लखनऊ, 4 अक्टूबर (आईएएनएस)। उत्तर प्रदेश के विभाजन से लेकर पश्चिमी हिस्से को अलग राज्य बनाने से जुड़े मुद्दे ने सत्तारूढ़ भाजपा के लिए भयंकर स्थिति पैदा कर दी है।
केंद्रीय मंत्री संजीव बालियान ने इस सप्ताह की शुरुआत में मेरठ में अंतर्राष्ट्रीय जाट संसद में पश्चिमी उत्तर प्रदेश को एक अलग राज्य बनाने की मांग उठाई थी। उन्होंने यहां तक सुझाव दिया कि मेरठ को प्रस्तावित राज्य की राजधानी बनाया जाए।
जहां बलियान के बयान ने क्षेत्र में राज्य की दशकों पुरानी मांग को पुनर्जीवित कर दिया है, वहीं भाजपा की ओर से कुछ ही घंटों में विरोध सामने आ गया। पूर्व भाजपा विधायक संगीत सोम ने कहा कि अगर ऐसा हुआ तो यह क्षेत्र ‘मिनी पाकिस्तान’ बन जाएगा।
भाजपा नेता सोम ने कहा कि इसके बजाय, पश्चिमी उत्तर प्रदेश को दिल्ली में मिला दिया जाना चाहिए। दशकों से, पश्चिमी उत्तर प्रदेश में जनसांख्यिकीय परिवर्तन हुए हैं और इस क्षेत्र के लिए अलग राज्य का दर्जा अब संभव नहीं है।
सरधना से दो बार के विधायक ने यह भी कहा कि एक विशेष समुदाय की बढ़ती आबादी के कारण, अगर यह अलग राज्य बन जाता है तो हिंदू अल्पसंख्यक हो जाएंगे। ऐसे क्षेत्र का विकास तो नहीं होगा, लेकिन राजनीतिक परिदृश्य जरूर बदल जाएगा। बेहतर होगा कि पश्चिमी उत्तर प्रदेश को दिल्ली से जोड़ने की पहल की जाए।”
इस मुद्दे पर भाजपा के दो वरिष्ठ नेताओं की अलग-अलग राय ने पार्टी को मुश्किल में डाल दिया है।
भाजपा के एक वरिष्ठ प्रवक्ता ने कहा, ”हम इस मुद्दे पर तब तक कोई टिप्पणी नहीं करना चाहेंगे जब तक कि पार्टी नेतृत्व इस पर कोई फैसला नहीं ले लेता। दोनों नेताओं के अपने-अपने दृष्टिकोण हैं और हम उनमें से किसी को भी खारिज नहीं कर सकते।”
इस बीच, भाजपा के नेतृत्व वाले एनडीए के सहयोगी सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी (एसबीएसपी) के प्रमुख ओम प्रकाश राजभर ने उत्तर प्रदेश को चार राज्यों – पश्चिमी उत्तर प्रदेश, बुंदेलखण्ड, पूर्वांचल और मध्य उत्तर प्रदेश में विभाजित करने की बलियान की मांग का समर्थन किया।
ओपी राजभर ने कहा, “उत्तर प्रदेश एक बड़ा राज्य है और कुशल प्रशासन के लिए इसे चार राज्यों में विभाजित किया जाना चाहिए।”
राष्ट्रीय लोक दल (रालोद) के प्रवक्ता अनिल दुबे ने कहा कि राज्य का पुनर्गठन पार्टी के चुनाव घोषणा पत्र में है और पश्चिमी उत्तर प्रदेश को एक अलग राज्य बनाना रालोद की पुरानी मांग है। उन्होंने कहा, “लेकिन बलियान का बयान लोकसभा चुनाव से पहले सिर्फ एक राजनीतिक चाल है।”
पूर्व रालोद प्रमुख अजीत सिंह ने पश्चिमी उत्तर प्रदेश में हरित प्रदेश के गठन की मांग उठाई थी। पश्चिमी उत्तर प्रदेश को अलग राज्य बनाने पर भाषण देने के बजाय केंद्रीय मंत्री को अलग राज्य के गठन के लिए केंद्र सरकार से मंजूरी लेनी चाहिए।’
वहीं बसपा एमएलसी भीमराव अंबेडकर ने कहा कि 2011 में, जब पार्टी सत्ता में थी, राज्य विधानसभा ने उत्तर प्रदेश को चार राज्यों में विभाजित करने का प्रस्ताव पारित किया था। प्रस्ताव को मंजूरी के लिए केंद्र सरकार को भेजा गया था, लेकिन केंद्र में लगातार सरकारों द्वारा कोई कार्रवाई नहीं की गई। बसपा प्रमुख मायावती उत्तर प्रदेश के विभाजन की प्रबल समर्थक रही हैं।
बसपा सरकार ने उत्तर प्रदेश को चार भागों-पूर्वाचल (21 जिले), बुन्देलखण्ड (सात जिले), अवध प्रदेश (21 जिले) और पश्चिम प्रदेश (26 जिले) में विभाजित करने का फैसला लिया था। एमएलसी ने कहा कि अगर भाजपा छोटे राज्यों के गठन के लिए प्रतिबद्ध है, तो उसे इस संबंध में प्रस्ताव पारित कराने के लिए संसद का विशेष सत्र बुलाना चाहिए।
लोकसभा चुनावों में हार के डर से, भाजपा ने पश्चिमी उत्तर प्रदेश कार्ड खेला है। बलियान एक केंद्रीय मंत्री हैं और उन्हें इस मुद्दे पर लोगों को गुमराह नहीं करना चाहिए। जिस तरह से उन्होंने एक बैठक में इस मामले को उठाया, उससे साफ संकेत मिलता है कि भाजपा राज्य के विकास के बजाय वोट-बैंक की राजनीति में अधिक रुचि रखती है।
बलियान के बयान के बाद समाजवादी पार्टी के प्रवक्ता राजेंद्र चौधरी ने कहा कि भाजपा को इस मुद्दे पर सफाई देनी चाहिए। उन्होंने पूछा, ”क्या उत्तर प्रदेश का विभाजन भाजपा का आधिकारिक रुख है या मंत्री का बयान जनता के मुद्दों से लोगों का ध्यान भटकाने के लिए लोकसभा चुनाव से पहले महज एक राजनीतिक हथकंडा है?”
कांग्रेस प्रवक्ता अशोक सिंह ने कहा कि केंद्रीय मंत्री ने महंगाई, बेरोजगारी और कानून-व्यवस्था में गिरावट जैसे मुद्दों से लोगों का ध्यान भटकाने के लिए यह मुद्दा उठाया है। उन्होंने कहा, ”भाजपा पश्चिमी उत्तर प्रदेश में अपनी जमीन खो रही है। केंद्रीय मंत्री ने पार्टी की किस्मत को पुनर्जीवित करने के लिए पश्चिमी उत्तर प्रदेश कार्ड खेला है।”
–आईएएनएस
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