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Home Today's Special News

जलपाईगुड़ी में कंधे पर मां के शव को ले जा रहे शख्स को देख लोग हैरान

by
January 5, 2023
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जलपाईगुड़ी में कंधे पर मां के शव को ले जा रहे शख्स को देख लोग हैरान
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कोलकाता, 5 जनवरी (आईएएनएस)। पश्चिम बंगाल के उत्तरी हिस्से में जलपाईगुड़ी मेडिकल कॉलेज एंड हॉस्पिटल से सटे सड़क पर गुरुवार दोपहर लोग उस समय हैरान रह गए, जब उन्होंने एक आदमी को अपनी मृत मां के शव को अपने कंधे पर ले जाते हुए देखा, और उसके वृद्ध पिता उसकी मदद कर रहे थे।

लोगों ने जब उससे पूछा तो पता चला कि अस्पताल के एंबुलेंस चालकों ने 3,000 रुपये का भुगतान नहीं करने पर जाने से मना कर दिया जिसके बाद असहाय बेटे को अपनी मां के शव को कंधे पर ले जाने के लिए मजबूर होना पड़ा।

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यह ²श्य अगस्त 2016 की घटना की याद दिलाता है जब ओडिशा के एक आदिवासी दाना मांझी को अपनी मृतक पत्नी के शव को कंधे पर लादकर अपनी छोटी बेटी के साथ लगभग 10 किलोमीटर पैदल चलना पड़ा था। जिस अस्पताल में उनकी पत्नी का टीबी का इलाज चल रहा था, वहां भी शवगृह वैन चालकों ने उन्हें सहायता देने से इनकार कर दिया था।

जलपाईगुड़ी की घटना में, नगरदंगी क्षेत्र की रहने वाली लक्ष्मीरानी दीवान (71) को आयु संबंधी विभिन्न बीमारियों के साथ जलपाईगुड़ी मेडिकल कॉलेज और अस्पताल में भर्ती कराया गया था। गुरुवार को उसकी मौत हो गई। जब एंबुलेंस चालकों ने भुगतान के बिना मृतक के शव को वापस घर ले जाने से इनकार कर दिया, तो उसके बेटे रामप्रसाद दीवान ने अपनी मां के शव को अपने कंधे पर ले जाने का फैसला किया।

उसने कहा- मैंने एंबुलेंस चालकों से अनुरोध किया, उन्होंने इसके लिए 3,000 रुपये की मांग की। मैंने उनसे बार-बार पैसे कम करने की विनती की। लेकिन उन्होंने इनकार कर दिया। इसलिए, मैंने अपनी मां के शव को अपने कंधे पर ले जाने का फैसला किया।

हालांकि दीवान, मांझी की तरह बदकिस्मत नहीं थे, मांझी को अपनी पत्नी के शव को कंधे पर लादकर 10 किलोमीटर तक ओडिशा में पैदल चलना पड़ा था। लेकिन दीवान के अस्पताल से कुछ दूर जाने के बाद, एक स्थानीय स्वयंसेवी संस्था की एम्बुलेंस वहां पहुंची और उन्हें उनके घर ले गई।

–आईएएनएस

केसी/एसकेपी

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कोलकाता, 5 जनवरी (आईएएनएस)। पश्चिम बंगाल के उत्तरी हिस्से में जलपाईगुड़ी मेडिकल कॉलेज एंड हॉस्पिटल से सटे सड़क पर गुरुवार दोपहर लोग उस समय हैरान रह गए, जब उन्होंने एक आदमी को अपनी मृत मां के शव को अपने कंधे पर ले जाते हुए देखा, और उसके वृद्ध पिता उसकी मदद कर रहे थे।

लोगों ने जब उससे पूछा तो पता चला कि अस्पताल के एंबुलेंस चालकों ने 3,000 रुपये का भुगतान नहीं करने पर जाने से मना कर दिया जिसके बाद असहाय बेटे को अपनी मां के शव को कंधे पर ले जाने के लिए मजबूर होना पड़ा।

यह ²श्य अगस्त 2016 की घटना की याद दिलाता है जब ओडिशा के एक आदिवासी दाना मांझी को अपनी मृतक पत्नी के शव को कंधे पर लादकर अपनी छोटी बेटी के साथ लगभग 10 किलोमीटर पैदल चलना पड़ा था। जिस अस्पताल में उनकी पत्नी का टीबी का इलाज चल रहा था, वहां भी शवगृह वैन चालकों ने उन्हें सहायता देने से इनकार कर दिया था।

जलपाईगुड़ी की घटना में, नगरदंगी क्षेत्र की रहने वाली लक्ष्मीरानी दीवान (71) को आयु संबंधी विभिन्न बीमारियों के साथ जलपाईगुड़ी मेडिकल कॉलेज और अस्पताल में भर्ती कराया गया था। गुरुवार को उसकी मौत हो गई। जब एंबुलेंस चालकों ने भुगतान के बिना मृतक के शव को वापस घर ले जाने से इनकार कर दिया, तो उसके बेटे रामप्रसाद दीवान ने अपनी मां के शव को अपने कंधे पर ले जाने का फैसला किया।

