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Home ताज़ा समाचार

चौथे कृषि रोड मैप से बदलेगी बिहार के किसानों की हालत !

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October 18, 2023
in ताज़ा समाचार
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पटना, 18 अक्टूबर (आईएएनएस)। राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने बुधवार को पटना में आयोजित एक कार्यक्रम में बिहार के चौथे कृषि रोड मैप का लोकार्पण किया। इस मौके पर बिहार के राज्यपाल राजेंद्र विश्वनाथ आर्लेकर और मुख्यमंत्री नीतीश कुमार भी उपस्थित रहे। सरकार का मानना है कि पांच वर्षीय इस कृषि रोड मैप के बाद इसे आगे बढ़ाने की जरूरत नहीं पड़ेगी।

वैसे, इस कृषि रोड मैप के बाद किसानों की हालत को लेकर यह कहा जाने लगा है कि क्या सच में इस कृषि रोड मैप के बाद प्रदेश के किसानों की हालत में सुधार हो जाएगा। वर्ष 2008 में पहले कृषि रोड मैप की शुरुआत हुई थी। उसके बाद 2012 में तत्कालीन राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने दूसरे रोड मैप की शुरुआत की थी। 2017 में तत्कालीन राष्ट्रपति रामनाथ कोविन्द ने तीसरे कृषि रोड मैप की शुरुआत की थी।

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मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने कहा कि चौथे कृषि रोड मैप में किसानों की आय एवं फसल उत्पादन पर जोर दिया जाएगा। पहले कृषि रोड मैप में बीज उत्पादन के साथ किसानों की उत्पादकता बढ़ाने की कोशिश हुई थी। चावल के उत्पादन में बिहार को काफी सफलता मिली। कई जिलों में चावल उत्पादन में रिकॉर्ड वृद्धि हुई। 2012 में चावल उत्पादन के लिए कृषि कर्मण पुरस्कार मिला। 2013 में गेहूं उत्पादन के क्षेत्र में कृषि कर्मण पुरस्कार मिला। 2016 में मक्का के उत्पादन के क्षेत्र में कृषि कर्मण पुरस्कार मिला।

राज्यपाल ने समारोह में ही सरकार को सलाह भी दी। उन्होंने कहा कि किसानों को कृषि संबंधी सभी योजनाओं एवं कार्यक्रमों से अवगत होना चाहिए तथा इनका लाभ उन्हें मिलना चाहिए। राज्यपाल ने प्राकृतिक खेती को बढ़ावा देने पर बल देते हुए कहा कि इसे इस कृषि रोड मैप का अंग बनाया जाना चाहिए। प्राकृतिक खेती में कम लागत में अधिक उत्पादन होता है। इससे किसानों की आय को दुगुनी करने में मदद मिलेगी। इस खेती के लिए किसानों को प्रेरित करने के साथ-साथ उनका उचित मार्गदर्शन किया जाना चाहिए।

उन्होंने किसानों को खेती की नई तकनीक अपनाने को कहा। राज्यपाल ने कहा कि भारत कृषि प्रधान देश है और बिहार भी इससे अलग नहीं है। बिहार के काफी लोग कृषि से जुड़े हुए हैं।

विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष विजय कुमार सिन्हा कहते हैं कि पूर्व के तीनों कृषि रोड मैप योजना विफल साबित हुई है। सरकार को उस पर श्वेत पत्र जारी करना चाहिए। कृषि रोड मैप सरकार के 12 विभागों द्वारा धन उगाही का जरिया बन गया है। कृषि रोड मैप 2008 से शुरू हुआ लेकिन अभी भी बिहार के किस आमदनी में देश के सबसे निचले राज्यों में है। पूर्व कृषि मंत्री सुधाकर सिंह ने खुलेआम कहा था कि विभाग में सभी चोर हैं। कृषि रोड मैप से किसानों को कोई फायदा नहीं हुआ है। कृषि रोड मैप के तहत कृषि कैबिनेट भी बनाई गई थी परंतु पिछले कई वर्षों में उसकी बैठक नहीं हुई है।

सिन्हा ने मुख्यमंत्री के बयान का उल्लेख करते हुए कहा कि चौथे कृषि रोड मैप को उन्होंने अंतिम बताया है। जब योजनाएं कागज पर ही बनती है और कागज पर ही क्रियान्वयन होता है तो बाकी कृषि रोड मैप की तरह ही अंतिम कृषि रोड मैप का भी हश्र होगा।

–आईएएनएस

एमएनपी/एबीएम

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पटना, 18 अक्टूबर (आईएएनएस)। राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने बुधवार को पटना में आयोजित एक कार्यक्रम में बिहार के चौथे कृषि रोड मैप का लोकार्पण किया। इस मौके पर बिहार के राज्यपाल राजेंद्र विश्वनाथ आर्लेकर और मुख्यमंत्री नीतीश कुमार भी उपस्थित रहे। सरकार का मानना है कि पांच वर्षीय इस कृषि रोड मैप के बाद इसे आगे बढ़ाने की जरूरत नहीं पड़ेगी।

वैसे, इस कृषि रोड मैप के बाद किसानों की हालत को लेकर यह कहा जाने लगा है कि क्या सच में इस कृषि रोड मैप के बाद प्रदेश के किसानों की हालत में सुधार हो जाएगा। वर्ष 2008 में पहले कृषि रोड मैप की शुरुआत हुई थी। उसके बाद 2012 में तत्कालीन राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने दूसरे रोड मैप की शुरुआत की थी। 2017 में तत्कालीन राष्ट्रपति रामनाथ कोविन्द ने तीसरे कृषि रोड मैप की शुरुआत की थी।

मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने कहा कि चौथे कृषि रोड मैप में किसानों की आय एवं फसल उत्पादन पर जोर दिया जाएगा। पहले कृषि रोड मैप में बीज उत्पादन के साथ किसानों की उत्पादकता बढ़ाने की कोशिश हुई थी। चावल के उत्पादन में बिहार को काफी सफलता मिली। कई जिलों में चावल उत्पादन में रिकॉर्ड वृद्धि हुई। 2012 में चावल उत्पादन के लिए कृषि कर्मण पुरस्कार मिला। 2013 में गेहूं उत्पादन के क्षेत्र में कृषि कर्मण पुरस्कार मिला। 2016 में मक्का के उत्पादन के क्षेत्र में कृषि कर्मण पुरस्कार मिला।

राज्यपाल ने समारोह में ही सरकार को सलाह भी दी। उन्होंने कहा कि किसानों को कृषि संबंधी सभी योजनाओं एवं कार्यक्रमों से अवगत होना चाहिए तथा इनका लाभ उन्हें मिलना चाहिए। राज्यपाल ने प्राकृतिक खेती को बढ़ावा देने पर बल देते हुए कहा कि इसे इस कृषि रोड मैप का अंग बनाया जाना चाहिए। प्राकृतिक खेती में कम लागत में अधिक उत्पादन होता है। इससे किसानों की आय को दुगुनी करने में मदद मिलेगी। इस खेती के लिए किसानों को प्रेरित करने के साथ-साथ उनका उचित मार्गदर्शन किया जाना चाहिए।

उन्होंने किसानों को खेती की नई तकनीक अपनाने को कहा। राज्यपाल ने कहा कि भारत कृषि प्रधान देश है और बिहार भी इससे अलग नहीं है। बिहार के काफी लोग कृषि से जुड़े हुए हैं।

विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष विजय कुमार सिन्हा कहते हैं कि पूर्व के तीनों कृषि रोड मैप योजना विफल साबित हुई है। सरकार को उस पर श्वेत पत्र जारी करना चाहिए। कृषि रोड मैप सरकार के 12 विभागों द्वारा धन उगाही का जरिया बन गया है। कृषि रोड मैप 2008 से शुरू हुआ लेकिन अभी भी बिहार के किस आमदनी में देश के सबसे निचले राज्यों में है। पूर्व कृषि मंत्री सुधाकर सिंह ने खुलेआम कहा था कि विभाग में सभी चोर हैं। कृषि रोड मैप से किसानों को कोई फायदा नहीं हुआ है। कृषि रोड मैप के तहत कृषि कैबिनेट भी बनाई गई थी परंतु पिछले कई वर्षों में उसकी बैठक नहीं हुई है।

सिन्हा ने मुख्यमंत्री के बयान का उल्लेख करते हुए कहा कि चौथे कृषि रोड मैप को उन्होंने अंतिम बताया है। जब योजनाएं कागज पर ही बनती है और कागज पर ही क्रियान्वयन होता है तो बाकी कृषि रोड मैप की तरह ही अंतिम कृषि रोड मैप का भी हश्र होगा।

–आईएएनएस

एमएनपी/एबीएम

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पटना, 18 अक्टूबर (आईएएनएस)। राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने बुधवार को पटना में आयोजित एक कार्यक्रम में बिहार के चौथे कृषि रोड मैप का लोकार्पण किया। इस मौके पर बिहार के राज्यपाल राजेंद्र विश्वनाथ आर्लेकर और मुख्यमंत्री नीतीश कुमार भी उपस्थित रहे। सरकार का मानना है कि पांच वर्षीय इस कृषि रोड मैप के बाद इसे आगे बढ़ाने की जरूरत नहीं पड़ेगी।

वैसे, इस कृषि रोड मैप के बाद किसानों की हालत को लेकर यह कहा जाने लगा है कि क्या सच में इस कृषि रोड मैप के बाद प्रदेश के किसानों की हालत में सुधार हो जाएगा। वर्ष 2008 में पहले कृषि रोड मैप की शुरुआत हुई थी। उसके बाद 2012 में तत्कालीन राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने दूसरे रोड मैप की शुरुआत की थी। 2017 में तत्कालीन राष्ट्रपति रामनाथ कोविन्द ने तीसरे कृषि रोड मैप की शुरुआत की थी।

मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने कहा कि चौथे कृषि रोड मैप में किसानों की आय एवं फसल उत्पादन पर जोर दिया जाएगा। पहले कृषि रोड मैप में बीज उत्पादन के साथ किसानों की उत्पादकता बढ़ाने की कोशिश हुई थी। चावल के उत्पादन में बिहार को काफी सफलता मिली। कई जिलों में चावल उत्पादन में रिकॉर्ड वृद्धि हुई। 2012 में चावल उत्पादन के लिए कृषि कर्मण पुरस्कार मिला। 2013 में गेहूं उत्पादन के क्षेत्र में कृषि कर्मण पुरस्कार मिला। 2016 में मक्का के उत्पादन के क्षेत्र में कृषि कर्मण पुरस्कार मिला।

राज्यपाल ने समारोह में ही सरकार को सलाह भी दी। उन्होंने कहा कि किसानों को कृषि संबंधी सभी योजनाओं एवं कार्यक्रमों से अवगत होना चाहिए तथा इनका लाभ उन्हें मिलना चाहिए। राज्यपाल ने प्राकृतिक खेती को बढ़ावा देने पर बल देते हुए कहा कि इसे इस कृषि रोड मैप का अंग बनाया जाना चाहिए। प्राकृतिक खेती में कम लागत में अधिक उत्पादन होता है। इससे किसानों की आय को दुगुनी करने में मदद मिलेगी। इस खेती के लिए किसानों को प्रेरित करने के साथ-साथ उनका उचित मार्गदर्शन किया जाना चाहिए।

उन्होंने किसानों को खेती की नई तकनीक अपनाने को कहा। राज्यपाल ने कहा कि भारत कृषि प्रधान देश है और बिहार भी इससे अलग नहीं है। बिहार के काफी लोग कृषि से जुड़े हुए हैं।

विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष विजय कुमार सिन्हा कहते हैं कि पूर्व के तीनों कृषि रोड मैप योजना विफल साबित हुई है। सरकार को उस पर श्वेत पत्र जारी करना चाहिए। कृषि रोड मैप सरकार के 12 विभागों द्वारा धन उगाही का जरिया बन गया है। कृषि रोड मैप 2008 से शुरू हुआ लेकिन अभी भी बिहार के किस आमदनी में देश के सबसे निचले राज्यों में है। पूर्व कृषि मंत्री सुधाकर सिंह ने खुलेआम कहा था कि विभाग में सभी चोर हैं। कृषि रोड मैप से किसानों को कोई फायदा नहीं हुआ है। कृषि रोड मैप के तहत कृषि कैबिनेट भी बनाई गई थी परंतु पिछले कई वर्षों में उसकी बैठक नहीं हुई है।

सिन्हा ने मुख्यमंत्री के बयान का उल्लेख करते हुए कहा कि चौथे कृषि रोड मैप को उन्होंने अंतिम बताया है। जब योजनाएं कागज पर ही बनती है और कागज पर ही क्रियान्वयन होता है तो बाकी कृषि रोड मैप की तरह ही अंतिम कृषि रोड मैप का भी हश्र होगा।

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वैसे, इस कृषि रोड मैप के बाद किसानों की हालत को लेकर यह कहा जाने लगा है कि क्या सच में इस कृषि रोड मैप के बाद प्रदेश के किसानों की हालत में सुधार हो जाएगा। वर्ष 2008 में पहले कृषि रोड मैप की शुरुआत हुई थी। उसके बाद 2012 में तत्कालीन राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने दूसरे रोड मैप की शुरुआत की थी। 2017 में तत्कालीन राष्ट्रपति रामनाथ कोविन्द ने तीसरे कृषि रोड मैप की शुरुआत की थी।

मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने कहा कि चौथे कृषि रोड मैप में किसानों की आय एवं फसल उत्पादन पर जोर दिया जाएगा। पहले कृषि रोड मैप में बीज उत्पादन के साथ किसानों की उत्पादकता बढ़ाने की कोशिश हुई थी। चावल के उत्पादन में बिहार को काफी सफलता मिली। कई जिलों में चावल उत्पादन में रिकॉर्ड वृद्धि हुई। 2012 में चावल उत्पादन के लिए कृषि कर्मण पुरस्कार मिला। 2013 में गेहूं उत्पादन के क्षेत्र में कृषि कर्मण पुरस्कार मिला। 2016 में मक्का के उत्पादन के क्षेत्र में कृषि कर्मण पुरस्कार मिला।

राज्यपाल ने समारोह में ही सरकार को सलाह भी दी। उन्होंने कहा कि किसानों को कृषि संबंधी सभी योजनाओं एवं कार्यक्रमों से अवगत होना चाहिए तथा इनका लाभ उन्हें मिलना चाहिए। राज्यपाल ने प्राकृतिक खेती को बढ़ावा देने पर बल देते हुए कहा कि इसे इस कृषि रोड मैप का अंग बनाया जाना चाहिए। प्राकृतिक खेती में कम लागत में अधिक उत्पादन होता है। इससे किसानों की आय को दुगुनी करने में मदद मिलेगी। इस खेती के लिए किसानों को प्रेरित करने के साथ-साथ उनका उचित मार्गदर्शन किया जाना चाहिए।

उन्होंने किसानों को खेती की नई तकनीक अपनाने को कहा। राज्यपाल ने कहा कि भारत कृषि प्रधान देश है और बिहार भी इससे अलग नहीं है। बिहार के काफी लोग कृषि से जुड़े हुए हैं।

विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष विजय कुमार सिन्हा कहते हैं कि पूर्व के तीनों कृषि रोड मैप योजना विफल साबित हुई है। सरकार को उस पर श्वेत पत्र जारी करना चाहिए। कृषि रोड मैप सरकार के 12 विभागों द्वारा धन उगाही का जरिया बन गया है। कृषि रोड मैप 2008 से शुरू हुआ लेकिन अभी भी बिहार के किस आमदनी में देश के सबसे निचले राज्यों में है। पूर्व कृषि मंत्री सुधाकर सिंह ने खुलेआम कहा था कि विभाग में सभी चोर हैं। कृषि रोड मैप से किसानों को कोई फायदा नहीं हुआ है। कृषि रोड मैप के तहत कृषि कैबिनेट भी बनाई गई थी परंतु पिछले कई वर्षों में उसकी बैठक नहीं हुई है।

सिन्हा ने मुख्यमंत्री के बयान का उल्लेख करते हुए कहा कि चौथे कृषि रोड मैप को उन्होंने अंतिम बताया है। जब योजनाएं कागज पर ही बनती है और कागज पर ही क्रियान्वयन होता है तो बाकी कृषि रोड मैप की तरह ही अंतिम कृषि रोड मैप का भी हश्र होगा।

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वैसे, इस कृषि रोड मैप के बाद किसानों की हालत को लेकर यह कहा जाने लगा है कि क्या सच में इस कृषि रोड मैप के बाद प्रदेश के किसानों की हालत में सुधार हो जाएगा। वर्ष 2008 में पहले कृषि रोड मैप की शुरुआत हुई थी। उसके बाद 2012 में तत्कालीन राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने दूसरे रोड मैप की शुरुआत की थी। 2017 में तत्कालीन राष्ट्रपति रामनाथ कोविन्द ने तीसरे कृषि रोड मैप की शुरुआत की थी।

मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने कहा कि चौथे कृषि रोड मैप में किसानों की आय एवं फसल उत्पादन पर जोर दिया जाएगा। पहले कृषि रोड मैप में बीज उत्पादन के साथ किसानों की उत्पादकता बढ़ाने की कोशिश हुई थी। चावल के उत्पादन में बिहार को काफी सफलता मिली। कई जिलों में चावल उत्पादन में रिकॉर्ड वृद्धि हुई। 2012 में चावल उत्पादन के लिए कृषि कर्मण पुरस्कार मिला। 2013 में गेहूं उत्पादन के क्षेत्र में कृषि कर्मण पुरस्कार मिला। 2016 में मक्का के उत्पादन के क्षेत्र में कृषि कर्मण पुरस्कार मिला।

राज्यपाल ने समारोह में ही सरकार को सलाह भी दी। उन्होंने कहा कि किसानों को कृषि संबंधी सभी योजनाओं एवं कार्यक्रमों से अवगत होना चाहिए तथा इनका लाभ उन्हें मिलना चाहिए। राज्यपाल ने प्राकृतिक खेती को बढ़ावा देने पर बल देते हुए कहा कि इसे इस कृषि रोड मैप का अंग बनाया जाना चाहिए। प्राकृतिक खेती में कम लागत में अधिक उत्पादन होता है। इससे किसानों की आय को दुगुनी करने में मदद मिलेगी। इस खेती के लिए किसानों को प्रेरित करने के साथ-साथ उनका उचित मार्गदर्शन किया जाना चाहिए।

उन्होंने किसानों को खेती की नई तकनीक अपनाने को कहा। राज्यपाल ने कहा कि भारत कृषि प्रधान देश है और बिहार भी इससे अलग नहीं है। बिहार के काफी लोग कृषि से जुड़े हुए हैं।

विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष विजय कुमार सिन्हा कहते हैं कि पूर्व के तीनों कृषि रोड मैप योजना विफल साबित हुई है। सरकार को उस पर श्वेत पत्र जारी करना चाहिए। कृषि रोड मैप सरकार के 12 विभागों द्वारा धन उगाही का जरिया बन गया है। कृषि रोड मैप 2008 से शुरू हुआ लेकिन अभी भी बिहार के किस आमदनी में देश के सबसे निचले राज्यों में है। पूर्व कृषि मंत्री सुधाकर सिंह ने खुलेआम कहा था कि विभाग में सभी चोर हैं। कृषि रोड मैप से किसानों को कोई फायदा नहीं हुआ है। कृषि रोड मैप के तहत कृषि कैबिनेट भी बनाई गई थी परंतु पिछले कई वर्षों में उसकी बैठक नहीं हुई है।

सिन्हा ने मुख्यमंत्री के बयान का उल्लेख करते हुए कहा कि चौथे कृषि रोड मैप को उन्होंने अंतिम बताया है। जब योजनाएं कागज पर ही बनती है और कागज पर ही क्रियान्वयन होता है तो बाकी कृषि रोड मैप की तरह ही अंतिम कृषि रोड मैप का भी हश्र होगा।

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वैसे, इस कृषि रोड मैप के बाद किसानों की हालत को लेकर यह कहा जाने लगा है कि क्या सच में इस कृषि रोड मैप के बाद प्रदेश के किसानों की हालत में सुधार हो जाएगा। वर्ष 2008 में पहले कृषि रोड मैप की शुरुआत हुई थी। उसके बाद 2012 में तत्कालीन राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने दूसरे रोड मैप की शुरुआत की थी। 2017 में तत्कालीन राष्ट्रपति रामनाथ कोविन्द ने तीसरे कृषि रोड मैप की शुरुआत की थी।

मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने कहा कि चौथे कृषि रोड मैप में किसानों की आय एवं फसल उत्पादन पर जोर दिया जाएगा। पहले कृषि रोड मैप में बीज उत्पादन के साथ किसानों की उत्पादकता बढ़ाने की कोशिश हुई थी। चावल के उत्पादन में बिहार को काफी सफलता मिली। कई जिलों में चावल उत्पादन में रिकॉर्ड वृद्धि हुई। 2012 में चावल उत्पादन के लिए कृषि कर्मण पुरस्कार मिला। 2013 में गेहूं उत्पादन के क्षेत्र में कृषि कर्मण पुरस्कार मिला। 2016 में मक्का के उत्पादन के क्षेत्र में कृषि कर्मण पुरस्कार मिला।

राज्यपाल ने समारोह में ही सरकार को सलाह भी दी। उन्होंने कहा कि किसानों को कृषि संबंधी सभी योजनाओं एवं कार्यक्रमों से अवगत होना चाहिए तथा इनका लाभ उन्हें मिलना चाहिए। राज्यपाल ने प्राकृतिक खेती को बढ़ावा देने पर बल देते हुए कहा कि इसे इस कृषि रोड मैप का अंग बनाया जाना चाहिए। प्राकृतिक खेती में कम लागत में अधिक उत्पादन होता है। इससे किसानों की आय को दुगुनी करने में मदद मिलेगी। इस खेती के लिए किसानों को प्रेरित करने के साथ-साथ उनका उचित मार्गदर्शन किया जाना चाहिए।

उन्होंने किसानों को खेती की नई तकनीक अपनाने को कहा। राज्यपाल ने कहा कि भारत कृषि प्रधान देश है और बिहार भी इससे अलग नहीं है। बिहार के काफी लोग कृषि से जुड़े हुए हैं।

विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष विजय कुमार सिन्हा कहते हैं कि पूर्व के तीनों कृषि रोड मैप योजना विफल साबित हुई है। सरकार को उस पर श्वेत पत्र जारी करना चाहिए। कृषि रोड मैप सरकार के 12 विभागों द्वारा धन उगाही का जरिया बन गया है। कृषि रोड मैप 2008 से शुरू हुआ लेकिन अभी भी बिहार के किस आमदनी में देश के सबसे निचले राज्यों में है। पूर्व कृषि मंत्री सुधाकर सिंह ने खुलेआम कहा था कि विभाग में सभी चोर हैं। कृषि रोड मैप से किसानों को कोई फायदा नहीं हुआ है। कृषि रोड मैप के तहत कृषि कैबिनेट भी बनाई गई थी परंतु पिछले कई वर्षों में उसकी बैठक नहीं हुई है।

सिन्हा ने मुख्यमंत्री के बयान का उल्लेख करते हुए कहा कि चौथे कृषि रोड मैप को उन्होंने अंतिम बताया है। जब योजनाएं कागज पर ही बनती है और कागज पर ही क्रियान्वयन होता है तो बाकी कृषि रोड मैप की तरह ही अंतिम कृषि रोड मैप का भी हश्र होगा।

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वैसे, इस कृषि रोड मैप के बाद किसानों की हालत को लेकर यह कहा जाने लगा है कि क्या सच में इस कृषि रोड मैप के बाद प्रदेश के किसानों की हालत में सुधार हो जाएगा। वर्ष 2008 में पहले कृषि रोड मैप की शुरुआत हुई थी। उसके बाद 2012 में तत्कालीन राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने दूसरे रोड मैप की शुरुआत की थी। 2017 में तत्कालीन राष्ट्रपति रामनाथ कोविन्द ने तीसरे कृषि रोड मैप की शुरुआत की थी।

मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने कहा कि चौथे कृषि रोड मैप में किसानों की आय एवं फसल उत्पादन पर जोर दिया जाएगा। पहले कृषि रोड मैप में बीज उत्पादन के साथ किसानों की उत्पादकता बढ़ाने की कोशिश हुई थी। चावल के उत्पादन में बिहार को काफी सफलता मिली। कई जिलों में चावल उत्पादन में रिकॉर्ड वृद्धि हुई। 2012 में चावल उत्पादन के लिए कृषि कर्मण पुरस्कार मिला। 2013 में गेहूं उत्पादन के क्षेत्र में कृषि कर्मण पुरस्कार मिला। 2016 में मक्का के उत्पादन के क्षेत्र में कृषि कर्मण पुरस्कार मिला।

राज्यपाल ने समारोह में ही सरकार को सलाह भी दी। उन्होंने कहा कि किसानों को कृषि संबंधी सभी योजनाओं एवं कार्यक्रमों से अवगत होना चाहिए तथा इनका लाभ उन्हें मिलना चाहिए। राज्यपाल ने प्राकृतिक खेती को बढ़ावा देने पर बल देते हुए कहा कि इसे इस कृषि रोड मैप का अंग बनाया जाना चाहिए। प्राकृतिक खेती में कम लागत में अधिक उत्पादन होता है। इससे किसानों की आय को दुगुनी करने में मदद मिलेगी। इस खेती के लिए किसानों को प्रेरित करने के साथ-साथ उनका उचित मार्गदर्शन किया जाना चाहिए।

उन्होंने किसानों को खेती की नई तकनीक अपनाने को कहा। राज्यपाल ने कहा कि भारत कृषि प्रधान देश है और बिहार भी इससे अलग नहीं है। बिहार के काफी लोग कृषि से जुड़े हुए हैं।

विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष विजय कुमार सिन्हा कहते हैं कि पूर्व के तीनों कृषि रोड मैप योजना विफल साबित हुई है। सरकार को उस पर श्वेत पत्र जारी करना चाहिए। कृषि रोड मैप सरकार के 12 विभागों द्वारा धन उगाही का जरिया बन गया है। कृषि रोड मैप 2008 से शुरू हुआ लेकिन अभी भी बिहार के किस आमदनी में देश के सबसे निचले राज्यों में है। पूर्व कृषि मंत्री सुधाकर सिंह ने खुलेआम कहा था कि विभाग में सभी चोर हैं। कृषि रोड मैप से किसानों को कोई फायदा नहीं हुआ है। कृषि रोड मैप के तहत कृषि कैबिनेट भी बनाई गई थी परंतु पिछले कई वर्षों में उसकी बैठक नहीं हुई है।

सिन्हा ने मुख्यमंत्री के बयान का उल्लेख करते हुए कहा कि चौथे कृषि रोड मैप को उन्होंने अंतिम बताया है। जब योजनाएं कागज पर ही बनती है और कागज पर ही क्रियान्वयन होता है तो बाकी कृषि रोड मैप की तरह ही अंतिम कृषि रोड मैप का भी हश्र होगा।

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वैसे, इस कृषि रोड मैप के बाद किसानों की हालत को लेकर यह कहा जाने लगा है कि क्या सच में इस कृषि रोड मैप के बाद प्रदेश के किसानों की हालत में सुधार हो जाएगा। वर्ष 2008 में पहले कृषि रोड मैप की शुरुआत हुई थी। उसके बाद 2012 में तत्कालीन राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने दूसरे रोड मैप की शुरुआत की थी। 2017 में तत्कालीन राष्ट्रपति रामनाथ कोविन्द ने तीसरे कृषि रोड मैप की शुरुआत की थी।

मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने कहा कि चौथे कृषि रोड मैप में किसानों की आय एवं फसल उत्पादन पर जोर दिया जाएगा। पहले कृषि रोड मैप में बीज उत्पादन के साथ किसानों की उत्पादकता बढ़ाने की कोशिश हुई थी। चावल के उत्पादन में बिहार को काफी सफलता मिली। कई जिलों में चावल उत्पादन में रिकॉर्ड वृद्धि हुई। 2012 में चावल उत्पादन के लिए कृषि कर्मण पुरस्कार मिला। 2013 में गेहूं उत्पादन के क्षेत्र में कृषि कर्मण पुरस्कार मिला। 2016 में मक्का के उत्पादन के क्षेत्र में कृषि कर्मण पुरस्कार मिला।

राज्यपाल ने समारोह में ही सरकार को सलाह भी दी। उन्होंने कहा कि किसानों को कृषि संबंधी सभी योजनाओं एवं कार्यक्रमों से अवगत होना चाहिए तथा इनका लाभ उन्हें मिलना चाहिए। राज्यपाल ने प्राकृतिक खेती को बढ़ावा देने पर बल देते हुए कहा कि इसे इस कृषि रोड मैप का अंग बनाया जाना चाहिए। प्राकृतिक खेती में कम लागत में अधिक उत्पादन होता है। इससे किसानों की आय को दुगुनी करने में मदद मिलेगी। इस खेती के लिए किसानों को प्रेरित करने के साथ-साथ उनका उचित मार्गदर्शन किया जाना चाहिए।

उन्होंने किसानों को खेती की नई तकनीक अपनाने को कहा। राज्यपाल ने कहा कि भारत कृषि प्रधान देश है और बिहार भी इससे अलग नहीं है। बिहार के काफी लोग कृषि से जुड़े हुए हैं।

विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष विजय कुमार सिन्हा कहते हैं कि पूर्व के तीनों कृषि रोड मैप योजना विफल साबित हुई है। सरकार को उस पर श्वेत पत्र जारी करना चाहिए। कृषि रोड मैप सरकार के 12 विभागों द्वारा धन उगाही का जरिया बन गया है। कृषि रोड मैप 2008 से शुरू हुआ लेकिन अभी भी बिहार के किस आमदनी में देश के सबसे निचले राज्यों में है। पूर्व कृषि मंत्री सुधाकर सिंह ने खुलेआम कहा था कि विभाग में सभी चोर हैं। कृषि रोड मैप से किसानों को कोई फायदा नहीं हुआ है। कृषि रोड मैप के तहत कृषि कैबिनेट भी बनाई गई थी परंतु पिछले कई वर्षों में उसकी बैठक नहीं हुई है।

