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Home ताज़ा समाचार

हेरोइन रखने के आरोप में 20 साल जेल में काटे, कोर्ट में साबित हुआ पाउडर, रिहा

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May 22, 2023
in ताज़ा समाचार
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हेरोइन रखने के आरोप में 20 साल जेल में काटे, कोर्ट में साबित हुआ पाउडर, रिहा
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बस्ती, 22 मई (आईएएनएस)। इस मामले में न्याय इतनी देरी से मिला जैसे वाकई उसे नकार दिया गया हो।

अब्दुल्ला अय्यूब ने एक ऐसे अपराध के लिए 20 साल जेल में काटे जो उन्होंने किया ही नहीं था।

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उन्होंने एक पुलिस कांस्टेबल को घर से निकालने की कीमत चुकाई जो उनके घर में किराए पर रहता था, लेकिन किराया नहीं चुकाता था।

यह घटना मार्च 2003 की है। खुर्शीद को घर से निकालने के तुरंत बाद अब्दुल्ला अय्यूब 25 ग्राम हेरोइन के साथ पकड़ा गया जिसकी कीमत करीब एक करोड़ रुपये थी।

अब्दुल्ला ने दिनों, हफ्तों, महीनों और सालों तक गुहार लगाई कि उसके पास हेरोइन नहीं था लेकिन सबूतों के साथ छेड़छाड़ की गई और वह सलाखों के पीछे रहा।

अय्यूब के वकील प्रेम प्रकाश श्रीवास्तव ने पत्रकारों को बताया कि पुरानी बस्ती थाने की पुलिस ने सबूत के तौर पर हेरोइन पेश कर उनके मुवक्किल को झूठे मामले में गिरफ्तार किया।

यह तब हुआ जब अय्यूब ने खुर्शीद को अपने घर से निकाल दिया था।

जाहिर तौर पर खुर्शीद ने अपने पूर्व मकान मालिक को फंसाने के लिए सीओ सिटी अनिल सिंह, एसओ पुरानी बस्ती लालजी यादव और एसआई नर्मदेश्वर शुक्ला के साथ मिलकर साजिश रची थी।

इन पुलिस अधिकारियों ने न केवल अय्यूब के पास नकली रखवाई, बल्कि उसे आगे फंसाने के लिए फॉरेंसिक सबूतों के साथ छेड़छाड़ भी की।

वकील ने कहा, अब, 20 साल बाद अय्यूब बेदाग जेल से बाहर आया है। अदालत में यह साबित हो गया है कि नारकोटिक वास्तव में दुकानों में 20 रुपये में मिलने वाला साधारण पुराना पाउडर था।

श्रीवास्तव के मुताबिक जब ट्रायल शुरू हुआ तो बस्ती की फॉरेंसिक लैब ने पाउडर में हेरोइन की मौजूदगी की पुष्टि की।

हालांकि जब कोर्ट ने इस हेरोइन के सैंपल को लखनऊ की लैब में भेजा तो पता चला कि ये हेरोइन थी ही नहीं। इसके बाद सैंपल को दिल्ली स्थित लैब में भेजा गया, जहां पुलिस ने सबूतों से छेड़छाड़ की।

बाद में, जब अदालत ने लखनऊ के विशेषज्ञ वैज्ञानिकों को तलब किया, तो उन्होंने पुष्टि की कि नमूना वास्तव में नकली था। इसका रंग भूरा हो गया था जबकि हेरोइन कभी भी, किसी भी मौसम में अपना रंग नहीं बदलती और सफेद रहती है।

इसके बाद जस्टिस विजय कुमार कटियार ने गलत तरीके से आरोपी बनाये गये पीड़ित को बरी कर दिया। न्यायाधीश ने यह भी कहा कि पुलिस ने पूरे मामले को गलत तरीके से पेश किया और अभियोजन पक्ष ने अदालत का समय बर्बाद किया।

हालांकि, अभी तक उन पुलिसकर्मियों के खिलाफ कोई कार्रवाई की घोषणा नहीं की गई है, जिन्होंने पूरा केस गढ़ा था।