उसने कहा- मैंने एंबुलेंस चालकों से अनुरोध किया, उन्होंने इसके लिए 3,000 रुपये की मांग की। मैंने उनसे बार-बार पैसे कम करने की विनती की। लेकिन उन्होंने इनकार कर दिया। इसलिए, मैंने अपनी मां के शव को अपने कंधे पर ले जाने का फैसला किया।

हालांकि दीवान, मांझी की तरह बदकिस्मत नहीं थे, मांझी को अपनी पत्नी के शव को कंधे पर लादकर 10 किलोमीटर तक ओडिशा में पैदल चलना पड़ा था। लेकिन दीवान के अस्पताल से कुछ दूर जाने के बाद, एक स्थानीय स्वयंसेवी संस्था की एम्बुलेंस वहां पहुंची और उन्हें उनके घर ले गई।

–आईएएनएस

केसी/एसकेपी

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कोलकाता, 5 जनवरी (आईएएनएस)। पश्चिम बंगाल के उत्तरी हिस्से में जलपाईगुड़ी मेडिकल कॉलेज एंड हॉस्पिटल से सटे सड़क पर गुरुवार दोपहर लोग उस समय हैरान रह गए, जब उन्होंने एक आदमी को अपनी मृत मां के शव को अपने कंधे पर ले जाते हुए देखा, और उसके वृद्ध पिता उसकी मदद कर रहे थे।

लोगों ने जब उससे पूछा तो पता चला कि अस्पताल के एंबुलेंस चालकों ने 3,000 रुपये का भुगतान नहीं करने पर जाने से मना कर दिया जिसके बाद असहाय बेटे को अपनी मां के शव को कंधे पर ले जाने के लिए मजबूर होना पड़ा।

यह ²श्य अगस्त 2016 की घटना की याद दिलाता है जब ओडिशा के एक आदिवासी दाना मांझी को अपनी मृतक पत्नी के शव को कंधे पर लादकर अपनी छोटी बेटी के साथ लगभग 10 किलोमीटर पैदल चलना पड़ा था। जिस अस्पताल में उनकी पत्नी का टीबी का इलाज चल रहा था, वहां भी शवगृह वैन चालकों ने उन्हें सहायता देने से इनकार कर दिया था।

जलपाईगुड़ी की घटना में, नगरदंगी क्षेत्र की रहने वाली लक्ष्मीरानी दीवान (71) को आयु संबंधी विभिन्न बीमारियों के साथ जलपाईगुड़ी मेडिकल कॉलेज और अस्पताल में भर्ती कराया गया था। गुरुवार को उसकी मौत हो गई। जब एंबुलेंस चालकों ने भुगतान के बिना मृतक के शव को वापस घर ले जाने से इनकार कर दिया, तो उसके बेटे रामप्रसाद दीवान ने अपनी मां के शव को अपने कंधे पर ले जाने का फैसला किया।

उसने कहा- मैंने एंबुलेंस चालकों से अनुरोध किया, उन्होंने इसके लिए 3,000 रुपये की मांग की। मैंने उनसे बार-बार पैसे कम करने की विनती की। लेकिन उन्होंने इनकार कर दिया। इसलिए, मैंने अपनी मां के शव को अपने कंधे पर ले जाने का फैसला किया।

हालांकि दीवान, मांझी की तरह बदकिस्मत नहीं थे, मांझी को अपनी पत्नी के शव को कंधे पर लादकर 10 किलोमीटर तक ओडिशा में पैदल चलना पड़ा था। लेकिन दीवान के अस्पताल से कुछ दूर जाने के बाद, एक स्थानीय स्वयंसेवी संस्था की एम्बुलेंस वहां पहुंची और उन्हें उनके घर ले गई।

–आईएएनएस

केसी/एसकेपी

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कोलकाता, 5 जनवरी (आईएएनएस)। पश्चिम बंगाल के उत्तरी हिस्से में जलपाईगुड़ी मेडिकल कॉलेज एंड हॉस्पिटल से सटे सड़क पर गुरुवार दोपहर लोग उस समय हैरान रह गए, जब उन्होंने एक आदमी को अपनी मृत मां के शव को अपने कंधे पर ले जाते हुए देखा, और उसके वृद्ध पिता उसकी मदद कर रहे थे।

लोगों ने जब उससे पूछा तो पता चला कि अस्पताल के एंबुलेंस चालकों ने 3,000 रुपये का भुगतान नहीं करने पर जाने से मना कर दिया जिसके बाद असहाय बेटे को अपनी मां के शव को कंधे पर ले जाने के लिए मजबूर होना पड़ा।

यह ²श्य अगस्त 2016 की घटना की याद दिलाता है जब ओडिशा के एक आदिवासी दाना मांझी को अपनी मृतक पत्नी के शव को कंधे पर लादकर अपनी छोटी बेटी के साथ लगभग 10 किलोमीटर पैदल चलना पड़ा था। जिस अस्पताल में उनकी पत्नी का टीबी का इलाज चल रहा था, वहां भी शवगृह वैन चालकों ने उन्हें सहायता देने से इनकार कर दिया था।