सिन्हा ने मुख्यमंत्री के बयान का उल्लेख करते हुए कहा कि चौथे कृषि रोड मैप को उन्होंने अंतिम बताया है। जब योजनाएं कागज पर ही बनती है और कागज पर ही क्रियान्वयन होता है तो बाकी कृषि रोड मैप की तरह ही अंतिम कृषि रोड मैप का भी हश्र होगा।

–आईएएनएस

एमएनपी/एबीएम

पटना, 18 अक्टूबर (आईएएनएस)। राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने बुधवार को पटना में आयोजित एक कार्यक्रम में बिहार के चौथे कृषि रोड मैप का लोकार्पण किया। इस मौके पर बिहार के राज्यपाल राजेंद्र विश्वनाथ आर्लेकर और मुख्यमंत्री नीतीश कुमार भी उपस्थित रहे। सरकार का मानना है कि पांच वर्षीय इस कृषि रोड मैप के बाद इसे आगे बढ़ाने की जरूरत नहीं पड़ेगी।

वैसे, इस कृषि रोड मैप के बाद किसानों की हालत को लेकर यह कहा जाने लगा है कि क्या सच में इस कृषि रोड मैप के बाद प्रदेश के किसानों की हालत में सुधार हो जाएगा। वर्ष 2008 में पहले कृषि रोड मैप की शुरुआत हुई थी। उसके बाद 2012 में तत्कालीन राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने दूसरे रोड मैप की शुरुआत की थी। 2017 में तत्कालीन राष्ट्रपति रामनाथ कोविन्द ने तीसरे कृषि रोड मैप की शुरुआत की थी।

मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने कहा कि चौथे कृषि रोड मैप में किसानों की आय एवं फसल उत्पादन पर जोर दिया जाएगा। पहले कृषि रोड मैप में बीज उत्पादन के साथ किसानों की उत्पादकता बढ़ाने की कोशिश हुई थी। चावल के उत्पादन में बिहार को काफी सफलता मिली। कई जिलों में चावल उत्पादन में रिकॉर्ड वृद्धि हुई। 2012 में चावल उत्पादन के लिए कृषि कर्मण पुरस्कार मिला। 2013 में गेहूं उत्पादन के क्षेत्र में कृषि कर्मण पुरस्कार मिला। 2016 में मक्का के उत्पादन के क्षेत्र में कृषि कर्मण पुरस्कार मिला।

राज्यपाल ने समारोह में ही सरकार को सलाह भी दी। उन्होंने कहा कि किसानों को कृषि संबंधी सभी योजनाओं एवं कार्यक्रमों से अवगत होना चाहिए तथा इनका लाभ उन्हें मिलना चाहिए। राज्यपाल ने प्राकृतिक खेती को बढ़ावा देने पर बल देते हुए कहा कि इसे इस कृषि रोड मैप का अंग बनाया जाना चाहिए। प्राकृतिक खेती में कम लागत में अधिक उत्पादन होता है। इससे किसानों की आय को दुगुनी करने में मदद मिलेगी। इस खेती के लिए किसानों को प्रेरित करने के साथ-साथ उनका उचित मार्गदर्शन किया जाना चाहिए।

उन्होंने किसानों को खेती की नई तकनीक अपनाने को कहा। राज्यपाल ने कहा कि भारत कृषि प्रधान देश है और बिहार भी इससे अलग नहीं है। बिहार के काफी लोग कृषि से जुड़े हुए हैं।

विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष विजय कुमार सिन्हा कहते हैं कि पूर्व के तीनों कृषि रोड मैप योजना विफल साबित हुई है। सरकार को उस पर श्वेत पत्र जारी करना चाहिए। कृषि रोड मैप सरकार के 12 विभागों द्वारा धन उगाही का जरिया बन गया है। कृषि रोड मैप 2008 से शुरू हुआ लेकिन अभी भी बिहार के किस आमदनी में देश के सबसे निचले राज्यों में है। पूर्व कृषि मंत्री सुधाकर सिंह ने खुलेआम कहा था कि विभाग में सभी चोर हैं। कृषि रोड मैप से किसानों को कोई फायदा नहीं हुआ है। कृषि रोड मैप के तहत कृषि कैबिनेट भी बनाई गई थी परंतु पिछले कई वर्षों में उसकी बैठक नहीं हुई है।

सिन्हा ने मुख्यमंत्री के बयान का उल्लेख करते हुए कहा कि चौथे कृषि रोड मैप को उन्होंने अंतिम बताया है। जब योजनाएं कागज पर ही बनती है और कागज पर ही क्रियान्वयन होता है तो बाकी कृषि रोड मैप की तरह ही अंतिम कृषि रोड मैप का भी हश्र होगा।

–आईएएनएस

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पटना, 18 अक्टूबर (आईएएनएस)। राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने बुधवार को पटना में आयोजित एक कार्यक्रम में बिहार के चौथे कृषि रोड मैप का लोकार्पण किया। इस मौके पर बिहार के राज्यपाल राजेंद्र विश्वनाथ आर्लेकर और मुख्यमंत्री नीतीश कुमार भी उपस्थित रहे। सरकार का मानना है कि पांच वर्षीय इस कृषि रोड मैप के बाद इसे आगे बढ़ाने की जरूरत नहीं पड़ेगी।

वैसे, इस कृषि रोड मैप के बाद किसानों की हालत को लेकर यह कहा जाने लगा है कि क्या सच में इस कृषि रोड मैप के बाद प्रदेश के किसानों की हालत में सुधार हो जाएगा। वर्ष 2008 में पहले कृषि रोड मैप की शुरुआत हुई थी। उसके बाद 2012 में तत्कालीन राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने दूसरे रोड मैप की शुरुआत की थी। 2017 में तत्कालीन राष्ट्रपति रामनाथ कोविन्द ने तीसरे कृषि रोड मैप की शुरुआत की थी।

मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने कहा कि चौथे कृषि रोड मैप में किसानों की आय एवं फसल उत्पादन पर जोर दिया जाएगा। पहले कृषि रोड मैप में बीज उत्पादन के साथ किसानों की उत्पादकता बढ़ाने की कोशिश हुई थी। चावल के उत्पादन में बिहार को काफी सफलता मिली। कई जिलों में चावल उत्पादन में रिकॉर्ड वृद्धि हुई। 2012 में चावल उत्पादन के लिए कृषि कर्मण पुरस्कार मिला। 2013 में गेहूं उत्पादन के क्षेत्र में कृषि कर्मण पुरस्कार मिला। 2016 में मक्का के उत्पादन के क्षेत्र में कृषि कर्मण पुरस्कार मिला।

राज्यपाल ने समारोह में ही सरकार को सलाह भी दी। उन्होंने कहा कि किसानों को कृषि संबंधी सभी योजनाओं एवं कार्यक्रमों से अवगत होना चाहिए तथा इनका लाभ उन्हें मिलना चाहिए। राज्यपाल ने प्राकृतिक खेती को बढ़ावा देने पर बल देते हुए कहा कि इसे इस कृषि रोड मैप का अंग बनाया जाना चाहिए। प्राकृतिक खेती में कम लागत में अधिक उत्पादन होता है। इससे किसानों की आय को दुगुनी करने में मदद मिलेगी। इस खेती के लिए किसानों को प्रेरित करने के साथ-साथ उनका उचित मार्गदर्शन किया जाना चाहिए।

उन्होंने किसानों को खेती की नई तकनीक अपनाने को कहा। राज्यपाल ने कहा कि भारत कृषि प्रधान देश है और बिहार भी इससे अलग नहीं है। बिहार के काफी लोग कृषि से जुड़े हुए हैं।

विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष विजय कुमार सिन्हा कहते हैं कि पूर्व के तीनों कृषि रोड मैप योजना विफल साबित हुई है। सरकार को उस पर श्वेत पत्र जारी करना चाहिए। कृषि रोड मैप सरकार के 12 विभागों द्वारा धन उगाही का जरिया बन गया है। कृषि रोड मैप 2008 से शुरू हुआ लेकिन अभी भी बिहार के किस आमदनी में देश के सबसे निचले राज्यों में है। पूर्व कृषि मंत्री सुधाकर सिंह ने खुलेआम कहा था कि विभाग में सभी चोर हैं। कृषि रोड मैप से किसानों को कोई फायदा नहीं हुआ है। कृषि रोड मैप के तहत कृषि कैबिनेट भी बनाई गई थी परंतु पिछले कई वर्षों में उसकी बैठक नहीं हुई है।

सिन्हा ने मुख्यमंत्री के बयान का उल्लेख करते हुए कहा कि चौथे कृषि रोड मैप को उन्होंने अंतिम बताया है। जब योजनाएं कागज पर ही बनती है और कागज पर ही क्रियान्वयन होता है तो बाकी कृषि रोड मैप की तरह ही अंतिम कृषि रोड मैप का भी हश्र होगा।

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वैसे, इस कृषि रोड मैप के बाद किसानों की हालत को लेकर यह कहा जाने लगा है कि क्या सच में इस कृषि रोड मैप के बाद प्रदेश के किसानों की हालत में सुधार हो जाएगा। वर्ष 2008 में पहले कृषि रोड मैप की शुरुआत हुई थी। उसके बाद 2012 में तत्कालीन राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने दूसरे रोड मैप की शुरुआत की थी। 2017 में तत्कालीन राष्ट्रपति रामनाथ कोविन्द ने तीसरे कृषि रोड मैप की शुरुआत की थी।

मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने कहा कि चौथे कृषि रोड मैप में किसानों की आय एवं फसल उत्पादन पर जोर दिया जाएगा। पहले कृषि रोड मैप में बीज उत्पादन के साथ किसानों की उत्पादकता बढ़ाने की कोशिश हुई थी। चावल के उत्पादन में बिहार को काफी सफलता मिली। कई जिलों में चावल उत्पादन में रिकॉर्ड वृद्धि हुई। 2012 में चावल उत्पादन के लिए कृषि कर्मण पुरस्कार मिला। 2013 में गेहूं उत्पादन के क्षेत्र में कृषि कर्मण पुरस्कार मिला। 2016 में मक्का के उत्पादन के क्षेत्र में कृषि कर्मण पुरस्कार मिला।

राज्यपाल ने समारोह में ही सरकार को सलाह भी दी। उन्होंने कहा कि किसानों को कृषि संबंधी सभी योजनाओं एवं कार्यक्रमों से अवगत होना चाहिए तथा इनका लाभ उन्हें मिलना चाहिए। राज्यपाल ने प्राकृतिक खेती को बढ़ावा देने पर बल देते हुए कहा कि इसे इस कृषि रोड मैप का अंग बनाया जाना चाहिए। प्राकृतिक खेती में कम लागत में अधिक उत्पादन होता है। इससे किसानों की आय को दुगुनी करने में मदद मिलेगी। इस खेती के लिए किसानों को प्रेरित करने के साथ-साथ उनका उचित मार्गदर्शन किया जाना चाहिए।

उन्होंने किसानों को खेती की नई तकनीक अपनाने को कहा। राज्यपाल ने कहा कि भारत कृषि प्रधान देश है और बिहार भी इससे अलग नहीं है। बिहार के काफी लोग कृषि से जुड़े हुए हैं।

विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष विजय कुमार सिन्हा कहते हैं कि पूर्व के तीनों कृषि रोड मैप योजना विफल साबित हुई है। सरकार को उस पर श्वेत पत्र जारी करना चाहिए। कृषि रोड मैप सरकार के 12 विभागों द्वारा धन उगाही का जरिया बन गया है। कृषि रोड मैप 2008 से शुरू हुआ लेकिन अभी भी बिहार के किस आमदनी में देश के सबसे निचले राज्यों में है। पूर्व कृषि मंत्री सुधाकर सिंह ने खुलेआम कहा था कि विभाग में सभी चोर हैं। कृषि रोड मैप से किसानों को कोई फायदा नहीं हुआ है। कृषि रोड मैप के तहत कृषि कैबिनेट भी बनाई गई थी परंतु पिछले कई वर्षों में उसकी बैठक नहीं हुई है।

सिन्हा ने मुख्यमंत्री के बयान का उल्लेख करते हुए कहा कि चौथे कृषि रोड मैप को उन्होंने अंतिम बताया है। जब योजनाएं कागज पर ही बनती है और कागज पर ही क्रियान्वयन होता है तो बाकी कृषि रोड मैप की तरह ही अंतिम कृषि रोड मैप का भी हश्र होगा।

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वैसे, इस कृषि रोड मैप के बाद किसानों की हालत को लेकर यह कहा जाने लगा है कि क्या सच में इस कृषि रोड मैप के बाद प्रदेश के किसानों की हालत में सुधार हो जाएगा। वर्ष 2008 में पहले कृषि रोड मैप की शुरुआत हुई थी। उसके बाद 2012 में तत्कालीन राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने दूसरे रोड मैप की शुरुआत की थी। 2017 में तत्कालीन राष्ट्रपति रामनाथ कोविन्द ने तीसरे कृषि रोड मैप की शुरुआत की थी।

मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने कहा कि चौथे कृषि रोड मैप में किसानों की आय एवं फसल उत्पादन पर जोर दिया जाएगा। पहले कृषि रोड मैप में बीज उत्पादन के साथ किसानों की उत्पादकता बढ़ाने की कोशिश हुई थी। चावल के उत्पादन में बिहार को काफी सफलता मिली। कई जिलों में चावल उत्पादन में रिकॉर्ड वृद्धि हुई। 2012 में चावल उत्पादन के लिए कृषि कर्मण पुरस्कार मिला। 2013 में गेहूं उत्पादन के क्षेत्र में कृषि कर्मण पुरस्कार मिला। 2016 में मक्का के उत्पादन के क्षेत्र में कृषि कर्मण पुरस्कार मिला।

राज्यपाल ने समारोह में ही सरकार को सलाह भी दी। उन्होंने कहा कि किसानों को कृषि संबंधी सभी योजनाओं एवं कार्यक्रमों से अवगत होना चाहिए तथा इनका लाभ उन्हें मिलना चाहिए। राज्यपाल ने प्राकृतिक खेती को बढ़ावा देने पर बल देते हुए कहा कि इसे इस कृषि रोड मैप का अंग बनाया जाना चाहिए। प्राकृतिक खेती में कम लागत में अधिक उत्पादन होता है। इससे किसानों की आय को दुगुनी करने में मदद मिलेगी। इस खेती के लिए किसानों को प्रेरित करने के साथ-साथ उनका उचित मार्गदर्शन किया जाना चाहिए।

उन्होंने किसानों को खेती की नई तकनीक अपनाने को कहा। राज्यपाल ने कहा कि भारत कृषि प्रधान देश है और बिहार भी इससे अलग नहीं है। बिहार के काफी लोग कृषि से जुड़े हुए हैं।

विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष विजय कुमार सिन्हा कहते हैं कि पूर्व के तीनों कृषि रोड मैप योजना विफल साबित हुई है। सरकार को उस पर श्वेत पत्र जारी करना चाहिए। कृषि रोड मैप सरकार के 12 विभागों द्वारा धन उगाही का जरिया बन गया है। कृषि रोड मैप 2008 से शुरू हुआ लेकिन अभी भी बिहार के किस आमदनी में देश के सबसे निचले राज्यों में है। पूर्व कृषि मंत्री सुधाकर सिंह ने खुलेआम कहा था कि विभाग में सभी चोर हैं। कृषि रोड मैप से किसानों को कोई फायदा नहीं हुआ है। कृषि रोड मैप के तहत कृषि कैबिनेट भी बनाई गई थी परंतु पिछले कई वर्षों में उसकी बैठक नहीं हुई है।

सिन्हा ने मुख्यमंत्री के बयान का उल्लेख करते हुए कहा कि चौथे कृषि रोड मैप को उन्होंने अंतिम बताया है। जब योजनाएं कागज पर ही बनती है और कागज पर ही क्रियान्वयन होता है तो बाकी कृषि रोड मैप की तरह ही अंतिम कृषि रोड मैप का भी हश्र होगा।

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वैसे, इस कृषि रोड मैप के बाद किसानों की हालत को लेकर यह कहा जाने लगा है कि क्या सच में इस कृषि रोड मैप के बाद प्रदेश के किसानों की हालत में सुधार हो जाएगा। वर्ष 2008 में पहले कृषि रोड मैप की शुरुआत हुई थी। उसके बाद 2012 में तत्कालीन राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने दूसरे रोड मैप की शुरुआत की थी। 2017 में तत्कालीन राष्ट्रपति रामनाथ कोविन्द ने तीसरे कृषि रोड मैप की शुरुआत की थी।

मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने कहा कि चौथे कृषि रोड मैप में किसानों की आय एवं फसल उत्पादन पर जोर दिया जाएगा। पहले कृषि रोड मैप में बीज उत्पादन के साथ किसानों की उत्पादकता बढ़ाने की कोशिश हुई थी। चावल के उत्पादन में बिहार को काफी सफलता मिली। कई जिलों में चावल उत्पादन में रिकॉर्ड वृद्धि हुई। 2012 में चावल उत्पादन के लिए कृषि कर्मण पुरस्कार मिला। 2013 में गेहूं उत्पादन के क्षेत्र में कृषि कर्मण पुरस्कार मिला। 2016 में मक्का के उत्पादन के क्षेत्र में कृषि कर्मण पुरस्कार मिला।

राज्यपाल ने समारोह में ही सरकार को सलाह भी दी। उन्होंने कहा कि किसानों को कृषि संबंधी सभी योजनाओं एवं कार्यक्रमों से अवगत होना चाहिए तथा इनका लाभ उन्हें मिलना चाहिए। राज्यपाल ने प्राकृतिक खेती को बढ़ावा देने पर बल देते हुए कहा कि इसे इस कृषि रोड मैप का अंग बनाया जाना चाहिए। प्राकृतिक खेती में कम लागत में अधिक उत्पादन होता है। इससे किसानों की आय को दुगुनी करने में मदद मिलेगी। इस खेती के लिए किसानों को प्रेरित करने के साथ-साथ उनका उचित मार्गदर्शन किया जाना चाहिए।

उन्होंने किसानों को खेती की नई तकनीक अपनाने को कहा। राज्यपाल ने कहा कि भारत कृषि प्रधान देश है और बिहार भी इससे अलग नहीं है। बिहार के काफी लोग कृषि से जुड़े हुए हैं।

विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष विजय कुमार सिन्हा कहते हैं कि पूर्व के तीनों कृषि रोड मैप योजना विफल साबित हुई है। सरकार को उस पर श्वेत पत्र जारी करना चाहिए। कृषि रोड मैप सरकार के 12 विभागों द्वारा धन उगाही का जरिया बन गया है। कृषि रोड मैप 2008 से शुरू हुआ लेकिन अभी भी बिहार के किस आमदनी में देश के सबसे निचले राज्यों में है। पूर्व कृषि मंत्री सुधाकर सिंह ने खुलेआम कहा था कि विभाग में सभी चोर हैं। कृषि रोड मैप से किसानों को कोई फायदा नहीं हुआ है। कृषि रोड मैप के तहत कृषि कैबिनेट भी बनाई गई थी परंतु पिछले कई वर्षों में उसकी बैठक नहीं हुई है।

सिन्हा ने मुख्यमंत्री के बयान का उल्लेख करते हुए कहा कि चौथे कृषि रोड मैप को उन्होंने अंतिम बताया है। जब योजनाएं कागज पर ही बनती है और कागज पर ही क्रियान्वयन होता है तो बाकी कृषि रोड मैप की तरह ही अंतिम कृषि रोड मैप का भी हश्र होगा।

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वैसे, इस कृषि रोड मैप के बाद किसानों की हालत को लेकर यह कहा जाने लगा है कि क्या सच में इस कृषि रोड मैप के बाद प्रदेश के किसानों की हालत में सुधार हो जाएगा। वर्ष 2008 में पहले कृषि रोड मैप की शुरुआत हुई थी। उसके बाद 2012 में तत्कालीन राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने दूसरे रोड मैप की शुरुआत की थी। 2017 में तत्कालीन राष्ट्रपति रामनाथ कोविन्द ने तीसरे कृषि रोड मैप की शुरुआत की थी।

मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने कहा कि चौथे कृषि रोड मैप में किसानों की आय एवं फसल उत्पादन पर जोर दिया जाएगा। पहले कृषि रोड मैप में बीज उत्पादन के साथ किसानों की उत्पादकता बढ़ाने की कोशिश हुई थी। चावल के उत्पादन में बिहार को काफी सफलता मिली। कई जिलों में चावल उत्पादन में रिकॉर्ड वृद्धि हुई। 2012 में चावल उत्पादन के लिए कृषि कर्मण पुरस्कार मिला। 2013 में गेहूं उत्पादन के क्षेत्र में कृषि कर्मण पुरस्कार मिला। 2016 में मक्का के उत्पादन के क्षेत्र में कृषि कर्मण पुरस्कार मिला।

राज्यपाल ने समारोह में ही सरकार को सलाह भी दी। उन्होंने कहा कि किसानों को कृषि संबंधी सभी योजनाओं एवं कार्यक्रमों से अवगत होना चाहिए तथा इनका लाभ उन्हें मिलना चाहिए। राज्यपाल ने प्राकृतिक खेती को बढ़ावा देने पर बल देते हुए कहा कि इसे इस कृषि रोड मैप का अंग बनाया जाना चाहिए। प्राकृतिक खेती में कम लागत में अधिक उत्पादन होता है। इससे किसानों की आय को दुगुनी करने में मदद मिलेगी। इस खेती के लिए किसानों को प्रेरित करने के साथ-साथ उनका उचित मार्गदर्शन किया जाना चाहिए।

उन्होंने किसानों को खेती की नई तकनीक अपनाने को कहा। राज्यपाल ने कहा कि भारत कृषि प्रधान देश है और बिहार भी इससे अलग नहीं है। बिहार के काफी लोग कृषि से जुड़े हुए हैं।

विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष विजय कुमार सिन्हा कहते हैं कि पूर्व के तीनों कृषि रोड मैप योजना विफल साबित हुई है। सरकार को उस पर श्वेत पत्र जारी करना चाहिए। कृषि रोड मैप सरकार के 12 विभागों द्वारा धन उगाही का जरिया बन गया है। कृषि रोड मैप 2008 से शुरू हुआ लेकिन अभी भी बिहार के किस आमदनी में देश के सबसे निचले राज्यों में है। पूर्व कृषि मंत्री सुधाकर सिंह ने खुलेआम कहा था कि विभाग में सभी चोर हैं। कृषि रोड मैप से किसानों को कोई फायदा नहीं हुआ है। कृषि रोड मैप के तहत कृषि कैबिनेट भी बनाई गई थी परंतु पिछले कई वर्षों में उसकी बैठक नहीं हुई है।

