नई दिल्ली, 5 अक्टूबर (आईएएनएस)। तीन बार हरियाणा के मुख्यमंत्री रहने वाले भजनलाल बिश्नोई को एक ऐसा नेता माना जाता था जिनके लिए राजनीति में कुछ भी करना असंभव नहीं था। 6 अक्टूबर 1930 को संयुक्त पंजाब के बहावलपुर में पैदा हुए भजनलाल के राजनीतिक जीवन के कई किस्से बड़े मशहूर हैं। उनकी राजनीतिक क्षमताओं के बारे में 1980 का वह किस्सा बड़ा चर्चित है जब उन्होंने अपने करीब 40 विधायकों के साथ कांग्रेस में जाकर सबको चौंका दिया था।
तब हरियाणा में भजन लाल जनता पार्टी की सरकार का हिस्सा थे। केंद्र में उस दौरान इंदिरा गांधी ने जबरदस्त वापसी की थी। भजनलाल ने जैसे ही यह भांप लिया था कि केंद्र की ताकतवर सरकार अब राज्यों की गैर कांग्रेस सरकार को बर्खास्त कर सकती है तो उन्होंने ऐसा खेल खेला था कि रातों-रात उनकी पार्टी की पूरी कैबिनेट दूसरी पार्टी की सरकार में तब्दील हो चुकी थी।
मजेदार बात यह है कि इससे एक साल पहले उन्होंने चौधरी देवीलाल का तख्तापलट कर खुद की सरकार बनाई थी। इस तरह की जोड़ तोड़ में भजनलाल माहिर थे। ‘थ्री लाल्स ऑफ हरियाणा’ किताब में इस बात तक का जिक्र है कि उसी दौरान भजन लाल ने किसी से कहा था कि अगर उनको पता होता कि नेहरू परिवार में पैसा चलता है तो वह कब का राजपाट ले लेते।
भजनलाल गांधी के सीएम कार्यकाल में राजीव गांधी के सिरसा दौरे को लेकर एक बड़ा दिलचस्प किस्सा जलेबी से जुड़ा है। बताया जाता है कि राजीव गांधी की जलेबी खाने की इच्छा थी लेकिन तत्कालीन डिप्टी कमिश्नर के पीए उसकी जगह बर्फी ले आए। राजीव गांधी बगैर जलेबी खाए ही वापस चले। भजनलाल को इस बात पर इतना गुस्सा आया था कि उन्होंने डिप्टी कमिश्नर का ट्रांसफर कर दिया था।
1986 में भजनलाल को राजीव गांधी की केंद्र सरकार का हिस्सा बनाया गया था। हालांकि आदमपुर सीट उन्होंने अपने परिवार के लिए सुरक्षित रखी थी। उन्होंने खुद 2008 में हुए उपचुनाव में यहां से जीत हासिल की थी। इस सीट पर बिश्नोई परिवार का ही दबदबा रहा है।
भजनलाल 23 जुलाई 1991 से 11 मई 1996 तक भी हरियाणा के मुख्यमंत्री रहे। इसके अलावा वह 1986 में राज्यसभा सांसद एवं तीन बार लोकसभा सांसद (1989, 1998 एवं 2009) भी रहे। ‘पावर पॉलिटिक्स ऑफ हरियाणा’ किताब के अनुसार भजनलाल की राजनीति जाटों और अपने विधायकों को खुश करने के इर्द-गिर्द घूमती रही। इस स्थिति में हरियाणा की राजनीति देवीलाल चौधरी और भजनलाल के इर्द-गिर्द भी घूमती रही। हरियाणा के दिग्गज कांग्रेस नेता भूपेंद्र हुड्डा ने इसको दोनों के बीच की ‘फिक्सिंग’ तक बता दिया था। भारतीय राजनीति के प्रोफेसर कहे जाने वाले भजनलाल का निधन 3 जून, 2011 को हो गया था।
