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2008 में जब पुराने नोटों को प्रचलन से किया गया था बाहर, जानें जनता को इसके बारे में कैसे चला पता!

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August 28, 2024
in राष्ट्रीय
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नई दिल्ली, 28 अगस्त (आईएएनएस)। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा 8 नवम्बर 2016 को की गई नोटबंदी की घोषणा तो सभी को याद है। इस नोटबंदी के दौरान 500 और 1000 हजार रुपए के पुराने नोटों को पूरी तरह चलन से बाहर करने का फैसला लिया गया था। इस दौरान यह घोषणा की गई थी कि अब 500 और 1000 के पुराने नोट लीगल टैंडर नहीं होंगे।

इसके बाद बैंकों के बाहर लोगों की लंबी कतार देखने को मिलने लगी थी। उस समय तक देश में नोटों के दो बड़े खाके थे एक था 500 का नोट और दूसरा 1000 रुपए का नोट। ऐसे में लोगों की परेशानी ज्यादा इसलिए बढ़ गई कि बाजार में जो करेंसी थी उसमें सबसे बड़ी हिस्सेदारी इन्हीं दोनों नोटों की थी। हालांकि इन दोनों नोटों को प्रचलन से बाहर करने के बाद 500 के नए नोट के साथ जो दूसरा लीगल टैंडर जारी किया गया वह 2000 के नोटों का था जो अब आरबीआई की तरफ से एक बार फिर प्रेरचलन से बाहर कर दिया गया है और यह नोट भी अब लीगल टैंडर नहीं है। लेकिन, क्या आपको पता है 2016 से पहले आज ही के दिन 2008 में भी कुछ नोटों को प्रचलन से बाहर किया गया था। हालांकि इसको नोटबंदी से जोड़कर तो नहीं देख सकते हैं लेकिन पुराने छपे नोटों को प्रचलन से बाहर होने की कई लोगों को तब भनक लगी जब वह पुराने नोट के साथ कभी खरीददारी के लिए पहुंचे। उस समय इन नोटों को प्रचलन से बाहर करने की सूचना तो जारी की गई लेकिन, यह सूचना आम जन तक सुलभ तरीके से नहीं पहुंच पाई।

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आज ही के दिन 2008 में भारतीय रिजर्व बैंक ने पुरानी डिजाइन वाले छपाई हुए 500 और एक हजार के नोटों को चरणबद्ध तरीके से हटाने का ऐलान किया था। उस समय आरबीआई की तत्कालीन प्रवक्ता किलावाला ने एक बयान में कहा था कि 1996 से वर्ष 2000 के बीच इन 500 और 1000 के नोटों की जिस श्रृंखला की छपाई हुई है और जो बाजार में प्रचलन में हैं उसको बंद करके उसकी जगह पर नए नोट जारी किए जाएंगे।

उन्होंने इस प्रक्रिया को सामान्य बताते हुए कहा था, “इसमें कुछ भी असामान्य नहीं है। यह नियमित प्रक्रिया है। पूरी दुनिया के केंद्रीय बैंक सुरक्षा के नजरिए से ऐसा करते हैं।”

दरअसल एक तो कागज के नोटों की एक समय सीमा होती है जिसमें ये करेंसी बाजार में चलते-चलते खराब हो जाते हैं। दूसरी तरफ इन नोटों को संग्रहित करने का भी खतरा बना रहता है जिस पर लगाम लगाना जरूरी होती है। तीसरा और सबसे जरूरी कि लंबे समय तक प्रचलन में रहे नोटों का जाली नोट बनने और उसके सुरक्षा फीचरों के भी कॉपी होने का खतरा रहता है। ऐसे में मुद्रा सुरक्षा को देखते हुए ऐसा किया जाता है। ताकि कालाधन पर अंकुश लगे, नोटों की सुरक्षा फीचर के साथ कोई समझौता ना हो और बाजार में जाली नोटों का प्रचलन भी थमे।

हालांकि 2008 में लिए गए इस फैसले में एकदम से किसी भी नोट को लीगल टैंडर से नहीं हटाया गया था, जिसकी वजह आम लोगों को 2016 की तरह किसी भी परेशानी का सामना नहीं करना पड़ा था। ये पुराने 500 रुपये के नोट वर्ष 1996 में जारी किए गए थे। इसके अलावा 1000 हजार रुपयों के नोटों को इसके दो वर्ष बाद 1998 में जारी किया गया था।

हालांकि इससे पहले देश में कई बार नोटबंदी हो चुकी थी। देश में पहली नोटबंदी साल 1946 में हुई थी। उस समय देश के अति उच्च मूल्य (पांच हजार रुपए और दस हजार रुपए) के नोट भी चलन में हुआ करते थे। तब भारत के तत्कालीन वायसराय ‘आर्चीबाल्ड वेवेल’ ने 12 जनवरी 1946 में उच्च मूल्य वाले नोटों को बंद करने के लिए अध्यादेश जारी किया था। इसके बाद 26 जनवरी 1946 को देश में चल रहे 10000 रुपये के हाई करेंसी के नोटों को प्रचलन से बाहर कर दिया गया था।

साथ ही इसी अध्यादेश के माध्यम से आजादी के पहले 100 रुपये से ज्यादा मूल्य के सभी नोटों पर पूर्णत: प्रतिबंध लगा दिया गया था।

उस वक्त भी तत्कालीन ब्रिटिश सरकार ने लोगों से काले धन को वापस लाने के लिए उठाया गया यह कदम बताया था। हालांकि आजादी के बाद भारत सरकार अधिक मूल्य वाले नोटों को फिर चलन में ले आई थी।

इसके बाद 1978 में आजाद भारत की पहली नोटबंदी तत्कालीन प्रधानमंत्री मोरारजी देसाई द्वारा की गई थी। इस नोटबंदी का मकसद भी देश में काले धन को वापस लाना और भ्रष्टाचार को रोकना था।

तत्कालीन जनता पार्टी सरकार ने 16 जनवरी 1978 को देश में चल रहे 1000 रुपये, 5000 रुपये और 10000 रुपये के नोटों को बंद कर दिया था।

–आईएएनएस

पीएसएम/जीकेटी

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नई दिल्ली, 28 अगस्त (आईएएनएस)। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा 8 नवम्बर 2016 को की गई नोटबंदी की घोषणा तो सभी को याद है। इस नोटबंदी के दौरान 500 और 1000 हजार रुपए के पुराने नोटों को पूरी तरह चलन से बाहर करने का फैसला लिया गया था। इस दौरान यह घोषणा की गई थी कि अब 500 और 1000 के पुराने नोट लीगल टैंडर नहीं होंगे।

इसके बाद बैंकों के बाहर लोगों की लंबी कतार देखने को मिलने लगी थी। उस समय तक देश में नोटों के दो बड़े खाके थे एक था 500 का नोट और दूसरा 1000 रुपए का नोट। ऐसे में लोगों की परेशानी ज्यादा इसलिए बढ़ गई कि बाजार में जो करेंसी थी उसमें सबसे बड़ी हिस्सेदारी इन्हीं दोनों नोटों की थी। हालांकि इन दोनों नोटों को प्रचलन से बाहर करने के बाद 500 के नए नोट के साथ जो दूसरा लीगल टैंडर जारी किया गया वह 2000 के नोटों का था जो अब आरबीआई की तरफ से एक बार फिर प्रेरचलन से बाहर कर दिया गया है और यह नोट भी अब लीगल टैंडर नहीं है। लेकिन, क्या आपको पता है 2016 से पहले आज ही के दिन 2008 में भी कुछ नोटों को प्रचलन से बाहर किया गया था। हालांकि इसको नोटबंदी से जोड़कर तो नहीं देख सकते हैं लेकिन पुराने छपे नोटों को प्रचलन से बाहर होने की कई लोगों को तब भनक लगी जब वह पुराने नोट के साथ कभी खरीददारी के लिए पहुंचे। उस समय इन नोटों को प्रचलन से बाहर करने की सूचना तो जारी की गई लेकिन, यह सूचना आम जन तक सुलभ तरीके से नहीं पहुंच पाई।

आज ही के दिन 2008 में भारतीय रिजर्व बैंक ने पुरानी डिजाइन वाले छपाई हुए 500 और एक हजार के नोटों को चरणबद्ध तरीके से हटाने का ऐलान किया था। उस समय आरबीआई की तत्कालीन प्रवक्ता किलावाला ने एक बयान में कहा था कि 1996 से वर्ष 2000 के बीच इन 500 और 1000 के नोटों की जिस श्रृंखला की छपाई हुई है और जो बाजार में प्रचलन में हैं उसको बंद करके उसकी जगह पर नए नोट जारी किए जाएंगे।

उन्होंने इस प्रक्रिया को सामान्य बताते हुए कहा था, “इसमें कुछ भी असामान्य नहीं है। यह नियमित प्रक्रिया है। पूरी दुनिया के केंद्रीय बैंक सुरक्षा के नजरिए से ऐसा करते हैं।”

दरअसल एक तो कागज के नोटों की एक समय सीमा होती है जिसमें ये करेंसी बाजार में चलते-चलते खराब हो जाते हैं। दूसरी तरफ इन नोटों को संग्रहित करने का भी खतरा बना रहता है जिस पर लगाम लगाना जरूरी होती है। तीसरा और सबसे जरूरी कि लंबे समय तक प्रचलन में रहे नोटों का जाली नोट बनने और उसके सुरक्षा फीचरों के भी कॉपी होने का खतरा रहता है। ऐसे में मुद्रा सुरक्षा को देखते हुए ऐसा किया जाता है। ताकि कालाधन पर अंकुश लगे, नोटों की सुरक्षा फीचर के साथ कोई समझौता ना हो और बाजार में जाली नोटों का प्रचलन भी थमे।

हालांकि 2008 में लिए गए इस फैसले में एकदम से किसी भी नोट को लीगल टैंडर से नहीं हटाया गया था, जिसकी वजह आम लोगों को 2016 की तरह किसी भी परेशानी का सामना नहीं करना पड़ा था। ये पुराने 500 रुपये के नोट वर्ष 1996 में जारी किए गए थे। इसके अलावा 1000 हजार रुपयों के नोटों को इसके दो वर्ष बाद 1998 में जारी किया गया था।

हालांकि इससे पहले देश में कई बार नोटबंदी हो चुकी थी। देश में पहली नोटबंदी साल 1946 में हुई थी। उस समय देश के अति उच्च मूल्य (पांच हजार रुपए और दस हजार रुपए) के नोट भी चलन में हुआ करते थे। तब भारत के तत्कालीन वायसराय ‘आर्चीबाल्ड वेवेल’ ने 12 जनवरी 1946 में उच्च मूल्य वाले नोटों को बंद करने के लिए अध्यादेश जारी किया था। इसके बाद 26 जनवरी 1946 को देश में चल रहे 10000 रुपये के हाई करेंसी के नोटों को प्रचलन से बाहर कर दिया गया था।

साथ ही इसी अध्यादेश के माध्यम से आजादी के पहले 100 रुपये से ज्यादा मूल्य के सभी नोटों पर पूर्णत: प्रतिबंध लगा दिया गया था।

उस वक्त भी तत्कालीन ब्रिटिश सरकार ने लोगों से काले धन को वापस लाने के लिए उठाया गया यह कदम बताया था। हालांकि आजादी के बाद भारत सरकार अधिक मूल्य वाले नोटों को फिर चलन में ले आई थी।

इसके बाद 1978 में आजाद भारत की पहली नोटबंदी तत्कालीन प्रधानमंत्री मोरारजी देसाई द्वारा की गई थी। इस नोटबंदी का मकसद भी देश में काले धन को वापस लाना और भ्रष्टाचार को रोकना था।

