नई दिल्ली, 11 सितंबर (आईएएनएस)। सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को एक वकील द्वारा दायर जनहित याचिका पर विचार करने से इनकार कर दिया, जिसमें राष्ट्रीय राजधानी में वरिष्ठ अधिकारियों के तबादलों और पोस्टिंग से संबंधित मामलों में दिल्ली के उपराज्यपाल को निर्वाचित सरकार के ऊपर अधिकार देने वाले विवादास्पद कानून को चुनौती दी गई थी।
भारत के मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़, न्यायमूर्ति पी.एस. नरसिम्हा और न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा की पीठ ने कहा कि वह राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली सरकार अधिनियम, 1991 में संशोधन को चुनौती देने वाली एक नई जनहित याचिका पर विचार नहीं कर सकती, क्योंकि सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ पहले ही इस मामले पर विचार कर रही है।
याचिका पर विचार करने के लिए पीठ की अनिच्छा को देखते हुए, याचिकाकर्ता ने जुर्माने से बचने जनहित याचिका वापस लेने का फैसला किया।
पीठ ने आदेश दिया, “राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली अधिनियम, 1991 में संशोधन को चुनौती देने वाली एक याचिका दिल्ली राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र के आदेश पर पहले से ही लंबित है। याचिकाकर्ता ने याचिका वापस लेने के लिए अदालत से अनुमति मांगी है… याचिका को वापस ली गई मानकर निपटाया जाता है।”
पीठ ने स्पष्ट किया कि यह आदेश सेवाओं के नियंत्रण पर संसद द्वारा लाए गए कानून की संवैधानिकता को चुनौती देने वाली दिल्ली सरकार की मौजूदा याचिका को प्रभावित नहीं करेगा।
साथ ही, शीर्ष अदालत ने याचिकाकर्ता को मौजूदा कार्यवाही में पक्षकार बनाने की स्वतंत्रता देने से इनकार कर दिया, जिसे पांच-न्यायाधीशों की संविधान पीठ के समक्ष भेजा गया था।
इससे पहले, 25 अगस्त को सीजेआई की अगुवाई वाली पीठ ने दिल्ली सरकार द्वारा दायर एक आवेदन को स्वीकार कर लिया था, जिसमें सेवा अध्यादेश को चुनौती देने वाली मौजूदा याचिका में संसद द्वारा पारित दिल्ली सेवा अधिनियम को चुनौती देने के लिए अपनी दलीलों में संशोधन करने की मांग की गई थी।
इसने मामले में अपना नया जवाबी हलफनामा दायर करने के लिए केंद्र सरकार को चार सप्ताह की अवधि भी दी थी।
राष्ट्रपति ने 12 अगस्त को संसद द्वारा पारित राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली (संशोधन) विधेयक, 2023 पर हस्ताक्षर किया था, जिसने राष्ट्रीय राजधानी में वरिष्ठ अधिकारियों के स्थानांतरण और पोस्टिंग पर केंद्र द्वारा पहले घोषित अध्यादेश की जगह ले ली।
सुप्रीम कोर्ट की पांच-न्यायाधीशों की संविधान पीठ द्वारा दिल्ली में पुलिस, सार्वजनिक व्यवस्था और भूमि को छोड़कर सभी सेवाओं पर निर्वाचित सरकार को नियंत्रण सौंपने के बाद केंद्र सरकार अध्यादेश लाई थी।
दिल्ली की आप सरकार ने अध्यादेश की संवैधानिकता को चुनौती देते हुए सुप्रीम कोर्ट का रुख किया था और कहा था कि यह अनुच्छेद 239एए में एनसीटी दिल्ली के लिए निहित संघीय, लोकतांत्रिक शासन की योजना का उल्लंघन करता है और स्पष्ट रूप से मनमाना है। उसने इस पर तत्काल रोक की मांग की थी।
–आईएएनएस
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