कोविड महामारी के संकटभरे दौर के साथ अब रूस-यूक्रेन युद्ध और बढ़ती महंगाई जहां दुनियाभर के देशों की अर्थव्यवस्था के लिए चुनौती बनी हुई है तो वहीं भारतीय अर्थव्यवस्था इस दौर में भी मजबूती के साथ आगे बढ़ रही है। ब्लूमबर्ग के हालिया सर्वे के अनुसार दुनिया के कई देशों की अर्थव्यवस्था में मंदी की आशंका है, लेकिन केवल भारत ऐसा देश है जो इससे अभी तक अछूता है….
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी लीक से हटकर चलने वाले नेता हैं। वह अलग सोचते हैं, अनोखा सोचते हैं और सबसे बड़ी बात कि उस पर अमल करते हैं और करवाते हैं। केंद्र की सत्ता में 8 साल के दौरान पीएम मोदी कई ऐसे बदलाव लेकर आए हैं, जो उससे पहले तक या तो सिर्फ कल्पनाओं में ही थे, या फिर किसी ने उनकी तरफ ध्यान भी नहीं दिया था। अर्थव्यवस्था भी एक ऐसा ही क्षेत्र था, जहां सुधार सिर्फ तभी किए जाते थे, जब इसकी मजबूरी होती थी। लेकिन 2014 के बाद पहली बार अर्थव्यवस्था को औपचारिक रूप देने की शुरुआत करते हुए ऐसे कई फैसले लिए गए, जिसका फायदा दीर्घकाल में देश को मिलना है। जीएसटी, बैंकरप्सी कोड से लेकर एमएसएमई पर विशेष ध्यान, उद्योग और निवेश के लिए अनुकूल माहौल से लेकर ईज ऑफ डूइंग बिजनेस के लिए हर वह कदम उठाया गया, जिसकी
जरूरत अर्थव्यवस्था को थी। नतीजा…कोविड काल में ऋ णात्मक स्तर तक गिरी अर्थव्यवस्था ने दो तिमाही के बाद जो रफ्तार पकड़ी तो उसकी तरक्की की गवाही दुनिया की अर्थव्यवस्था का हाल बताने वाली हर एजेंसी ने दी। भारतीय अर्थव्यवस्था की मजबूती की झलक ब्लूमबर्ग के ताजा सर्वे में भी मिली है, जिसके अनुसार अगले एक साल में दुनिया के कई देशों के सामने मंदी का संकट मंडरा रहा है। सर्वे की माने तो एशियाई देशों के साथ दुनिया की बड़ी अर्थव्यवस्थाओं पर मंदी का खतरा बढ़ता जा रहा है। कोरोना लॉकडाउन और रूस-यूक्रेन युद्ध के कारण यूरोपीय देशों के साथ अमेरिका, जापान और चीन जैसे देशों में मंदी का खतरा कहीं ज्यादा है। लेकिन अच्छी बात यह है कि भारत को मंदी के खतरे से पूरी तरह बाहर बताया गया है। ब्लूमबर्ग सर्वे के अनुसार भारत ही ऐसा देश है जहां, मंदी की आशंका शून्य यानी नहीं के बराबर है। ब्लूमबर्ग सर्वे में एशिया के मंदी में जाने की संभावना 20-25 प्रतिशत है, जबकि अमेरिका के लिए यह 40 और यूरोप के लिए 50-55 प्रतिशत तक है। रिपोर्ट के अनुसार श्रीलंका के अगले वर्ष मंदी की चपेट में जाने की 85 प्रतिशत संभावना है। वहीं, मॉर्गन स्टेनली ने अपनी एक रिपोर्ट में कहा है कि 2022-23 में भारत की अर्थव्यवस्था पूरे एशिया में सबसे तेज गति से विकास करेगी।