तत्कालीन जनता पार्टी सरकार ने 16 जनवरी 1978 को देश में चल रहे 1000 रुपये, 5000 रुपये और 10000 रुपये के नोटों को बंद कर दिया था।

–आईएएनएस

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नई दिल्ली, 28 अगस्त (आईएएनएस)। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा 8 नवम्बर 2016 को की गई नोटबंदी की घोषणा तो सभी को याद है। इस नोटबंदी के दौरान 500 और 1000 हजार रुपए के पुराने नोटों को पूरी तरह चलन से बाहर करने का फैसला लिया गया था। इस दौरान यह घोषणा की गई थी कि अब 500 और 1000 के पुराने नोट लीगल टैंडर नहीं होंगे।

इसके बाद बैंकों के बाहर लोगों की लंबी कतार देखने को मिलने लगी थी। उस समय तक देश में नोटों के दो बड़े खाके थे एक था 500 का नोट और दूसरा 1000 रुपए का नोट। ऐसे में लोगों की परेशानी ज्यादा इसलिए बढ़ गई कि बाजार में जो करेंसी थी उसमें सबसे बड़ी हिस्सेदारी इन्हीं दोनों नोटों की थी। हालांकि इन दोनों नोटों को प्रचलन से बाहर करने के बाद 500 के नए नोट के साथ जो दूसरा लीगल टैंडर जारी किया गया वह 2000 के नोटों का था जो अब आरबीआई की तरफ से एक बार फिर प्रेरचलन से बाहर कर दिया गया है और यह नोट भी अब लीगल टैंडर नहीं है। लेकिन, क्या आपको पता है 2016 से पहले आज ही के दिन 2008 में भी कुछ नोटों को प्रचलन से बाहर किया गया था। हालांकि इसको नोटबंदी से जोड़कर तो नहीं देख सकते हैं लेकिन पुराने छपे नोटों को प्रचलन से बाहर होने की कई लोगों को तब भनक लगी जब वह पुराने नोट के साथ कभी खरीददारी के लिए पहुंचे। उस समय इन नोटों को प्रचलन से बाहर करने की सूचना तो जारी की गई लेकिन, यह सूचना आम जन तक सुलभ तरीके से नहीं पहुंच पाई।

आज ही के दिन 2008 में भारतीय रिजर्व बैंक ने पुरानी डिजाइन वाले छपाई हुए 500 और एक हजार के नोटों को चरणबद्ध तरीके से हटाने का ऐलान किया था। उस समय आरबीआई की तत्कालीन प्रवक्ता किलावाला ने एक बयान में कहा था कि 1996 से वर्ष 2000 के बीच इन 500 और 1000 के नोटों की जिस श्रृंखला की छपाई हुई है और जो बाजार में प्रचलन में हैं उसको बंद करके उसकी जगह पर नए नोट जारी किए जाएंगे।

उन्होंने इस प्रक्रिया को सामान्य बताते हुए कहा था, “इसमें कुछ भी असामान्य नहीं है। यह नियमित प्रक्रिया है। पूरी दुनिया के केंद्रीय बैंक सुरक्षा के नजरिए से ऐसा करते हैं।”

दरअसल एक तो कागज के नोटों की एक समय सीमा होती है जिसमें ये करेंसी बाजार में चलते-चलते खराब हो जाते हैं। दूसरी तरफ इन नोटों को संग्रहित करने का भी खतरा बना रहता है जिस पर लगाम लगाना जरूरी होती है। तीसरा और सबसे जरूरी कि लंबे समय तक प्रचलन में रहे नोटों का जाली नोट बनने और उसके सुरक्षा फीचरों के भी कॉपी होने का खतरा रहता है। ऐसे में मुद्रा सुरक्षा को देखते हुए ऐसा किया जाता है। ताकि कालाधन पर अंकुश लगे, नोटों की सुरक्षा फीचर के साथ कोई समझौता ना हो और बाजार में जाली नोटों का प्रचलन भी थमे।

हालांकि 2008 में लिए गए इस फैसले में एकदम से किसी भी नोट को लीगल टैंडर से नहीं हटाया गया था, जिसकी वजह आम लोगों को 2016 की तरह किसी भी परेशानी का सामना नहीं करना पड़ा था। ये पुराने 500 रुपये के नोट वर्ष 1996 में जारी किए गए थे। इसके अलावा 1000 हजार रुपयों के नोटों को इसके दो वर्ष बाद 1998 में जारी किया गया था।

हालांकि इससे पहले देश में कई बार नोटबंदी हो चुकी थी। देश में पहली नोटबंदी साल 1946 में हुई थी। उस समय देश के अति उच्च मूल्य (पांच हजार रुपए और दस हजार रुपए) के नोट भी चलन में हुआ करते थे। तब भारत के तत्कालीन वायसराय ‘आर्चीबाल्ड वेवेल’ ने 12 जनवरी 1946 में उच्च मूल्य वाले नोटों को बंद करने के लिए अध्यादेश जारी किया था। इसके बाद 26 जनवरी 1946 को देश में चल रहे 10000 रुपये के हाई करेंसी के नोटों को प्रचलन से बाहर कर दिया गया था।

साथ ही इसी अध्यादेश के माध्यम से आजादी के पहले 100 रुपये से ज्यादा मूल्य के सभी नोटों पर पूर्णत: प्रतिबंध लगा दिया गया था।

उस वक्त भी तत्कालीन ब्रिटिश सरकार ने लोगों से काले धन को वापस लाने के लिए उठाया गया यह कदम बताया था। हालांकि आजादी के बाद भारत सरकार अधिक मूल्य वाले नोटों को फिर चलन में ले आई थी।

इसके बाद 1978 में आजाद भारत की पहली नोटबंदी तत्कालीन प्रधानमंत्री मोरारजी देसाई द्वारा की गई थी। इस नोटबंदी का मकसद भी देश में काले धन को वापस लाना और भ्रष्टाचार को रोकना था।

तत्कालीन जनता पार्टी सरकार ने 16 जनवरी 1978 को देश में चल रहे 1000 रुपये, 5000 रुपये और 10000 रुपये के नोटों को बंद कर दिया था।

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नई दिल्ली, 28 अगस्त (आईएएनएस)। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा 8 नवम्बर 2016 को की गई नोटबंदी की घोषणा तो सभी को याद है। इस नोटबंदी के दौरान 500 और 1000 हजार रुपए के पुराने नोटों को पूरी तरह चलन से बाहर करने का फैसला लिया गया था। इस दौरान यह घोषणा की गई थी कि अब 500 और 1000 के पुराने नोट लीगल टैंडर नहीं होंगे।

इसके बाद बैंकों के बाहर लोगों की लंबी कतार देखने को मिलने लगी थी। उस समय तक देश में नोटों के दो बड़े खाके थे एक था 500 का नोट और दूसरा 1000 रुपए का नोट। ऐसे में लोगों की परेशानी ज्यादा इसलिए बढ़ गई कि बाजार में जो करेंसी थी उसमें सबसे बड़ी हिस्सेदारी इन्हीं दोनों नोटों की थी। हालांकि इन दोनों नोटों को प्रचलन से बाहर करने के बाद 500 के नए नोट के साथ जो दूसरा लीगल टैंडर जारी किया गया वह 2000 के नोटों का था जो अब आरबीआई की तरफ से एक बार फिर प्रेरचलन से बाहर कर दिया गया है और यह नोट भी अब लीगल टैंडर नहीं है। लेकिन, क्या आपको पता है 2016 से पहले आज ही के दिन 2008 में भी कुछ नोटों को प्रचलन से बाहर किया गया था। हालांकि इसको नोटबंदी से जोड़कर तो नहीं देख सकते हैं लेकिन पुराने छपे नोटों को प्रचलन से बाहर होने की कई लोगों को तब भनक लगी जब वह पुराने नोट के साथ कभी खरीददारी के लिए पहुंचे। उस समय इन नोटों को प्रचलन से बाहर करने की सूचना तो जारी की गई लेकिन, यह सूचना आम जन तक सुलभ तरीके से नहीं पहुंच पाई।

आज ही के दिन 2008 में भारतीय रिजर्व बैंक ने पुरानी डिजाइन वाले छपाई हुए 500 और एक हजार के नोटों को चरणबद्ध तरीके से हटाने का ऐलान किया था। उस समय आरबीआई की तत्कालीन प्रवक्ता किलावाला ने एक बयान में कहा था कि 1996 से वर्ष 2000 के बीच इन 500 और 1000 के नोटों की जिस श्रृंखला की छपाई हुई है और जो बाजार में प्रचलन में हैं उसको बंद करके उसकी जगह पर नए नोट जारी किए जाएंगे।

उन्होंने इस प्रक्रिया को सामान्य बताते हुए कहा था, “इसमें कुछ भी असामान्य नहीं है। यह नियमित प्रक्रिया है। पूरी दुनिया के केंद्रीय बैंक सुरक्षा के नजरिए से ऐसा करते हैं।”

दरअसल एक तो कागज के नोटों की एक समय सीमा होती है जिसमें ये करेंसी बाजार में चलते-चलते खराब हो जाते हैं। दूसरी तरफ इन नोटों को संग्रहित करने का भी खतरा बना रहता है जिस पर लगाम लगाना जरूरी होती है। तीसरा और सबसे जरूरी कि लंबे समय तक प्रचलन में रहे नोटों का जाली नोट बनने और उसके सुरक्षा फीचरों के भी कॉपी होने का खतरा रहता है। ऐसे में मुद्रा सुरक्षा को देखते हुए ऐसा किया जाता है। ताकि कालाधन पर अंकुश लगे, नोटों की सुरक्षा फीचर के साथ कोई समझौता ना हो और बाजार में जाली नोटों का प्रचलन भी थमे।

हालांकि 2008 में लिए गए इस फैसले में एकदम से किसी भी नोट को लीगल टैंडर से नहीं हटाया गया था, जिसकी वजह आम लोगों को 2016 की तरह किसी भी परेशानी का सामना नहीं करना पड़ा था। ये पुराने 500 रुपये के नोट वर्ष 1996 में जारी किए गए थे। इसके अलावा 1000 हजार रुपयों के नोटों को इसके दो वर्ष बाद 1998 में जारी किया गया था।

हालांकि इससे पहले देश में कई बार नोटबंदी हो चुकी थी। देश में पहली नोटबंदी साल 1946 में हुई थी। उस समय देश के अति उच्च मूल्य (पांच हजार रुपए और दस हजार रुपए) के नोट भी चलन में हुआ करते थे। तब भारत के तत्कालीन वायसराय ‘आर्चीबाल्ड वेवेल’ ने 12 जनवरी 1946 में उच्च मूल्य वाले नोटों को बंद करने के लिए अध्यादेश जारी किया था। इसके बाद 26 जनवरी 1946 को देश में चल रहे 10000 रुपये के हाई करेंसी के नोटों को प्रचलन से बाहर कर दिया गया था।

साथ ही इसी अध्यादेश के माध्यम से आजादी के पहले 100 रुपये से ज्यादा मूल्य के सभी नोटों पर पूर्णत: प्रतिबंध लगा दिया गया था।

उस वक्त भी तत्कालीन ब्रिटिश सरकार ने लोगों से काले धन को वापस लाने के लिए उठाया गया यह कदम बताया था। हालांकि आजादी के बाद भारत सरकार अधिक मूल्य वाले नोटों को फिर चलन में ले आई थी।

इसके बाद 1978 में आजाद भारत की पहली नोटबंदी तत्कालीन प्रधानमंत्री मोरारजी देसाई द्वारा की गई थी। इस नोटबंदी का मकसद भी देश में काले धन को वापस लाना और भ्रष्टाचार को रोकना था।

