न्यूयॉर्क, 7 अक्टूबर (आईएएनएस)। गर्भावस्था के दौरान केवल महिलाओं के शरीर में ही बदलाव नहीं होता है। चूहों पर किए गए एक अध्ययन से पता चला है कि मातृत्व की तैयारी के लिए मस्तिष्क भी ‘री-वायर्ड’ हो जाता है।
जानी-मानी विज्ञान पत्रिका ‘साइंस’ में प्रकाशित निष्कर्षों से पता चलता है कि एस्ट्रोजेन और प्रोजेस्टेरोन दोनों मस्तिष्क में न्यूरॉन्स की एक छोटी हिस्से पर संतान आने से पहले ही माता के व्यवहार को ऑन करने के लिए कार्य करते हैं। इन अनुकूलन के परिणामस्वरूप बच्चों को मजबूत और अधिक चयनात्मक प्रतिक्रियाएँ मिलीं।
यह सर्वविदित है कि जबकि मां बनने से पहले मादा चूहिया छोटे बच्चों के साथ ज्यादा घुलती-मिलती नहीं हैं जबकि माताएं अपना अधिकांश समय बच्चों की देखभाल में बिताती हैं।
पहले माना जाता था कि बच्चे को जन्म देते समय निकलने वाले हार्मोन मां के व्यवहार की शुरुआत के लिए सबसे महत्वपूर्ण होते हैं। लेकिन पहले के शोध से यह भी पता चला है कि जिन चूहियों ने सिजेरियन सेक्शन द्वारा बच्चे को जन्म दिया है, और कुंवारी चूहिया जो गर्भावस्था के हार्मोन के संपर्क में आ चुकी हैं, वे भी इस मातृ व्यवहार का प्रदर्शन करती हैं। इससे यह संकेत मिलता है कि गर्भावस्था के दौरान प्रसव से पहले के हार्मोन परिवर्तन अधिक महत्वपूर्ण हो सकते हैं।
वर्तमान अध्ययन में फ्रांसिस क्रिक इंस्टीट्यूट के शोधकर्ताओं ने पाया कि मादा चूहियों में गर्भावस्था के दौरान बाद के समय में मातृत्व व्यवहार में वृद्धि देखी गई, और व्यवहार में इस बदलाव के लिए बच्चों के संपर्क में आना आवश्यक नहीं था।
उन्होंने पाया कि मस्तिष्क के एक क्षेत्र में तंत्रिका कोशिकाओं (व्यक्त करने वाले न्यूरॉन्स गैलानिन) की आबादी, जिसे हाइपोथैलेमस में औसत दर्जे का प्रीऑप्टिक क्षेत्र (एमपीओए) कहा जाता है, जो पालन-पोषण से जुड़ा है, एस्ट्रोजेन और प्रोजेस्टेरोन से प्रभावित था।
क्रिक के जॉनी कोल ने कहा, “हम जानते हैं कि गर्भावस्था के दौरान महिलाओं के शरीर में बदलाव आते हैं ताकि बच्चे को बड़ा करने की तैयारी की जा सके। इसका एक उदाहरण दूध का बनना है, जो जन्म देने से बहुत पहले शुरू हो जाता है। हमारे शोध से पता चलता है कि ऐसी तैयारी मस्तिष्क में भी हो रही होती है।”
उन्होंने कहा, “हमारी समझ से ये परिवर्तन, जिन्हें अक्सर ‘बेबी ब्रेन’ कहा जाता है, प्राथमिकता में बदलाव का कारण बनते हैं – कुंवारी चूहिया संभोग पर ध्यान केंद्रित करती हैं, इसलिए उन्हें अन्य मादाओं के बच्चों पर प्रतिक्रिया करने की आवश्यकता नहीं होती है, जबकि माताओं को मजबूत अभिभावकीय व्यवहार करने की आवश्यकता होती है जो बच्चों का अस्तित्व सुनिश्चित करने के लिए जरूरी है। दिलचस्प बात यह है कि यह बदलाव जन्म के समय नहीं होता – मस्तिष्क इस बड़े जीवन परिवर्तन के लिए बहुत पहले से ही तैयारी कर रहा होता है।”
इनमें से कुछ परिवर्तन जन्म देने के बाद कम से कम एक महीने तक रहे, अन्य स्थायी प्रतीत होते हैं, जिससे पता चलता है कि गर्भावस्था से महिला के मस्तिष्क में लंबे समय के लिए रीवायरिंग हो सकती है।
शोधकर्ताओं का मानना है कि मनुष्यों में गर्भावस्था के दौरान मस्तिष्क इसी तरह से रीवायर हो सकता है, क्योंकि समान हार्मोनल परिवर्तनों का मस्तिष्क के समान क्षेत्रों पर प्रभाव पड़ने की उम्मीद है। यह पर्यावरण और सामाजिक संकेतों के साथ-साथ माता-पिता के व्यवहार को भी प्रभावित कर सकता है।
–आईएएनएस
एकेजे