6 अक्टूबर के दिन भारत के एक और राजनीतिक का जन्म हुआ था। यह थे जीतन राम मांझी जिनका भारतीय राजनीति में उदय अपने आप में एक असाधारण घटना है। बिहार के गया में एक गरीब दलित परिवार से जन्मे मांझी ने स्नातक की पढ़ाई करने के बाद परिवार चलाने के लिए टेलीफोन एक्सचेंज में नौकरी की। 13 साल तक वह तब तक यह नौकरी करते रहे जब तक कि उनके भाई का करियर स्थापित नहीं हो गया। आखिर उन्होंने 1980 में कांग्रेस के टिकट पर गया के फतेहपुर सीट से विधानसभा चुनाव लड़ते हुए राजनीति में कदम रखा था।
वह तब तक संघर्ष में तपकर निखर चुके थे। दलित जागरण उनकी राजनीति की मुख्य संवेदना और लक्ष्य दोनों रहे। 1990 और 1996 में वह फतेहपुर से विधायक भी रहे। इसके बाद 1996 से लेकर 2005 का दौर वह है जब उन्होंने बिहार में आरजेडी की सरकार में मंत्री के तौर पर काम किया। इसके बाद वह जनता दल यूनाइटेड का हिस्सा बने जहां उनको 20 मई 2014 को पहली बार बिहार का मुख्यमंत्री बनने का अवसर मिला। तब नीतीश कुमार ने अपने पद से इस्तीफा देकर मांझी को यह पद दिया था।
नीतीश लोकसभा चुनाव 2014 में मिली हार से खिन्न थे। मांझी के तौर पर उनको एक रिमोट सीएम मिल रहा था। लेकिन दो महीने के अंदर ही मांझी ने दिखा गया था कि वह कठपुतली सीएम नहीं बनेंगे। उनकी स्वतंत्र सोच ने नीतीश कुमार सहित जेडीयू को असहज ही किया था। आखिर 20 फरवरी 2015 को मांझी को सीएम पद से हटा दिया गया और नीतीश कुमार के साथ उनके रिश्तों में तल्खी आ गई। यह मांझी के राजनीतिक करियर का बड़ा दिलचस्प मोड़ था, जिसने उनको ‘हिंदुस्तान आवाम मोर्चा’ नाम से अपनी अलग पार्टी बनाने की प्रेरणा दी।
अलग पार्टी बनाने के बाद मांझी ने भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के नेतृत्व वाले एनडीए के साथ गठबंधन किया। लेकिन 2019 के लोकसभा चुनाव में मोदी लहर के सामने उनका प्रभाव काफी कम ही रहा। हालांकि, साल 2024 के लोकसभा चुनाव में वह न केवल गया से सांसद बनने में कामयाब हुए बल्कि वर्तमान में उनकी पार्टी केंद्र और बिहार की राज्य सरकार में अपनी साझेदारी कर रही है।
इस तरह 80 साल की उम्र में तमाम बाधाओं को पार करने के बाद मांझी ने अपने लिए एक नया राजनीतिक मुकाम ढूंढ लिया। वह उच्च जातियों के प्रति सख्त रवैये के चलते कई बार विवादों में भी आए। उनके कुछ ऐसे वीडियो भी वायरल हुए जिसमें वह कर्मकांडों को लेकर अपशब्द भी बोलते नजर आए थे। ऐसे ही उन्होंने एक समारोह में भगवान राम को एक ‘आदर्श’ तो माना, लेकिन ‘सत्य’ मानने से इंकार कर दिया था। हालांकि राजनीति में शब्दों के अर्थ और संदर्भ समय के साथ बदल जाते हैं। लोकसभा चुनाव 2024 में मांझी भगवान राम का आशीर्वाद लेने के लिए अयोध्या भी पहुंचे और मतदान होने के बाद विष्णुपद मंदिर में भगवान विष्णु के आगे नतमस्तक भी हुए। आज धर्म, जात-पात से परे जीतन राम मांझी नरेंद्र मोदी कैबिनेट में सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यम मंत्री की भूमिका निभा रहे हैं।
–आईएएनएस
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