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Home Today's Special News

बिलकिस बानो मामला : सुप्रीम कोर्ट की जज ने सुनवाई से फिर खुद को अलग किया

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January 4, 2023
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बिलकिस बानो मामला : सुप्रीम कोर्ट की जज ने सुनवाई से फिर खुद को अलग किया
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नई दिल्ली, 4 जनवरी (आईएएनएस)। सुप्रीम कोर्ट की न्यायाधीश न्यायमूर्ति बेला एम. त्रिवेदी ने बुधवार को बिलकिस बानो मामले में 11 दोषियों की रिहाई के खिलाफ याचिकाओं की सुनवाई से खुद को फिर अलग कर लिया।

न्यायमूर्ति अजय रस्तोगी और न्यायमूर्ति बेला एम. त्रिवेदी की पीठ ने दोषियों की रिहाई को चुनौती देने वाली माकपा नेता सुभाषिनी अली, पत्रकार रेवती लाल, लखनऊ विश्वविद्यालय की पूर्व कुलपति रूपरेखा वर्मा और तृणमूल कांग्रेस सांसद महुआ मोइत्रा की याचिकाओं पर विचार किया।

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दोषियों में से एक का प्रतिनिधित्व कर रहे वकील ऋषि मल्होत्रा ने जोर देकर तर्क दिया कि याचिकाकर्ताओं को मामले में अपना अधिकार साबित करना होगा। याचिकाकर्ताओं का प्रतिनिधित्व करने वाली अधिवक्ता वृंदा ग्रोवर और अर्पणा भट ने मल्होत्रा की दलील का विरोध करते हुए कहा कि अदालत द्वारा उनकी याचिका पर नोटिस जारी किए जाने के बाद स्थिरता का स्तर पार हो गया है।

साल 2002 के गुजरात दंगों के दौरान बिलकिस बानो के साथ सामूहिक दुष्कर्म किया गया था और उसके परिवार के कई सदस्यों की हत्या कर दी गई थी। बिलकिस बानो का प्रतिनिधित्व करने वाली अधिवक्ता शोभा गुप्ता ने कहा, पहले न्यायमूर्ति बेला एम. त्रिवेदी ने दोषियों की रिहाई के खिलाफ उनके मुवक्किल की याचिका पर सुनवाई से खुद को अलग कर लिया था। इस मौके पर बेंच में मौजूद जजों ने कुछ देर आपस में बातचीत की। उसके बाद जस्टिस रस्तोगी ने कहा, अगर जस्टिस त्रिवेदी पहले ही पीड़िता की याचिका की सुनवाई से खुद को अलग कर चुकी हैं तो वह इस मामले की सुनवाई से भी खुद को अलग करना चाहेंगी।

उन्होंने आगे कहा, बिलकिस बानो की याचिका को मुख्य मामले के रूप में लिया जाएगा और बाकी रिट याचिकाओं को इसके साथ टैग किया जाएगा, जब पीठ न्यायाधीशों के एक अलग संयोजन में बैठेगी।

वरिष्ठ अधिवक्ता सिद्धार्थ लूथरा और मल्होत्रा ने पीठ से अनुरोध किया कि याचिकाकर्ताओं द्वारा दायर किए जा रहे प्रत्युत्तर हलफनामे उन्हें दिए जाएं। जस्टिस रस्तोगी ने कहा कि सब कुछ पार्टियों के बीच साझा किया जाना चाहिए।

भट ने कहा कि मामले में दलीलें खत्म हो गई हैं और अदालत फरवरी में सुनवाई के लिए याचिकाएं ले सकती हैं। पीठ फरवरी में याचिकाओं को सूचीबद्ध करने पर सहमत हुई।

न्यायमूर्ति त्रिवेदी ने पिछले महीने 11 दोषियों की रिहाई के खिलाफ बिलकिस बानो द्वारा दायर याचिका पर सुनवाई से खुद को अलग कर लिया था। उन्होंने अलग होने का कोई कारण नहीं बताया था। याचिका में बिलकिस बानो ने कहा है कि सभी दोषियों की रिहाई का फैसला न केवल याचिकाकर्ता, उसकी बड़ी हो चुकीं बेटियों, उसके परिवार के लिए ही नहीं, बल्कि बड़े पैमाने पर राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर समाज के लिए एक झटके के रूप में आया है।

उसने याचिका में कहा है, सभी दोषियों की समय से पहले रिहाई न केवल याचिकाकर्ता, उसकी बड़ी हो चुकी बेटियों, उसके परिवार के लिए, बल्कि समाज के लिए बड़े पैमाने पर, राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर एक झटके के रूप में आई और समाज के सभी वर्गो ने इस मामले के 11 दोषियों को रिहा करके सरकार द्वारा किए गए क्षमादान के प्रति अपना गुस्सा, निराशा, अविश्वास और विरोध जताया।

रिहाई के आदेश को यांत्रिक करार देते हुए याचिका में कहा गया है कि इस बहुचर्चित मामले में दोषियों की समय से पहले रिहाई ने समाज की अंतरात्मा को झकझोर कर रख दिया है और इसके परिणामस्वरूप देशभर में कई आंदोलन हुए, जिस पर गौर किया जाना चाहिए।

–आईएएनएस

केसी/एसजीके

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नई दिल्ली, 4 जनवरी (आईएएनएस)। सुप्रीम कोर्ट की न्यायाधीश न्यायमूर्ति बेला एम. त्रिवेदी ने बुधवार को बिलकिस बानो मामले में 11 दोषियों की रिहाई के खिलाफ याचिकाओं की सुनवाई से खुद को फिर अलग कर लिया।

न्यायमूर्ति अजय रस्तोगी और न्यायमूर्ति बेला एम. त्रिवेदी की पीठ ने दोषियों की रिहाई को चुनौती देने वाली माकपा नेता सुभाषिनी अली, पत्रकार रेवती लाल, लखनऊ विश्वविद्यालय की पूर्व कुलपति रूपरेखा वर्मा और तृणमूल कांग्रेस सांसद महुआ मोइत्रा की याचिकाओं पर विचार किया।

दोषियों में से एक का प्रतिनिधित्व कर रहे वकील ऋषि मल्होत्रा ने जोर देकर तर्क दिया कि याचिकाकर्ताओं को मामले में अपना अधिकार साबित करना होगा। याचिकाकर्ताओं का प्रतिनिधित्व करने वाली अधिवक्ता वृंदा ग्रोवर और अर्पणा भट ने मल्होत्रा की दलील का विरोध करते हुए कहा कि अदालत द्वारा उनकी याचिका पर नोटिस जारी किए जाने के बाद स्थिरता का स्तर पार हो गया है।

साल 2002 के गुजरात दंगों के दौरान बिलकिस बानो के साथ सामूहिक दुष्कर्म किया गया था और उसके परिवार के कई सदस्यों की हत्या कर दी गई थी। बिलकिस बानो का प्रतिनिधित्व करने वाली अधिवक्ता शोभा गुप्ता ने कहा, पहले न्यायमूर्ति बेला एम. त्रिवेदी ने दोषियों की रिहाई के खिलाफ उनके मुवक्किल की याचिका पर सुनवाई से खुद को अलग कर लिया था। इस मौके पर बेंच में मौजूद जजों ने कुछ देर आपस में बातचीत की। उसके बाद जस्टिस रस्तोगी ने कहा, अगर जस्टिस त्रिवेदी पहले ही पीड़िता की याचिका की सुनवाई से खुद को अलग कर चुकी हैं तो वह इस मामले की सुनवाई से भी खुद को अलग करना चाहेंगी।

उन्होंने आगे कहा, बिलकिस बानो की याचिका को मुख्य मामले के रूप में लिया जाएगा और बाकी रिट याचिकाओं को इसके साथ टैग किया जाएगा, जब पीठ न्यायाधीशों के एक अलग संयोजन में बैठेगी।

वरिष्ठ अधिवक्ता सिद्धार्थ लूथरा और मल्होत्रा ने पीठ से अनुरोध किया कि याचिकाकर्ताओं द्वारा दायर किए जा रहे प्रत्युत्तर हलफनामे उन्हें दिए जाएं। जस्टिस रस्तोगी ने कहा कि सब कुछ पार्टियों के बीच साझा किया जाना चाहिए।

भट ने कहा कि मामले में दलीलें खत्म हो गई हैं और अदालत फरवरी में सुनवाई के लिए याचिकाएं ले सकती हैं। पीठ फरवरी में याचिकाओं को सूचीबद्ध करने पर सहमत हुई।

न्यायमूर्ति त्रिवेदी ने पिछले महीने 11 दोषियों की रिहाई के खिलाफ बिलकिस बानो द्वारा दायर याचिका पर सुनवाई से खुद को अलग कर लिया था। उन्होंने अलग होने का कोई कारण नहीं बताया था। याचिका में बिलकिस बानो ने कहा है कि सभी दोषियों की रिहाई का फैसला न केवल याचिकाकर्ता, उसकी बड़ी हो चुकीं बेटियों, उसके परिवार के लिए ही नहीं, बल्कि बड़े पैमाने पर राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर समाज के लिए एक झटके के रूप में आया है।

उसने याचिका में कहा है, सभी दोषियों की समय से पहले रिहाई न केवल याचिकाकर्ता, उसकी बड़ी हो चुकी बेटियों, उसके परिवार के लिए, बल्कि समाज के लिए बड़े पैमाने पर, राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर एक झटके के रूप में आई और समाज के सभी वर्गो ने इस मामले के 11 दोषियों को रिहा करके सरकार द्वारा किए गए क्षमादान के प्रति अपना गुस्सा, निराशा, अविश्वास और विरोध जताया।

