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Home Today's Special News

पंजाब एसवाईएल नहर का समाधान निकालने को तैयार नहीं : हरियाणा के मुख्यमंत्री

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January 4, 2023
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पंजाब एसवाईएल नहर का समाधान निकालने को तैयार नहीं : हरियाणा के मुख्यमंत्री
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नई दिल्ली, 5 जनवरी (आईएएनएस)। हरियाणा के मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर ने बुधवार को कहा कि केंद्रीय जल संसाधन मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत द्वारा सतलुज-यमुना लिंक (एसवाईएल) नहर के मुद्दे पर पंजाब के सीएम के साथ बुलाई गई बैठक में कोई सहमति नहीं बन पाई।

उन्होंने एक बयान में कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में घोषणा की थी कि एसवाईएल का निर्माण किया जाना चाहिए, लेकिन पंजाब के मुख्यमंत्री भगवंत मान और उनकी प्रशासनिक शाखा इस मुद्दे का कोई समाधान निकालने को तैयार नहीं है।

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खट्टर ने कहा, इस अहम मुद्दे पर चर्चा करने के बजाय पंजाब के मुख्यमंत्री और उनकी प्रशासनिक शाखा बार-बार कह रही है कि राज्य में पानी नहीं है। बल्कि, वह पानी के बंटवारे पर चर्चा करने के लिए कह रहे हैं, जबकि पानी के बंटवारे से संबंधित मुद्दों पर चर्चा के लिए अलग ट्रिब्यूनल स्थापित किया गया है। ट्रिब्यूनल की सिफारिश के अनुसार पानी का वितरण किया जाएगा।

मुख्यमंत्री ने कहा कि पंजाब सरकार सुप्रीम कोर्ट के उस फैसले को भी नहीं मान रही है, जिसमें पंजाब सरकार द्वारा वर्ष 2004 में लाए गए एक्ट को रद्द कर दिया गया है। पंजाब के मुख्यमंत्री का कहना है कि 2004 का अधिनियम अभी भी मौजूद है जो पूरी तरह से असंवैधानिक है।

खट्टर ने कहा कि एसवाईएल नहर बनाई जानी चाहिए और हरियाणा सरकार इस मुद्दे पर पंजाब के अनिच्छुक रवैये से सुप्रीम कोर्ट को अवगत कराएगी। हम इस संबंध में सुप्रीम कोर्ट के फैसले को स्वीकार करेंगे। एसवाईएल हरियाणावासियों का अधिकार है और उन्हें उम्मीद है कि यह अधिकार राज्य को मिलेगा। एसवाईएल का पानी हरियाणा के लिए बहुत जरूरी है।

उन्होंने कहा, अब इस मामले में एक समयसीमा तय करने की जरूरत है, ताकि राज्य के किसानों को पानी की उपलब्धता सुनिश्चित की जा सके। यह सर्वविदित तथ्य है कि सुप्रीम कोर्ट के दो फैसलों के बावजूद पंजाब ने एसवाईएल का निर्माण पूरा नहीं किया है। पंजाब ने सुप्रीम कोर्ट के फैसलों को लागू करने के बजाय 2004 में रद्दीकरण अधिनियम, 2004 को लागू करके उनके कार्यान्वयन में बाधा डालने की कोशिश की। पंजाब पुनर्गठन अधिनियम, 1966 के प्रावधान के तहत, भारत सरकार के दिनांक 24 मार्च, 1976 के आदेश के अनुसार रावी-ब्यास के अतिरिक्त पानी में से 3.5 एमएएफ पानी हरियाणा को आवंटित किया गया था।

