर फाउंडेशन की ओर से गौशाला की शुरूआत की जा रही थी।

दरअसल, भारत-बांग्लादेश की सीमा पर गोवंश तस्करों का एक बड़ा नेटवर्क सक्रिय है। बीएसएफ (बॉर्डर सिक्योरिटी फोर्स) इन तस्करों के कब्जे से हर महीने बड़ी तादाद में गोवंशीय पशुओं को मुक्त कराती है। बीएसएफ के सामने समस्या यह थी कि जब्त किए गए पशुओं की देखभाल कैसे हो? इसपर ध्यान फाउंडेशन संस्था के संस्थापक योगी अश्विनी ने पहल की।

उन्होंने बीएसएफ से संपर्क कर उन्हें भरोसा दिया कि उनकी संस्था पकड़े गए सभी गोवंश की समुचित देखभाल करेगी। फिलहाल ध्यान फाउंडेशन देशभर में कुल 40 गौशालाओं का संचालन करती हैं। इनमें 80 हजार से ज्यादा गोवंशीय पशुओं की देखभाल होती है। आज की तारीख में चाकुलिया की गौशाला पूर्वी भारत में गोवंशीय पशुओं का सबसे बड़ा आश्रय स्थल है।

बीएसएफ की टीम अक्सर इस गौशाला में आती है। तीन महीने पहले बीएसएफ के 112 बटालियन के कमांडेंट एनएम राय के नेतृत्व में एक टीम यहां तीन रोज तक रही और गौशाला की सुंदर व्यवस्था से प्रभावित होकर लौटी। इतना ही नहीं, इस टीम के सभी सदस्यों ने गौशाला के लिए व्यक्तिगत तौर पर अर्थ दान भी किया।

गोवंश सेवा कुंज नामक इस गौशाला में बीमार, लाचार, बूढ़े बैलों की भी बड़ी तादाद है। बड़ी संख्या में लावारिस और मरणासन्न गोवंशीय पशु भी यहां लाए जाते हैं। यहां इनके इलाज के लिए पशु चिकित्सकों की टीम भी है। डॉ शालिनी मिश्रा खुद भी इनके इलाज, मरहम-पट्टी में जुटी रहती हैं। तीन सौ से ज्यादा ग्रामीणों को इस गौशाला में रोजगार मिला हुआ है।

गौशाला का लगातार विस्तार हो रहा है। पूरी व्यवस्था के संचालन में कई दाताओं का सहयोग हासिल हो रहा है। इस वर्ष गोपाष्टमी के त्योहार के दिन यहां मवेशियों की गिनती हुई थी। इनकी कुल संख्या 14 हजार 200 पाई गई। गौशाला में चारा, खाद्य सामग्री, दवा आदि की आपूर्ति करने वालों को भी यहां से रोजगार मिला है।

गौशाला में सुरक्षित रखे गए बैलों को कृषि कार्य के लिए स्थानीय किसानों को निशुल्क दिया जा रहा है। भारत की राष्ट्रपति बनने के कुछ महीने पहले द्रौपदी मुर्मू ने भी इस गौशाला का भ्रमण किया था और यहां की व्यवस्था से बेहद प्रभावित हुई थीं।

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रांची, 4 दिसंबर (आईएएनएस)। सनातन संस्कृति में गायों को मां कहते हैं, लेकिन आप झारखंड में चाकुलिया नामक जगह पर चल रही गोशाला में पहुंच जाएं तो वहां हजारों गायों और गोवंशीय पशुओं की मां के रूप में जिस महिला से आपकी मुलाकात होगी, उनका नाम है डॉ शालिनी मिश्रा।

वह मुंबई में डॉक्टर थीं। एक बेहतरीन करियर-प्रोफेशन, हर महीने लाखों की कमाई, पत्नी-पुत्र-पुत्री, घर-परिवार, सुख-सुविधाएं। लेकिन यह सब कुछ एक झटके में छोड़कर उन्होंने अपना जीवन गौ-सेवा को समर्पित करने का फैसला कर लिया।

जुलाई 2019 में वह झारखंड के पूर्वी सिंहभूम (जमशेदपुर) जिले के चाकुलिया में गौशाला चलाने पहुंची थीं। तकरीबन साढ़े तीन साल बाद आज का दिन, उनका परिवार अब इतना विशाल हो गया है जिसमें तकरीबन साढ़े चौदह हजार गोवंशीय पशु और उनकी देखरेख में लगे लगभग तीन सौ ग्रामीण भी शामिल हैं।