रिहाई के आदेश को यांत्रिक करार देते हुए याचिका में कहा गया है कि इस बहुचर्चित मामले में दोषियों की समय से पहले रिहाई ने समाज की अंतरात्मा को झकझोर कर रख दिया है और इसके परिणामस्वरूप देशभर में कई आंदोलन हुए, जिस पर गौर किया जाना चाहिए।

–आईएएनएस

केसी/एसजीके

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नई दिल्ली, 4 जनवरी (आईएएनएस)। सुप्रीम कोर्ट की न्यायाधीश न्यायमूर्ति बेला एम. त्रिवेदी ने बुधवार को बिलकिस बानो मामले में 11 दोषियों की रिहाई के खिलाफ याचिकाओं की सुनवाई से खुद को फिर अलग कर लिया।

न्यायमूर्ति अजय रस्तोगी और न्यायमूर्ति बेला एम. त्रिवेदी की पीठ ने दोषियों की रिहाई को चुनौती देने वाली माकपा नेता सुभाषिनी अली, पत्रकार रेवती लाल, लखनऊ विश्वविद्यालय की पूर्व कुलपति रूपरेखा वर्मा और तृणमूल कांग्रेस सांसद महुआ मोइत्रा की याचिकाओं पर विचार किया।

दोषियों में से एक का प्रतिनिधित्व कर रहे वकील ऋषि मल्होत्रा ने जोर देकर तर्क दिया कि याचिकाकर्ताओं को मामले में अपना अधिकार साबित करना होगा। याचिकाकर्ताओं का प्रतिनिधित्व करने वाली अधिवक्ता वृंदा ग्रोवर और अर्पणा भट ने मल्होत्रा की दलील का विरोध करते हुए कहा कि अदालत द्वारा उनकी याचिका पर नोटिस जारी किए जाने के बाद स्थिरता का स्तर पार हो गया है।

साल 2002 के गुजरात दंगों के दौरान बिलकिस बानो के साथ सामूहिक दुष्कर्म किया गया था और उसके परिवार के कई सदस्यों की हत्या कर दी गई थी। बिलकिस बानो का प्रतिनिधित्व करने वाली अधिवक्ता शोभा गुप्ता ने कहा, पहले न्यायमूर्ति बेला एम. त्रिवेदी ने दोषियों की रिहाई के खिलाफ उनके मुवक्किल की याचिका पर सुनवाई से खुद को अलग कर लिया था। इस मौके पर बेंच में मौजूद जजों ने कुछ देर आपस में बातचीत की। उसके बाद जस्टिस रस्तोगी ने कहा, अगर जस्टिस त्रिवेदी पहले ही पीड़िता की याचिका की सुनवाई से खुद को अलग कर चुकी हैं तो वह इस मामले की सुनवाई से भी खुद को अलग करना चाहेंगी।

उन्होंने आगे कहा, बिलकिस बानो की याचिका को मुख्य मामले के रूप में लिया जाएगा और बाकी रिट याचिकाओं को इसके साथ टैग किया जाएगा, जब पीठ न्यायाधीशों के एक अलग संयोजन में बैठेगी।

वरिष्ठ अधिवक्ता सिद्धार्थ लूथरा और मल्होत्रा ने पीठ से अनुरोध किया कि याचिकाकर्ताओं द्वारा दायर किए जा रहे प्रत्युत्तर हलफनामे उन्हें दिए जाएं। जस्टिस रस्तोगी ने कहा कि सब कुछ पार्टियों के बीच साझा किया जाना चाहिए।

भट ने कहा कि मामले में दलीलें खत्म हो गई हैं और अदालत फरवरी में सुनवाई के लिए याचिकाएं ले सकती हैं। पीठ फरवरी में याचिकाओं को सूचीबद्ध करने पर सहमत हुई।

न्यायमूर्ति त्रिवेदी ने पिछले महीने 11 दोषियों की रिहाई के खिलाफ बिलकिस बानो द्वारा दायर याचिका पर सुनवाई से खुद को अलग कर लिया था। उन्होंने अलग होने का कोई कारण नहीं बताया था। याचिका में बिलकिस बानो ने कहा है कि सभी दोषियों की रिहाई का फैसला न केवल याचिकाकर्ता, उसकी बड़ी हो चुकीं बेटियों, उसके परिवार के लिए ही नहीं, बल्कि बड़े पैमाने पर राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर समाज के लिए एक झटके के रूप में आया है।

उसने याचिका में कहा है, सभी दोषियों की समय से पहले रिहाई न केवल याचिकाकर्ता, उसकी बड़ी हो चुकी बेटियों, उसके परिवार के लिए, बल्कि समाज के लिए बड़े पैमाने पर, राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर एक झटके के रूप में आई और समाज के सभी वर्गो ने इस मामले के 11 दोषियों को रिहा करके सरकार द्वारा किए गए क्षमादान के प्रति अपना गुस्सा, निराशा, अविश्वास और विरोध जताया।

रिहाई के आदेश को यांत्रिक करार देते हुए याचिका में कहा गया है कि इस बहुचर्चित मामले में दोषियों की समय से पहले रिहाई ने समाज की अंतरात्मा को झकझोर कर रख दिया है और इसके परिणामस्वरूप देशभर में कई आंदोलन हुए, जिस पर गौर किया जाना चाहिए।

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नई दिल्ली, 4 जनवरी (आईएएनएस)। सुप्रीम कोर्ट की न्यायाधीश न्यायमूर्ति बेला एम. त्रिवेदी ने बुधवार को बिलकिस बानो मामले में 11 दोषियों की रिहाई के खिलाफ याचिकाओं की सुनवाई से खुद को फिर अलग कर लिया।

न्यायमूर्ति अजय रस्तोगी और न्यायमूर्ति बेला एम. त्रिवेदी की पीठ ने दोषियों की रिहाई को चुनौती देने वाली माकपा नेता सुभाषिनी अली, पत्रकार रेवती लाल, लखनऊ विश्वविद्यालय की पूर्व कुलपति रूपरेखा वर्मा और तृणमूल कांग्रेस सांसद महुआ मोइत्रा की याचिकाओं पर विचार किया।

दोषियों में से एक का प्रतिनिधित्व कर रहे वकील ऋषि मल्होत्रा ने जोर देकर तर्क दिया कि याचिकाकर्ताओं को मामले में अपना अधिकार साबित करना होगा। याचिकाकर्ताओं का प्रतिनिधित्व करने वाली अधिवक्ता वृंदा ग्रोवर और अर्पणा भट ने मल्होत्रा की दलील का विरोध करते हुए कहा कि अदालत द्वारा उनकी याचिका पर नोटिस जारी किए जाने के बाद स्थिरता का स्तर पार हो गया है।

साल 2002 के गुजरात दंगों के दौरान बिलकिस बानो के साथ सामूहिक दुष्कर्म किया गया था और उसके परिवार के कई सदस्यों की हत्या कर दी गई थी। बिलकिस बानो का प्रतिनिधित्व करने वाली अधिवक्ता शोभा गुप्ता ने कहा, पहले न्यायमूर्ति बेला एम. त्रिवेदी ने दोषियों की रिहाई के खिलाफ उनके मुवक्किल की याचिका पर सुनवाई से खुद को अलग कर लिया था। इस मौके पर बेंच में मौजूद जजों ने कुछ देर आपस में बातचीत की। उसके बाद जस्टिस रस्तोगी ने कहा, अगर जस्टिस त्रिवेदी पहले ही पीड़िता की याचिका की सुनवाई से खुद को अलग कर चुकी हैं तो वह इस मामले की सुनवाई से भी खुद को अलग करना चाहेंगी।

उन्होंने आगे कहा, बिलकिस बानो की याचिका को मुख्य मामले के रूप में लिया जाएगा और बाकी रिट याचिकाओं को इसके साथ टैग किया जाएगा, जब पीठ न्यायाधीशों के एक अलग संयोजन में बैठेगी।

वरिष्ठ अधिवक्ता सिद्धार्थ लूथरा और मल्होत्रा ने पीठ से अनुरोध किया कि याचिकाकर्ताओं द्वारा दायर किए जा रहे प्रत्युत्तर हलफनामे उन्हें दिए जाएं। जस्टिस रस्तोगी ने कहा कि सब कुछ पार्टियों के बीच साझा किया जाना चाहिए।

भट ने कहा कि मामले में दलीलें खत्म हो गई हैं और अदालत फरवरी में सुनवाई के लिए याचिकाएं ले सकती हैं। पीठ फरवरी में याचिकाओं को सूचीबद्ध करने पर सहमत हुई।

न्यायमूर्ति त्रिवेदी ने पिछले महीने 11 दोषियों की रिहाई के खिलाफ बिलकिस बानो द्वारा दायर याचिका पर सुनवाई से खुद को अलग कर लिया था। उन्होंने अलग होने का कोई कारण नहीं बताया था। याचिका में बिलकिस बानो ने कहा है कि सभी दोषियों की रिहाई का फैसला न केवल याचिकाकर्ता, उसकी बड़ी हो चुकीं बेटियों, उसके परिवार के लिए ही नहीं, बल्कि बड़े पैमाने पर राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर समाज के लिए एक झटके के रूप में आया है।

उसने याचिका में कहा है, सभी दोषियों की समय से पहले रिहाई न केवल याचिकाकर्ता, उसकी बड़ी हो चुकी बेटियों, उसके परिवार के लिए, बल्कि समाज के लिए बड़े पैमाने पर, राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर एक झटके के रूप में आई और समाज के सभी वर्गो ने इस मामले के 11 दोषियों को रिहा करके सरकार द्वारा किए गए क्षमादान के प्रति अपना गुस्सा, निराशा, अविश्वास और विरोध जताया।