हरियाणा के सीएम ने कहा, एसवाईएल नहर का काम पूरा नहीं होने के कारण हरियाणा केवल 1.62 एमएएफ पानी का उपयोग कर रहा है। पंजाब अपने क्षेत्र में एसवाईएल नहर को पूरा नहीं करके हरियाणा के हिस्से से लगभग 1.9 एमएएफ पानी का अवैध रूप से उपयोग कर रहा है। पंजाब के इस रवैये के कारण, हरियाणा अपने हिस्से का 1.88 एमएएफ पानी नहीं ले पा रहा है। पंजाब और राजस्थान हर साल हरियाणा के लगभग 2,600 क्यूसेक पानी का उपयोग कर रहे हैं। अगर यह पानी हरियाणा पहुंचता तो 10.08 लाख एकड़ जमीन की सिंचाई, राज्य की प्यास बुझाता और हजारों किसानों की मदद करता।

उन्होंने कहा कि इस पानी की अनुपलब्धता के कारण दक्षिण हरियाणा में भूजल स्तर भी काफी नीचे जा रहा है। एसवाईएल का निर्माण नहीं होने के कारण हरियाणा के किसान महंगे डीजल और बिजली से ट्यूबवेल चलाकर सिंचाई करते हैं, जिस पर हर साल 100 से 150 करोड़ रुपये का अतिरिक्त बोझ पड़ता है। पंजाब क्षेत्र में एसवाईएल नहीं बनने से हरियाणा में 10 लाख एकड़ में सिंचाई के लिए सृजित सिंचाई क्षमता बेकार पड़ी है।

–आईएएनएस

केसी/एसजीके

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नई दिल्ली, 5 जनवरी (आईएएनएस)। हरियाणा के मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर ने बुधवार को कहा कि केंद्रीय जल संसाधन मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत द्वारा सतलुज-यमुना लिंक (एसवाईएल) नहर के मुद्दे पर पंजाब के सीएम के साथ बुलाई गई बैठक में कोई सहमति नहीं बन पाई।

उन्होंने एक बयान में कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में घोषणा की थी कि एसवाईएल का निर्माण किया जाना चाहिए, लेकिन पंजाब के मुख्यमंत्री भगवंत मान और उनकी प्रशासनिक शाखा इस मुद्दे का कोई समाधान निकालने को तैयार नहीं है।

खट्टर ने कहा, इस अहम मुद्दे पर चर्चा करने के बजाय पंजाब के मुख्यमंत्री और उनकी प्रशासनिक शाखा बार-बार कह रही है कि राज्य में पानी नहीं है। बल्कि, वह पानी के बंटवारे पर चर्चा करने के लिए कह रहे हैं, जबकि पानी के बंटवारे से संबंधित मुद्दों पर चर्चा के लिए अलग ट्रिब्यूनल स्थापित किया गया है। ट्रिब्यूनल की सिफारिश के अनुसार पानी का वितरण किया जाएगा।

मुख्यमंत्री ने कहा कि पंजाब सरकार सुप्रीम कोर्ट के उस फैसले को भी नहीं मान रही है, जिसमें पंजाब सरकार द्वारा वर्ष 2004 में लाए गए एक्ट को रद्द कर दिया गया है। पंजाब के मुख्यमंत्री का कहना है कि 2004 का अधिनियम अभी भी मौजूद है जो पूरी तरह से असंवैधानिक है।

खट्टर ने कहा कि एसवाईएल नहर बनाई जानी चाहिए और हरियाणा सरकार इस मुद्दे पर पंजाब के अनिच्छुक रवैये से सुप्रीम कोर्ट को अवगत कराएगी। हम इस संबंध में सुप्रीम कोर्ट के फैसले को स्वीकार करेंगे। एसवाईएल हरियाणावासियों का अधिकार है और उन्हें उम्मीद है कि यह अधिकार राज्य को मिलेगा। एसवाईएल का पानी हरियाणा के लिए बहुत जरूरी है।

