चेन्नई, 20 जनवरी (आईएएनएस)। चेन्नई और आसपास के तटीय इलाकों में मछुआरा समूहों ने राज्य की राजधानी के मरीना बीच पर बनने वाले स्मारक का विरोध किया है।
दक्षिण भारतीय मछुआरा कल्याण संघ के अध्यक्ष के. भारती के अनुसार, कलैगनार करुणानिधि स्मारक से तटीय पर्यावरण को नुकसान होगा।
शुक्रवार को एक बयान में उन्होंने कहा कि चूंकि स्मारक कूम नदी के करीब है, इसलिए झींगा मछली का उत्पादन प्रभावित होगा।
उन्होंने कहा कि यदि तटीय क्षेत्रों को नुकसान होता है, तो यह मछली उत्पादन को प्रभावित करेगा और मछुआरों की आजीविका को प्रभावित करेगा।
भारती ने कहा कि चेन्नई के तटीय इलाकों में मछली का उत्पादन पहले ही कम हो गया है और अगर स्मारक बन जाता है, तो यह इसे और नष्ट कर देगा।
मछुआरा नेता ने राज्य सरकार को समुद्र के बजाय जमीन पर स्मारक बनाने का सुझाव दिया।
उन्होंने यह भी कहा कि सीआरजेड नियमन ने राज्य सरकार को मछली पकड़ने के क्षेत्रों का सीमांकन करने के लिए बाध्य किया है, लेकिन बाद में केवल बंदरगाहों और विकास के लिए निर्धारित किया गया है।
भारती ने कहा कि सीआरजेड नियमों के अनुसार, जिला सीआरजेड समितियों में मछुआरा समुदायों से कम से कम तीन सदस्य होने चाहिए, लेकिन किसी की नियुक्ति नहीं की गई है।
स्मारक के खिलाफ संयुक्त लड़ाई के लिए मछुआरा नेताओं ने मरीना मछुआरा संरक्षण समिति का भी गठन किया है।
स्मारक का निर्माण तटरेखा से 360 मीटर की दूरी पर किया जाना है। एक पुल 80 करोड़ रुपये की लागत से स्मारक और समुद्र तट को जोड़ेगा।
साइट सीआरजेड-1ए, सीआरजेड-2 और सीआरजेड-4 ए क्षेत्रों के अंतर्गत आती है। राज्य स्तर के अधिकारियों द्वारा स्वीकृति दी गई है।
बी. रामकुमार अदित्यन, जो चेन्नई में वकालत करते हैं, पहले ही राष्ट्रीय हरित न्यायाधिकरण (एनजीटी) में स्मारक के खिलाफ मामला दायर कर चुके हैं।
याचिकाकर्ता ने हवाला दिया कि यह ओलिव रिडले कछुओं के लिए प्रजनन स्थल था और परियोजना इस प्रक्रिया को नुकसान पहुंचाएगी।
राज्य सरकार 31 जनवरी को त्रिप्लिकेन के कलैवनार आरंगम, वालाजाह रोड पर जन सुनवाई करेगी।
–आईएएनएस
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