रिहाई के आदेश को यांत्रिक करार देते हुए याचिका में कहा गया है कि इस बहुचर्चित मामले में दोषियों की समय से पहले रिहाई ने समाज की अंतरात्मा को झकझोर कर रख दिया है और इसके परिणामस्वरूप देशभर में कई आंदोलन हुए, जिस पर गौर किया जाना चाहिए।

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नई दिल्ली, 4 जनवरी (आईएएनएस)। सुप्रीम कोर्ट की न्यायाधीश न्यायमूर्ति बेला एम. त्रिवेदी ने बुधवार को बिलकिस बानो मामले में 11 दोषियों की रिहाई के खिलाफ याचिकाओं की सुनवाई से खुद को फिर अलग कर लिया।

न्यायमूर्ति अजय रस्तोगी और न्यायमूर्ति बेला एम. त्रिवेदी की पीठ ने दोषियों की रिहाई को चुनौती देने वाली माकपा नेता सुभाषिनी अली, पत्रकार रेवती लाल, लखनऊ विश्वविद्यालय की पूर्व कुलपति रूपरेखा वर्मा और तृणमूल कांग्रेस सांसद महुआ मोइत्रा की याचिकाओं पर विचार किया।

दोषियों में से एक का प्रतिनिधित्व कर रहे वकील ऋषि मल्होत्रा ने जोर देकर तर्क दिया कि याचिकाकर्ताओं को मामले में अपना अधिकार साबित करना होगा। याचिकाकर्ताओं का प्रतिनिधित्व करने वाली अधिवक्ता वृंदा ग्रोवर और अर्पणा भट ने मल्होत्रा की दलील का विरोध करते हुए कहा कि अदालत द्वारा उनकी याचिका पर नोटिस जारी किए जाने के बाद स्थिरता का स्तर पार हो गया है।

साल 2002 के गुजरात दंगों के दौरान बिलकिस बानो के साथ सामूहिक दुष्कर्म किया गया था और उसके परिवार के कई सदस्यों की हत्या कर दी गई थी। बिलकिस बानो का प्रतिनिधित्व करने वाली अधिवक्ता शोभा गुप्ता ने कहा, पहले न्यायमूर्ति बेला एम. त्रिवेदी ने दोषियों की रिहाई के खिलाफ उनके मुवक्किल की याचिका पर सुनवाई से खुद को अलग कर लिया था। इस मौके पर बेंच में मौजूद जजों ने कुछ देर आपस में बातचीत की। उसके बाद जस्टिस रस्तोगी ने कहा, अगर जस्टिस त्रिवेदी पहले ही पीड़िता की याचिका की सुनवाई से खुद को अलग कर चुकी हैं तो वह इस मामले की सुनवाई से भी खुद को अलग करना चाहेंगी।

उन्होंने आगे कहा, बिलकिस बानो की याचिका को मुख्य मामले के रूप में लिया जाएगा और बाकी रिट याचिकाओं को इसके साथ टैग किया जाएगा, जब पीठ न्यायाधीशों के एक अलग संयोजन में बैठेगी।

वरिष्ठ अधिवक्ता सिद्धार्थ लूथरा और मल्होत्रा ने पीठ से अनुरोध किया कि याचिकाकर्ताओं द्वारा दायर किए जा रहे प्रत्युत्तर हलफनामे उन्हें दिए जाएं। जस्टिस रस्तोगी ने कहा कि सब कुछ पार्टियों के बीच साझा किया जाना चाहिए।

भट ने कहा कि मामले में दलीलें खत्म हो गई हैं और अदालत फरवरी में सुनवाई के लिए याचिकाएं ले सकती हैं। पीठ फरवरी में याचिकाओं को सूचीबद्ध करने पर सहमत हुई।

न्यायमूर्ति त्रिवेदी ने पिछले महीने 11 दोषियों की रिहाई के खिलाफ बिलकिस बानो द्वारा दायर याचिका पर सुनवाई से खुद को अलग कर लिया था। उन्होंने अलग होने का कोई कारण नहीं बताया था। याचिका में बिलकिस बानो ने कहा है कि सभी दोषियों की रिहाई का फैसला न केवल याचिकाकर्ता, उसकी बड़ी हो चुकीं बेटियों, उसके परिवार के लिए ही नहीं, बल्कि बड़े पैमाने पर राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर समाज के लिए एक झटके के रूप में आया है।

उसने याचिका में कहा है, सभी दोषियों की समय से पहले रिहाई न केवल याचिकाकर्ता, उसकी बड़ी हो चुकी बेटियों, उसके परिवार के लिए, बल्कि समाज के लिए बड़े पैमाने पर, राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर एक झटके के रूप में आई और समाज के सभी वर्गो ने इस मामले के 11 दोषियों को रिहा करके सरकार द्वारा किए गए क्षमादान के प्रति अपना गुस्सा, निराशा, अविश्वास और विरोध जताया।

रिहाई के आदेश को यांत्रिक करार देते हुए याचिका में कहा गया है कि इस बहुचर्चित मामले में दोषियों की समय से पहले रिहाई ने समाज की अंतरात्मा को झकझोर कर रख दिया है और इसके परिणामस्वरूप देशभर में कई आंदोलन हुए, जिस पर गौर किया जाना चाहिए।

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न्यायमूर्ति अजय रस्तोगी और न्यायमूर्ति बेला एम. त्रिवेदी की पीठ ने दोषियों की रिहाई को चुनौती देने वाली माकपा नेता सुभाषिनी अली, पत्रकार रेवती लाल, लखनऊ विश्वविद्यालय की पूर्व कुलपति रूपरेखा वर्मा और तृणमूल कांग्रेस सांसद महुआ मोइत्रा की याचिकाओं पर विचार किया।

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साल 2002 के गुजरात दंगों के दौरान बिलकिस बानो के साथ सामूहिक दुष्कर्म किया गया था और उसके परिवार के कई सदस्यों की हत्या कर दी गई थी। बिलकिस बानो का प्रतिनिधित्व करने वाली अधिवक्ता शोभा गुप्ता ने कहा, पहले न्यायमूर्ति बेला एम. त्रिवेदी ने दोषियों की रिहाई के खिलाफ उनके मुवक्किल की याचिका पर सुनवाई से खुद को अलग कर लिया था। इस मौके पर बेंच में मौजूद जजों ने कुछ देर आपस में बातचीत की। उसके बाद जस्टिस रस्तोगी ने कहा, अगर जस्टिस त्रिवेदी पहले ही पीड़िता की याचिका की सुनवाई से खुद को अलग कर चुकी हैं तो वह इस मामले की सुनवाई से भी खुद को अलग करना चाहेंगी।

उन्होंने आगे कहा, बिलकिस बानो की याचिका को मुख्य मामले के रूप में लिया जाएगा और बाकी रिट याचिकाओं को इसके साथ टैग किया जाएगा, जब पीठ न्यायाधीशों के एक अलग संयोजन में बैठेगी।

वरिष्ठ अधिवक्ता सिद्धार्थ लूथरा और मल्होत्रा ने पीठ से अनुरोध किया कि याचिकाकर्ताओं द्वारा दायर किए जा रहे प्रत्युत्तर हलफनामे उन्हें दिए जाएं। जस्टिस रस्तोगी ने कहा कि सब कुछ पार्टियों के बीच साझा किया जाना चाहिए।

भट ने कहा कि मामले में दलीलें खत्म हो गई हैं और अदालत फरवरी में सुनवाई के लिए याचिकाएं ले सकती हैं। पीठ फरवरी में याचिकाओं को सूचीबद्ध करने पर सहमत हुई।

न्यायमूर्ति त्रिवेदी ने पिछले महीने 11 दोषियों की रिहाई के खिलाफ बिलकिस बानो द्वारा दायर याचिका पर सुनवाई से खुद को अलग कर लिया था। उन्होंने अलग होने का कोई कारण नहीं बताया था। याचिका में बिलकिस बानो ने कहा है कि सभी दोषियों की रिहाई का फैसला न केवल याचिकाकर्ता, उसकी बड़ी हो चुकीं बेटियों, उसके परिवार के लिए ही नहीं, बल्कि बड़े पैमाने पर राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर समाज के लिए एक झटके के रूप में आया है।

उसने याचिका में कहा है, सभी दोषियों की समय से पहले रिहाई न केवल याचिकाकर्ता, उसकी बड़ी हो चुकी बेटियों, उसके परिवार के लिए, बल्कि समाज के लिए बड़े पैमाने पर, राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर एक झटके के रूप में आई और समाज के सभी वर्गो ने इस मामले के 11 दोषियों को रिहा करके सरकार द्वारा किए गए क्षमादान के प्रति अपना गुस्सा, निराशा, अविश्वास और विरोध जताया।

रिहाई के आदेश को यांत्रिक करार देते हुए याचिका में कहा गया है कि इस बहुचर्चित मामले में दोषियों की समय से पहले रिहाई ने समाज की अंतरात्मा को झकझोर कर रख दिया है और इसके परिणामस्वरूप देशभर में कई आंदोलन हुए, जिस पर गौर किया जाना चाहिए।

–आईएएनएस

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नई दिल्ली, 4 जनवरी (आईएएनएस)। सुप्रीम कोर्ट की न्यायाधीश न्यायमूर्ति बेला एम. त्रिवेदी ने बुधवार को बिलकिस बानो मामले में 11 दोषियों की रिहाई के खिलाफ याचिकाओं की सुनवाई से खुद को फिर अलग कर लिया।