जलपाईगुड़ी की घटना में, नगरदंगी क्षेत्र की रहने वाली लक्ष्मीरानी दीवान (71) को आयु संबंधी विभिन्न बीमारियों के साथ जलपाईगुड़ी मेडिकल कॉलेज और अस्पताल में भर्ती कराया गया था। गुरुवार को उसकी मौत हो गई। जब एंबुलेंस चालकों ने भुगतान के बिना मृतक के शव को वापस घर ले जाने से इनकार कर दिया, तो उसके बेटे रामप्रसाद दीवान ने अपनी मां के शव को अपने कंधे पर ले जाने का फैसला किया।

उसने कहा- मैंने एंबुलेंस चालकों से अनुरोध किया, उन्होंने इसके लिए 3,000 रुपये की मांग की। मैंने उनसे बार-बार पैसे कम करने की विनती की। लेकिन उन्होंने इनकार कर दिया। इसलिए, मैंने अपनी मां के शव को अपने कंधे पर ले जाने का फैसला किया।

हालांकि दीवान, मांझी की तरह बदकिस्मत नहीं थे, मांझी को अपनी पत्नी के शव को कंधे पर लादकर 10 किलोमीटर तक ओडिशा में पैदल चलना पड़ा था। लेकिन दीवान के अस्पताल से कुछ दूर जाने के बाद, एक स्थानीय स्वयंसेवी संस्था की एम्बुलेंस वहां पहुंची और उन्हें उनके घर ले गई।

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कोलकाता, 5 जनवरी (आईएएनएस)। पश्चिम बंगाल के उत्तरी हिस्से में जलपाईगुड़ी मेडिकल कॉलेज एंड हॉस्पिटल से सटे सड़क पर गुरुवार दोपहर लोग उस समय हैरान रह गए, जब उन्होंने एक आदमी को अपनी मृत मां के शव को अपने कंधे पर ले जाते हुए देखा, और उसके वृद्ध पिता उसकी मदद कर रहे थे।

लोगों ने जब उससे पूछा तो पता चला कि अस्पताल के एंबुलेंस चालकों ने 3,000 रुपये का भुगतान नहीं करने पर जाने से मना कर दिया जिसके बाद असहाय बेटे को अपनी मां के शव को कंधे पर ले जाने के लिए मजबूर होना पड़ा।

यह ²श्य अगस्त 2016 की घटना की याद दिलाता है जब ओडिशा के एक आदिवासी दाना मांझी को अपनी मृतक पत्नी के शव को कंधे पर लादकर अपनी छोटी बेटी के साथ लगभग 10 किलोमीटर पैदल चलना पड़ा था। जिस अस्पताल में उनकी पत्नी का टीबी का इलाज चल रहा था, वहां भी शवगृह वैन चालकों ने उन्हें सहायता देने से इनकार कर दिया था।

जलपाईगुड़ी की घटना में, नगरदंगी क्षेत्र की रहने वाली लक्ष्मीरानी दीवान (71) को आयु संबंधी विभिन्न बीमारियों के साथ जलपाईगुड़ी मेडिकल कॉलेज और अस्पताल में भर्ती कराया गया था। गुरुवार को उसकी मौत हो गई। जब एंबुलेंस चालकों ने भुगतान के बिना मृतक के शव को वापस घर ले जाने से इनकार कर दिया, तो उसके बेटे रामप्रसाद दीवान ने अपनी मां के शव को अपने कंधे पर ले जाने का फैसला किया।

उसने कहा- मैंने एंबुलेंस चालकों से अनुरोध किया, उन्होंने इसके लिए 3,000 रुपये की मांग की। मैंने उनसे बार-बार पैसे कम करने की विनती की। लेकिन उन्होंने इनकार कर दिया। इसलिए, मैंने अपनी मां के शव को अपने कंधे पर ले जाने का फैसला किया।

हालांकि दीवान, मांझी की तरह बदकिस्मत नहीं थे, मांझी को अपनी पत्नी के शव को कंधे पर लादकर 10 किलोमीटर तक ओडिशा में पैदल चलना पड़ा था। लेकिन दीवान के अस्पताल से कुछ दूर जाने के बाद, एक स्थानीय स्वयंसेवी संस्था की एम्बुलेंस वहां पहुंची और उन्हें उनके घर ले गई।

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कोलकाता, 5 जनवरी (आईएएनएस)। पश्चिम बंगाल के उत्तरी हिस्से में जलपाईगुड़ी मेडिकल कॉलेज एंड हॉस्पिटल से सटे सड़क पर गुरुवार दोपहर लोग उस समय हैरान रह गए, जब उन्होंने एक आदमी को अपनी मृत मां के शव को अपने कंधे पर ले जाते हुए देखा, और उसके वृद्ध पिता उसकी मदद कर रहे थे।

लोगों ने जब उससे पूछा तो पता चला कि अस्पताल के एंबुलेंस चालकों ने 3,000 रुपये का भुगतान नहीं करने पर जाने से मना कर दिया जिसके बाद असहाय बेटे को अपनी मां के शव को कंधे पर ले जाने के लिए मजबूर होना पड़ा।

