लखनऊ, 5 नवंबर (आईएएनएस)। उत्तर प्रदेश में चिकित्सा संस्थान अब सरकारी निर्देशों के अनुसार शिक्षा के माध्यम के रूप में हिंदी का उपयोग कर सकते हैं।
राज्य भर के सभी चिकित्सा संस्थानों के प्राचार्यों और फैकल्टी सदस्यों को हिंदी में पढ़ाना शुरू करने और महानिदेशक चिकित्सा शिक्षा को मासिक अपडेट देने के लिए कहा गया है।
महानिदेशक चिकित्सा शिक्षा (डीजीएमई) किंजल सिंह ने सभी राज्य-संचालित, स्वायत्त मेडिकल कॉलेजों और किंग जॉर्ज मेडिकल यूनिवर्सिटी (केजीएमयू) और डॉ राम मनोहर लोहिया इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेज (आरएमएलआईएमएस) के अधिकारियों को एक पत्र में कहा, ”31 अक्टूबर को जारी एक सरकारी पत्र में कहा गया है कि चिकित्सा शिक्षा विभाग के तहत कॉलेजों और विश्वविद्यालयों में हिंदी में पढ़ाई शुरू की जाए।”
इस परिवर्तन से मेडिकल छात्रों, विशेषकर उन लोगों के लिए अधिक स्पष्टता आने की उम्मीद है जिन्होंने अपनी पहली शिक्षा हिंदी में हासिल की है।
वहीं केजीएमयू में फिजियोलॉजी विभाग के प्रमुख प्रोफेसर एनएस वर्मा ने कहा, “अब लगभग सभी एमबीबीएस विषयों के लिए हिंदी किताबें उपलब्ध हैं। कुछ की समीक्षा भी चल रही है। रूस, चीन, जापान जैसे कई देश छात्रों को अपनी भाषा में पढ़ाते हैं।”
केजीएमयू में एनाटॉमी विभाग के प्रमुख प्रोफेसर नवनीत कुमार ने कहा, ”हालांकि, शिक्षकों ने बताया कि जब कक्षा में किसी भी जटिल प्वाइंट को विस्तार से समझाने की बात आती है तो हिंदी पहले से ही भाषा रही है।
हमारा लगभग 60 प्रतिशत कंटेंट हिंदी में समझाया जा रहा है। इससे छात्रों को यह समझने में मदद मिलती है कि हम वास्तव में क्या पढ़ाते हैं।”
केजीएमयू में पल्मोनरी मेडिसिन विभाग के प्रोफेसर सूर्यकांत ने छात्रों को एमबीबीएस प्रथम वर्ष का पाठ्यक्रम शुरू करने से पहले अंग्रेजी सिखाने की जरूरत पर जोर दिया।
उन्होंने सुझाव दिया कि यदि मेडिकल पाठ्यपुस्तकें हिंदी में उपलब्ध होंगी, तो इससे बेहतर शिक्षण में सुविधा होगी। विशेष रूप से, प्रोफेसर सूर्यकांत ने 1991 में अपनी थीसिस हिंदी में लिखी थी, जिसे राज्य विधानसभा द्वारा इसके पक्ष में प्रस्ताव पारित होने के बाद ही स्वीकार किया गया था।
30 सितंबर को एनईईटी-यूजी काउंसलिंग के समापन के बाद, शरीर रचना विज्ञान, शरीर विज्ञान और जैव रसायन विज्ञान के छात्रों के लिए प्रथम वर्ष की कक्षाएं शुरू हो गई हैं।
–आईएएनएस
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