–आईएएनएस

एकेजे

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बस्ती, 22 मई (आईएएनएस)। इस मामले में न्याय इतनी देरी से मिला जैसे वाकई उसे नकार दिया गया हो।

अब्दुल्ला अय्यूब ने एक ऐसे अपराध के लिए 20 साल जेल में काटे जो उन्होंने किया ही नहीं था।

उन्होंने एक पुलिस कांस्टेबल को घर से निकालने की कीमत चुकाई जो उनके घर में किराए पर रहता था, लेकिन किराया नहीं चुकाता था।

यह घटना मार्च 2003 की है। खुर्शीद को घर से निकालने के तुरंत बाद अब्दुल्ला अय्यूब 25 ग्राम हेरोइन के साथ पकड़ा गया जिसकी कीमत करीब एक करोड़ रुपये थी।

अब्दुल्ला ने दिनों, हफ्तों, महीनों और सालों तक गुहार लगाई कि उसके पास हेरोइन नहीं था लेकिन सबूतों के साथ छेड़छाड़ की गई और वह सलाखों के पीछे रहा।

अय्यूब के वकील प्रेम प्रकाश श्रीवास्तव ने पत्रकारों को बताया कि पुरानी बस्ती थाने की पुलिस ने सबूत के तौर पर हेरोइन पेश कर उनके मुवक्किल को झूठे मामले में गिरफ्तार किया।

यह तब हुआ जब अय्यूब ने खुर्शीद को अपने घर से निकाल दिया था।

जाहिर तौर पर खुर्शीद ने अपने पूर्व मकान मालिक को फंसाने के लिए सीओ सिटी अनिल सिंह, एसओ पुरानी बस्ती लालजी यादव और एसआई नर्मदेश्वर शुक्ला के साथ मिलकर साजिश रची थी।

इन पुलिस अधिकारियों ने न केवल अय्यूब के पास नकली रखवाई, बल्कि उसे आगे फंसाने के लिए फॉरेंसिक सबूतों के साथ छेड़छाड़ भी की।

वकील ने कहा, अब, 20 साल बाद अय्यूब बेदाग जेल से बाहर आया है। अदालत में यह साबित हो गया है कि नारकोटिक वास्तव में दुकानों में 20 रुपये में मिलने वाला साधारण पुराना पाउडर था।

श्रीवास्तव के मुताबिक जब ट्रायल शुरू हुआ तो बस्ती की फॉरेंसिक लैब ने पाउडर में हेरोइन की मौजूदगी की पुष्टि की।

हालांकि जब कोर्ट ने इस हेरोइन के सैंपल को लखनऊ की लैब में भेजा तो पता चला कि ये हेरोइन थी ही नहीं। इसके बाद सैंपल को दिल्ली स्थित लैब में भेजा गया, जहां पुलिस ने सबूतों से छेड़छाड़ की।

बाद में, जब अदालत ने लखनऊ के विशेषज्ञ वैज्ञानिकों को तलब किया, तो उन्होंने पुष्टि की कि नमूना वास्तव में नकली था। इसका रंग भूरा हो गया था जबकि हेरोइन कभी भी, किसी भी मौसम में अपना रंग नहीं बदलती और सफेद रहती है।

इसके बाद जस्टिस विजय कुमार कटियार ने गलत तरीके से आरोपी बनाये गये पीड़ित को बरी कर दिया। न्यायाधीश ने यह भी कहा कि पुलिस ने पूरे मामले को गलत तरीके से पेश किया और अभियोजन पक्ष ने अदालत का समय बर्बाद किया।

हालांकि, अभी तक उन पुलिसकर्मियों के खिलाफ कोई कार्रवाई की घोषणा नहीं की गई है, जिन्होंने पूरा केस गढ़ा था।

–आईएएनएस

एकेजे

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अब्दुल्ला अय्यूब ने एक ऐसे अपराध के लिए 20 साल जेल में काटे जो उन्होंने किया ही नहीं था।

उन्होंने एक पुलिस कांस्टेबल को घर से निकालने की कीमत चुकाई जो उनके घर में किराए पर रहता था, लेकिन किराया नहीं चुकाता था।