न्यायमूर्ति अजय रस्तोगी और न्यायमूर्ति बेला एम. त्रिवेदी की पीठ ने दोषियों की रिहाई को चुनौती देने वाली माकपा नेता सुभाषिनी अली, पत्रकार रेवती लाल, लखनऊ विश्वविद्यालय की पूर्व कुलपति रूपरेखा वर्मा और तृणमूल कांग्रेस सांसद महुआ मोइत्रा की याचिकाओं पर विचार किया।

दोषियों में से एक का प्रतिनिधित्व कर रहे वकील ऋषि मल्होत्रा ने जोर देकर तर्क दिया कि याचिकाकर्ताओं को मामले में अपना अधिकार साबित करना होगा। याचिकाकर्ताओं का प्रतिनिधित्व करने वाली अधिवक्ता वृंदा ग्रोवर और अर्पणा भट ने मल्होत्रा की दलील का विरोध करते हुए कहा कि अदालत द्वारा उनकी याचिका पर नोटिस जारी किए जाने के बाद स्थिरता का स्तर पार हो गया है।

साल 2002 के गुजरात दंगों के दौरान बिलकिस बानो के साथ सामूहिक दुष्कर्म किया गया था और उसके परिवार के कई सदस्यों की हत्या कर दी गई थी। बिलकिस बानो का प्रतिनिधित्व करने वाली अधिवक्ता शोभा गुप्ता ने कहा, पहले न्यायमूर्ति बेला एम. त्रिवेदी ने दोषियों की रिहाई के खिलाफ उनके मुवक्किल की याचिका पर सुनवाई से खुद को अलग कर लिया था। इस मौके पर बेंच में मौजूद जजों ने कुछ देर आपस में बातचीत की। उसके बाद जस्टिस रस्तोगी ने कहा, अगर जस्टिस त्रिवेदी पहले ही पीड़िता की याचिका की सुनवाई से खुद को अलग कर चुकी हैं तो वह इस मामले की सुनवाई से भी खुद को अलग करना चाहेंगी।

उन्होंने आगे कहा, बिलकिस बानो की याचिका को मुख्य मामले के रूप में लिया जाएगा और बाकी रिट याचिकाओं को इसके साथ टैग किया जाएगा, जब पीठ न्यायाधीशों के एक अलग संयोजन में बैठेगी।

वरिष्ठ अधिवक्ता सिद्धार्थ लूथरा और मल्होत्रा ने पीठ से अनुरोध किया कि याचिकाकर्ताओं द्वारा दायर किए जा रहे प्रत्युत्तर हलफनामे उन्हें दिए जाएं। जस्टिस रस्तोगी ने कहा कि सब कुछ पार्टियों के बीच साझा किया जाना चाहिए।

भट ने कहा कि मामले में दलीलें खत्म हो गई हैं और अदालत फरवरी में सुनवाई के लिए याचिकाएं ले सकती हैं। पीठ फरवरी में याचिकाओं को सूचीबद्ध करने पर सहमत हुई।

न्यायमूर्ति त्रिवेदी ने पिछले महीने 11 दोषियों की रिहाई के खिलाफ बिलकिस बानो द्वारा दायर याचिका पर सुनवाई से खुद को अलग कर लिया था। उन्होंने अलग होने का कोई कारण नहीं बताया था। याचिका में बिलकिस बानो ने कहा है कि सभी दोषियों की रिहाई का फैसला न केवल याचिकाकर्ता, उसकी बड़ी हो चुकीं बेटियों, उसके परिवार के लिए ही नहीं, बल्कि बड़े पैमाने पर राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर समाज के लिए एक झटके के रूप में आया है।

उसने याचिका में कहा है, सभी दोषियों की समय से पहले रिहाई न केवल याचिकाकर्ता, उसकी बड़ी हो चुकी बेटियों, उसके परिवार के लिए, बल्कि समाज के लिए बड़े पैमाने पर, राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर एक झटके के रूप में आई और समाज के सभी वर्गो ने इस मामले के 11 दोषियों को रिहा करके सरकार द्वारा किए गए क्षमादान के प्रति अपना गुस्सा, निराशा, अविश्वास और विरोध जताया।

रिहाई के आदेश को यांत्रिक करार देते हुए याचिका में कहा गया है कि इस बहुचर्चित मामले में दोषियों की समय से पहले रिहाई ने समाज की अंतरात्मा को झकझोर कर रख दिया है और इसके परिणामस्वरूप देशभर में कई आंदोलन हुए, जिस पर गौर किया जाना चाहिए।

–आईएएनएस

केसी/एसजीके

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नई दिल्ली, 4 जनवरी (आईएएनएस)। सुप्रीम कोर्ट की न्यायाधीश न्यायमूर्ति बेला एम. त्रिवेदी ने बुधवार को बिलकिस बानो मामले में 11 दोषियों की रिहाई के खिलाफ याचिकाओं की सुनवाई से खुद को फिर अलग कर लिया।

न्यायमूर्ति अजय रस्तोगी और न्यायमूर्ति बेला एम. त्रिवेदी की पीठ ने दोषियों की रिहाई को चुनौती देने वाली माकपा नेता सुभाषिनी अली, पत्रकार रेवती लाल, लखनऊ विश्वविद्यालय की पूर्व कुलपति रूपरेखा वर्मा और तृणमूल कांग्रेस सांसद महुआ मोइत्रा की याचिकाओं पर विचार किया।

दोषियों में से एक का प्रतिनिधित्व कर रहे वकील ऋषि मल्होत्रा ने जोर देकर तर्क दिया कि याचिकाकर्ताओं को मामले में अपना अधिकार साबित करना होगा। याचिकाकर्ताओं का प्रतिनिधित्व करने वाली अधिवक्ता वृंदा ग्रोवर और अर्पणा भट ने मल्होत्रा की दलील का विरोध करते हुए कहा कि अदालत द्वारा उनकी याचिका पर नोटिस जारी किए जाने के बाद स्थिरता का स्तर पार हो गया है।

साल 2002 के गुजरात दंगों के दौरान बिलकिस बानो के साथ सामूहिक दुष्कर्म किया गया था और उसके परिवार के कई सदस्यों की हत्या कर दी गई थी। बिलकिस बानो का प्रतिनिधित्व करने वाली अधिवक्ता शोभा गुप्ता ने कहा, पहले न्यायमूर्ति बेला एम. त्रिवेदी ने दोषियों की रिहाई के खिलाफ उनके मुवक्किल की याचिका पर सुनवाई से खुद को अलग कर लिया था। इस मौके पर बेंच में मौजूद जजों ने कुछ देर आपस में बातचीत की। उसके बाद जस्टिस रस्तोगी ने कहा, अगर जस्टिस त्रिवेदी पहले ही पीड़िता की याचिका की सुनवाई से खुद को अलग कर चुकी हैं तो वह इस मामले की सुनवाई से भी खुद को अलग करना चाहेंगी।

उन्होंने आगे कहा, बिलकिस बानो की याचिका को मुख्य मामले के रूप में लिया जाएगा और बाकी रिट याचिकाओं को इसके साथ टैग किया जाएगा, जब पीठ न्यायाधीशों के एक अलग संयोजन में बैठेगी।

वरिष्ठ अधिवक्ता सिद्धार्थ लूथरा और मल्होत्रा ने पीठ से अनुरोध किया कि याचिकाकर्ताओं द्वारा दायर किए जा रहे प्रत्युत्तर हलफनामे उन्हें दिए जाएं। जस्टिस रस्तोगी ने कहा कि सब कुछ पार्टियों के बीच साझा किया जाना चाहिए।

भट ने कहा कि मामले में दलीलें खत्म हो गई हैं और अदालत फरवरी में सुनवाई के लिए याचिकाएं ले सकती हैं। पीठ फरवरी में याचिकाओं को सूचीबद्ध करने पर सहमत हुई।

न्यायमूर्ति त्रिवेदी ने पिछले महीने 11 दोषियों की रिहाई के खिलाफ बिलकिस बानो द्वारा दायर याचिका पर सुनवाई से खुद को अलग कर लिया था। उन्होंने अलग होने का कोई कारण नहीं बताया था। याचिका में बिलकिस बानो ने कहा है कि सभी दोषियों की रिहाई का फैसला न केवल याचिकाकर्ता, उसकी बड़ी हो चुकीं बेटियों, उसके परिवार के लिए ही नहीं, बल्कि बड़े पैमाने पर राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर समाज के लिए एक झटके के रूप में आया है।

उसने याचिका में कहा है, सभी दोषियों की समय से पहले रिहाई न केवल याचिकाकर्ता, उसकी बड़ी हो चुकी बेटियों, उसके परिवार के लिए, बल्कि समाज के लिए बड़े पैमाने पर, राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर एक झटके के रूप में आई और समाज के सभी वर्गो ने इस मामले के 11 दोषियों को रिहा करके सरकार द्वारा किए गए क्षमादान के प्रति अपना गुस्सा, निराशा, अविश्वास और विरोध जताया।

रिहाई के आदेश को यांत्रिक करार देते हुए याचिका में कहा गया है कि इस बहुचर्चित मामले में दोषियों की समय से पहले रिहाई ने समाज की अंतरात्मा को झकझोर कर रख दिया है और इसके परिणामस्वरूप देशभर में कई आंदोलन हुए, जिस पर गौर किया जाना चाहिए।

–आईएएनएस

केसी/एसजीके

नई दिल्ली, 4 जनवरी (आईएएनएस)। सुप्रीम कोर्ट की न्यायाधीश न्यायमूर्ति बेला एम. त्रिवेदी ने बुधवार को बिलकिस बानो मामले में 11 दोषियों की रिहाई के खिलाफ याचिकाओं की सुनवाई से खुद को फिर अलग कर लिया।