तत्कालीन जनता पार्टी सरकार ने 16 जनवरी 1978 को देश में चल रहे 1000 रुपये, 5000 रुपये और 10000 रुपये के नोटों को बंद कर दिया था।

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नई दिल्ली, 28 अगस्त (आईएएनएस)। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा 8 नवम्बर 2016 को की गई नोटबंदी की घोषणा तो सभी को याद है। इस नोटबंदी के दौरान 500 और 1000 हजार रुपए के पुराने नोटों को पूरी तरह चलन से बाहर करने का फैसला लिया गया था। इस दौरान यह घोषणा की गई थी कि अब 500 और 1000 के पुराने नोट लीगल टैंडर नहीं होंगे।

इसके बाद बैंकों के बाहर लोगों की लंबी कतार देखने को मिलने लगी थी। उस समय तक देश में नोटों के दो बड़े खाके थे एक था 500 का नोट और दूसरा 1000 रुपए का नोट। ऐसे में लोगों की परेशानी ज्यादा इसलिए बढ़ गई कि बाजार में जो करेंसी थी उसमें सबसे बड़ी हिस्सेदारी इन्हीं दोनों नोटों की थी। हालांकि इन दोनों नोटों को प्रचलन से बाहर करने के बाद 500 के नए नोट के साथ जो दूसरा लीगल टैंडर जारी किया गया वह 2000 के नोटों का था जो अब आरबीआई की तरफ से एक बार फिर प्रेरचलन से बाहर कर दिया गया है और यह नोट भी अब लीगल टैंडर नहीं है। लेकिन, क्या आपको पता है 2016 से पहले आज ही के दिन 2008 में भी कुछ नोटों को प्रचलन से बाहर किया गया था। हालांकि इसको नोटबंदी से जोड़कर तो नहीं देख सकते हैं लेकिन पुराने छपे नोटों को प्रचलन से बाहर होने की कई लोगों को तब भनक लगी जब वह पुराने नोट के साथ कभी खरीददारी के लिए पहुंचे। उस समय इन नोटों को प्रचलन से बाहर करने की सूचना तो जारी की गई लेकिन, यह सूचना आम जन तक सुलभ तरीके से नहीं पहुंच पाई।

आज ही के दिन 2008 में भारतीय रिजर्व बैंक ने पुरानी डिजाइन वाले छपाई हुए 500 और एक हजार के नोटों को चरणबद्ध तरीके से हटाने का ऐलान किया था। उस समय आरबीआई की तत्कालीन प्रवक्ता किलावाला ने एक बयान में कहा था कि 1996 से वर्ष 2000 के बीच इन 500 और 1000 के नोटों की जिस श्रृंखला की छपाई हुई है और जो बाजार में प्रचलन में हैं उसको बंद करके उसकी जगह पर नए नोट जारी किए जाएंगे।

उन्होंने इस प्रक्रिया को सामान्य बताते हुए कहा था, “इसमें कुछ भी असामान्य नहीं है। यह नियमित प्रक्रिया है। पूरी दुनिया के केंद्रीय बैंक सुरक्षा के नजरिए से ऐसा करते हैं।”

दरअसल एक तो कागज के नोटों की एक समय सीमा होती है जिसमें ये करेंसी बाजार में चलते-चलते खराब हो जाते हैं। दूसरी तरफ इन नोटों को संग्रहित करने का भी खतरा बना रहता है जिस पर लगाम लगाना जरूरी होती है। तीसरा और सबसे जरूरी कि लंबे समय तक प्रचलन में रहे नोटों का जाली नोट बनने और उसके सुरक्षा फीचरों के भी कॉपी होने का खतरा रहता है। ऐसे में मुद्रा सुरक्षा को देखते हुए ऐसा किया जाता है। ताकि कालाधन पर अंकुश लगे, नोटों की सुरक्षा फीचर के साथ कोई समझौता ना हो और बाजार में जाली नोटों का प्रचलन भी थमे।

हालांकि 2008 में लिए गए इस फैसले में एकदम से किसी भी नोट को लीगल टैंडर से नहीं हटाया गया था, जिसकी वजह आम लोगों को 2016 की तरह किसी भी परेशानी का सामना नहीं करना पड़ा था। ये पुराने 500 रुपये के नोट वर्ष 1996 में जारी किए गए थे। इसके अलावा 1000 हजार रुपयों के नोटों को इसके दो वर्ष बाद 1998 में जारी किया गया था।

हालांकि इससे पहले देश में कई बार नोटबंदी हो चुकी थी। देश में पहली नोटबंदी साल 1946 में हुई थी। उस समय देश के अति उच्च मूल्य (पांच हजार रुपए और दस हजार रुपए) के नोट भी चलन में हुआ करते थे। तब भारत के तत्कालीन वायसराय ‘आर्चीबाल्ड वेवेल’ ने 12 जनवरी 1946 में उच्च मूल्य वाले नोटों को बंद करने के लिए अध्यादेश जारी किया था। इसके बाद 26 जनवरी 1946 को देश में चल रहे 10000 रुपये के हाई करेंसी के नोटों को प्रचलन से बाहर कर दिया गया था।

साथ ही इसी अध्यादेश के माध्यम से आजादी के पहले 100 रुपये से ज्यादा मूल्य के सभी नोटों पर पूर्णत: प्रतिबंध लगा दिया गया था।

उस वक्त भी तत्कालीन ब्रिटिश सरकार ने लोगों से काले धन को वापस लाने के लिए उठाया गया यह कदम बताया था। हालांकि आजादी के बाद भारत सरकार अधिक मूल्य वाले नोटों को फिर चलन में ले आई थी।

इसके बाद 1978 में आजाद भारत की पहली नोटबंदी तत्कालीन प्रधानमंत्री मोरारजी देसाई द्वारा की गई थी। इस नोटबंदी का मकसद भी देश में काले धन को वापस लाना और भ्रष्टाचार को रोकना था।

तत्कालीन जनता पार्टी सरकार ने 16 जनवरी 1978 को देश में चल रहे 1000 रुपये, 5000 रुपये और 10000 रुपये के नोटों को बंद कर दिया था।

–आईएएनएस

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नई दिल्ली, 28 अगस्त (आईएएनएस)। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा 8 नवम्बर 2016 को की गई नोटबंदी की घोषणा तो सभी को याद है। इस नोटबंदी के दौरान 500 और 1000 हजार रुपए के पुराने नोटों को पूरी तरह चलन से बाहर करने का फैसला लिया गया था। इस दौरान यह घोषणा की गई थी कि अब 500 और 1000 के पुराने नोट लीगल टैंडर नहीं होंगे।

इसके बाद बैंकों के बाहर लोगों की लंबी कतार देखने को मिलने लगी थी। उस समय तक देश में नोटों के दो बड़े खाके थे एक था 500 का नोट और दूसरा 1000 रुपए का नोट। ऐसे में लोगों की परेशानी ज्यादा इसलिए बढ़ गई कि बाजार में जो करेंसी थी उसमें सबसे बड़ी हिस्सेदारी इन्हीं दोनों नोटों की थी। हालांकि इन दोनों नोटों को प्रचलन से बाहर करने के बाद 500 के नए नोट के साथ जो दूसरा लीगल टैंडर जारी किया गया वह 2000 के नोटों का था जो अब आरबीआई की तरफ से एक बार फिर प्रेरचलन से बाहर कर दिया गया है और यह नोट भी अब लीगल टैंडर नहीं है। लेकिन, क्या आपको पता है 2016 से पहले आज ही के दिन 2008 में भी कुछ नोटों को प्रचलन से बाहर किया गया था। हालांकि इसको नोटबंदी से जोड़कर तो नहीं देख सकते हैं लेकिन पुराने छपे नोटों को प्रचलन से बाहर होने की कई लोगों को तब भनक लगी जब वह पुराने नोट के साथ कभी खरीददारी के लिए पहुंचे। उस समय इन नोटों को प्रचलन से बाहर करने की सूचना तो जारी की गई लेकिन, यह सूचना आम जन तक सुलभ तरीके से नहीं पहुंच पाई।

आज ही के दिन 2008 में भारतीय रिजर्व बैंक ने पुरानी डिजाइन वाले छपाई हुए 500 और एक हजार के नोटों को चरणबद्ध तरीके से हटाने का ऐलान किया था। उस समय आरबीआई की तत्कालीन प्रवक्ता किलावाला ने एक बयान में कहा था कि 1996 से वर्ष 2000 के बीच इन 500 और 1000 के नोटों की जिस श्रृंखला की छपाई हुई है और जो बाजार में प्रचलन में हैं उसको बंद करके उसकी जगह पर नए नोट जारी किए जाएंगे।

उन्होंने इस प्रक्रिया को सामान्य बताते हुए कहा था, “इसमें कुछ भी असामान्य नहीं है। यह नियमित प्रक्रिया है। पूरी दुनिया के केंद्रीय बैंक सुरक्षा के नजरिए से ऐसा करते हैं।”

दरअसल एक तो कागज के नोटों की एक समय सीमा होती है जिसमें ये करेंसी बाजार में चलते-चलते खराब हो जाते हैं। दूसरी तरफ इन नोटों को संग्रहित करने का भी खतरा बना रहता है जिस पर लगाम लगाना जरूरी होती है। तीसरा और सबसे जरूरी कि लंबे समय तक प्रचलन में रहे नोटों का जाली नोट बनने और उसके सुरक्षा फीचरों के भी कॉपी होने का खतरा रहता है। ऐसे में मुद्रा सुरक्षा को देखते हुए ऐसा किया जाता है। ताकि कालाधन पर अंकुश लगे, नोटों की सुरक्षा फीचर के साथ कोई समझौता ना हो और बाजार में जाली नोटों का प्रचलन भी थमे।

हालांकि 2008 में लिए गए इस फैसले में एकदम से किसी भी नोट को लीगल टैंडर से नहीं हटाया गया था, जिसकी वजह आम लोगों को 2016 की तरह किसी भी परेशानी का सामना नहीं करना पड़ा था। ये पुराने 500 रुपये के नोट वर्ष 1996 में जारी किए गए थे। इसके अलावा 1000 हजार रुपयों के नोटों को इसके दो वर्ष बाद 1998 में जारी किया गया था।

हालांकि इससे पहले देश में कई बार नोटबंदी हो चुकी थी। देश में पहली नोटबंदी साल 1946 में हुई थी। उस समय देश के अति उच्च मूल्य (पांच हजार रुपए और दस हजार रुपए) के नोट भी चलन में हुआ करते थे। तब भारत के तत्कालीन वायसराय ‘आर्चीबाल्ड वेवेल’ ने 12 जनवरी 1946 में उच्च मूल्य वाले नोटों को बंद करने के लिए अध्यादेश जारी किया था। इसके बाद 26 जनवरी 1946 को देश में चल रहे 10000 रुपये के हाई करेंसी के नोटों को प्रचलन से बाहर कर दिया गया था।

साथ ही इसी अध्यादेश के माध्यम से आजादी के पहले 100 रुपये से ज्यादा मूल्य के सभी नोटों पर पूर्णत: प्रतिबंध लगा दिया गया था।

उस वक्त भी तत्कालीन ब्रिटिश सरकार ने लोगों से काले धन को वापस लाने के लिए उठाया गया यह कदम बताया था। हालांकि आजादी के बाद भारत सरकार अधिक मूल्य वाले नोटों को फिर चलन में ले आई थी।

इसके बाद 1978 में आजाद भारत की पहली नोटबंदी तत्कालीन प्रधानमंत्री मोरारजी देसाई द्वारा की गई थी। इस नोटबंदी का मकसद भी देश में काले धन को वापस लाना और भ्रष्टाचार को रोकना था।