हर सुबह पौ फटने से लेकर देर शाम तक इस गौशाला में एक-एक पशु की सेवा में जुटी डॉ शालिनी मिश्रा जब कुछ क्षण को विश्राम करने बैठती हैं, तो उनके चेहरे पर संतुष्टि का एक अद्भुत भाव होता है। खुद के लिए न किसी रोज अवकाश और न कोई साप्ताहिक छुट्टी, डॉ शालिनी के इस समर्पण और त्याग में उनका परिवार भी साझीदार है।

उनके पति वेदप्रकाश साइंटिस्ट हैं। वह अपनी पगार में से साढ़े सात लाख रुपए हर महीने गौशाला के खर्च के लिए भेज देते हैं। बेटी ऋचा ऑस्ट्रेलिया में रहकर न्यूरो साइंस में रिसर्च कर रही है। उसे सरकार से दो लाख रुपए की स्कॉलरशिप मिलती है। इसमें से कुछ राशि बचाकर वह भी गौशाला को भेजती है। बेटा हर्ष मुंबई में एमबीबीएस सेकंड ईयर का स्टूडेंट है।

डॉ शालिनी मिश्र बताती हैं, वर्ष 2014 में मुंबई में इंडियन मेडिकल एसोसिएशन के एक कार्यक्रम में ध्यान फाउंडेशन के योगी अश्विनी जी शिरकत करने आए थे। उनके विचारों ने गहरे तौर पर प्रभावित किया। वह ध्यान फाउंडेशन से जुड़ गईं और फिर पहुंच गईं चाकुलिया, जहां द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान बने एरोड्रम वाले इलाके में कोलकाता की पिंजरापोल सोसाइटी की खाली पड़ी करीब 10 एकड़ जमीन पर फाउंडेशन की ओर से गौशाला की शुरूआत की जा रही थी।

दरअसल, भारत-बांग्लादेश की सीमा पर गोवंश तस्करों का एक बड़ा नेटवर्क सक्रिय है। बीएसएफ (बॉर्डर सिक्योरिटी फोर्स) इन तस्करों के कब्जे से हर महीने बड़ी तादाद में गोवंशीय पशुओं को मुक्त कराती है। बीएसएफ के सामने समस्या यह थी कि जब्त किए गए पशुओं की देखभाल कैसे हो? इसपर ध्यान फाउंडेशन संस्था के संस्थापक योगी अश्विनी ने पहल की।

उन्होंने बीएसएफ से संपर्क कर उन्हें भरोसा दिया कि उनकी संस्था पकड़े गए सभी गोवंश की समुचित देखभाल करेगी। फिलहाल ध्यान फाउंडेशन देशभर में कुल 40 गौशालाओं का संचालन करती हैं। इनमें 80 हजार से ज्यादा गोवंशीय पशुओं की देखभाल होती है। आज की तारीख में चाकुलिया की गौशाला पूर्वी भारत में गोवंशीय पशुओं का सबसे बड़ा आश्रय स्थल है।

बीएसएफ की टीम अक्सर इस गौशाला में आती है। तीन महीने पहले बीएसएफ के 112 बटालियन के कमांडेंट एनएम राय के नेतृत्व में एक टीम यहां तीन रोज तक रही और गौशाला की सुंदर व्यवस्था से प्रभावित होकर लौटी। इतना ही नहीं, इस टीम के सभी सदस्यों ने गौशाला के लिए व्यक्तिगत तौर पर अर्थ दान भी किया।

गोवंश सेवा कुंज नामक इस गौशाला में बीमार, लाचार, बूढ़े बैलों की भी बड़ी तादाद है। बड़ी संख्या में लावारिस और मरणासन्न गोवंशीय पशु भी यहां लाए जाते हैं। यहां इनके इलाज के लिए पशु चिकित्सकों की टीम भी है। डॉ शालिनी मिश्रा खुद भी इनके इलाज, मरहम-पट्टी में जुटी रहती हैं। तीन सौ से ज्यादा ग्रामीणों को इस गौशाला में रोजगार मिला हुआ है।