यह घटना मार्च 2003 की है। खुर्शीद को घर से निकालने के तुरंत बाद अब्दुल्ला अय्यूब 25 ग्राम हेरोइन के साथ पकड़ा गया जिसकी कीमत करीब एक करोड़ रुपये थी।

अब्दुल्ला ने दिनों, हफ्तों, महीनों और सालों तक गुहार लगाई कि उसके पास हेरोइन नहीं था लेकिन सबूतों के साथ छेड़छाड़ की गई और वह सलाखों के पीछे रहा।

अय्यूब के वकील प्रेम प्रकाश श्रीवास्तव ने पत्रकारों को बताया कि पुरानी बस्ती थाने की पुलिस ने सबूत के तौर पर हेरोइन पेश कर उनके मुवक्किल को झूठे मामले में गिरफ्तार किया।

यह तब हुआ जब अय्यूब ने खुर्शीद को अपने घर से निकाल दिया था।

जाहिर तौर पर खुर्शीद ने अपने पूर्व मकान मालिक को फंसाने के लिए सीओ सिटी अनिल सिंह, एसओ पुरानी बस्ती लालजी यादव और एसआई नर्मदेश्वर शुक्ला के साथ मिलकर साजिश रची थी।

इन पुलिस अधिकारियों ने न केवल अय्यूब के पास नकली रखवाई, बल्कि उसे आगे फंसाने के लिए फॉरेंसिक सबूतों के साथ छेड़छाड़ भी की।

वकील ने कहा, अब, 20 साल बाद अय्यूब बेदाग जेल से बाहर आया है। अदालत में यह साबित हो गया है कि नारकोटिक वास्तव में दुकानों में 20 रुपये में मिलने वाला साधारण पुराना पाउडर था।

श्रीवास्तव के मुताबिक जब ट्रायल शुरू हुआ तो बस्ती की फॉरेंसिक लैब ने पाउडर में हेरोइन की मौजूदगी की पुष्टि की।

हालांकि जब कोर्ट ने इस हेरोइन के सैंपल को लखनऊ की लैब में भेजा तो पता चला कि ये हेरोइन थी ही नहीं। इसके बाद सैंपल को दिल्ली स्थित लैब में भेजा गया, जहां पुलिस ने सबूतों से छेड़छाड़ की।

बाद में, जब अदालत ने लखनऊ के विशेषज्ञ वैज्ञानिकों को तलब किया, तो उन्होंने पुष्टि की कि नमूना वास्तव में नकली था। इसका रंग भूरा हो गया था जबकि हेरोइन कभी भी, किसी भी मौसम में अपना रंग नहीं बदलती और सफेद रहती है।

इसके बाद जस्टिस विजय कुमार कटियार ने गलत तरीके से आरोपी बनाये गये पीड़ित को बरी कर दिया। न्यायाधीश ने यह भी कहा कि पुलिस ने पूरे मामले को गलत तरीके से पेश किया और अभियोजन पक्ष ने अदालत का समय बर्बाद किया।

हालांकि, अभी तक उन पुलिसकर्मियों के खिलाफ कोई कार्रवाई की घोषणा नहीं की गई है, जिन्होंने पूरा केस गढ़ा था।

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अब्दुल्ला अय्यूब ने एक ऐसे अपराध के लिए 20 साल जेल में काटे जो उन्होंने किया ही नहीं था।

उन्होंने एक पुलिस कांस्टेबल को घर से निकालने की कीमत चुकाई जो उनके घर में किराए पर रहता था, लेकिन किराया नहीं चुकाता था।

यह घटना मार्च 2003 की है। खुर्शीद को घर से निकालने के तुरंत बाद अब्दुल्ला अय्यूब 25 ग्राम हेरोइन के साथ पकड़ा गया जिसकी कीमत करीब एक करोड़ रुपये थी।

अब्दुल्ला ने दिनों, हफ्तों, महीनों और सालों तक गुहार लगाई कि उसके पास हेरोइन नहीं था लेकिन सबूतों के साथ छेड़छाड़ की गई और वह सलाखों के पीछे रहा।

अय्यूब के वकील प्रेम प्रकाश श्रीवास्तव ने पत्रकारों को बताया कि पुरानी बस्ती थाने की पुलिस ने सबूत के तौर पर हेरोइन पेश कर उनके मुवक्किल को झूठे मामले में गिरफ्तार किया।

