नई दिल्ली, 16 जनवरी (आईएएनएस)। केंद्रीय कानून मंत्री किरेन रिजिजू ने भारत के मुख्य न्यायाधीश (सीजेआई) डी.वाई. चंद्रचूड़ को पत्र लिखकर कॉलेजियम में सरकार के प्रतिनिधियों को शामिल करने का सुझाव दिया है, जो न्यायाधीशों की नियुक्ति पर फैसला करता है।
कानून मंत्री ने एक पत्र में कहा कि सरकार के प्रतिनिधि होने से पारदर्शिता और सार्वजनिक जवाबदेही बढ़ेगी।
न्यायाधीशों की नियुक्ति को लेकर केंद्र और न्यायपालिका के बीच चल रहे विवाद के बीच यह पत्र सामने आया है। कानून मंत्री का पत्र संवैधानिक अधिकारियों द्वारा कॉलेजियम सिस्टम की आलोचना की श्रृंखला में नवीनतम है, जिसमें उपराष्ट्रपति और लोकसभा अध्यक्ष शामिल थे।
दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने एक ट्वीट में कहा, यह बेहद खतरनाक है। न्यायिक नियुक्तियों में बिल्कुल भी सरकारी हस्तक्षेप नहीं होना चाहिए।
दिल्ली के मुख्यमंत्री के ट्वीट का जवाब देते हुए, रिजिजू ने ट्वीट किया: मुझे उम्मीद है कि आप अदालत के निर्देश का सम्मान करेंगे! यह कदम राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग (एनजेएसी) अधिनियम को खारिज करते हुए सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ के दिए निदेशरें के तहत ही उठाया गया है। सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ ने कॉलेजियम सिस्टम के एमओपी को पुनर्गठित करने का निर्देश दिया था।
एक अन्य ट्वीट में, कानून मंत्री ने कहा, माननीय चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया को भेजे लेटर में कंटेंट्स सुप्रीम कोर्ट की पीठ के निदेशरें और टिप्पणियों के अनुरूप हैं। सुविधाजनक राजनीति ठीक नहीं है, खासकर न्यायपालिका के नाम पर। संविधान भारत सर्वोच्च है और कोई भी इससे ऊपर नहीं है।
पिछले साल रिजिजू ने एक मीडिया कार्यक्रम में कहा था कि न्यायाधीश केवल उन लोगों की नियुक्ति या पदोन्नति की सिफारिश करते हैं, जिन्हें वे जानते हैं और जरुरी नहीं कि हमेशा नौकरी के लिए सबसे योग्य व्यक्ति वही होते हैं। बाद में कानून मंत्री ने पिछले साल दिसंबर में कहा था कि उपयुक्त संशोधनों के साथ राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग (एनजेएसी) को फिर से पेश करने का ऐसा कोई प्रस्ताव नहीं है। संसद में राजनेताओं, मल्लिकार्जुन खड़गे और डॉ जॉन बिट्टास द्वारा उठाए गए कई सवालों का जवाब देते हुए उन्होंने यह बात कही।
रिजिजू ने कहा कि संवैधानिक अदालतों के न्यायाधीशों की नियुक्ति कार्यपालिका और न्यायपालिका के बीच एक सतत, एकीकृत और सहयोगात्मक प्रक्रिया है।
पिछले साल 28 नवंबर को, सुप्रीम कोर्ट ने न्यायाधीशों की नियुक्ति के कॉलेजियम सिस्टम पर कानून मंत्री किरेन रिजिजू की हालिया टिप्पणी पर कड़ा ऐतराज जताते हुए कहा कि ऐसा नहीं होना चाहिए था।
शीर्ष अदालत ने जजों की नियुक्ति में देरी को लेकर भी केंद्र सरकार को आड़े हाथों लिया था और कहा था कि सरकार कॉलेजियम द्वारा की गई सिफारिशों पर अपनी आपत्ति जता सकती है, लेकिन वह बिना नामों को रोककर नहीं रख सकती है।
राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन सरकार, 2014 में, न्यायाधीशों की नियुक्ति के सिस्टम को बदलने के प्रयास में एनजेएसी अधिनियम लाई। सर्वोच्च न्यायालय ने कॉलेजियम सिस्टम को दोहराया और 4:1 के अनुपात में 99वें संविधान संशोधन अधिनियम के साथ एनजेएसी अधिनियम को रद्द कर दिया।
–आईएएनएस
पीके/एएनएम