तत्कालीन जनता पार्टी सरकार ने 16 जनवरी 1978 को देश में चल रहे 1000 रुपये, 5000 रुपये और 10000 रुपये के नोटों को बंद कर दिया था।

–आईएएनएस

पीएसएम/जीकेटी

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नई दिल्ली, 28 अगस्त (आईएएनएस)। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा 8 नवम्बर 2016 को की गई नोटबंदी की घोषणा तो सभी को याद है। इस नोटबंदी के दौरान 500 और 1000 हजार रुपए के पुराने नोटों को पूरी तरह चलन से बाहर करने का फैसला लिया गया था। इस दौरान यह घोषणा की गई थी कि अब 500 और 1000 के पुराने नोट लीगल टैंडर नहीं होंगे।

इसके बाद बैंकों के बाहर लोगों की लंबी कतार देखने को मिलने लगी थी। उस समय तक देश में नोटों के दो बड़े खाके थे एक था 500 का नोट और दूसरा 1000 रुपए का नोट। ऐसे में लोगों की परेशानी ज्यादा इसलिए बढ़ गई कि बाजार में जो करेंसी थी उसमें सबसे बड़ी हिस्सेदारी इन्हीं दोनों नोटों की थी। हालांकि इन दोनों नोटों को प्रचलन से बाहर करने के बाद 500 के नए नोट के साथ जो दूसरा लीगल टैंडर जारी किया गया वह 2000 के नोटों का था जो अब आरबीआई की तरफ से एक बार फिर प्रेरचलन से बाहर कर दिया गया है और यह नोट भी अब लीगल टैंडर नहीं है। लेकिन, क्या आपको पता है 2016 से पहले आज ही के दिन 2008 में भी कुछ नोटों को प्रचलन से बाहर किया गया था। हालांकि इसको नोटबंदी से जोड़कर तो नहीं देख सकते हैं लेकिन पुराने छपे नोटों को प्रचलन से बाहर होने की कई लोगों को तब भनक लगी जब वह पुराने नोट के साथ कभी खरीददारी के लिए पहुंचे। उस समय इन नोटों को प्रचलन से बाहर करने की सूचना तो जारी की गई लेकिन, यह सूचना आम जन तक सुलभ तरीके से नहीं पहुंच पाई।

आज ही के दिन 2008 में भारतीय रिजर्व बैंक ने पुरानी डिजाइन वाले छपाई हुए 500 और एक हजार के नोटों को चरणबद्ध तरीके से हटाने का ऐलान किया था। उस समय आरबीआई की तत्कालीन प्रवक्ता किलावाला ने एक बयान में कहा था कि 1996 से वर्ष 2000 के बीच इन 500 और 1000 के नोटों की जिस श्रृंखला की छपाई हुई है और जो बाजार में प्रचलन में हैं उसको बंद करके उसकी जगह पर नए नोट जारी किए जाएंगे।

उन्होंने इस प्रक्रिया को सामान्य बताते हुए कहा था, “इसमें कुछ भी असामान्य नहीं है। यह नियमित प्रक्रिया है। पूरी दुनिया के केंद्रीय बैंक सुरक्षा के नजरिए से ऐसा करते हैं।”

दरअसल एक तो कागज के नोटों की एक समय सीमा होती है जिसमें ये करेंसी बाजार में चलते-चलते खराब हो जाते हैं। दूसरी तरफ इन नोटों को संग्रहित करने का भी खतरा बना रहता है जिस पर लगाम लगाना जरूरी होती है। तीसरा और सबसे जरूरी कि लंबे समय तक प्रचलन में रहे नोटों का जाली नोट बनने और उसके सुरक्षा फीचरों के भी कॉपी होने का खतरा रहता है। ऐसे में मुद्रा सुरक्षा को देखते हुए ऐसा किया जाता है। ताकि कालाधन पर अंकुश लगे, नोटों की सुरक्षा फीचर के साथ कोई समझौता ना हो और बाजार में जाली नोटों का प्रचलन भी थमे।

हालांकि 2008 में लिए गए इस फैसले में एकदम से किसी भी नोट को लीगल टैंडर से नहीं हटाया गया था, जिसकी वजह आम लोगों को 2016 की तरह किसी भी परेशानी का सामना नहीं करना पड़ा था। ये पुराने 500 रुपये के नोट वर्ष 1996 में जारी किए गए थे। इसके अलावा 1000 हजार रुपयों के नोटों को इसके दो वर्ष बाद 1998 में जारी किया गया था।

हालांकि इससे पहले देश में कई बार नोटबंदी हो चुकी थी। देश में पहली नोटबंदी साल 1946 में हुई थी। उस समय देश के अति उच्च मूल्य (पांच हजार रुपए और दस हजार रुपए) के नोट भी चलन में हुआ करते थे। तब भारत के तत्कालीन वायसराय ‘आर्चीबाल्ड वेवेल’ ने 12 जनवरी 1946 में उच्च मूल्य वाले नोटों को बंद करने के लिए अध्यादेश जारी किया था। इसके बाद 26 जनवरी 1946 को देश में चल रहे 10000 रुपये के हाई करेंसी के नोटों को प्रचलन से बाहर कर दिया गया था।

साथ ही इसी अध्यादेश के माध्यम से आजादी के पहले 100 रुपये से ज्यादा मूल्य के सभी नोटों पर पूर्णत: प्रतिबंध लगा दिया गया था।

उस वक्त भी तत्कालीन ब्रिटिश सरकार ने लोगों से काले धन को वापस लाने के लिए उठाया गया यह कदम बताया था। हालांकि आजादी के बाद भारत सरकार अधिक मूल्य वाले नोटों को फिर चलन में ले आई थी।

इसके बाद 1978 में आजाद भारत की पहली नोटबंदी तत्कालीन प्रधानमंत्री मोरारजी देसाई द्वारा की गई थी। इस नोटबंदी का मकसद भी देश में काले धन को वापस लाना और भ्रष्टाचार को रोकना था।

तत्कालीन जनता पार्टी सरकार ने 16 जनवरी 1978 को देश में चल रहे 1000 रुपये, 5000 रुपये और 10000 रुपये के नोटों को बंद कर दिया था।

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नई दिल्ली, 28 अगस्त (आईएएनएस)। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा 8 नवम्बर 2016 को की गई नोटबंदी की घोषणा तो सभी को याद है। इस नोटबंदी के दौरान 500 और 1000 हजार रुपए के पुराने नोटों को पूरी तरह चलन से बाहर करने का फैसला लिया गया था। इस दौरान यह घोषणा की गई थी कि अब 500 और 1000 के पुराने नोट लीगल टैंडर नहीं होंगे।

इसके बाद बैंकों के बाहर लोगों की लंबी कतार देखने को मिलने लगी थी। उस समय तक देश में नोटों के दो बड़े खाके थे एक था 500 का नोट और दूसरा 1000 रुपए का नोट। ऐसे में लोगों की परेशानी ज्यादा इसलिए बढ़ गई कि बाजार में जो करेंसी थी उसमें सबसे बड़ी हिस्सेदारी इन्हीं दोनों नोटों की थी। हालांकि इन दोनों नोटों को प्रचलन से बाहर करने के बाद 500 के नए नोट के साथ जो दूसरा लीगल टैंडर जारी किया गया वह 2000 के नोटों का था जो अब आरबीआई की तरफ से एक बार फिर प्रेरचलन से बाहर कर दिया गया है और यह नोट भी अब लीगल टैंडर नहीं है। लेकिन, क्या आपको पता है 2016 से पहले आज ही के दिन 2008 में भी कुछ नोटों को प्रचलन से बाहर किया गया था। हालांकि इसको नोटबंदी से जोड़कर तो नहीं देख सकते हैं लेकिन पुराने छपे नोटों को प्रचलन से बाहर होने की कई लोगों को तब भनक लगी जब वह पुराने नोट के साथ कभी खरीददारी के लिए पहुंचे। उस समय इन नोटों को प्रचलन से बाहर करने की सूचना तो जारी की गई लेकिन, यह सूचना आम जन तक सुलभ तरीके से नहीं पहुंच पाई।

आज ही के दिन 2008 में भारतीय रिजर्व बैंक ने पुरानी डिजाइन वाले छपाई हुए 500 और एक हजार के नोटों को चरणबद्ध तरीके से हटाने का ऐलान किया था। उस समय आरबीआई की तत्कालीन प्रवक्ता किलावाला ने एक बयान में कहा था कि 1996 से वर्ष 2000 के बीच इन 500 और 1000 के नोटों की जिस श्रृंखला की छपाई हुई है और जो बाजार में प्रचलन में हैं उसको बंद करके उसकी जगह पर नए नोट जारी किए जाएंगे।

उन्होंने इस प्रक्रिया को सामान्य बताते हुए कहा था, “इसमें कुछ भी असामान्य नहीं है। यह नियमित प्रक्रिया है। पूरी दुनिया के केंद्रीय बैंक सुरक्षा के नजरिए से ऐसा करते हैं।”

दरअसल एक तो कागज के नोटों की एक समय सीमा होती है जिसमें ये करेंसी बाजार में चलते-चलते खराब हो जाते हैं। दूसरी तरफ इन नोटों को संग्रहित करने का भी खतरा बना रहता है जिस पर लगाम लगाना जरूरी होती है। तीसरा और सबसे जरूरी कि लंबे समय तक प्रचलन में रहे नोटों का जाली नोट बनने और उसके सुरक्षा फीचरों के भी कॉपी होने का खतरा रहता है। ऐसे में मुद्रा सुरक्षा को देखते हुए ऐसा किया जाता है। ताकि कालाधन पर अंकुश लगे, नोटों की सुरक्षा फीचर के साथ कोई समझौता ना हो और बाजार में जाली नोटों का प्रचलन भी थमे।

हालांकि 2008 में लिए गए इस फैसले में एकदम से किसी भी नोट को लीगल टैंडर से नहीं हटाया गया था, जिसकी वजह आम लोगों को 2016 की तरह किसी भी परेशानी का सामना नहीं करना पड़ा था। ये पुराने 500 रुपये के नोट वर्ष 1996 में जारी किए गए थे। इसके अलावा 1000 हजार रुपयों के नोटों को इसके दो वर्ष बाद 1998 में जारी किया गया था।

हालांकि इससे पहले देश में कई बार नोटबंदी हो चुकी थी। देश में पहली नोटबंदी साल 1946 में हुई थी। उस समय देश के अति उच्च मूल्य (पांच हजार रुपए और दस हजार रुपए) के नोट भी चलन में हुआ करते थे। तब भारत के तत्कालीन वायसराय ‘आर्चीबाल्ड वेवेल’ ने 12 जनवरी 1946 में उच्च मूल्य वाले नोटों को बंद करने के लिए अध्यादेश जारी किया था। इसके बाद 26 जनवरी 1946 को देश में चल रहे 10000 रुपये के हाई करेंसी के नोटों को प्रचलन से बाहर कर दिया गया था।

साथ ही इसी अध्यादेश के माध्यम से आजादी के पहले 100 रुपये से ज्यादा मूल्य के सभी नोटों पर पूर्णत: प्रतिबंध लगा दिया गया था।

उस वक्त भी तत्कालीन ब्रिटिश सरकार ने लोगों से काले धन को वापस लाने के लिए उठाया गया यह कदम बताया था। हालांकि आजादी के बाद भारत सरकार अधिक मूल्य वाले नोटों को फिर चलन में ले आई थी।

इसके बाद 1978 में आजाद भारत की पहली नोटबंदी तत्कालीन प्रधानमंत्री मोरारजी देसाई द्वारा की गई थी। इस नोटबंदी का मकसद भी देश में काले धन को वापस लाना और भ्रष्टाचार को रोकना था।