यह तब हुआ जब अय्यूब ने खुर्शीद को अपने घर से निकाल दिया था।

जाहिर तौर पर खुर्शीद ने अपने पूर्व मकान मालिक को फंसाने के लिए सीओ सिटी अनिल सिंह, एसओ पुरानी बस्ती लालजी यादव और एसआई नर्मदेश्वर शुक्ला के साथ मिलकर साजिश रची थी।

इन पुलिस अधिकारियों ने न केवल अय्यूब के पास नकली रखवाई, बल्कि उसे आगे फंसाने के लिए फॉरेंसिक सबूतों के साथ छेड़छाड़ भी की।

वकील ने कहा, अब, 20 साल बाद अय्यूब बेदाग जेल से बाहर आया है। अदालत में यह साबित हो गया है कि नारकोटिक वास्तव में दुकानों में 20 रुपये में मिलने वाला साधारण पुराना पाउडर था।

श्रीवास्तव के मुताबिक जब ट्रायल शुरू हुआ तो बस्ती की फॉरेंसिक लैब ने पाउडर में हेरोइन की मौजूदगी की पुष्टि की।

हालांकि जब कोर्ट ने इस हेरोइन के सैंपल को लखनऊ की लैब में भेजा तो पता चला कि ये हेरोइन थी ही नहीं। इसके बाद सैंपल को दिल्ली स्थित लैब में भेजा गया, जहां पुलिस ने सबूतों से छेड़छाड़ की।

बाद में, जब अदालत ने लखनऊ के विशेषज्ञ वैज्ञानिकों को तलब किया, तो उन्होंने पुष्टि की कि नमूना वास्तव में नकली था। इसका रंग भूरा हो गया था जबकि हेरोइन कभी भी, किसी भी मौसम में अपना रंग नहीं बदलती और सफेद रहती है।

इसके बाद जस्टिस विजय कुमार कटियार ने गलत तरीके से आरोपी बनाये गये पीड़ित को बरी कर दिया। न्यायाधीश ने यह भी कहा कि पुलिस ने पूरे मामले को गलत तरीके से पेश किया और अभियोजन पक्ष ने अदालत का समय बर्बाद किया।

हालांकि, अभी तक उन पुलिसकर्मियों के खिलाफ कोई कार्रवाई की घोषणा नहीं की गई है, जिन्होंने पूरा केस गढ़ा था।

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उन्होंने एक पुलिस कांस्टेबल को घर से निकालने की कीमत चुकाई जो उनके घर में किराए पर रहता था, लेकिन किराया नहीं चुकाता था।

यह घटना मार्च 2003 की है। खुर्शीद को घर से निकालने के तुरंत बाद अब्दुल्ला अय्यूब 25 ग्राम हेरोइन के साथ पकड़ा गया जिसकी कीमत करीब एक करोड़ रुपये थी।

अब्दुल्ला ने दिनों, हफ्तों, महीनों और सालों तक गुहार लगाई कि उसके पास हेरोइन नहीं था लेकिन सबूतों के साथ छेड़छाड़ की गई और वह सलाखों के पीछे रहा।

अय्यूब के वकील प्रेम प्रकाश श्रीवास्तव ने पत्रकारों को बताया कि पुरानी बस्ती थाने की पुलिस ने सबूत के तौर पर हेरोइन पेश कर उनके मुवक्किल को झूठे मामले में गिरफ्तार किया।

यह तब हुआ जब अय्यूब ने खुर्शीद को अपने घर से निकाल दिया था।

जाहिर तौर पर खुर्शीद ने अपने पूर्व मकान मालिक को फंसाने के लिए सीओ सिटी अनिल सिंह, एसओ पुरानी बस्ती लालजी यादव और एसआई नर्मदेश्वर शुक्ला के साथ मिलकर साजिश रची थी।

इन पुलिस अधिकारियों ने न केवल अय्यूब के पास नकली रखवाई, बल्कि उसे आगे फंसाने के लिए फॉरेंसिक सबूतों के साथ छेड़छाड़ भी की।

