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Home Today's Special News

हाईकोर्ट के सुझाव पर तेलंगाना के राज्यपाल और सरकार के बीच हुआ समझौता

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January 30, 2023
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हाईकोर्ट के सुझाव पर तेलंगाना के राज्यपाल और सरकार के बीच हुआ समझौता
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हैदराबाद, 30 जनवरी (आईएएनएस)। 2023-24 के राज्य के बजट को लेकर तेलंगाना की राज्यपाल तमिलिसाई सुंदरराजन और भारत राष्ट्र समिति (बीआरएस) सरकार के बीच गतिरोध को हाई कोर्ट के सुझाव पर सोमवार को बातचीत के जरिए सुलझा लिया गया।

बजट को मंजूरी देने के लिए राज्यपाल को निर्देश देने की राज्य सरकार की याचिका पर सुनवाई करते हुए अदालत ने सुझाव दिया कि दोनों पक्ष बातचीत के जरिए इस मुद्दे को सुलझाएं। कोर्ट के सुझाव पर राज्य सरकार के वकील दुष्यंत दवे और राजभवन के वकील अशोक आनंद ने बातचीत की।

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यह निर्णय लिया गया कि राज्यपाल बजट को मंजूरी देंगी और राज्य विधानसभा सत्र उनके अभिभाषण के साथ शुरू होगा। दोनों पक्षों के वकीलों ने समझौते की जानकारी अदालत को दी, सरकार ने अपनी याचिका वापस ले ली और मामला खारिज कर दिया गया।

दोनों पक्षों के रुख में नरमी आने के बाद विवाद का समाधान हुआ। सरकार राज्यपाल के अभिभाषण के साथ बजट सत्र आयोजित करने पर सहमत हुई, बजट को मंजूरी देने पर भी सहमती बनी। अदालत ने राज्य सरकार द्वारा दायर याचिका पर सुनवाई की। सुनवाई के दौरान खंडपीठ ने महाधिवक्ता से पूछा कि अदालत राज्यपाल को नोटिस कैसे दे सकती है और यह भी जानना चाहती है कि अदालत को सरकार और संवैधानिक संस्था के विवाद में क्यों घसीटा जा रहा है।

सरकार की ओर से पेश सुप्रीम कोर्ट के वकील दवे ने कहा कि जब संविधान का उल्लंघन होता है तो अदालतें हस्तक्षेप कर सकती हैं। उन्होंने सुप्रीम कोर्ट के कुछ फैसलों का हवाला दिया। हालांकि, कोर्ट ने दोनों पक्षों के वकीलों को बातचीत के जरिए मामले को सुलझाने की सलाह दी। वह दोनों सुझाव पर सहमत हुए और अंत में समझौता हो गया।

तेलंगानना विधानमंडल का बजट सत्र 3 फरवरी से शुरू होने वाला है और राज्यपाल द्वारा बजट को मंजूरी नहीं देने के कारण के. चंद्रशेखर राव के नेतृत्व वाली सरकार ने अदालत का दरवाजा खटखटाया था। सरकार ने अदालत को सूचित किया कि राज्य सरकार ने 21 जनवरी को राज्यपाल को बजट का मसौदा भेजा था, लेकिन उन्होंने अभी तक इसे मंजूरी नहीं दी है।

सरकार ने पिछले साल राज्यपाल के पारंपरिक अभिभाषण के बिना बजट पेश किया था, जिस पर विवाद हुआ था। बीआरएस सरकार ने इस आधार पर अपने कदम का बचाव किया कि यह नया सत्र नहीं था बल्कि पिछले सत्र की निरंतरता थी। विधानसभा और विधान परिषद का बजट सत्र 3 फरवरी से शुरू होना है। केवल चार दिन शेष रहने और राज्यपाल से मंजूरी नहीं मिलने के कारण सरकार ने हाई कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था।

बीआरएस नेताओं ने संकट की आशंका जताई क्योंकि विधानसभा और परिषद द्वारा पारित सात विधेयक पिछले साल सितंबर से राजभवन में पड़े हुए हैं। बजट को मंजूरी देने में राज्यपाल की देरी पर सरकार ने नाराजगी जताई। इसने तर्क दिया कि राज्यपाल का भाषण और बजट प्रस्तुति असंबंधित मामले थे। इसमें यह भी कहा गया है कि संविधान में ऐसा कोई खंड नहीं है जिसके लिए राज्यपाल को बजट सत्र को संबोधित करने की जरुरत हो।

बीआरएस सरकार ने संविधान के अनुच्छेद 202 का हवाला दिया, जिसमें कहा गया है कि राज्यपाल को एक वित्तीय वर्ष के लिए राज्य की अनुमानित प्राप्तियों और व्यय का विवरण सदन के सामने पेश करने की अनुमति देनी चाहिए। बीआरएस सरकार के कोर्ट का दरवाजा खटखटाने के साथ ही राज्यपाल और सरकार के बीच तनातनी ने नया मोड़ ले लिया था।

गणतंत्र दिवस समारोह को लेकर विवाद के बाद यह मामला सामने आया है। सरकार द्वारा राजभवन में मुख्य राजकीय समारोह आयोजित करने से राज्यपाल नाखुश थी। एक नागरिक द्वारा दायर याचिका पर, उच्च न्यायालय ने सरकार को पुलिस परेड आयोजित करने का निर्देश दिया था। सरकार ने पुलिस परेड के लिए अंतिम समय व्यवस्था की, लेकिन मुख्यमंत्री और उनके कैबिनेट सहयोगियों ने राजभवन में समारोह में भाग नहीं लिया। राज्यपाल ने उच्च न्यायालय के आदेशों का सम्मान नहीं करने के लिए सरकार को फटकार लगाई थी।

–आईएएनएस

केसी/एसकेपी

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हैदराबाद, 30 जनवरी (आईएएनएस)। 2023-24 के राज्य के बजट को लेकर तेलंगाना की राज्यपाल तमिलिसाई सुंदरराजन और भारत राष्ट्र समिति (बीआरएस) सरकार के बीच गतिरोध को हाई कोर्ट के सुझाव पर सोमवार को बातचीत के जरिए सुलझा लिया गया।

बजट को मंजूरी देने के लिए राज्यपाल को निर्देश देने की राज्य सरकार की याचिका पर सुनवाई करते हुए अदालत ने सुझाव दिया कि दोनों पक्ष बातचीत के जरिए इस मुद्दे को सुलझाएं। कोर्ट के सुझाव पर राज्य सरकार के वकील दुष्यंत दवे और राजभवन के वकील अशोक आनंद ने बातचीत की।

यह निर्णय लिया गया कि राज्यपाल बजट को मंजूरी देंगी और राज्य विधानसभा सत्र उनके अभिभाषण के साथ शुरू होगा। दोनों पक्षों के वकीलों ने समझौते की जानकारी अदालत को दी, सरकार ने अपनी याचिका वापस ले ली और मामला खारिज कर दिया गया।

दोनों पक्षों के रुख में नरमी आने के बाद विवाद का समाधान हुआ। सरकार राज्यपाल के अभिभाषण के साथ बजट सत्र आयोजित करने पर सहमत हुई, बजट को मंजूरी देने पर भी सहमती बनी। अदालत ने राज्य सरकार द्वारा दायर याचिका पर सुनवाई की। सुनवाई के दौरान खंडपीठ ने महाधिवक्ता से पूछा कि अदालत राज्यपाल को नोटिस कैसे दे सकती है और यह भी जानना चाहती है कि अदालत को सरकार और संवैधानिक संस्था के विवाद में क्यों घसीटा जा रहा है।

सरकार की ओर से पेश सुप्रीम कोर्ट के वकील दवे ने कहा कि जब संविधान का उल्लंघन होता है तो अदालतें हस्तक्षेप कर सकती हैं। उन्होंने सुप्रीम कोर्ट के कुछ फैसलों का हवाला दिया। हालांकि, कोर्ट ने दोनों पक्षों के वकीलों को बातचीत के जरिए मामले को सुलझाने की सलाह दी। वह दोनों सुझाव पर सहमत हुए और अंत में समझौता हो गया।

तेलंगानना विधानमंडल का बजट सत्र 3 फरवरी से शुरू होने वाला है और राज्यपाल द्वारा बजट को मंजूरी नहीं देने के कारण के. चंद्रशेखर राव के नेतृत्व वाली सरकार ने अदालत का दरवाजा खटखटाया था। सरकार ने अदालत को सूचित किया कि राज्य सरकार ने 21 जनवरी को राज्यपाल को बजट का मसौदा भेजा था, लेकिन उन्होंने अभी तक इसे मंजूरी नहीं दी है।

सरकार ने पिछले साल राज्यपाल के पारंपरिक अभिभाषण के बिना बजट पेश किया था, जिस पर विवाद हुआ था। बीआरएस सरकार ने इस आधार पर अपने कदम का बचाव किया कि यह नया सत्र नहीं था बल्कि पिछले सत्र की निरंतरता थी। विधानसभा और विधान परिषद का बजट सत्र 3 फरवरी से शुरू होना है। केवल चार दिन शेष रहने और राज्यपाल से मंजूरी नहीं मिलने के कारण सरकार ने हाई कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था।

बीआरएस नेताओं ने संकट की आशंका जताई क्योंकि विधानसभा और परिषद द्वारा पारित सात विधेयक पिछले साल सितंबर से राजभवन में पड़े हुए हैं। बजट को मंजूरी देने में राज्यपाल की देरी पर सरकार ने नाराजगी जताई। इसने तर्क दिया कि राज्यपाल का भाषण और बजट प्रस्तुति असंबंधित मामले थे। इसमें यह भी कहा गया है कि संविधान में ऐसा कोई खंड नहीं है जिसके लिए राज्यपाल को बजट सत्र को संबोधित करने की जरुरत हो।

बीआरएस सरकार ने संविधान के अनुच्छेद 202 का हवाला दिया, जिसमें कहा गया है कि राज्यपाल को एक वित्तीय वर्ष के लिए राज्य की अनुमानित प्राप्तियों और व्यय का विवरण सदन के सामने पेश करने की अनुमति देनी चाहिए। बीआरएस सरकार के कोर्ट का दरवाजा खटखटाने के साथ ही राज्यपाल और सरकार के बीच तनातनी ने नया मोड़ ले लिया था।