गौशाला का लगातार विस्तार हो रहा है। पूरी व्यवस्था के संचालन में कई दाताओं का सहयोग हासिल हो रहा है। इस वर्ष गोपाष्टमी के त्योहार के दिन यहां मवेशियों की गिनती हुई थी। इनकी कुल संख्या 14 हजार 200 पाई गई। गौशाला में चारा, खाद्य सामग्री, दवा आदि की आपूर्ति करने वालों को भी यहां से रोजगार मिला है।

गौशाला में सुरक्षित रखे गए बैलों को कृषि कार्य के लिए स्थानीय किसानों को निशुल्क दिया जा रहा है। भारत की राष्ट्रपति बनने के कुछ महीने पहले द्रौपदी मुर्मू ने भी इस गौशाला का भ्रमण किया था और यहां की व्यवस्था से बेहद प्रभावित हुई थीं।

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रांची, 4 दिसंबर (आईएएनएस)। सनातन संस्कृति में गायों को मां कहते हैं, लेकिन आप झारखंड में चाकुलिया नामक जगह पर चल रही गोशाला में पहुंच जाएं तो वहां हजारों गायों और गोवंशीय पशुओं की मां के रूप में जिस महिला से आपकी मुलाकात होगी, उनका नाम है डॉ शालिनी मिश्रा।

वह मुंबई में डॉक्टर थीं। एक बेहतरीन करियर-प्रोफेशन, हर महीने लाखों की कमाई, पत्नी-पुत्र-पुत्री, घर-परिवार, सुख-सुविधाएं। लेकिन यह सब कुछ एक झटके में छोड़कर उन्होंने अपना जीवन गौ-सेवा को समर्पित करने का फैसला कर लिया।

जुलाई 2019 में वह झारखंड के पूर्वी सिंहभूम (जमशेदपुर) जिले के चाकुलिया में गौशाला चलाने पहुंची थीं। तकरीबन साढ़े तीन साल बाद आज का दिन, उनका परिवार अब इतना विशाल हो गया है जिसमें तकरीबन साढ़े चौदह हजार गोवंशीय पशु और उनकी देखरेख में लगे लगभग तीन सौ ग्रामीण भी शामिल हैं।

हर सुबह पौ फटने से लेकर देर शाम तक इस गौशाला में एक-एक पशु की सेवा में जुटी डॉ शालिनी मिश्रा जब कुछ क्षण को विश्राम करने बैठती हैं, तो उनके चेहरे पर संतुष्टि का एक अद्भुत भाव होता है। खुद के लिए न किसी रोज अवकाश और न कोई साप्ताहिक छुट्टी, डॉ शालिनी के इस समर्पण और त्याग में उनका परिवार भी साझीदार है।

उनके पति वेदप्रकाश साइंटिस्ट हैं। वह अपनी पगार में से साढ़े सात लाख रुपए हर महीने गौशाला के खर्च के लिए भेज देते हैं। बेटी ऋचा ऑस्ट्रेलिया में रहकर न्यूरो साइंस में रिसर्च कर रही है। उसे सरकार से दो लाख रुपए की स्कॉलरशिप मिलती है। इसमें से कुछ राशि बचाकर वह भी गौशाला को भेजती है। बेटा हर्ष मुंबई में एमबीबीएस सेकंड ईयर का स्टूडेंट है।

डॉ शालिनी मिश्र बताती हैं, वर्ष 2014 में मुंबई में इंडियन मेडिकल एसोसिएशन के एक कार्यक्रम में ध्यान फाउंडेशन के योगी अश्विनी जी शिरकत करने आए थे। उनके विचारों ने गहरे तौर पर प्रभावित किया। वह ध्यान फाउंडेशन से जुड़ गईं और फिर पहुंच गईं चाकुलिया, जहां द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान बने एरोड्रम वाले इलाके में कोलकाता की पिंजरापोल सोसाइटी की खाली पड़ी करीब 10 एकड़ जमीन पर फाउंडेशन की ओर से गौशाला की शुरूआत की जा रही थी।

दरअसल, भारत-बांग्लादेश की सीमा पर गोवंश तस्करों का एक बड़ा नेटवर्क सक्रिय है। बीएसएफ (बॉर्डर सिक्योरिटी फोर्स) इन तस्करों के कब्जे से हर महीने बड़ी तादाद में गोवंशीय पशुओं को मुक्त कराती है। बीएसएफ के सामने समस्या यह थी कि जब्त किए गए पशुओं की देखभाल कैसे हो? इसपर ध्यान फाउंडेशन संस्था के संस्थापक योगी अश्विनी ने पहल की।