उन्होंने कहा, अब इस मामले में एक समयसीमा तय करने की जरूरत है, ताकि राज्य के किसानों को पानी की उपलब्धता सुनिश्चित की जा सके। यह सर्वविदित तथ्य है कि सुप्रीम कोर्ट के दो फैसलों के बावजूद पंजाब ने एसवाईएल का निर्माण पूरा नहीं किया है। पंजाब ने सुप्रीम कोर्ट के फैसलों को लागू करने के बजाय 2004 में रद्दीकरण अधिनियम, 2004 को लागू करके उनके कार्यान्वयन में बाधा डालने की कोशिश की। पंजाब पुनर्गठन अधिनियम, 1966 के प्रावधान के तहत, भारत सरकार के दिनांक 24 मार्च, 1976 के आदेश के अनुसार रावी-ब्यास के अतिरिक्त पानी में से 3.5 एमएएफ पानी हरियाणा को आवंटित किया गया था।

हरियाणा के सीएम ने कहा, एसवाईएल नहर का काम पूरा नहीं होने के कारण हरियाणा केवल 1.62 एमएएफ पानी का उपयोग कर रहा है। पंजाब अपने क्षेत्र में एसवाईएल नहर को पूरा नहीं करके हरियाणा के हिस्से से लगभग 1.9 एमएएफ पानी का अवैध रूप से उपयोग कर रहा है। पंजाब के इस रवैये के कारण, हरियाणा अपने हिस्से का 1.88 एमएएफ पानी नहीं ले पा रहा है। पंजाब और राजस्थान हर साल हरियाणा के लगभग 2,600 क्यूसेक पानी का उपयोग कर रहे हैं। अगर यह पानी हरियाणा पहुंचता तो 10.08 लाख एकड़ जमीन की सिंचाई, राज्य की प्यास बुझाता और हजारों किसानों की मदद करता।

उन्होंने कहा कि इस पानी की अनुपलब्धता के कारण दक्षिण हरियाणा में भूजल स्तर भी काफी नीचे जा रहा है। एसवाईएल का निर्माण नहीं होने के कारण हरियाणा के किसान महंगे डीजल और बिजली से ट्यूबवेल चलाकर सिंचाई करते हैं, जिस पर हर साल 100 से 150 करोड़ रुपये का अतिरिक्त बोझ पड़ता है। पंजाब क्षेत्र में एसवाईएल नहीं बनने से हरियाणा में 10 लाख एकड़ में सिंचाई के लिए सृजित सिंचाई क्षमता बेकार पड़ी है।

–आईएएनएस

केसी/एसजीके

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नई दिल्ली, 5 जनवरी (आईएएनएस)। हरियाणा के मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर ने बुधवार को कहा कि केंद्रीय जल संसाधन मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत द्वारा सतलुज-यमुना लिंक (एसवाईएल) नहर के मुद्दे पर पंजाब के सीएम के साथ बुलाई गई बैठक में कोई सहमति नहीं बन पाई।

उन्होंने एक बयान में कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में घोषणा की थी कि एसवाईएल का निर्माण किया जाना चाहिए, लेकिन पंजाब के मुख्यमंत्री भगवंत मान और उनकी प्रशासनिक शाखा इस मुद्दे का कोई समाधान निकालने को तैयार नहीं है।

खट्टर ने कहा, इस अहम मुद्दे पर चर्चा करने के बजाय पंजाब के मुख्यमंत्री और उनकी प्रशासनिक शाखा बार-बार कह रही है कि राज्य में पानी नहीं है। बल्कि, वह पानी के बंटवारे पर चर्चा करने के लिए कह रहे हैं, जबकि पानी के बंटवारे से संबंधित मुद्दों पर चर्चा के लिए अलग ट्रिब्यूनल स्थापित किया गया है। ट्रिब्यूनल की सिफारिश के अनुसार पानी का वितरण किया जाएगा।

मुख्यमंत्री ने कहा कि पंजाब सरकार सुप्रीम कोर्ट के उस फैसले को भी नहीं मान रही है, जिसमें पंजाब सरकार द्वारा वर्ष 2004 में लाए गए एक्ट को रद्द कर दिया गया है। पंजाब के मुख्यमंत्री का कहना है कि 2004 का अधिनियम अभी भी मौजूद है जो पूरी तरह से असंवैधानिक है।