गणतंत्र दिवस समारोह को लेकर विवाद के बाद यह मामला सामने आया है। सरकार द्वारा राजभवन में मुख्य राजकीय समारोह आयोजित करने से राज्यपाल नाखुश थी। एक नागरिक द्वारा दायर याचिका पर, उच्च न्यायालय ने सरकार को पुलिस परेड आयोजित करने का निर्देश दिया था। सरकार ने पुलिस परेड के लिए अंतिम समय व्यवस्था की, लेकिन मुख्यमंत्री और उनके कैबिनेट सहयोगियों ने राजभवन में समारोह में भाग नहीं लिया। राज्यपाल ने उच्च न्यायालय के आदेशों का सम्मान नहीं करने के लिए सरकार को फटकार लगाई थी।

–आईएएनएस

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हैदराबाद, 30 जनवरी (आईएएनएस)। 2023-24 के राज्य के बजट को लेकर तेलंगाना की राज्यपाल तमिलिसाई सुंदरराजन और भारत राष्ट्र समिति (बीआरएस) सरकार के बीच गतिरोध को हाई कोर्ट के सुझाव पर सोमवार को बातचीत के जरिए सुलझा लिया गया।

बजट को मंजूरी देने के लिए राज्यपाल को निर्देश देने की राज्य सरकार की याचिका पर सुनवाई करते हुए अदालत ने सुझाव दिया कि दोनों पक्ष बातचीत के जरिए इस मुद्दे को सुलझाएं। कोर्ट के सुझाव पर राज्य सरकार के वकील दुष्यंत दवे और राजभवन के वकील अशोक आनंद ने बातचीत की।

यह निर्णय लिया गया कि राज्यपाल बजट को मंजूरी देंगी और राज्य विधानसभा सत्र उनके अभिभाषण के साथ शुरू होगा। दोनों पक्षों के वकीलों ने समझौते की जानकारी अदालत को दी, सरकार ने अपनी याचिका वापस ले ली और मामला खारिज कर दिया गया।

दोनों पक्षों के रुख में नरमी आने के बाद विवाद का समाधान हुआ। सरकार राज्यपाल के अभिभाषण के साथ बजट सत्र आयोजित करने पर सहमत हुई, बजट को मंजूरी देने पर भी सहमती बनी। अदालत ने राज्य सरकार द्वारा दायर याचिका पर सुनवाई की। सुनवाई के दौरान खंडपीठ ने महाधिवक्ता से पूछा कि अदालत राज्यपाल को नोटिस कैसे दे सकती है और यह भी जानना चाहती है कि अदालत को सरकार और संवैधानिक संस्था के विवाद में क्यों घसीटा जा रहा है।

सरकार की ओर से पेश सुप्रीम कोर्ट के वकील दवे ने कहा कि जब संविधान का उल्लंघन होता है तो अदालतें हस्तक्षेप कर सकती हैं। उन्होंने सुप्रीम कोर्ट के कुछ फैसलों का हवाला दिया। हालांकि, कोर्ट ने दोनों पक्षों के वकीलों को बातचीत के जरिए मामले को सुलझाने की सलाह दी। वह दोनों सुझाव पर सहमत हुए और अंत में समझौता हो गया।

तेलंगानना विधानमंडल का बजट सत्र 3 फरवरी से शुरू होने वाला है और राज्यपाल द्वारा बजट को मंजूरी नहीं देने के कारण के. चंद्रशेखर राव के नेतृत्व वाली सरकार ने अदालत का दरवाजा खटखटाया था। सरकार ने अदालत को सूचित किया कि राज्य सरकार ने 21 जनवरी को राज्यपाल को बजट का मसौदा भेजा था, लेकिन उन्होंने अभी तक इसे मंजूरी नहीं दी है।

सरकार ने पिछले साल राज्यपाल के पारंपरिक अभिभाषण के बिना बजट पेश किया था, जिस पर विवाद हुआ था। बीआरएस सरकार ने इस आधार पर अपने कदम का बचाव किया कि यह नया सत्र नहीं था बल्कि पिछले सत्र की निरंतरता थी। विधानसभा और विधान परिषद का बजट सत्र 3 फरवरी से शुरू होना है। केवल चार दिन शेष रहने और राज्यपाल से मंजूरी नहीं मिलने के कारण सरकार ने हाई कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था।

बीआरएस नेताओं ने संकट की आशंका जताई क्योंकि विधानसभा और परिषद द्वारा पारित सात विधेयक पिछले साल सितंबर से राजभवन में पड़े हुए हैं। बजट को मंजूरी देने में राज्यपाल की देरी पर सरकार ने नाराजगी जताई। इसने तर्क दिया कि राज्यपाल का भाषण और बजट प्रस्तुति असंबंधित मामले थे। इसमें यह भी कहा गया है कि संविधान में ऐसा कोई खंड नहीं है जिसके लिए राज्यपाल को बजट सत्र को संबोधित करने की जरुरत हो।

बीआरएस सरकार ने संविधान के अनुच्छेद 202 का हवाला दिया, जिसमें कहा गया है कि राज्यपाल को एक वित्तीय वर्ष के लिए राज्य की अनुमानित प्राप्तियों और व्यय का विवरण सदन के सामने पेश करने की अनुमति देनी चाहिए। बीआरएस सरकार के कोर्ट का दरवाजा खटखटाने के साथ ही राज्यपाल और सरकार के बीच तनातनी ने नया मोड़ ले लिया था।

गणतंत्र दिवस समारोह को लेकर विवाद के बाद यह मामला सामने आया है। सरकार द्वारा राजभवन में मुख्य राजकीय समारोह आयोजित करने से राज्यपाल नाखुश थी। एक नागरिक द्वारा दायर याचिका पर, उच्च न्यायालय ने सरकार को पुलिस परेड आयोजित करने का निर्देश दिया था। सरकार ने पुलिस परेड के लिए अंतिम समय व्यवस्था की, लेकिन मुख्यमंत्री और उनके कैबिनेट सहयोगियों ने राजभवन में समारोह में भाग नहीं लिया। राज्यपाल ने उच्च न्यायालय के आदेशों का सम्मान नहीं करने के लिए सरकार को फटकार लगाई थी।

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हैदराबाद, 30 जनवरी (आईएएनएस)। 2023-24 के राज्य के बजट को लेकर तेलंगाना की राज्यपाल तमिलिसाई सुंदरराजन और भारत राष्ट्र समिति (बीआरएस) सरकार के बीच गतिरोध को हाई कोर्ट के सुझाव पर सोमवार को बातचीत के जरिए सुलझा लिया गया।

बजट को मंजूरी देने के लिए राज्यपाल को निर्देश देने की राज्य सरकार की याचिका पर सुनवाई करते हुए अदालत ने सुझाव दिया कि दोनों पक्ष बातचीत के जरिए इस मुद्दे को सुलझाएं। कोर्ट के सुझाव पर राज्य सरकार के वकील दुष्यंत दवे और राजभवन के वकील अशोक आनंद ने बातचीत की।

यह निर्णय लिया गया कि राज्यपाल बजट को मंजूरी देंगी और राज्य विधानसभा सत्र उनके अभिभाषण के साथ शुरू होगा। दोनों पक्षों के वकीलों ने समझौते की जानकारी अदालत को दी, सरकार ने अपनी याचिका वापस ले ली और मामला खारिज कर दिया गया।

दोनों पक्षों के रुख में नरमी आने के बाद विवाद का समाधान हुआ। सरकार राज्यपाल के अभिभाषण के साथ बजट सत्र आयोजित करने पर सहमत हुई, बजट को मंजूरी देने पर भी सहमती बनी। अदालत ने राज्य सरकार द्वारा दायर याचिका पर सुनवाई की। सुनवाई के दौरान खंडपीठ ने महाधिवक्ता से पूछा कि अदालत राज्यपाल को नोटिस कैसे दे सकती है और यह भी जानना चाहती है कि अदालत को सरकार और संवैधानिक संस्था के विवाद में क्यों घसीटा जा रहा है।

सरकार की ओर से पेश सुप्रीम कोर्ट के वकील दवे ने कहा कि जब संविधान का उल्लंघन होता है तो अदालतें हस्तक्षेप कर सकती हैं। उन्होंने सुप्रीम कोर्ट के कुछ फैसलों का हवाला दिया। हालांकि, कोर्ट ने दोनों पक्षों के वकीलों को बातचीत के जरिए मामले को सुलझाने की सलाह दी। वह दोनों सुझाव पर सहमत हुए और अंत में समझौता हो गया।

तेलंगानना विधानमंडल का बजट सत्र 3 फरवरी से शुरू होने वाला है और राज्यपाल द्वारा बजट को मंजूरी नहीं देने के कारण के. चंद्रशेखर राव के नेतृत्व वाली सरकार ने अदालत का दरवाजा खटखटाया था। सरकार ने अदालत को सूचित किया कि राज्य सरकार ने 21 जनवरी को राज्यपाल को बजट का मसौदा भेजा था, लेकिन उन्होंने अभी तक इसे मंजूरी नहीं दी है।

सरकार ने पिछले साल राज्यपाल के पारंपरिक अभिभाषण के बिना बजट पेश किया था, जिस पर विवाद हुआ था। बीआरएस सरकार ने इस आधार पर अपने कदम का बचाव किया कि यह नया सत्र नहीं था बल्कि पिछले सत्र की निरंतरता थी। विधानसभा और विधान परिषद का बजट सत्र 3 फरवरी से शुरू होना है। केवल चार दिन शेष रहने और राज्यपाल से मंजूरी नहीं मिलने के कारण सरकार ने हाई कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था।

बीआरएस नेताओं ने संकट की आशंका जताई क्योंकि विधानसभा और परिषद द्वारा पारित सात विधेयक पिछले साल सितंबर से राजभवन में पड़े हुए हैं। बजट को मंजूरी देने में राज्यपाल की देरी पर सरकार ने नाराजगी जताई। इसने तर्क दिया कि राज्यपाल का भाषण और बजट प्रस्तुति असंबंधित मामले थे। इसमें यह भी कहा गया है कि संविधान में ऐसा कोई खंड नहीं है जिसके लिए राज्यपाल को बजट सत्र को संबोधित करने की जरुरत हो।

बीआरएस सरकार ने संविधान के अनुच्छेद 202 का हवाला दिया, जिसमें कहा गया है कि राज्यपाल को एक वित्तीय वर्ष के लिए राज्य की अनुमानित प्राप्तियों और व्यय का विवरण सदन के सामने पेश करने की अनुमति देनी चाहिए। बीआरएस सरकार के कोर्ट का दरवाजा खटखटाने के साथ ही राज्यपाल और सरकार के बीच तनातनी ने नया मोड़ ले लिया था।

