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Home ताज़ा समाचार

सुप्रीम कोर्ट ने मैला ढोने वालों की मृत्यु, विकलांगता के मामलों में मुआवजा बढ़ाने का दिया आदेश

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October 20, 2023
in ताज़ा समाचार
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नई दिल्ली, 20 अक्टूबर (आईएएनएस)। सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को मैला ढोने के काम में लगे लोगों की मौत और विकलांगता के मामलों में दिए जाने वाले मुआवजे को बढ़ाने का आदेश दिया।

न्यायमूर्ति एस. रवींद्र भट और न्यायमूर्ति अरविंद कुमार की पीठ ने आदेश दिया कि सीवर या सेप्टिक टैंक की सफाई करते समय मरने वालों के परिवार के सदस्यों को 30 लाख रुपये का भुगतान किया जाना चाहिए। उन्‍होंने कहा कि पूर्ण विकलांगता के मामलों में 20 लाख रुपये से कम का भुगतान नहीं किया जाना चाहिए।

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यह कहते हुए कि आंशिक विकलांगता के मामलों में 10 लाख रुपये से कम का भुगतान नहीं किया जाना चाहिए, पीठ ने इस बात पर जोर दिया कि हाथ से मैला ढोने की प्रथा को पूरी तरह खत्म करने की जरूरत है।

शीर्ष अदालत ने याचिकाकर्ता डॉ. बलराम सिंह द्वारा दायर एक जनहित याचिका पर विस्तृत दिशानिर्देश पारित किया। याचिका में मैनुअल स्कैवेंजर्स के रोजगार एवं शुष्क शौचालयों के निर्माण (निषेध) अधिनियम, 1993 और मैनुअल स्केवेंजर्स के रूप में रोजगार निषेध एवं उनका पुनर्वास अधिनियम, 2013 के कार्यान्वयन के लिए निर्देश मांगे गए थे।

शीर्ष अदालत ने स्पष्ट किया कि उसका फैसला देश भर के उच्च न्यायालयों को हाथ से मैला ढोने वालों के लिए बनाए गए सामाजिक कल्याण कानूनों के कार्यान्वयन की निगरानी करने से नहीं रोकेगा।

सुप्रीम कोर्ट ने 2019 में कहा था कि “हाथ से मैला ढोने वालों को रोगग्रस्त सीवेज और गड्ढों के संपर्क में आकर अमानवीय कामकाजी परिस्थितियों का सामना करना पड़ता है; जिसमें उक्त मैला ढोने वालों को बिना किसी सुरक्षात्मक गियर के काम करने के लिए मजबूर किया जाता है। उपरोक्त असुरक्षित कार्य परिस्थितियों के परिणामस्वरूप या तो मैला ढोना पड़ता है। मैला ढोने वाले लंबी बीमारियों से ग्रस्त हैं या चोटों से पीड़ित हैं, जिसके लिए कोई चिकित्सा देखभाल सुविधाएं नहीं हैं; या इसके परिणामस्वरूप उनकी दुर्भाग्यपूर्ण और असामयिक मृत्यु हो सकती है, जिसमें अधिकांश मामलों में उनके परिजनों को संबंधित राज्य द्वारा मुआवजा भी नहीं दिया जाता है।”

–आईएएनएस

एकेजे

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नई दिल्ली, 20 अक्टूबर (आईएएनएस)। सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को मैला ढोने के काम में लगे लोगों की मौत और विकलांगता के मामलों में दिए जाने वाले मुआवजे को बढ़ाने का आदेश दिया।

न्यायमूर्ति एस. रवींद्र भट और न्यायमूर्ति अरविंद कुमार की पीठ ने आदेश दिया कि सीवर या सेप्टिक टैंक की सफाई करते समय मरने वालों के परिवार के सदस्यों को 30 लाख रुपये का भुगतान किया जाना चाहिए। उन्‍होंने कहा कि पूर्ण विकलांगता के मामलों में 20 लाख रुपये से कम का भुगतान नहीं किया जाना चाहिए।

यह कहते हुए कि आंशिक विकलांगता के मामलों में 10 लाख रुपये से कम का भुगतान नहीं किया जाना चाहिए, पीठ ने इस बात पर जोर दिया कि हाथ से मैला ढोने की प्रथा को पूरी तरह खत्म करने की जरूरत है।