न्यायमूर्ति अजय रस्तोगी और न्यायमूर्ति बेला एम. त्रिवेदी की पीठ ने दोषियों की रिहाई को चुनौती देने वाली माकपा नेता सुभाषिनी अली, पत्रकार रेवती लाल, लखनऊ विश्वविद्यालय की पूर्व कुलपति रूपरेखा वर्मा और तृणमूल कांग्रेस सांसद महुआ मोइत्रा की याचिकाओं पर विचार किया।

दोषियों में से एक का प्रतिनिधित्व कर रहे वकील ऋषि मल्होत्रा ने जोर देकर तर्क दिया कि याचिकाकर्ताओं को मामले में अपना अधिकार साबित करना होगा। याचिकाकर्ताओं का प्रतिनिधित्व करने वाली अधिवक्ता वृंदा ग्रोवर और अर्पणा भट ने मल्होत्रा की दलील का विरोध करते हुए कहा कि अदालत द्वारा उनकी याचिका पर नोटिस जारी किए जाने के बाद स्थिरता का स्तर पार हो गया है।

साल 2002 के गुजरात दंगों के दौरान बिलकिस बानो के साथ सामूहिक दुष्कर्म किया गया था और उसके परिवार के कई सदस्यों की हत्या कर दी गई थी। बिलकिस बानो का प्रतिनिधित्व करने वाली अधिवक्ता शोभा गुप्ता ने कहा, पहले न्यायमूर्ति बेला एम. त्रिवेदी ने दोषियों की रिहाई के खिलाफ उनके मुवक्किल की याचिका पर सुनवाई से खुद को अलग कर लिया था। इस मौके पर बेंच में मौजूद जजों ने कुछ देर आपस में बातचीत की। उसके बाद जस्टिस रस्तोगी ने कहा, अगर जस्टिस त्रिवेदी पहले ही पीड़िता की याचिका की सुनवाई से खुद को अलग कर चुकी हैं तो वह इस मामले की सुनवाई से भी खुद को अलग करना चाहेंगी।

उन्होंने आगे कहा, बिलकिस बानो की याचिका को मुख्य मामले के रूप में लिया जाएगा और बाकी रिट याचिकाओं को इसके साथ टैग किया जाएगा, जब पीठ न्यायाधीशों के एक अलग संयोजन में बैठेगी।

वरिष्ठ अधिवक्ता सिद्धार्थ लूथरा और मल्होत्रा ने पीठ से अनुरोध किया कि याचिकाकर्ताओं द्वारा दायर किए जा रहे प्रत्युत्तर हलफनामे उन्हें दिए जाएं। जस्टिस रस्तोगी ने कहा कि सब कुछ पार्टियों के बीच साझा किया जाना चाहिए।

भट ने कहा कि मामले में दलीलें खत्म हो गई हैं और अदालत फरवरी में सुनवाई के लिए याचिकाएं ले सकती हैं। पीठ फरवरी में याचिकाओं को सूचीबद्ध करने पर सहमत हुई।

न्यायमूर्ति त्रिवेदी ने पिछले महीने 11 दोषियों की रिहाई के खिलाफ बिलकिस बानो द्वारा दायर याचिका पर सुनवाई से खुद को अलग कर लिया था। उन्होंने अलग होने का कोई कारण नहीं बताया था। याचिका में बिलकिस बानो ने कहा है कि सभी दोषियों की रिहाई का फैसला न केवल याचिकाकर्ता, उसकी बड़ी हो चुकीं बेटियों, उसके परिवार के लिए ही नहीं, बल्कि बड़े पैमाने पर राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर समाज के लिए एक झटके के रूप में आया है।

उसने याचिका में कहा है, सभी दोषियों की समय से पहले रिहाई न केवल याचिकाकर्ता, उसकी बड़ी हो चुकी बेटियों, उसके परिवार के लिए, बल्कि समाज के लिए बड़े पैमाने पर, राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर एक झटके के रूप में आई और समाज के सभी वर्गो ने इस मामले के 11 दोषियों को रिहा करके सरकार द्वारा किए गए क्षमादान के प्रति अपना गुस्सा, निराशा, अविश्वास और विरोध जताया।

रिहाई के आदेश को यांत्रिक करार देते हुए याचिका में कहा गया है कि इस बहुचर्चित मामले में दोषियों की समय से पहले रिहाई ने समाज की अंतरात्मा को झकझोर कर रख दिया है और इसके परिणामस्वरूप देशभर में कई आंदोलन हुए, जिस पर गौर किया जाना चाहिए।

–आईएएनएस

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नई दिल्ली, 4 जनवरी (आईएएनएस)। सुप्रीम कोर्ट की न्यायाधीश न्यायमूर्ति बेला एम. त्रिवेदी ने बुधवार को बिलकिस बानो मामले में 11 दोषियों की रिहाई के खिलाफ याचिकाओं की सुनवाई से खुद को फिर अलग कर लिया।

न्यायमूर्ति अजय रस्तोगी और न्यायमूर्ति बेला एम. त्रिवेदी की पीठ ने दोषियों की रिहाई को चुनौती देने वाली माकपा नेता सुभाषिनी अली, पत्रकार रेवती लाल, लखनऊ विश्वविद्यालय की पूर्व कुलपति रूपरेखा वर्मा और तृणमूल कांग्रेस सांसद महुआ मोइत्रा की याचिकाओं पर विचार किया।

दोषियों में से एक का प्रतिनिधित्व कर रहे वकील ऋषि मल्होत्रा ने जोर देकर तर्क दिया कि याचिकाकर्ताओं को मामले में अपना अधिकार साबित करना होगा। याचिकाकर्ताओं का प्रतिनिधित्व करने वाली अधिवक्ता वृंदा ग्रोवर और अर्पणा भट ने मल्होत्रा की दलील का विरोध करते हुए कहा कि अदालत द्वारा उनकी याचिका पर नोटिस जारी किए जाने के बाद स्थिरता का स्तर पार हो गया है।

साल 2002 के गुजरात दंगों के दौरान बिलकिस बानो के साथ सामूहिक दुष्कर्म किया गया था और उसके परिवार के कई सदस्यों की हत्या कर दी गई थी। बिलकिस बानो का प्रतिनिधित्व करने वाली अधिवक्ता शोभा गुप्ता ने कहा, पहले न्यायमूर्ति बेला एम. त्रिवेदी ने दोषियों की रिहाई के खिलाफ उनके मुवक्किल की याचिका पर सुनवाई से खुद को अलग कर लिया था। इस मौके पर बेंच में मौजूद जजों ने कुछ देर आपस में बातचीत की। उसके बाद जस्टिस रस्तोगी ने कहा, अगर जस्टिस त्रिवेदी पहले ही पीड़िता की याचिका की सुनवाई से खुद को अलग कर चुकी हैं तो वह इस मामले की सुनवाई से भी खुद को अलग करना चाहेंगी।

उन्होंने आगे कहा, बिलकिस बानो की याचिका को मुख्य मामले के रूप में लिया जाएगा और बाकी रिट याचिकाओं को इसके साथ टैग किया जाएगा, जब पीठ न्यायाधीशों के एक अलग संयोजन में बैठेगी।

वरिष्ठ अधिवक्ता सिद्धार्थ लूथरा और मल्होत्रा ने पीठ से अनुरोध किया कि याचिकाकर्ताओं द्वारा दायर किए जा रहे प्रत्युत्तर हलफनामे उन्हें दिए जाएं। जस्टिस रस्तोगी ने कहा कि सब कुछ पार्टियों के बीच साझा किया जाना चाहिए।

भट ने कहा कि मामले में दलीलें खत्म हो गई हैं और अदालत फरवरी में सुनवाई के लिए याचिकाएं ले सकती हैं। पीठ फरवरी में याचिकाओं को सूचीबद्ध करने पर सहमत हुई।

न्यायमूर्ति त्रिवेदी ने पिछले महीने 11 दोषियों की रिहाई के खिलाफ बिलकिस बानो द्वारा दायर याचिका पर सुनवाई से खुद को अलग कर लिया था। उन्होंने अलग होने का कोई कारण नहीं बताया था। याचिका में बिलकिस बानो ने कहा है कि सभी दोषियों की रिहाई का फैसला न केवल याचिकाकर्ता, उसकी बड़ी हो चुकीं बेटियों, उसके परिवार के लिए ही नहीं, बल्कि बड़े पैमाने पर राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर समाज के लिए एक झटके के रूप में आया है।

उसने याचिका में कहा है, सभी दोषियों की समय से पहले रिहाई न केवल याचिकाकर्ता, उसकी बड़ी हो चुकी बेटियों, उसके परिवार के लिए, बल्कि समाज के लिए बड़े पैमाने पर, राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर एक झटके के रूप में आई और समाज के सभी वर्गो ने इस मामले के 11 दोषियों को रिहा करके सरकार द्वारा किए गए क्षमादान के प्रति अपना गुस्सा, निराशा, अविश्वास और विरोध जताया।

रिहाई के आदेश को यांत्रिक करार देते हुए याचिका में कहा गया है कि इस बहुचर्चित मामले में दोषियों की समय से पहले रिहाई ने समाज की अंतरात्मा को झकझोर कर रख दिया है और इसके परिणामस्वरूप देशभर में कई आंदोलन हुए, जिस पर गौर किया जाना चाहिए।

–आईएएनएस

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नई दिल्ली, 4 जनवरी (आईएएनएस)। सुप्रीम कोर्ट की न्यायाधीश न्यायमूर्ति बेला एम. त्रिवेदी ने बुधवार को बिलकिस बानो मामले में 11 दोषियों की रिहाई के खिलाफ याचिकाओं की सुनवाई से खुद को फिर अलग कर लिया।