गणतंत्र दिवस समारोह को लेकर विवाद के बाद यह मामला सामने आया है। सरकार द्वारा राजभवन में मुख्य राजकीय समारोह आयोजित करने से राज्यपाल नाखुश थी। एक नागरिक द्वारा दायर याचिका पर, उच्च न्यायालय ने सरकार को पुलिस परेड आयोजित करने का निर्देश दिया था। सरकार ने पुलिस परेड के लिए अंतिम समय व्यवस्था की, लेकिन मुख्यमंत्री और उनके कैबिनेट सहयोगियों ने राजभवन में समारोह में भाग नहीं लिया। राज्यपाल ने उच्च न्यायालय के आदेशों का सम्मान नहीं करने के लिए सरकार को फटकार लगाई थी।

–आईएएनएस

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हैदराबाद, 30 जनवरी (आईएएनएस)। 2023-24 के राज्य के बजट को लेकर तेलंगाना की राज्यपाल तमिलिसाई सुंदरराजन और भारत राष्ट्र समिति (बीआरएस) सरकार के बीच गतिरोध को हाई कोर्ट के सुझाव पर सोमवार को बातचीत के जरिए सुलझा लिया गया।

बजट को मंजूरी देने के लिए राज्यपाल को निर्देश देने की राज्य सरकार की याचिका पर सुनवाई करते हुए अदालत ने सुझाव दिया कि दोनों पक्ष बातचीत के जरिए इस मुद्दे को सुलझाएं। कोर्ट के सुझाव पर राज्य सरकार के वकील दुष्यंत दवे और राजभवन के वकील अशोक आनंद ने बातचीत की।

यह निर्णय लिया गया कि राज्यपाल बजट को मंजूरी देंगी और राज्य विधानसभा सत्र उनके अभिभाषण के साथ शुरू होगा। दोनों पक्षों के वकीलों ने समझौते की जानकारी अदालत को दी, सरकार ने अपनी याचिका वापस ले ली और मामला खारिज कर दिया गया।

दोनों पक्षों के रुख में नरमी आने के बाद विवाद का समाधान हुआ। सरकार राज्यपाल के अभिभाषण के साथ बजट सत्र आयोजित करने पर सहमत हुई, बजट को मंजूरी देने पर भी सहमती बनी। अदालत ने राज्य सरकार द्वारा दायर याचिका पर सुनवाई की। सुनवाई के दौरान खंडपीठ ने महाधिवक्ता से पूछा कि अदालत राज्यपाल को नोटिस कैसे दे सकती है और यह भी जानना चाहती है कि अदालत को सरकार और संवैधानिक संस्था के विवाद में क्यों घसीटा जा रहा है।

सरकार की ओर से पेश सुप्रीम कोर्ट के वकील दवे ने कहा कि जब संविधान का उल्लंघन होता है तो अदालतें हस्तक्षेप कर सकती हैं। उन्होंने सुप्रीम कोर्ट के कुछ फैसलों का हवाला दिया। हालांकि, कोर्ट ने दोनों पक्षों के वकीलों को बातचीत के जरिए मामले को सुलझाने की सलाह दी। वह दोनों सुझाव पर सहमत हुए और अंत में समझौता हो गया।

तेलंगानना विधानमंडल का बजट सत्र 3 फरवरी से शुरू होने वाला है और राज्यपाल द्वारा बजट को मंजूरी नहीं देने के कारण के. चंद्रशेखर राव के नेतृत्व वाली सरकार ने अदालत का दरवाजा खटखटाया था। सरकार ने अदालत को सूचित किया कि राज्य सरकार ने 21 जनवरी को राज्यपाल को बजट का मसौदा भेजा था, लेकिन उन्होंने अभी तक इसे मंजूरी नहीं दी है।

सरकार ने पिछले साल राज्यपाल के पारंपरिक अभिभाषण के बिना बजट पेश किया था, जिस पर विवाद हुआ था। बीआरएस सरकार ने इस आधार पर अपने कदम का बचाव किया कि यह नया सत्र नहीं था बल्कि पिछले सत्र की निरंतरता थी। विधानसभा और विधान परिषद का बजट सत्र 3 फरवरी से शुरू होना है। केवल चार दिन शेष रहने और राज्यपाल से मंजूरी नहीं मिलने के कारण सरकार ने हाई कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था।

बीआरएस नेताओं ने संकट की आशंका जताई क्योंकि विधानसभा और परिषद द्वारा पारित सात विधेयक पिछले साल सितंबर से राजभवन में पड़े हुए हैं। बजट को मंजूरी देने में राज्यपाल की देरी पर सरकार ने नाराजगी जताई। इसने तर्क दिया कि राज्यपाल का भाषण और बजट प्रस्तुति असंबंधित मामले थे। इसमें यह भी कहा गया है कि संविधान में ऐसा कोई खंड नहीं है जिसके लिए राज्यपाल को बजट सत्र को संबोधित करने की जरुरत हो।

बीआरएस सरकार ने संविधान के अनुच्छेद 202 का हवाला दिया, जिसमें कहा गया है कि राज्यपाल को एक वित्तीय वर्ष के लिए राज्य की अनुमानित प्राप्तियों और व्यय का विवरण सदन के सामने पेश करने की अनुमति देनी चाहिए। बीआरएस सरकार के कोर्ट का दरवाजा खटखटाने के साथ ही राज्यपाल और सरकार के बीच तनातनी ने नया मोड़ ले लिया था।

गणतंत्र दिवस समारोह को लेकर विवाद के बाद यह मामला सामने आया है। सरकार द्वारा राजभवन में मुख्य राजकीय समारोह आयोजित करने से राज्यपाल नाखुश थी। एक नागरिक द्वारा दायर याचिका पर, उच्च न्यायालय ने सरकार को पुलिस परेड आयोजित करने का निर्देश दिया था। सरकार ने पुलिस परेड के लिए अंतिम समय व्यवस्था की, लेकिन मुख्यमंत्री और उनके कैबिनेट सहयोगियों ने राजभवन में समारोह में भाग नहीं लिया। राज्यपाल ने उच्च न्यायालय के आदेशों का सम्मान नहीं करने के लिए सरकार को फटकार लगाई थी।

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बजट को मंजूरी देने के लिए राज्यपाल को निर्देश देने की राज्य सरकार की याचिका पर सुनवाई करते हुए अदालत ने सुझाव दिया कि दोनों पक्ष बातचीत के जरिए इस मुद्दे को सुलझाएं। कोर्ट के सुझाव पर राज्य सरकार के वकील दुष्यंत दवे और राजभवन के वकील अशोक आनंद ने बातचीत की।

यह निर्णय लिया गया कि राज्यपाल बजट को मंजूरी देंगी और राज्य विधानसभा सत्र उनके अभिभाषण के साथ शुरू होगा। दोनों पक्षों के वकीलों ने समझौते की जानकारी अदालत को दी, सरकार ने अपनी याचिका वापस ले ली और मामला खारिज कर दिया गया।

दोनों पक्षों के रुख में नरमी आने के बाद विवाद का समाधान हुआ। सरकार राज्यपाल के अभिभाषण के साथ बजट सत्र आयोजित करने पर सहमत हुई, बजट को मंजूरी देने पर भी सहमती बनी। अदालत ने राज्य सरकार द्वारा दायर याचिका पर सुनवाई की। सुनवाई के दौरान खंडपीठ ने महाधिवक्ता से पूछा कि अदालत राज्यपाल को नोटिस कैसे दे सकती है और यह भी जानना चाहती है कि अदालत को सरकार और संवैधानिक संस्था के विवाद में क्यों घसीटा जा रहा है।

सरकार की ओर से पेश सुप्रीम कोर्ट के वकील दवे ने कहा कि जब संविधान का उल्लंघन होता है तो अदालतें हस्तक्षेप कर सकती हैं। उन्होंने सुप्रीम कोर्ट के कुछ फैसलों का हवाला दिया। हालांकि, कोर्ट ने दोनों पक्षों के वकीलों को बातचीत के जरिए मामले को सुलझाने की सलाह दी। वह दोनों सुझाव पर सहमत हुए और अंत में समझौता हो गया।

तेलंगानना विधानमंडल का बजट सत्र 3 फरवरी से शुरू होने वाला है और राज्यपाल द्वारा बजट को मंजूरी नहीं देने के कारण के. चंद्रशेखर राव के नेतृत्व वाली सरकार ने अदालत का दरवाजा खटखटाया था। सरकार ने अदालत को सूचित किया कि राज्य सरकार ने 21 जनवरी को राज्यपाल को बजट का मसौदा भेजा था, लेकिन उन्होंने अभी तक इसे मंजूरी नहीं दी है।

सरकार ने पिछले साल राज्यपाल के पारंपरिक अभिभाषण के बिना बजट पेश किया था, जिस पर विवाद हुआ था। बीआरएस सरकार ने इस आधार पर अपने कदम का बचाव किया कि यह नया सत्र नहीं था बल्कि पिछले सत्र की निरंतरता थी। विधानसभा और विधान परिषद का बजट सत्र 3 फरवरी से शुरू होना है। केवल चार दिन शेष रहने और राज्यपाल से मंजूरी नहीं मिलने के कारण सरकार ने हाई कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था।

बीआरएस नेताओं ने संकट की आशंका जताई क्योंकि विधानसभा और परिषद द्वारा पारित सात विधेयक पिछले साल सितंबर से राजभवन में पड़े हुए हैं। बजट को मंजूरी देने में राज्यपाल की देरी पर सरकार ने नाराजगी जताई। इसने तर्क दिया कि राज्यपाल का भाषण और बजट प्रस्तुति असंबंधित मामले थे। इसमें यह भी कहा गया है कि संविधान में ऐसा कोई खंड नहीं है जिसके लिए राज्यपाल को बजट सत्र को संबोधित करने की जरुरत हो।

बीआरएस सरकार ने संविधान के अनुच्छेद 202 का हवाला दिया, जिसमें कहा गया है कि राज्यपाल को एक वित्तीय वर्ष के लिए राज्य की अनुमानित प्राप्तियों और व्यय का विवरण सदन के सामने पेश करने की अनुमति देनी चाहिए। बीआरएस सरकार के कोर्ट का दरवाजा खटखटाने के साथ ही राज्यपाल और सरकार के बीच तनातनी ने नया मोड़ ले लिया था।

