नई दिल्ली, 11 जनवरी (आईएएनएस)। दिल्ली की एक अदालत ने आठ साल पहले एक नाबालिग लड़की का यौन उत्पीड़न करने के आरोप में जेल में बंद तीन लोगों को यह कहते हुए बरी कर दिया है कि सबूतों के अभाव में आरोप साबित नहीं हो पाए।
अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश शिरीष अग्रवाल की अदालत ने नाबालिग लड़की की गवाही की जांच और पुष्टि की जरूरत पर बल दिया, उसके बयानों और उसकी मां के बयान में विरोधाभास और विसंगतियों की ओर इशारा किया।
आरोपी, जिन्हें ‘डी,’ ‘एस,’ और ‘जे’ कहा जाता है, को अन्य दंडात्मक अपराधों के साथ-साथ यौन अपराधों से बच्चों के संरक्षण (पॉक्सो) अधिनियम की धारा 10 (गंभीर यौन उत्पीड़न) के तहत आरोपों का सामना करना पड़ा।
कथित घटना 29 अगस्त, 2015 को हुई थी।
अदालत ने कहा कि शिकायतकर्ता ने अपने रिश्तेदारों पर उसके घर में जबरन घुसने, उसे पीटने, धमकी देने और यौन दुराचार करने का आरोप लगाया। हालांकि, यह देखा गया कि धमकियों के अलावा, नाबालिग द्वारा लगाए गए अन्य आरोप उसकी मां की शिकायत में नहीं थे।
इसके अलावा, अदालत ने शिकायतकर्ता के परिवार और आरोपी के बीच पहले से मौजूद विवादों पर भी प्रकाश डाला।
न्यायाधीश ने नाबालिग की गवाही पर भी सवाल उठाए, खासकर आरोपी द्वारा यौन इरादे से उसका हाथ पकड़ने और उसे घूरने के संबंध में। इसने अन्य गवाहों से पुष्टि की जरूरत पर जो दिया और नाबालिग व उसकी मां की गवाही में विसंगतियों का उल्लेख किया।
अदालत ने घटना के दौरान नाबालिग को लगी कथित चोटों के संबंध में सबूतों को भी खारिज कर दिया, जिसमें कहा गया कि अभियोजन पक्ष उचित संदेह से परे आरोपी के अपराध को साबित करने में विफल रहा।
शिकायतकर्ता के जन्म प्रमाणपत्र की फोटोकॉपी, जो उसकी उम्र साबित करने के लिए पेश की गई थी, को साक्ष्य के रूप में अस्वीकार्य माना गया, क्योंकि इसमें प्रामाणिकता का सत्यापन नहीं था। नतीजतन, अदालत ने आरोपी ‘डी,’ ‘एस,’ और ‘जे’ को आरोपों से बरी कर दिया।
–आईएएनएस
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