न्यायमूर्ति अजय रस्तोगी और न्यायमूर्ति बेला एम. त्रिवेदी की पीठ ने दोषियों की रिहाई को चुनौती देने वाली माकपा नेता सुभाषिनी अली, पत्रकार रेवती लाल, लखनऊ विश्वविद्यालय की पूर्व कुलपति रूपरेखा वर्मा और तृणमूल कांग्रेस सांसद महुआ मोइत्रा की याचिकाओं पर विचार किया।

दोषियों में से एक का प्रतिनिधित्व कर रहे वकील ऋषि मल्होत्रा ने जोर देकर तर्क दिया कि याचिकाकर्ताओं को मामले में अपना अधिकार साबित करना होगा। याचिकाकर्ताओं का प्रतिनिधित्व करने वाली अधिवक्ता वृंदा ग्रोवर और अर्पणा भट ने मल्होत्रा की दलील का विरोध करते हुए कहा कि अदालत द्वारा उनकी याचिका पर नोटिस जारी किए जाने के बाद स्थिरता का स्तर पार हो गया है।

साल 2002 के गुजरात दंगों के दौरान बिलकिस बानो के साथ सामूहिक दुष्कर्म किया गया था और उसके परिवार के कई सदस्यों की हत्या कर दी गई थी। बिलकिस बानो का प्रतिनिधित्व करने वाली अधिवक्ता शोभा गुप्ता ने कहा, पहले न्यायमूर्ति बेला एम. त्रिवेदी ने दोषियों की रिहाई के खिलाफ उनके मुवक्किल की याचिका पर सुनवाई से खुद को अलग कर लिया था। इस मौके पर बेंच में मौजूद जजों ने कुछ देर आपस में बातचीत की। उसके बाद जस्टिस रस्तोगी ने कहा, अगर जस्टिस त्रिवेदी पहले ही पीड़िता की याचिका की सुनवाई से खुद को अलग कर चुकी हैं तो वह इस मामले की सुनवाई से भी खुद को अलग करना चाहेंगी।

उन्होंने आगे कहा, बिलकिस बानो की याचिका को मुख्य मामले के रूप में लिया जाएगा और बाकी रिट याचिकाओं को इसके साथ टैग किया जाएगा, जब पीठ न्यायाधीशों के एक अलग संयोजन में बैठेगी।

वरिष्ठ अधिवक्ता सिद्धार्थ लूथरा और मल्होत्रा ने पीठ से अनुरोध किया कि याचिकाकर्ताओं द्वारा दायर किए जा रहे प्रत्युत्तर हलफनामे उन्हें दिए जाएं। जस्टिस रस्तोगी ने कहा कि सब कुछ पार्टियों के बीच साझा किया जाना चाहिए।

भट ने कहा कि मामले में दलीलें खत्म हो गई हैं और अदालत फरवरी में सुनवाई के लिए याचिकाएं ले सकती हैं। पीठ फरवरी में याचिकाओं को सूचीबद्ध करने पर सहमत हुई।

न्यायमूर्ति त्रिवेदी ने पिछले महीने 11 दोषियों की रिहाई के खिलाफ बिलकिस बानो द्वारा दायर याचिका पर सुनवाई से खुद को अलग कर लिया था। उन्होंने अलग होने का कोई कारण नहीं बताया था। याचिका में बिलकिस बानो ने कहा है कि सभी दोषियों की रिहाई का फैसला न केवल याचिकाकर्ता, उसकी बड़ी हो चुकीं बेटियों, उसके परिवार के लिए ही नहीं, बल्कि बड़े पैमाने पर राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर समाज के लिए एक झटके के रूप में आया है।

उसने याचिका में कहा है, सभी दोषियों की समय से पहले रिहाई न केवल याचिकाकर्ता, उसकी बड़ी हो चुकी बेटियों, उसके परिवार के लिए, बल्कि समाज के लिए बड़े पैमाने पर, राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर एक झटके के रूप में आई और समाज के सभी वर्गो ने इस मामले के 11 दोषियों को रिहा करके सरकार द्वारा किए गए क्षमादान के प्रति अपना गुस्सा, निराशा, अविश्वास और विरोध जताया।

रिहाई के आदेश को यांत्रिक करार देते हुए याचिका में कहा गया है कि इस बहुचर्चित मामले में दोषियों की समय से पहले रिहाई ने समाज की अंतरात्मा को झकझोर कर रख दिया है और इसके परिणामस्वरूप देशभर में कई आंदोलन हुए, जिस पर गौर किया जाना चाहिए।

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नई दिल्ली, 4 जनवरी (आईएएनएस)। सुप्रीम कोर्ट की न्यायाधीश न्यायमूर्ति बेला एम. त्रिवेदी ने बुधवार को बिलकिस बानो मामले में 11 दोषियों की रिहाई के खिलाफ याचिकाओं की सुनवाई से खुद को फिर अलग कर लिया।

न्यायमूर्ति अजय रस्तोगी और न्यायमूर्ति बेला एम. त्रिवेदी की पीठ ने दोषियों की रिहाई को चुनौती देने वाली माकपा नेता सुभाषिनी अली, पत्रकार रेवती लाल, लखनऊ विश्वविद्यालय की पूर्व कुलपति रूपरेखा वर्मा और तृणमूल कांग्रेस सांसद महुआ मोइत्रा की याचिकाओं पर विचार किया।

दोषियों में से एक का प्रतिनिधित्व कर रहे वकील ऋषि मल्होत्रा ने जोर देकर तर्क दिया कि याचिकाकर्ताओं को मामले में अपना अधिकार साबित करना होगा। याचिकाकर्ताओं का प्रतिनिधित्व करने वाली अधिवक्ता वृंदा ग्रोवर और अर्पणा भट ने मल्होत्रा की दलील का विरोध करते हुए कहा कि अदालत द्वारा उनकी याचिका पर नोटिस जारी किए जाने के बाद स्थिरता का स्तर पार हो गया है।

साल 2002 के गुजरात दंगों के दौरान बिलकिस बानो के साथ सामूहिक दुष्कर्म किया गया था और उसके परिवार के कई सदस्यों की हत्या कर दी गई थी। बिलकिस बानो का प्रतिनिधित्व करने वाली अधिवक्ता शोभा गुप्ता ने कहा, पहले न्यायमूर्ति बेला एम. त्रिवेदी ने दोषियों की रिहाई के खिलाफ उनके मुवक्किल की याचिका पर सुनवाई से खुद को अलग कर लिया था। इस मौके पर बेंच में मौजूद जजों ने कुछ देर आपस में बातचीत की। उसके बाद जस्टिस रस्तोगी ने कहा, अगर जस्टिस त्रिवेदी पहले ही पीड़िता की याचिका की सुनवाई से खुद को अलग कर चुकी हैं तो वह इस मामले की सुनवाई से भी खुद को अलग करना चाहेंगी।

उन्होंने आगे कहा, बिलकिस बानो की याचिका को मुख्य मामले के रूप में लिया जाएगा और बाकी रिट याचिकाओं को इसके साथ टैग किया जाएगा, जब पीठ न्यायाधीशों के एक अलग संयोजन में बैठेगी।

वरिष्ठ अधिवक्ता सिद्धार्थ लूथरा और मल्होत्रा ने पीठ से अनुरोध किया कि याचिकाकर्ताओं द्वारा दायर किए जा रहे प्रत्युत्तर हलफनामे उन्हें दिए जाएं। जस्टिस रस्तोगी ने कहा कि सब कुछ पार्टियों के बीच साझा किया जाना चाहिए।

भट ने कहा कि मामले में दलीलें खत्म हो गई हैं और अदालत फरवरी में सुनवाई के लिए याचिकाएं ले सकती हैं। पीठ फरवरी में याचिकाओं को सूचीबद्ध करने पर सहमत हुई।

न्यायमूर्ति त्रिवेदी ने पिछले महीने 11 दोषियों की रिहाई के खिलाफ बिलकिस बानो द्वारा दायर याचिका पर सुनवाई से खुद को अलग कर लिया था। उन्होंने अलग होने का कोई कारण नहीं बताया था। याचिका में बिलकिस बानो ने कहा है कि सभी दोषियों की रिहाई का फैसला न केवल याचिकाकर्ता, उसकी बड़ी हो चुकीं बेटियों, उसके परिवार के लिए ही नहीं, बल्कि बड़े पैमाने पर राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर समाज के लिए एक झटके के रूप में आया है।

उसने याचिका में कहा है, सभी दोषियों की समय से पहले रिहाई न केवल याचिकाकर्ता, उसकी बड़ी हो चुकी बेटियों, उसके परिवार के लिए, बल्कि समाज के लिए बड़े पैमाने पर, राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर एक झटके के रूप में आई और समाज के सभी वर्गो ने इस मामले के 11 दोषियों को रिहा करके सरकार द्वारा किए गए क्षमादान के प्रति अपना गुस्सा, निराशा, अविश्वास और विरोध जताया।

रिहाई के आदेश को यांत्रिक करार देते हुए याचिका में कहा गया है कि इस बहुचर्चित मामले में दोषियों की समय से पहले रिहाई ने समाज की अंतरात्मा को झकझोर कर रख दिया है और इसके परिणामस्वरूप देशभर में कई आंदोलन हुए, जिस पर गौर किया जाना चाहिए।