खट्टर ने कहा कि एसवाईएल नहर बनाई जानी चाहिए और हरियाणा सरकार इस मुद्दे पर पंजाब के अनिच्छुक रवैये से सुप्रीम कोर्ट को अवगत कराएगी। हम इस संबंध में सुप्रीम कोर्ट के फैसले को स्वीकार करेंगे। एसवाईएल हरियाणावासियों का अधिकार है और उन्हें उम्मीद है कि यह अधिकार राज्य को मिलेगा। एसवाईएल का पानी हरियाणा के लिए बहुत जरूरी है।

उन्होंने कहा, अब इस मामले में एक समयसीमा तय करने की जरूरत है, ताकि राज्य के किसानों को पानी की उपलब्धता सुनिश्चित की जा सके। यह सर्वविदित तथ्य है कि सुप्रीम कोर्ट के दो फैसलों के बावजूद पंजाब ने एसवाईएल का निर्माण पूरा नहीं किया है। पंजाब ने सुप्रीम कोर्ट के फैसलों को लागू करने के बजाय 2004 में रद्दीकरण अधिनियम, 2004 को लागू करके उनके कार्यान्वयन में बाधा डालने की कोशिश की। पंजाब पुनर्गठन अधिनियम, 1966 के प्रावधान के तहत, भारत सरकार के दिनांक 24 मार्च, 1976 के आदेश के अनुसार रावी-ब्यास के अतिरिक्त पानी में से 3.5 एमएएफ पानी हरियाणा को आवंटित किया गया था।

हरियाणा के सीएम ने कहा, एसवाईएल नहर का काम पूरा नहीं होने के कारण हरियाणा केवल 1.62 एमएएफ पानी का उपयोग कर रहा है। पंजाब अपने क्षेत्र में एसवाईएल नहर को पूरा नहीं करके हरियाणा के हिस्से से लगभग 1.9 एमएएफ पानी का अवैध रूप से उपयोग कर रहा है। पंजाब के इस रवैये के कारण, हरियाणा अपने हिस्से का 1.88 एमएएफ पानी नहीं ले पा रहा है। पंजाब और राजस्थान हर साल हरियाणा के लगभग 2,600 क्यूसेक पानी का उपयोग कर रहे हैं। अगर यह पानी हरियाणा पहुंचता तो 10.08 लाख एकड़ जमीन की सिंचाई, राज्य की प्यास बुझाता और हजारों किसानों की मदद करता।

उन्होंने कहा कि इस पानी की अनुपलब्धता के कारण दक्षिण हरियाणा में भूजल स्तर भी काफी नीचे जा रहा है। एसवाईएल का निर्माण नहीं होने के कारण हरियाणा के किसान महंगे डीजल और बिजली से ट्यूबवेल चलाकर सिंचाई करते हैं, जिस पर हर साल 100 से 150 करोड़ रुपये का अतिरिक्त बोझ पड़ता है। पंजाब क्षेत्र में एसवाईएल नहीं बनने से हरियाणा में 10 लाख एकड़ में सिंचाई के लिए सृजित सिंचाई क्षमता बेकार पड़ी है।

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नई दिल्ली, 5 जनवरी (आईएएनएस)। हरियाणा के मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर ने बुधवार को कहा कि केंद्रीय जल संसाधन मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत द्वारा सतलुज-यमुना लिंक (एसवाईएल) नहर के मुद्दे पर पंजाब के सीएम के साथ बुलाई गई बैठक में कोई सहमति नहीं बन पाई।

उन्होंने एक बयान में कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में घोषणा की थी कि एसवाईएल का निर्माण किया जाना चाहिए, लेकिन पंजाब के मुख्यमंत्री भगवंत मान और उनकी प्रशासनिक शाखा इस मुद्दे का कोई समाधान निकालने को तैयार नहीं है।