उन्होंने बीएसएफ से संपर्क कर उन्हें भरोसा दिया कि उनकी संस्था पकड़े गए सभी गोवंश की समुचित देखभाल करेगी। फिलहाल ध्यान फाउंडेशन देशभर में कुल 40 गौशालाओं का संचालन करती हैं। इनमें 80 हजार से ज्यादा गोवंशीय पशुओं की देखभाल होती है। आज की तारीख में चाकुलिया की गौशाला पूर्वी भारत में गोवंशीय पशुओं का सबसे बड़ा आश्रय स्थल है।

बीएसएफ की टीम अक्सर इस गौशाला में आती है। तीन महीने पहले बीएसएफ के 112 बटालियन के कमांडेंट एनएम राय के नेतृत्व में एक टीम यहां तीन रोज तक रही और गौशाला की सुंदर व्यवस्था से प्रभावित होकर लौटी। इतना ही नहीं, इस टीम के सभी सदस्यों ने गौशाला के लिए व्यक्तिगत तौर पर अर्थ दान भी किया।

गोवंश सेवा कुंज नामक इस गौशाला में बीमार, लाचार, बूढ़े बैलों की भी बड़ी तादाद है। बड़ी संख्या में लावारिस और मरणासन्न गोवंशीय पशु भी यहां लाए जाते हैं। यहां इनके इलाज के लिए पशु चिकित्सकों की टीम भी है। डॉ शालिनी मिश्रा खुद भी इनके इलाज, मरहम-पट्टी में जुटी रहती हैं। तीन सौ से ज्यादा ग्रामीणों को इस गौशाला में रोजगार मिला हुआ है।

गौशाला का लगातार विस्तार हो रहा है। पूरी व्यवस्था के संचालन में कई दाताओं का सहयोग हासिल हो रहा है। इस वर्ष गोपाष्टमी के त्योहार के दिन यहां मवेशियों की गिनती हुई थी। इनकी कुल संख्या 14 हजार 200 पाई गई। गौशाला में चारा, खाद्य सामग्री, दवा आदि की आपूर्ति करने वालों को भी यहां से रोजगार मिला है।

गौशाला में सुरक्षित रखे गए बैलों को कृषि कार्य के लिए स्थानीय किसानों को निशुल्क दिया जा रहा है। भारत की राष्ट्रपति बनने के कुछ महीने पहले द्रौपदी मुर्मू ने भी इस गौशाला का भ्रमण किया था और यहां की व्यवस्था से बेहद प्रभावित हुई थीं।

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वह मुंबई में डॉक्टर थीं। एक बेहतरीन करियर-प्रोफेशन, हर महीने लाखों की कमाई, पत्नी-पुत्र-पुत्री, घर-परिवार, सुख-सुविधाएं। लेकिन यह सब कुछ एक झटके में छोड़कर उन्होंने अपना जीवन गौ-सेवा को समर्पित करने का फैसला कर लिया।

जुलाई 2019 में वह झारखंड के पूर्वी सिंहभूम (जमशेदपुर) जिले के चाकुलिया में गौशाला चलाने पहुंची थीं। तकरीबन साढ़े तीन साल बाद आज का दिन, उनका परिवार अब इतना विशाल हो गया है जिसमें तकरीबन साढ़े चौदह हजार गोवंशीय पशु और उनकी देखरेख में लगे लगभग तीन सौ ग्रामीण भी शामिल हैं।

हर सुबह पौ फटने से लेकर देर शाम तक इस गौशाला में एक-एक पशु की सेवा में जुटी डॉ शालिनी मिश्रा जब कुछ क्षण को विश्राम करने बैठती हैं, तो उनके चेहरे पर संतुष्टि का एक अद्भुत भाव होता है। खुद के लिए न किसी रोज अवकाश और न कोई साप्ताहिक छुट्टी, डॉ शालिनी के इस समर्पण और त्याग में उनका परिवार भी साझीदार है।