गणतंत्र दिवस समारोह को लेकर विवाद के बाद यह मामला सामने आया है। सरकार द्वारा राजभवन में मुख्य राजकीय समारोह आयोजित करने से राज्यपाल नाखुश थी। एक नागरिक द्वारा दायर याचिका पर, उच्च न्यायालय ने सरकार को पुलिस परेड आयोजित करने का निर्देश दिया था। सरकार ने पुलिस परेड के लिए अंतिम समय व्यवस्था की, लेकिन मुख्यमंत्री और उनके कैबिनेट सहयोगियों ने राजभवन में समारोह में भाग नहीं लिया। राज्यपाल ने उच्च न्यायालय के आदेशों का सम्मान नहीं करने के लिए सरकार को फटकार लगाई थी।

–आईएएनएस

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हैदराबाद, 30 जनवरी (आईएएनएस)। 2023-24 के राज्य के बजट को लेकर तेलंगाना की राज्यपाल तमिलिसाई सुंदरराजन और भारत राष्ट्र समिति (बीआरएस) सरकार के बीच गतिरोध को हाई कोर्ट के सुझाव पर सोमवार को बातचीत के जरिए सुलझा लिया गया।

बजट को मंजूरी देने के लिए राज्यपाल को निर्देश देने की राज्य सरकार की याचिका पर सुनवाई करते हुए अदालत ने सुझाव दिया कि दोनों पक्ष बातचीत के जरिए इस मुद्दे को सुलझाएं। कोर्ट के सुझाव पर राज्य सरकार के वकील दुष्यंत दवे और राजभवन के वकील अशोक आनंद ने बातचीत की।

यह निर्णय लिया गया कि राज्यपाल बजट को मंजूरी देंगी और राज्य विधानसभा सत्र उनके अभिभाषण के साथ शुरू होगा। दोनों पक्षों के वकीलों ने समझौते की जानकारी अदालत को दी, सरकार ने अपनी याचिका वापस ले ली और मामला खारिज कर दिया गया।

दोनों पक्षों के रुख में नरमी आने के बाद विवाद का समाधान हुआ। सरकार राज्यपाल के अभिभाषण के साथ बजट सत्र आयोजित करने पर सहमत हुई, बजट को मंजूरी देने पर भी सहमती बनी। अदालत ने राज्य सरकार द्वारा दायर याचिका पर सुनवाई की। सुनवाई के दौरान खंडपीठ ने महाधिवक्ता से पूछा कि अदालत राज्यपाल को नोटिस कैसे दे सकती है और यह भी जानना चाहती है कि अदालत को सरकार और संवैधानिक संस्था के विवाद में क्यों घसीटा जा रहा है।

सरकार की ओर से पेश सुप्रीम कोर्ट के वकील दवे ने कहा कि जब संविधान का उल्लंघन होता है तो अदालतें हस्तक्षेप कर सकती हैं। उन्होंने सुप्रीम कोर्ट के कुछ फैसलों का हवाला दिया। हालांकि, कोर्ट ने दोनों पक्षों के वकीलों को बातचीत के जरिए मामले को सुलझाने की सलाह दी। वह दोनों सुझाव पर सहमत हुए और अंत में समझौता हो गया।

तेलंगानना विधानमंडल का बजट सत्र 3 फरवरी से शुरू होने वाला है और राज्यपाल द्वारा बजट को मंजूरी नहीं देने के कारण के. चंद्रशेखर राव के नेतृत्व वाली सरकार ने अदालत का दरवाजा खटखटाया था। सरकार ने अदालत को सूचित किया कि राज्य सरकार ने 21 जनवरी को राज्यपाल को बजट का मसौदा भेजा था, लेकिन उन्होंने अभी तक इसे मंजूरी नहीं दी है।

सरकार ने पिछले साल राज्यपाल के पारंपरिक अभिभाषण के बिना बजट पेश किया था, जिस पर विवाद हुआ था। बीआरएस सरकार ने इस आधार पर अपने कदम का बचाव किया कि यह नया सत्र नहीं था बल्कि पिछले सत्र की निरंतरता थी। विधानसभा और विधान परिषद का बजट सत्र 3 फरवरी से शुरू होना है। केवल चार दिन शेष रहने और राज्यपाल से मंजूरी नहीं मिलने के कारण सरकार ने हाई कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था।

बीआरएस नेताओं ने संकट की आशंका जताई क्योंकि विधानसभा और परिषद द्वारा पारित सात विधेयक पिछले साल सितंबर से राजभवन में पड़े हुए हैं। बजट को मंजूरी देने में राज्यपाल की देरी पर सरकार ने नाराजगी जताई। इसने तर्क दिया कि राज्यपाल का भाषण और बजट प्रस्तुति असंबंधित मामले थे। इसमें यह भी कहा गया है कि संविधान में ऐसा कोई खंड नहीं है जिसके लिए राज्यपाल को बजट सत्र को संबोधित करने की जरुरत हो।

बीआरएस सरकार ने संविधान के अनुच्छेद 202 का हवाला दिया, जिसमें कहा गया है कि राज्यपाल को एक वित्तीय वर्ष के लिए राज्य की अनुमानित प्राप्तियों और व्यय का विवरण सदन के सामने पेश करने की अनुमति देनी चाहिए। बीआरएस सरकार के कोर्ट का दरवाजा खटखटाने के साथ ही राज्यपाल और सरकार के बीच तनातनी ने नया मोड़ ले लिया था।

गणतंत्र दिवस समारोह को लेकर विवाद के बाद यह मामला सामने आया है। सरकार द्वारा राजभवन में मुख्य राजकीय समारोह आयोजित करने से राज्यपाल नाखुश थी। एक नागरिक द्वारा दायर याचिका पर, उच्च न्यायालय ने सरकार को पुलिस परेड आयोजित करने का निर्देश दिया था। सरकार ने पुलिस परेड के लिए अंतिम समय व्यवस्था की, लेकिन मुख्यमंत्री और उनके कैबिनेट सहयोगियों ने राजभवन में समारोह में भाग नहीं लिया। राज्यपाल ने उच्च न्यायालय के आदेशों का सम्मान नहीं करने के लिए सरकार को फटकार लगाई थी।

–आईएएनएस

केसी/एसकेपी

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हैदराबाद, 30 जनवरी (आईएएनएस)। 2023-24 के राज्य के बजट को लेकर तेलंगाना की राज्यपाल तमिलिसाई सुंदरराजन और भारत राष्ट्र समिति (बीआरएस) सरकार के बीच गतिरोध को हाई कोर्ट के सुझाव पर सोमवार को बातचीत के जरिए सुलझा लिया गया।

बजट को मंजूरी देने के लिए राज्यपाल को निर्देश देने की राज्य सरकार की याचिका पर सुनवाई करते हुए अदालत ने सुझाव दिया कि दोनों पक्ष बातचीत के जरिए इस मुद्दे को सुलझाएं। कोर्ट के सुझाव पर राज्य सरकार के वकील दुष्यंत दवे और राजभवन के वकील अशोक आनंद ने बातचीत की।

यह निर्णय लिया गया कि राज्यपाल बजट को मंजूरी देंगी और राज्य विधानसभा सत्र उनके अभिभाषण के साथ शुरू होगा। दोनों पक्षों के वकीलों ने समझौते की जानकारी अदालत को दी, सरकार ने अपनी याचिका वापस ले ली और मामला खारिज कर दिया गया।

दोनों पक्षों के रुख में नरमी आने के बाद विवाद का समाधान हुआ। सरकार राज्यपाल के अभिभाषण के साथ बजट सत्र आयोजित करने पर सहमत हुई, बजट को मंजूरी देने पर भी सहमती बनी। अदालत ने राज्य सरकार द्वारा दायर याचिका पर सुनवाई की। सुनवाई के दौरान खंडपीठ ने महाधिवक्ता से पूछा कि अदालत राज्यपाल को नोटिस कैसे दे सकती है और यह भी जानना चाहती है कि अदालत को सरकार और संवैधानिक संस्था के विवाद में क्यों घसीटा जा रहा है।

सरकार की ओर से पेश सुप्रीम कोर्ट के वकील दवे ने कहा कि जब संविधान का उल्लंघन होता है तो अदालतें हस्तक्षेप कर सकती हैं। उन्होंने सुप्रीम कोर्ट के कुछ फैसलों का हवाला दिया। हालांकि, कोर्ट ने दोनों पक्षों के वकीलों को बातचीत के जरिए मामले को सुलझाने की सलाह दी। वह दोनों सुझाव पर सहमत हुए और अंत में समझौता हो गया।

तेलंगानना विधानमंडल का बजट सत्र 3 फरवरी से शुरू होने वाला है और राज्यपाल द्वारा बजट को मंजूरी नहीं देने के कारण के. चंद्रशेखर राव के नेतृत्व वाली सरकार ने अदालत का दरवाजा खटखटाया था। सरकार ने अदालत को सूचित किया कि राज्य सरकार ने 21 जनवरी को राज्यपाल को बजट का मसौदा भेजा था, लेकिन उन्होंने अभी तक इसे मंजूरी नहीं दी है।

सरकार ने पिछले साल राज्यपाल के पारंपरिक अभिभाषण के बिना बजट पेश किया था, जिस पर विवाद हुआ था। बीआरएस सरकार ने इस आधार पर अपने कदम का बचाव किया कि यह नया सत्र नहीं था बल्कि पिछले सत्र की निरंतरता थी। विधानसभा और विधान परिषद का बजट सत्र 3 फरवरी से शुरू होना है। केवल चार दिन शेष रहने और राज्यपाल से मंजूरी नहीं मिलने के कारण सरकार ने हाई कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था।

बीआरएस नेताओं ने संकट की आशंका जताई क्योंकि विधानसभा और परिषद द्वारा पारित सात विधेयक पिछले साल सितंबर से राजभवन में पड़े हुए हैं। बजट को मंजूरी देने में राज्यपाल की देरी पर सरकार ने नाराजगी जताई। इसने तर्क दिया कि राज्यपाल का भाषण और बजट प्रस्तुति असंबंधित मामले थे। इसमें यह भी कहा गया है कि संविधान में ऐसा कोई खंड नहीं है जिसके लिए राज्यपाल को बजट सत्र को संबोधित करने की जरुरत हो।

बीआरएस सरकार ने संविधान के अनुच्छेद 202 का हवाला दिया, जिसमें कहा गया है कि राज्यपाल को एक वित्तीय वर्ष के लिए राज्य की अनुमानित प्राप्तियों और व्यय का विवरण सदन के सामने पेश करने की अनुमति देनी चाहिए। बीआरएस सरकार के कोर्ट का दरवाजा खटखटाने के साथ ही राज्यपाल और सरकार के बीच तनातनी ने नया मोड़ ले लिया था।