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नई दिल्ली, 4 जनवरी (आईएएनएस)। सुप्रीम कोर्ट की न्यायाधीश न्यायमूर्ति बेला एम. त्रिवेदी ने बुधवार को बिलकिस बानो मामले में 11 दोषियों की रिहाई के खिलाफ याचिकाओं की सुनवाई से खुद को फिर अलग कर लिया।

न्यायमूर्ति अजय रस्तोगी और न्यायमूर्ति बेला एम. त्रिवेदी की पीठ ने दोषियों की रिहाई को चुनौती देने वाली माकपा नेता सुभाषिनी अली, पत्रकार रेवती लाल, लखनऊ विश्वविद्यालय की पूर्व कुलपति रूपरेखा वर्मा और तृणमूल कांग्रेस सांसद महुआ मोइत्रा की याचिकाओं पर विचार किया।

दोषियों में से एक का प्रतिनिधित्व कर रहे वकील ऋषि मल्होत्रा ने जोर देकर तर्क दिया कि याचिकाकर्ताओं को मामले में अपना अधिकार साबित करना होगा। याचिकाकर्ताओं का प्रतिनिधित्व करने वाली अधिवक्ता वृंदा ग्रोवर और अर्पणा भट ने मल्होत्रा की दलील का विरोध करते हुए कहा कि अदालत द्वारा उनकी याचिका पर नोटिस जारी किए जाने के बाद स्थिरता का स्तर पार हो गया है।

साल 2002 के गुजरात दंगों के दौरान बिलकिस बानो के साथ सामूहिक दुष्कर्म किया गया था और उसके परिवार के कई सदस्यों की हत्या कर दी गई थी। बिलकिस बानो का प्रतिनिधित्व करने वाली अधिवक्ता शोभा गुप्ता ने कहा, पहले न्यायमूर्ति बेला एम. त्रिवेदी ने दोषियों की रिहाई के खिलाफ उनके मुवक्किल की याचिका पर सुनवाई से खुद को अलग कर लिया था। इस मौके पर बेंच में मौजूद जजों ने कुछ देर आपस में बातचीत की। उसके बाद जस्टिस रस्तोगी ने कहा, अगर जस्टिस त्रिवेदी पहले ही पीड़िता की याचिका की सुनवाई से खुद को अलग कर चुकी हैं तो वह इस मामले की सुनवाई से भी खुद को अलग करना चाहेंगी।

उन्होंने आगे कहा, बिलकिस बानो की याचिका को मुख्य मामले के रूप में लिया जाएगा और बाकी रिट याचिकाओं को इसके साथ टैग किया जाएगा, जब पीठ न्यायाधीशों के एक अलग संयोजन में बैठेगी।

वरिष्ठ अधिवक्ता सिद्धार्थ लूथरा और मल्होत्रा ने पीठ से अनुरोध किया कि याचिकाकर्ताओं द्वारा दायर किए जा रहे प्रत्युत्तर हलफनामे उन्हें दिए जाएं। जस्टिस रस्तोगी ने कहा कि सब कुछ पार्टियों के बीच साझा किया जाना चाहिए।

भट ने कहा कि मामले में दलीलें खत्म हो गई हैं और अदालत फरवरी में सुनवाई के लिए याचिकाएं ले सकती हैं। पीठ फरवरी में याचिकाओं को सूचीबद्ध करने पर सहमत हुई।

न्यायमूर्ति त्रिवेदी ने पिछले महीने 11 दोषियों की रिहाई के खिलाफ बिलकिस बानो द्वारा दायर याचिका पर सुनवाई से खुद को अलग कर लिया था। उन्होंने अलग होने का कोई कारण नहीं बताया था। याचिका में बिलकिस बानो ने कहा है कि सभी दोषियों की रिहाई का फैसला न केवल याचिकाकर्ता, उसकी बड़ी हो चुकीं बेटियों, उसके परिवार के लिए ही नहीं, बल्कि बड़े पैमाने पर राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर समाज के लिए एक झटके के रूप में आया है।

उसने याचिका में कहा है, सभी दोषियों की समय से पहले रिहाई न केवल याचिकाकर्ता, उसकी बड़ी हो चुकी बेटियों, उसके परिवार के लिए, बल्कि समाज के लिए बड़े पैमाने पर, राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर एक झटके के रूप में आई और समाज के सभी वर्गो ने इस मामले के 11 दोषियों को रिहा करके सरकार द्वारा किए गए क्षमादान के प्रति अपना गुस्सा, निराशा, अविश्वास और विरोध जताया।

रिहाई के आदेश को यांत्रिक करार देते हुए याचिका में कहा गया है कि इस बहुचर्चित मामले में दोषियों की समय से पहले रिहाई ने समाज की अंतरात्मा को झकझोर कर रख दिया है और इसके परिणामस्वरूप देशभर में कई आंदोलन हुए, जिस पर गौर किया जाना चाहिए।

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नई दिल्ली, 4 जनवरी (आईएएनएस)। सुप्रीम कोर्ट की न्यायाधीश न्यायमूर्ति बेला एम. त्रिवेदी ने बुधवार को बिलकिस बानो मामले में 11 दोषियों की रिहाई के खिलाफ याचिकाओं की सुनवाई से खुद को फिर अलग कर लिया।

न्यायमूर्ति अजय रस्तोगी और न्यायमूर्ति बेला एम. त्रिवेदी की पीठ ने दोषियों की रिहाई को चुनौती देने वाली माकपा नेता सुभाषिनी अली, पत्रकार रेवती लाल, लखनऊ विश्वविद्यालय की पूर्व कुलपति रूपरेखा वर्मा और तृणमूल कांग्रेस सांसद महुआ मोइत्रा की याचिकाओं पर विचार किया।

दोषियों में से एक का प्रतिनिधित्व कर रहे वकील ऋषि मल्होत्रा ने जोर देकर तर्क दिया कि याचिकाकर्ताओं को मामले में अपना अधिकार साबित करना होगा। याचिकाकर्ताओं का प्रतिनिधित्व करने वाली अधिवक्ता वृंदा ग्रोवर और अर्पणा भट ने मल्होत्रा की दलील का विरोध करते हुए कहा कि अदालत द्वारा उनकी याचिका पर नोटिस जारी किए जाने के बाद स्थिरता का स्तर पार हो गया है।

साल 2002 के गुजरात दंगों के दौरान बिलकिस बानो के साथ सामूहिक दुष्कर्म किया गया था और उसके परिवार के कई सदस्यों की हत्या कर दी गई थी। बिलकिस बानो का प्रतिनिधित्व करने वाली अधिवक्ता शोभा गुप्ता ने कहा, पहले न्यायमूर्ति बेला एम. त्रिवेदी ने दोषियों की रिहाई के खिलाफ उनके मुवक्किल की याचिका पर सुनवाई से खुद को अलग कर लिया था। इस मौके पर बेंच में मौजूद जजों ने कुछ देर आपस में बातचीत की। उसके बाद जस्टिस रस्तोगी ने कहा, अगर जस्टिस त्रिवेदी पहले ही पीड़िता की याचिका की सुनवाई से खुद को अलग कर चुकी हैं तो वह इस मामले की सुनवाई से भी खुद को अलग करना चाहेंगी।

उन्होंने आगे कहा, बिलकिस बानो की याचिका को मुख्य मामले के रूप में लिया जाएगा और बाकी रिट याचिकाओं को इसके साथ टैग किया जाएगा, जब पीठ न्यायाधीशों के एक अलग संयोजन में बैठेगी।

वरिष्ठ अधिवक्ता सिद्धार्थ लूथरा और मल्होत्रा ने पीठ से अनुरोध किया कि याचिकाकर्ताओं द्वारा दायर किए जा रहे प्रत्युत्तर हलफनामे उन्हें दिए जाएं। जस्टिस रस्तोगी ने कहा कि सब कुछ पार्टियों के बीच साझा किया जाना चाहिए।

भट ने कहा कि मामले में दलीलें खत्म हो गई हैं और अदालत फरवरी में सुनवाई के लिए याचिकाएं ले सकती हैं। पीठ फरवरी में याचिकाओं को सूचीबद्ध करने पर सहमत हुई।

न्यायमूर्ति त्रिवेदी ने पिछले महीने 11 दोषियों की रिहाई के खिलाफ बिलकिस बानो द्वारा दायर याचिका पर सुनवाई से खुद को अलग कर लिया था। उन्होंने अलग होने का कोई कारण नहीं बताया था। याचिका में बिलकिस बानो ने कहा है कि सभी दोषियों की रिहाई का फैसला न केवल याचिकाकर्ता, उसकी बड़ी हो चुकीं बेटियों, उसके परिवार के लिए ही नहीं, बल्कि बड़े पैमाने पर राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर समाज के लिए एक झटके के रूप में आया है।

उसने याचिका में कहा है, सभी दोषियों की समय से पहले रिहाई न केवल याचिकाकर्ता, उसकी बड़ी हो चुकी बेटियों, उसके परिवार के लिए, बल्कि समाज के लिए बड़े पैमाने पर, राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर एक झटके के रूप में आई और समाज के सभी वर्गो ने इस मामले के 11 दोषियों को रिहा करके सरकार द्वारा किए गए क्षमादान के प्रति अपना गुस्सा, निराशा, अविश्वास और विरोध जताया।

रिहाई के आदेश को यांत्रिक करार देते हुए याचिका में कहा गया है कि इस बहुचर्चित मामले में दोषियों की समय से पहले रिहाई ने समाज की अंतरात्मा को झकझोर कर रख दिया है और इसके परिणामस्वरूप देशभर में कई आंदोलन हुए, जिस पर गौर किया जाना चाहिए।