वकील ने कहा, अब, 20 साल बाद अय्यूब बेदाग जेल से बाहर आया है। अदालत में यह साबित हो गया है कि नारकोटिक वास्तव में दुकानों में 20 रुपये में मिलने वाला साधारण पुराना पाउडर था।

श्रीवास्तव के मुताबिक जब ट्रायल शुरू हुआ तो बस्ती की फॉरेंसिक लैब ने पाउडर में हेरोइन की मौजूदगी की पुष्टि की।

हालांकि जब कोर्ट ने इस हेरोइन के सैंपल को लखनऊ की लैब में भेजा तो पता चला कि ये हेरोइन थी ही नहीं। इसके बाद सैंपल को दिल्ली स्थित लैब में भेजा गया, जहां पुलिस ने सबूतों से छेड़छाड़ की।

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इसके बाद जस्टिस विजय कुमार कटियार ने गलत तरीके से आरोपी बनाये गये पीड़ित को बरी कर दिया। न्यायाधीश ने यह भी कहा कि पुलिस ने पूरे मामले को गलत तरीके से पेश किया और अभियोजन पक्ष ने अदालत का समय बर्बाद किया।

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उन्होंने एक पुलिस कांस्टेबल को घर से निकालने की कीमत चुकाई जो उनके घर में किराए पर रहता था, लेकिन किराया नहीं चुकाता था।

यह घटना मार्च 2003 की है। खुर्शीद को घर से निकालने के तुरंत बाद अब्दुल्ला अय्यूब 25 ग्राम हेरोइन के साथ पकड़ा गया जिसकी कीमत करीब एक करोड़ रुपये थी।

अब्दुल्ला ने दिनों, हफ्तों, महीनों और सालों तक गुहार लगाई कि उसके पास हेरोइन नहीं था लेकिन सबूतों के साथ छेड़छाड़ की गई और वह सलाखों के पीछे रहा।

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यह तब हुआ जब अय्यूब ने खुर्शीद को अपने घर से निकाल दिया था।

जाहिर तौर पर खुर्शीद ने अपने पूर्व मकान मालिक को फंसाने के लिए सीओ सिटी अनिल सिंह, एसओ पुरानी बस्ती लालजी यादव और एसआई नर्मदेश्वर शुक्ला के साथ मिलकर साजिश रची थी।

इन पुलिस अधिकारियों ने न केवल अय्यूब के पास नकली रखवाई, बल्कि उसे आगे फंसाने के लिए फॉरेंसिक सबूतों के साथ छेड़छाड़ भी की।

वकील ने कहा, अब, 20 साल बाद अय्यूब बेदाग जेल से बाहर आया है। अदालत में यह साबित हो गया है कि नारकोटिक वास्तव में दुकानों में 20 रुपये में मिलने वाला साधारण पुराना पाउडर था।

श्रीवास्तव के मुताबिक जब ट्रायल शुरू हुआ तो बस्ती की फॉरेंसिक लैब ने पाउडर में हेरोइन की मौजूदगी की पुष्टि की।

हालांकि जब कोर्ट ने इस हेरोइन के सैंपल को लखनऊ की लैब में भेजा तो पता चला कि ये हेरोइन थी ही नहीं। इसके बाद सैंपल को दिल्ली स्थित लैब में भेजा गया, जहां पुलिस ने सबूतों से छेड़छाड़ की।

बाद में, जब अदालत ने लखनऊ के विशेषज्ञ वैज्ञानिकों को तलब किया, तो उन्होंने पुष्टि की कि नमूना वास्तव में नकली था। इसका रंग भूरा हो गया था जबकि हेरोइन कभी भी, किसी भी मौसम में अपना रंग नहीं बदलती और सफेद रहती है।

इसके बाद जस्टिस विजय कुमार कटियार ने गलत तरीके से आरोपी बनाये गये पीड़ित को बरी कर दिया। न्यायाधीश ने यह भी कहा कि पुलिस ने पूरे मामले को गलत तरीके से पेश किया और अभियोजन पक्ष ने अदालत का समय बर्बाद किया।

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अब्दुल्ला अय्यूब ने एक ऐसे अपराध के लिए 20 साल जेल में काटे जो उन्होंने किया ही नहीं था।