खट्टर ने कहा, इस अहम मुद्दे पर चर्चा करने के बजाय पंजाब के मुख्यमंत्री और उनकी प्रशासनिक शाखा बार-बार कह रही है कि राज्य में पानी नहीं है। बल्कि, वह पानी के बंटवारे पर चर्चा करने के लिए कह रहे हैं, जबकि पानी के बंटवारे से संबंधित मुद्दों पर चर्चा के लिए अलग ट्रिब्यूनल स्थापित किया गया है। ट्रिब्यूनल की सिफारिश के अनुसार पानी का वितरण किया जाएगा।

मुख्यमंत्री ने कहा कि पंजाब सरकार सुप्रीम कोर्ट के उस फैसले को भी नहीं मान रही है, जिसमें पंजाब सरकार द्वारा वर्ष 2004 में लाए गए एक्ट को रद्द कर दिया गया है। पंजाब के मुख्यमंत्री का कहना है कि 2004 का अधिनियम अभी भी मौजूद है जो पूरी तरह से असंवैधानिक है।

खट्टर ने कहा कि एसवाईएल नहर बनाई जानी चाहिए और हरियाणा सरकार इस मुद्दे पर पंजाब के अनिच्छुक रवैये से सुप्रीम कोर्ट को अवगत कराएगी। हम इस संबंध में सुप्रीम कोर्ट के फैसले को स्वीकार करेंगे। एसवाईएल हरियाणावासियों का अधिकार है और उन्हें उम्मीद है कि यह अधिकार राज्य को मिलेगा। एसवाईएल का पानी हरियाणा के लिए बहुत जरूरी है।

उन्होंने कहा, अब इस मामले में एक समयसीमा तय करने की जरूरत है, ताकि राज्य के किसानों को पानी की उपलब्धता सुनिश्चित की जा सके। यह सर्वविदित तथ्य है कि सुप्रीम कोर्ट के दो फैसलों के बावजूद पंजाब ने एसवाईएल का निर्माण पूरा नहीं किया है। पंजाब ने सुप्रीम कोर्ट के फैसलों को लागू करने के बजाय 2004 में रद्दीकरण अधिनियम, 2004 को लागू करके उनके कार्यान्वयन में बाधा डालने की कोशिश की। पंजाब पुनर्गठन अधिनियम, 1966 के प्रावधान के तहत, भारत सरकार के दिनांक 24 मार्च, 1976 के आदेश के अनुसार रावी-ब्यास के अतिरिक्त पानी में से 3.5 एमएएफ पानी हरियाणा को आवंटित किया गया था।

हरियाणा के सीएम ने कहा, एसवाईएल नहर का काम पूरा नहीं होने के कारण हरियाणा केवल 1.62 एमएएफ पानी का उपयोग कर रहा है। पंजाब अपने क्षेत्र में एसवाईएल नहर को पूरा नहीं करके हरियाणा के हिस्से से लगभग 1.9 एमएएफ पानी का अवैध रूप से उपयोग कर रहा है। पंजाब के इस रवैये के कारण, हरियाणा अपने हिस्से का 1.88 एमएएफ पानी नहीं ले पा रहा है। पंजाब और राजस्थान हर साल हरियाणा के लगभग 2,600 क्यूसेक पानी का उपयोग कर रहे हैं। अगर यह पानी हरियाणा पहुंचता तो 10.08 लाख एकड़ जमीन की सिंचाई, राज्य की प्यास बुझाता और हजारों किसानों की मदद करता।

उन्होंने कहा कि इस पानी की अनुपलब्धता के कारण दक्षिण हरियाणा में भूजल स्तर भी काफी नीचे जा रहा है। एसवाईएल का निर्माण नहीं होने के कारण हरियाणा के किसान महंगे डीजल और बिजली से ट्यूबवेल चलाकर सिंचाई करते हैं, जिस पर हर साल 100 से 150 करोड़ रुपये का अतिरिक्त बोझ पड़ता है। पंजाब क्षेत्र में एसवाईएल नहीं बनने से हरियाणा में 10 लाख एकड़ में सिंचाई के लिए सृजित सिंचाई क्षमता बेकार पड़ी है।

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