–आईएएनएस

केसी/एसजीके

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नई दिल्ली, 4 जनवरी (आईएएनएस)। सुप्रीम कोर्ट की न्यायाधीश न्यायमूर्ति बेला एम. त्रिवेदी ने बुधवार को बिलकिस बानो मामले में 11 दोषियों की रिहाई के खिलाफ याचिकाओं की सुनवाई से खुद को फिर अलग कर लिया।

न्यायमूर्ति अजय रस्तोगी और न्यायमूर्ति बेला एम. त्रिवेदी की पीठ ने दोषियों की रिहाई को चुनौती देने वाली माकपा नेता सुभाषिनी अली, पत्रकार रेवती लाल, लखनऊ विश्वविद्यालय की पूर्व कुलपति रूपरेखा वर्मा और तृणमूल कांग्रेस सांसद महुआ मोइत्रा की याचिकाओं पर विचार किया।

दोषियों में से एक का प्रतिनिधित्व कर रहे वकील ऋषि मल्होत्रा ने जोर देकर तर्क दिया कि याचिकाकर्ताओं को मामले में अपना अधिकार साबित करना होगा। याचिकाकर्ताओं का प्रतिनिधित्व करने वाली अधिवक्ता वृंदा ग्रोवर और अर्पणा भट ने मल्होत्रा की दलील का विरोध करते हुए कहा कि अदालत द्वारा उनकी याचिका पर नोटिस जारी किए जाने के बाद स्थिरता का स्तर पार हो गया है।

साल 2002 के गुजरात दंगों के दौरान बिलकिस बानो के साथ सामूहिक दुष्कर्म किया गया था और उसके परिवार के कई सदस्यों की हत्या कर दी गई थी। बिलकिस बानो का प्रतिनिधित्व करने वाली अधिवक्ता शोभा गुप्ता ने कहा, पहले न्यायमूर्ति बेला एम. त्रिवेदी ने दोषियों की रिहाई के खिलाफ उनके मुवक्किल की याचिका पर सुनवाई से खुद को अलग कर लिया था। इस मौके पर बेंच में मौजूद जजों ने कुछ देर आपस में बातचीत की। उसके बाद जस्टिस रस्तोगी ने कहा, अगर जस्टिस त्रिवेदी पहले ही पीड़िता की याचिका की सुनवाई से खुद को अलग कर चुकी हैं तो वह इस मामले की सुनवाई से भी खुद को अलग करना चाहेंगी।

उन्होंने आगे कहा, बिलकिस बानो की याचिका को मुख्य मामले के रूप में लिया जाएगा और बाकी रिट याचिकाओं को इसके साथ टैग किया जाएगा, जब पीठ न्यायाधीशों के एक अलग संयोजन में बैठेगी।

वरिष्ठ अधिवक्ता सिद्धार्थ लूथरा और मल्होत्रा ने पीठ से अनुरोध किया कि याचिकाकर्ताओं द्वारा दायर किए जा रहे प्रत्युत्तर हलफनामे उन्हें दिए जाएं। जस्टिस रस्तोगी ने कहा कि सब कुछ पार्टियों के बीच साझा किया जाना चाहिए।

भट ने कहा कि मामले में दलीलें खत्म हो गई हैं और अदालत फरवरी में सुनवाई के लिए याचिकाएं ले सकती हैं। पीठ फरवरी में याचिकाओं को सूचीबद्ध करने पर सहमत हुई।

न्यायमूर्ति त्रिवेदी ने पिछले महीने 11 दोषियों की रिहाई के खिलाफ बिलकिस बानो द्वारा दायर याचिका पर सुनवाई से खुद को अलग कर लिया था। उन्होंने अलग होने का कोई कारण नहीं बताया था। याचिका में बिलकिस बानो ने कहा है कि सभी दोषियों की रिहाई का फैसला न केवल याचिकाकर्ता, उसकी बड़ी हो चुकीं बेटियों, उसके परिवार के लिए ही नहीं, बल्कि बड़े पैमाने पर राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर समाज के लिए एक झटके के रूप में आया है।

उसने याचिका में कहा है, सभी दोषियों की समय से पहले रिहाई न केवल याचिकाकर्ता, उसकी बड़ी हो चुकी बेटियों, उसके परिवार के लिए, बल्कि समाज के लिए बड़े पैमाने पर, राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर एक झटके के रूप में आई और समाज के सभी वर्गो ने इस मामले के 11 दोषियों को रिहा करके सरकार द्वारा किए गए क्षमादान के प्रति अपना गुस्सा, निराशा, अविश्वास और विरोध जताया।

रिहाई के आदेश को यांत्रिक करार देते हुए याचिका में कहा गया है कि इस बहुचर्चित मामले में दोषियों की समय से पहले रिहाई ने समाज की अंतरात्मा को झकझोर कर रख दिया है और इसके परिणामस्वरूप देशभर में कई आंदोलन हुए, जिस पर गौर किया जाना चाहिए।

–आईएएनएस

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नई दिल्ली, 4 जनवरी (आईएएनएस)। सुप्रीम कोर्ट की न्यायाधीश न्यायमूर्ति बेला एम. त्रिवेदी ने बुधवार को बिलकिस बानो मामले में 11 दोषियों की रिहाई के खिलाफ याचिकाओं की सुनवाई से खुद को फिर अलग कर लिया।

न्यायमूर्ति अजय रस्तोगी और न्यायमूर्ति बेला एम. त्रिवेदी की पीठ ने दोषियों की रिहाई को चुनौती देने वाली माकपा नेता सुभाषिनी अली, पत्रकार रेवती लाल, लखनऊ विश्वविद्यालय की पूर्व कुलपति रूपरेखा वर्मा और तृणमूल कांग्रेस सांसद महुआ मोइत्रा की याचिकाओं पर विचार किया।

दोषियों में से एक का प्रतिनिधित्व कर रहे वकील ऋषि मल्होत्रा ने जोर देकर तर्क दिया कि याचिकाकर्ताओं को मामले में अपना अधिकार साबित करना होगा। याचिकाकर्ताओं का प्रतिनिधित्व करने वाली अधिवक्ता वृंदा ग्रोवर और अर्पणा भट ने मल्होत्रा की दलील का विरोध करते हुए कहा कि अदालत द्वारा उनकी याचिका पर नोटिस जारी किए जाने के बाद स्थिरता का स्तर पार हो गया है।

साल 2002 के गुजरात दंगों के दौरान बिलकिस बानो के साथ सामूहिक दुष्कर्म किया गया था और उसके परिवार के कई सदस्यों की हत्या कर दी गई थी। बिलकिस बानो का प्रतिनिधित्व करने वाली अधिवक्ता शोभा गुप्ता ने कहा, पहले न्यायमूर्ति बेला एम. त्रिवेदी ने दोषियों की रिहाई के खिलाफ उनके मुवक्किल की याचिका पर सुनवाई से खुद को अलग कर लिया था। इस मौके पर बेंच में मौजूद जजों ने कुछ देर आपस में बातचीत की। उसके बाद जस्टिस रस्तोगी ने कहा, अगर जस्टिस त्रिवेदी पहले ही पीड़िता की याचिका की सुनवाई से खुद को अलग कर चुकी हैं तो वह इस मामले की सुनवाई से भी खुद को अलग करना चाहेंगी।

उन्होंने आगे कहा, बिलकिस बानो की याचिका को मुख्य मामले के रूप में लिया जाएगा और बाकी रिट याचिकाओं को इसके साथ टैग किया जाएगा, जब पीठ न्यायाधीशों के एक अलग संयोजन में बैठेगी।

वरिष्ठ अधिवक्ता सिद्धार्थ लूथरा और मल्होत्रा ने पीठ से अनुरोध किया कि याचिकाकर्ताओं द्वारा दायर किए जा रहे प्रत्युत्तर हलफनामे उन्हें दिए जाएं। जस्टिस रस्तोगी ने कहा कि सब कुछ पार्टियों के बीच साझा किया जाना चाहिए।

भट ने कहा कि मामले में दलीलें खत्म हो गई हैं और अदालत फरवरी में सुनवाई के लिए याचिकाएं ले सकती हैं। पीठ फरवरी में याचिकाओं को सूचीबद्ध करने पर सहमत हुई।

न्यायमूर्ति त्रिवेदी ने पिछले महीने 11 दोषियों की रिहाई के खिलाफ बिलकिस बानो द्वारा दायर याचिका पर सुनवाई से खुद को अलग कर लिया था। उन्होंने अलग होने का कोई कारण नहीं बताया था। याचिका में बिलकिस बानो ने कहा है कि सभी दोषियों की रिहाई का फैसला न केवल याचिकाकर्ता, उसकी बड़ी हो चुकीं बेटियों, उसके परिवार के लिए ही नहीं, बल्कि बड़े पैमाने पर राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर समाज के लिए एक झटके के रूप में आया है।

उसने याचिका में कहा है, सभी दोषियों की समय से पहले रिहाई न केवल याचिकाकर्ता, उसकी बड़ी हो चुकी बेटियों, उसके परिवार के लिए, बल्कि समाज के लिए बड़े पैमाने पर, राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर एक झटके के रूप में आई और समाज के सभी वर्गो ने इस मामले के 11 दोषियों को रिहा करके सरकार द्वारा किए गए क्षमादान के प्रति अपना गुस्सा, निराशा, अविश्वास और विरोध जताया।

रिहाई के आदेश को यांत्रिक करार देते हुए याचिका में कहा गया है कि इस बहुचर्चित मामले में दोषियों की समय से पहले रिहाई ने समाज की अंतरात्मा को झकझोर कर रख दिया है और इसके परिणामस्वरूप देशभर में कई आंदोलन हुए, जिस पर गौर किया जाना चाहिए।

–आईएएनएस

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