तत्कालीन जनता पार्टी सरकार ने 16 जनवरी 1978 को देश में चल रहे 1000 रुपये, 5000 रुपये और 10000 रुपये के नोटों को बंद कर दिया था।

–आईएएनएस

पीएसएम/जीकेटी

नई दिल्ली, 28 अगस्त (आईएएनएस)। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा 8 नवम्बर 2016 को की गई नोटबंदी की घोषणा तो सभी को याद है। इस नोटबंदी के दौरान 500 और 1000 हजार रुपए के पुराने नोटों को पूरी तरह चलन से बाहर करने का फैसला लिया गया था। इस दौरान यह घोषणा की गई थी कि अब 500 और 1000 के पुराने नोट लीगल टैंडर नहीं होंगे।

इसके बाद बैंकों के बाहर लोगों की लंबी कतार देखने को मिलने लगी थी। उस समय तक देश में नोटों के दो बड़े खाके थे एक था 500 का नोट और दूसरा 1000 रुपए का नोट। ऐसे में लोगों की परेशानी ज्यादा इसलिए बढ़ गई कि बाजार में जो करेंसी थी उसमें सबसे बड़ी हिस्सेदारी इन्हीं दोनों नोटों की थी। हालांकि इन दोनों नोटों को प्रचलन से बाहर करने के बाद 500 के नए नोट के साथ जो दूसरा लीगल टैंडर जारी किया गया वह 2000 के नोटों का था जो अब आरबीआई की तरफ से एक बार फिर प्रेरचलन से बाहर कर दिया गया है और यह नोट भी अब लीगल टैंडर नहीं है। लेकिन, क्या आपको पता है 2016 से पहले आज ही के दिन 2008 में भी कुछ नोटों को प्रचलन से बाहर किया गया था। हालांकि इसको नोटबंदी से जोड़कर तो नहीं देख सकते हैं लेकिन पुराने छपे नोटों को प्रचलन से बाहर होने की कई लोगों को तब भनक लगी जब वह पुराने नोट के साथ कभी खरीददारी के लिए पहुंचे। उस समय इन नोटों को प्रचलन से बाहर करने की सूचना तो जारी की गई लेकिन, यह सूचना आम जन तक सुलभ तरीके से नहीं पहुंच पाई।

आज ही के दिन 2008 में भारतीय रिजर्व बैंक ने पुरानी डिजाइन वाले छपाई हुए 500 और एक हजार के नोटों को चरणबद्ध तरीके से हटाने का ऐलान किया था। उस समय आरबीआई की तत्कालीन प्रवक्ता किलावाला ने एक बयान में कहा था कि 1996 से वर्ष 2000 के बीच इन 500 और 1000 के नोटों की जिस श्रृंखला की छपाई हुई है और जो बाजार में प्रचलन में हैं उसको बंद करके उसकी जगह पर नए नोट जारी किए जाएंगे।

उन्होंने इस प्रक्रिया को सामान्य बताते हुए कहा था, “इसमें कुछ भी असामान्य नहीं है। यह नियमित प्रक्रिया है। पूरी दुनिया के केंद्रीय बैंक सुरक्षा के नजरिए से ऐसा करते हैं।”

दरअसल एक तो कागज के नोटों की एक समय सीमा होती है जिसमें ये करेंसी बाजार में चलते-चलते खराब हो जाते हैं। दूसरी तरफ इन नोटों को संग्रहित करने का भी खतरा बना रहता है जिस पर लगाम लगाना जरूरी होती है। तीसरा और सबसे जरूरी कि लंबे समय तक प्रचलन में रहे नोटों का जाली नोट बनने और उसके सुरक्षा फीचरों के भी कॉपी होने का खतरा रहता है। ऐसे में मुद्रा सुरक्षा को देखते हुए ऐसा किया जाता है। ताकि कालाधन पर अंकुश लगे, नोटों की सुरक्षा फीचर के साथ कोई समझौता ना हो और बाजार में जाली नोटों का प्रचलन भी थमे।

हालांकि 2008 में लिए गए इस फैसले में एकदम से किसी भी नोट को लीगल टैंडर से नहीं हटाया गया था, जिसकी वजह आम लोगों को 2016 की तरह किसी भी परेशानी का सामना नहीं करना पड़ा था। ये पुराने 500 रुपये के नोट वर्ष 1996 में जारी किए गए थे। इसके अलावा 1000 हजार रुपयों के नोटों को इसके दो वर्ष बाद 1998 में जारी किया गया था।

हालांकि इससे पहले देश में कई बार नोटबंदी हो चुकी थी। देश में पहली नोटबंदी साल 1946 में हुई थी। उस समय देश के अति उच्च मूल्य (पांच हजार रुपए और दस हजार रुपए) के नोट भी चलन में हुआ करते थे। तब भारत के तत्कालीन वायसराय ‘आर्चीबाल्ड वेवेल’ ने 12 जनवरी 1946 में उच्च मूल्य वाले नोटों को बंद करने के लिए अध्यादेश जारी किया था। इसके बाद 26 जनवरी 1946 को देश में चल रहे 10000 रुपये के हाई करेंसी के नोटों को प्रचलन से बाहर कर दिया गया था।

साथ ही इसी अध्यादेश के माध्यम से आजादी के पहले 100 रुपये से ज्यादा मूल्य के सभी नोटों पर पूर्णत: प्रतिबंध लगा दिया गया था।

उस वक्त भी तत्कालीन ब्रिटिश सरकार ने लोगों से काले धन को वापस लाने के लिए उठाया गया यह कदम बताया था। हालांकि आजादी के बाद भारत सरकार अधिक मूल्य वाले नोटों को फिर चलन में ले आई थी।

इसके बाद 1978 में आजाद भारत की पहली नोटबंदी तत्कालीन प्रधानमंत्री मोरारजी देसाई द्वारा की गई थी। इस नोटबंदी का मकसद भी देश में काले धन को वापस लाना और भ्रष्टाचार को रोकना था।

तत्कालीन जनता पार्टी सरकार ने 16 जनवरी 1978 को देश में चल रहे 1000 रुपये, 5000 रुपये और 10000 रुपये के नोटों को बंद कर दिया था।

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नई दिल्ली, 28 अगस्त (आईएएनएस)। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा 8 नवम्बर 2016 को की गई नोटबंदी की घोषणा तो सभी को याद है। इस नोटबंदी के दौरान 500 और 1000 हजार रुपए के पुराने नोटों को पूरी तरह चलन से बाहर करने का फैसला लिया गया था। इस दौरान यह घोषणा की गई थी कि अब 500 और 1000 के पुराने नोट लीगल टैंडर नहीं होंगे।

इसके बाद बैंकों के बाहर लोगों की लंबी कतार देखने को मिलने लगी थी। उस समय तक देश में नोटों के दो बड़े खाके थे एक था 500 का नोट और दूसरा 1000 रुपए का नोट। ऐसे में लोगों की परेशानी ज्यादा इसलिए बढ़ गई कि बाजार में जो करेंसी थी उसमें सबसे बड़ी हिस्सेदारी इन्हीं दोनों नोटों की थी। हालांकि इन दोनों नोटों को प्रचलन से बाहर करने के बाद 500 के नए नोट के साथ जो दूसरा लीगल टैंडर जारी किया गया वह 2000 के नोटों का था जो अब आरबीआई की तरफ से एक बार फिर प्रेरचलन से बाहर कर दिया गया है और यह नोट भी अब लीगल टैंडर नहीं है। लेकिन, क्या आपको पता है 2016 से पहले आज ही के दिन 2008 में भी कुछ नोटों को प्रचलन से बाहर किया गया था। हालांकि इसको नोटबंदी से जोड़कर तो नहीं देख सकते हैं लेकिन पुराने छपे नोटों को प्रचलन से बाहर होने की कई लोगों को तब भनक लगी जब वह पुराने नोट के साथ कभी खरीददारी के लिए पहुंचे। उस समय इन नोटों को प्रचलन से बाहर करने की सूचना तो जारी की गई लेकिन, यह सूचना आम जन तक सुलभ तरीके से नहीं पहुंच पाई।

आज ही के दिन 2008 में भारतीय रिजर्व बैंक ने पुरानी डिजाइन वाले छपाई हुए 500 और एक हजार के नोटों को चरणबद्ध तरीके से हटाने का ऐलान किया था। उस समय आरबीआई की तत्कालीन प्रवक्ता किलावाला ने एक बयान में कहा था कि 1996 से वर्ष 2000 के बीच इन 500 और 1000 के नोटों की जिस श्रृंखला की छपाई हुई है और जो बाजार में प्रचलन में हैं उसको बंद करके उसकी जगह पर नए नोट जारी किए जाएंगे।

उन्होंने इस प्रक्रिया को सामान्य बताते हुए कहा था, “इसमें कुछ भी असामान्य नहीं है। यह नियमित प्रक्रिया है। पूरी दुनिया के केंद्रीय बैंक सुरक्षा के नजरिए से ऐसा करते हैं।”

दरअसल एक तो कागज के नोटों की एक समय सीमा होती है जिसमें ये करेंसी बाजार में चलते-चलते खराब हो जाते हैं। दूसरी तरफ इन नोटों को संग्रहित करने का भी खतरा बना रहता है जिस पर लगाम लगाना जरूरी होती है। तीसरा और सबसे जरूरी कि लंबे समय तक प्रचलन में रहे नोटों का जाली नोट बनने और उसके सुरक्षा फीचरों के भी कॉपी होने का खतरा रहता है। ऐसे में मुद्रा सुरक्षा को देखते हुए ऐसा किया जाता है। ताकि कालाधन पर अंकुश लगे, नोटों की सुरक्षा फीचर के साथ कोई समझौता ना हो और बाजार में जाली नोटों का प्रचलन भी थमे।

हालांकि 2008 में लिए गए इस फैसले में एकदम से किसी भी नोट को लीगल टैंडर से नहीं हटाया गया था, जिसकी वजह आम लोगों को 2016 की तरह किसी भी परेशानी का सामना नहीं करना पड़ा था। ये पुराने 500 रुपये के नोट वर्ष 1996 में जारी किए गए थे। इसके अलावा 1000 हजार रुपयों के नोटों को इसके दो वर्ष बाद 1998 में जारी किया गया था।

हालांकि इससे पहले देश में कई बार नोटबंदी हो चुकी थी। देश में पहली नोटबंदी साल 1946 में हुई थी। उस समय देश के अति उच्च मूल्य (पांच हजार रुपए और दस हजार रुपए) के नोट भी चलन में हुआ करते थे। तब भारत के तत्कालीन वायसराय ‘आर्चीबाल्ड वेवेल’ ने 12 जनवरी 1946 में उच्च मूल्य वाले नोटों को बंद करने के लिए अध्यादेश जारी किया था। इसके बाद 26 जनवरी 1946 को देश में चल रहे 10000 रुपये के हाई करेंसी के नोटों को प्रचलन से बाहर कर दिया गया था।

साथ ही इसी अध्यादेश के माध्यम से आजादी के पहले 100 रुपये से ज्यादा मूल्य के सभी नोटों पर पूर्णत: प्रतिबंध लगा दिया गया था।

उस वक्त भी तत्कालीन ब्रिटिश सरकार ने लोगों से काले धन को वापस लाने के लिए उठाया गया यह कदम बताया था। हालांकि आजादी के बाद भारत सरकार अधिक मूल्य वाले नोटों को फिर चलन में ले आई थी।