यह ²श्य अगस्त 2016 की घटना की याद दिलाता है जब ओडिशा के एक आदिवासी दाना मांझी को अपनी मृतक पत्नी के शव को कंधे पर लादकर अपनी छोटी बेटी के साथ लगभग 10 किलोमीटर पैदल चलना पड़ा था। जिस अस्पताल में उनकी पत्नी का टीबी का इलाज चल रहा था, वहां भी शवगृह वैन चालकों ने उन्हें सहायता देने से इनकार कर दिया था।

जलपाईगुड़ी की घटना में, नगरदंगी क्षेत्र की रहने वाली लक्ष्मीरानी दीवान (71) को आयु संबंधी विभिन्न बीमारियों के साथ जलपाईगुड़ी मेडिकल कॉलेज और अस्पताल में भर्ती कराया गया था। गुरुवार को उसकी मौत हो गई। जब एंबुलेंस चालकों ने भुगतान के बिना मृतक के शव को वापस घर ले जाने से इनकार कर दिया, तो उसके बेटे रामप्रसाद दीवान ने अपनी मां के शव को अपने कंधे पर ले जाने का फैसला किया।

उसने कहा- मैंने एंबुलेंस चालकों से अनुरोध किया, उन्होंने इसके लिए 3,000 रुपये की मांग की। मैंने उनसे बार-बार पैसे कम करने की विनती की। लेकिन उन्होंने इनकार कर दिया। इसलिए, मैंने अपनी मां के शव को अपने कंधे पर ले जाने का फैसला किया।

हालांकि दीवान, मांझी की तरह बदकिस्मत नहीं थे, मांझी को अपनी पत्नी के शव को कंधे पर लादकर 10 किलोमीटर तक ओडिशा में पैदल चलना पड़ा था। लेकिन दीवान के अस्पताल से कुछ दूर जाने के बाद, एक स्थानीय स्वयंसेवी संस्था की एम्बुलेंस वहां पहुंची और उन्हें उनके घर ले गई।

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लोगों ने जब उससे पूछा तो पता चला कि अस्पताल के एंबुलेंस चालकों ने 3,000 रुपये का भुगतान नहीं करने पर जाने से मना कर दिया जिसके बाद असहाय बेटे को अपनी मां के शव को कंधे पर ले जाने के लिए मजबूर होना पड़ा।

यह ²श्य अगस्त 2016 की घटना की याद दिलाता है जब ओडिशा के एक आदिवासी दाना मांझी को अपनी मृतक पत्नी के शव को कंधे पर लादकर अपनी छोटी बेटी के साथ लगभग 10 किलोमीटर पैदल चलना पड़ा था। जिस अस्पताल में उनकी पत्नी का टीबी का इलाज चल रहा था, वहां भी शवगृह वैन चालकों ने उन्हें सहायता देने से इनकार कर दिया था।

जलपाईगुड़ी की घटना में, नगरदंगी क्षेत्र की रहने वाली लक्ष्मीरानी दीवान (71) को आयु संबंधी विभिन्न बीमारियों के साथ जलपाईगुड़ी मेडिकल कॉलेज और अस्पताल में भर्ती कराया गया था। गुरुवार को उसकी मौत हो गई। जब एंबुलेंस चालकों ने भुगतान के बिना मृतक के शव को वापस घर ले जाने से इनकार कर दिया, तो उसके बेटे रामप्रसाद दीवान ने अपनी मां के शव को अपने कंधे पर ले जाने का फैसला किया।

उसने कहा- मैंने एंबुलेंस चालकों से अनुरोध किया, उन्होंने इसके लिए 3,000 रुपये की मांग की। मैंने उनसे बार-बार पैसे कम करने की विनती की। लेकिन उन्होंने इनकार कर दिया। इसलिए, मैंने अपनी मां के शव को अपने कंधे पर ले जाने का फैसला किया।

हालांकि दीवान, मांझी की तरह बदकिस्मत नहीं थे, मांझी को अपनी पत्नी के शव को कंधे पर लादकर 10 किलोमीटर तक ओडिशा में पैदल चलना पड़ा था। लेकिन दीवान के अस्पताल से कुछ दूर जाने के बाद, एक स्थानीय स्वयंसेवी संस्था की एम्बुलेंस वहां पहुंची और उन्हें उनके घर ले गई।

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लोगों ने जब उससे पूछा तो पता चला कि अस्पताल के एंबुलेंस चालकों ने 3,000 रुपये का भुगतान नहीं करने पर जाने से मना कर दिया जिसके बाद असहाय बेटे को अपनी मां के शव को कंधे पर ले जाने के लिए मजबूर होना पड़ा।

यह ²श्य अगस्त 2016 की घटना की याद दिलाता है जब ओडिशा के एक आदिवासी दाना मांझी को अपनी मृतक पत्नी के शव को कंधे पर लादकर अपनी छोटी बेटी के साथ लगभग 10 किलोमीटर पैदल चलना पड़ा था। जिस अस्पताल में उनकी पत्नी का टीबी का इलाज चल रहा था, वहां भी शवगृह वैन चालकों ने उन्हें सहायता देने से इनकार कर दिया था।