गणतंत्र दिवस समारोह को लेकर विवाद के बाद यह मामला सामने आया है। सरकार द्वारा राजभवन में मुख्य राजकीय समारोह आयोजित करने से राज्यपाल नाखुश थी। एक नागरिक द्वारा दायर याचिका पर, उच्च न्यायालय ने सरकार को पुलिस परेड आयोजित करने का निर्देश दिया था। सरकार ने पुलिस परेड के लिए अंतिम समय व्यवस्था की, लेकिन मुख्यमंत्री और उनके कैबिनेट सहयोगियों ने राजभवन में समारोह में भाग नहीं लिया। राज्यपाल ने उच्च न्यायालय के आदेशों का सम्मान नहीं करने के लिए सरकार को फटकार लगाई थी।

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हैदराबाद, 30 जनवरी (आईएएनएस)। 2023-24 के राज्य के बजट को लेकर तेलंगाना की राज्यपाल तमिलिसाई सुंदरराजन और भारत राष्ट्र समिति (बीआरएस) सरकार के बीच गतिरोध को हाई कोर्ट के सुझाव पर सोमवार को बातचीत के जरिए सुलझा लिया गया।

बजट को मंजूरी देने के लिए राज्यपाल को निर्देश देने की राज्य सरकार की याचिका पर सुनवाई करते हुए अदालत ने सुझाव दिया कि दोनों पक्ष बातचीत के जरिए इस मुद्दे को सुलझाएं। कोर्ट के सुझाव पर राज्य सरकार के वकील दुष्यंत दवे और राजभवन के वकील अशोक आनंद ने बातचीत की।

यह निर्णय लिया गया कि राज्यपाल बजट को मंजूरी देंगी और राज्य विधानसभा सत्र उनके अभिभाषण के साथ शुरू होगा। दोनों पक्षों के वकीलों ने समझौते की जानकारी अदालत को दी, सरकार ने अपनी याचिका वापस ले ली और मामला खारिज कर दिया गया।

दोनों पक्षों के रुख में नरमी आने के बाद विवाद का समाधान हुआ। सरकार राज्यपाल के अभिभाषण के साथ बजट सत्र आयोजित करने पर सहमत हुई, बजट को मंजूरी देने पर भी सहमती बनी। अदालत ने राज्य सरकार द्वारा दायर याचिका पर सुनवाई की। सुनवाई के दौरान खंडपीठ ने महाधिवक्ता से पूछा कि अदालत राज्यपाल को नोटिस कैसे दे सकती है और यह भी जानना चाहती है कि अदालत को सरकार और संवैधानिक संस्था के विवाद में क्यों घसीटा जा रहा है।

सरकार की ओर से पेश सुप्रीम कोर्ट के वकील दवे ने कहा कि जब संविधान का उल्लंघन होता है तो अदालतें हस्तक्षेप कर सकती हैं। उन्होंने सुप्रीम कोर्ट के कुछ फैसलों का हवाला दिया। हालांकि, कोर्ट ने दोनों पक्षों के वकीलों को बातचीत के जरिए मामले को सुलझाने की सलाह दी। वह दोनों सुझाव पर सहमत हुए और अंत में समझौता हो गया।

तेलंगानना विधानमंडल का बजट सत्र 3 फरवरी से शुरू होने वाला है और राज्यपाल द्वारा बजट को मंजूरी नहीं देने के कारण के. चंद्रशेखर राव के नेतृत्व वाली सरकार ने अदालत का दरवाजा खटखटाया था। सरकार ने अदालत को सूचित किया कि राज्य सरकार ने 21 जनवरी को राज्यपाल को बजट का मसौदा भेजा था, लेकिन उन्होंने अभी तक इसे मंजूरी नहीं दी है।

सरकार ने पिछले साल राज्यपाल के पारंपरिक अभिभाषण के बिना बजट पेश किया था, जिस पर विवाद हुआ था। बीआरएस सरकार ने इस आधार पर अपने कदम का बचाव किया कि यह नया सत्र नहीं था बल्कि पिछले सत्र की निरंतरता थी। विधानसभा और विधान परिषद का बजट सत्र 3 फरवरी से शुरू होना है। केवल चार दिन शेष रहने और राज्यपाल से मंजूरी नहीं मिलने के कारण सरकार ने हाई कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था।

बीआरएस नेताओं ने संकट की आशंका जताई क्योंकि विधानसभा और परिषद द्वारा पारित सात विधेयक पिछले साल सितंबर से राजभवन में पड़े हुए हैं। बजट को मंजूरी देने में राज्यपाल की देरी पर सरकार ने नाराजगी जताई। इसने तर्क दिया कि राज्यपाल का भाषण और बजट प्रस्तुति असंबंधित मामले थे। इसमें यह भी कहा गया है कि संविधान में ऐसा कोई खंड नहीं है जिसके लिए राज्यपाल को बजट सत्र को संबोधित करने की जरुरत हो।

बीआरएस सरकार ने संविधान के अनुच्छेद 202 का हवाला दिया, जिसमें कहा गया है कि राज्यपाल को एक वित्तीय वर्ष के लिए राज्य की अनुमानित प्राप्तियों और व्यय का विवरण सदन के सामने पेश करने की अनुमति देनी चाहिए। बीआरएस सरकार के कोर्ट का दरवाजा खटखटाने के साथ ही राज्यपाल और सरकार के बीच तनातनी ने नया मोड़ ले लिया था।

गणतंत्र दिवस समारोह को लेकर विवाद के बाद यह मामला सामने आया है। सरकार द्वारा राजभवन में मुख्य राजकीय समारोह आयोजित करने से राज्यपाल नाखुश थी। एक नागरिक द्वारा दायर याचिका पर, उच्च न्यायालय ने सरकार को पुलिस परेड आयोजित करने का निर्देश दिया था। सरकार ने पुलिस परेड के लिए अंतिम समय व्यवस्था की, लेकिन मुख्यमंत्री और उनके कैबिनेट सहयोगियों ने राजभवन में समारोह में भाग नहीं लिया। राज्यपाल ने उच्च न्यायालय के आदेशों का सम्मान नहीं करने के लिए सरकार को फटकार लगाई थी।

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बजट को मंजूरी देने के लिए राज्यपाल को निर्देश देने की राज्य सरकार की याचिका पर सुनवाई करते हुए अदालत ने सुझाव दिया कि दोनों पक्ष बातचीत के जरिए इस मुद्दे को सुलझाएं। कोर्ट के सुझाव पर राज्य सरकार के वकील दुष्यंत दवे और राजभवन के वकील अशोक आनंद ने बातचीत की।

यह निर्णय लिया गया कि राज्यपाल बजट को मंजूरी देंगी और राज्य विधानसभा सत्र उनके अभिभाषण के साथ शुरू होगा। दोनों पक्षों के वकीलों ने समझौते की जानकारी अदालत को दी, सरकार ने अपनी याचिका वापस ले ली और मामला खारिज कर दिया गया।

दोनों पक्षों के रुख में नरमी आने के बाद विवाद का समाधान हुआ। सरकार राज्यपाल के अभिभाषण के साथ बजट सत्र आयोजित करने पर सहमत हुई, बजट को मंजूरी देने पर भी सहमती बनी। अदालत ने राज्य सरकार द्वारा दायर याचिका पर सुनवाई की। सुनवाई के दौरान खंडपीठ ने महाधिवक्ता से पूछा कि अदालत राज्यपाल को नोटिस कैसे दे सकती है और यह भी जानना चाहती है कि अदालत को सरकार और संवैधानिक संस्था के विवाद में क्यों घसीटा जा रहा है।

सरकार की ओर से पेश सुप्रीम कोर्ट के वकील दवे ने कहा कि जब संविधान का उल्लंघन होता है तो अदालतें हस्तक्षेप कर सकती हैं। उन्होंने सुप्रीम कोर्ट के कुछ फैसलों का हवाला दिया। हालांकि, कोर्ट ने दोनों पक्षों के वकीलों को बातचीत के जरिए मामले को सुलझाने की सलाह दी। वह दोनों सुझाव पर सहमत हुए और अंत में समझौता हो गया।

तेलंगानना विधानमंडल का बजट सत्र 3 फरवरी से शुरू होने वाला है और राज्यपाल द्वारा बजट को मंजूरी नहीं देने के कारण के. चंद्रशेखर राव के नेतृत्व वाली सरकार ने अदालत का दरवाजा खटखटाया था। सरकार ने अदालत को सूचित किया कि राज्य सरकार ने 21 जनवरी को राज्यपाल को बजट का मसौदा भेजा था, लेकिन उन्होंने अभी तक इसे मंजूरी नहीं दी है।

सरकार ने पिछले साल राज्यपाल के पारंपरिक अभिभाषण के बिना बजट पेश किया था, जिस पर विवाद हुआ था। बीआरएस सरकार ने इस आधार पर अपने कदम का बचाव किया कि यह नया सत्र नहीं था बल्कि पिछले सत्र की निरंतरता थी। विधानसभा और विधान परिषद का बजट सत्र 3 फरवरी से शुरू होना है। केवल चार दिन शेष रहने और राज्यपाल से मंजूरी नहीं मिलने के कारण सरकार ने हाई कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था।

बीआरएस नेताओं ने संकट की आशंका जताई क्योंकि विधानसभा और परिषद द्वारा पारित सात विधेयक पिछले साल सितंबर से राजभवन में पड़े हुए हैं। बजट को मंजूरी देने में राज्यपाल की देरी पर सरकार ने नाराजगी जताई। इसने तर्क दिया कि राज्यपाल का भाषण और बजट प्रस्तुति असंबंधित मामले थे। इसमें यह भी कहा गया है कि संविधान में ऐसा कोई खंड नहीं है जिसके लिए राज्यपाल को बजट सत्र को संबोधित करने की जरुरत हो।

बीआरएस सरकार ने संविधान के अनुच्छेद 202 का हवाला दिया, जिसमें कहा गया है कि राज्यपाल को एक वित्तीय वर्ष के लिए राज्य की अनुमानित प्राप्तियों और व्यय का विवरण सदन के सामने पेश करने की अनुमति देनी चाहिए। बीआरएस सरकार के कोर्ट का दरवाजा खटखटाने के साथ ही राज्यपाल और सरकार के बीच तनातनी ने नया मोड़ ले लिया था।