इसके बाद 1978 में आजाद भारत की पहली नोटबंदी तत्कालीन प्रधानमंत्री मोरारजी देसाई द्वारा की गई थी। इस नोटबंदी का मकसद भी देश में काले धन को वापस लाना और भ्रष्टाचार को रोकना था।

तत्कालीन जनता पार्टी सरकार ने 16 जनवरी 1978 को देश में चल रहे 1000 रुपये, 5000 रुपये और 10000 रुपये के नोटों को बंद कर दिया था।

–आईएएनएस

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नई दिल्ली, 28 अगस्त (आईएएनएस)। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा 8 नवम्बर 2016 को की गई नोटबंदी की घोषणा तो सभी को याद है। इस नोटबंदी के दौरान 500 और 1000 हजार रुपए के पुराने नोटों को पूरी तरह चलन से बाहर करने का फैसला लिया गया था। इस दौरान यह घोषणा की गई थी कि अब 500 और 1000 के पुराने नोट लीगल टैंडर नहीं होंगे।

इसके बाद बैंकों के बाहर लोगों की लंबी कतार देखने को मिलने लगी थी। उस समय तक देश में नोटों के दो बड़े खाके थे एक था 500 का नोट और दूसरा 1000 रुपए का नोट। ऐसे में लोगों की परेशानी ज्यादा इसलिए बढ़ गई कि बाजार में जो करेंसी थी उसमें सबसे बड़ी हिस्सेदारी इन्हीं दोनों नोटों की थी। हालांकि इन दोनों नोटों को प्रचलन से बाहर करने के बाद 500 के नए नोट के साथ जो दूसरा लीगल टैंडर जारी किया गया वह 2000 के नोटों का था जो अब आरबीआई की तरफ से एक बार फिर प्रेरचलन से बाहर कर दिया गया है और यह नोट भी अब लीगल टैंडर नहीं है। लेकिन, क्या आपको पता है 2016 से पहले आज ही के दिन 2008 में भी कुछ नोटों को प्रचलन से बाहर किया गया था। हालांकि इसको नोटबंदी से जोड़कर तो नहीं देख सकते हैं लेकिन पुराने छपे नोटों को प्रचलन से बाहर होने की कई लोगों को तब भनक लगी जब वह पुराने नोट के साथ कभी खरीददारी के लिए पहुंचे। उस समय इन नोटों को प्रचलन से बाहर करने की सूचना तो जारी की गई लेकिन, यह सूचना आम जन तक सुलभ तरीके से नहीं पहुंच पाई।

आज ही के दिन 2008 में भारतीय रिजर्व बैंक ने पुरानी डिजाइन वाले छपाई हुए 500 और एक हजार के नोटों को चरणबद्ध तरीके से हटाने का ऐलान किया था। उस समय आरबीआई की तत्कालीन प्रवक्ता किलावाला ने एक बयान में कहा था कि 1996 से वर्ष 2000 के बीच इन 500 और 1000 के नोटों की जिस श्रृंखला की छपाई हुई है और जो बाजार में प्रचलन में हैं उसको बंद करके उसकी जगह पर नए नोट जारी किए जाएंगे।

उन्होंने इस प्रक्रिया को सामान्य बताते हुए कहा था, “इसमें कुछ भी असामान्य नहीं है। यह नियमित प्रक्रिया है। पूरी दुनिया के केंद्रीय बैंक सुरक्षा के नजरिए से ऐसा करते हैं।”

दरअसल एक तो कागज के नोटों की एक समय सीमा होती है जिसमें ये करेंसी बाजार में चलते-चलते खराब हो जाते हैं। दूसरी तरफ इन नोटों को संग्रहित करने का भी खतरा बना रहता है जिस पर लगाम लगाना जरूरी होती है। तीसरा और सबसे जरूरी कि लंबे समय तक प्रचलन में रहे नोटों का जाली नोट बनने और उसके सुरक्षा फीचरों के भी कॉपी होने का खतरा रहता है। ऐसे में मुद्रा सुरक्षा को देखते हुए ऐसा किया जाता है। ताकि कालाधन पर अंकुश लगे, नोटों की सुरक्षा फीचर के साथ कोई समझौता ना हो और बाजार में जाली नोटों का प्रचलन भी थमे।

हालांकि 2008 में लिए गए इस फैसले में एकदम से किसी भी नोट को लीगल टैंडर से नहीं हटाया गया था, जिसकी वजह आम लोगों को 2016 की तरह किसी भी परेशानी का सामना नहीं करना पड़ा था। ये पुराने 500 रुपये के नोट वर्ष 1996 में जारी किए गए थे। इसके अलावा 1000 हजार रुपयों के नोटों को इसके दो वर्ष बाद 1998 में जारी किया गया था।

हालांकि इससे पहले देश में कई बार नोटबंदी हो चुकी थी। देश में पहली नोटबंदी साल 1946 में हुई थी। उस समय देश के अति उच्च मूल्य (पांच हजार रुपए और दस हजार रुपए) के नोट भी चलन में हुआ करते थे। तब भारत के तत्कालीन वायसराय ‘आर्चीबाल्ड वेवेल’ ने 12 जनवरी 1946 में उच्च मूल्य वाले नोटों को बंद करने के लिए अध्यादेश जारी किया था। इसके बाद 26 जनवरी 1946 को देश में चल रहे 10000 रुपये के हाई करेंसी के नोटों को प्रचलन से बाहर कर दिया गया था।

साथ ही इसी अध्यादेश के माध्यम से आजादी के पहले 100 रुपये से ज्यादा मूल्य के सभी नोटों पर पूर्णत: प्रतिबंध लगा दिया गया था।

उस वक्त भी तत्कालीन ब्रिटिश सरकार ने लोगों से काले धन को वापस लाने के लिए उठाया गया यह कदम बताया था। हालांकि आजादी के बाद भारत सरकार अधिक मूल्य वाले नोटों को फिर चलन में ले आई थी।

इसके बाद 1978 में आजाद भारत की पहली नोटबंदी तत्कालीन प्रधानमंत्री मोरारजी देसाई द्वारा की गई थी। इस नोटबंदी का मकसद भी देश में काले धन को वापस लाना और भ्रष्टाचार को रोकना था।

तत्कालीन जनता पार्टी सरकार ने 16 जनवरी 1978 को देश में चल रहे 1000 रुपये, 5000 रुपये और 10000 रुपये के नोटों को बंद कर दिया था।

–आईएएनएस

पीएसएम/जीकेटी

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नई दिल्ली, 28 अगस्त (आईएएनएस)। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा 8 नवम्बर 2016 को की गई नोटबंदी की घोषणा तो सभी को याद है। इस नोटबंदी के दौरान 500 और 1000 हजार रुपए के पुराने नोटों को पूरी तरह चलन से बाहर करने का फैसला लिया गया था। इस दौरान यह घोषणा की गई थी कि अब 500 और 1000 के पुराने नोट लीगल टैंडर नहीं होंगे।

इसके बाद बैंकों के बाहर लोगों की लंबी कतार देखने को मिलने लगी थी। उस समय तक देश में नोटों के दो बड़े खाके थे एक था 500 का नोट और दूसरा 1000 रुपए का नोट। ऐसे में लोगों की परेशानी ज्यादा इसलिए बढ़ गई कि बाजार में जो करेंसी थी उसमें सबसे बड़ी हिस्सेदारी इन्हीं दोनों नोटों की थी। हालांकि इन दोनों नोटों को प्रचलन से बाहर करने के बाद 500 के नए नोट के साथ जो दूसरा लीगल टैंडर जारी किया गया वह 2000 के नोटों का था जो अब आरबीआई की तरफ से एक बार फिर प्रेरचलन से बाहर कर दिया गया है और यह नोट भी अब लीगल टैंडर नहीं है। लेकिन, क्या आपको पता है 2016 से पहले आज ही के दिन 2008 में भी कुछ नोटों को प्रचलन से बाहर किया गया था। हालांकि इसको नोटबंदी से जोड़कर तो नहीं देख सकते हैं लेकिन पुराने छपे नोटों को प्रचलन से बाहर होने की कई लोगों को तब भनक लगी जब वह पुराने नोट के साथ कभी खरीददारी के लिए पहुंचे। उस समय इन नोटों को प्रचलन से बाहर करने की सूचना तो जारी की गई लेकिन, यह सूचना आम जन तक सुलभ तरीके से नहीं पहुंच पाई।

आज ही के दिन 2008 में भारतीय रिजर्व बैंक ने पुरानी डिजाइन वाले छपाई हुए 500 और एक हजार के नोटों को चरणबद्ध तरीके से हटाने का ऐलान किया था। उस समय आरबीआई की तत्कालीन प्रवक्ता किलावाला ने एक बयान में कहा था कि 1996 से वर्ष 2000 के बीच इन 500 और 1000 के नोटों की जिस श्रृंखला की छपाई हुई है और जो बाजार में प्रचलन में हैं उसको बंद करके उसकी जगह पर नए नोट जारी किए जाएंगे।

उन्होंने इस प्रक्रिया को सामान्य बताते हुए कहा था, “इसमें कुछ भी असामान्य नहीं है। यह नियमित प्रक्रिया है। पूरी दुनिया के केंद्रीय बैंक सुरक्षा के नजरिए से ऐसा करते हैं।”

दरअसल एक तो कागज के नोटों की एक समय सीमा होती है जिसमें ये करेंसी बाजार में चलते-चलते खराब हो जाते हैं। दूसरी तरफ इन नोटों को संग्रहित करने का भी खतरा बना रहता है जिस पर लगाम लगाना जरूरी होती है। तीसरा और सबसे जरूरी कि लंबे समय तक प्रचलन में रहे नोटों का जाली नोट बनने और उसके सुरक्षा फीचरों के भी कॉपी होने का खतरा रहता है। ऐसे में मुद्रा सुरक्षा को देखते हुए ऐसा किया जाता है। ताकि कालाधन पर अंकुश लगे, नोटों की सुरक्षा फीचर के साथ कोई समझौता ना हो और बाजार में जाली नोटों का प्रचलन भी थमे।

हालांकि 2008 में लिए गए इस फैसले में एकदम से किसी भी नोट को लीगल टैंडर से नहीं हटाया गया था, जिसकी वजह आम लोगों को 2016 की तरह किसी भी परेशानी का सामना नहीं करना पड़ा था। ये पुराने 500 रुपये के नोट वर्ष 1996 में जारी किए गए थे। इसके अलावा 1000 हजार रुपयों के नोटों को इसके दो वर्ष बाद 1998 में जारी किया गया था।

हालांकि इससे पहले देश में कई बार नोटबंदी हो चुकी थी। देश में पहली नोटबंदी साल 1946 में हुई थी। उस समय देश के अति उच्च मूल्य (पांच हजार रुपए और दस हजार रुपए) के नोट भी चलन में हुआ करते थे। तब भारत के तत्कालीन वायसराय ‘आर्चीबाल्ड वेवेल’ ने 12 जनवरी 1946 में उच्च मूल्य वाले नोटों को बंद करने के लिए अध्यादेश जारी किया था। इसके बाद 26 जनवरी 1946 को देश में चल रहे 10000 रुपये के हाई करेंसी के नोटों को प्रचलन से बाहर कर दिया गया था।

साथ ही इसी अध्यादेश के माध्यम से आजादी के पहले 100 रुपये से ज्यादा मूल्य के सभी नोटों पर पूर्णत: प्रतिबंध लगा दिया गया था।

उस वक्त भी तत्कालीन ब्रिटिश सरकार ने लोगों से काले धन को वापस लाने के लिए उठाया गया यह कदम बताया था। हालांकि आजादी के बाद भारत सरकार अधिक मूल्य वाले नोटों को फिर चलन में ले आई थी।