जलपाईगुड़ी की घटना में, नगरदंगी क्षेत्र की रहने वाली लक्ष्मीरानी दीवान (71) को आयु संबंधी विभिन्न बीमारियों के साथ जलपाईगुड़ी मेडिकल कॉलेज और अस्पताल में भर्ती कराया गया था। गुरुवार को उसकी मौत हो गई। जब एंबुलेंस चालकों ने भुगतान के बिना मृतक के शव को वापस घर ले जाने से इनकार कर दिया, तो उसके बेटे रामप्रसाद दीवान ने अपनी मां के शव को अपने कंधे पर ले जाने का फैसला किया।

उसने कहा- मैंने एंबुलेंस चालकों से अनुरोध किया, उन्होंने इसके लिए 3,000 रुपये की मांग की। मैंने उनसे बार-बार पैसे कम करने की विनती की। लेकिन उन्होंने इनकार कर दिया। इसलिए, मैंने अपनी मां के शव को अपने कंधे पर ले जाने का फैसला किया।

हालांकि दीवान, मांझी की तरह बदकिस्मत नहीं थे, मांझी को अपनी पत्नी के शव को कंधे पर लादकर 10 किलोमीटर तक ओडिशा में पैदल चलना पड़ा था। लेकिन दीवान के अस्पताल से कुछ दूर जाने के बाद, एक स्थानीय स्वयंसेवी संस्था की एम्बुलेंस वहां पहुंची और उन्हें उनके घर ले गई।

–आईएएनएस

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कोलकाता, 5 जनवरी (आईएएनएस)। पश्चिम बंगाल के उत्तरी हिस्से में जलपाईगुड़ी मेडिकल कॉलेज एंड हॉस्पिटल से सटे सड़क पर गुरुवार दोपहर लोग उस समय हैरान रह गए, जब उन्होंने एक आदमी को अपनी मृत मां के शव को अपने कंधे पर ले जाते हुए देखा, और उसके वृद्ध पिता उसकी मदद कर रहे थे।

लोगों ने जब उससे पूछा तो पता चला कि अस्पताल के एंबुलेंस चालकों ने 3,000 रुपये का भुगतान नहीं करने पर जाने से मना कर दिया जिसके बाद असहाय बेटे को अपनी मां के शव को कंधे पर ले जाने के लिए मजबूर होना पड़ा।

यह ²श्य अगस्त 2016 की घटना की याद दिलाता है जब ओडिशा के एक आदिवासी दाना मांझी को अपनी मृतक पत्नी के शव को कंधे पर लादकर अपनी छोटी बेटी के साथ लगभग 10 किलोमीटर पैदल चलना पड़ा था। जिस अस्पताल में उनकी पत्नी का टीबी का इलाज चल रहा था, वहां भी शवगृह वैन चालकों ने उन्हें सहायता देने से इनकार कर दिया था।

जलपाईगुड़ी की घटना में, नगरदंगी क्षेत्र की रहने वाली लक्ष्मीरानी दीवान (71) को आयु संबंधी विभिन्न बीमारियों के साथ जलपाईगुड़ी मेडिकल कॉलेज और अस्पताल में भर्ती कराया गया था। गुरुवार को उसकी मौत हो गई। जब एंबुलेंस चालकों ने भुगतान के बिना मृतक के शव को वापस घर ले जाने से इनकार कर दिया, तो उसके बेटे रामप्रसाद दीवान ने अपनी मां के शव को अपने कंधे पर ले जाने का फैसला किया।

उसने कहा- मैंने एंबुलेंस चालकों से अनुरोध किया, उन्होंने इसके लिए 3,000 रुपये की मांग की। मैंने उनसे बार-बार पैसे कम करने की विनती की। लेकिन उन्होंने इनकार कर दिया। इसलिए, मैंने अपनी मां के शव को अपने कंधे पर ले जाने का फैसला किया।

हालांकि दीवान, मांझी की तरह बदकिस्मत नहीं थे, मांझी को अपनी पत्नी के शव को कंधे पर लादकर 10 किलोमीटर तक ओडिशा में पैदल चलना पड़ा था। लेकिन दीवान के अस्पताल से कुछ दूर जाने के बाद, एक स्थानीय स्वयंसेवी संस्था की एम्बुलेंस वहां पहुंची और उन्हें उनके घर ले गई।

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लोगों ने जब उससे पूछा तो पता चला कि अस्पताल के एंबुलेंस चालकों ने 3,000 रुपये का भुगतान नहीं करने पर जाने से मना कर दिया जिसके बाद असहाय बेटे को अपनी मां के शव को कंधे पर ले जाने के लिए मजबूर होना पड़ा।

यह ²श्य अगस्त 2016 की घटना की याद दिलाता है जब ओडिशा के एक आदिवासी दाना मांझी को अपनी मृतक पत्नी के शव को कंधे पर लादकर अपनी छोटी बेटी के साथ लगभग 10 किलोमीटर पैदल चलना पड़ा था। जिस अस्पताल में उनकी पत्नी का टीबी का इलाज चल रहा था, वहां भी शवगृह वैन चालकों ने उन्हें सहायता देने से इनकार कर दिया था।