उन्होंने एक पुलिस कांस्टेबल को घर से निकालने की कीमत चुकाई जो उनके घर में किराए पर रहता था, लेकिन किराया नहीं चुकाता था।

यह घटना मार्च 2003 की है। खुर्शीद को घर से निकालने के तुरंत बाद अब्दुल्ला अय्यूब 25 ग्राम हेरोइन के साथ पकड़ा गया जिसकी कीमत करीब एक करोड़ रुपये थी।

अब्दुल्ला ने दिनों, हफ्तों, महीनों और सालों तक गुहार लगाई कि उसके पास हेरोइन नहीं था लेकिन सबूतों के साथ छेड़छाड़ की गई और वह सलाखों के पीछे रहा।

अय्यूब के वकील प्रेम प्रकाश श्रीवास्तव ने पत्रकारों को बताया कि पुरानी बस्ती थाने की पुलिस ने सबूत के तौर पर हेरोइन पेश कर उनके मुवक्किल को झूठे मामले में गिरफ्तार किया।

यह तब हुआ जब अय्यूब ने खुर्शीद को अपने घर से निकाल दिया था।

जाहिर तौर पर खुर्शीद ने अपने पूर्व मकान मालिक को फंसाने के लिए सीओ सिटी अनिल सिंह, एसओ पुरानी बस्ती लालजी यादव और एसआई नर्मदेश्वर शुक्ला के साथ मिलकर साजिश रची थी।

इन पुलिस अधिकारियों ने न केवल अय्यूब के पास नकली रखवाई, बल्कि उसे आगे फंसाने के लिए फॉरेंसिक सबूतों के साथ छेड़छाड़ भी की।

वकील ने कहा, अब, 20 साल बाद अय्यूब बेदाग जेल से बाहर आया है। अदालत में यह साबित हो गया है कि नारकोटिक वास्तव में दुकानों में 20 रुपये में मिलने वाला साधारण पुराना पाउडर था।

श्रीवास्तव के मुताबिक जब ट्रायल शुरू हुआ तो बस्ती की फॉरेंसिक लैब ने पाउडर में हेरोइन की मौजूदगी की पुष्टि की।

हालांकि जब कोर्ट ने इस हेरोइन के सैंपल को लखनऊ की लैब में भेजा तो पता चला कि ये हेरोइन थी ही नहीं। इसके बाद सैंपल को दिल्ली स्थित लैब में भेजा गया, जहां पुलिस ने सबूतों से छेड़छाड़ की।

बाद में, जब अदालत ने लखनऊ के विशेषज्ञ वैज्ञानिकों को तलब किया, तो उन्होंने पुष्टि की कि नमूना वास्तव में नकली था। इसका रंग भूरा हो गया था जबकि हेरोइन कभी भी, किसी भी मौसम में अपना रंग नहीं बदलती और सफेद रहती है।

इसके बाद जस्टिस विजय कुमार कटियार ने गलत तरीके से आरोपी बनाये गये पीड़ित को बरी कर दिया। न्यायाधीश ने यह भी कहा कि पुलिस ने पूरे मामले को गलत तरीके से पेश किया और अभियोजन पक्ष ने अदालत का समय बर्बाद किया।

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यह घटना मार्च 2003 की है। खुर्शीद को घर से निकालने के तुरंत बाद अब्दुल्ला अय्यूब 25 ग्राम हेरोइन के साथ पकड़ा गया जिसकी कीमत करीब एक करोड़ रुपये थी।

अब्दुल्ला ने दिनों, हफ्तों, महीनों और सालों तक गुहार लगाई कि उसके पास हेरोइन नहीं था लेकिन सबूतों के साथ छेड़छाड़ की गई और वह सलाखों के पीछे रहा।

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इसके बाद जस्टिस विजय कुमार कटियार ने गलत तरीके से आरोपी बनाये गये पीड़ित को बरी कर दिया। न्यायाधीश ने यह भी कहा कि पुलिस ने पूरे मामले को गलत तरीके से पेश किया और अभियोजन पक्ष ने अदालत का समय बर्बाद किया।

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