इसके बाद 1978 में आजाद भारत की पहली नोटबंदी तत्कालीन प्रधानमंत्री मोरारजी देसाई द्वारा की गई थी। इस नोटबंदी का मकसद भी देश में काले धन को वापस लाना और भ्रष्टाचार को रोकना था।

तत्कालीन जनता पार्टी सरकार ने 16 जनवरी 1978 को देश में चल रहे 1000 रुपये, 5000 रुपये और 10000 रुपये के नोटों को बंद कर दिया था।

–आईएएनएस

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नई दिल्ली, 28 अगस्त (आईएएनएस)। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा 8 नवम्बर 2016 को की गई नोटबंदी की घोषणा तो सभी को याद है। इस नोटबंदी के दौरान 500 और 1000 हजार रुपए के पुराने नोटों को पूरी तरह चलन से बाहर करने का फैसला लिया गया था। इस दौरान यह घोषणा की गई थी कि अब 500 और 1000 के पुराने नोट लीगल टैंडर नहीं होंगे।

इसके बाद बैंकों के बाहर लोगों की लंबी कतार देखने को मिलने लगी थी। उस समय तक देश में नोटों के दो बड़े खाके थे एक था 500 का नोट और दूसरा 1000 रुपए का नोट। ऐसे में लोगों की परेशानी ज्यादा इसलिए बढ़ गई कि बाजार में जो करेंसी थी उसमें सबसे बड़ी हिस्सेदारी इन्हीं दोनों नोटों की थी। हालांकि इन दोनों नोटों को प्रचलन से बाहर करने के बाद 500 के नए नोट के साथ जो दूसरा लीगल टैंडर जारी किया गया वह 2000 के नोटों का था जो अब आरबीआई की तरफ से एक बार फिर प्रेरचलन से बाहर कर दिया गया है और यह नोट भी अब लीगल टैंडर नहीं है। लेकिन, क्या आपको पता है 2016 से पहले आज ही के दिन 2008 में भी कुछ नोटों को प्रचलन से बाहर किया गया था। हालांकि इसको नोटबंदी से जोड़कर तो नहीं देख सकते हैं लेकिन पुराने छपे नोटों को प्रचलन से बाहर होने की कई लोगों को तब भनक लगी जब वह पुराने नोट के साथ कभी खरीददारी के लिए पहुंचे। उस समय इन नोटों को प्रचलन से बाहर करने की सूचना तो जारी की गई लेकिन, यह सूचना आम जन तक सुलभ तरीके से नहीं पहुंच पाई।

आज ही के दिन 2008 में भारतीय रिजर्व बैंक ने पुरानी डिजाइन वाले छपाई हुए 500 और एक हजार के नोटों को चरणबद्ध तरीके से हटाने का ऐलान किया था। उस समय आरबीआई की तत्कालीन प्रवक्ता किलावाला ने एक बयान में कहा था कि 1996 से वर्ष 2000 के बीच इन 500 और 1000 के नोटों की जिस श्रृंखला की छपाई हुई है और जो बाजार में प्रचलन में हैं उसको बंद करके उसकी जगह पर नए नोट जारी किए जाएंगे।

उन्होंने इस प्रक्रिया को सामान्य बताते हुए कहा था, “इसमें कुछ भी असामान्य नहीं है। यह नियमित प्रक्रिया है। पूरी दुनिया के केंद्रीय बैंक सुरक्षा के नजरिए से ऐसा करते हैं।”

दरअसल एक तो कागज के नोटों की एक समय सीमा होती है जिसमें ये करेंसी बाजार में चलते-चलते खराब हो जाते हैं। दूसरी तरफ इन नोटों को संग्रहित करने का भी खतरा बना रहता है जिस पर लगाम लगाना जरूरी होती है। तीसरा और सबसे जरूरी कि लंबे समय तक प्रचलन में रहे नोटों का जाली नोट बनने और उसके सुरक्षा फीचरों के भी कॉपी होने का खतरा रहता है। ऐसे में मुद्रा सुरक्षा को देखते हुए ऐसा किया जाता है। ताकि कालाधन पर अंकुश लगे, नोटों की सुरक्षा फीचर के साथ कोई समझौता ना हो और बाजार में जाली नोटों का प्रचलन भी थमे।

हालांकि 2008 में लिए गए इस फैसले में एकदम से किसी भी नोट को लीगल टैंडर से नहीं हटाया गया था, जिसकी वजह आम लोगों को 2016 की तरह किसी भी परेशानी का सामना नहीं करना पड़ा था। ये पुराने 500 रुपये के नोट वर्ष 1996 में जारी किए गए थे। इसके अलावा 1000 हजार रुपयों के नोटों को इसके दो वर्ष बाद 1998 में जारी किया गया था।

हालांकि इससे पहले देश में कई बार नोटबंदी हो चुकी थी। देश में पहली नोटबंदी साल 1946 में हुई थी। उस समय देश के अति उच्च मूल्य (पांच हजार रुपए और दस हजार रुपए) के नोट भी चलन में हुआ करते थे। तब भारत के तत्कालीन वायसराय ‘आर्चीबाल्ड वेवेल’ ने 12 जनवरी 1946 में उच्च मूल्य वाले नोटों को बंद करने के लिए अध्यादेश जारी किया था। इसके बाद 26 जनवरी 1946 को देश में चल रहे 10000 रुपये के हाई करेंसी के नोटों को प्रचलन से बाहर कर दिया गया था।

साथ ही इसी अध्यादेश के माध्यम से आजादी के पहले 100 रुपये से ज्यादा मूल्य के सभी नोटों पर पूर्णत: प्रतिबंध लगा दिया गया था।

उस वक्त भी तत्कालीन ब्रिटिश सरकार ने लोगों से काले धन को वापस लाने के लिए उठाया गया यह कदम बताया था। हालांकि आजादी के बाद भारत सरकार अधिक मूल्य वाले नोटों को फिर चलन में ले आई थी।

इसके बाद 1978 में आजाद भारत की पहली नोटबंदी तत्कालीन प्रधानमंत्री मोरारजी देसाई द्वारा की गई थी। इस नोटबंदी का मकसद भी देश में काले धन को वापस लाना और भ्रष्टाचार को रोकना था।

तत्कालीन जनता पार्टी सरकार ने 16 जनवरी 1978 को देश में चल रहे 1000 रुपये, 5000 रुपये और 10000 रुपये के नोटों को बंद कर दिया था।

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नई दिल्ली, 28 अगस्त (आईएएनएस)। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा 8 नवम्बर 2016 को की गई नोटबंदी की घोषणा तो सभी को याद है। इस नोटबंदी के दौरान 500 और 1000 हजार रुपए के पुराने नोटों को पूरी तरह चलन से बाहर करने का फैसला लिया गया था। इस दौरान यह घोषणा की गई थी कि अब 500 और 1000 के पुराने नोट लीगल टैंडर नहीं होंगे।

इसके बाद बैंकों के बाहर लोगों की लंबी कतार देखने को मिलने लगी थी। उस समय तक देश में नोटों के दो बड़े खाके थे एक था 500 का नोट और दूसरा 1000 रुपए का नोट। ऐसे में लोगों की परेशानी ज्यादा इसलिए बढ़ गई कि बाजार में जो करेंसी थी उसमें सबसे बड़ी हिस्सेदारी इन्हीं दोनों नोटों की थी। हालांकि इन दोनों नोटों को प्रचलन से बाहर करने के बाद 500 के नए नोट के साथ जो दूसरा लीगल टैंडर जारी किया गया वह 2000 के नोटों का था जो अब आरबीआई की तरफ से एक बार फिर प्रेरचलन से बाहर कर दिया गया है और यह नोट भी अब लीगल टैंडर नहीं है। लेकिन, क्या आपको पता है 2016 से पहले आज ही के दिन 2008 में भी कुछ नोटों को प्रचलन से बाहर किया गया था। हालांकि इसको नोटबंदी से जोड़कर तो नहीं देख सकते हैं लेकिन पुराने छपे नोटों को प्रचलन से बाहर होने की कई लोगों को तब भनक लगी जब वह पुराने नोट के साथ कभी खरीददारी के लिए पहुंचे। उस समय इन नोटों को प्रचलन से बाहर करने की सूचना तो जारी की गई लेकिन, यह सूचना आम जन तक सुलभ तरीके से नहीं पहुंच पाई।

आज ही के दिन 2008 में भारतीय रिजर्व बैंक ने पुरानी डिजाइन वाले छपाई हुए 500 और एक हजार के नोटों को चरणबद्ध तरीके से हटाने का ऐलान किया था। उस समय आरबीआई की तत्कालीन प्रवक्ता किलावाला ने एक बयान में कहा था कि 1996 से वर्ष 2000 के बीच इन 500 और 1000 के नोटों की जिस श्रृंखला की छपाई हुई है और जो बाजार में प्रचलन में हैं उसको बंद करके उसकी जगह पर नए नोट जारी किए जाएंगे।

उन्होंने इस प्रक्रिया को सामान्य बताते हुए कहा था, “इसमें कुछ भी असामान्य नहीं है। यह नियमित प्रक्रिया है। पूरी दुनिया के केंद्रीय बैंक सुरक्षा के नजरिए से ऐसा करते हैं।”

दरअसल एक तो कागज के नोटों की एक समय सीमा होती है जिसमें ये करेंसी बाजार में चलते-चलते खराब हो जाते हैं। दूसरी तरफ इन नोटों को संग्रहित करने का भी खतरा बना रहता है जिस पर लगाम लगाना जरूरी होती है। तीसरा और सबसे जरूरी कि लंबे समय तक प्रचलन में रहे नोटों का जाली नोट बनने और उसके सुरक्षा फीचरों के भी कॉपी होने का खतरा रहता है। ऐसे में मुद्रा सुरक्षा को देखते हुए ऐसा किया जाता है। ताकि कालाधन पर अंकुश लगे, नोटों की सुरक्षा फीचर के साथ कोई समझौता ना हो और बाजार में जाली नोटों का प्रचलन भी थमे।

हालांकि 2008 में लिए गए इस फैसले में एकदम से किसी भी नोट को लीगल टैंडर से नहीं हटाया गया था, जिसकी वजह आम लोगों को 2016 की तरह किसी भी परेशानी का सामना नहीं करना पड़ा था। ये पुराने 500 रुपये के नोट वर्ष 1996 में जारी किए गए थे। इसके अलावा 1000 हजार रुपयों के नोटों को इसके दो वर्ष बाद 1998 में जारी किया गया था।

हालांकि इससे पहले देश में कई बार नोटबंदी हो चुकी थी। देश में पहली नोटबंदी साल 1946 में हुई थी। उस समय देश के अति उच्च मूल्य (पांच हजार रुपए और दस हजार रुपए) के नोट भी चलन में हुआ करते थे। तब भारत के तत्कालीन वायसराय ‘आर्चीबाल्ड वेवेल’ ने 12 जनवरी 1946 में उच्च मूल्य वाले नोटों को बंद करने के लिए अध्यादेश जारी किया था। इसके बाद 26 जनवरी 1946 को देश में चल रहे 10000 रुपये के हाई करेंसी के नोटों को प्रचलन से बाहर कर दिया गया था।

साथ ही इसी अध्यादेश के माध्यम से आजादी के पहले 100 रुपये से ज्यादा मूल्य के सभी नोटों पर पूर्णत: प्रतिबंध लगा दिया गया था।

उस वक्त भी तत्कालीन ब्रिटिश सरकार ने लोगों से काले धन को वापस लाने के लिए उठाया गया यह कदम बताया था। हालांकि आजादी के बाद भारत सरकार अधिक मूल्य वाले नोटों को फिर चलन में ले आई थी।