जलपाईगुड़ी की घटना में, नगरदंगी क्षेत्र की रहने वाली लक्ष्मीरानी दीवान (71) को आयु संबंधी विभिन्न बीमारियों के साथ जलपाईगुड़ी मेडिकल कॉलेज और अस्पताल में भर्ती कराया गया था। गुरुवार को उसकी मौत हो गई। जब एंबुलेंस चालकों ने भुगतान के बिना मृतक के शव को वापस घर ले जाने से इनकार कर दिया, तो उसके बेटे रामप्रसाद दीवान ने अपनी मां के शव को अपने कंधे पर ले जाने का फैसला किया।

उसने कहा- मैंने एंबुलेंस चालकों से अनुरोध किया, उन्होंने इसके लिए 3,000 रुपये की मांग की। मैंने उनसे बार-बार पैसे कम करने की विनती की। लेकिन उन्होंने इनकार कर दिया। इसलिए, मैंने अपनी मां के शव को अपने कंधे पर ले जाने का फैसला किया।

हालांकि दीवान, मांझी की तरह बदकिस्मत नहीं थे, मांझी को अपनी पत्नी के शव को कंधे पर लादकर 10 किलोमीटर तक ओडिशा में पैदल चलना पड़ा था। लेकिन दीवान के अस्पताल से कुछ दूर जाने के बाद, एक स्थानीय स्वयंसेवी संस्था की एम्बुलेंस वहां पहुंची और उन्हें उनके घर ले गई।

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यह ²श्य अगस्त 2016 की घटना की याद दिलाता है जब ओडिशा के एक आदिवासी दाना मांझी को अपनी मृतक पत्नी के शव को कंधे पर लादकर अपनी छोटी बेटी के साथ लगभग 10 किलोमीटर पैदल चलना पड़ा था। जिस अस्पताल में उनकी पत्नी का टीबी का इलाज चल रहा था, वहां भी शवगृह वैन चालकों ने उन्हें सहायता देने से इनकार कर दिया था।

जलपाईगुड़ी की घटना में, नगरदंगी क्षेत्र की रहने वाली लक्ष्मीरानी दीवान (71) को आयु संबंधी विभिन्न बीमारियों के साथ जलपाईगुड़ी मेडिकल कॉलेज और अस्पताल में भर्ती कराया गया था। गुरुवार को उसकी मौत हो गई। जब एंबुलेंस चालकों ने भुगतान के बिना मृतक के शव को वापस घर ले जाने से इनकार कर दिया, तो उसके बेटे रामप्रसाद दीवान ने अपनी मां के शव को अपने कंधे पर ले जाने का फैसला किया।

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कोलकाता, 5 जनवरी (आईएएनएस)। पश्चिम बंगाल के उत्तरी हिस्से में जलपाईगुड़ी मेडिकल कॉलेज एंड हॉस्पिटल से सटे सड़क पर गुरुवार दोपहर लोग उस समय हैरान रह गए, जब उन्होंने एक आदमी को अपनी मृत मां के शव को अपने कंधे पर ले जाते हुए देखा, और उसके वृद्ध पिता उसकी मदद कर रहे थे।

लोगों ने जब उससे पूछा तो पता चला कि अस्पताल के एंबुलेंस चालकों ने 3,000 रुपये का भुगतान नहीं करने पर जाने से मना कर दिया जिसके बाद असहाय बेटे को अपनी मां के शव को कंधे पर ले जाने के लिए मजबूर होना पड़ा।

यह ²श्य अगस्त 2016 की घटना की याद दिलाता है जब ओडिशा के एक आदिवासी दाना मांझी को अपनी मृतक पत्नी के शव को कंधे पर लादकर अपनी छोटी बेटी के साथ लगभग 10 किलोमीटर पैदल चलना पड़ा था। जिस अस्पताल में उनकी पत्नी का टीबी का इलाज चल रहा था, वहां भी शवगृह वैन चालकों ने उन्हें सहायता देने से इनकार कर दिया था।

जलपाईगुड़ी की घटना में, नगरदंगी क्षेत्र की रहने वाली लक्ष्मीरानी दीवान (71) को आयु संबंधी विभिन्न बीमारियों के साथ जलपाईगुड़ी मेडिकल कॉलेज और अस्पताल में भर्ती कराया गया था। गुरुवार को उसकी मौत हो गई। जब एंबुलेंस चालकों ने भुगतान के बिना मृतक के शव को वापस घर ले जाने से इनकार कर दिया, तो उसके बेटे रामप्रसाद दीवान ने अपनी मां के शव को अपने कंधे पर ले जाने का फैसला किया।

उसने कहा- मैंने एंबुलेंस चालकों से अनुरोध किया, उन्होंने इसके लिए 3,000 रुपये की मांग की। मैंने उनसे बार-बार पैसे कम करने की विनती की। लेकिन उन्होंने इनकार कर दिया। इसलिए, मैंने अपनी मां के शव को अपने कंधे पर ले जाने का फैसला किया।

हालांकि दीवान, मांझी की तरह बदकिस्मत नहीं थे, मांझी को अपनी पत्नी के शव को कंधे पर लादकर 10 किलोमीटर तक ओडिशा में पैदल चलना पड़ा था। लेकिन दीवान के अस्पताल से कुछ दूर जाने के बाद, एक स्थानीय स्वयंसेवी संस्था की एम्बुलेंस वहां पहुंची और उन्हें उनके घर ले गई।