शीर्ष अदालत ने याचिकाकर्ता डॉ. बलराम सिंह द्वारा दायर एक जनहित याचिका पर विस्तृत दिशानिर्देश पारित किया। याचिका में मैनुअल स्कैवेंजर्स के रोजगार एवं शुष्क शौचालयों के निर्माण (निषेध) अधिनियम, 1993 और मैनुअल स्केवेंजर्स के रूप में रोजगार निषेध एवं उनका पुनर्वास अधिनियम, 2013 के कार्यान्वयन के लिए निर्देश मांगे गए थे।

शीर्ष अदालत ने स्पष्ट किया कि उसका फैसला देश भर के उच्च न्यायालयों को हाथ से मैला ढोने वालों के लिए बनाए गए सामाजिक कल्याण कानूनों के कार्यान्वयन की निगरानी करने से नहीं रोकेगा।

सुप्रीम कोर्ट ने 2019 में कहा था कि “हाथ से मैला ढोने वालों को रोगग्रस्त सीवेज और गड्ढों के संपर्क में आकर अमानवीय कामकाजी परिस्थितियों का सामना करना पड़ता है; जिसमें उक्त मैला ढोने वालों को बिना किसी सुरक्षात्मक गियर के काम करने के लिए मजबूर किया जाता है। उपरोक्त असुरक्षित कार्य परिस्थितियों के परिणामस्वरूप या तो मैला ढोना पड़ता है। मैला ढोने वाले लंबी बीमारियों से ग्रस्त हैं या चोटों से पीड़ित हैं, जिसके लिए कोई चिकित्सा देखभाल सुविधाएं नहीं हैं; या इसके परिणामस्वरूप उनकी दुर्भाग्यपूर्ण और असामयिक मृत्यु हो सकती है, जिसमें अधिकांश मामलों में उनके परिजनों को संबंधित राज्य द्वारा मुआवजा भी नहीं दिया जाता है।”

–आईएएनएस

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नई दिल्ली, 20 अक्टूबर (आईएएनएस)। सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को मैला ढोने के काम में लगे लोगों की मौत और विकलांगता के मामलों में दिए जाने वाले मुआवजे को बढ़ाने का आदेश दिया।

न्यायमूर्ति एस. रवींद्र भट और न्यायमूर्ति अरविंद कुमार की पीठ ने आदेश दिया कि सीवर या सेप्टिक टैंक की सफाई करते समय मरने वालों के परिवार के सदस्यों को 30 लाख रुपये का भुगतान किया जाना चाहिए। उन्‍होंने कहा कि पूर्ण विकलांगता के मामलों में 20 लाख रुपये से कम का भुगतान नहीं किया जाना चाहिए।

यह कहते हुए कि आंशिक विकलांगता के मामलों में 10 लाख रुपये से कम का भुगतान नहीं किया जाना चाहिए, पीठ ने इस बात पर जोर दिया कि हाथ से मैला ढोने की प्रथा को पूरी तरह खत्म करने की जरूरत है।

शीर्ष अदालत ने याचिकाकर्ता डॉ. बलराम सिंह द्वारा दायर एक जनहित याचिका पर विस्तृत दिशानिर्देश पारित किया। याचिका में मैनुअल स्कैवेंजर्स के रोजगार एवं शुष्क शौचालयों के निर्माण (निषेध) अधिनियम, 1993 और मैनुअल स्केवेंजर्स के रूप में रोजगार निषेध एवं उनका पुनर्वास अधिनियम, 2013 के कार्यान्वयन के लिए निर्देश मांगे गए थे।

शीर्ष अदालत ने स्पष्ट किया कि उसका फैसला देश भर के उच्च न्यायालयों को हाथ से मैला ढोने वालों के लिए बनाए गए सामाजिक कल्याण कानूनों के कार्यान्वयन की निगरानी करने से नहीं रोकेगा।

सुप्रीम कोर्ट ने 2019 में कहा था कि “हाथ से मैला ढोने वालों को रोगग्रस्त सीवेज और गड्ढों के संपर्क में आकर अमानवीय कामकाजी परिस्थितियों का सामना करना पड़ता है; जिसमें उक्त मैला ढोने वालों को बिना किसी सुरक्षात्मक गियर के काम करने के लिए मजबूर किया जाता है। उपरोक्त असुरक्षित कार्य परिस्थितियों के परिणामस्वरूप या तो मैला ढोना पड़ता है। मैला ढोने वाले लंबी बीमारियों से ग्रस्त हैं या चोटों से पीड़ित हैं, जिसके लिए कोई चिकित्सा देखभाल सुविधाएं नहीं हैं; या इसके परिणामस्वरूप उनकी दुर्भाग्यपूर्ण और असामयिक मृत्यु हो सकती है, जिसमें अधिकांश मामलों में उनके परिजनों को संबंधित राज्य द्वारा मुआवजा भी नहीं दिया जाता है।”