सिन्हा ने मुख्यमंत्री के बयान का उल्लेख करते हुए कहा कि चौथे कृषि रोड मैप को उन्होंने अंतिम बताया है। जब योजनाएं कागज पर ही बनती है और कागज पर ही क्रियान्वयन होता है तो बाकी कृषि रोड मैप की तरह ही अंतिम कृषि रोड मैप का भी हश्र होगा।

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वैसे, इस कृषि रोड मैप के बाद किसानों की हालत को लेकर यह कहा जाने लगा है कि क्या सच में इस कृषि रोड मैप के बाद प्रदेश के किसानों की हालत में सुधार हो जाएगा। वर्ष 2008 में पहले कृषि रोड मैप की शुरुआत हुई थी। उसके बाद 2012 में तत्कालीन राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने दूसरे रोड मैप की शुरुआत की थी। 2017 में तत्कालीन राष्ट्रपति रामनाथ कोविन्द ने तीसरे कृषि रोड मैप की शुरुआत की थी।

मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने कहा कि चौथे कृषि रोड मैप में किसानों की आय एवं फसल उत्पादन पर जोर दिया जाएगा। पहले कृषि रोड मैप में बीज उत्पादन के साथ किसानों की उत्पादकता बढ़ाने की कोशिश हुई थी। चावल के उत्पादन में बिहार को काफी सफलता मिली। कई जिलों में चावल उत्पादन में रिकॉर्ड वृद्धि हुई। 2012 में चावल उत्पादन के लिए कृषि कर्मण पुरस्कार मिला। 2013 में गेहूं उत्पादन के क्षेत्र में कृषि कर्मण पुरस्कार मिला। 2016 में मक्का के उत्पादन के क्षेत्र में कृषि कर्मण पुरस्कार मिला।

राज्यपाल ने समारोह में ही सरकार को सलाह भी दी। उन्होंने कहा कि किसानों को कृषि संबंधी सभी योजनाओं एवं कार्यक्रमों से अवगत होना चाहिए तथा इनका लाभ उन्हें मिलना चाहिए। राज्यपाल ने प्राकृतिक खेती को बढ़ावा देने पर बल देते हुए कहा कि इसे इस कृषि रोड मैप का अंग बनाया जाना चाहिए। प्राकृतिक खेती में कम लागत में अधिक उत्पादन होता है। इससे किसानों की आय को दुगुनी करने में मदद मिलेगी। इस खेती के लिए किसानों को प्रेरित करने के साथ-साथ उनका उचित मार्गदर्शन किया जाना चाहिए।

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विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष विजय कुमार सिन्हा कहते हैं कि पूर्व के तीनों कृषि रोड मैप योजना विफल साबित हुई है। सरकार को उस पर श्वेत पत्र जारी करना चाहिए। कृषि रोड मैप सरकार के 12 विभागों द्वारा धन उगाही का जरिया बन गया है। कृषि रोड मैप 2008 से शुरू हुआ लेकिन अभी भी बिहार के किस आमदनी में देश के सबसे निचले राज्यों में है। पूर्व कृषि मंत्री सुधाकर सिंह ने खुलेआम कहा था कि विभाग में सभी चोर हैं। कृषि रोड मैप से किसानों को कोई फायदा नहीं हुआ है। कृषि रोड मैप के तहत कृषि कैबिनेट भी बनाई गई थी परंतु पिछले कई वर्षों में उसकी बैठक नहीं हुई है।

सिन्हा ने मुख्यमंत्री के बयान का उल्लेख करते हुए कहा कि चौथे कृषि रोड मैप को उन्होंने अंतिम बताया है। जब योजनाएं कागज पर ही बनती है और कागज पर ही क्रियान्वयन होता है तो बाकी कृषि रोड मैप की तरह ही अंतिम कृषि रोड मैप का भी हश्र होगा।

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वैसे, इस कृषि रोड मैप के बाद किसानों की हालत को लेकर यह कहा जाने लगा है कि क्या सच में इस कृषि रोड मैप के बाद प्रदेश के किसानों की हालत में सुधार हो जाएगा। वर्ष 2008 में पहले कृषि रोड मैप की शुरुआत हुई थी। उसके बाद 2012 में तत्कालीन राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने दूसरे रोड मैप की शुरुआत की थी। 2017 में तत्कालीन राष्ट्रपति रामनाथ कोविन्द ने तीसरे कृषि रोड मैप की शुरुआत की थी।

मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने कहा कि चौथे कृषि रोड मैप में किसानों की आय एवं फसल उत्पादन पर जोर दिया जाएगा। पहले कृषि रोड मैप में बीज उत्पादन के साथ किसानों की उत्पादकता बढ़ाने की कोशिश हुई थी। चावल के उत्पादन में बिहार को काफी सफलता मिली। कई जिलों में चावल उत्पादन में रिकॉर्ड वृद्धि हुई। 2012 में चावल उत्पादन के लिए कृषि कर्मण पुरस्कार मिला। 2013 में गेहूं उत्पादन के क्षेत्र में कृषि कर्मण पुरस्कार मिला। 2016 में मक्का के उत्पादन के क्षेत्र में कृषि कर्मण पुरस्कार मिला।

राज्यपाल ने समारोह में ही सरकार को सलाह भी दी। उन्होंने कहा कि किसानों को कृषि संबंधी सभी योजनाओं एवं कार्यक्रमों से अवगत होना चाहिए तथा इनका लाभ उन्हें मिलना चाहिए। राज्यपाल ने प्राकृतिक खेती को बढ़ावा देने पर बल देते हुए कहा कि इसे इस कृषि रोड मैप का अंग बनाया जाना चाहिए। प्राकृतिक खेती में कम लागत में अधिक उत्पादन होता है। इससे किसानों की आय को दुगुनी करने में मदद मिलेगी। इस खेती के लिए किसानों को प्रेरित करने के साथ-साथ उनका उचित मार्गदर्शन किया जाना चाहिए।

उन्होंने किसानों को खेती की नई तकनीक अपनाने को कहा। राज्यपाल ने कहा कि भारत कृषि प्रधान देश है और बिहार भी इससे अलग नहीं है। बिहार के काफी लोग कृषि से जुड़े हुए हैं।

विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष विजय कुमार सिन्हा कहते हैं कि पूर्व के तीनों कृषि रोड मैप योजना विफल साबित हुई है। सरकार को उस पर श्वेत पत्र जारी करना चाहिए। कृषि रोड मैप सरकार के 12 विभागों द्वारा धन उगाही का जरिया बन गया है। कृषि रोड मैप 2008 से शुरू हुआ लेकिन अभी भी बिहार के किस आमदनी में देश के सबसे निचले राज्यों में है। पूर्व कृषि मंत्री सुधाकर सिंह ने खुलेआम कहा था कि विभाग में सभी चोर हैं। कृषि रोड मैप से किसानों को कोई फायदा नहीं हुआ है। कृषि रोड मैप के तहत कृषि कैबिनेट भी बनाई गई थी परंतु पिछले कई वर्षों में उसकी बैठक नहीं हुई है।

सिन्हा ने मुख्यमंत्री के बयान का उल्लेख करते हुए कहा कि चौथे कृषि रोड मैप को उन्होंने अंतिम बताया है। जब योजनाएं कागज पर ही बनती है और कागज पर ही क्रियान्वयन होता है तो बाकी कृषि रोड मैप की तरह ही अंतिम कृषि रोड मैप का भी हश्र होगा।

–आईएएनएस

एमएनपी/एबीएम

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