गणतंत्र दिवस समारोह को लेकर विवाद के बाद यह मामला सामने आया है। सरकार द्वारा राजभवन में मुख्य राजकीय समारोह आयोजित करने से राज्यपाल नाखुश थी। एक नागरिक द्वारा दायर याचिका पर, उच्च न्यायालय ने सरकार को पुलिस परेड आयोजित करने का निर्देश दिया था। सरकार ने पुलिस परेड के लिए अंतिम समय व्यवस्था की, लेकिन मुख्यमंत्री और उनके कैबिनेट सहयोगियों ने राजभवन में समारोह में भाग नहीं लिया। राज्यपाल ने उच्च न्यायालय के आदेशों का सम्मान नहीं करने के लिए सरकार को फटकार लगाई थी।

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हैदराबाद, 30 जनवरी (आईएएनएस)। 2023-24 के राज्य के बजट को लेकर तेलंगाना की राज्यपाल तमिलिसाई सुंदरराजन और भारत राष्ट्र समिति (बीआरएस) सरकार के बीच गतिरोध को हाई कोर्ट के सुझाव पर सोमवार को बातचीत के जरिए सुलझा लिया गया।

बजट को मंजूरी देने के लिए राज्यपाल को निर्देश देने की राज्य सरकार की याचिका पर सुनवाई करते हुए अदालत ने सुझाव दिया कि दोनों पक्ष बातचीत के जरिए इस मुद्दे को सुलझाएं। कोर्ट के सुझाव पर राज्य सरकार के वकील दुष्यंत दवे और राजभवन के वकील अशोक आनंद ने बातचीत की।

यह निर्णय लिया गया कि राज्यपाल बजट को मंजूरी देंगी और राज्य विधानसभा सत्र उनके अभिभाषण के साथ शुरू होगा। दोनों पक्षों के वकीलों ने समझौते की जानकारी अदालत को दी, सरकार ने अपनी याचिका वापस ले ली और मामला खारिज कर दिया गया।

दोनों पक्षों के रुख में नरमी आने के बाद विवाद का समाधान हुआ। सरकार राज्यपाल के अभिभाषण के साथ बजट सत्र आयोजित करने पर सहमत हुई, बजट को मंजूरी देने पर भी सहमती बनी। अदालत ने राज्य सरकार द्वारा दायर याचिका पर सुनवाई की। सुनवाई के दौरान खंडपीठ ने महाधिवक्ता से पूछा कि अदालत राज्यपाल को नोटिस कैसे दे सकती है और यह भी जानना चाहती है कि अदालत को सरकार और संवैधानिक संस्था के विवाद में क्यों घसीटा जा रहा है।

सरकार की ओर से पेश सुप्रीम कोर्ट के वकील दवे ने कहा कि जब संविधान का उल्लंघन होता है तो अदालतें हस्तक्षेप कर सकती हैं। उन्होंने सुप्रीम कोर्ट के कुछ फैसलों का हवाला दिया। हालांकि, कोर्ट ने दोनों पक्षों के वकीलों को बातचीत के जरिए मामले को सुलझाने की सलाह दी। वह दोनों सुझाव पर सहमत हुए और अंत में समझौता हो गया।

तेलंगानना विधानमंडल का बजट सत्र 3 फरवरी से शुरू होने वाला है और राज्यपाल द्वारा बजट को मंजूरी नहीं देने के कारण के. चंद्रशेखर राव के नेतृत्व वाली सरकार ने अदालत का दरवाजा खटखटाया था। सरकार ने अदालत को सूचित किया कि राज्य सरकार ने 21 जनवरी को राज्यपाल को बजट का मसौदा भेजा था, लेकिन उन्होंने अभी तक इसे मंजूरी नहीं दी है।

सरकार ने पिछले साल राज्यपाल के पारंपरिक अभिभाषण के बिना बजट पेश किया था, जिस पर विवाद हुआ था। बीआरएस सरकार ने इस आधार पर अपने कदम का बचाव किया कि यह नया सत्र नहीं था बल्कि पिछले सत्र की निरंतरता थी। विधानसभा और विधान परिषद का बजट सत्र 3 फरवरी से शुरू होना है। केवल चार दिन शेष रहने और राज्यपाल से मंजूरी नहीं मिलने के कारण सरकार ने हाई कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था।

बीआरएस नेताओं ने संकट की आशंका जताई क्योंकि विधानसभा और परिषद द्वारा पारित सात विधेयक पिछले साल सितंबर से राजभवन में पड़े हुए हैं। बजट को मंजूरी देने में राज्यपाल की देरी पर सरकार ने नाराजगी जताई। इसने तर्क दिया कि राज्यपाल का भाषण और बजट प्रस्तुति असंबंधित मामले थे। इसमें यह भी कहा गया है कि संविधान में ऐसा कोई खंड नहीं है जिसके लिए राज्यपाल को बजट सत्र को संबोधित करने की जरुरत हो।

बीआरएस सरकार ने संविधान के अनुच्छेद 202 का हवाला दिया, जिसमें कहा गया है कि राज्यपाल को एक वित्तीय वर्ष के लिए राज्य की अनुमानित प्राप्तियों और व्यय का विवरण सदन के सामने पेश करने की अनुमति देनी चाहिए। बीआरएस सरकार के कोर्ट का दरवाजा खटखटाने के साथ ही राज्यपाल और सरकार के बीच तनातनी ने नया मोड़ ले लिया था।

गणतंत्र दिवस समारोह को लेकर विवाद के बाद यह मामला सामने आया है। सरकार द्वारा राजभवन में मुख्य राजकीय समारोह आयोजित करने से राज्यपाल नाखुश थी। एक नागरिक द्वारा दायर याचिका पर, उच्च न्यायालय ने सरकार को पुलिस परेड आयोजित करने का निर्देश दिया था। सरकार ने पुलिस परेड के लिए अंतिम समय व्यवस्था की, लेकिन मुख्यमंत्री और उनके कैबिनेट सहयोगियों ने राजभवन में समारोह में भाग नहीं लिया। राज्यपाल ने उच्च न्यायालय के आदेशों का सम्मान नहीं करने के लिए सरकार को फटकार लगाई थी।

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बजट को मंजूरी देने के लिए राज्यपाल को निर्देश देने की राज्य सरकार की याचिका पर सुनवाई करते हुए अदालत ने सुझाव दिया कि दोनों पक्ष बातचीत के जरिए इस मुद्दे को सुलझाएं। कोर्ट के सुझाव पर राज्य सरकार के वकील दुष्यंत दवे और राजभवन के वकील अशोक आनंद ने बातचीत की।

यह निर्णय लिया गया कि राज्यपाल बजट को मंजूरी देंगी और राज्य विधानसभा सत्र उनके अभिभाषण के साथ शुरू होगा। दोनों पक्षों के वकीलों ने समझौते की जानकारी अदालत को दी, सरकार ने अपनी याचिका वापस ले ली और मामला खारिज कर दिया गया।

दोनों पक्षों के रुख में नरमी आने के बाद विवाद का समाधान हुआ। सरकार राज्यपाल के अभिभाषण के साथ बजट सत्र आयोजित करने पर सहमत हुई, बजट को मंजूरी देने पर भी सहमती बनी। अदालत ने राज्य सरकार द्वारा दायर याचिका पर सुनवाई की। सुनवाई के दौरान खंडपीठ ने महाधिवक्ता से पूछा कि अदालत राज्यपाल को नोटिस कैसे दे सकती है और यह भी जानना चाहती है कि अदालत को सरकार और संवैधानिक संस्था के विवाद में क्यों घसीटा जा रहा है।

सरकार की ओर से पेश सुप्रीम कोर्ट के वकील दवे ने कहा कि जब संविधान का उल्लंघन होता है तो अदालतें हस्तक्षेप कर सकती हैं। उन्होंने सुप्रीम कोर्ट के कुछ फैसलों का हवाला दिया। हालांकि, कोर्ट ने दोनों पक्षों के वकीलों को बातचीत के जरिए मामले को सुलझाने की सलाह दी। वह दोनों सुझाव पर सहमत हुए और अंत में समझौता हो गया।

तेलंगानना विधानमंडल का बजट सत्र 3 फरवरी से शुरू होने वाला है और राज्यपाल द्वारा बजट को मंजूरी नहीं देने के कारण के. चंद्रशेखर राव के नेतृत्व वाली सरकार ने अदालत का दरवाजा खटखटाया था। सरकार ने अदालत को सूचित किया कि राज्य सरकार ने 21 जनवरी को राज्यपाल को बजट का मसौदा भेजा था, लेकिन उन्होंने अभी तक इसे मंजूरी नहीं दी है।

सरकार ने पिछले साल राज्यपाल के पारंपरिक अभिभाषण के बिना बजट पेश किया था, जिस पर विवाद हुआ था। बीआरएस सरकार ने इस आधार पर अपने कदम का बचाव किया कि यह नया सत्र नहीं था बल्कि पिछले सत्र की निरंतरता थी। विधानसभा और विधान परिषद का बजट सत्र 3 फरवरी से शुरू होना है। केवल चार दिन शेष रहने और राज्यपाल से मंजूरी नहीं मिलने के कारण सरकार ने हाई कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था।

बीआरएस नेताओं ने संकट की आशंका जताई क्योंकि विधानसभा और परिषद द्वारा पारित सात विधेयक पिछले साल सितंबर से राजभवन में पड़े हुए हैं। बजट को मंजूरी देने में राज्यपाल की देरी पर सरकार ने नाराजगी जताई। इसने तर्क दिया कि राज्यपाल का भाषण और बजट प्रस्तुति असंबंधित मामले थे। इसमें यह भी कहा गया है कि संविधान में ऐसा कोई खंड नहीं है जिसके लिए राज्यपाल को बजट सत्र को संबोधित करने की जरुरत हो।

बीआरएस सरकार ने संविधान के अनुच्छेद 202 का हवाला दिया, जिसमें कहा गया है कि राज्यपाल को एक वित्तीय वर्ष के लिए राज्य की अनुमानित प्राप्तियों और व्यय का विवरण सदन के सामने पेश करने की अनुमति देनी चाहिए। बीआरएस सरकार के कोर्ट का दरवाजा खटखटाने के साथ ही राज्यपाल और सरकार के बीच तनातनी ने नया मोड़ ले लिया था।