जून में कोर सेक्टर के उत्पादन में भारी वृद्धि जून में आठ कोर सेक्टर का उत्पादन 12.7 प्रतिशत बढ़ा है। जबकि एक साल पहले इसी महीने 9.4 प्रतिशत की वृद्धि हुई थी। आठ कोर सेक्टर में कोयला, कच्चा तेल, प्राकृतिक गैस, रिफाइनरी उत्पाद, उर्वरक, इस्पात, सीमेंट और बिजली शामिल है। औद्योगिक उत्पादन सूचकांक (आईआईपी) में इन आठ कोर सेक्टर की हिस्सेदारी 40.27 प्रतिशत है। सरकारी आंकड़े के अनुसार इस साल जून के महीने में कोयला उत्पादन में 31.1 प्रतिशत, बिजली उत्पादन में 15.5 प्रतिशत, सीमेंट उत्पादन में 19.4 प्रतिशत, रिफाइनरी उत्पाद में 15.1 प्रतिशत, फर्टिलाइजर उत्पादन में 8.2 प्रतिशत, स्टील उत्पादन में 3.3 प्रतिशत और प्राकृतिक गैस उत्पादन में 1.2 प्रतिशत की बढ़ोतरी दर्ज की गई है। डॉलर के मुकाबले रु. से अधिक गिरीं मुद्राएं रूस-यूक्रेन युद्ध के चलते दुनिया भर के बाजार महंगाई की समस्या से जूझ रहे हैं। वहीं, अमेरिका के केंद्रीय फेडरल बैंक द्वारा कुछ समय पहले नीतिगत ब्याज दर बढ़ाने का असर डॉलर के मुकाबले दूसरे देशों की मुद्राओं पर पड़ा है। इन मुद्राओं में भारतीय रुपया भी शामिल है। एक समय डॉलर के मुकाबले 80 रुपये तक गिरी भारतीय मुद्रा फिर संभल रही है। 9 अगस्त तक यह 79.64 के स्तर तक लौट आया है। वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण के अनुसार, “सरकार हर स्थिति पर निगाह रखे हुए है। रिजर्व बैंक रुपये की विनिमय दर पर बहुत करीबी निगाह रखे हुए है। लेकिन अन्य मुद्राओं की तुलना में डॉलर के सामने रुपये ने कहीं बेहतर प्रदर्शन किया है।” डॉलर के मुकाबले दूसरे देशों की मुद्राओं का हाल 2022 में डॉलर के मुकाबले रुपये में 7 प्रतिशत की गिरावट आई है। जबकि जापान की करंसी येन, यूरोप का यूरो और स्वीडन का क्रोना में डॉलर के मुकाबले औसतन इस साल 10 प्रतिशत की गिरावट दर्ज हुई है। यही नहीं, इन मुद्राओं के मुकाबले रुपया मजबूत हुआ है। डॉलर के मुकाबले यूरोपीय देशों की मुद्रा यूरो की स्थिति भी बहुत अच्छी नहीं है। जुलाई में डॉलर के मुकाबले यूरो में दो बार जबरदस्त गिरावट देखी गई है। जुलाई 2021 में एक डॉलर 0.84 यूरो के बराबर था। जबकि 9 अगस्त तक यह 0.98 यूरो के स्तर पर है। अमेरिकी डॉलर के मुकाबले जापानी येन भी लगातार कमजोर हो रहा है। 22 जून 2022 को येन 24 साल के रिकॉर्ड निचले स्तर 136.45 प्रति डॉलर तक गिर गया था। जुलाई 2021 में जहां येन की कीमत करीब 109.98 के आसपास थी, वह जुलाई 2022 में 138.80 येन तक गिर गई।
जून में वस्तुओं का निर्यात 23.52% बढ़कर 40.13 अरब डॉलर पर पहुंचा वित्त वर्ष 2022-23 के जून महीने में वस्तुओं का निर्यात 23.52 प्रतिशत बढ़कर 40.13 अरब डॉलर पर पहुंच गया है। चालू वित्त वर्ष की पहली तिमाही अप्रैल-जून में निर्यात 24.51 प्रतिशत बढ़कर 118.96 अरब डॉलर पहुंच गया।
मेड इन इंडिया उत्पादों के निर्यात में 17 प्रतिशत की वृद्धि
भारत ने जून 2022 में मेड इन इंडिया उत्पाद के निर्यात में रिकार्ड कायम किया है। जून 2021 में जहां निर्यात 32.5 अरब डॉलर था वहीं जून 2022 में 37.9 अरब डॉलर का निर्यात दर्ज किया गया। जून 2022 में निर्यात का यह आंकड़ा किसी एक माह में सर्वाधिक है। इसके साथ ही यह एक साल में 17 प्रतिशत की वृद्धि है।