भारत की स्वतंत्रता के 75 वर्ष पूर्ण होने के अमृत अवसर पर जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी लाल किले
की प्राचीर से राष्ट्र को 9वीं बार संबोधित कर रहे थे तो उसमें आज के भारत की विकास यात्रा की
स्वाभाविकता समाहित थी, देश में आए सामूहिक चेतना के पुनर्जागरण की ऊर्जा भी थी। देश को
विकसित राष्ट्र बनाने के संकल्प की दृढ़ इच्छाशक्ति को मन-मस्तिष्क में संजोए उन्होंने 75 वर्ष की
यात्रा से आगे बढ़ने और अमृत काल में ‘पंच प्रण’ से ऐसे विकसित भारत के निर्माण का संकल्प
दोहराया जहां जग कल्याण से जन कल्याण की सोच हो, गुलामी के मनोभाव से मुक्त हो, अपनी
विरासत पर गर्व करता भारत का हर नागरिक का कर्तव्य पथ ही बने जीवन पथ और एकता-
एकजुटता के साथ हो नए भारत का निर्माण……
भारत की स्वाधीनता के 75 वर्ष यानी स्वतंत्रता की ऊर्जा का अमृत, नए विचारों का अमृत,
आत्मनिर्भरता का अमृत, भारत को विकसित राष्ट्र बनाने के नए संकल्पों का अमृत। इस 15 अगस्त
को अपनी आजादी के 75 वर्ष पूरे कर 76वें वर्ष में जब भारत प्रवेश कर रहा था, तब लाल किले की
प्राचीर हो या फिर देश का हर कोना या विश्व में बसे भारतीयों के द्वारा या भारत के प्रति प्रेम रखने
वालों का राष्ट्रध्वज तिरंगा के प्रति उत्साह कुछ उसी तरह था जैसा स्वाधीनता संघर्ष की गाथा को
संजोए देश ने 75 वर्ष पहले देखा था। हर कोने में आन-बान-शान के साथ लहराते तिरंगे ने अमृत
महोत्सव की अमिट छाप छोड़ी और यह ऐतिहासिक दिवस भारत की यात्रा का एक पुण्य पड़ाव, एक
नई राह, एक नये संकल्प और नये सामर्थ्य साथ कदम बढ़ाने का शुभ अवसर बन गया।
आजादी के इन 75 वर्षों में भारत ने हर चुनौतियों को पार किया है। 75 साल की इस यात्रा में
आशाएं-अपेक्षाएं, उतार-चढ़ाव के बीच में सबके प्रयास से राष्ट्र ने अपना सफर तय किया है। वर्ष 2014
में जब देश की जनता ने आजाद भारत में जन्मे नरेंद्र मोदी को प्रधानमंत्री के रूप में राष्ट्र की सेवा
का अवसर दिया तो उन्होंने लाल किले की प्राचीर हो या फिर राष्ट्र से जुड़े सामाजिक-नीतिगत-
आर्थिक फैसले, दृढ़ इच्छाशक्ति का परिचय दिया। अपने जीवन का एक लंबा कालखंड उन्होंने समाज
के भीतर गरीब से गरीब तक को सशक्त करने में लगा दिया। दलित हो, शोषित हो, पीड़ित हो, वंचित
हो, आदिवासी हो, महिला हो, युवा हो, किसान हो, दिव्यांग हो, पूर्व हो, पश्चिम हो, उत्तर हो, दक्षिण हो,
समुद्र का तट हो, हिमालय की कन्दराएं हो, हर कोने में महात्मा गांधी का जो सपना था- आखिरी
व्यक्ति की चिंता करने का, अंतिम छोर पर बैठे हुए व्यक्ति को समर्थ बनाने का, उसके लिए ही खुद
को समर्पित किया। इन 8 वर्षों की दीर्घकालिक सोच के साथ सुशासन का ही परिणाम है कि आजादी
के इतने दशकों के अनुभव के बाद जब भारत अपने अमृत काल की ओर कदम रख रहा है, तब वह
एक ऐसे सामर्थ्य को देख रहा है जिससे मन में गर्व होना स्वाभाविक है। जिस तरह से बीते कुछ
वर्षों में देश का जन-मन शासन की नीतियों से जुड़ा है और नई सामूहिक चेतना का पुनर्जागरण हुआ
है, उससे भारत अब विकासशील से विकसित राष्ट्र बनने की ओर अग्रसर है। अमृत काल की विकास
यात्रा से भारत को विकसित बनाने के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने लाल किले से ऐसी खींची
लकीर……
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राष्ट्र नायकों को नमन…
प्रधानमंत्री मोदी ने अमृत वर्ष में उन महान सेनानियों का स्मरण कर भारत के उस सामर्थ्य की
अनुभूति कराई, जिसने कभी सूरज अस्त नहीं होने वाली अंग्रेजी हुकूमत के विरूद्ध राष्ट्र के चेतनमन
को किया था तैयार…
आजादी की जंग में गुलामी का पूरा कालखंड संघर्ष में बीता है। हिंदुस्तान का कोई कोना ऐसा नहीं
था, कोई काल ऐसा नहीं था, जब देशवासियों ने सैकड़ों सालों तक गुलामी के खिलाफ जंग न लड़ी हो।
जीवन न खपाया हो, यातनाएं न झेली हो, आहूति न दी हो। आज हम सब देशवासियों के लिए ऐसे हर
महापुरूष को नमन करने का अवसर है।
nहम सभी देशवासी कृतज्ञ है, पूज्य बापू के, नेता जी सुभाष चंद्र बोस के, बाबा साहेब अंबेडकर के, वीर
सावरकर के, जिन्होंने कर्तव्य पथ पर जीवन को खपा दिया। कर्तव्य पथ ही उनका जीवन पथ रहा।