नई दिल्ली, 16 सितंबर (आईएएनएस)। सुप्रीम कोर्ट में नई नीट पीजी काउंसलिंग स्कीम 2023 के खिलाफ एक याचिका दायर की गई है, जिसमें कहा गया है कि यह दिव्यांग (पीडब्ल्यूडी) उम्मीदवारों को उनके आरक्षण के वैध अधिकार से वंचित करता है।
इसमें कहा गया है कि शैक्षणिक वर्ष 2023-24 के लिए, अब तक स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय (एमओएचएफडब्ल्यू) और राष्ट्रीय चिकित्सा आयोग (एनएमसी) ने पीडब्ल्यूडी उम्मीदवारों के लिए किसी भी श्रेणी में न्यूनतम योग्यता प्रतिशत मानदंड को कम नहीं किया है।
एमओएचएफडब्ल्यू और एनएमसी का यह फैसला भी उनके पिछले छह सालों के ट्रेंड से डिपार्चर है।
वकील रोहित सिंह और रितु रेनिवाल के माध्यम से दायर याचिका में कहा गया है, ”2017 से नीट पीजी एग्जाम की शुरुआत से लेकर पिछले साल नीट पीजी एग्जाम 2022 तक, एमओएचएफडब्ल्यू और एनएमसी ने पीजी मेडिकल परीक्षा विनियमन 2000 के विनियमन 9 (3) के प्रावधान को लागू करते हुए, रिक्त पीजी सीटों को भरने के लिए पीजी काउंसलिंग के दूसरे दौर में हर साल कट-ऑफ मानदंड को कम कर दिया है।”
इसमें कहा गया है कि मेडिकल काउंसलिंग कमेटी की वेबसाइट के अनुसार, वर्तमान शैक्षणिक 2023-24 में बहुत सारी सीटें अभी भी खाली पड़ी हैं, एमओएचएफडब्ल्यू और एनएमसी ने किसी भी श्रेणी में न्यूनतम प्रतिशत मानदंड को कम करने का कोई निर्णय नहीं लिया है।
याचिका में अनुमान लगाया गया है कि इस बात की पूरी संभावना है कि एमओएचएफडब्ल्यू और एनएमसी रिक्ति दौर शुरू होने से पहले न्यूनतम प्रतिशत मानदंड को कम कर देंगे क्योंकि पीजी काउंसलिंग के तीसरे दौर में बहुत सारी पीजी सीटें अभी भी खाली पड़ी हैं।
याचिका में दावा किया गया, ”नई नीट पीजी काउंसलिंग योजना 2023 में, चैप्टर-3 में एक सीट रूपांतरण एल्गोरिदम प्रदान किया गया है। इस एल्गोरिदम के अनुसार, काउंसलिंग के थर्ड राउंड में पीडब्ल्यूडी एससी/एसटी/ओबीसी सहित सभी पीडब्ल्यूडी सीटें उनकी उच्च गैर-पीडब्ल्यूडी कैटेगिरी में ट्रांसफर कर दी जाएंगी। इसलिए, काउंसलिंग के थर्ड राउंड के अंत में पीडब्ल्यूडी की कैटेगिरी में कोई सीटें उपलब्ध नहीं होंगी।”
इसमें कहा गया है कि यह रूपांतरण एल्गोरिदम यहां याचिकाकर्ताओं के पीडब्ल्यूडी कैटेगिरी में सीट का दावा करने के सभी मौलिक अधिकारों को छीन रहा है क्योंकि उन्हें एनईईटी पीजी 2023 परीक्षा की आरक्षण नीति में भी यही अधिकार दिया गया था।
याचिका में कहा गया, ”शारीरिक दिव्यांगता वाले व्यक्ति समाज का सबसे कमजोर वर्ग हैं। भारत के संविधान के अनुच्छेद 21 और 14 के आदेश के अनुसार जीवन के हर पहलू में दिव्यांग व्यक्तियों के संवैधानिक और मौलिक अधिकारों की रक्षा करना राज्य की जिम्मेदारी है।”
इसमें कहा गया है कि शारीरिक रूप से दिव्यांग व्यक्तियों को शिक्षा और सार्वजनिक रोजगार में आरक्षण उन्हें अपने सामान्य समकक्षों की तरह एक सम्मानजनक सामान्य जीवन जीने का अवसर देता है।
इस मामले को 18 और 19 सितंबर को तत्काल सूचीबद्ध करने के लिए उल्लेख किए जाने की संभावना है।
–आईएएनएस
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