नई दिल्ली, 2 जनवरी (आईएएनएस)। 2003 में एक जेलर को धमकी देने और उस पर पिस्तौल तानने के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को इलाहाबाद हाईकोर्ट के उस आदेश पर रोक लगा दी, जिसमें यूपी के पूर्व विधायक मुख्तार अंसारी को दोषी ठहराया गया था और सात साल की कैद की सजा सुनाई गई थी।
अंसारी फिलहाल बांदा जेल में बंद हैं।
जस्टिस बी.आर. गवई और विक्रम नाथ की बेंच ने हाईकोर्ट के आदेश पर रोक लगा दी और उत्तर प्रदेश सरकार को नोटिस जारी किया। गैंगस्टर-राजनेता अंसारी ने हाईकोर्ट द्वारा उसे दोषी ठहराए जाने को चुनौती देते हुए सुप्रीम कोर्ट में अपील दायर की थी।
हाईकोर्ट ने पिछले साल सितंबर में अंसारी को इस मामले में बरी करने के निचली अदालत के आदेश को रद्द कर दिया था। कोर्ट ने माना कि ट्रायल कोर्ट ने जेलर के सबूतों को पूरी तरह से नजरअंदाज कर दिया था और केवल उसकी जिरह पर विचार किया था। उन्होंने अंसारी को भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 353, 504 और 506 के तहत दोषी पाया था।
हाईकोर्ट ने धारा 353 के तहत अपराध के लिए अंसारी को दो साल के सश्रम कारावास और 10,000 रुपये का जुर्माना और धारा 504 के तहत अपराध के लिए दो साल की जेल और 2,000 रुपये का जुर्माना और धारा 506 के तहत अपराध के लिए सात साल की जेल और 25,000 रुपये का जुर्माना लगाया था।
ट्रायल कोर्ट का ²ष्टिकोण स्पष्ट रूप से गलत था और ट्रायल कोर्ट द्वारा पारित निर्णय और आदेश अस्थिर था।
2003 में, लखनऊ जिला जेल के जेलर ने एक एफआईआर दर्ज कराई थी, जिसमें आरोप लगाया गया था कि अंसारी से मिलने आए लोगों की तलाशी का आदेश देने के लिए उन्हें धमकी दी गई थी। जेलर ने यह भी दावा किया कि अंसारी ने उस पर पिस्तौल तान दी थी। निचली अदालत द्वारा अंसारी को बरी किये जाने के बाद राज्य सरकार ने उच्च न्यायालय का रूख किया था।
–आईएएनएस
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