नई दिल्ली, 18 अगस्त (आईएएनएस)। भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के सबसे प्रभावशाली और प्रेरणादायक नेताओं की बात हो तो सबसे पहला नाम नेताजी सुभाष चंद्र बोस का आता है। जिनके एक नारे “तुम मुझे खून दो मैं तुम्हें आजादी दूंगा” ने आजादी के मतवालों में ऐसा जोश भरा कि उन्होंने बिना कुछ सोचे-समझे ही अपनी जिंदगी को देश के नाम न्यौछावर कर दिया।
23 जनवरी 1897 को सुभाष चंद्र बोस का जन्म हुआ। बोस ने भारत को अंग्रेजों के चंगुल से आजाद कराने के लिए आजाद हिंद फौज बनाई। नेताजी ने अपनी मौत के आखिरी लम्हें तक सिर्फ भारत मां की आजादी का सपना देखा। लेकिन, वे देश की आजादी को नहीं देख पाए और 18 अगस्त को उनका विमान हादसे का शिकार हो गया।
नेताजी की मौत आजतक रहस्यमयी है। 18 अगस्त 1945 को ताईवान में उनका विमान दुर्घटनाग्रस्त हो गया था। लेकिन, उनका शव कभी नहीं मिल पाया। कई लोगों का मानना था कि नेताजी की इस हादसे में मौत हुई, जबकि कुछ लोग मानते थे कि वह जीवित थे और गुप्त रूप से कहीं छिपे रहे।
आजादी के बाद भारत सरकार ने उनकी मौत के जांच के लिए 1956 और 1977 में दो बार आयोग नियुक्त किया। लेकिन, दोनों बार यह नतीजा निकला कि नेताजी उस विमान दुर्घटना में ही शहीद हो गए थे। साल 1999 में मनोज कुमार मुखर्जी के नेतृत्व में तीसरा आयोग बनाया गया। 2005 में ताइवान सरकार ने मुखर्जी आयोग को बताया कि 1945 में ताइवान की जमीन पर कोई हवाई जहाज दुर्घटनाग्रस्त हुआ ही नहीं था। भारत सरकार ने मुखर्जी आयोग की रिपोर्ट को अस्वीकार कर दिया।
इस बीच देश के अलग-अलग हिस्सों में नेताजी को देखने और मिलने का दावा भी किया गया। फैजाबाद के गुमनामी बाबा से लेकर कई और जगह नेताजी को देखे जाने की बात कही गई। छत्तीसगढ़ में तो सुभाष चंद्र बोस के होने का मामला राज्य सरकार तक पहुंचा। मगर इस मामले को राज्य सरकार ने बंद कर दिया।
नेताजी सुभाष चंद्र बोस का राजनीतिक करियर हो या फिर उनकी रहस्यमती मौत। उनके जीवन पर लिखी गई कुछ किताबें इस बात से पर्दा उठाने की कोशिश करती हैं।
रुद्रांशु मुखर्जी ने अपनी किताब ‘नेहरू एंड बोस पैरेलल लाइव्स’ में लिखा है कि, “सुभाष चंद्र बोस का मानना था कि वह और जवाहरलाल नेहरू इतिहास बना सकते हैं। लेकिन, पंडित नेहरू, महात्मा गांधी के बिना अपने भाग्य को नहीं देख सकते।”
कृष्णा बोस की किताब ‘नेताजी सुभाष चंद्र बोस का जीवन, राजनीति और संघर्ष’ में उनकी मौत के रहस्यों से पर्दा उठाने की कोशिश की गई है। इसमें बताया गया है कि नेताजी के भतीजे शिशिर बोस की पत्नी लेखिका ने उनकी मौत के रहस्य के बारे में जानने के लिए जापान और ताइपे का दौरा किया था।”
नेताजी सुभाष चंद्र बोस और महात्मा गांधी के बीच भी मतभेद थे। बोस ने गांधी के बारे में कहा था, “उनका विश्वास जीतने का प्रयास करना सदैव मेरा लक्ष्य और उद्देश्य रहेगा, क्योंकि यह मेरे लिए दुखद बात होगी, अगर मैं अन्य लोगों का विश्वास जीतने में सफल हो जाऊं, लेकिन भारत के महानतम व्यक्ति का विश्वास जीतने में असफल रह जाऊं।”
बताया जाता है कि सुभाष चंद्र बोस ने यूरोप में भारत की आजादी के लिए हिटलर और मुसोलिनी से भी मदद मांगी थी। हालांकि, वहां से उन्हें कोई बड़ी कामयाबी हाथ नहीं लगी। उन्होंने 21 अक्टूबर, 1943 को आजाद हिंद सरकार और भारतीय राष्ट्रीय सेना के गठन की घोषणा की। आईएनए में ही झांसी की रानी के नाम पर एक महिला टुकड़ी की भी शुरुआत की गई थी।
1942 में नेताजी सुभाष चंद्र बोस के नेतृत्त्व में आजाद हिंद रेडियो की शुरुआत की गई थी। इस रेडियो पर बोस ने 6 जुलाई, 1944 को महात्मा गांधी को ‘राष्ट्रपिता’ के रूप में संबोधित किया।
उन्होंने महात्मा गांधी द्वारा शुरू किए गए असहयोग आंदोलन में हिस्सा लिया। उन्होंने ‘स्वराज’ अखबार शुरू किया। इस दौरान उन्हें जेल तक जाना पड़ा। 1938 में वे भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के अध्यक्ष चुने गए, लेकिन मतभेदों के कारण उन्हें एक साल बाद ही इस्तीफा देना पड़ा।
–आईएएनएस
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