–आईएएनएस

केसी/एसकेपी

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कोलकाता, 5 जनवरी (आईएएनएस)। पश्चिम बंगाल के उत्तरी हिस्से में जलपाईगुड़ी मेडिकल कॉलेज एंड हॉस्पिटल से सटे सड़क पर गुरुवार दोपहर लोग उस समय हैरान रह गए, जब उन्होंने एक आदमी को अपनी मृत मां के शव को अपने कंधे पर ले जाते हुए देखा, और उसके वृद्ध पिता उसकी मदद कर रहे थे।

लोगों ने जब उससे पूछा तो पता चला कि अस्पताल के एंबुलेंस चालकों ने 3,000 रुपये का भुगतान नहीं करने पर जाने से मना कर दिया जिसके बाद असहाय बेटे को अपनी मां के शव को कंधे पर ले जाने के लिए मजबूर होना पड़ा।

यह ²श्य अगस्त 2016 की घटना की याद दिलाता है जब ओडिशा के एक आदिवासी दाना मांझी को अपनी मृतक पत्नी के शव को कंधे पर लादकर अपनी छोटी बेटी के साथ लगभग 10 किलोमीटर पैदल चलना पड़ा था। जिस अस्पताल में उनकी पत्नी का टीबी का इलाज चल रहा था, वहां भी शवगृह वैन चालकों ने उन्हें सहायता देने से इनकार कर दिया था।

जलपाईगुड़ी की घटना में, नगरदंगी क्षेत्र की रहने वाली लक्ष्मीरानी दीवान (71) को आयु संबंधी विभिन्न बीमारियों के साथ जलपाईगुड़ी मेडिकल कॉलेज और अस्पताल में भर्ती कराया गया था। गुरुवार को उसकी मौत हो गई। जब एंबुलेंस चालकों ने भुगतान के बिना मृतक के शव को वापस घर ले जाने से इनकार कर दिया, तो उसके बेटे रामप्रसाद दीवान ने अपनी मां के शव को अपने कंधे पर ले जाने का फैसला किया।

उसने कहा- मैंने एंबुलेंस चालकों से अनुरोध किया, उन्होंने इसके लिए 3,000 रुपये की मांग की। मैंने उनसे बार-बार पैसे कम करने की विनती की। लेकिन उन्होंने इनकार कर दिया। इसलिए, मैंने अपनी मां के शव को अपने कंधे पर ले जाने का फैसला किया।

हालांकि दीवान, मांझी की तरह बदकिस्मत नहीं थे, मांझी को अपनी पत्नी के शव को कंधे पर लादकर 10 किलोमीटर तक ओडिशा में पैदल चलना पड़ा था। लेकिन दीवान के अस्पताल से कुछ दूर जाने के बाद, एक स्थानीय स्वयंसेवी संस्था की एम्बुलेंस वहां पहुंची और उन्हें उनके घर ले गई।

–आईएएनएस

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कोलकाता, 5 जनवरी (आईएएनएस)। पश्चिम बंगाल के उत्तरी हिस्से में जलपाईगुड़ी मेडिकल कॉलेज एंड हॉस्पिटल से सटे सड़क पर गुरुवार दोपहर लोग उस समय हैरान रह गए, जब उन्होंने एक आदमी को अपनी मृत मां के शव को अपने कंधे पर ले जाते हुए देखा, और उसके वृद्ध पिता उसकी मदद कर रहे थे।

लोगों ने जब उससे पूछा तो पता चला कि अस्पताल के एंबुलेंस चालकों ने 3,000 रुपये का भुगतान नहीं करने पर जाने से मना कर दिया जिसके बाद असहाय बेटे को अपनी मां के शव को कंधे पर ले जाने के लिए मजबूर होना पड़ा।

यह ²श्य अगस्त 2016 की घटना की याद दिलाता है जब ओडिशा के एक आदिवासी दाना मांझी को अपनी मृतक पत्नी के शव को कंधे पर लादकर अपनी छोटी बेटी के साथ लगभग 10 किलोमीटर पैदल चलना पड़ा था। जिस अस्पताल में उनकी पत्नी का टीबी का इलाज चल रहा था, वहां भी शवगृह वैन चालकों ने उन्हें सहायता देने से इनकार कर दिया था।

जलपाईगुड़ी की घटना में, नगरदंगी क्षेत्र की रहने वाली लक्ष्मीरानी दीवान (71) को आयु संबंधी विभिन्न बीमारियों के साथ जलपाईगुड़ी मेडिकल कॉलेज और अस्पताल में भर्ती कराया गया था। गुरुवार को उसकी मौत हो गई। जब एंबुलेंस चालकों ने भुगतान के बिना मृतक के शव को वापस घर ले जाने से इनकार कर दिया, तो उसके बेटे रामप्रसाद दीवान ने अपनी मां के शव को अपने कंधे पर ले जाने का फैसला किया।

उसने कहा- मैंने एंबुलेंस चालकों से अनुरोध किया, उन्होंने इसके लिए 3,000 रुपये की मांग की। मैंने उनसे बार-बार पैसे कम करने की विनती की। लेकिन उन्होंने इनकार कर दिया। इसलिए, मैंने अपनी मां के शव को अपने कंधे पर ले जाने का फैसला किया।