गणतंत्र दिवस समारोह को लेकर विवाद के बाद यह मामला सामने आया है। सरकार द्वारा राजभवन में मुख्य राजकीय समारोह आयोजित करने से राज्यपाल नाखुश थी। एक नागरिक द्वारा दायर याचिका पर, उच्च न्यायालय ने सरकार को पुलिस परेड आयोजित करने का निर्देश दिया था। सरकार ने पुलिस परेड के लिए अंतिम समय व्यवस्था की, लेकिन मुख्यमंत्री और उनके कैबिनेट सहयोगियों ने राजभवन में समारोह में भाग नहीं लिया। राज्यपाल ने उच्च न्यायालय के आदेशों का सम्मान नहीं करने के लिए सरकार को फटकार लगाई थी।

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बजट को मंजूरी देने के लिए राज्यपाल को निर्देश देने की राज्य सरकार की याचिका पर सुनवाई करते हुए अदालत ने सुझाव दिया कि दोनों पक्ष बातचीत के जरिए इस मुद्दे को सुलझाएं। कोर्ट के सुझाव पर राज्य सरकार के वकील दुष्यंत दवे और राजभवन के वकील अशोक आनंद ने बातचीत की।

यह निर्णय लिया गया कि राज्यपाल बजट को मंजूरी देंगी और राज्य विधानसभा सत्र उनके अभिभाषण के साथ शुरू होगा। दोनों पक्षों के वकीलों ने समझौते की जानकारी अदालत को दी, सरकार ने अपनी याचिका वापस ले ली और मामला खारिज कर दिया गया।

दोनों पक्षों के रुख में नरमी आने के बाद विवाद का समाधान हुआ। सरकार राज्यपाल के अभिभाषण के साथ बजट सत्र आयोजित करने पर सहमत हुई, बजट को मंजूरी देने पर भी सहमती बनी। अदालत ने राज्य सरकार द्वारा दायर याचिका पर सुनवाई की। सुनवाई के दौरान खंडपीठ ने महाधिवक्ता से पूछा कि अदालत राज्यपाल को नोटिस कैसे दे सकती है और यह भी जानना चाहती है कि अदालत को सरकार और संवैधानिक संस्था के विवाद में क्यों घसीटा जा रहा है।

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तेलंगानना विधानमंडल का बजट सत्र 3 फरवरी से शुरू होने वाला है और राज्यपाल द्वारा बजट को मंजूरी नहीं देने के कारण के. चंद्रशेखर राव के नेतृत्व वाली सरकार ने अदालत का दरवाजा खटखटाया था। सरकार ने अदालत को सूचित किया कि राज्य सरकार ने 21 जनवरी को राज्यपाल को बजट का मसौदा भेजा था, लेकिन उन्होंने अभी तक इसे मंजूरी नहीं दी है।

सरकार ने पिछले साल राज्यपाल के पारंपरिक अभिभाषण के बिना बजट पेश किया था, जिस पर विवाद हुआ था। बीआरएस सरकार ने इस आधार पर अपने कदम का बचाव किया कि यह नया सत्र नहीं था बल्कि पिछले सत्र की निरंतरता थी। विधानसभा और विधान परिषद का बजट सत्र 3 फरवरी से शुरू होना है। केवल चार दिन शेष रहने और राज्यपाल से मंजूरी नहीं मिलने के कारण सरकार ने हाई कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था।

बीआरएस नेताओं ने संकट की आशंका जताई क्योंकि विधानसभा और परिषद द्वारा पारित सात विधेयक पिछले साल सितंबर से राजभवन में पड़े हुए हैं। बजट को मंजूरी देने में राज्यपाल की देरी पर सरकार ने नाराजगी जताई। इसने तर्क दिया कि राज्यपाल का भाषण और बजट प्रस्तुति असंबंधित मामले थे। इसमें यह भी कहा गया है कि संविधान में ऐसा कोई खंड नहीं है जिसके लिए राज्यपाल को बजट सत्र को संबोधित करने की जरुरत हो।

बीआरएस सरकार ने संविधान के अनुच्छेद 202 का हवाला दिया, जिसमें कहा गया है कि राज्यपाल को एक वित्तीय वर्ष के लिए राज्य की अनुमानित प्राप्तियों और व्यय का विवरण सदन के सामने पेश करने की अनुमति देनी चाहिए। बीआरएस सरकार के कोर्ट का दरवाजा खटखटाने के साथ ही राज्यपाल और सरकार के बीच तनातनी ने नया मोड़ ले लिया था।

गणतंत्र दिवस समारोह को लेकर विवाद के बाद यह मामला सामने आया है। सरकार द्वारा राजभवन में मुख्य राजकीय समारोह आयोजित करने से राज्यपाल नाखुश थी। एक नागरिक द्वारा दायर याचिका पर, उच्च न्यायालय ने सरकार को पुलिस परेड आयोजित करने का निर्देश दिया था। सरकार ने पुलिस परेड के लिए अंतिम समय व्यवस्था की, लेकिन मुख्यमंत्री और उनके कैबिनेट सहयोगियों ने राजभवन में समारोह में भाग नहीं लिया। राज्यपाल ने उच्च न्यायालय के आदेशों का सम्मान नहीं करने के लिए सरकार को फटकार लगाई थी।

–आईएएनएस

केसी/एसकेपी

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हैदराबाद, 30 जनवरी (आईएएनएस)। 2023-24 के राज्य के बजट को लेकर तेलंगाना की राज्यपाल तमिलिसाई सुंदरराजन और भारत राष्ट्र समिति (बीआरएस) सरकार के बीच गतिरोध को हाई कोर्ट के सुझाव पर सोमवार को बातचीत के जरिए सुलझा लिया गया।

बजट को मंजूरी देने के लिए राज्यपाल को निर्देश देने की राज्य सरकार की याचिका पर सुनवाई करते हुए अदालत ने सुझाव दिया कि दोनों पक्ष बातचीत के जरिए इस मुद्दे को सुलझाएं। कोर्ट के सुझाव पर राज्य सरकार के वकील दुष्यंत दवे और राजभवन के वकील अशोक आनंद ने बातचीत की।

यह निर्णय लिया गया कि राज्यपाल बजट को मंजूरी देंगी और राज्य विधानसभा सत्र उनके अभिभाषण के साथ शुरू होगा। दोनों पक्षों के वकीलों ने समझौते की जानकारी अदालत को दी, सरकार ने अपनी याचिका वापस ले ली और मामला खारिज कर दिया गया।

दोनों पक्षों के रुख में नरमी आने के बाद विवाद का समाधान हुआ। सरकार राज्यपाल के अभिभाषण के साथ बजट सत्र आयोजित करने पर सहमत हुई, बजट को मंजूरी देने पर भी सहमती बनी। अदालत ने राज्य सरकार द्वारा दायर याचिका पर सुनवाई की। सुनवाई के दौरान खंडपीठ ने महाधिवक्ता से पूछा कि अदालत राज्यपाल को नोटिस कैसे दे सकती है और यह भी जानना चाहती है कि अदालत को सरकार और संवैधानिक संस्था के विवाद में क्यों घसीटा जा रहा है।

सरकार की ओर से पेश सुप्रीम कोर्ट के वकील दवे ने कहा कि जब संविधान का उल्लंघन होता है तो अदालतें हस्तक्षेप कर सकती हैं। उन्होंने सुप्रीम कोर्ट के कुछ फैसलों का हवाला दिया। हालांकि, कोर्ट ने दोनों पक्षों के वकीलों को बातचीत के जरिए मामले को सुलझाने की सलाह दी। वह दोनों सुझाव पर सहमत हुए और अंत में समझौता हो गया।

तेलंगानना विधानमंडल का बजट सत्र 3 फरवरी से शुरू होने वाला है और राज्यपाल द्वारा बजट को मंजूरी नहीं देने के कारण के. चंद्रशेखर राव के नेतृत्व वाली सरकार ने अदालत का दरवाजा खटखटाया था। सरकार ने अदालत को सूचित किया कि राज्य सरकार ने 21 जनवरी को राज्यपाल को बजट का मसौदा भेजा था, लेकिन उन्होंने अभी तक इसे मंजूरी नहीं दी है।

सरकार ने पिछले साल राज्यपाल के पारंपरिक अभिभाषण के बिना बजट पेश किया था, जिस पर विवाद हुआ था। बीआरएस सरकार ने इस आधार पर अपने कदम का बचाव किया कि यह नया सत्र नहीं था बल्कि पिछले सत्र की निरंतरता थी। विधानसभा और विधान परिषद का बजट सत्र 3 फरवरी से शुरू होना है। केवल चार दिन शेष रहने और राज्यपाल से मंजूरी नहीं मिलने के कारण सरकार ने हाई कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था।

बीआरएस नेताओं ने संकट की आशंका जताई क्योंकि विधानसभा और परिषद द्वारा पारित सात विधेयक पिछले साल सितंबर से राजभवन में पड़े हुए हैं। बजट को मंजूरी देने में राज्यपाल की देरी पर सरकार ने नाराजगी जताई। इसने तर्क दिया कि राज्यपाल का भाषण और बजट प्रस्तुति असंबंधित मामले थे। इसमें यह भी कहा गया है कि संविधान में ऐसा कोई खंड नहीं है जिसके लिए राज्यपाल को बजट सत्र को संबोधित करने की जरुरत हो।

बीआरएस सरकार ने संविधान के अनुच्छेद 202 का हवाला दिया, जिसमें कहा गया है कि राज्यपाल को एक वित्तीय वर्ष के लिए राज्य की अनुमानित प्राप्तियों और व्यय का विवरण सदन के सामने पेश करने की अनुमति देनी चाहिए। बीआरएस सरकार के कोर्ट का दरवाजा खटखटाने के साथ ही राज्यपाल और सरकार के बीच तनातनी ने नया मोड़ ले लिया था।

गणतंत्र दिवस समारोह को लेकर विवाद के बाद यह मामला सामने आया है। सरकार द्वारा राजभवन में मुख्य राजकीय समारोह आयोजित करने से राज्यपाल नाखुश थी। एक नागरिक द्वारा दायर याचिका पर, उच्च न्यायालय ने सरकार को पुलिस परेड आयोजित करने का निर्देश दिया था। सरकार ने पुलिस परेड के लिए अंतिम समय व्यवस्था की, लेकिन मुख्यमंत्री और उनके कैबिनेट सहयोगियों ने राजभवन में समारोह में भाग नहीं लिया। राज्यपाल ने उच्च न्यायालय के आदेशों का सम्मान नहीं करने के लिए सरकार को फटकार लगाई थी।

–आईएएनएस

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हैदराबाद, 30 जनवरी (आईएएनएस)। 2023-24 के राज्य के बजट को लेकर तेलंगाना की राज्यपाल तमिलिसाई सुंदरराजन और भारत राष्ट्र समिति (बीआरएस) सरकार के बीच गतिरोध को हाई कोर्ट के सुझाव पर सोमवार को बातचीत के जरिए सुलझा लिया गया।