–आईएएनएस

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नई दिल्ली, 20 अक्टूबर (आईएएनएस)। सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को मैला ढोने के काम में लगे लोगों की मौत और विकलांगता के मामलों में दिए जाने वाले मुआवजे को बढ़ाने का आदेश दिया।

न्यायमूर्ति एस. रवींद्र भट और न्यायमूर्ति अरविंद कुमार की पीठ ने आदेश दिया कि सीवर या सेप्टिक टैंक की सफाई करते समय मरने वालों के परिवार के सदस्यों को 30 लाख रुपये का भुगतान किया जाना चाहिए। उन्‍होंने कहा कि पूर्ण विकलांगता के मामलों में 20 लाख रुपये से कम का भुगतान नहीं किया जाना चाहिए।

यह कहते हुए कि आंशिक विकलांगता के मामलों में 10 लाख रुपये से कम का भुगतान नहीं किया जाना चाहिए, पीठ ने इस बात पर जोर दिया कि हाथ से मैला ढोने की प्रथा को पूरी तरह खत्म करने की जरूरत है।

शीर्ष अदालत ने याचिकाकर्ता डॉ. बलराम सिंह द्वारा दायर एक जनहित याचिका पर विस्तृत दिशानिर्देश पारित किया। याचिका में मैनुअल स्कैवेंजर्स के रोजगार एवं शुष्क शौचालयों के निर्माण (निषेध) अधिनियम, 1993 और मैनुअल स्केवेंजर्स के रूप में रोजगार निषेध एवं उनका पुनर्वास अधिनियम, 2013 के कार्यान्वयन के लिए निर्देश मांगे गए थे।

शीर्ष अदालत ने स्पष्ट किया कि उसका फैसला देश भर के उच्च न्यायालयों को हाथ से मैला ढोने वालों के लिए बनाए गए सामाजिक कल्याण कानूनों के कार्यान्वयन की निगरानी करने से नहीं रोकेगा।

सुप्रीम कोर्ट ने 2019 में कहा था कि “हाथ से मैला ढोने वालों को रोगग्रस्त सीवेज और गड्ढों के संपर्क में आकर अमानवीय कामकाजी परिस्थितियों का सामना करना पड़ता है; जिसमें उक्त मैला ढोने वालों को बिना किसी सुरक्षात्मक गियर के काम करने के लिए मजबूर किया जाता है। उपरोक्त असुरक्षित कार्य परिस्थितियों के परिणामस्वरूप या तो मैला ढोना पड़ता है। मैला ढोने वाले लंबी बीमारियों से ग्रस्त हैं या चोटों से पीड़ित हैं, जिसके लिए कोई चिकित्सा देखभाल सुविधाएं नहीं हैं; या इसके परिणामस्वरूप उनकी दुर्भाग्यपूर्ण और असामयिक मृत्यु हो सकती है, जिसमें अधिकांश मामलों में उनके परिजनों को संबंधित राज्य द्वारा मुआवजा भी नहीं दिया जाता है।”

–आईएएनएस

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न्यायमूर्ति एस. रवींद्र भट और न्यायमूर्ति अरविंद कुमार की पीठ ने आदेश दिया कि सीवर या सेप्टिक टैंक की सफाई करते समय मरने वालों के परिवार के सदस्यों को 30 लाख रुपये का भुगतान किया जाना चाहिए। उन्‍होंने कहा कि पूर्ण विकलांगता के मामलों में 20 लाख रुपये से कम का भुगतान नहीं किया जाना चाहिए।

यह कहते हुए कि आंशिक विकलांगता के मामलों में 10 लाख रुपये से कम का भुगतान नहीं किया जाना चाहिए, पीठ ने इस बात पर जोर दिया कि हाथ से मैला ढोने की प्रथा को पूरी तरह खत्म करने की जरूरत है।

