नई दिल्ली, 26 सितंबर (आईएएनएस)। हाल ही मेें गाइनोवेदा डॉट कॉम के किए गए एक शोध से यह बात सामने आई है कि 83 प्रतिशत महिलाओं को मासिक धर्म के दौरान दर्द का सामना करना पड़ता है।
शोध के लिए किए गए सर्वेक्षण में देश भर में 18 से 45 वर्ष की आयु वर्ग की 3 लाख से अधिक महिलाओं की प्रतिक्रियाएं देखी गईं। जिन्हें व्यापकता, गंभीरता और शारीरिक परिवर्तनों के आधार पर 3 समूहों में वर्गीकृत किया गया।
पहले समूह में मासिक धर्म संबंधी विकार वाली महिलाएं शामिल थीं, जो कुल उत्तरदाताओं का 70 प्रतिशत था।
दूसरे समूह में योनि विकार (26 प्रतिशत) वाली महिलाएं शामिल थीं, जिनके पास योनि से संबंधित चुनौतियां थीं, जिसमें असुविधा, संक्रमण या अनियमितताएं शामिल थीं, जो उनके समग्र योनि स्वास्थ्य और जीवन की गुणवत्ता को प्रभावित करती थीं।
तीसरे समूह में कुल 4 प्रतिशत उत्तरदाता शामिल थे, जिन्हें किसी भी विकार का सामना नहीं करना पड़ा।
पैन इंडिया सर्वेक्षण में पीसीओएस की उम्र और घटना, इसकी व्यापकता, अनियमित पीरियड्स सहित अन्य विकार, पीरियड्स के दौरान दर्द की गंभीरता और उत्तरदाताओं के बीच देखे गए शारीरिक परिवर्तनों के आधार पर निष्कर्षों पर प्रकाश डाला गया है।
आयु समूह और पीसीओएस की घटनाएं…
नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ हेल्थ (भारत सरकार) के विस्तृत शोध के अनुसार पॉलीसिस्टिक ओवरी सिंड्रोम (पीसीओएस) उम्र से बंधा नहीं है। यह एक विकार है जो महिलाओं को मासिक धर्म के दौरान प्रभावित करता है।
सर्वेक्षण के अनुसार, 25 से 34 आयु वर्ग की 60 प्रतिशत महिलाओं को पीसीओएस है। जो बात बहुत स्पष्ट रूप से सामने आई वह यह थी कि 24 वर्ष से कम आयु वर्ग की 51 प्रतिशत महिलाओं को पीसीओएस है।
हालांकि, जो बात इसे और अधिक चिंताजनक बनाती है वह यह है कि पीसीओएस महिलाओं की प्रजनन क्षमता को काफी हद तक प्रभावित करता है। पीसीओएस से पीड़ित महिलाओं में बांझपन की व्यापकता 70 से 80 प्रतिशत के बीच होती है।
पीसीओएस और अन्य हार्मोनल विकारों की व्यापकता…
पीसीओएस हमारे देश की महिलाओं पर कहर बरपाने वाला एकमात्र स्त्री रोग संबंधी विकार नहीं है।
आंकड़ों से पता चलता है कि जहां 54 प्रतिशत महिलाएं पीसीओएस से पीड़ित हैं, वहीं दूसरा प्रमुख मासिक धर्म विकार पीआईडी है, जो 17 प्रतिशत महिला आबादी को प्रभावित करता है।
इसके अलावा, 9 प्रतिशत कैंडिडिआसिस से, 5 प्रतिशत फाइब्रॉएड से और एक प्रतिशत एंडोमेट्रियल हाइपरप्लासिया से पीड़ित थे।
पीरियड्स के दौरान अनियमितता और दर्द की गंभीरता…
मासिक धर्म चक्र के दौरान दर्द के संबंध में सर्वेक्षण किए जाने पर, 83 प्रतिशत से अधिक भारतीय महिलाओं को मासिक धर्म के दौरान दर्द होता है, जो उन्हें हर महीने दर्द निवारक दवाओं का सेवन करने के लिए मजबूर करता है।
58 प्रतिशत ने हल्के और सहने योग्य दर्द की शिकायत की, 25 प्रतिशत ने गंभीर दर्द की शिकायत की और केवल 17 प्रतिशत ने बताया कि उनके मासिक धर्म के दौरान कोई दर्द नहीं हुआ।
76 प्रतिशत महिलाओं को कम प्रवाह के साथ अनियमित मासिक धर्म का अनुभव हुआ। लगभग आधी महिलाएं अपने पूरे मासिक चक्र के दौरान 5 से कम पैड का उपयोग करती हैं, जबकि एक स्वस्थ मासिक धर्म प्रवाह के लिए प्रति चक्र कम से कम 10 से 12 पैड के उपयोग की आवश्यकता होती है।
पीसीओएस से पीड़ित महिलाओं द्वारा सामना किए जाने वाले प्रमुख शारीरिक परिवर्तन…
पीसीओएस से निपटने के दौरान, महिलाओं को शरीर की प्रमुख समस्याओं से भी गुजरना पड़ता है। 60 प्रतिशत महिलाओं में अत्यधिक वजन बढ़ना देखा गया। 59 प्रतिशत महिलाओं में चेहरे पर बालों का बढ़ना (हिर्सुटिज्म) देखा गया। 55 प्रतिशत महिलाओं में मुंहासे जैसी त्वचा संबंधी समस्याएं देखी गईं, जबकि 51 प्रतिशत उत्तरदाताओं में रंजकता और अन्य हार्मोनल त्वचा संबंधी समस्याएं देखी गईं।
समाज में कुछ परिभाषित स्वास्थ्य और सौंदर्य मानकों के कारण, ये मुद्दे उनमें मानसिक और भावनात्मक परेशानी का कारण बन जाते हैं।
शोध का नेतृत्व करने वाली गाइनोवेदा की सह-संस्थापक रचना गुप्ता ने बताया, “डॉक्टरों, ग्राहकों और उत्तरदाताओं की अंतर्दृष्टि से पूरक रणनीतिक रूप से डिजाइन किया गया अवधि परीक्षण सटीकता और प्रभावकारिता सुनिश्चित करता है। इस परीक्षण से प्राप्त अंतर्दृष्टि का उपयोग करके और आयुर्वेदिक फॉर्मूलेशन और डॉक्टर के समर्थन के साथ संयोजन करके, गाइनोवेदा ने अपनी स्थापना के बाद से केवल 3 वर्षों में 200,000 से अधिक लोगों के जीवन को उल्लेखनीय रूप से प्रभावित किया है और इसका लक्ष्य असाधारण सामुदायिक कार्य को जारी रखना है।”
गाइनोवेदा में मुख्य आयुर्वेद स्त्री रोग विशेषज्ञ डॉ. आरती पाटिल बताती हैं कि, आयुर्वेद पीसीओएस को कफ विकार मानता है। दोषपूर्ण आहार और जीवनशैली की आदतें जैसे व्यायाम की कमी, दिन में सोना, आहार में अधिक चीनी, फास्ट फूड, जंक फूड और पैकेज्ड फूड शामिल करने से अत्यधिक कफ उत्पादन होता है। अत्यधिक कफ पाचन को प्रभावित करता है और खराब पाचन एएमए को जन्म देता है जिसे चिपचिपा विषाक्त पदार्थ माना जा सकता है जो अंडाशय में चैनलों को अवरुद्ध करता है। ये रुकावटें अंडे के विकास को प्रभावित करती हैं और आयुर्वेद के अनुसार पीसीओएस विकृति इसी तरह शुरू होती है।”
–आईएएनएस
एमकेएस