उनके पति वेदप्रकाश साइंटिस्ट हैं। वह अपनी पगार में से साढ़े सात लाख रुपए हर महीने गौशाला के खर्च के लिए भेज देते हैं। बेटी ऋचा ऑस्ट्रेलिया में रहकर न्यूरो साइंस में रिसर्च कर रही है। उसे सरकार से दो लाख रुपए की स्कॉलरशिप मिलती है। इसमें से कुछ राशि बचाकर वह भी गौशाला को भेजती है। बेटा हर्ष मुंबई में एमबीबीएस सेकंड ईयर का स्टूडेंट है।

डॉ शालिनी मिश्र बताती हैं, वर्ष 2014 में मुंबई में इंडियन मेडिकल एसोसिएशन के एक कार्यक्रम में ध्यान फाउंडेशन के योगी अश्विनी जी शिरकत करने आए थे। उनके विचारों ने गहरे तौर पर प्रभावित किया। वह ध्यान फाउंडेशन से जुड़ गईं और फिर पहुंच गईं चाकुलिया, जहां द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान बने एरोड्रम वाले इलाके में कोलकाता की पिंजरापोल सोसाइटी की खाली पड़ी करीब 10 एकड़ जमीन पर फाउंडेशन की ओर से गौशाला की शुरूआत की जा रही थी।

दरअसल, भारत-बांग्लादेश की सीमा पर गोवंश तस्करों का एक बड़ा नेटवर्क सक्रिय है। बीएसएफ (बॉर्डर सिक्योरिटी फोर्स) इन तस्करों के कब्जे से हर महीने बड़ी तादाद में गोवंशीय पशुओं को मुक्त कराती है। बीएसएफ के सामने समस्या यह थी कि जब्त किए गए पशुओं की देखभाल कैसे हो? इसपर ध्यान फाउंडेशन संस्था के संस्थापक योगी अश्विनी ने पहल की।

उन्होंने बीएसएफ से संपर्क कर उन्हें भरोसा दिया कि उनकी संस्था पकड़े गए सभी गोवंश की समुचित देखभाल करेगी। फिलहाल ध्यान फाउंडेशन देशभर में कुल 40 गौशालाओं का संचालन करती हैं। इनमें 80 हजार से ज्यादा गोवंशीय पशुओं की देखभाल होती है। आज की तारीख में चाकुलिया की गौशाला पूर्वी भारत में गोवंशीय पशुओं का सबसे बड़ा आश्रय स्थल है।

बीएसएफ की टीम अक्सर इस गौशाला में आती है। तीन महीने पहले बीएसएफ के 112 बटालियन के कमांडेंट एनएम राय के नेतृत्व में एक टीम यहां तीन रोज तक रही और गौशाला की सुंदर व्यवस्था से प्रभावित होकर लौटी। इतना ही नहीं, इस टीम के सभी सदस्यों ने गौशाला के लिए व्यक्तिगत तौर पर अर्थ दान भी किया।

गोवंश सेवा कुंज नामक इस गौशाला में बीमार, लाचार, बूढ़े बैलों की भी बड़ी तादाद है। बड़ी संख्या में लावारिस और मरणासन्न गोवंशीय पशु भी यहां लाए जाते हैं। यहां इनके इलाज के लिए पशु चिकित्सकों की टीम भी है। डॉ शालिनी मिश्रा खुद भी इनके इलाज, मरहम-पट्टी में जुटी रहती हैं। तीन सौ से ज्यादा ग्रामीणों को इस गौशाला में रोजगार मिला हुआ है।

गौशाला का लगातार विस्तार हो रहा है। पूरी व्यवस्था के संचालन में कई दाताओं का सहयोग हासिल हो रहा है। इस वर्ष गोपाष्टमी के त्योहार के दिन यहां मवेशियों की गिनती हुई थी। इनकी कुल संख्या 14 हजार 200 पाई गई। गौशाला में चारा, खाद्य सामग्री, दवा आदि की आपूर्ति करने वालों को भी यहां से रोजगार मिला है।

गौशाला में सुरक्षित रखे गए बैलों को कृषि कार्य के लिए स्थानीय किसानों को निशुल्क दिया जा रहा है। भारत की राष्ट्रपति बनने के कुछ महीने पहले द्रौपदी मुर्मू ने भी इस गौशाला का भ्रमण किया था और यहां की व्यवस्था से बेहद प्रभावित हुई थीं।

–आईएएनएस

एसएनसी/एसकेपी

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