शीर्ष अदालत ने याचिकाकर्ता डॉ. बलराम सिंह द्वारा दायर एक जनहित याचिका पर विस्तृत दिशानिर्देश पारित किया। याचिका में मैनुअल स्कैवेंजर्स के रोजगार एवं शुष्क शौचालयों के निर्माण (निषेध) अधिनियम, 1993 और मैनुअल स्केवेंजर्स के रूप में रोजगार निषेध एवं उनका पुनर्वास अधिनियम, 2013 के कार्यान्वयन के लिए निर्देश मांगे गए थे।

शीर्ष अदालत ने स्पष्ट किया कि उसका फैसला देश भर के उच्च न्यायालयों को हाथ से मैला ढोने वालों के लिए बनाए गए सामाजिक कल्याण कानूनों के कार्यान्वयन की निगरानी करने से नहीं रोकेगा।

सुप्रीम कोर्ट ने 2019 में कहा था कि “हाथ से मैला ढोने वालों को रोगग्रस्त सीवेज और गड्ढों के संपर्क में आकर अमानवीय कामकाजी परिस्थितियों का सामना करना पड़ता है; जिसमें उक्त मैला ढोने वालों को बिना किसी सुरक्षात्मक गियर के काम करने के लिए मजबूर किया जाता है। उपरोक्त असुरक्षित कार्य परिस्थितियों के परिणामस्वरूप या तो मैला ढोना पड़ता है। मैला ढोने वाले लंबी बीमारियों से ग्रस्त हैं या चोटों से पीड़ित हैं, जिसके लिए कोई चिकित्सा देखभाल सुविधाएं नहीं हैं; या इसके परिणामस्वरूप उनकी दुर्भाग्यपूर्ण और असामयिक मृत्यु हो सकती है, जिसमें अधिकांश मामलों में उनके परिजनों को संबंधित राज्य द्वारा मुआवजा भी नहीं दिया जाता है।”

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यह कहते हुए कि आंशिक विकलांगता के मामलों में 10 लाख रुपये से कम का भुगतान नहीं किया जाना चाहिए, पीठ ने इस बात पर जोर दिया कि हाथ से मैला ढोने की प्रथा को पूरी तरह खत्म करने की जरूरत है।

शीर्ष अदालत ने याचिकाकर्ता डॉ. बलराम सिंह द्वारा दायर एक जनहित याचिका पर विस्तृत दिशानिर्देश पारित किया। याचिका में मैनुअल स्कैवेंजर्स के रोजगार एवं शुष्क शौचालयों के निर्माण (निषेध) अधिनियम, 1993 और मैनुअल स्केवेंजर्स के रूप में रोजगार निषेध एवं उनका पुनर्वास अधिनियम, 2013 के कार्यान्वयन के लिए निर्देश मांगे गए थे।

शीर्ष अदालत ने स्पष्ट किया कि उसका फैसला देश भर के उच्च न्यायालयों को हाथ से मैला ढोने वालों के लिए बनाए गए सामाजिक कल्याण कानूनों के कार्यान्वयन की निगरानी करने से नहीं रोकेगा।

सुप्रीम कोर्ट ने 2019 में कहा था कि “हाथ से मैला ढोने वालों को रोगग्रस्त सीवेज और गड्ढों के संपर्क में आकर अमानवीय कामकाजी परिस्थितियों का सामना करना पड़ता है; जिसमें उक्त मैला ढोने वालों को बिना किसी सुरक्षात्मक गियर के काम करने के लिए मजबूर किया जाता है। उपरोक्त असुरक्षित कार्य परिस्थितियों के परिणामस्वरूप या तो मैला ढोना पड़ता है। मैला ढोने वाले लंबी बीमारियों से ग्रस्त हैं या चोटों से पीड़ित हैं, जिसके लिए कोई चिकित्सा देखभाल सुविधाएं नहीं हैं; या इसके परिणामस्वरूप उनकी दुर्भाग्यपूर्ण और असामयिक मृत्यु हो सकती है, जिसमें अधिकांश मामलों में उनके परिजनों को संबंधित राज्य द्वारा मुआवजा भी नहीं दिया जाता है।”

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न्यायमूर्ति एस. रवींद्र भट और न्यायमूर्ति अरविंद कुमार की पीठ ने आदेश दिया कि सीवर या सेप्टिक टैंक की सफाई करते समय मरने वालों के परिवार के सदस्यों को 30 लाख रुपये का भुगतान किया जाना चाहिए। उन्‍होंने कहा कि पूर्ण विकलांगता के मामलों में 20 लाख रुपये से कम का भुगतान नहीं किया जाना चाहिए।