हालांकि दीवान, मांझी की तरह बदकिस्मत नहीं थे, मांझी को अपनी पत्नी के शव को कंधे पर लादकर 10 किलोमीटर तक ओडिशा में पैदल चलना पड़ा था। लेकिन दीवान के अस्पताल से कुछ दूर जाने के बाद, एक स्थानीय स्वयंसेवी संस्था की एम्बुलेंस वहां पहुंची और उन्हें उनके घर ले गई।

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लोगों ने जब उससे पूछा तो पता चला कि अस्पताल के एंबुलेंस चालकों ने 3,000 रुपये का भुगतान नहीं करने पर जाने से मना कर दिया जिसके बाद असहाय बेटे को अपनी मां के शव को कंधे पर ले जाने के लिए मजबूर होना पड़ा।

यह ²श्य अगस्त 2016 की घटना की याद दिलाता है जब ओडिशा के एक आदिवासी दाना मांझी को अपनी मृतक पत्नी के शव को कंधे पर लादकर अपनी छोटी बेटी के साथ लगभग 10 किलोमीटर पैदल चलना पड़ा था। जिस अस्पताल में उनकी पत्नी का टीबी का इलाज चल रहा था, वहां भी शवगृह वैन चालकों ने उन्हें सहायता देने से इनकार कर दिया था।

जलपाईगुड़ी की घटना में, नगरदंगी क्षेत्र की रहने वाली लक्ष्मीरानी दीवान (71) को आयु संबंधी विभिन्न बीमारियों के साथ जलपाईगुड़ी मेडिकल कॉलेज और अस्पताल में भर्ती कराया गया था। गुरुवार को उसकी मौत हो गई। जब एंबुलेंस चालकों ने भुगतान के बिना मृतक के शव को वापस घर ले जाने से इनकार कर दिया, तो उसके बेटे रामप्रसाद दीवान ने अपनी मां के शव को अपने कंधे पर ले जाने का फैसला किया।

उसने कहा- मैंने एंबुलेंस चालकों से अनुरोध किया, उन्होंने इसके लिए 3,000 रुपये की मांग की। मैंने उनसे बार-बार पैसे कम करने की विनती की। लेकिन उन्होंने इनकार कर दिया। इसलिए, मैंने अपनी मां के शव को अपने कंधे पर ले जाने का फैसला किया।

हालांकि दीवान, मांझी की तरह बदकिस्मत नहीं थे, मांझी को अपनी पत्नी के शव को कंधे पर लादकर 10 किलोमीटर तक ओडिशा में पैदल चलना पड़ा था। लेकिन दीवान के अस्पताल से कुछ दूर जाने के बाद, एक स्थानीय स्वयंसेवी संस्था की एम्बुलेंस वहां पहुंची और उन्हें उनके घर ले गई।

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लोगों ने जब उससे पूछा तो पता चला कि अस्पताल के एंबुलेंस चालकों ने 3,000 रुपये का भुगतान नहीं करने पर जाने से मना कर दिया जिसके बाद असहाय बेटे को अपनी मां के शव को कंधे पर ले जाने के लिए मजबूर होना पड़ा।

यह ²श्य अगस्त 2016 की घटना की याद दिलाता है जब ओडिशा के एक आदिवासी दाना मांझी को अपनी मृतक पत्नी के शव को कंधे पर लादकर अपनी छोटी बेटी के साथ लगभग 10 किलोमीटर पैदल चलना पड़ा था। जिस अस्पताल में उनकी पत्नी का टीबी का इलाज चल रहा था, वहां भी शवगृह वैन चालकों ने उन्हें सहायता देने से इनकार कर दिया था।

जलपाईगुड़ी की घटना में, नगरदंगी क्षेत्र की रहने वाली लक्ष्मीरानी दीवान (71) को आयु संबंधी विभिन्न बीमारियों के साथ जलपाईगुड़ी मेडिकल कॉलेज और अस्पताल में भर्ती कराया गया था। गुरुवार को उसकी मौत हो गई। जब एंबुलेंस चालकों ने भुगतान के बिना मृतक के शव को वापस घर ले जाने से इनकार कर दिया, तो उसके बेटे रामप्रसाद दीवान ने अपनी मां के शव को अपने कंधे पर ले जाने का फैसला किया।

उसने कहा- मैंने एंबुलेंस चालकों से अनुरोध किया, उन्होंने इसके लिए 3,000 रुपये की मांग की। मैंने उनसे बार-बार पैसे कम करने की विनती की। लेकिन उन्होंने इनकार कर दिया। इसलिए, मैंने अपनी मां के शव को अपने कंधे पर ले जाने का फैसला किया।

हालांकि दीवान, मांझी की तरह बदकिस्मत नहीं थे, मांझी को अपनी पत्नी के शव को कंधे पर लादकर 10 किलोमीटर तक ओडिशा में पैदल चलना पड़ा था। लेकिन दीवान के अस्पताल से कुछ दूर जाने के बाद, एक स्थानीय स्वयंसेवी संस्था की एम्बुलेंस वहां पहुंची और उन्हें उनके घर ले गई।

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