कोलकाता, 20 सितंबर (आईएएनएस)। संसद में महिला आरक्षण विधेयक के पेश होने पर देश भर में खुशी मनाई जा रही है। ऐसे में पश्चिम बंगाल की एक मृदुभाषी महिला की कहानी फिर से चर्चा में है।
पश्चिम बंगाल के तत्कालीन अविभाजित मिदनापुर जिले के पंसकुरा निर्वाचन क्षेत्र (अब परिसीमन के कारण अस्तित्वहीन) से सात बार भाकपा की लोकसभा सदस्य रहीं स्वर्गीय गीता मुखर्जी पहली सांसद थीं, जिन्होंने सितंबर 1996 में संसदीय और विधायी सीटों में महिलाओं के लिए 33 प्रतिशत आरक्षण की मांग करते हुए संसद के पटल पर एक निजी सदस्य का विधेयक पेश किया था।
उन्होंने 12 सितंबर 1996 को सदन के पटल पर निजी सदस्य विधेयक पेश किया। यह शुरुआत थी और उस ऐतिहासिक दिन के 27 साल बाद 19 सितंबर 2023 को नारी शक्ति वंदना अधिनियम के नाम और शैली में विधेयक पेश किया गया था।
गीता मुखर्जी को करीब से जानने वाले दिग्गजों को याद है कि वह महिला सशक्तिकरण के बारे में कितनी ईमानदार थीं और उनका दृढ़ विश्वास था कि जब तक संसद और विधानमंडल में महिलाओं के लिए आरक्षण नहीं होगा तब तक सशक्तिकरण हासिल नहीं किया जा सकेगा।
मुखर्जी अक्सर अपनी पार्टी के साथियों और मीडियाकर्मियों के बीच ‘गीता-दी’ के नाम से बेहद लोकप्रिय थीं। उन्होंने कहा, “अब समय आ गया है कि महिलाओं को समाज निर्माण में उनकी उचित पहचान मिले और वे पर्याप्त संख्या बल के साथ संसदीय और विधायी मंचों पर अपने अधिकारों की आवाज उठाएं।”
प्रसिद्ध भारतीय सांसद और पूर्व केंद्रीय गृह मंत्री स्वर्गीय इंद्रजीत गुप्ता की छोटी बहन और प्रतिष्ठित भारतीय कम्युनिस्ट स्वर्गीय बिश्वनाथ मुखर्जी की पत्नी गीता मुखर्जी बिना किसी सुनियोजित प्रचार के अपनी बेहद विनम्र जीवनशैली के लिए जानी जाती थीं। वह 4 मार्च 2000 को अपने देहावसान तक नई दिल्ली और हावड़ा के बीच यात्रा करते समय साधारण थ्री-टीयर स्लीपर क्लास में यात्रा करना पसंद करती थीं।
अत्यंत मृदुभाषी और लो प्रोफाइल वाली गीता मुखर्जी 1980 से 2000 तक तत्कालीन अविभाजित मिदनापुर जिले के पंसकुरा निर्वाचन क्षेत्र से सात बार लोकसभा सदस्य थीं। अंतिम बार वह 1999 में चुनी गई थीं।
एक सांसद के रूप में, सार्वजनिक उपक्रमों पर संसदीय समिति, अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के कल्याण पर समिति और आपराधिक कानून (संशोधन) विधेयक, 1980 पर संयुक्त समिति के सदस्य के रूप में उनके गठन को श्रद्धा के साथ याद किया जाता है।
–आईएएनएस
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