नई दिल्ली, 27 सितंबर (आईएएनएस)। हिंदी कविता की दुनिया में सहजता, सरलता और बेबाकी के लिए याद किए जाने वाले कवि वीरेन डंगवाल पाठकों और मित्रों के बीच ‘वीरेन दा’ के नाम से जाने जाते थे। अपनी रचनाओं से उन्होंने हिंदी कविता की नई पीढ़ी के आदर्श कवि के रूप में पहचान बनाई थी। उनकी रचनाओं की खासियत यह थी कि वे आम बात को बेहद खास बना देते थे।
उनका जन्म आजादी से महज 10 दिन पहले 5 अगस्त 1947 को टेहरी गढ़वाल में हुआ था। 1968 में उन्होंने इलाहाबाद विश्वविद्यालय से एमए और फिर डीफिल की डिग्री प्राप्त की।
उनका व्यक्तित्व उतना ही जीवंत और आत्मीय था, जितनी उनकी कविताएं। 43 साल की उम्र में वीरेन डंगवाल का जब पहला कविता संग्रह ‘इसी दुनिया में’ प्रकाशित हुआ तो पाठकों ने महसूस हुआ कि पहली बार उनकी रोजमर्रा की भाषा और अनुभवों को कविता में उतार दिया गया है। वीरेन दा की कविताओं की सबसे बड़ी खासियत थी उनकी आम बोलचाल की भाषा और उसमें छिपी गहरी संवेदनाएं, जो लोगों को तुरंत जोड़ने की ताकत रखती थीं।
पहले कविता संग्रह ‘इसी दुनिया में’ के लिए उन्हें रघुवीर सहाय स्मृति पुरस्कार और श्रीकांत वर्मा स्मृति पुरस्कार से सम्मानित किया गया। उनका दूसरा संग्रह ‘दुष्चक्र में सृष्टा’ उन्हें साहित्य अकादमी पुरस्कार तक ले गया। इसके अलावा, उनका तीसरा संग्रह ‘स्याही ताल’ भी खासा चर्चित हुआ।
उनकी कविताएं विडंबना, व्यंग्य और जीवन की गहराइयों से भरी हुई थीं। चाहे वे प्रकृति के रहस्यों पर लिखें या समाज की सच्चाइयों पर, उनकी कविताएं हर बार पाठक को सोचने पर मजबूर कर देती थीं। ‘राम सिंह’ जैसी चर्चित कविता में उन्होंने आम आदमी की पीड़ा और संघर्ष को जिस सहजता से बयां किया, वह उन्हें सचमुच जनकवि बनाता है।
लेकिन वीरेन दा सिर्फ कवि ही नहीं थे। वे पत्रकार, शिक्षाविद और संस्कृतिकर्मी भी रहे। उनका स्वभाव फक्कड़ था। यह फक्कड़पन ही उन्हें भीड़ में सबसे अलग बनाता था। उन्होंने पाब्लो नेरूदा, बर्तोल्त ब्रेख्त, वास्को पोपा और नाजिम हिकमत जैसे विश्वप्रसिद्ध कवियों की रचनाओं का अनुवाद किया और उन्हें हिंदी पाठकों तक पहुंचाया। उनकी कविताएं कई भाषाओं में अनुदित हुईं और उनका असर सीमाओं से परे गया। यही कारण है कि वे हिंदी कविता की नई पीढ़ी के आदर्श कवि कहे जाते हैं।
28 सितंबर 2015 को जब उन्होंने दुनिया को अलविदा कहा तो हिंदी साहित्य की दुनिया में एक गहरी खामोशी छा गई। उनके विचार सीधे आत्मा को छूते थे। यही कारण है कि उनके जाने के बाद भी लोग उन्हें याद करते हैं। आज जब हम उनका नाम लेते हैं तो उनकी कविताएं और उनका आत्मीय व्यक्तित्व फिर से जीवंत हो उठता है।
–आईएएनएस
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