बजट को मंजूरी देने के लिए राज्यपाल को निर्देश देने की राज्य सरकार की याचिका पर सुनवाई करते हुए अदालत ने सुझाव दिया कि दोनों पक्ष बातचीत के जरिए इस मुद्दे को सुलझाएं। कोर्ट के सुझाव पर राज्य सरकार के वकील दुष्यंत दवे और राजभवन के वकील अशोक आनंद ने बातचीत की।

यह निर्णय लिया गया कि राज्यपाल बजट को मंजूरी देंगी और राज्य विधानसभा सत्र उनके अभिभाषण के साथ शुरू होगा। दोनों पक्षों के वकीलों ने समझौते की जानकारी अदालत को दी, सरकार ने अपनी याचिका वापस ले ली और मामला खारिज कर दिया गया।

दोनों पक्षों के रुख में नरमी आने के बाद विवाद का समाधान हुआ। सरकार राज्यपाल के अभिभाषण के साथ बजट सत्र आयोजित करने पर सहमत हुई, बजट को मंजूरी देने पर भी सहमती बनी। अदालत ने राज्य सरकार द्वारा दायर याचिका पर सुनवाई की। सुनवाई के दौरान खंडपीठ ने महाधिवक्ता से पूछा कि अदालत राज्यपाल को नोटिस कैसे दे सकती है और यह भी जानना चाहती है कि अदालत को सरकार और संवैधानिक संस्था के विवाद में क्यों घसीटा जा रहा है।

सरकार की ओर से पेश सुप्रीम कोर्ट के वकील दवे ने कहा कि जब संविधान का उल्लंघन होता है तो अदालतें हस्तक्षेप कर सकती हैं। उन्होंने सुप्रीम कोर्ट के कुछ फैसलों का हवाला दिया। हालांकि, कोर्ट ने दोनों पक्षों के वकीलों को बातचीत के जरिए मामले को सुलझाने की सलाह दी। वह दोनों सुझाव पर सहमत हुए और अंत में समझौता हो गया।

तेलंगानना विधानमंडल का बजट सत्र 3 फरवरी से शुरू होने वाला है और राज्यपाल द्वारा बजट को मंजूरी नहीं देने के कारण के. चंद्रशेखर राव के नेतृत्व वाली सरकार ने अदालत का दरवाजा खटखटाया था। सरकार ने अदालत को सूचित किया कि राज्य सरकार ने 21 जनवरी को राज्यपाल को बजट का मसौदा भेजा था, लेकिन उन्होंने अभी तक इसे मंजूरी नहीं दी है।

सरकार ने पिछले साल राज्यपाल के पारंपरिक अभिभाषण के बिना बजट पेश किया था, जिस पर विवाद हुआ था। बीआरएस सरकार ने इस आधार पर अपने कदम का बचाव किया कि यह नया सत्र नहीं था बल्कि पिछले सत्र की निरंतरता थी। विधानसभा और विधान परिषद का बजट सत्र 3 फरवरी से शुरू होना है। केवल चार दिन शेष रहने और राज्यपाल से मंजूरी नहीं मिलने के कारण सरकार ने हाई कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था।

बीआरएस नेताओं ने संकट की आशंका जताई क्योंकि विधानसभा और परिषद द्वारा पारित सात विधेयक पिछले साल सितंबर से राजभवन में पड़े हुए हैं। बजट को मंजूरी देने में राज्यपाल की देरी पर सरकार ने नाराजगी जताई। इसने तर्क दिया कि राज्यपाल का भाषण और बजट प्रस्तुति असंबंधित मामले थे। इसमें यह भी कहा गया है कि संविधान में ऐसा कोई खंड नहीं है जिसके लिए राज्यपाल को बजट सत्र को संबोधित करने की जरुरत हो।

बीआरएस सरकार ने संविधान के अनुच्छेद 202 का हवाला दिया, जिसमें कहा गया है कि राज्यपाल को एक वित्तीय वर्ष के लिए राज्य की अनुमानित प्राप्तियों और व्यय का विवरण सदन के सामने पेश करने की अनुमति देनी चाहिए। बीआरएस सरकार के कोर्ट का दरवाजा खटखटाने के साथ ही राज्यपाल और सरकार के बीच तनातनी ने नया मोड़ ले लिया था।

गणतंत्र दिवस समारोह को लेकर विवाद के बाद यह मामला सामने आया है। सरकार द्वारा राजभवन में मुख्य राजकीय समारोह आयोजित करने से राज्यपाल नाखुश थी। एक नागरिक द्वारा दायर याचिका पर, उच्च न्यायालय ने सरकार को पुलिस परेड आयोजित करने का निर्देश दिया था। सरकार ने पुलिस परेड के लिए अंतिम समय व्यवस्था की, लेकिन मुख्यमंत्री और उनके कैबिनेट सहयोगियों ने राजभवन में समारोह में भाग नहीं लिया। राज्यपाल ने उच्च न्यायालय के आदेशों का सम्मान नहीं करने के लिए सरकार को फटकार लगाई थी।

–आईएएनएस

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हैदराबाद, 30 जनवरी (आईएएनएस)। 2023-24 के राज्य के बजट को लेकर तेलंगाना की राज्यपाल तमिलिसाई सुंदरराजन और भारत राष्ट्र समिति (बीआरएस) सरकार के बीच गतिरोध को हाई कोर्ट के सुझाव पर सोमवार को बातचीत के जरिए सुलझा लिया गया।

बजट को मंजूरी देने के लिए राज्यपाल को निर्देश देने की राज्य सरकार की याचिका पर सुनवाई करते हुए अदालत ने सुझाव दिया कि दोनों पक्ष बातचीत के जरिए इस मुद्दे को सुलझाएं। कोर्ट के सुझाव पर राज्य सरकार के वकील दुष्यंत दवे और राजभवन के वकील अशोक आनंद ने बातचीत की।

यह निर्णय लिया गया कि राज्यपाल बजट को मंजूरी देंगी और राज्य विधानसभा सत्र उनके अभिभाषण के साथ शुरू होगा। दोनों पक्षों के वकीलों ने समझौते की जानकारी अदालत को दी, सरकार ने अपनी याचिका वापस ले ली और मामला खारिज कर दिया गया।

दोनों पक्षों के रुख में नरमी आने के बाद विवाद का समाधान हुआ। सरकार राज्यपाल के अभिभाषण के साथ बजट सत्र आयोजित करने पर सहमत हुई, बजट को मंजूरी देने पर भी सहमती बनी। अदालत ने राज्य सरकार द्वारा दायर याचिका पर सुनवाई की। सुनवाई के दौरान खंडपीठ ने महाधिवक्ता से पूछा कि अदालत राज्यपाल को नोटिस कैसे दे सकती है और यह भी जानना चाहती है कि अदालत को सरकार और संवैधानिक संस्था के विवाद में क्यों घसीटा जा रहा है।

सरकार की ओर से पेश सुप्रीम कोर्ट के वकील दवे ने कहा कि जब संविधान का उल्लंघन होता है तो अदालतें हस्तक्षेप कर सकती हैं। उन्होंने सुप्रीम कोर्ट के कुछ फैसलों का हवाला दिया। हालांकि, कोर्ट ने दोनों पक्षों के वकीलों को बातचीत के जरिए मामले को सुलझाने की सलाह दी। वह दोनों सुझाव पर सहमत हुए और अंत में समझौता हो गया।

तेलंगानना विधानमंडल का बजट सत्र 3 फरवरी से शुरू होने वाला है और राज्यपाल द्वारा बजट को मंजूरी नहीं देने के कारण के. चंद्रशेखर राव के नेतृत्व वाली सरकार ने अदालत का दरवाजा खटखटाया था। सरकार ने अदालत को सूचित किया कि राज्य सरकार ने 21 जनवरी को राज्यपाल को बजट का मसौदा भेजा था, लेकिन उन्होंने अभी तक इसे मंजूरी नहीं दी है।

सरकार ने पिछले साल राज्यपाल के पारंपरिक अभिभाषण के बिना बजट पेश किया था, जिस पर विवाद हुआ था। बीआरएस सरकार ने इस आधार पर अपने कदम का बचाव किया कि यह नया सत्र नहीं था बल्कि पिछले सत्र की निरंतरता थी। विधानसभा और विधान परिषद का बजट सत्र 3 फरवरी से शुरू होना है। केवल चार दिन शेष रहने और राज्यपाल से मंजूरी नहीं मिलने के कारण सरकार ने हाई कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था।

बीआरएस नेताओं ने संकट की आशंका जताई क्योंकि विधानसभा और परिषद द्वारा पारित सात विधेयक पिछले साल सितंबर से राजभवन में पड़े हुए हैं। बजट को मंजूरी देने में राज्यपाल की देरी पर सरकार ने नाराजगी जताई। इसने तर्क दिया कि राज्यपाल का भाषण और बजट प्रस्तुति असंबंधित मामले थे। इसमें यह भी कहा गया है कि संविधान में ऐसा कोई खंड नहीं है जिसके लिए राज्यपाल को बजट सत्र को संबोधित करने की जरुरत हो।

बीआरएस सरकार ने संविधान के अनुच्छेद 202 का हवाला दिया, जिसमें कहा गया है कि राज्यपाल को एक वित्तीय वर्ष के लिए राज्य की अनुमानित प्राप्तियों और व्यय का विवरण सदन के सामने पेश करने की अनुमति देनी चाहिए। बीआरएस सरकार के कोर्ट का दरवाजा खटखटाने के साथ ही राज्यपाल और सरकार के बीच तनातनी ने नया मोड़ ले लिया था।

गणतंत्र दिवस समारोह को लेकर विवाद के बाद यह मामला सामने आया है। सरकार द्वारा राजभवन में मुख्य राजकीय समारोह आयोजित करने से राज्यपाल नाखुश थी। एक नागरिक द्वारा दायर याचिका पर, उच्च न्यायालय ने सरकार को पुलिस परेड आयोजित करने का निर्देश दिया था। सरकार ने पुलिस परेड के लिए अंतिम समय व्यवस्था की, लेकिन मुख्यमंत्री और उनके कैबिनेट सहयोगियों ने राजभवन में समारोह में भाग नहीं लिया। राज्यपाल ने उच्च न्यायालय के आदेशों का सम्मान नहीं करने के लिए सरकार को फटकार लगाई थी।

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