इसके बाद 1978 में आजाद भारत की पहली नोटबंदी तत्कालीन प्रधानमंत्री मोरारजी देसाई द्वारा की गई थी। इस नोटबंदी का मकसद भी देश में काले धन को वापस लाना और भ्रष्टाचार को रोकना था।

तत्कालीन जनता पार्टी सरकार ने 16 जनवरी 1978 को देश में चल रहे 1000 रुपये, 5000 रुपये और 10000 रुपये के नोटों को बंद कर दिया था।

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नई दिल्ली, 28 अगस्त (आईएएनएस)। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा 8 नवम्बर 2016 को की गई नोटबंदी की घोषणा तो सभी को याद है। इस नोटबंदी के दौरान 500 और 1000 हजार रुपए के पुराने नोटों को पूरी तरह चलन से बाहर करने का फैसला लिया गया था। इस दौरान यह घोषणा की गई थी कि अब 500 और 1000 के पुराने नोट लीगल टैंडर नहीं होंगे।

इसके बाद बैंकों के बाहर लोगों की लंबी कतार देखने को मिलने लगी थी। उस समय तक देश में नोटों के दो बड़े खाके थे एक था 500 का नोट और दूसरा 1000 रुपए का नोट। ऐसे में लोगों की परेशानी ज्यादा इसलिए बढ़ गई कि बाजार में जो करेंसी थी उसमें सबसे बड़ी हिस्सेदारी इन्हीं दोनों नोटों की थी। हालांकि इन दोनों नोटों को प्रचलन से बाहर करने के बाद 500 के नए नोट के साथ जो दूसरा लीगल टैंडर जारी किया गया वह 2000 के नोटों का था जो अब आरबीआई की तरफ से एक बार फिर प्रेरचलन से बाहर कर दिया गया है और यह नोट भी अब लीगल टैंडर नहीं है। लेकिन, क्या आपको पता है 2016 से पहले आज ही के दिन 2008 में भी कुछ नोटों को प्रचलन से बाहर किया गया था। हालांकि इसको नोटबंदी से जोड़कर तो नहीं देख सकते हैं लेकिन पुराने छपे नोटों को प्रचलन से बाहर होने की कई लोगों को तब भनक लगी जब वह पुराने नोट के साथ कभी खरीददारी के लिए पहुंचे। उस समय इन नोटों को प्रचलन से बाहर करने की सूचना तो जारी की गई लेकिन, यह सूचना आम जन तक सुलभ तरीके से नहीं पहुंच पाई।

आज ही के दिन 2008 में भारतीय रिजर्व बैंक ने पुरानी डिजाइन वाले छपाई हुए 500 और एक हजार के नोटों को चरणबद्ध तरीके से हटाने का ऐलान किया था। उस समय आरबीआई की तत्कालीन प्रवक्ता किलावाला ने एक बयान में कहा था कि 1996 से वर्ष 2000 के बीच इन 500 और 1000 के नोटों की जिस श्रृंखला की छपाई हुई है और जो बाजार में प्रचलन में हैं उसको बंद करके उसकी जगह पर नए नोट जारी किए जाएंगे।

उन्होंने इस प्रक्रिया को सामान्य बताते हुए कहा था, “इसमें कुछ भी असामान्य नहीं है। यह नियमित प्रक्रिया है। पूरी दुनिया के केंद्रीय बैंक सुरक्षा के नजरिए से ऐसा करते हैं।”

दरअसल एक तो कागज के नोटों की एक समय सीमा होती है जिसमें ये करेंसी बाजार में चलते-चलते खराब हो जाते हैं। दूसरी तरफ इन नोटों को संग्रहित करने का भी खतरा बना रहता है जिस पर लगाम लगाना जरूरी होती है। तीसरा और सबसे जरूरी कि लंबे समय तक प्रचलन में रहे नोटों का जाली नोट बनने और उसके सुरक्षा फीचरों के भी कॉपी होने का खतरा रहता है। ऐसे में मुद्रा सुरक्षा को देखते हुए ऐसा किया जाता है। ताकि कालाधन पर अंकुश लगे, नोटों की सुरक्षा फीचर के साथ कोई समझौता ना हो और बाजार में जाली नोटों का प्रचलन भी थमे।

हालांकि 2008 में लिए गए इस फैसले में एकदम से किसी भी नोट को लीगल टैंडर से नहीं हटाया गया था, जिसकी वजह आम लोगों को 2016 की तरह किसी भी परेशानी का सामना नहीं करना पड़ा था। ये पुराने 500 रुपये के नोट वर्ष 1996 में जारी किए गए थे। इसके अलावा 1000 हजार रुपयों के नोटों को इसके दो वर्ष बाद 1998 में जारी किया गया था।

हालांकि इससे पहले देश में कई बार नोटबंदी हो चुकी थी। देश में पहली नोटबंदी साल 1946 में हुई थी। उस समय देश के अति उच्च मूल्य (पांच हजार रुपए और दस हजार रुपए) के नोट भी चलन में हुआ करते थे। तब भारत के तत्कालीन वायसराय ‘आर्चीबाल्ड वेवेल’ ने 12 जनवरी 1946 में उच्च मूल्य वाले नोटों को बंद करने के लिए अध्यादेश जारी किया था। इसके बाद 26 जनवरी 1946 को देश में चल रहे 10000 रुपये के हाई करेंसी के नोटों को प्रचलन से बाहर कर दिया गया था।

साथ ही इसी अध्यादेश के माध्यम से आजादी के पहले 100 रुपये से ज्यादा मूल्य के सभी नोटों पर पूर्णत: प्रतिबंध लगा दिया गया था।

उस वक्त भी तत्कालीन ब्रिटिश सरकार ने लोगों से काले धन को वापस लाने के लिए उठाया गया यह कदम बताया था। हालांकि आजादी के बाद भारत सरकार अधिक मूल्य वाले नोटों को फिर चलन में ले आई थी।

इसके बाद 1978 में आजाद भारत की पहली नोटबंदी तत्कालीन प्रधानमंत्री मोरारजी देसाई द्वारा की गई थी। इस नोटबंदी का मकसद भी देश में काले धन को वापस लाना और भ्रष्टाचार को रोकना था।

तत्कालीन जनता पार्टी सरकार ने 16 जनवरी 1978 को देश में चल रहे 1000 रुपये, 5000 रुपये और 10000 रुपये के नोटों को बंद कर दिया था।

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इसके बाद बैंकों के बाहर लोगों की लंबी कतार देखने को मिलने लगी थी। उस समय तक देश में नोटों के दो बड़े खाके थे एक था 500 का नोट और दूसरा 1000 रुपए का नोट। ऐसे में लोगों की परेशानी ज्यादा इसलिए बढ़ गई कि बाजार में जो करेंसी थी उसमें सबसे बड़ी हिस्सेदारी इन्हीं दोनों नोटों की थी। हालांकि इन दोनों नोटों को प्रचलन से बाहर करने के बाद 500 के नए नोट के साथ जो दूसरा लीगल टैंडर जारी किया गया वह 2000 के नोटों का था जो अब आरबीआई की तरफ से एक बार फिर प्रेरचलन से बाहर कर दिया गया है और यह नोट भी अब लीगल टैंडर नहीं है। लेकिन, क्या आपको पता है 2016 से पहले आज ही के दिन 2008 में भी कुछ नोटों को प्रचलन से बाहर किया गया था। हालांकि इसको नोटबंदी से जोड़कर तो नहीं देख सकते हैं लेकिन पुराने छपे नोटों को प्रचलन से बाहर होने की कई लोगों को तब भनक लगी जब वह पुराने नोट के साथ कभी खरीददारी के लिए पहुंचे। उस समय इन नोटों को प्रचलन से बाहर करने की सूचना तो जारी की गई लेकिन, यह सूचना आम जन तक सुलभ तरीके से नहीं पहुंच पाई।

आज ही के दिन 2008 में भारतीय रिजर्व बैंक ने पुरानी डिजाइन वाले छपाई हुए 500 और एक हजार के नोटों को चरणबद्ध तरीके से हटाने का ऐलान किया था। उस समय आरबीआई की तत्कालीन प्रवक्ता किलावाला ने एक बयान में कहा था कि 1996 से वर्ष 2000 के बीच इन 500 और 1000 के नोटों की जिस श्रृंखला की छपाई हुई है और जो बाजार में प्रचलन में हैं उसको बंद करके उसकी जगह पर नए नोट जारी किए जाएंगे।

उन्होंने इस प्रक्रिया को सामान्य बताते हुए कहा था, “इसमें कुछ भी असामान्य नहीं है। यह नियमित प्रक्रिया है। पूरी दुनिया के केंद्रीय बैंक सुरक्षा के नजरिए से ऐसा करते हैं।”

दरअसल एक तो कागज के नोटों की एक समय सीमा होती है जिसमें ये करेंसी बाजार में चलते-चलते खराब हो जाते हैं। दूसरी तरफ इन नोटों को संग्रहित करने का भी खतरा बना रहता है जिस पर लगाम लगाना जरूरी होती है। तीसरा और सबसे जरूरी कि लंबे समय तक प्रचलन में रहे नोटों का जाली नोट बनने और उसके सुरक्षा फीचरों के भी कॉपी होने का खतरा रहता है। ऐसे में मुद्रा सुरक्षा को देखते हुए ऐसा किया जाता है। ताकि कालाधन पर अंकुश लगे, नोटों की सुरक्षा फीचर के साथ कोई समझौता ना हो और बाजार में जाली नोटों का प्रचलन भी थमे।

हालांकि 2008 में लिए गए इस फैसले में एकदम से किसी भी नोट को लीगल टैंडर से नहीं हटाया गया था, जिसकी वजह आम लोगों को 2016 की तरह किसी भी परेशानी का सामना नहीं करना पड़ा था। ये पुराने 500 रुपये के नोट वर्ष 1996 में जारी किए गए थे। इसके अलावा 1000 हजार रुपयों के नोटों को इसके दो वर्ष बाद 1998 में जारी किया गया था।

हालांकि इससे पहले देश में कई बार नोटबंदी हो चुकी थी। देश में पहली नोटबंदी साल 1946 में हुई थी। उस समय देश के अति उच्च मूल्य (पांच हजार रुपए और दस हजार रुपए) के नोट भी चलन में हुआ करते थे। तब भारत के तत्कालीन वायसराय ‘आर्चीबाल्ड वेवेल’ ने 12 जनवरी 1946 में उच्च मूल्य वाले नोटों को बंद करने के लिए अध्यादेश जारी किया था। इसके बाद 26 जनवरी 1946 को देश में चल रहे 10000 रुपये के हाई करेंसी के नोटों को प्रचलन से बाहर कर दिया गया था।

साथ ही इसी अध्यादेश के माध्यम से आजादी के पहले 100 रुपये से ज्यादा मूल्य के सभी नोटों पर पूर्णत: प्रतिबंध लगा दिया गया था।

उस वक्त भी तत्कालीन ब्रिटिश सरकार ने लोगों से काले धन को वापस लाने के लिए उठाया गया यह कदम बताया था। हालांकि आजादी के बाद भारत सरकार अधिक मूल्य वाले नोटों को फिर चलन में ले आई थी।

इसके बाद 1978 में आजाद भारत की पहली नोटबंदी तत्कालीन प्रधानमंत्री मोरारजी देसाई द्वारा की गई थी। इस नोटबंदी का मकसद भी देश में काले धन को वापस लाना और भ्रष्टाचार को रोकना था।

तत्कालीन जनता पार्टी सरकार ने 16 जनवरी 1978 को देश में चल रहे 1000 रुपये, 5000 रुपये और 10000 रुपये के नोटों को बंद कर दिया था।

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