यह कहते हुए कि आंशिक विकलांगता के मामलों में 10 लाख रुपये से कम का भुगतान नहीं किया जाना चाहिए, पीठ ने इस बात पर जोर दिया कि हाथ से मैला ढोने की प्रथा को पूरी तरह खत्म करने की जरूरत है।

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शीर्ष अदालत ने स्पष्ट किया कि उसका फैसला देश भर के उच्च न्यायालयों को हाथ से मैला ढोने वालों के लिए बनाए गए सामाजिक कल्याण कानूनों के कार्यान्वयन की निगरानी करने से नहीं रोकेगा।

सुप्रीम कोर्ट ने 2019 में कहा था कि “हाथ से मैला ढोने वालों को रोगग्रस्त सीवेज और गड्ढों के संपर्क में आकर अमानवीय कामकाजी परिस्थितियों का सामना करना पड़ता है; जिसमें उक्त मैला ढोने वालों को बिना किसी सुरक्षात्मक गियर के काम करने के लिए मजबूर किया जाता है। उपरोक्त असुरक्षित कार्य परिस्थितियों के परिणामस्वरूप या तो मैला ढोना पड़ता है। मैला ढोने वाले लंबी बीमारियों से ग्रस्त हैं या चोटों से पीड़ित हैं, जिसके लिए कोई चिकित्सा देखभाल सुविधाएं नहीं हैं; या इसके परिणामस्वरूप उनकी दुर्भाग्यपूर्ण और असामयिक मृत्यु हो सकती है, जिसमें अधिकांश मामलों में उनके परिजनों को संबंधित राज्य द्वारा मुआवजा भी नहीं दिया जाता है।”

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न्यायमूर्ति एस. रवींद्र भट और न्यायमूर्ति अरविंद कुमार की पीठ ने आदेश दिया कि सीवर या सेप्टिक टैंक की सफाई करते समय मरने वालों के परिवार के सदस्यों को 30 लाख रुपये का भुगतान किया जाना चाहिए। उन्‍होंने कहा कि पूर्ण विकलांगता के मामलों में 20 लाख रुपये से कम का भुगतान नहीं किया जाना चाहिए।

यह कहते हुए कि आंशिक विकलांगता के मामलों में 10 लाख रुपये से कम का भुगतान नहीं किया जाना चाहिए, पीठ ने इस बात पर जोर दिया कि हाथ से मैला ढोने की प्रथा को पूरी तरह खत्म करने की जरूरत है।

शीर्ष अदालत ने याचिकाकर्ता डॉ. बलराम सिंह द्वारा दायर एक जनहित याचिका पर विस्तृत दिशानिर्देश पारित किया। याचिका में मैनुअल स्कैवेंजर्स के रोजगार एवं शुष्क शौचालयों के निर्माण (निषेध) अधिनियम, 1993 और मैनुअल स्केवेंजर्स के रूप में रोजगार निषेध एवं उनका पुनर्वास अधिनियम, 2013 के कार्यान्वयन के लिए निर्देश मांगे गए थे।

शीर्ष अदालत ने स्पष्ट किया कि उसका फैसला देश भर के उच्च न्यायालयों को हाथ से मैला ढोने वालों के लिए बनाए गए सामाजिक कल्याण कानूनों के कार्यान्वयन की निगरानी करने से नहीं रोकेगा।

सुप्रीम कोर्ट ने 2019 में कहा था कि “हाथ से मैला ढोने वालों को रोगग्रस्त सीवेज और गड्ढों के संपर्क में आकर अमानवीय कामकाजी परिस्थितियों का सामना करना पड़ता है; जिसमें उक्त मैला ढोने वालों को बिना किसी सुरक्षात्मक गियर के काम करने के लिए मजबूर किया जाता है। उपरोक्त असुरक्षित कार्य परिस्थितियों के परिणामस्वरूप या तो मैला ढोना पड़ता है। मैला ढोने वाले लंबी बीमारियों से ग्रस्त हैं या चोटों से पीड़ित हैं, जिसके लिए कोई चिकित्सा देखभाल सुविधाएं नहीं हैं; या इसके परिणामस्वरूप उनकी दुर्भाग्यपूर्ण और असामयिक मृत्यु हो सकती है, जिसमें अधिकांश मामलों में उनके परिजनों को संबंधित राज्य द्वारा मुआवजा भी नहीं दिया जाता है।”

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