नई दिल्ली, 16 जनवरी (आईएएनएस)। संगीत को लेकर आईआईटी ने एक महत्वपूर्ण रिसर्च की है। दरअसल संगीत में हमारे मन की भावना बदलने की ताकत है और यह जगजाहिर है कि लोग उत्साह जगाने या उदासी से उबरने के लिए अक्सर संगीत का सहारा लेते हैं। जब मन की इस विशेष भावना की अभिव्यक्ति कला के माध्यम से हो तो एक अजीब और स्थायी आकर्षण पैदा होता है। इसे ट्रैज्डी पैराडॉक्स कहा गया है। आईआईटी मंडी ने अब इसी ट्रेज्डी पैराडॉक्स पर एक नई रोशनी डाली है।
ट्रेज्डी पैराडॉक्स को लेकर सदियों से दार्शनिक भी उलझन में है। आईआईटी मंडी के निदेशक प्रो. लक्ष्मीधर बेहरा के मार्गदर्शन में हाल का यह शोध ऐसे कई प्रश्न का उत्तर देने का एक गंभीर प्रयास है।
प्रोफेसर लक्ष्मीधर बेहरा ने बताया कि हम यह जानना चाहते थे कि किसी अप्रिय अनुभव या याद के दौरान उदास संगीत सुनने की हमारे मस्तिष्क पर क्या प्रतिक्रिया होती है। शोधकर्ताओं ने यह जानने के लिए इलेक्ट्रोएन्सेफ्लोग्राफी (ईईजी) से विभिन्न परिस्थितियों में बीस लोगों की मस्तिष्क की गतिविधियों को रिकॉर्ड किया। उन्होंने मस्तिष्क के उन हिस्सों पर ध्यान केंद्रित किया जो भावना और याद को प्रॉसेस करते हैं। ये हिस्से हैं सिंगुलेट कॉर्टेक्स कॉम्प्लेक्स और पैराहिपोकैम्पस।
चुने गए 20 प्रतिभागी को संगीत का कोई प्रशिक्षण नहीं था। तीन मनोदशाओं (स्टेट) में उनके ईईजी रिकार्ड किए गए। पहले में बिना किसी इनपुट बेसलाइन ईईजी रिकॉर्ड किया गया। दूसरे में तब ईईजी रिकॉर्ड किया गया जब प्रतिभागियों ने एक दुखद अनुभव को याद किया – द सैड ऑटोबायोग्राफिकल रिकॉल और इसके बारे में लिखा या एसएआर की स्थिति। तीसरे में ईईजी तब रिकॉर्ड गया जब उन्हें भारतीय शास्त्रीय संगीत का एक राग मिश्र जोगिया सुनाया गया। इस संगीत का चयन पांच संगीत विशेषज्ञों के एक पैनल ने किया था और यह राग करुण रस (दुखद भावनाओं) के संचार के लिए जाना जाता है।
ईईजी मस्तिष्क की विद्युतीय गतिविधि जिसे आमतौर पर मस्तिष्क की तरंगें कहते हैं उन्हें रिकॉर्ड करता है। यह ज्ञात है कि मस्तिष्क की तरंगें पांच प्रकार की होती हैं- अल्फा, बीटा, गामा, डेल्टा और थीटा। प्रत्येक एक अलग मूड या मनोदशा व्यक्त करती है। उदाहरण के लिए वर्तमान संदर्भ में अल्फा का संबंध संज्ञान से प्राप्त सूचना प्रॉसेस करने से है जबकि गामा का संबंध किसी घटना की याद प्रॉसेस करने से है।
शोधकर्ताओं ने यह देखा कि किसी दुखद अनुभव को याद करते समय (यानी एसएआर के दौरान) गामा तरंग की गतिविधि बढ़ जाती है, जबकि उदास संगीत सुनने से मस्तिष्क की अल्फा गतिविधि में वृद्धि होती है।
अपने अवलोकनों के बारे में डॉ. बेहरा ने बताया, मिश्र जोगिया राग (उदास संगीत) सुनने से मस्तिष्क के अंदर भावनाओं और यादों के प्रॉसेस होने में वृद्धि दिखती है। ऐसा तीन-चैनल फ्रेमवर्क के माध्यम से होता है जिसमें अल्फा तरंगों की भूमिका है। ऐसे मैकेनिज्म में भावना और याद प्रॉसेस करने वाले मस्तिष्क के विशेष हिस्सों में ग्लोबल और लोकल कनेक्टिविटी और स्फूर्ति बढ़ जाती है।
शोध के निष्कर्ष दर्शाते हैं कि उदास संगीत सुनने के दौरान मस्तिष्क की गतिविधि एसएआर स्टेट और बेसलाइन रेस्टिंग स्टेट दोनों की तुलना में विशिष्ट और अलग होती है। उदास संगीत में कोपिंग मैकेनिज्म बनने की वजह अल्फा स्टेट में भावनाओं और यादों का बेहतर प्रॉसेस होना है। पीएच.डी. स्कॉलर आशीष गुप्ता ने बताया हालांकि कोपिंग इफेक्ट का सहज संबंध केवल संगीत के सौंदर्य आकर्षण से नहीं है, जैसा कि पहले माना जाता था, बल्कि यह उदास संगीत का अंदरूनी गुण है।
शोधकर्ता चाहते हैं कि भविष्य में एफएमआरआई स्कैन की मदद से अधिक गहरे सब कॉर्टिकल हिस्सों का अध्ययन किया जाए। वर्तमान अध्ययन मनुष्य के संज्ञान कार्यों पर भारतीय राग के प्रभाव का पता लगाने के लिए हो रहे शोध का एक हिस्सा है। प्रोफेसर ब्रज भूषण ने बताया, यह शोध कार्य संगीत से उपचार, संगीत प्रशिक्षण आदि के ²ष्टिकोण से महत्वपूर्ण है क्योंकि ऐसे कार्यों में संगीत एक चिकित्सा उपकरण का काम करता है।
ये ज्ञानवर्धक अवलोकन हाल में एक ओपन- एक्सेस जर्नल पीएलओएस वन में प्रकाशित किए गए। इस शोधपत्र का सह-लेखन आशीष गुप्ता, प्रोफेसर ब्रज भूषण और प्रोफेसर बेहरा ने किया है।
–आईएएनएस
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