भारत के स्वतंत्रता संग्राम के प्रसिद्ध क्रांतिकारी तथा समाजशास्त्री भूपेंद्रनाथ दत्त का जन्म 4 सितंबर 1880 को कोलकता में हुआ था। वे स्वामी विवेकानंद के छोटे भाई और ब्रह्म समाज के अनुयायी थे। ब्रह्म समाज ने उनकी धार्मिक और सामाजिक मान्यताओं को आकार दिया था जिनमें जातिविहीन समाज में विश्वास, एकेश्वरवाद में विश्वास और अंधविश्वास के खिलाफ विद्रोह शामिल था। युवावस्था में ब्रिटिश शासन से लड़ने के लिए भूपेंद्रनाथ दत्त 1902 में बंगाल के क्रांतिकारी समाज में शामिल हो गए। इस अवधि के दौरान वह अरबिंदो और बारीन्द्र घोष के करीबी सहयोगी बन गए। 1906 में वे युगांतर नामक बांग्ला समाचार पत्र के संपादक भी बने जो बंगाल में क्रांतिकारी समाज का मुखपत्र था। 1907 में दत्त को ब्रिटिश पुलिस ने राजद्रोह के आरोप में गिरफ्तार करके एक वर्ष के लिए जेल भेज दिया। जुलाई 1908 में जेल से रिहाई के कुछ दिनों के बाद ही भूपेंद्रनाथ को पढ़ाई के लिए अमरीका भेज दिया गया। हालांकि, वह वहां भी चुप नहीं बैठ सके और राष्ट्रहित में भारतीय स्वाधीनता के लिए काम कर रहे गदर पार्टी में शामिल हो गए। प्रथम विश्व युद्ध के दौरान भूपेंद्रनाथ जर्मनी चले गए और वहां वह भारत की स्वाधीनता के लिए क्रांतिकारी और राजनैतिक गतिविधियों में सक्रिय हो गए। 1916 में वे बर्लिन में इंडियन इंडिपेंडेंस कमिटी के सचिव बने। 1921 में भूपेंद्रनाथ दत्त मास्को गए और फिर बाद में वहां से लौट कर भारत आ गए। 1930 में कराची में आयोजित भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के वार्षिक सम्मेलन में उन्होंने भारतीय किसानों के लिए एक मौलिक अधिकार का प्रस्ताव रखा जिसे बाद में कांग्रेस कमेटी ने स्वीकार कर लिया। राजनैतिक गतिविधियों के सक्रिय सदस्य होने के कारण भूपेंद्रनाथ को ब्रिटिश पुलिस ने कई बार गिरफ्तार किया। भूपेंद्रनाथ दत्त ने समाजिक उत्थान के लिए भी काम किया। वे एक लेखक भी थे। उन्होंने भारतीय समाज और संस्कृति पर अनेक पुस्तकें लिखी। उन्होंने अपने बड़े भाई स्वामी विवेकानंद पर भी पुस्तक लिखी जो काफी चर्चित रही। 25 दिसंबर 1961 को उन्होंने अंतिम सांस ली।
जन्म : 4 सितंबर 1880
मृत्यु : 25 दिसंबर, 1961